दसवाँ अध्याय
शान्ति के शासक के आने का वादा
1. कैन के समय से इंसान क्या देखता आ रहा है?
आज से करीब छः हज़ार साल पहले, दुनिया के सबसे पहले बच्चे का जन्म हुआ था। उसका नाम था कैन और उसका जन्म बहुत अहमियत रखता था। इससे पहले ना तो उसके माता-पिता ने, न ही स्वर्गदूतों ने, यहाँ तक कि खुद इंसान को बनानेवाले सिरजनहार ने भी कभी कोई छोटा बच्चा नहीं देखा था। अभी-अभी जन्मा यह शिशु, पाप के अंधकार में फँसे इंसानों के लिए उजाले की किरण बन सकता था। लेकिन, कितने दुःख की बात है कि यही बच्चा बड़ा होकर एक हत्यारा बना! (1 यूहन्ना 3:12) तब से इंसानों ने कितनी ही हत्याएँ होते देखी हैं। इंसान, जिसका मन बुराई करने में ही लगा रहता है, वह ना तो दूसरे इंसानों के साथ शान्ति से जी पाया है ना ही परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप कर पाया है।—उत्पत्ति 6:5; यशायाह 48:22.
2, 3. यीशु मसीह ने हमारे लिए क्या मुमकिन कर दिया और ये आशीषें पाने के लिए हमें क्या करना होगा?
2 कैन के जन्म के करीब चार हज़ार साल बाद, एक और बच्चे का जन्म हुआ। उसका नाम यीशु था और उसका जन्म भी खास अहमियत रखता था। उसका जन्म एक कुँवारी के गर्भ से परमेश्वर की पवित्र शक्ति के ज़रिए हुआ था। इस तरह आज तक किसी और का जन्म नहीं हुआ। यीशु के जन्म के वक्त, बहुत-से स्वर्गदूतों ने परमेश्वर की स्तुति में यह गीत गया: “आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।” (लूका 2:13,14) यीशु बड़ा होकर हत्यारा नहीं बना बल्कि उसने इंसानों के लिए परमेश्वर के साथ शान्ति का रिश्ता कायम करने और अनन्त जीवन पाने का रास्ता खोल दिया।—यूहन्ना 3:16; 1 कुरिन्थियों 15:55.
3 यशायाह ने भविष्यवाणी की थी कि यीशु “शान्ति का शासक” कहलाएगा। (यशायाह 9:6, नयी हिन्दी बाइबिल) वह इंसानों की खातिर अपनी जान कुरबान करेगा, जिससे हमारे पापों की क्षमा मुमकिन होगी। (यशायाह 53:11) यीशु मसीह पर विश्वास के ज़रिए ही आज परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप किया जा सकता है और अपने पापों की क्षमा पायी जा सकती है। लेकिन ये आशीषें अपने-आप ही नहीं मिल जातीं। (कुलुस्सियों 1:21-23) जो ये आशीषें पाना चाहते हैं, उन्हें यहोवा परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना सीखना होगा। (1 पतरस 3:11. इब्रानियों 5:8,9 से तुलना कीजिए।) मगर यशायाह के दिनों में, इस्राएल और यहूदा के लोग इससे बिलकुल उलटे काम कर रहे हैं।
दुष्टात्माओं की ओर फिरना
4, 5. यशायाह के ज़माने के हालात कैसे हैं, और कुछ लोग किसका सहारा ले रहे हैं?
4 यहोवा की आज्ञा न मानने की वजह से यशायाह के ज़माने के लोगों का चालचलन और सोच-विचार बहुत बिगड़ चुका है। वे आध्यात्मिक मायनों में ऐसे गहरे कूएँ में गिर पड़े हैं जहाँ अंधेरे के सिवा और कुछ नहीं है। यहाँ तक कि दक्षिण में यहूदा राज्य में भी जहाँ परमेश्वर का मंदिर है, शान्ति नहीं है। उन्होंने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया है, इसलिए अश्शूरी उन पर खतरे की तरह मंडरा रहे हैं और अब बहुत बुरे दिन आनेवाले हैं। ऐसे में मदद के लिए वे किसे पुकारते हैं? अफसोस, ज़्यादातर लोग यहोवा के बजाय शैतान की शरण में जाते हैं। ऐसा नहीं कि वे शैतान के नाम का जाप करके उसे जगा रहे हैं। मगर प्राचीनकाल के राजा शाऊल की तरह ये लोग भी अपनी मुश्किलों का हल ढूँढ़ने के लिए भूतविद्या और ओझाओं का सहारा लेकर मरे हुओं से पूछ रहे हैं।—1 शमूएल 28:1-20.
