‘तुम्हें पवित्र होना है क्योंकि मैं पवित्र हूं’
“तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूं।” —लैव्यव्यवस्था १९:२.
१. ऐसे कौन-से कुछ लोग हैं जिन्हें संसार पवित्र समझता है?
संसार के अधिकांश बड़े-बड़े धर्मों में ऐसे लोग होते हैं जिन्हें वे पवित्र समझते हैं। भारतीय कीर्ति की मदर टॆरीसा को ग़रीबों के प्रति उसके समर्पण की वजह से अकसर पवित्र माना जाता है। पोप को “पवित्र पिता” कहा जाता है। आधुनिक कैथोलिक आंदोलन, ओपुस डेई के प्रवर्तक होसे मॉरीआ एस्क्रीबा को कुछ कैथोलिक “पवित्रता का आदर्श” मानते हैं। हिन्दू धर्म में स्वामी, या साधु-संत होते हैं। गाँधीजी को एक महात्मा के तौर पर श्रद्धा दी जाती थी। बौद्ध धर्म में मुनि, और इस्लाम में पाक नबी होते हैं। लेकिन पवित्र होने का सही-सही क्या मतलब है?
२, ३. (क) शब्द “पवित्र” और “पवित्रता” का क्या अर्थ है? (ख) कौन-से कुछ सवाल हैं जिनके जवाब दिए जाने की ज़रूरत है?
२ शब्द “पवित्र” की निम्नलिखित परिभाषा दी गयी है, “१. . . . ईश्वरीय शक्ति के साथ सम्बन्धित; पावन होना। २. उपासना के लिए या श्रद्धा के योग्य समझा जाना . . . ३. कड़ी या उच्च स्तर की नैतिक धार्मिक या आध्यात्मिक व्यवस्था के अनुसार जीना . . . ४. किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए सुनिश्चित किया गया या अलग रखा गया।” बाइबलीय संदर्भ में, पवित्रता का अर्थ है “धार्मिक स्वच्छता या शुद्धता; पावनता।” बाइबल संदर्भ रचना, शास्त्र पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी) के मुताबिक़, “मूल इब्रानी [शब्द] कोधेश अलगाव, अनन्यता, या परमेश्वर के प्रति पवित्रीकरण का विचार देता है, . . . परमेश्वर की सेवा के लिए अलग रखे जाने की अवस्था।”a
३ इस्राएल की जाति को पवित्र रहने के लिए आदेश दिया गया था। परमेश्वर की व्यवस्था में लिखा था: “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; इस कारण अपने को शुद्ध करके पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।” पवित्रता का स्रोत कौन था? अपरिपूर्ण इस्राएली पवित्र कैसे बन सकते थे? और हम आज पवित्रता के लिए यहोवा की पुकार से अपने लिए क्या सबक़ पा सकते हैं?—लैव्यव्यवस्था ११:४४.
पवित्रता के स्रोत से इस्राएल कैसे सम्बन्धित था
४. यहोवा की पवित्रता की मिसाल इस्राएल में किस प्रकार दी गयी थी?
४ इस्राएल की यहोवा परमेश्वर की उपासना से सम्बन्धित सभी चीज़ों को पवित्र समझा जाना था और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना था। ऐसा क्यों था? क्योंकि ख़ुद यहोवा पवित्रता का उद्गम और स्रोत है। पवित्र निवास-स्थान और परिधानों और सजावट की तैयारी के बारे में मूसा का वृत्तान्त इन शब्दों से समाप्त होता है: “अंततः उन्होंने चोखे सोने से एक चमकदार पट्ट, अर्थात् समर्पण का पवित्र चिन्ह बनाया और उस पर एक मोहर की छाप से एक उत्कीर्णन उत्कीर्ण किया: ‘पवित्रता यहोवा की है।’” चोखे सोने का यह चमकदार पट्ट महायाजक की पगड़ी पर लगाया जाता था, और यह सूचित करता था कि वह विशेष पवित्रता की सेवा के लिए अलग रखा गया था। जब वे इस खुदे हुए चिन्ह को धूप में चमकता हुआ देखते, तो इस्राएलियों को नियमित रूप से यहोवा की पवित्रता की याद दिलायी जाती थी।—निर्गमन २८:३६; २९:६; ३९:३०, NW.
