“सत्य और शान्ति से प्रेम करो”!
“सेनाओं के यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, ‘. . . सत्य और शान्ति से प्रेम करो।’”—जकर्याह ८:१८, १९, NHT.
१, २. (क) जहाँ तक शान्ति का सवाल है, मनुष्यजाति का रेकॉर्ड क्या है? (ख) क्यों यह वर्तमान संसार सच्ची शान्ति कभी नहीं देखेगा?
“संसार में कभी शान्ति नहीं थी। कहीं-न-कहीं—और अकसर कई जगहों में एक ही समय पर—हमेशा युद्ध रहे हैं।” मैसचुसैट्स विश्वविद्यालय, अमरीका के प्रोफ़ॆसर मिल्टन मेयर ने इस तरह कहा। मानवजाति पर क्या ही दुःखद टिप्पणी! सचमुच, मनुष्यों ने शान्ति चाही है। राजनितिज्ञों ने इसे बनाए रखने के लिए हर तरीक़ा आज़माया है, रोमी समयों के पॉक्स रोमाना से लेकर शीत युद्ध के दौरान “परस्पर सुनिश्चित विनाश” की नीति तक। परन्तु, अंततः उनके सारे प्रयास असफल हो गए। जैसे यशायाह ने अनेक शताब्दियों पहले व्यक्त किया, ‘संधि [“शान्ति,” NW] के दूत बिलक बिलककर रोए हैं।’ (यशायाह ३३:७) ऐसा क्यों है?
२ यह इसलिए है क्योंकि स्थायी शान्ति को घृणा और लोभ की अनुपस्थिति से उत्पन्न होना है; उसे सच्चाई पर आधारित होना है। शान्ति झूठ पर आधारित नहीं की जा सकती। इसलिए यहोवा ने प्राचीन इस्राएल को पुनःस्थापना और शान्ति की प्रतिज्ञा करते समय कहा: “मैं उसकी ओर शान्ति को नदी की नाईं, और अन्यजातियों के धन को नदी की बाढ़ समान बहा दूंगा।” (यशायाह ६६:१२) इस रीति-व्यवस्था का ईश्वर, शैतान अर्थात् इब्लीस एक “हत्यारा,” खूनी है, और एक “झूठा है, बरन झूठ का पिता है।” (यूहन्ना ८:४४; २ कुरिन्थियों ४:४) उस संसार में, जिसका एक ऐसा ईश्वर है शान्ति कैसे हो सकती है?
३. यहोवा ने अपने लोगों को, एक अशान्त संसार में उनके रहने के बावजूद, कौन-सा उल्लेखनीय उपहार दिया है?
३ लेकिन, उल्लेखनीय रूप से, यहोवा अपने लोगों को शान्ति देता है, तब भी जब वे शैतान के युद्ध-ग्रस्त संसार में रहते हैं। (यूहन्ना १७:१६) सामान्य युग पूर्व छठवीं शताब्दी में, उसने यिर्मयाह द्वारा अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और अपनी ख़ास जाति को “सत्य और शान्ति” दी जब उसने उन्हें उनके स्वदेश में पुनःस्थापित किया। (यिर्मयाह ३३:६) और इन अन्तिम दिनों में, उसने उनके “देश,” या पार्थिव आध्यात्मिक सम्पत्ति में अपने लोगों को “सत्य और शान्ति” दी है, हालाँकि वे मुसीबत के उस बदतरीन समय से गुज़रे हैं जो इस संसार ने अब तक देखा है। (यशायाह ६६:८; मत्ती २४:७-१३; प्रकाशितवाक्य ६:१-८) जैसे-जैसे हम जकर्याह अध्याय ८ की अपनी चर्चा को जारी रखते हैं, हम इस परमेश्वर-प्रदत्त शान्ति और सत्य का अधिक गहरा मूल्यांकन प्राप्त करेंगे और देखेंगे कि इसमें से अपने भाग को सुरक्षित रखने के लिए हमें क्या करना होगा।
“तुम्हारे हाथ . . . सामर्थी बने रहें”
४. अगर उन्हें शान्ति का अनुभव करना था, तो जकर्याह ने इस्राएल को कार्य करने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया?
