क्या आप ‘शास्त्रों का मतलब समझते’ हैं?
“उसने शास्त्रों का मतलब समझने के लिए उनके दिमाग पूरी तरह खोल दिए।”—लूका 24:45.
1, 2. अपने पुनरुत्थान के दिन यीशु ने अपने चेलों की हिम्मत कैसे बँधायी?
जिस दिन यीशु का पुनरुत्थान हुआ था, उस दिन उसके दो चेले यरूशलेम से करीब 11 किलोमीटर (7 मील) दूर एक गाँव की तरफ पैदल जा रहे थे। वे नहीं जानते थे कि यीशु का पुनरुत्थान हो चुका है, इसलिए वे उसकी मौत पर शोक मनाते हुए जा रहे थे। अचानक यीशु वहाँ प्रकट हुआ और उनके साथ-साथ चलने लगा। चलते-चलते उसने इन चेलों को दिलासा दिया। कैसे? “उसने मूसा से शुरू कर सारे भविष्यवक्ताओं की किताबों में, यानी सारे शास्त्र में जितनी भी बातें उसके बारे में लिखी थीं, उन सबका मतलब उन्हें खोलकर समझाया।” (लूका 24:13-15, 27) नतीजा, यीशु की बातें सुनकर उनके दिल की धड़कनें तेज़ होने लगीं, क्योंकि वह उन्हें शास्त्र का मतलब “खोल-खोलकर समझा रहा था।”—लूका 24:32.
2 उसी शाम ये दोनों चेले वापस यरूशलेम लौट आए। वहाँ जब वे प्रेषितों से मिले, तो उन्होंने उन्हें सारा हाल कह सुनाया। जब वे बातें कर ही रहे थे, तब यीशु उन सबको दिखायी दिया। प्रेषित बहुत घबरा गए। वे शक करने लगे कि क्या वह सचमुच यीशु है। लेकिन यीशु ने उनकी बेचैनी दूर की और उनकी हिम्मत बँधायी। कैसे? बाइबल बताती है कि “उसने शास्त्रों का मतलब समझने के लिए उनके दिमाग पूरी तरह खोल दिए।”—लूका 24:45.
3. (क) कभी-कभी हम यहोवा की सेवा में निराश क्यों हो सकते हैं? (ख) लेकिन इसके बावजूद हम अपनी खुशी कैसे बनाए रख सकते हैं?
3 यीशु के चेलों की तरह, कभी-कभी हम भी बहुत दुखी महसूस करते हैं। हो सकता है हम यहोवा की सेवा में बहुत व्यस्त हों, लेकिन फिर भी प्रचार में अच्छे नतीजे नज़र न आने पर हम शायद निराश हो जाएँ। (1 कुरिं. 15:58) या फिर शायद हमें लगे कि जिनके साथ हम बाइबल अध्ययन कर रहे हैं, वे कुछ खास कदम नहीं उठा रहे हैं। यहाँ तक कि उनमें से कुछ तो यहोवा के साथ रिश्ता जोड़ने से ही साफ इनकार कर दें। लेकिन ऐसे में भी हम प्रचार काम में अपनी खुशी कैसे बनाए रख सकते हैं? एक बात जो हमारी मदद कर सकती है, वह है शास्त्र में दी यीशु की मिसालों का मतलब पूरी तरह समझना। तो आइए हम उनमें से तीन मिसालों पर गौर करें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं।
बीज बोनेवाला जो सो जाता है
4. यीशु के ज़रिए दी गयी बीज बोनेवाले की मिसाल का क्या मतलब है?
4 मरकुस 4:26-29 पढ़िए। यीशु के ज़रिए दी गयी इस मिसाल का क्या मतलब है? बीज बोनेवाला राज के हर प्रचारक को दर्शाता है और बीज राज की खुशखबरी को दर्शाता है, जो नेकदिल लोगों को सुनायी जाती है। रोज़ की तरह, बीज बोनेवाला “रात होने पर सो जाता है और सुबह होने पर उठ जाता है।” बीज को बढ़ने में कुछ वक्त लगता है, यानी जिस दिन बीज बोया गया था, उस दिन से लेकर कटाई तक वह बढ़ता रहता है। उस दौरान, “बीज में अंकुर फूटते हैं और वह अपने-आप बढ़ता है।” गौर कीजिए कि यह बीज “अपने-आप” बढ़ता है। और यह बढ़ोतरी धीरे-धीरे और अलग-अलग चरणों में होती है। उसी तरह, एक बाइबल विद्यार्थी धीरे-धीरे और अलग-अलग चरणों में तरक्की करता है। जब वह ऐसे मुकाम पर पहुँच जाता है, जहाँ वह यहोवा की सेवा करने का फैसला करता है, तब वह ‘फल लाता है,’ यानी यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करके बपतिस्मा लेता है।
5. यीशु ने एक ऐसे बीज बोनेवाले की मिसाल क्यों दी, जो सो जाता है?
