यहोवा की दया के बारे में योना सीखता है
यहोवा के पास अपने भविष्यवक्ता योना के लिए एक कार्य-नियुक्ति है। समय सा.यु.पू. नौवीं शताब्दी है, और इस्राएल में यारोबाम द्वितीय शासन करता है। योना एक जबूलूनी शहर, गथेपेर का है। (यहोशू १९:१०, १३; २ राजा १४:२५) परमेश्वर योना को नीनवे की अश्शूरी राजधानी को भेज रहा है, जो उसके गृह-नगर के उत्तर-पूर्व की ओर ८०० से ज़्यादा किलोमीटर दूर है। उसे नीनवे के लोगों को चिताना है कि उनके सामने परमेश्वर द्वारा नाश है।
योना ने शायद सोचा हो: ‘उस शहर और जाति को जाना? वे तो परमेश्वर के प्रति समर्पित भी नहीं हैं। उन खून के प्यासे अश्शूरियों ने इस्राएलियों की तरह यहोवा के साथ कभी वाचा नहीं बाँधी। अरे, उस दुष्ट जाति के लोग शायद मेरी चेतावनी को एक धमकी समझें और इस्राएल को जीत लें! मैं नहीं! मैं नहीं जाऊँगा। मैं यापो को भाग जाऊँगा और विपरीत दिशा में—तर्शीश तक, भूमध्यसागर के ठीक उस छोर तक—जलयात्रा करूँगा। मैं ऐसा ही करूँगा!’—योना १:१-३.
समुद्र में संकट!
जल्द ही योना भूमध्यसागरीय तट पर योपा में है। वह अपना किराया देता है और तर्शीश को जानेवाले एक जहाज़ में चढ़ता है, जिसे सामान्यतः स्पेन से जोड़ा जाता है और जो नीनवे से पश्चिम की ओर ३,५०० से ज़्यादा किलोमीटर पर स्थित है। समुद्र में पहुँचने पर, वह थका हुआ भविष्यवक्ता डेक के नीचे जाकर सो जाता है। जल्द ही, यहोवा समुद्र में एक प्रचण्ड तूफ़ान लाता है, और हरेक भयभीत नाविक सहायता के लिए अपने-अपने देवता को पुकारता है। जहाज़ इतने हिचकोले खाता और डूबता-उतरता है कि जहाज़ को हलका करने के लिए माल को बाहर फेंका जाता है। फिर भी, जहाज़ का टूटना निश्चित लगता है, और योना उत्तेजित कप्तान को यह कहते हुए सुनता है: “तू भारी नींद में पड़ा हुआ क्या करता है? उठ, अपने देवता की दोहाई दे! सम्भव है, कि परमेश्वर हमारी चिन्ता करे, और हमारा नाश न हो।” योना उठकर डेक पर जाता है।—योना १:४-६.
“आओ, हम चिट्ठी डालकर जान लें,” नाविक कहते हैं, “कि यह विपत्ति हम पर किस के कारण पड़ी है।” चिट्ठी योना के नाम पर निकलती है। उसकी परेशानी की कल्पना कीजिए जब मल्लाह कहते हैं: “हमें बता कि किस के कारण यह विपत्ति हम पर पड़ी है? तेरा उद्यम क्या है? और तू कहां से आया है? तू किस देश और किस जाति का है?” योना कहता है कि वह एक इब्री है जो ‘स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा’ की उपासना करता है और कि उसे “जिस ने जल स्थल दोनों को बनाया है, उसी” का श्रद्धामय भय है। उन पर तूफ़ान इसलिए आया है क्योंकि वह आज्ञाकारी रूप से नीनवे तक परमेश्वर का संदेश पहुँचाने के बजाय यहोवा की उपस्थिति से भाग रहा है।—योना १:७-१०.