४ जकर्याह अध्याय ८ में छठवीं बार हम यहोवा से एक रोमांचक उद्घोषणा सुनते हैं: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है: तुम जो इन दिनों ये वचन उन नबियों के मुख से सुनते हो जिन्होंने सेनाओं के यहोवा के भवन की नींव डालने के दिन कहा था, तुम्हारे हाथ अन्त तक सामर्थी बने रहें कि मन्दिर बनाया जा सके। क्योंकि उन दिनों से पहले न मनुष्य की मज़दूरी थी न पशु का भाड़ा था, तथा बाहर जाने और भीतर आनेवाले के लिए शत्रुओं के कारण कोई शान्ति नहीं थी, और मैंने सब मनुष्यों को एक दूसरे के विरुद्ध कर दिया था।”—जकर्याह ८:९, १०, NHT.
५, ६. (क) इस्राएलियों के निरुत्साह के कारण, इस्राएल में कैसी स्थिति थी? (ख) यहोवा ने इस्राएल से किस परिवर्तन की प्रतिज्ञा की अगर वह उसकी उपासना को प्रथम रखता?
५ जकर्याह ने ये शब्द कहे जब यरूशलेम में मन्दिर का पुनःनिर्माण हो रहा था। पिछली बार, जो इस्राएली बाबुल से लौट चुके थे, वे निरुत्साहित हो गए और उन्होंने मन्दिर के निर्माण का कार्य रोक दिया। क्योंकि उन्होंने अपने ही विलास की ओर ध्यान दिया था, उनके पास यहोवा की ओर से कोई आशिष और कोई शान्ति नहीं थी। हालाँकि उन्होंने अपनी ज़मीन को जोता और अपनी दाख की बारियों की देखभाल की, वे समृद्ध नहीं हुए। (हाग्गै १:३-६) यह मानो ऐसा था कि वे ‘बिना मज़दूरी’ के काम कर रहे थे।
६ अब जबकि मन्दिर पुनःनिर्मित हो रहा था, जकर्याह ने यहूदियों को ‘सामर्थी बनने’ के लिए, और साहसपूर्वक यहोवा की उपासना को प्रथम रखने के लिए प्रोत्साहित किया। अगर वे ऐसा करते तो क्या होता? “अब मैं इस प्रजा के शेष लोगों से वैसा व्यवहार नहीं करूंगा जैसा पूर्व-दिनों में करता था। सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है। क्योंकि बीज के लिए शान्ति होगी, दाखलता फलेगी, भूमि अपनी उपज उपजाएगी, तथा आकाश से ओस गिरेगी; और मैं उस प्रजा के शेष लोगों को इन सब का उत्तराधिकारी बना दूंगा। ‘हे यहूदा के घराने और हे इस्राएल के घराने, मैं तुम्हारा ऐसा उद्धार करूंगा कि जैसे तुम सब जातियों के मध्य शाप का कारण थे वैसे ही आशिष का कारण बन जाओ। मत डरो, तुम्हारे हाथ दृढ़ बने रहें।’” (जकर्याह ८:११-१३) अगर इस्राएल संकल्प के साथ कार्य करता, तो वह समृद्ध होता। इससे पहले, जब जातियाँ शाप का एक उदाहरण बताना चाहती थीं, तब वे इस्राएल की ओर संकेत कर सकती थीं। अब इस्राएल आशिष का एक उदाहरण होता। ‘अपने हाथ दृढ़ रखने’ का क्या ही सर्वोत्कृष्ट कारण!
७. (क) १९९५ सेवा वर्ष तक, यहोवा के लोगों ने किन रोमांचक परिवर्तनों का अनुभव किया है? (ख) वार्षिक रिपोर्ट को देखने पर, आपको ऐसे कौन-से देश दिखते हैं जिनमें प्रकाशकों, पायनियरों, औसतन घंटों का उल्लेखनीय रेकॉर्ड है?