5 यीशु ने यह मिसाल क्यों दी? यीशु ने यह मिसाल इसलिए दी ताकि हमें इस बात का एहसास हो कि यहोवा ही है जो ‘अच्छा मन रखनेवाले’ लोगों के दिलों में सच्चाई के बीज को बढ़ाता है। (प्रेषि. 13:48; 1 कुरिं. 3:7) हम सिर्फ बीज बो सकते हैं और उसे सींच सकते हैं, लेकिन उसे बढ़ाना हमारे हाथ में नहीं है। कदम उठाने के लिए हम अपने बाइबल विद्यार्थी के साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते और न ही उनसे यह उम्मीद कर सकते हैं कि वे जल्दी तरक्की करें। मिसाल में बताया आदमी बस बीज छितरा देता है और अपने रोज़मर्रा के कामों में लग जाता है। उसे पता नहीं चलता कि बीज कैसे बढ़ रहा है। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। राज की खुशखबरी सुनाने के बाद हम अपने रोज़मर्रा के कामों में लग जाते हैं। हमें नहीं पता चलता कि राज के बीज लोगों के दिलों में कैसे बढ़ रहे हैं। लेकिन हो सकता है समय के चलते राज के ये बीज फल लाएँ और लोग समर्पण करके बपतिस्मा लें और यीशु के नए चेले बन जाएँ। आगे चलकर, ये नए चेले कटाई के काम में हमारा हाथ बँटाते हैं।—यूह. 4:36-38.
6. हमें एक बाइबल विद्यार्थी की तरक्की के सिलसिले में किस बात को कबूल करना चाहिए?
6 हम इस मिसाल से क्या सीख सकते हैं? सबसे पहले, हमें इस बात को कबूल करना चाहिए कि बाइबल विद्यार्थी सच्चाई में कितनी जल्दी तरक्की करेगा यह हमारे हाथ में नहीं है। हालाँकि हम विद्यार्थी की मदद करने और उसे सहारा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, लेकिन बपतिस्मा लेने के लिए हम कभी उस पर दबाव नहीं डालते। इसके बजाय, हम नम्रता से इस बात को कबूल करते हैं कि उसे खुद ही फैसला लेना होगा कि वह परमेश्वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करेगा या नहीं। हमें इस बात को याद रखना चाहिए कि यहोवा एक व्यक्ति के समर्पण को सिर्फ तभी कबूल करता है, जब वह यहोवा के लिए प्यार से उभारे जाकर खुद अपनी मरज़ी से उसकी सेवा करने का फैसला करता है।—भज. 54:6; 110:3.
7, 8. (क) यीशु की दी बीज बोनेवाले की मिसाल से हम और क्या सीख सकते हैं? एक उदाहरण देकर समझाइए। (ख) यह मिसाल हमें यहोवा और यीशु के बारे में क्या सिखाती है?
7 दूसरा, इस मिसाल से हम जो सबक सीखते हैं, उसे समझने से हमें मदद मिलेगी कि जब हम अपने बाइबल विद्यार्थियों को शुरू-शुरू में तरक्की करते नहीं देखते, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। हमें सब्र रखना चाहिए। (याकू. 5:7, 8) हमारे खूब मेहनत करने के बावजूद भी अगर हमारा बाइबल विद्यार्थी यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित नहीं करता, तो हमें खुद को दोष नहीं देना चाहिए। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम अच्छे शिक्षक नहीं हैं। यहोवा सच्चाई के बीज को सिर्फ ऐसे दिलों में बढ़ने देता है, जो नम्र हों और खुद में बदलाव लाने के लिए तैयार हों। (मत्ती 13:23) इसलिए हम प्रचार काम में कितने असरदार हैं, यह हमें इस बात से नहीं आँकना चाहिए कि हमारे कितने विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया है। खुद यहोवा भी प्रचार काम में हमारी कामयाबी को इस बात से नहीं आँकता कि हमारे बाइबल विद्यार्थी कितनी तरक्की करते हैं। इसके बजाय, वह हमारी मेहनत की कदर करता है।—लूका 10:17-20; 1 कुरिंथियों 3:8 पढ़िए।
8 तीसरा, एक व्यक्ति के दिल में राज का बीज किस तरह बढ़ रहा है यह हमें हमेशा नज़र नहीं आता। मिसाल के लिए, एक मिशनरी भाई एक जोड़े के साथ अध्ययन कर रहा था, जिन्हें सिगरेट पीने की आदत थी। एक दिन उन्होंने उस मिशनरी से कहा कि वे बपतिस्मा-रहित प्रचारक बनना चाहते हैं। मिशनरी ने उन्हें याद दिलाया कि पहले उन्हें सिगरेट पीना छोड़ना होगा। जब इस जोड़े ने भाई को बताया कि उन्होंने कुछ महीने पहले ही सिगरेट पीना छोड़ दिया था, तो भाई को बहुत ताज्जुब हुआ। किस बात ने इस जोड़े को यह फैसला लेने के लिए उभारा था? उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि अगर वे उस भाई के सामने न पीएँ, मगर चोरी-छिपे पीएँ, तब भी वे यहोवा की नज़रों से नहीं बच सकते और यहोवा को कपट से सख्त नफरत है। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि अगर उन्हें सिगरेट पीना ही है, तो वे भाई के सामने पीएँगे या फिर इसे पूरी तरह छोड़ देंगे। यहोवा के लिए उनके दिल में जो प्यार बढ़ रहा था, उस प्यार ने उन्हें उकसाया कि वे सही फैसला लें। जी हाँ, राज का बीज उनके दिल में बढ़ रहा था, बस वह भाई इस बात से बेखबर था!