5 कुछ लोग तो दूसरों को भी भूतविद्या में शामिल होने का बढ़ावा दे रहे हैं। यशायाह ऐसे धर्मत्याग की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहता है: “जब लोग तुम से कहें कि ओझाओं और टोन्हों के पास जाकर पूछो जो गुनगुनाते और फुसफुसाते हैं, तब तुम यह कहना कि क्या प्रजा को अपने परमेश्वर ही के पास जाकर न पूछना चाहिये? क्या जीवतों के लिये मुर्दों से पूछना चाहिये?” (यशायाह 8:19) ओझा और जादू-टोना करनेवाले लोग, ‘गुनगुनाकर और फुसफुसाकर’ दूसरों को धोखा दे सकते हैं। वे दावा करते हैं कि ये आवाज़ें मरे हुओं की आत्माओं की हैं, मगर यह भी हो सकता है कि वह ओझा खुद ही एक पेटबोले की तरह बिना होंठ हिलाए ये आवाज़ें निकाल रहा हो। लेकिन, जैसा एन्दोर की जादूगरनी से पूछताछ करनेवाले शाऊल के किस्से से मालूम पड़ता है, कभी-कभी दुष्टात्माएँ भी मरे हुओं का स्वाँग भरकर लोगों से बात करती हैं।—1 शमूएल 28:8-19.
6. भूतविद्या की ओर फिरनेवाले इस्राएली खासकर दोषी क्यों हैं?
6 यह सब कुछ यहूदा में हो रहा है जबकि यहोवा ने अपने लोगों को भूतविद्या में शामिल होने से सख्त मना किया था। मूसा की व्यवस्था के मुताबिक जादू-टोना और भूतविद्या ऐसे जुर्म हैं जिन्हें करनेवाला सज़ाए-मौत के लायक था। (लैव्यव्यवस्था 19:31; 20:6,27; व्यवस्थाविवरण 18:9-12) लेकिन जो लोग यहोवा की अपनी निज संपत्ति हैं वे इतना गंभीर पाप क्यों कर रहे हैं? क्योंकि उन्होंने यहोवा की व्यवस्था और उसकी सलाह पर चलना छोड़ दिया है और “पाप के छल में आकर कठोर हो” गए हैं। (इब्रानियों 3:13) “उनका मन चर्बी के समान मोटा हो गया है,” और वे अपने परमेश्वर से दूर हो गए हैं। (फुटनोट)—भजन 119:70.a
7. आज बहुत-से लोग कैसे यशायाह के दिनों के यहूदियों की तरह हैं, और अगर ये लोग पश्चाताप न करें तो उनका भविष्य क्या होगा?
7 शायद ये लोग अपने दिलों में कह रहे हैं, ‘अश्शूरी किसी भी वक्त हम पर हमला करके हमें तबाह कर सकते हैं, ऐसे में यहोवा की व्यवस्था भला हमारे किस काम आएगी?’ उन्हें अपनी मुसीबत से तुरन्त छुटकारा चाहिए और वह भी एकदम आसानी से। इसलिए वे नहीं चाहते कि उन्हें यहोवा के भरोसे रहना पड़े जो अपने ही ठहराए हुए वक्त में अपनी मरज़ी पूरी करेगा। हमारे दिनों में भी, बहुत-से लोग यहोवा के नियमों को नज़रअंदाज़ करते हुए ओझाओं से जाकर भविष्य पूछते हैं, जन्म कुंडलियाँ देखते हैं और अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के जादू और तंत्र-मंत्र का सहारा लेते हैं। मगर, चाहे तब की बात हो या आज की, ज़िंदा लोगों का मरे हुओं से अपना भविष्य पूछना कितनी बेतुकी बात है। जो लोग पश्चाताप नहीं करते और इन कामों में लगे रहते हैं, उनका भविष्य “हत्यारों और व्यभिचारियों, और . . . मूर्तिपूजकों, और सब झूठों” के साथ होगा। उनके लिए भविष्य में जीवन की कोई उम्मीद नहीं है।—प्रकाशितवाक्य 21:8.
परमेश्वर की “व्यवस्था और साक्षी”
8. मार्गदर्शन पाने के लिए हमें किस “व्यवस्था और साक्षी” की तरफ जाना चाहिए?
8 यहोवा की व्यवस्था में जादू-टोना करने की साफ मनाही थी। यह नियम और परमेश्वर की दूसरी आज्ञाएँ यहूदा के लोगों से छिपी नहीं थीं बल्कि ये लिखित में मौजूद थीं। और आज परमेश्वर का पूरा वचन लिखित रूप में मौजूद है। बाइबल ही वह वचन है जिसमें ना सिर्फ परमेश्वर के सभी नियम और आज्ञाएँ दर्ज़ हैं, बल्कि इसमें यह भी लिखा है कि परमेश्वर ने प्राचीनकाल में अपने चुने हुए लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया था। यहोवा के व्यवहार के बारे में बाइबल की ये घटनाएँ एक साक्षी या गवाही हैं जो हमें उसके स्वभाव और उसके गुणों के बारे में सिखाती हैं। इसलिए इस्राएलियों को मरे हुओं से पूछताछ करने के बजाय, मार्गदर्शन पाने के लिए कहाँ जाना चाहिए? यशायाह जवाब देता है: “व्यवस्था और साक्षी पर ध्यान दो!” (यशायाह 8:20क, NHT) जी हाँ, जो लोग सच्चा ज्ञान ढूँढ़ रहे हैं, उन्हें परमेश्वर के लिखित वचन में खोज करनी चाहिए।
9. बुरे काम ना छोड़नेवाले पापी बार-बार बाइबल के हवाले देने से क्या कोई फायदा पाएँगे?
