रथ और ताज आपकी हिफाज़त करते हैं
‘अगर तुम अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानोगे, तो यह बात ज़रूर पूरी होगी।’—जक. 6:15.
1, 2. जकरयाह के सातवें दर्शन के बाद भी यरूशलेम में हालात कैसे थे?
सातवाँ दर्शन देखने के बाद जकरयाह के पास सोचने के लिए बहुत सारी बातें होंगी। उसे यहोवा के इस वादे से हिम्मत मिली होगी कि वह बेईमान लोगों को सज़ा देगा। लेकिन इस दर्शन के बाद भी हालात वैसे-के-वैसे थे। लोग बुरे काम कर रहे थे और बेईमानी करने में लगे हुए थे। वहीं दूसरी तरफ, यरूशलेम के मंदिर का काम भी ठप्प पड़ा था। क्या वजह थी कि यहूदियों ने इतनी जल्दी हार मान ली और निर्माण काम छोड़ दिया? क्या वे यरूशलेम इसलिए लौटे थे ताकि वे आराम की ज़िंदगी जीएँ?
2 जकरयाह जानता था कि यरूशलेम लौटनेवाले यहूदी यहोवा के वफादार उपासक थे। तभी जब उनके “मन को सच्चे परमेश्वर ने उभारा” तो वे बैबिलोन में अपना घर और कारोबार छोड़ने के लिए तैयार हो गए। (एज्रा 1:2, 3, 5) उन्होंने वहाँ अपनी पूरी ज़िंदगी बितायी थी, पर अब वे इसे छोड़कर ऐसे देश के लिए निकल पड़े जो उनमें से ज़्यादातर लोगों के लिए एक अनजान देश था। सोचिए, अगर यहोवा का मंदिर बनाना उनके लिए कोई मायने नहीं रखता, तो क्या वे 1,600 किलोमीटर का लंबा सफर तय करते? क्या वे पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर सफर करने का खतरा मोल लेते?
3, 4. यरूशलेम लौटनेवाले यहूदियों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
3 ज़रा सोचिए, बैबिलोन से यरूशलेम का लंबा सफर तय करते वक्त यहूदियों ने क्या किया होगा। शायद उन्होंने अपने नए घर यरूशलेम के बारे में घंटों बातें की होंगी। बुज़ुर्गों से उन्होंने सुना था कि एक वक्त पर यरूशलेम और उसका मंदिर कितना सुंदर था! (एज्रा 3:12) कल्पना कीजिए कि आप उनके साथ सफर कर रहे हैं। जैसे ही आप यरूशलेम के नज़दीक पहुँचते हैं, आप क्या देखते हैं? शहरपनाह और उसकी मीनारें टूटी-फूटी पड़ी हैं; जहाँ बड़े-बड़े फाटक हुआ करते थे, अब वहाँ बड़े-बड़े छेद हैं। सुंदर इमारतें खंडहर बन चुकी हैं और उनमें जंगली पौधे उग आए हैं। यह देखकर आप शायद दुखी हो जाएँ। आपको लगे कि बैबिलोन की शहरपनाह तो इस टूटी-फूटी शहरपनाह से कहीं अच्छी थी। लेकिन इन सब बातों से यहूदियों की हिम्मत नहीं टूटी। क्यों नहीं? क्योंकि उन्होंने देखा था कि किस तरह यहोवा ने इस लंबे सफर के दौरान उन्हें सँभाला और उनकी हिफाज़त की। इसलिए यरूशलेम पहुँचते ही उन्होंने उस जगह एक वेदी खड़ी की जहाँ मंदिर हुआ करता था और हर दिन वे यहोवा को बलिदान चढ़ाने लगे। (एज्रा 3:1, 2) यहोवा से मिला काम करने के लिए उनमें ज़बरदस्त जोश था। ऐसा लग रहा था कि कोई भी बात उनकी हिम्मत नहीं तोड़ सकती थी।
4 मंदिर के काम के साथ-साथ यहूदियों को अपने-अपने शहर और घर भी बनाने थे। उन्हें खेती-बाड़ी करनी थी ताकि अपने परिवार का पेट भर सके। (एज्रा 2:70) उनके पास ढेर सारा काम था। लेकिन फिर दुश्मन उनका विरोध करने लगे। पन्द्रह साल तक वे उन्हें परेशान करते रहे और उनकी हिम्मत टूटने लगी। (एज्रा 4:1-4) फिर ईसा पूर्व 522 में उन्हें ज़बरदस्त धक्का लगा। फारस के राजा ने यरूशलेम के निर्माण काम पर रोक लगा दी। ऐसा लग रहा था कि यह शहर हमेशा के लिए उजाड़ पड़ा रहेगा।—एज्रा 4:21-24.