७ आज के बारे में क्या? १९१९ से पहले के वर्षों में, यहोवा के लोगों में उत्साह का कुछ-कुछ अभाव था। प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने पूरी तरह तटस्थ स्थिति नहीं अपनायी, और उनमें अपने राजा, यीशु मसीह के बजाय किसी व्यक्ति का अनुकरण करने की प्रवृत्ति थी। परिणामस्वरूप, कुछ लोग संगठन के भीतर और बाहर के विरोध से निरुत्साहित हो गए थे। फिर, १९१९ में यहोवा की मदद से उन्होंने अपने हाथ दृढ़ रखे। (जकर्याह ४:६) यहोवा ने उन्हें शान्ति दी और वे बहुत ही समृद्ध हुए। यह, १९९५ सेवा वर्ष तक के उनके पिछले ७५ वर्षों के रेकॉर्ड में दिखता है। लोगों के तौर पर, यहोवा के साक्षी राष्ट्रीयवाद, जातीयवाद, पूर्वधारणा और घृणा के अन्य हर स्रोत से दूर रहते हैं। (१ यूहन्ना ३:१४-१८) वे यहोवा की सेवा उसके आत्मिक मन्दिर में वास्तविक उत्साह से करते हैं। (इब्रानियों १३:१५; प्रकाशितवाक्य ७:१५) केवल पिछले वर्ष में ही, उन्होंने एक सौ करोड़ से ज़्यादा घंटे दूसरों के साथ अपने स्वर्गीय पिता के बारे में बात करने में बिताए! हर महीने, उन्होंने ४८,६५,०६० बाइबल अध्ययन संचालित किए। औसतन ६,६३,५२१ लोगों ने पायनियर सेवा में हर महीने भाग लिया। जब मसीहीजगत के सेवक ऐसे लोगों का उदाहरण देना चाहते हैं जो अपनी उपासना में सचमुच उत्साहपूर्ण हैं, तो वे कभी-कभी यहोवा के साक्षियों की ओर संकेत करते हैं।
८. हरेक मसीही ‘शान्ति के बीज’ से कैसे लाभ प्राप्त कर सकता है?
८ उनके उत्साह के कारण, यहोवा अपने लोगों को ‘शान्ति का बीज’ देता है। वह हर व्यक्ति जो उस बीज को सींचता है, अपने हृदय और अपने जीवन में शान्ति को बढ़ते हुए देखेगा। विश्वास करनेवाला हर मसीही जो यहोवा के साथ और संगी मसीहियों के साथ शान्ति ढूँढता है, यहोवा के नामधारी लोगों के सत्य और शान्ति में भाग लेता है। (१ पतरस ३:११. याकूब ३:१८ से तुलना कीजिए।) क्या यह अद्भुत नहीं है?
“मत डरो”
९. यहोवा ने अपने लोगों के साथ अपने व्यवहार में किस परिवर्तन की प्रतिज्ञा की?
९ अब हम यहोवा की सातवीं उद्घोषणा पढ़ते हैं। वह क्या है? “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, जिस प्रकार जब तुम्हारे पुरखा मुझे रिस दिलाते थे, तब मैं ने उनकी हानि करने के लिये ठान लिया था और फिर न पछताया, उसी प्रकार मैं ने इन दिनों में यरूशलेम की और यहूदा के घराने की भलाई करने को ठाना है; इसलिये तुम मत डरो।”—जकर्याह ८:१४, १५.
१०. यहोवा के साक्षियों का कौन-सा रेकॉर्ड दिखाता है कि वे डरे नहीं हैं?
१० हालाँकि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यहोवा के लोग आध्यात्मिक अर्थ में बिखरे हुए थे, अपने हृदय में वे वह करना चाहते थे जो सही था। अतः, यहोवा ने कुछ अनुशासन देने के बाद, उनके साथ व्यवहार करने का अपना तरीक़ा बदल दिया। (मलाकी ३:२-४) आज, हम उन बातों को याद करते हैं और जो कुछ उसने किया है उसके लिए उसे भावपूर्ण धन्यवाद कहते हैं। सचमुच, हम ‘समस्त जातियों के घृणा’ के पात्र रहे हैं। (मत्ती २४:९, NHT) अनेक लोगों को क़ैद किया गया है, और कुछ तो अपने विश्वास के लिए मर भी गए हैं। अकसर हम उदासीनता या विद्वेष का सामना करते हैं। लेकिन हम डरते नहीं। हम जानते हैं कि यहोवा किसी भी विरोध से, दृश्य हो या अदृश्य, अधिक शक्तिशाली है। (यशायाह ४०:१५; इफिसियों ६:१०-१३) हम इन शब्दों का पालन करने से नहीं रुकेंगे: “यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे।”—भजन २७:१४.
“एक दूसरे से सत्य बोलो”
११, १२. हमें व्यक्तिगत रूप से किस बात को ध्यान में रखना चाहिए अगर हमें उस आशिष में पूरी तरह भाग लेना है जो यहोवा अपने लोगों को देता है?