बड़ा जाल
9. यीशु के ज़रिए दी गयी बड़े जाल की मिसाल का क्या मतलब है?
9 मत्ती 13:47-50 पढ़िए। यीशु के ज़रिए दी गयी बड़े जाल की मिसाल का क्या मतलब है? यीशु ने कहा कि राज की खुशखबरी का प्रचार करना ऐसा है, मानो एक बड़े जाल को समुंदर में डाल दिया गया हो। जिस तरह एक बड़ा जाल बड़े पैमाने पर “हर किस्म की मछलियाँ” समेट लेता है, उसी तरह हमारा प्रचार काम हर तरह के लाखों लोगों को अपनी ओर खींचता है। (यशा. 60:5) हर साल हमारे अधिवेशनों और स्मारक में जो लाखों लोग हाज़िर होते हैं, वे इस बात के सबूत हैं। इनमें से कुछ लोग “बढ़िया” मछलियों की तरह हैं, जो आगे चलकर मसीही मंडली का हिस्सा बन जाते हैं। जबकि दूसरे लोग “गंदी” मछलियों की तरह हैं। अधिवेशनों और स्मारक में हाज़िर होनेवाले सभी लोगों पर यहोवा की मंज़ूरी नहीं होती।
10. यीशु ने बड़े जाल की मिसाल क्यों दी?
10 यीशु ने यह मिसाल क्यों दी? इस मिसाल में मछलियों को छाँटना, महा-संकट के दौरान किए जानेवाले न्याय को नहीं दर्शाता। इसके बजाय, यह मिसाल समझाती है कि इस दुष्ट व्यवस्था के आखिरी दिनों के दौरान क्या होगा। यीशु ने बताया कि ज़रूरी नहीं कि खुशखबरी में दिलचस्पी दिखानेवाला हर शख्स सच्चाई अपनाएगा। कई लोग हमारी सभाओं में आते हैं, यहाँ तक कि हमारे साथ बाइबल का अध्ययन भी करते हैं, लेकिन जब यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने की बात आती है, तो वे पीछे हट जाते हैं। (1 राजा 18:21) फिर कुछ ऐसे हैं, जिन्होंने मसीही मंडली के साथ संगति करना ही छोड़ दिया है। इसके अलावा, कुछ जवान ऐसे भी हैं जिनकी परवरिश तो सच्चाई में हुई है, मगर जिन्होंने खुद सच्चाई को अभी तक नहीं अपनाया है। यीशु ने अपनी मिसाल में इस बात पर ज़ोर दिया कि हर व्यक्ति को खुद यह फैसला लेना होगा कि वह यहोवा की उपासना करना चाहेगा या नहीं। जो व्यक्ति यहोवा की उपासना करने का फैसला करता है, वह यहोवा की नज़र में ‘मनभावना’ ठहरता है।—हाग्गै 2:7.
11, 12. (क) हम बड़े जाल की मिसाल से कैसे फायदा पा सकते हैं? (ख) यह मिसाल हमें यहोवा और यीशु के बारे में क्या सिखाती है?
