यहोवा की घाटी में बने रहकर हिफाज़त पाइए
“यहोवा . . . उन जातियों से ऐसा लड़ेगा जैसा वह संग्राम के दिन में लड़ा था।”—जक. 14:3.
1, 2. बहुत जल्द कौन-सा युद्ध सच में होनेवाला है? इस युद्ध में परमेश्वर के लोगों को क्या करने की ज़रूरत नहीं होगी?
बात 30 अक्टूबर, 1938 की है। अमरीका में लाखों लोग शाम को रेडियो पर एक जाना-माना कार्यक्रम सुन रहे थे, जिसमें नाटक सुनाया जाता था। उस दिन एक वैज्ञानिक उपन्यास दो दुनिया के बीच युद्ध (अँग्रेज़ी) पर आधारित नाटक चल रहा था। नाटक में न्यूज़ रिपोर्टर का किरदार निभानेवालों ने बताया कि मंगल ग्रह से एक बड़ी फौज धरती पर उतर आयी है। वह पूरी धरती पर तबाही मचा देगी। हालाँकि यह बताया गया था कि रेडियो पर बस एक नाटक सुनाया जा रहा है, फिर भी बहुतों को लगा कि समचुम धरती पर हमला हो रहा है। इसलिए वे बहुत डर गए। यहाँ तक कि कइयों ने मंगल ग्रह के काल्पनिक हमलावरों से बचने के लिए कुछ कदम भी उठाए।
2 बहुत जल्द सच में एक युद्ध होनेवाला है। लेकिन इससे बचने के लिए लोग कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। इस युद्ध के बारे में किसी वैज्ञानिक उपन्यास में नहीं, परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे उसके वचन बाइबल में बताया गया है। इसे हर-मगिदोन का युद्ध कहा गया है, जो इस दुष्ट दुनिया के खिलाफ परमेश्वर का युद्ध होगा। (प्रका. 16:14-16) इस युद्ध में धरती पर परमेश्वर के लोगों को किसी दूसरे ग्रह से आनेवाले हमलावारों से लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी। यहोवा उनकी तरफ से लड़ेगा, वह अपनी शक्ति से ऐसे-ऐसे काम करेगा, जिन्हें देखकर वे भौचक्के रह जाएँगे।
3. हम किस भविष्वाणी पर गौर करेंगे? यह भविष्वाणी हमारे लिए क्यों मायने रखती है?
3 बाइबल में, जकर्याह के अध्याय 14 में दर्ज़ भविष्यवाणी हमें हर-मगिदोन के युद्ध के बारे में काफी कुछ बताती है। हालाँकि यह भविष्यवाणी आज से करीब 2,500 साल पहले लिखी गयी थी, लेकिन यह आज हमारे लिए बहुत मायने रखती है। (रोमि. 15:4) इसमें बताया गया है कि जब सन् 1914 में मसीह स्वर्ग में राजा बना तब से परमेश्वर के लोगों के साथ क्या-क्या हुआ और बहुत जल्द क्या शानदार घटनाएँ घटनेवाली हैं। इस भविष्यवाणी में “बहुत बड़ा खड्ड [या, घाटी]” बनने और ‘बहते हुए जल’ या ‘जीवन के जल’ (हिंदी—कॉमन लैंग्वेज) का ज़िक्र किया गया है। (जक. 14:4, 8) इस लेख में हम सीखेंगे कि यह घाटी किसे दर्शाती है और यहोवा के उपासकों की वहाँ कैसे हिफाज़त होती है। हम यह भी सीखेंगे कि जीवन का जल क्या है और कैसे हम उससे फायदा पा सकते हैं। नतीजा, हम न सिर्फ यह समझेंगे कि हमें उसे लेने की ज़रूरत है, बल्कि हम उसे पीना भी चाहेंगे। तो आइए इस भविष्यवाणी पर पूरा-पूरा ध्यान दें।—2 पत. 1:19, 20.
‘यहोवा के एक दिन’ की शुरूआत
4. (क) जकर्याह के अध्याय 14 में बताया ‘यहोवा का एक दिन’ कब शुरू हुआ? (ख) सन् 1914 से कई दशक पहले, यहोवा के उपासक क्या ऐलान कर रहे थे? इस पर राष्ट्र के नेताओं और धर्म गुरुओं ने कैसा रवैया दिखाया?