मल्लाह पूछते हैं: “हम तेरे साथ क्या करें जिस से समुद्र शान्त हो जाए?” जैसे-जैसे समुद्र और तूफ़ानी होता जाता है, योना कहता है: “मुझे उठाकर समुद्र में फेंक दो; तब समुद्र शान्त पड़ जाएगा; क्योंकि मैं जानता हूं, कि यह भारी आंधी तुम्हारे ऊपर मेरे ही कारण आई है।” यहोवा के सेवक को समुद्र में, अर्थात् उसकी निश्चित मौत की ओर फेंकने के लिए अनिच्छुक, वे पुरुष सूखी भूमि तक पहुँचने की कोशिश करते हैं। विफल होने पर, मल्लाह पुकारते हैं: “हे यहोवा हम बिनती करते हैं, कि इस पुरुष के प्राण की सन्ती हमारा नाश न हो, और न हमें निर्दोष की हत्या का दोषी ठहरा; क्योंकि हे यहोवा, जो कुछ तेरी इच्छा थी वही तू ने किया है।”—योना १:११-१४.
समुद्र में!
उसके बाद मल्लाह योना को जहाज़ पर से फेंक देते हैं। जैसे-जैसे वह उफनते समुद्र में डूबता जाता है, उसका भयानक उफान थमने लगता है। इसे देख, ‘वे मनुष्य यहोवा का बहुत ही भय मानने लगते हैं, और वे उसको भेंट चढ़ाते और मन्नतें मानते हैं।’—योना १:१५, १६.
जैसे-जैसे पानी योना को अपने में समेटता है, वह निस्संदेह प्रार्थना कर रहा है। फिर वह अपने आपको एक मुलायम नली से फिसलता हुआ महसूस करता है और वह एक बड़ी गुहिका में गिरता है। ताज्जुब की बात है, वह अब भी साँस ले सकता है! अपने सिर से समुद्री शैवाल हटाते हुए, योना अपने आपको सचमुच एक अनोखी जगह में पाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि “यहोवा ने योना को निगलने के लिए एक महामच्छ ठहराया, और योना तीन दिन और तीन रात उस मच्छ के पेट में रहा।”—योना १:१७, NHT.
योना की भावप्रवण प्रार्थना
उस विशाल मछली के पेट में, योना के पास प्रार्थना करने का समय है। उसके कुछ शब्द विशेष भजन से मिलते-जुलते हैं। योना ने बाद में अपनी प्रार्थनाओं को अभिलिखित किया जो दोनों, निराशा और पश्चात्ताप को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, उसे ऐसा लगा कि मछली का पेट उसका अधोलोक अर्थात् उसकी क़ब्र बन जाता। सो उसने प्रार्थना की: “मैं ने संकट में पड़े हुए यहोवा की दोहाई दी, और उस ने मेरी सुन ली है; अधोलोक के उदर में से मैं चिल्ला उठा, और तू ने मेरी सुन ली।” (योना २:१, २) दो आरोहण के गीत—जो संभवतः वार्षिक उत्सवों के लिए यरूशलेम को जानेवाले इस्राएलियों द्वारा गाए जाते थे—समान विचारों को व्यक्त करते हैं।—भजन १२०:१; १३०:१, २.
समुद्र में उसके डूबने के बारे में विचार करते हुए, योना प्रार्थना करता है: “तू [यहोवा] ने मुझे गहिरे सागर में समुद्र की थाह तक [बीचोंबीच] डाल दिया; और मैं धाराओं के बीच में पड़ा था, तेरी भड़काई हुई सब तरंग और लहरें मेरे ऊपर से बह गईं।”—योना २:३. भजन ४२:७; ६९:२ से तुलना कीजिए।
योना डरता है कि उसकी अवज्ञाकारिता का अर्थ होगा ईश्वरीय अनुग्रह खोना और कि वह परमेश्वर के मन्दिर को फिर कभी नहीं देख सकेगा। वह प्रार्थना करता है: ‘तब मैं ने कहा, मैं तेरे साम्हने से निकाल दिया गया हूं; तेरे पवित्र मन्दिर की ओर फिर [कैसे] ताकूंगा?’ (योना २:४. भजन ३१:२२ से तुलना कीजिए।) योना की स्थिति इतनी बुरी प्रतीत होती है कि वह कहता है: “मैं जल से यहां तक घिरा हुआ था [उसके जीवन को ख़तरे में डालते हुए] कि मेरे प्राण निकले जाते थे; गहिरा सागर मेरे चारों ओर था, और मेरे सिर में [समुद्र के] सिवार लिपटा हुआ था।” (योना २:५. भजन ६९:१ से तुलना कीजिए।) योना की दुर्दशा की कल्पना कीजिए, क्योंकि वह आगे कहता है: “मैं पहाड़ों की तलहटी [मछली के अन्दर] तक उतर चुका था; भूमि के [क़ब्र की तरह] बन्धनों ने मुझे सदा के लिए जकड़ लिया था, परन्तु हे यहोवा मेरे परमेश्वर, तू ने मेरे प्राण को अधोलोक में से [तीसरे दिन] निकाल लिया है।”—योना २:६, NHT. भजन ३०:३ से तुलना कीजिए।