5. यहोवा ने अपने लोगों की किस तरह मदद की?
5 यहोवा जानता था कि उसके लोग निराश हैं और उन्हें हिम्मत की ज़रूरत है। इसलिए उसने जकरयाह को एक आखिरी दर्शन दिया। इस दर्शन के ज़रिए उसने अपने लोगों को यकीन दिलाया कि वह उनसे प्यार करता है और उसकी उपासना करने के लिए वे जो भी मेहनत करते हैं उसकी वह कदर करता है। यही नहीं, उसने वादा किया कि अगर वे उसका दिया काम पूरा करेंगे तो वह उनकी हिफाज़त करेगा। मंदिर के दोबारा बनाने के बारे में यहोवा ने कहा, ‘अगर तुम अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानोगे, तो यह बात ज़रूर पूरी होगी।’—जक. 6:15.
स्वर्गदूतों की सेना
6. (क) आठवें दर्शन में जकरयाह क्या देखता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) रथों को अलग-अलग रंग के घोड़े क्यों खींच रहे हैं?
6 जकरयाह को दिए सभी दर्शनों में से आठवाँ दर्शन सबसे ज़्यादा हिम्मत देता है। (जकरयाह 6:1-3 पढ़िए।) कल्पना कीजिए कि जकरयाह ने दर्शन में क्या देखा: “दो पहाड़ों के बीच से” चार रथ आ रहे हैं। ये पहाड़ ताँबे के हैं। इन चार रथों को अलग-अलग रंग के घोड़े खींच रहे हैं, जिनसे रथ के सवारों को पहचानना आसान है। जकरयाह पूछता है, “इनका क्या मतलब है?” (जक. 6:4) हम भी यह जानना चाहते हैं क्योंकि इस दर्शन का हमारे साथ गहरा ताल्लुक है।
यहोवा आज भी स्वर्गदूतों के ज़रिए अपने लोगों की हिफाज़त करता है और उनकी हिम्मत बँधाता है
7, 8. (क) दो पहाड़ किसे दर्शाते हैं? (ख) पहाड़ ताँबे के क्यों हैं?
7 बाइबल में पहाड़ सरकारों और हुकूमतों को दर्शाते हैं। जकरयाह ने जो पहाड़ देखे, वे दानियेल की भविष्यवाणी में बताए दो पहाड़ों से मिलते-जुलते हैं। एक पहाड़, सारे जहान पर यहोवा की हुकूमत को दर्शाता है, जो सदा कायम रहती है। दूसरा पहाड़, मसीहाई राज को दर्शाता है जिसका राजा यीशु है। (दानि. 2:35, 45) सन् 1914 के पतझड़ में यीशु राजा बना और तब से ये दोनों पहाड़ मिलकर धरती के लिए परमेश्वर का मकसद पूरा करने में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं।
8 पहाड़ ताँबे के क्यों हैं? ताँबा बहुत कीमती और चमकदार धातु है। यहोवा ने पवित्र डेरे और बाद में यरूशलेम के मंदिर के निर्माण में ताँबा इस्तेमाल करने के लिए कहा था। (निर्ग. 27:1-3; 1 राजा 7:13-16) दर्शन में पहाड़ ताँबे के इसलिए बताए गए हैं क्योंकि यहोवा की हुकूमत और मसीहाई राज सब हुकूमतों से बढ़कर हैं। इन दोनों हुकूमतों से सब इंसानों को हिफाज़त और ढेरों आशीषें मिलेंगी।
9. रथों के सवार किन्हें दर्शाते हैं और उन्हें क्या खास काम दिया गया है?