4 जकर्याह के 14वें अध्याय की शुरूआत में ‘यहोवा के एक दिन’ का ज़िक्र किया गया है। (जकर्याह 14:1, 2 पढ़िए।) यह दिन क्या है? यह ‘प्रभु का दिन’ है, जो उस समय शुरू हुआ जब ‘दुनिया का राज हमारे मालिक और उसके मसीह का हो गया।’ (प्रका. 1:10; 11:15) यह दिन सन् 1914 में शुरू हुआ जब स्वर्ग में मसीहाई राज की शुरूआत हुई। इसके कई दशक पहले, यहोवा के उपासकों ने राष्ट्रों के सामने यह ऐलान किया था कि 1914 में “राष्ट्रों के लिए तय किया हुआ वक्त पूरा” हो जाएगा। और तब दुनिया में पहले से कहीं ज़्यादा दुख-तकलीफें होंगी। (लूका 21:24) इस पर राष्ट्रों ने कैसा रवैया दिखाया? ठीक समय पर दी जानेवाली चेतावनी पर ध्यान देने के बजाय, राष्ट्रों के नेताओं और धर्म गुरुओं ने इन जोशीले मसीहियों की खिल्ली उड़ायी और उन पर ज़ुल्म ढाए। ऐसा करके ये नेता दरअसल सर्वशक्तिमान परमेश्वर का मज़ाक उड़ा रहे थे, क्योंकि अभिषिक्त मसीही “स्वर्गीय यरूशलेम” यानी परमेश्वर के राज के राजदूत या नुमाइंदे हैं।—इब्रा. 12:22, 28.
5, 6. (क) भविष्यवाणी के मुताबिक राष्ट्र के लोगों ने “नगर” और उसके ‘नागरिकों’ के साथ क्या किया? (ख) “प्रजा के शेष लोग” कौन थे?
5 जकर्याह ने पहले से बताया था कि राष्ट्रों के लोग क्या करेंगे, उसने कहा: “वह नगर [यानी, यरूशलेम] ले लिया जाएगा।” “वह नगर” परमेश्वर के मसीहाई राज को दर्शाता है। इस राज के ‘नागरिक’ यानी बचे हुए अभिषिक्त जन धरती पर इसके नुमाइंदे हैं। (फिलि. 3:20) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वह नगर “ले लिया” गया, मतलब धरती पर यहोवा के संगठन के उन सदस्यों को, जो बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ संभाल रहे थे, गिरफ्तार कर लिया गया और अमरीका के जॉर्जिया राज्य के एटलांटा शहर की जेल में डाल दिया गया। दुश्मनों ने अभिषिक्त मसीहियों के साथ अन्याय और बुरा सलूक किया। उनके साहित्य पर पाबंदी लगा दी और उनका प्रचार काम बंद करने की कोशिश की। इस तरह दुश्मनों ने नगर के ‘घर लूट लिए।’
6 परमेश्वर के लोगों के दुश्मन उनसे कहीं ज़्यादा थे। इन दुश्मनों ने उनके बारे में अफवाहें फैलायीं, उनका विरोध किया और उन पर ज़ुल्म ढाए। फिर भी वे सच्ची उपासना वजूद से मिटा न सके क्योंकि अभिषिक्त मसीही वफादार बने रहे। इस तरह “प्रजा के शेष लोग” यानी बचे हुए अभिषिक्त मसीही ‘नगर में ही रहे।’
7. अभिषिक्ति मसीहियों ने आज के सच्चे उपासकों के लिए क्या मिसाल कायम की?