9 कुछ इस्राएली जो भूतविद्या में फँसे हुए हैं, वे शायद यह दावा करते हैं कि वे परमेश्वर के लिखित वचन का दिल से आदर करते हैं। मगर उनके ये सारे दावे खोखले और एक ढकोसला हैं। यशायाह कहता है: “बेशक, वे इस वचन के अनुसार बोलते रहेंगे जिसमें भोर का उजियाला न होगा।” (यशायाह 8:20ख, NW) यशायाह यहाँ किस वचन की बात कर रहा है? शायद इस वचन की: “व्यवस्था और साक्षी पर ध्यान दो!” हो सकता है कि कुछ धर्मत्यागी इस्राएली, परमेश्वर के वचन का उसी तरह हवाला देकर बात करते हैं, जैसे आज के धर्मत्यागी और दूसरे लोग बाइबल के हवाले दे-देकर बातें करते हैं। मगर उनकी सारी बातें सिर्फ एक ढकोसला हैं। बाइबल के हवाले देने से उन्हें “भोर का उजियाला न” मिलेगा यानी यहोवा से उन्हें ज्ञान की रोशनी नहीं मिलेगी। क्योंकि वे बाइबल के हवाले तो देते हैं मगर न तो वे यहोवा की इच्छा पूरी करते हैं, न ही अपने गंदे काम छोड़ते हैं।b
‘रोटी का अकाल नहीं’
10. यहोवा को ठुकराने की वजह से यहूदा के लोगों पर क्या बीत रही है?
10 यहोवा की आज्ञाएँ तोड़नेवाले इंसानों की बुद्धि अंधकारमय हो जाती है। (इफिसियों 4:17,18) आध्यात्मिक अर्थ में, यहूदा के लोग अंधे हो चुके हैं, उनके पास समझ नहीं है। (1 कुरिन्थियों 2:14) उनकी हालत के बारे में यशायाह कहता है: “वे इस देश में क्लेशित और भूखे फिरते रहेंगे।” (यशायाह 8:21क) यहूदा के लोगों के विश्वासघात की वजह से उनकी आज़ादी खतरे में पड़ गयी है, खासकर आहाज के राज में। उन्हें दुश्मनों ने चारों तरफ से घेर लिया है। अश्शूर की सेना एक-के-बाद-एक यहूदा देश के नगरों पर हमला कर रही है। दुश्मन सारी उपजाऊ ज़मीन को बरबाद करता जा रहा है, इसलिए खाने के लाले पड़ रहे हैं। बहुत-से लोग “क्लेशित और भूखे” हैं। मगर इस देश को एक और किस्म की भूख भी सता रही है। इसके बारे में, कुछ दशक पहले आमोस ने भविष्यवाणी की थी: “प्रभु यहोवा की यह वाणी है: ‘देखो, ऐसे दिन आनेवाले हैं जबकि मैं इस देश में अकाल भेजूंगा। यह अकाल रोटी या पानी का नहीं वरन् यहोवा के वचन सुनने का होगा।’” (आमोस 8:11, NHT) इस वक्त यहूदा में ऐसा ही आध्यात्मिक अकाल पड़ा हुआ है!
11. यहूदा को जो ताड़ना मिली है, क्या वह उससे सबक सीखेगा?
11 क्या यहूदा इससे सबक सीखकर यहोवा की ओर फिरेगा? क्या उसके लोग भूतविद्या और मूर्तिपूजा को छोड़कर फिर से “व्यवस्था और साक्षी पर ध्यान” देंगे? यहोवा जानता है कि वे क्या करेंगे: “जब वे भूखे होंगे, तब वे क्रोध में आकर अपने राजा और अपने परमेश्वर को शाप देंगे, और अपना मुख ऊपर आकाश की ओर उठाएंगे।” (यशायाह 8:21ख) जी हाँ, बहुत-से लोग ऐसी हालत के लिए अपने राजा को कसूरवार ठहराएँगे। कुछ लोग तो अपनी मुसीबतों के लिए यहोवा को ही दोषी ठहराने की मूर्खता करेंगे! (यिर्मयाह 44:15-18 से तुलना कीजिए।) आज भी बहुत-से लोग ऐसा ही करते हैं। इंसान अपनी दुष्टता की वजह से खुद पर मुसीबतें लाता है, मगर दोष परमेश्वर पर लगाया जाता है।
12. (क) परमेश्वर को छोड़ने की वजह से यहूदा का क्या हाल हुआ है? (ख) कौन-से ज़रूरी सवाल खड़े हो गए हैं?