9 अब रथ और उनके सवारों पर ध्यान दीजिए। ये किन्हें दर्शाते हैं? ये स्वर्गदूतों को दर्शाते हैं, शायद उनके अलग-अलग समूहों को। (जकरयाह 6:5-8 पढ़िए।) वे “पूरी धरती के मालिक के सामने” से आ रहे हैं और उन्हें एक खास काम दिया गया है। उन्हें धरती पर अलग-अलग इलाकों में भेजा गया है ताकि वे दुश्मनों से यहोवा के लोगों की हिफाज़त करें, खासकर “उत्तर देश” यानी बैबिलोन से। इस दर्शन के ज़रिए यहोवा अपने लोगों को भरोसा दिलाता है कि वे फिर कभी बैबिलोन की गुलामी में नहीं जाएँगे। इस दर्शन से मंदिर बनानेवाले यहूदियों को कितनी राहत मिली होगी! अब दुश्मन उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे।
10. जकरयाह का दर्शन हमें क्या भरोसा दिलाता है?
10 यहोवा आज भी स्वर्गदूतों के ज़रिए अपने लोगों की हिफाज़त करता है और उनकी हिम्मत बँधाता है। (मला. 3:6; इब्रा. 1:7, 14) सन् 1919 में यहोवा के लोग महानगरी बैबिलोन की कैद से आज़ाद हुए। (प्रका. 18:4) तब से उनके दुश्मन सच्ची उपासना को बढ़ने से रोक नहीं पाए। यहोवा स्वर्गदूतों के ज़रिए अपने संगठन की हिफाज़त कर रहा है। इसलिए उसके लोगों को इस बात का कोई डर नहीं कि वे फिर कभी झूठे धर्म की गुलामी में जाएँगे। (भज. 34:7) इसके बजाय, वे खुश रहते हैं और यहोवा की सेवा में व्यस्त रहते हैं। जकरयाह का दर्शन उन्हें यकीन दिलाता है कि ये दो पहाड़ उनकी रक्षा कर रहे हैं।
11. भविष्य में परमेश्वर के लोगों पर जो हमला होगा, उससे हमें क्यों नहीं डरना चाहिए?
11 बहुत जल्द शैतान की दुनिया की राजनैतिक शक्तियाँ एकजुट होकर परमेश्वर के लोगों को खत्म करने की कोशिश करेंगी। (यहे. 38:2, 10-12; दानि. 11:40, 44, 45; प्रका. 19:19) यहेजकेल की भविष्यवाणी में बताया गया है कि ये शक्तियाँ बादलों की तरह पूरी धरती को ढक लेंगी। वे घोड़ों पर सवार होंगी और बड़े गुस्से में परमेश्वर के लोगों पर हमला करने आएँगी। (यहे. 38:15, 16)a क्या हमें इनसे डरना चाहिए? नहीं! हमारी तरफ यहोवा की सेना है। महा-संकट के दौरान यहोवा के स्वर्गदूत उसके लोगों की हिफाज़त करेंगे और जो यहोवा की हुकूमत के खिलाफ हैं उनका नाश कर देंगे। (2 थिस्स. 1:7, 8) वह क्या ही रोमांचक दिन होगा! लेकिन सवाल है कि स्वर्ग की इस सेना की अगुवाई कौन करेगा?
यहोवा अपने राजा और याजक को ताज पहनाता है
12, 13. (क) यहोवा जकरयाह से क्या करने के लिए कहता है? (ख) हम कैसे जानते है कि अंकुर यीशु मसीह है?