7 क्या प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने पर दुश्मनों ने परमेश्वर के लोगों पर ज़ुल्म ढाना बंद कर दिया? नहीं। बचे हुए अभिषिक्त जनों और उनके साथियों पर जो धरती पर जीने की आशा रखते हैं, और भी हमले होनेवाले थे। (प्रका. 12:17) दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यह साफ देखा गया, भाइयों पर बहुत-से ज़ुल्म ढाए गए। फिर भी अभिषिक्ति मसीहियों ने खराई बनाए रखी। उनकी बढ़िया मिसाल से आज परमेश्वर के लोगों को आनेवाली हर परीक्षा का सामना करने का हौसला मिलता है, फिर चाहे रिश्तेदार या साथ काम करनेवाले उनका विरोध करें, या साथ पढ़नेवाले उनके विश्वास की वजह से उनकी खिल्ली उड़ाएँ। (1 पत. 1:6, 7) सच्चे उपासक चाहे जहाँ भी रहते हों, उन्होंने ठान लिया है कि वे ‘एक ही सोच रखते हुए, मज़बूती से खड़े रहेंगे’ और अपने ‘विरोधियों से नहीं डरेंगे।’ (फिलि. 1:27, 28) मगर आज जहाँ हर तरफ उनसे नफरत की जाती है, वे कहाँ सुरक्षा पा सकते हैं?—यूह. 15:17-19.
यहोवा “एक गहरी घाटी” बनाता है
8. (क) बाइबल में, पर्वत कभी-कभी किसे दर्शाते हैं? (ख) ‘जैतून का पर्वत’ किसे दर्शाता है?
8 हमने देखा कि “वह नगर” यानी यरूशलेम शहर स्वर्गीय यरूशलेम को दर्शाता है, तो ‘जलपाई [या जैतून] का पर्वत जो यरुशलेम के सामने है,’ वह किसे दर्शाता है? कैसे वह ‘बीचोबीच से फट’ जाता है और उससे दो पर्वत हो जाते हैं? मूल इब्रानी भाषा में, इन पर्वतों को यहोवा “मेरे पर्वत” कहता है। ऐसा क्यों? (जकर्याह 14:3-5 पढ़िए।) बाइबल में, कभी-कभी पर्वत राज्य या सरकारों को दर्शाते हैं। साथ ही, अकसर बाइबल कहती है कि परमेश्वर के पर्वत से आशीषें और हिफाज़त मिलती है। (भज. 72:3; यशा. 25:6, 7) इसलिए जैतून का जो पर्वत यरूशलेम के पूरब में बताया गया है और जिस पर यहोवा खड़ा होता है, वह पूरे विश्व पर यहोवा की हुकूमत को दर्शाता है।
9. जैतून के पर्वत के फटने का क्या मतलब है?
9 जैतून के पर्वत का दो हिस्सों में फटने का क्या मतलब है? यरूशलेम के पूरब में खड़े इस पर्वत के फटने का मतलब है कि यहोवा एक और हुकूमत कायम करता है। यह दूसरी हुकूमत मसीहाई राज है, जिसकी बागडोर यीशु मसीह के हाथों में है। ये दोनों हुकूमतें उसी की हैं, इसीलिए यहोवा ‘जैतून के पर्वत’ से बने दो पर्वतों को “मेरे पर्वत” कहता है।—जक. 14:5, एन. डब्ल्यू.
10. दो पर्वतों के बीच “गहरी घाटी” किसे दर्शाती है?
10 भविष्यवाणी के मुताबिक जब जैतून का पर्वत फटता है और आधा उत्तर की तरफ और आधा दक्षिण की तरफ हो जाता है, तब यहोवा के पाँव दोनों पर्वतों पर बने रहते हैं। ऐसा होने पर यहोवा के पाँवों के नीचे “एक गहरी घाटी” बन जाती है। यह घाटी परमेश्वर से मिलनेवाली हिफाज़त को दर्शाती है। जैसे दो पहाड़ों के बीच घाटी में लोग सुरक्षित रहते हैं, वैसे ही यहोवा के सेवक उसकी हुकूमत और मसीहाई राज के अधीन सुरक्षित महसूस करते हैं। यहोवा इस बात का पूरा ध्यान रखेगा कि सच्ची उपासना कभी खत्म न हो। लेकिन जैतून का पर्वत कब फटता है? सन् 1914 में, जब अन्य जातियों का तय समय खत्म होता है और मसीहाई राज कायम होता है। भविष्यवाणी आगे कहती है, “और तब तुम मेरे पर्वतों की घाटी में भाग जाओगे।” (जक. 14:5, एन. डब्ल्यू.) तो फिर सच्चे उपासक कब उस घाटी की तरफ भागना शुरू करते हैं?