12 क्या परमेश्वर को शाप देने से यहूदा के लोगों को शान्ति मिलेगी? नहीं। यशायाह भविष्यवाणी करता है: “तब वे पृथ्वी की ओर दृष्टि करेंगे; परन्तु उन्हें सकेती और अन्धियारा अर्थात् संकट भरा अन्धकार ही देख पड़ेगा; और वे घोर अन्धकार में ढकेल दिए जाएंगे।” (यशायाह 8:22) अपनी आँखें ऊपर उठाकर परमेश्वर को दोष देने के बाद, वे नीचे ज़मीन पर अपनी बुरी दशा को देखते हैं, जिससे उबरने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती। परमेश्वर को छोड़ देने से उन पर मुसीबतें आ गयी हैं। (नीतिवचन 19:3) मगर, परमेश्वर ने इब्राहीम, इसहाक और याकूब से जो वादे किए थे, उनका क्या होगा? (उत्पत्ति 22:15-18; 28:14,15) क्या यहोवा अपने वादे से मुकर जाएगा? क्या अश्शूरी या किसी और देश की ताकतवर फौजें यहूदा के राजसी वंश को खत्म कर डालेंगी, जबकि यहोवा ने वादा किया था कि यहूदा के राजा, दाऊद के वंशज ही होंगे? (उत्पत्ति 49:8-10; 2 शमूएल 7:11-16) क्या इस्राएली हमेशा के लिए घोर अंधकार में ढकेल दिए जाएँगे?
देश जिसका “अपमान किया” गया
13. ‘ग़ैरयहूदियों का गलील’ क्या है, और किस तरह इसका “अपमान किया” गया?
13 अब यशायाह, इब्राहीम के वंशजों पर आयी सबसे बड़ी विपत्ति की ओर इशारा करते हुए कहता है: “जो वेदना में थी उसके लिए अन्धकार बना न रहेगा। पूर्व काल में उसने जबूलून और नप्ताली के देशों का अपमान किया, परन्तु बाद के दिनों में वह समुद्र के तीर, यरदन के उस पार ग़ैरयहूदियों के गलील को महिमान्वित करेगा।” (यशायाह 9:1, NHT) गलील का इलाका, उत्तर के इस्राएल राज्य का इलाका है। यशायाह की भविष्यवाणी में बताए गए इस इलाके में ‘जबूलून और नप्ताली के देश’ भी शामिल हैं और “समुद्र के तीर” पर बना एक प्राचीन मार्ग भी शामिल है जो गलील सागर के किनारे से निकलता हुआ भूमध्य सागर की ओर जाता था। यशायाह के दिनों में इस इलाके को ‘ग़ैरयहूदियों का गलील’ कहा गया है, शायद इसलिए कि इसके बहुत-से नगरों में गैरयहूदी या अन्यजातियों के लोग रहते थे।c किस तरह इस देश का “अपमान किया” गया? विधर्मी अश्शूरियों ने इस देश पर कब्ज़ा कर लिया और इस्राएलियों को बंधुआ बनाकर ले गए और उनकी जगह उन्होंने सारे देश में अन्यजाति के लोगों को बसा दिया जो इब्राहीम के वंशज नहीं थे। इस तरह इतिहास में, दस गोत्रों से बने उत्तर के इस्राएल राज्य की हस्ती मिट गयी!—2 राजा 17:5,6,18,23,24.
14. किस अर्थ में दस गोत्रोंवाले राज्य के “अन्धकार” की तुलना में, यहूदा देश का “अन्धकार” कम होगा?
14 यहूदा पर भी अश्शूरियों का दबाव बढ़ता जा रहा है। जिस तरह दस गोत्रों का राज्य, जिसे जबूलून और नप्ताली कहा गया है, हमेशा के लिए “अन्धकार” में खो गया था, क्या यहूदा का राज्य भी हमेशा के लिए खो जाएगा? जी नहीं। “बाद के दिनों में” यहोवा, दक्षिण में बसे यहूदा राज्य को आशीष देगा और उस इलाके को भी आशीष देगा जिस पर पहले उत्तरी राज्य का अधिकार था। कैसे?
15, 16. (क) किन “बाद के दिनों” में “जबूलून और नप्ताली के देशों” की हालत बदल जाएगी? (ख) जिस देश का अपमान किया गया उसे महिमान्वित कैसे किया गया?
15 इस सवाल का जवाब हमें प्रेरित मत्ती देता है। उसने परमेश्वर की प्रेरणा पाकर, यीशु की सेवकाई का रिकॉर्ड लिखा और यह बताते हुए कि इस सेवकाई की शुरूआत कैसी थी, उसने कहा: “[यीशु] नासरत को छोड़कर कफरनहूम में जो झील के किनारे जबूलून और नपताली के देश में है जाकर रहने लगा। ताकि जो यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो। कि जबूलून और नपताली के देश, झील के मार्ग से यरदन के पार अन्यजातियों का गलील। जो लोग अन्धकार में बैठे थे उन्हों ने बड़ी ज्योति देखी; और जो मृत्यु के देश और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।”—मत्ती 4:13-16.