११ यहोवा की आशिषों में पूरी तरह से भाग लेने के लिए, कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें हमें याद रखना चाहिए। जकर्याह कहता है: “तुम्हें ये काम करने चाहिए: एक दूसरे से सत्य बोलो, अपने फाटकों में सत्यता से न्याय करो, तथा शान्ति के लिए निर्णय दो। फिर तुम में से कोई अपने मन में दूसरे के प्रति हानि की कल्पना न करे, और न मिथ्या शपथ ले क्योंकि मैं इन सब बातों से घृणा करता हूं, यहोवा का यही वचन है।”—जकर्याह ८:१६, १७, NHT.
१२ यहोवा हमसे सत्य बोलने का आग्रह करता है। (इफिसियों ४:१५, २५) वह उन लोगों की प्रार्थनाओं को नहीं सुनता जो हानिकारक बातों की कल्पना करते हैं, व्यक्तिगत लाभ के लिए सच्चाई छुपाते हैं, या झूठी शपथ खाते हैं। (नीतिवचन २८:९) क्योंकि वह धर्मत्याग से घृणा रखता है, वह चाहता है कि हम बाइबल सच्चाई से लगे रहें। (भजन २५:५; २ यूहन्ना ९-११) इसके अतिरिक्त, इस्राएल में नगर के फाटकों के पुरनियों की तरह, न्यायिक मामलों से निपटनेवाले प्राचीनों को बाइबल सत्य के आधार पर अपनी सलाह और निर्णय देना चाहिए, व्यक्तिगत मत के आधार पर नहीं। (यूहन्ना १७:१७) यहोवा चाहता है कि वे ‘शान्ति के निर्णय’ ढूँढें, और मसीही चरवाहों के नाते विरोधी पक्षों के बीच शान्ति पुनःस्थापित करने और पश्चाताप करनेवाले पापियों को परमेश्वर के साथ फिर से शान्ति प्राप्त करने में मदद करने की कोशिश करें। (याकूब ५:१४, १५; यहूदा २३) साथ ही, वे कलीसिया की शान्ति को बनाए रखते हैं, और उन लोगों को साहसपूर्वक बाहर निकाल देते हैं जो दुष्कर्म करने में जानबूझकर लगे रहने के द्वारा उस शान्ति को भंग करते हैं।—१ कुरिन्थियों ६:९, १०.
“हर्ष, आनन्द”
१३. (क) उपवास के बारे में किस परिवर्तन की जकर्याह ने भविष्यवाणी की? (ख) इस्राएल में कौन-सा उपवास रखा जाता था?
१३ अब हम आठवीं गंभीर उद्घोषणा सुनते हैं: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, चौथे, पांचवें, सातवें और दसवें माह के उपवास यहूदा के घराने के लिए हर्ष, आनन्द और उत्सव के पर्वों के दिन हो जाएंगे। अतः सत्य और शान्ति से प्रेम करो।” (जकर्याह ८:१९, NHT) मूसा की व्यवस्था के अधीन, इस्राएली लोग प्रायश्चित दिन में अपने पापों के लिए खेद प्रकट करने के लिए उपवास करते थे। (लैव्यव्यवस्था १६:२९-३१) जकर्याह द्वारा बताए गए चार उपवास प्रतीयमानतः यरूशलेम की विजय और उसके विनाश के सम्बन्ध में घटनाओं पर शोक मनाने के लिए रखे जाते थे। (२ राजा २५:१-४, ८, ९, २२-२६) लेकिन, अब मन्दिर का पुनःनिर्माण हो रहा था और यरूशलेम फिर से आबाद हो रहा था। खेद अब हर्ष में परिवर्तित किए जा रहे थे, और उपवास उत्सव बन सकते थे।
१४, १५. (क) स्मारकोत्सव बड़े हर्ष का कारण कैसे था, और इससे हमें किस बात की याद आनी चाहिए? (ख) जैसे वार्षिक रिपोर्ट से दिखता है, किन देशों में स्मारक में उल्लेखनीय उपस्थिति थी?
१४ आज, हम जकर्याह द्वारा बताए गए उपवास या व्यवस्था में निर्धारित उपवास नहीं करते। चूंकि यीशु ने अपना जीवन हमारे पापों के लिए दिया, हम महान प्रायश्चित के दिन की आशिषों का आनन्द ले रहे हैं। हमारे पापों को ढांपा जाता है, केवल आंशिक रूप से नहीं, परन्तु पूरी तरह से। (इब्रानियों ९:६-१४) स्वर्गीय महायाजक, यीशु मसीह की आज्ञा का पालन करते हुए, हम उसकी मृत्यु के स्मारक को मसीहियों द्वारा मनाए जानेवाले एकमात्र पवित्र उत्सव के रूप में मनाते हैं। (लूका २२:१९, २०) जैसै-जैसे हम हर साल उस उत्सव के लिए इकट्ठे होते हैं, तब क्या हम “हर्ष, आनन्द” का अनुभव नहीं करते हैं?