12 अब तक हमने जिन आठ दर्शनों पर चर्चा की, वे सिर्फ जकरयाह को दिखाए गए थे। मगर अब यहोवा उससे जो करने के लिए कहता है उसे सब देखेंगे और इससे मंदिर बनानेवालों का हौसला बढ़ेगा। (जकरयाह 6:9-12 पढ़िए।) तीन आदमी अभी-अभी बैबिलोन से आए हैं। उनके नाम हैं, हेल्दै, तोबियाह और यदायाह। यहोवा जकरयाह से कहता है कि वह उन आदमियों से सोना-चाँदी ले ले और “एक शानदार ताज” बनाए। (जक. 6:11, फु.) क्या यह ताज राज्यपाल जरुबाबेल के लिए था, जो यहूदा के गोत्र से था और दाविद का एक वंशज था? नहीं। यहोवा ने जकरयाह से कहा कि वह यह ताज महायाजक यहोशू को पहनाए। जब वह ऐसा करता है तो देखनेवाले हैरान रह जाते हैं।
13 क्या ताज पहनने से महायाजक यहोशू राजा बन गया? नहीं। वह दाविद का वंशज नहीं था इसलिए उसे राजगद्दी पर बैठने का हक नहीं था। तो फिर उसे ताज पहनाना किस बात को दर्शाता है? यही कि भविष्य में एक राजा आएगा, जो हमेशा के लिए राज करेगा। राजा होने के साथ-साथ वह महायाजक भी होगा और उसे अंकुर कहा जाएगा। बाइबल बताती है कि यह अंकुर यीशु मसीह है।—यशा. 11:1; मत्ती 2:23, फु.
14. राजा और महायाजक के नाते यीशु क्या करता है?
14 यीशु राजा और महायाजक दोनों है। वह स्वर्गदूतों की सेना की अगुवाई करता है। वह उनके साथ मिलकर परमेश्वर के लोगों को इस खूँखार दुनिया से बचाए रखता है। (यिर्म. 23:5, 6) बहुत जल्द मसीह, राष्ट्रों पर जीत हासिल करेगा, यहोवा की हुकूमत को बुलंद करेगा और उसके लोगों की तरफ से लड़ेगा। (प्रका. 17:12-14; 19:11, 14, 15) मगर उस दिन के आने से पहले अंकुर यानी यीशु को एक बड़ा काम करना है।
वह मंदिर खड़ा करेगा
15, 16. (क) हमारे दिनों में सच्ची उपासना कैसे दोबारा शुरू की गयी और इसे कैसे शुद्ध किया गया? किसने यह काम किया है? (ख) मसीह के हज़ार साल के शासन के आखिर में धरती कैसी होगी?
15 राजा और महायाजक होने के साथ-साथ यीशु को ‘यहोवा का मंदिर खड़ा करने’ का काम भी दिया गया है। (जकरयाह 6:13 पढ़िए।) इस काम में क्या-क्या शामिल है? सन् 1919 में उसने परमेश्वर के लोगों को महानगरी बैबिलोन यानी झूठे धर्म से आज़ाद किया और मसीही मंडली को दोबारा शुरू किया। फिर उसने एक “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ठहराया जो अभिषिक्त भाइयों से मिलकर बना समूह है। यह समूह लाक्षणिक मंदिर के आँगन में यानी धरती पर हो रहे काम की निगरानी कर रहा है। (मत्ती 24:45) यीशु परमेश्वर के लोगों को शुद्ध करने का काम भी कर रहा है ताकि वे शुद्ध तरीके से उपासना कर सकें।—मला. 3:1-3.
16 यीशु और उसके 1,44,000 संगी राजा और याजक एक हज़ार साल तक राज करेंगे। उस दौरान वे वफादार इंसानों को परिपूर्ण बनने में उनकी मदद करेंगे। जब ये राजा और याजक अपना काम पूरा कर चुके होंगे तब सारी धरती पर सिर्फ यहोवा के सच्चे उपासक रहेंगे। एक बार फिर धरती पर सिर्फ सच्ची उपासना की जाएगी।
आज हो रहे सबसे बड़े निर्माण में हिस्सा लीजिए
17. यहोवा ने यहूदियों को क्या भरोसा दिलाया और इसका उन पर क्या असर हुआ?