16 यशायाह ने जिन “बाद के दिनों” की भविष्यवाणी की थी, वे इस धरती पर मसीह की सेवकाई के दिन थे। यीशु की ज़्यादातर ज़िंदगी गलील में ही बीती थी। गलील प्रांत में ही उसने अपनी सेवकाई शुरू की और यह प्रचार करने लगा: “स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती 4:17) गलील में ही उसने अपना मशहूर पहाड़ी उपदेश दिया था, वहीं अपने प्रेरितों को चुना था, वहीं पहला चमत्कार किया था और अपने पुनरुत्थान के बाद लगभग 500 चेलों को वहीं दिखायी दिया था। (मत्ती 5:1–7:27; 28:16-20; मरकुस 3:13,14; यूहन्ना 2:8-11; 1 कुरिन्थियों 15:6) इस तरह, यीशु ने “जबूलून और नप्ताली के देशों” की महिमा करके यशायाह की भविष्यवाणी पूरी की। बेशक, यीशु ने सिर्फ गलील के लोगों को ही प्रचार नहीं किया था। उसने सारे देश में सुसमाचार का प्रचार करके, सारी इस्राएल जाति को और यहूदा को भी ‘महिमान्वित किया।’
“बड़ी ज्योति”
17. गलील में “बड़ी ज्योति” कैसे चमकी?
17 लेकिन, मत्ती ने गलील में जिस “बड़ी ज्योति” का ज़िक्र किया उसके बारे में क्या कहा जा सकता है? यह भी यशायाह की भविष्यवाणी का ही हवाला था। यशायाह ने लिखा: “जो लोग अन्धियारे में चल रहे थे उन्हों ने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी।” (यशायाह 9:2) पहली सदी तक, झूठे धर्म की शिक्षाओं की वजह से सच्चाई की ज्योति छिपी हुई थी। और-तो-और, यहूदी धर्मगुरुओं ने इस मुश्किल को और भी बढ़ा दिया, क्योंकि वे अपनी धार्मिक परंपराओं से बुरी तरह चिपके रहे जिनसे उन्होंने “परमेश्वर के वचन को व्यर्थ कर दिया” था। (मत्ती 15:6, NHT) जो दीन थे उन्हें सताया जा रहा था, उन्हें समझ नहीं आता था कि वे कहाँ जाएँ, इसलिए वे इन ‘अन्धे अगुवों’ की बतायी राह पर चलते थे। (मत्ती 23:2-4,16) मगर जब मसीहा यानी यीशु प्रकट हुआ, तो बहुत से दीन जनों की आँखें अद्भुत तरीके से खुल गयीं। (यूहन्ना 1:9,12) यीशु ने इस धरती पर जो काम किए और उसके बलिदान से जो आशीषें मिलीं, उन्हें यशायाह की भविष्यवाणी में सही मायनों में “बड़ा उजियाला” या ज्योति कहा गया है।—यूहन्ना 8:12.
18, 19. जिन लोगों ने इस उजियाले को स्वीकार किया, वे क्यों बहुत खुश हुए?
18 जिन लोगों ने इस उजियाले को स्वीकार किया उन्हें ढेरों खुशियाँ मिलीं। यशायाह आगे कहता है: “तू ने जाति को बढ़ाया, तू ने उसको बहुत आनन्द दिया; वे तेरे साम्हने कटनी के समय का सा आनन्द करते हैं, और ऐसे मगन हैं जैसे लोग लूट बांटने के समय मगन रहते हैं।” (यशायाह 9:3) यीशु और उसके चेलों के प्रचार की वजह से, सच्चे दिल के लोग आगे आए और उन्होंने आत्मा और सच्चाई से यहोवा की उपासना करने की इच्छा ज़ाहिर की। (यूहन्ना 4:24) चार साल से भी कम समय के अंदर, हज़ारों लोग मसीही बने। सा.यु. 33 में पिन्तेकुस्त के दिन तीन हज़ार लोगों का बपतिस्मा हुआ। और उसके कुछ ही समय बाद, “उन की गिनती पांच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।” (प्रेरितों 2:41; 4:4) जब यीशु के चेलों ने पूरे जोश के साथ यह उजियाला फैलाया, तब “यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया।”—प्रेरितों 6:7.
19 यीशु के चेलों को यह बढ़ोतरी देखकर वैसी ही खुशी मिल रही थी जैसी भरपूर फसल काटने पर या लड़ाई में दुश्मन को हराकर उसका लूटा हुआ धन आपस में बाँटने पर मिलती है। (प्रेरितों 2:46,47) कुछ समय बाद, यहोवा ने यह उजियाला अन्यजाति के लोगों पर भी फैलाना शुरू किया। (प्रेरितों 14:27) इसलिए सारी जातियों के लोग इस बात से आनंदित हुए कि यहोवा के करीब जाने का रास्ता अब उनके लिए भी खुल गया है।—प्रेरितों 13:48.