हालाँकि वह मछली के पेट में है, योना यह नहीं सोचता है: ‘मैं इतना हताश हूँ कि मैं प्रार्थना नहीं कर सकता।’ इसके बजाय, वह प्रार्थना करता है: “जब [मृत्यु के सन्निकट] मैं मूर्छा खाने लगा, तब मैं ने [विश्वास में, शक्ति और दया में अतुलनीय व्यक्ति के तौर पर] यहोवा को स्मरण किया; और मेरी प्रार्थना तेरे पास वरन तेरे पवित्र मन्दिर में पहुंच गई।” (योना २:७) स्वर्गीय मन्दिर से, परमेश्वर ने योना की सुनी और उसे बचाया।
समाप्ति में योना प्रार्थना करता है: “जो लोग [झूठे देवताओं की निर्जीव मूर्तियों में भरोसा रखने के द्वारा] धोखे की व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, वे [इस गुण को प्रदर्शित करनेवाले व्यक्ति को त्यागने में] अपने करुणानिधान को छोड़ देते हैं। परन्तु मैं ऊंचे शब्द से धन्यवाद करके [यहोवा परमेश्वर] तुझे बलिदान चढ़ाऊंगा; [इस अनुभव या अन्य अवसरों के दौरान] जो मन्नत मैं ने मानी, उसको पूरी करूंगा। उद्धार यहोवा ही से होता है।” (योना २:८, ९. भजन ३१:६; ५०:१४ से तुलना कीजिए।) इस बात से अवगत कि केवल परमेश्वर उसे मृत्यु से छुड़ा सकता है, वह पश्चात्तापी भविष्यवक्ता (अपने से पहले के राजा दाऊद और सुलैमान की तरह) यहोवा को उद्धार का श्रेय देता है।—भजन ३:८; नीतिवचन २१:३१.
योना आज्ञा मानता है
काफ़ी सोचने और गम्भीरतापूर्वक प्रार्थना करने के बाद, योना अपने आपको उस नली से ज़बरदस्ती बाहर निकाले जाते हुए महसूस करता है जिससे वह अन्दर आया था। अंततः, उसे सूखी भूमि पर बाहर फेंक दिया जाता है। (योना २:१०) निजात के लिए कृतज्ञ, योना परमेश्वर का वचन मानता है: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूंगा, उसका उस में प्रचार कर।” (योना ३:१, २) योना उस अश्शूरी राजधानी के लिए निकल पड़ता है। जब उसे पता चलता है कि वह कौन-सा दिन है, तो उसे एहसास होता है कि वह मछली के पेट में तीन दिन तक था। वह भविष्यवक्ता परात नदी को उसके बड़े पश्चिमी घुमाव से पार करता है, उत्तरी मिसुपुतामिया को पार कर पूर्व की ओर यात्रा करता है, टिग्रिस नदी पर आता है, और अंततः उस बड़े शहर को पहुँचता है।—योना ३:३.
योना नीनवे, एक बड़े शहर, में प्रवेश करता है। वह एक दिन के लिए शहर में चलता है और फिर घोषणा करता है: “अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।” क्या योना को चमत्कारिक रूप से अश्शूरी बोली का ज्ञान प्रदान किया गया है? हमें नहीं बताया गया है। लेकिन यद्यपि वह इब्रानी में बात कर रहा है और कोई व्यक्ति अनुवाद कर रहा है, उसकी घोषणा परिणाम उत्पन्न करती है। नीनवे के पुरुष परमेश्वर में विश्वास करने लगते हैं। वे उपवास की घोषणा करते हैं और सबसे बड़े से लेकर सबसे छोटे तक सभी लोग टाट ओढ़ते हैं। जब ख़बर नीनवे के राजा तक पहुँचती है, तो वह अपने सिंहासन पर से उठता है, अपना राजकीय वस्त्र उतारता है, टाट ओढ़ता है, और राख पर बैठ जाता है।—योना ३:४-६.