11 हम बड़े जाल की मिसाल से कैसे फायदा पा सकते हैं? इस मिसाल से हम जो सबक सीखते हैं, उसे समझने से हमें मदद मिलेगी कि अगर हमारी लाख कोशिशों के बावजूद हमारा बाइबल विद्यार्थी या हमारा बच्चा सच्चाई नहीं अपनाता, तो हमें हद-से-ज़्यादा निराश या दुखी नहीं होना चाहिए। एक व्यक्ति का हमारे साथ बाइबल अध्ययन करने के लिए राज़ी होना या एक बच्चे की परवरिश साक्षी परिवार में होना, अपने-आप में इस बात की गारंटी नहीं कि वह सच्चाई ज़रूर अपनाएगा। अगर एक व्यक्ति यहोवा की हुकूमत को कबूल नहीं करना चाहता, तो वह यहोवा का सेवक नहीं बन सकता।
12 तो क्या इसका यह मतलब है कि जो सच्चाई छोड़कर चले गए हैं, उन्हें फिर कभी मसीही मंडली में आने नहीं दिया जाएगा? या फिर जिन्होंने अभी तक यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित नहीं की है, क्या उनके बारे में हमारा यह सोचना सही होगा कि अब उनका कुछ नहीं हो सकता? नहीं, ऐसा नहीं है। जब तक महा-संकट शुरू नहीं होता, उनके पास यहोवा के साथ रिश्ता जोड़ने का मौका है। यह ऐसा है मानो यहोवा उनसे कह रहा है: “तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूंगा।” (मला. 3:7) इस बात को यीशु के ज़रिए दी गयी उड़ाऊ बेटे की मिसाल में और ज़ोर देकर बताया गया है।—लूका 15:11-32 पढ़िए।
उड़ाऊ बेटा
13. उड़ाऊ बेटे की मिसाल का क्या मतलब है?
13 यीशु के ज़रिए दी गयी उड़ाऊ बेटे की मिसाल का क्या मतलब है? इस मिसाल में बताया गया दयालु पिता, स्वर्ग में रहनेवाले हमारे प्यारे पिता यहोवा को दर्शाता है। और जो बेटा अपनी अनमोल दौलत उड़ा देता है, वह उन लोगों को दर्शाता है जो मंडली को छोड़कर चले जाते हैं। ऐसा करके वे मानो एक “दूर देश” में, यानी यहोवा से बहुत दूर जा चुकी शैतान की दुनिया में चले जाते हैं। (इफि. 4:18; कुलु. 1:21) लेकिन आगे चलकर इनमें से कुछ लोगों के होश ठिकाने आ जाते हैं। उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है और वे यहोवा के पास लौट आने का फैसला करते हैं। ऐसे लोगों के लिए यह वापसी सफर इतना आसान नहीं होता। लेकिन क्योंकि वे सच्ची नम्रता और सच्चा पछतावा दिखाते हैं, इसलिए यहोवा उन्हें माफ कर देता है और खुशी-खुशी मंडली में उनका स्वागत करता है।—यशा. 44:22; 1 पत. 2:25.
14. यीशु ने उड़ाऊ बेटे की मिसाल क्यों दी?
14 यीशु ने यह मिसाल क्यों दी? यह दिल छू लेनेवाली मिसाल देकर यीशु ने दिखाया कि यहोवा दिल से चाहता है कि जो उससे दूर चले गए हैं, वे उसके पास लौट आएँ। मिसाल में बताए पिता ने कभी यह उम्मीद नहीं छोड़ी कि एक दिन उसका बेटा लौट आएगा। जैसे ही पिता की नज़र उसके बेटे पर पड़ी, तो हालाँकि उसका बेटा “काफी दूरी पर था,” फिर भी वह दौड़कर उसका स्वागत करने गया। ऐसा करके पिता अपने बेटे को यह जताना चाहता था कि उसने उसे माफ कर दिया है और उसे वापस अपना लिया है। जो लोग सच्चाई छोड़कर चले गए हैं, उन्हें इस मिसाल से क्या ही बढ़ावा मिलता है कि वे बिना देर किए यहोवा के पास लौट आएँ! हो सकता है यहोवा के साथ उनका रिश्ता कमज़ोर पड़ गया हो। और मंडली में वापस आना शायद उनके लिए चुनौती-भरा हो, यहाँ तक कि उन्हें शायद शर्मिंदगी भी महसूस हो। लेकिन वे इस बात का यकीन रख सकते हैं कि ऐसा करने से उन्हें ज़रूर फायदा होगा। उनके लौटने से न सिर्फ मंडली में, बल्कि स्वर्ग में भी खुशियाँ मनायी जाएँगी।—लूका 15:7.
15, 16. (क) यीशु के ज़रिए दी गयी उड़ाऊ बेटे की मिसाल से हम क्या-क्या सबक सीख सकते हैं? कुछ उदाहरण दीजिए। (ख) यह मिसाल हमें यहोवा और यीशु के बारे में क्या सिखाती है?