“जैसे मिद्यानियों के दिन में”
20. (क) किन तरीकों से मिद्यानियों ने इस्राएलियों के खिलाफ दुश्मनी दिखायी, और इस खतरे को यहोवा ने कैसे दूर किया? (ख) आनेवाले “मिद्यानियों के दिन” में यीशु कैसे, यहोवा के लोगों के दुश्मनों का सर्वनाश कर देगा?
20 मसीहा ने जो कुछ किया उसका असर सदा तक रहेगा, जैसे कि यशायाह के अगले शब्दों से नज़र आता है: “तू ने उसकी गर्दन पर के भारी जूए और उसके बहंगे के बांस, उस पर अंधेर करनेवाले की लाठी, इन सभों को ऐसा तोड़ दिया है जैसे मिद्यानियों के दिन में किया था।” (यशायाह 9:4) यशायाह के ज़माने से कई सदियाँ पहले, मिद्यानियों ने मोआबियों के साथ मिलकर साज़िश रची ताकि वे इस्राएलियों को फंदे में फँसाकर उनसे पाप करवाएँ। (गिनती 25:1-9,14-18; 31:15,16) बाद में, मिद्यानी सात साल तक आतंक मचाते रहे, इस्राएलियों के गाँवों और खेतों पर हमला करके उन्हें लूटते रहे। (न्यायियों 6:1-6) मगर, तब यहोवा ने अपने सेवक गिदोन के ज़रिए मिद्यान की सेना को इतनी बुरी तरह से मारा कि “मिद्यानियों के [उस] दिन” के बाद, यह ज़िक्र नहीं मिलता कि उन्होंने फिर कभी यहोवा के लोगों पर ज़ुल्म ढाए हों। (न्यायियों 6:7-16; 8:28) इसी तरह बहुत जल्द महान गिदोन, यीशु मसीह भी आज के ज़माने में यहोवा के लोगों के दुश्मनों का सर्वनाश कर देगा। (प्रकाशितवाक्य 17:14; 19:11-21) उस वक्त, किसी इंसान की ताकत से नहीं बल्कि “जैसे मिद्यानियों के दिन में” हुआ था, वैसे ही यहोवा की शक्ति से पूरी तरह और हमेशा के लिए जीत हासिल होगी। (न्यायियों 7:2-22) परमेश्वर के लोगों को फिर कभी ज़ुल्म का जूआ नहीं सहना पड़ेगा!
21. यशायाह की भविष्यवाणी के मुताबिक भविष्य में युद्ध का क्या होगा?
21 परमेश्वर ने कभी-भी युद्ध और हिंसा को बढ़ावा देने के मकसद से अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया है। पुनरुत्थान पा चुका यीशु, शान्ति का शासक है और वह सदा की शान्ति लाने के लिए ही अपने दुश्मनों का नामो-निशान मिटाएगा। यशायाह अब बताता है कि युद्ध में इस्तेमाल होनेवाली हर चीज़ कैसे आग में भस्म कर दी जाएगी: “युद्ध में धप धप करने वाले प्रत्येक योद्धा के जूते, और खून में सने कपड़े जलाने के लिए आग का ईंधन ही होंगे।” (यशायाह 9:5, NHT) युद्ध लड़ने के लिए जा रहे सैनिकों के जूतों की कदम-ताल फिर कभी सुनायी नहीं पड़ेगी। पत्थर-दिल सैनिकों के खून से सने कपड़े फिर कभी नज़र नहीं आएँगे। फिर कभी युद्ध नहीं होगा, वह हमेशा के लिए मिट जाएगा!—भजन 46:9.
“अद्भुत परामर्शदाता”
22. यशायाह की किताब की भविष्यवाणी में यीशु को कौन-कौन-से खिताबोंवाला नाम दिया गया है?
22 जिस बच्चे का जन्म चमत्कार से हुआ और जो बड़ा होकर मसीहा बना, उसका नाम यीशु रखा गया, जिसका मतलब है “यहोवा ही उद्धार है।” मगर यीशु को और भी कई खिताब दिए गए जिनसे पता लगता है कि उसकी खास ज़िम्मेदारियाँ क्या-क्या होंगी और उसका दर्जा कितना ऊँचा होगा। ऐसा ही एक नाम है इम्मानुएल जिसका मतलब है, “ईश्वर हमारे संग है।” (यशायाह 7:14, फुटनोट) यशायाह अब भविष्यवाणी में एक और नाम या खिताब के बारे में बताता है: “हमारे लिए एक बालक का जन्म हुआ है; हमें एक पुत्र दिया गया है। राज-सत्ता उसके कंधों पर है। उसका यह नाम रखा जाएगा: ‘अद्भुत परामर्शदाता, शक्तिमान ईश्वर, शाश्वत [“अनन्तकाल का,” NHT] पिता, शान्ति का शासक।’” (यशायाह 9:6, नयी हिन्दी बाइबिल) आइए देखें कि इस भविष्यवाणी में बताए गए इतने बेहतरीन खिताबोंवाले नाम का क्या मतलब है।
23, 24. (क) यीशु किस मायने में “अद्भुत परामर्शदाता” है? (ख) आज मसीही कलीसिया में सलाह देनेवाले कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं?