१५ गत वर्ष, १,३१,४७,२०१ लोग स्मारक मनाने के लिए इकट्ठा हुए, जो १९९४ से ८,५८,२८४ ज़्यादा हैं। क्या ही भीड़! यहोवा के साक्षियों की ७८,६२० कलीसियाओं में हर्ष की कल्पना कीजिए जब इस स्मारकोत्सव के लिए उनके राज्यगृहों में असाधारण रूप से बड़ी संख्या में लोग आए। निश्चित ही, उपस्थित सभी लोग “सत्य और शान्ति से प्रेम” करने के लिए प्रेरित हुए जब उन्होंने उस व्यक्ति की मृत्यु को याद किया जो “मार्ग और सच्चाई और जीवन” है और जो अब यहोवा के महान ‘शान्ति के राजकुमार’ के रूप में शासन करता है! (यूहन्ना १४:६; यशायाह ९:६) इस स्मारकोत्सव का उन लोगों के लिए ख़ास अर्थ था जिन्होंने इसे उपद्रव और युद्ध से पीड़ित देशों में मनाया। हमारे कुछ भाइयों ने १९९५ के दौरान अवर्णनीय संत्रासों को देखा। फिर भी, ‘परमेश्वर की शान्ति ने, जो समझ से बिलकुल परे है, उनके हृदय और उनके विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखा।’—फिलिप्पियों ४:७.
‘आओ, हम यहोवा से अनुग्रह पाने के लिए विनय करें’
१६, १७. जातियों के लोग ‘अनुग्रह पाने के लिए यहोवा से विनय’ कैसे कर सकते हैं?
१६ लेकिन, स्मारक में उपस्थित होनेवाले ये लाखों लोग कहाँ से आए? यहोवा का नौवाँ कथन समझाता है: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, फिर ऐसा होगा कि देश देश के लोग, यहां तक कि बड़े बड़े नगरों के निवासी आएंगे, तथा एक नगर के निवासी दूसरे नगर के निवासियों के पास जाकर कहेंगे, ‘आओ, हम यहोवा से अनुग्रह पाने के लिए विनय करने, तथा सेनाओं के यहोवा को खोजने के लिए तत्काल चलें; मैं स्वयं साथ चलूंगा।’ बहुत से देशों तथा सामर्थी जातियों के लोग सेनाओं के यहोवा को खोजने और यहोवा से अनुग्रह पाने के लिए विनय करने यरूशलेम आएंगे।”—जकर्याह ८:२०-२२, NHT.
१७ स्मारक में उपस्थित होनेवाले लोग ‘सेनाओं के यहोवा को खोजना’ चाहते थे। इनमें से अनेक लोग उसके समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त सेवक थे। उपस्थित लाखों अन्य लोग अब तक उस अवस्था तक नहीं पहुँचे थे। कुछ देशों में स्मारक उपस्थिति राज्य प्रकाशकों की संख्या से चार या पाँच गुना ज़्यादा थी। दिलचस्पी दिखानेवाले इन अनेक लोगों को प्रगति करना जारी रखने के लिए मदद की ज़रूरत है। आइए हम उन्हें इस ज्ञान में हर्षित होना सिखाएँ कि यीशु हमारे पापों के लिए मरा और अब परमेश्वर के राज्य में शासन कर रहा है। (१ कुरिन्थियों ५:७, ८; प्रकाशितवाक्य ११:१५) और आइए हम उन्हें अपने आपको यहोवा परमेश्वर को समर्पित करने और उसके नियुक्त राजा के अधीन होने के लिए प्रोत्साहित करें। इस तरह वे ‘अनुग्रह पाने के लिए यहोवा से विनय’ करेंगे।—भजन ११६:१८, १९; फिलिप्पियों २:१२, १३.
“भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य”
१८, १९. (क) जकर्याह ८:२३ की पूर्ति में, आज “एक यहूदी” कौन है? (ख) आज “दस मनुष्य” कौन हैं जो ‘एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को पकड़ते हैं’?