घाटी की तरफ भागना शुरू!
11, 12. (क) परमेश्वर के लोगों ने कब उसकी घाटी की तरफ भागना शुरू किया? (ख) क्या बात दिखाती है कि यहोवा का बलबंत हाथ उसके लोगों पर है?
11 यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया था: “तुम मेरे नाम की वजह से सब राष्ट्रों की नफरत का शिकार बनोगे।” (मत्ती 24:9) इस व्यवस्था के आखिरी दिनों में, सन् 1914 से यह नफरत और भी बढ़ गयी है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दुश्मनों ने बचे हुए अभिषिक्त मसीहियों पर वहशियाना ज़ुल्म ढाए, मगर वे इन वफादार मसीहियों के समूह को मिटा न सके। सन् 1919 में उन्हें महानगरी बैबिलोन यानी दुनिया-भर में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म के शिकंजे से आज़ाद किया गया। (प्रका. 11:11, 12)a यही वह वक्त था, जब यहोवा के लोगों ने घाटी की तरफ भागना शुरू किया।
12 सन् 1919 से परमेश्वर की घाटी में दुनिया के सभी सच्चे उपासकों को लगातार हिफाज़त मिल रही है। देखा जाए तो दशकों से दुनिया के कई हिस्सों में यहोवा के साक्षियों के प्रचार काम और उनके साहित्य पर पाबंदी या कुछ हद तक रोक लगायी गयी। और कुछ देशों में आज भी ऐसी रोक लगी हुई है। मगर राष्ट्र चाहे खून पसीना एक कर दें, वे सच्ची उपासाना मिटाने में हरगिज़ कामयाब नहीं होंगे। यहोवा का बलबंत हाथ हमेशा अपने लोगों पर रहेगा।—व्यव. 11:2.
13. हम यहोवा की घाटी में हिफाज़त कैसे पा सकते हैं? आज इस घाटी में बने रहना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी क्यों है?
13 अगर हम यहोवा से लिपटे रहें और सच्चाई में मज़बूती से खड़े रहें, तो वह और उसका बेटा ज़रूर हमारी हिफाज़ात करेंगे। परमेश्वर कभी किसी ताकत या इंसान को यह मौका नहीं देगा कि वह ‘हमें उसके हाथ से छीन ले।’ (यूह. 10:28, 29) यहोवा हमें हर तरह की मदद देने के लिए तैयार है ताकि हम सारे जहान के महाराजा और मालिक के नाते उसकी आज्ञा मान सकें और मसीह के राज की वफादार प्रजा बने रहें। बहुत जल्द महा-संकट आनेवाला है और उस दौरान हमें यहोवा की मदद की और भी ज़रूरत होगी, इसलिए आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम उसकी घाटी में बने रहें।
‘संग्राम का दिन’
14, 15. परमेश्वर के “संग्राम के दिन”, उन लोगों का क्या होगा जो “गहरी घाटी” की हिफाज़त में नहीं होंगे?
14 जैसे-जैसे इस दुनिया की व्यवस्था का अंत करीब आ रहा है, शैतान यहोवा के सेवकों पर और भी ज़बरदस्त हमले करेगा। फिर परमेश्वर के दुश्मनों पर उसके ‘संग्राम का दिन’ आएगा। तब शैतान और हमला नहीं कर पाएगा। इस युद्ध में पहले के किसी भी युद्ध से कहीं बढ़कर यह साबित हो जाएगा कि यहोवा कितना महान योद्धा है।—जक. 14:3.