23 परामर्शदाता वह होता है जो किसी को सलाह दे या समझाए। पृथ्वी पर रहते वक्त यीशु मसीह ने बहुत ही अद्भुत सलाहें दी थीं। बाइबल में लिखा है कि “भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई” थी। (मत्ती 7:28) वह बहुत ही बुद्धिमान और दूसरों की भावनाओं को समझनेवाला सलाहकार है। उसे इंसान के स्वभाव की असाधारण समझ है। वह परामर्श देते वक्त सिर्फ ताड़ना या फटकार नहीं सुनाता, बल्कि ज़्यादातर समय वह बड़े प्यार से समझाता है कि हमें क्या करना चाहिए। यीशु की सलाह इसलिए अद्भुत है, क्योंकि यह बुद्धि से भरी और एकदम सिद्ध है और हमेशा अचूक होती है। अगर हम यीशु की सलाह को मानें तो इससे हमें अनंत जीवन मिलेगा।—यूहन्ना 6:68.
24 यीशु की सलाह उसकी अपनी बेजोड़ बुद्धि की उपज नहीं है। वह खुद बताता है: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्ना 7:16) जैसे सुलैमान के मामले में था, वैसे ही यीशु को बुद्धि और समझ देनेवाला यहोवा परमेश्वर ही है। (1 राजा 3:7-14; मत्ती 12:42) यीशु की मिसाल देखकर, मसीही कलीसिया में शिक्षा और सलाह देनेवालों को यह प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे हमेशा परमेश्वर के वचन, बाइबल के आधार पर ही सलाह दें।—नीतिवचन 21:30.
“शक्तिमान ईश्वर” और ‘अनन्तकाल का पिता’
25. “शक्तिमान ईश्वर,” यह नाम हमें स्वर्ग में मौजूद यीशु के बारे में क्या बताता है?
25 यीशु “शक्तिमान ईश्वर” और ‘अनन्तकाल का पिता’ भी है। इसका मतलब यह नहीं कि वह, “हमारे पिता परमेश्वर” यहोवा के अधिकार और ओहदे को हथियाकर खुद उसकी जगह ले लेता है। (2 कुरिन्थियों 1:2) “[यीशु] ने . . . परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।” (फिलिप्पियों 2:6) उसे शक्तिमान ईश्वर कहा गया है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं। यीशु ने कभी अपने आप को सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं समझा, क्योंकि अपने पिता के बारे में बात करते वक्त उसने उसे ‘अद्वैत सच्चा परमेश्वर’ कहा, यानी एक ही सच्चा परमेश्वर जो उपासना पाने का हकदार है। (यूहन्ना 17:3; प्रकाशितवाक्य 4:11) बाइबल में, शब्द ‘ईश्वर’ का मतलब “शक्तिमान” या “शक्तिशाली” भी हो सकता है। (निर्गमन 12:12; भजन 8:5; 2 कुरिन्थियों 4:4) ज़मीन पर आने से पहले, यीशु “परमेश्वर के स्वरूप” में “एक ईश्वर” था। अपने पुनरुत्थान के बाद, वह स्वर्ग वापस गया और उसे पहले से ज़्यादा ऊँचा स्थान दिया गया। (यूहन्ना 1:1, NW; फिलिप्पियों 2:6-11) और यीशु की इस उपाधि यानी “ईश्वर” से एक और बात समझ में आती है। इस्राएल के न्यायियों को भी “ईश्वर” कहा जाता था और खुद यीशु ने एक बार उन्हें ईश्वर कहा। (भजन 82:6; यूहन्ना 10:35) इससे पता चलता है कि यहोवा ने यीशु को न्यायाधीश नियुक्त किया है, “जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा।” (2 तीमुथियुस 4:1; यूहन्ना 5:30) इसीलिए तो यीशु को एकदम सही नाम दिया गया है, शक्तिमान ईश्वर।
26. यीशु को ‘अनन्तकाल का पिता’ क्यों कहा जा सकता है?
26 ‘अनन्तकाल का पिता’ यह उपाधि, मसीहाई राजा की ताकत और उसके अधिकार को दिखाती है। जी हाँ, यीशु को यह अधिकार है कि वह पृथ्वी पर इंसानों को अनन्त जीवन दे। (यूहन्ना 11:25,26) हमारे पहले पिता, आदम ने हमें विरासत में मौत दी थी। मगर अंतिम आदम, यानी यीशु “जीवनदायक आत्मा बना।” (1 कुरिन्थियों 15:22,45; रोमियों 5:12,18) जैसे अनन्तकाल का पिता यीशु सदा तक जीएगा, उसी तरह धरती पर उसकी आज्ञा माननेवाले इंसान सदा तक अपने इस पिता से आशीषें पाते रहेंगे।—रोमियों 6:9.
“शान्ति का शासक”
27, 28. ‘शान्ति के शासक’ की प्रजा को अभी और भविष्य में कैसी-कैसी अद्भुत आशीषें मिलती हैं?