योना कितना चकित हो जाता है! अश्शूरी राजा इस पुकार के साथ ढिंढोरा पिटवाता है: “क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, या और पशु, कोई कुछ भी न खाएं; वे न खाएं और न पानी पिवें। और मनुष्य और पशु दोनों टाट ओढ़ें, और वे परमेश्वर की दोहाई चिल्ला-चिल्ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्चात्ताप करें। सम्भव है, परमेश्वर दया करे और अपनी इच्छा बदल दे, और उसका भड़का हुआ कोप शान्त हो जाए और हम नाश होने से बच जाएं।”—योना ३:७-९.
नीनवे के लोग अपने राजा की आज्ञा का अनुपालन करते हैं। जब परमेश्वर देखता है कि वे अपने बुरे मार्ग से फिर गए हैं, तो उसने जो विपत्ति उन पर लाने के बारे में कहा था, उस पर वह पछतावा महसूस करता है, सो वह उसे नहीं लाता है। (योना ३:१०) उनके पश्चात्ताप, नम्रता, और विश्वास की वजह से, यहोवा उन पर ठाना गया न्यायदण्ड नहीं लाने का फ़ैसला करता है।
मुँह फुलानेवाला भविष्यवक्ता
चालीस दिन बीतते हैं और नीनवे को कुछ नहीं होता है। (योना ३:४) यह एहसास करते हुए कि नीनवे के लोग नाश नहीं किए जाएँगे, योना को बहुत ही बुरा लगता है और वह गुस्से से आग-बबूला हो उठता है और प्रार्थना करता है: “हे यहोवा जब मैं अपने देश में था, तब क्या मैं यही बात न कहता था? इसी कारण मैं ने तेरी आज्ञा सुनते ही तर्शीश को भाग जाने के लिये फुर्ती की; क्योंकि मैं जानता था कि तू अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर है, और विलम्ब से कोप करनेवाला करुणानिधान है, और दुःख देने से प्रसन्न नहीं होता। सो अब हे यहोवा मेरा प्राण ले ले; क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही भला है।” परमेश्वर इस सवाल से जवाब देता है: “तेरा जो क्रोध भड़का है, क्या वह उचित है?”—योना ४:१-४.
उसके साथ, योना पैर पटकता हुआ नगर से बाहर चला जाता है। पूर्व की ओर जाकर, वह एक छप्पर खड़ा करता है ताकि वह उसकी छाँव तले तब तक बैठ सके जब तक कि वह यह न देख ले कि शहर का क्या होगा। बदले में, यहोवा करूणापूर्वक ‘रेंड़ का पेड़ उगाकर ऐसे बढ़ाता है कि योना के सिर पर छाया हो, जिस से उसका दुःख दूर हो।’ योना उस रेंड़ के पेड़ की वजह से कितना आनन्दित होता है! लेकिन परमेश्वर एक कीड़े का प्रबन्ध करता है ताकि वह पौ फटने पर उस पेड़ को काटे, और वह पेड़ मुरझाने लगता है। जल्द ही वह पूरी तरह सूख जाता है। परमेश्वर पुरवाई बहाकर लू भी चलाता है। अब उस भविष्यवक्ता के सिर पर चिलचिलाती धूप पड़ रही है, जिससे वह मूर्छा खा रहा है। वह बार-बार मृत्यु माँगता रहता है। जी हाँ, योना बारम्बार कहता है: “मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही अच्छा है।”—योना ४:५-८.
यहोवा अब बोलता है। वह योना से पूछता है: “क्या तू उचित रूप से रेंड़ के पेड़ को लेकर आग-बबूला हुआ है?” (NW) योना जवाब देता है: “मैं उचित रूप से मृत्यु की हद तक आग-बबूला हुआ हूँ।” (NW) सार में, यहोवा अब भविष्यवक्ता से कहता है: “जिस रेंड़ के पेड़ के लिये तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया, जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नाश भी हुआ; उस पर तू ने तरस खाई है।” परमेश्वर ने आगे तर्क किया: ‘फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिस में १,२०,००० मनुष्य निवास करते हैं जो अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत घरैलू पशु भी उस में रहते हैं, तो क्या मुझे उस पर तरस नहीं खाना चाहिए?’ (योना ४:९-११) सही जवाब सुस्पष्ट है।
योना पश्चात्तापी है और अपने नाम की बाइबल पुस्तक लिखने को जीवित रहता है। उसने यह कैसे जाना कि मल्लाह लोगों ने यहोवा का भय माना, उसे भेंट चढ़ाई, और मन्नतें मानीं? ईश्वरीय उत्प्रेरणा या संभवतः मन्दिर में मल्लाह या मुसाफ़िरों में से एक के द्वारा।—योना १:१६; २:४.