15 परमेश्वर के संग्राम के दिन, उन लोगों का क्या होगा जो “गहरी घाटी” की हिफाज़त में नहीं होंगे? उन पर “उजियाला न” चमकेगा, यानी परमेश्वर की मंज़ूरी उन पर न होगी। परमेश्वर के युद्ध के दिन ‘घोड़े, खच्चर, ऊंट और गदहे वरन सभी पशु’ जो राष्ट्रों के हथियारों को दर्शाते हैं, वे भी किसी काम के नहीं रहेंगे। यहोवा दुश्मनों पर विपत्तियाँ और “बीमारी” भी लाएगा। हम यह तो नहीं जानते कि उन्हें सचमुच कोई बीमारी लगेगी या नहीं, मगर इतना ज़रूर जानते हैं कि उनकी एक न चलेगी। उस दिन ‘उनकी आँखें और उनकी जीभ सड़ जाएँगी’ यानी वे हमारा कोई नुकसान नहीं कर पाएँगे और परमेश्वर के खिलाफ एक लब्ज़ भी नहीं बोल पाएँगे। (जक. 14:6, 7, 12, 15) शैतान की तरफ एक विशाल सेना होगी, फिर भी धरती का ऐसा कोई कोना न होगा जहाँ शैतान के लोग परमेश्वर के विनाश से बच सकें। (प्रका. 19:19-21) “उस समय यहोवा के मारे हुओं की लोथें पृथ्वी की एक छोर से दूसरी छोर तक पड़ी रहेंगी।”—यिर्म. 25:32, 33.
16. हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए? महा-संकट के दौरान हमें क्या करने की ज़रूरत होगी?
16 युद्ध हमेशा दुख-तकलीफें लाता है, उन पर भी जिनकी आखिर में जीत होती है। महा-संकट के दौरान हमें भी दुख-तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है राशन-पानी की कमी हो जाए, हमारी घन-संपत्ति लुट जाए और पहले जैसी सुख-सुविधाएँ न मिलें। शायद कुछ हद तक हमारी आज़ादी भी छिन जाए। अगर हमारे साथ ऐसा हो, तो हम कैसा रवैया दिखाएँगे? क्या हम घबरा जाएँगे? क्या दबाव में आकर यहोवा की सेवा करना बंद कर देंगे? क्या हम हिम्मत हार बैठेंगे और निराशा में डूब जाएँगे? महा-संकट के दौरान यह कितना ज़रूरी होगा कि हम यहोवा की घाटी में बने रहें और पूरा भरोसा रखें कि यहोवा हमारी हिफाज़त करेगा।—हबक्कूक 3:17, 18 पढ़िए।
‘जीवन का जल बहेगा’
17, 18. (क) ‘जीवन का जल’ क्या है? (ख) ‘पूरब का ताल’ और ‘पच्छिम का समुद्र’ किसे दर्शाते हैं? (ग) भविष्य की आस लगाए हुए आपने क्या करने की ठान ली है?
17 हर-मगिदोन के बाद, मसीहाई राज की राजगद्दी से “बहता हुआ जल” या “जीवन का जल” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) बहेगा। “जीवन का जल” वे सारे इंतज़ाम हैं जो यहोवा ने किए हैं, ताकि इंसान हमेशा की ज़िंदगी पा सकें। भविष्यवाणी में बताया ‘पूरब का ताल,’ मृत सागर है जो मौत की नींद सो रहे लोगों को दर्शाता है। और ‘पच्छिम का समुद्र,’ भूमध्य सागर है जो जीवों से भरा हुआ है, यह उन लोगों की “बड़ी भीड़” को दर्शाता है जो हर-मगिदोन से बचकर निकलेंगे। (जकर्याह 14:8, 9 पढ़िए; प्रका. 7:9-15) दोनों ही समूह के लोग जीवन का जल या “जीवन देनेवाले पानी की नदी” से पानी पीकर अपनी प्यास बुझाएँगे और इस तरह आदम से मिली मौत की गिरफ्त से आज़ाद हो जाएँगे।—प्रका. 22:1, 2.
18 यहोवा की हिफाज़त में रहकर हम इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था के अंत से बच पाएँगे और परमेश्वर की नयी दुनिया में दाखिल हो पाएँगे। हालाँकि आज हम राष्ट्रों की नफरत के शिकार होते हैं, फिर भी आइए हम ठान लें कि हम परमेश्वर के राज के वफादार बने रहेंगे और यहोवा की घाटी में रहकर सुरक्षा पाते रहेंगे।
a रेवलेशन—इट्स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! किताब के पेज 169-170 देखिए।