17 मगर सवाल है कि जकरयाह के संदेश का उसके समय के यहूदियों पर क्या असर हुआ? यहोवा ने उनसे वादा किया था कि वह उनकी मदद और हिफाज़त करेगा ताकि वे मंदिर का काम पूरा कर सकें। इस वादे से उन्हें आशा मिली। लेकिन फिर भी शायद वे सोचने लगे होंगे कि मुट्ठी-भर लोग इतना बड़ा काम कैसे पूरा कर पाएँगे। इसलिए यहोवा ने जकरयाह के ज़रिए कुछ ऐसी बात कही जिससे उनके मन से शक या डर दूर हो जाए। यहोवा ने कहा कि हेल्दै, तोबियाह और यदायाह के अलावा और भी लोग “आएँगे और यहोवा के मंदिर को बनाने में हाथ बँटाएँगे।” (जकरयाह 6:15 पढ़िए।) यहूदियों को यकीन था कि इस काम में यहोवा उनके साथ है। उन्होंने हिम्मत जुटायी और मंदिर को दोबारा बनाने में लग गए, इसके बावजूद कि फारस के राजा ने इस पर रोक लगा दी थी। यह पाबंदी उनके लिए एक बड़ी रुकावट थी, लेकिन जल्द ही यहोवा ने इस पहाड़ जैसी मुश्किल को दूर कर दिया। आखिरकार ईसा पूर्व 515 में मंदिर बनकर तैयार हो गया। (एज्रा 6:22; जक. 4:6, 7) यहोवा ने जकरयाह के ज़रिए जो संदेश सुनाया था, उससे पता चलता है कि उससे भी बड़ा काम आज हमारे दिनों में हो रहा है।
18. जकरयाह 6:15 में लिखी बात आज कैसे पूरी हो रही है?
18 आज लाखों लोग यहोवा की उपासना करते हैं। वे खुशी-खुशी अपनी “अनमोल चीज़ें” यानी अपनी मेहनत, अपना समय और साधन उसे देते हैं। इस तरह वे यहोवा के महान लाक्षणिक मंदिर को अपना पूरा सहयोग देते हैं। (नीति. 3:9) हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी वफादारी और हमारे सहयोग की दिल से कदर करता है। याद कीजिए कि हेल्दै, तोबियाह और यदायाह अपने साथ सोना-चाँदी लाए थे और जकरयाह ने उनसे एक ताज बनाया था। यह ताज हमेशा इस बात की “याद” दिलाता कि सच्ची उपासना के लिए उन्होंने क्या योगदान दिया था। (जक. 6:14) यहोवा हमारे काम को नहीं भूलता, न ही उस प्यार को जो हमें उसके लिए है।—इब्रा. 6:10.
19. जकरयाह के दर्शनों से हमें क्या करने का बढ़ावा मिलता है?
19 इन आखिरी दिनों में यहोवा के लोगों ने सच्ची उपासना के लिए जो कुछ किया है वह सिर्फ यहोवा की आशीष से और मसीह की अगुवाई से हो पाया है। हमें खुशी है कि हम एक मज़बूत संगठन का हिस्सा हैं, जहाँ हम सुरक्षित महसूस करते हैं और जो हमेशा तक कायम रहेगा। हम यह भी जानते हैं कि सच्ची उपासना के लिए परमेश्वर का मकसद ज़रूर पूरा होगा। इसलिए यहोवा के लोगों में आपकी जो जगह है, उसकी कदर कीजिए और ‘अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानिए।’ अगर आप ऐसा करेंगे तो हमारा राजा और महायाजक साथ ही, स्वर्गदूत आपकी हिफाज़त करेंगे। सच्ची उपासना का पूरा-पूरा साथ दीजिए। फिर यहोवा आपको न सिर्फ इस व्यवस्था के बचे हुए दिनों में बल्कि आगे भी हमेशा के लिए सुरक्षित रखेगा!
a इस बारे में और जानकारी के लिए 15 मई, 2015 की प्रहरीदुर्ग के पेज 29-30 पर दिया लेख “आपने पूछा” देखिए।