15 हम उड़ाऊ बेटे की मिसाल से क्या सीख सकते हैं? हमें यहोवा की मिसाल पर चलते हुए पश्चाताप करनेवालों के लिए प्यार दिखाना चाहिए। जब ऐसा कोई व्यक्ति मंडली में लौट आता है, तो हमें खुद को “बहुत धर्मी” समझकर मंडली में उसका स्वागत करने से इनकार नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से यहोवा के साथ खुद हमारा रिश्ता तबाह हो सकता है। (सभो. 7:16) इस मिसाल से हम एक और सबक सीख सकते हैं। जो व्यक्ति मंडली को छोड़कर चला जाता है, उसके बारे में हमें ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि अब उसका कुछ नहीं हो सकता, या अब उसके बदलने की कोई उम्मीद नहीं। इसके बजाय, हमें उसे “खोई हुई भेड़” समझना चाहिए, जो शायद एक दिन मंडली में लौट आए। (भज. 119:176) अगर हमारी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से होती है, जो परमेश्वर के झुंड से भटक गया है, तो क्या उसे लौटने में मदद देने के लिए हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे? क्या हम फौरन प्राचीनों को इस बारे में इत्तला करेंगे, ताकि वे उस व्यक्ति को ज़रूरी मदद दे सकें? अगर हम वाकई उड़ाऊ बेटे की मिसाल के मायने समझते हैं और उससे मिलनेवाले सबक को लागू करते हैं, तो हम ऐसा ज़रूर करेंगे।
16 जो लोग मंडली में लौट आते हैं, वे यहोवा की दया, साथ ही, मंडली के प्यार और सहारे के लिए एहसानमंद होते हैं। इस बारे में आज के ज़माने के कुछ उड़ाऊ बेटों से सुनिए कि वे क्या कहते हैं। एक भाई, जो 25 साल तक बहिष्कृत था, कहता है, “जब से मुझे मंडली में बहाल किया गया है, तब से मेरी खुशी बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि मैंने यहोवा की तरफ से मिलनेवाले ‘ताज़गी के दिन’ अनुभव किए हैं। (प्रेषि. 3:19) यहाँ सभी मेरा बहुत साथ देते हैं और मुझसे प्यार करते हैं! अब मेरा एक खूबसूरत आध्यात्मिक परिवार है।” एक जवान बहन, जो पाँच साल मंडली से दूर थी, बताती है कि जब वह मंडली में लौट आयी, तो उसे कैसा लगा: “मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती कि उस वक्त मुझे कैसा महसूस हुआ, जब भाई-बहनों ने मुझे उसी तरह खुलकर प्यार जताया, जैसे यीशु ने बताया था। यहोवा के संगठन का हिस्सा होना कितनी बड़ी आशीष है!”
17, 18. (क) हमने इन तीन मिसालों से क्या-क्या सबक सीखे? (ख) हमने क्या करने की ठान ली है?
17 इन तीन मिसालों से हमने क्या कारगर सबक सीखे? पहला, हमें इस बात को कबूल करना चाहिए कि बाइबल विद्यार्थी सच्चाई में कितनी जल्दी तरक्की करेगा, यह हमारे हाथ में नहीं है। यह हम यहोवा पर छोड़ देते हैं। दूसरा, हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि हर कोई जो हमारे साथ संगति करता है और बाइबल अध्ययन करता है, वह सच्चाई ज़रूर अपनाएगा। और आखिर में हमने देखा कि भले ही कुछ लोग यहोवा से मुँह मोड़ लें और सच्चाई छोड़कर चले जाएँ, लेकिन हमें कभी यह उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए कि एक-न-एक-दिन वे ज़रूर लौट आएँगे। और जब वे लौट आते हैं, तो हमें यहोवा की मिसाल पर चलते हुए उन्हें प्यार दिखाना चाहिए और उनका स्वागत करना चाहिए।
18 आइए हम सभी ज्ञान, समझ और बुद्धि हासिल करने के लिए मेहनत करते रहें। जब हम यीशु की दी मिसालें पढ़ते हैं, तो खुद से पूछिए: ‘इस मिसाल का क्या मतलब है? इसे बाइबल में क्यों दर्ज़ किया गया? मैं इससे मिलनेवाले सबक को कैसे अमल में ला सकता हूँ? इससे मैं यहोवा और यीशु के बारे में क्या सीख सकता हूँ?’ जब हम ऐसा करेंगे, तो हम दिखाएँगे कि हम यीशु के शब्दों के मायने समझ रहे हैं।