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यहोवा शान्ति और सच्चाई बहुतायत में देता हैप्रहरीदुर्ग—1996 | जनवरी 1
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“सिय्योन के लिये मुझे . . . जलन हुई”
६, ७. किन तरीक़ों से यहोवा को ‘सिय्योन के लिए बड़ी जलजलाहट थी’?
६ यह अभिव्यक्ति पहले जकर्याह ८:२ में आती है, जहाँ हम पढ़ते हैं: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है: सिय्योन के लिये मुझे बड़ी जलन हुई वरन बहुत ही जलजलाहट मुझ में उत्पन्न हुई है।” अपने लोगों के लिए जलनशील होने, बहुत उत्साह रखने की यहोवा की प्रतिज्ञा का अर्थ था कि वह उनकी शान्ति को पुनःस्थापित करने में सचेत होता। इस्राएल की अपने देश में पुनःस्थापना और मन्दिर का पुनःनिर्माण उस उत्साह का प्रमाण थे।
७ लेकिन, उन लोगों का क्या जिन्होंने यहोवा के लोगों का विरोध किया था? अपने लोगों के लिए उसके उत्साह की समानता इन शत्रुओं पर उसकी “बहुत ही जलजलाहट” से की जाती। जब वफ़ादार यहूदियों ने पुनःनिर्मित मन्दिर में उपासना की, तब वे शक्तिशाली बाबुल के अंजाम पर विचार करने में समर्थ होते, जो अब गिर चुका था। वे उन शत्रुओं की बुरी असफलता पर भी विचार कर सकते थे जिन्होंने मन्दिर के पुनःनिर्माण को रोकने की कोशिश की थी। (एज्रा ४:१-६; ६:३) और वे यहोवा का धन्यवाद कर सकते थे कि उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी। उसके उत्साह ने उन्हें विजय दिलायी थी।
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यहोवा शान्ति और सच्चाई बहुतायत में देता हैप्रहरीदुर्ग—1996 | जनवरी 1
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९. “परमेश्वर के इस्राएल” द्वारा १९१९ में परिस्थिति में किस उल्लेखनीय परिवर्तन का अनुभव किया गया?
९ जबकि ये दो उद्घोषणाएँ प्राचीन इस्राएल के लिए अर्थपूर्ण थीं, जैसे-जैसे २०वीं शताब्दी समाप्त होती है, ये हमारे लिए भी काफ़ी अर्थ रखती हैं। लगभग ८० वर्ष पहले, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, उस समय “परमेश्वर के इस्राएल” का प्रतिनिधित्व करनेवाले कुछ हज़ार अभिषिक्त जन आध्यात्मिक बन्धुवाई में चले गए, ठीक जैसे प्राचीन इस्राएल बाबुल में बन्धुवाई में गया था। (गलतियों ६:१६) भविष्यसूचक रूप से, उनका वर्णन सड़क पर पड़ी हुई लोथों के समान किया गया। फिर भी, उनमें “आत्मा और सच्चाई” से यहोवा की उपासना करने की निष्कपट इच्छा थी। (यूहन्ना ४:२४) अतः, १९१९ में यहोवा ने उन्हें बन्धुवाई से मुक्त किया, और उन्हें उनकी आध्यात्मिक रूप से मृत स्थिति से जी उठाया। (प्रकाशितवाक्य ११:७-१३) इस प्रकार यहोवा ने यशायाह के इस भविष्यसूचक प्रश्न का उत्तर एक ज़ोरदार हाँ में दिया: “क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति क्षणमात्र में ही उत्पन्न हो सकती है?” (यशायाह ६६:८) १९१९ में, यहोवा के लोग फिर एक बार अपने ही “देश,” या पृथ्वी पर आध्यात्मिक सम्पत्ति में एक आत्मिक जाति के रूप में अस्तित्व में थे।
१०. वर्ष १९१९ से, अभिषिक्त मसीही अपने “देश” में किन आशिषों का आनन्द लेते रहे हैं?
१० उस देश में सुरक्षित, अभिषिक्त मसीहियों ने यहोवा के महान आध्यात्मिक मन्दिर में सेवा की। उन्हें “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” पदनाम दिया गया, जिसने यीशु की पार्थिव सम्पत्ति की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी स्वीकारी, एक ऐसा विशेषाधिकार जिसका वे अब भी आनन्द लेते हैं, जैसे-जैसे २०वीं शताब्दी अपनी समाप्ति के निकट आती है। (मत्ती २४:४५-४७) उन्होंने अच्छी तरह यह सबक़ सीखा कि यहोवा “शान्ति का परमेश्वर” है।—१ थिस्सलुनीकियों ५:२३.
११. मसीहीजगत के धार्मिक अगुओं ने अपने आपको परमेश्वर के लोगों के शत्रु कैसे दिखाया है?
११ लेकिन, परमेश्वर के इस्राएल के शत्रुओं के बारे में क्या? अपने लोगों के लिए यहोवा के उत्साह का मेल विरोधियों के विरुद्ध उसकी जलजलाहट से किया गया है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, मसीहीजगत के धार्मिक अगुओं ने तीव्र दबाव लाया जब उन्होंने सच्चाई-बोलनेवाले मसीहियों के इस छोटे-से समूह का काम तमाम करने की कोशिश की—और नाकाम रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मसीहीजगत के अगुए केवल एक ही बात में संयुक्त थे: युद्ध के दोनों पक्षों में, उन्होंने सरकारों से यहोवा के साक्षियों का दमन करने का आग्रह किया। आज भी, अनेक देशों में धार्मिक अगुए, यहोवा के साक्षियों के मसीही प्रचार कार्य को रोकने या उस पर पाबंदी लगाने के लिए सरकारों को भड़का रहे हैं।
१२, १३. मसीहीजगत के विरुद्ध यहोवा की जलजलाहट कैसे व्यक्त की जाती है?
१२ यह यहोवा की दृष्टि से चूका नहीं है। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात्, मसीहीजगत, साथ ही शेष बड़े बाबुल ने पतन का अनुभव किया। (प्रकाशितवाक्य १४:८) मसीहीजगत के पतन की वास्तविकता जग-ज़ाहिर हो गयी जब, १९२२ में सिलसिलेवार लाक्षणिक विपत्तियों को उण्डेला जाने लगा, और उसकी आध्यात्मिक रूप से मृत अवस्था का सार्वजनिक रूप से पर्दाफ़ाश किया गया और उसके आनेवाले विनाश की चेतावनी दी गयी। (प्रकाशितवाक्य ८:७-९:२१) इस बात के प्रमाण के रूप में कि इन विपत्तियों का उण्डेला जाना जारी है, अप्रैल २३, १९९५ को विश्वभर में भाषण “झूठे धर्म का अन्त निकट है” दिया गया, जिसके पश्चात् राज्य समाचार के ख़ास अंक की करोड़ों प्रतियों का वितरण किया गया।
१३ आज, मसीहीजगत एक दयनीय अवस्था में है। २०वीं शताब्दी के दौरान, उसके सदस्यों ने एक दूसरे को भीषण युद्धों में मौत के घाट उतारा है जिन पर उसके पादरियों और नेताओं की आशिष थी। कुछ देशों में उसका प्रभाव लगभग ना के बराबर है। वह, शेष बचे बड़े बाबुल के साथ विनाश के लिए नियत है।—प्रकाशितवाक्य १८:२१.
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