‘यूनुस का चिन्ह’
जब शास्त्रियों और फरीसियों ने यीशु मसीह से एक चिन्ह के लिए पूछा, तो उसने कहा: “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूंढ़ते हैं; परन्तु यूनुस भविष्यद्वक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन को न दिया जाएगा।” यीशु ने आगे कहा: “यूनुस तीन रात दिन जल-जन्तु के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा।” (मत्ती १२:३८-४०) यहूदी दिन सूर्यास्त को शुरू होता था। मसीह की मृत्यु निसान १४, सा.यु. ३३, शुक्रवार दोपहर को हुई। उसका शरीर उसी दिन सूर्यास्त से पहले एक क़ब्र में रखा गया। निसान १५ उस शाम शुरू हुई और शनिवार सूर्यास्त तक चली, जो उस सप्ताह का सातवाँ और अन्तिम दिन है। उस समय निसान १६ शुरू होकर उस दिन के सूर्यास्त तक चली जिसे हम रविवार कहते हैं। फलस्वरूप, निसान १४ को कम-से-कम कुछ समय के लिए यीशु मरा हुआ और क़ब्र में था, निसान १५ के पूरे दिन दफ़नाया हुआ था, और उसने निसान १६ के रात के घंटे क़ब्र में बिताए। जब रविवार सुबह को कुछ स्त्रियाँ क़ब्र पर आईं, तब वह पहले ही पुनरुत्थित किया जा चुका था।—मत्ती २७:५७-६१; २८:१-७.
यीशु तीनों दिन का कुछ-कुछ समय क़ब्र में था। उसके शत्रुओं को इस प्रकार ‘यूनुस का चिन्ह’ मिला, लेकिन मसीह ने कहा: “नीनवे के लोग न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएंगे, क्योंकि उन्हों ने यूनुस का प्रचार सुनकर, मन फिराया और देखो, यहां वह है जो यूनुस से भी बड़ा है।” (मत्ती १२:४१) कितना सच है! यहूदियों के मध्य यीशु मसीह था—योना से कहीं बढ़कर एक भविष्यवक्ता। हालाँकि योना नीनवे के लोगों के लिए एक पर्याप्त चिन्ह था, यीशु ने इस भविष्यवक्ता से कहीं ज़्यादा अधिकार और समर्थन करनेवाले सबूत के साथ प्रचार किया। फिर भी, सामान्यतः यहूदियों ने विश्वास नहीं किया।—यूहन्ना ४:४८.
एक जाति के तौर पर यहूदियों ने योना से कहीं बढ़कर भविष्यवक्ता को नम्रतापूर्वक स्वीकार नहीं किया, और उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया। लेकिन उनके पूर्वजों के बारे में क्या? उनमें भी विश्वास और नम्र भावना की कमी थी। दरअसल, प्रत्यक्षतः यहोवा ने योना को नीनवे भेजा ताकि नीनवे के पश्चात्तापी लोगों और हठिले इस्राएलियों के बीच, जिनमें विश्वास और नम्रता की बुरी तरह कमी थी, विषमता दिखाए।—व्यवस्थाविवरण ९:६, १३ से तुलना कीजिए।
स्वयं योना के बारे में क्या? उसने सीखा कि परमेश्वर की दया कितनी महान है। इसके अतिरिक्त, नीनवे के पश्चात्तापी लोगों को दिखाए गए तरस के बारे में योना की कुड़कुड़ाहट के प्रति यहोवा की प्रतिक्रिया को हमें शिकायत करने से दूर रखना चाहिए जब हमारा स्वर्गीय पिता हमारे दिन में लोगों को दया दिखाता है। वाक़ई, आइए हम आनन्द मनाए कि हर साल हज़ारों लोग विश्वास में और नम्र दिलों के साथ यहोवा की ओर फिरते हैं।