१८ जकर्याह के आठवें अध्याय में अंतिम बार, हम पढ़ते हैं: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है।” यहोवा की आख़री उद्घोषणा क्या है? उन दिनों में भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, कि, हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।” (जकर्याह ८:२३) जकर्याह के दिनों में, शारीरिक इस्राएल परमेश्वर की चुनी हुई जाति थी। लेकिन, प्रथम शताब्दी में इस्राएल ने यहोवा के मसीहा का तिरस्कार किया। अतः, हमारे परमेश्वर ने “परमेश्वर के इस्राएल” नामक “एक यहूदी”—एक नए इस्राएल—को अपने ख़ास लोगों के तौर पर चुना, जो आत्मिक यहूदियों से बना था। (गलतियों ६:१६; यूहन्ना १:११; रोमियों २:२८, २९) इनकी अंतिम संख्या १,४४,००० होनी थी, जिन्हें मनुष्यजाति में से यीशु के साथ उसके स्वर्गीय राज्य में शासन करने के लिए चुना गया था।—प्रकाशितवाक्य १४:१, ४.
१९ इन १,४४,००० में से अधिकांश लोग पहले ही वफ़ादार रहकर मर चुके हैं और उन्हें उनका स्वर्गीय प्रतिफल प्राप्त हो चुका है। (१ कुरिन्थियों १५:५१, ५२; प्रकाशितवाक्य ६:९-११) कुछ लोग पृथ्वी पर शेष हैं और वे यह देखने में हर्षित होते हैं कि जातियों के “दस मनुष्य” जो “यहूदी” के साथ हो लेने का चुनाव करते हैं, वाक़ई “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक . . . बड़ी भीड़” हैं।—प्रकाशितवाक्य ७:९; यशायाह २:२, ३; ६०:४-१०, २२.
२०, २१. जैसे-जैसे इस संसार का अन्त निकट आता है, हम यहोवा के साथ शान्ति में कैसे रह सकते हैं?
२० जैसे-जैसे इस संसार का अंत निश्चित रूप से निकट आता है, मसीहीजगत यिर्मयाह के दिनों के यरूशलेम की तरह है: “हमने शान्ति की प्रतीक्षा की पर कुछ भी भला नहीं हुआ; और चंगाई की आस लगाई पर आतंक ही हाथ लगा!” (यिर्मयाह १४:१९, NHT) यह आतंक अपने चरम पर पहुँचेगा जब राष्ट्र झूठे धर्म पर आक्रमण करते हैं और उसका हिंसक अंत करते हैं। उसके थोड़ी ही देर बाद, राष्ट्र स्वयं परमेश्वर के अंतिम युद्ध, अरमगिदोन में विनाश का अनुभव करेंगे। (मत्ती २४:२९, ३०; प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६; १७:१६-१८; १९:११-२१) वह क्या ही खलबली का समय होगा!
२१ इन सब से, यहोवा उन लोगों की सुरक्षा करेगा जो सत्य से प्रेम रखते हैं और ‘शान्ति के बीज’ को उपजाते हैं। (जकर्याह ८:१२, NHT; सपन्याह २:३) तो फिर, आइए हम उसके लोगों के देश में सुरक्षित रहें, उत्साहपूर्वक उसकी स्तुति सार्वजनिक रूप से करें और ‘अनुग्रह पाने के लिए यहोवा से विनय करने’ के लिए जितना हो सके उतने लोगों की मदद करें। अगर हम ऐसा करेंगे, हम हमेशा यहोवा की शान्ति का आनन्द लेंगे। जी हाँ, “यहोवा अपनी प्रजा को बल देगा; यहोवा अपनी प्रजा को शान्ति की आशीष देगा।”—भजन २९:११.
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ परमेश्वर के लोगों ने जकर्याह के दिनों में ‘अपना हाथ सामर्थी’ कैसे बनाया? आज कैसे बना रहे हैं?
◻ हम सताहट, विद्वेष, और उदासीनता के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
◻ हमारा ‘एक दूसरे से सत्य बोलने’ में क्या शामिल है?
◻ एक व्यक्ति ‘अनुग्रह पाने के लिए यहोवा से विनय’ कैसे कर सकता है?
◻ जकर्याह ८:२३ की पूर्ति में हर्ष का कौन-सा बड़ा कारण दिखता है?
[पेज 18 पर तसवीरें]
गत वर्ष, यहोवा के साक्षियों ने लोगों से परमेश्वर के राज्य के बारे में बात करने में १,१५,०३, ५३,४४४ घंटे बिताए