27 अनन्त जीवन पाने के अलावा, इंसान को परमेश्वर के साथ और दूसरे इंसानों के साथ भी शान्ति हासिल करने की ज़रूरत है। आज भी, जिन लोगों ने खुद को ‘शान्ति के शासक’ की राज-सत्ता के अधीन किया है, ‘वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बना’ चुके हैं। (यशायाह 2:2-4) वे राजनीति, सरहदों, जातियों या अमीरी-गरीबी के नाम पर अपने दिलों में दूसरों के खिलाफ नफरत नहीं पालते। वे सभी मिलकर एक ही सच्चे परमेश्वर यहोवा की उपासना करते हैं और उनकी यह कोशिश रहती है कि वे कलीसिया में अपने भाई-बहनों के साथ और बाहरवालों के साथ भी शान्ति से रहें।—गलतियों 6:10; इफिसियों 4:2,3; 2 तीमुथियुस 2:24.
28 परमेश्वर के ठहराए हुए वक्त पर, यीशु मसीह इस पृथ्वी पर ऐसी शान्ति लाएगा जो चारों तरफ फैल जाएगी, हमेशा तक बनी रहेगी और कभी खत्म नहीं होगी। (प्रेरितों 1:7) “उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा, इसलिये वह उसको दाऊद की राजगद्दी पर इस समय से लेकर सर्वदा के लिये न्याय और धर्म के द्वारा स्थिर किए और संभाले रहेगा।” (यशायाह 9:7क) शान्ति के शासक की हैसियत से अपना अधिकार चलाते वक्त, यीशु किसी तानाशाह की तरह काम नहीं करेगा। उसकी प्रजा के लोगों पर ज़बरदस्ती अधिकार नहीं चलाया जाएगा, ना ही उनसे अपनी मरज़ी के मुताबिक काम करने की आज़ादी छीनी जाएगी। इसके बजाय, वह जो कुछ करेगा वह “न्याय और धर्म के द्वारा” किया जाएगा। सचमुच, इंसान के राज करने के तरीके से यह कितना अलग होगा!
29. अगर हम सदा की शान्ति पाना चाहते हैं तो हमें क्या करना चाहिए?
29 भविष्यवाणी में दिए गए यीशु के खिताबोंवाले नाम से हमें कितना कुछ समझ में आता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, जब हम यशायाह की इस भविष्यवाणी के आखिरी शब्द पढ़ते हैं तो वाकई हमारे रोम-रोम में सिहरन दौड़ जाती है। वह लिखता है: “सेनाओं के यहोवा की धुन के द्वारा यह हो जाएगा।” (यशायाह 9:7ख) जी हाँ, यहोवा हर काम पूरी धुन और पूरे जोश से करता है। वह कोई भी काम अधूरे मन से नहीं करता। हम यकीन रख सकते हैं कि वह जो भी वादा करता है, उसे ज़रूर पूरा करेगा। इसलिए, जो कोई सदा की शान्ति पाना चाहता है, उसे पूरे दिल से यहोवा की सेवा करनी चाहिए। हमारी दुआ है कि यहोवा परमेश्वर और शान्ति के शासक, यीशु की तरह परमेश्वर के सभी सेवक “भले भले कामों में सरगर्म” या जोशीले हों।—तीतुस 2:14.
[फुटनोट]
a बहुत-से लोग मानते हैं कि भजन 119 को हिजकिय्याह ने राजा बनने से पहले लिखा था। अगर ऐसा है तो यह भजन शायद तब लिखा गया था जब यशायाह, यहूदा देश में भविष्यवाणी कर रहा था।
b यशायाह 8:20 में शब्द “इस वचन,” का इशारा शायद यशायाह 8:19 में भूतविद्या के बारे में कही गयी बातों की तरफ है। अगर ऐसा है तो यशायाह यह कह रहा है कि यहूदा में भूतविद्या को बढ़ावा देनेवाले लोग, दूसरों को ओझाओं के पास जाने को उकसाते रहेंगे और इसलिए उन्हें यहोवा की तरफ से ज्ञान की रोशनी नहीं मिलेगी।
c कुछ विद्वान कहते हैं कि गलील के 20 नगर जिन्हें राजा सुलैमान ने राजा हीराम को देने की पेशकश की थी, वे शायद यही नगर थे जिनमें गैर-इस्राएली रहते थे।—1 राजा 9:10-13.
[पेज 122 पर नक्शा/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
खुराजीन
बैतसैदा
कफरनहूम
गन्नेसरत का मैदान
गलील सागर
मगदन
तिबिरियास
यरदन नदी
गडारा
गडारा
[पेज 119 पर तसवीरें]
कैन और यीशु दोनों का जन्म खास अहमियत रखता था। मगर सिर्फ यीशु के जन्म का नतीजा अच्छा निकला
[पेज 121 पर तसवीर]
ऐसा अकाल पड़ेगा जो रोटी और पानी के अकाल से भी कहीं ज़्यादा भयंकर होगा
[पेज 127 पर तसवीर]
यीशु, देश के लिए ज्योति था