५. अपरिपूर्ण इस्राएलियों को पवित्र कैसे समझा जा सकता था?
५ लेकिन इस्राएली पवित्र कैसे बन सकते थे? केवल यहोवा के साथ अपने निकट सम्बन्ध और उसके प्रति अपनी शुद्ध उपासना के द्वारा। उन्हें “परमपवित्र ईश्वर” के बारे में यथार्थ ज्ञान की ज़रूरत थी ताकि वे उसकी उपासना पवित्रता से, शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धता से कर सकें। (नीतिवचन २:१-६; ९:१०) इसीलिए इस्राएलियों को परमेश्वर की उपासना शुद्ध हेतु और एक शुद्ध हृदय से करनी थी। किसी भी प्रकार की कपटपूर्ण उपासना यहोवा को घृणित होती।—नीतिवचन २१:२७.
यहोवा ने इस्राएल की क्यों निन्दा की
६. मलाकी के दिन के यहूदियों ने यहोवा की मेज़ के साथ कैसा सलूक किया?
६ यह बात स्पष्ट रूप से सचित्रित की गयी थी जब इस्राएली बेमन-से मन्दिर में घटिया, दोषपूर्ण बलिदान लाते थे। अपने भविष्यवक्ता मलाकी के ज़रिए, यहोवा ने उनकी घटिया भेंटों की निन्दा की: “सेनाओं के यहोवा का यह वचन है, मैं तुम से कदापि प्रसन्न नहीं हूं, और न तुम्हारे हाथ से भेंट ग्रहण करूंगा। . . . परन्तु तुम लोग उसको यह कहकर अपवित्र ठहराते हो कि यहोवा की मेज़ अशुद्ध है, और जो भोजनवस्तु उस पर से मिलती है वह भी तुच्छ है। फिर तुम यह भी कहते हो, कि यह कैसा बड़ा उपद्रव है! सेनाओं के यहोवा का यह वचन है। तुम ने उस भोजनवस्तु के प्रति नाक-भौं सिकोड़ी, और अत्याचार से प्राप्त किए हुए और लंगड़े और रोगी पशु की भेंट ले आते हो! क्या मैं ऐसी भेंट तुम्हारे हाथ से ग्रहण करूं? यहोवा का यही वचन है।”—मलाकी १:१०, १२, १३.
७. सामान्य युग पूर्व पाँचवीं शताब्दी में यहूदी कौन-से अपवित्र कार्य कर रहे थे?
७ परमेश्वर ने यहूदियों के झूठे रिवाज़ों की निन्दा करने के लिए मलाकी का इस्तेमाल किया, संभवतः सा.यु.पू. पाँचवीं शताब्दी के दौरान। याजक एक बुरा आदर्श रख रहे थे, और उनका आचरण किसी भी तरीक़े से पवित्र नहीं था। इस अगुआई का अनुकरण करते हुए लोग अपने सिद्धान्तों में ढीले थे, यहाँ तक कि वे अपनी पत्नियों को तलाक़ देते थे, संभवतः इसलिए ताकि वे जवान मूर्तिपूजक पत्नियों से विवाह कर सकें। मलाकी ने लिखा: “यहोवा तेरे और तेरी उस जवानी की संगिनी और ब्याही हुई स्त्री के बीच साक्षी हुआ था जिस का तू ने विश्वासघातb किया है। . . . तुम अपनी आत्मा के विषय में चौकस रहो, और तुम में से कोई अपनी जवानी की स्त्री से विश्वासघात न करे। क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, कि मैं स्त्री-त्याग से घृणा करता हूं।”—मलाकी २:१४-१६.
८. तलाक़ पर आधुनिक दृष्टिकोण से मसीही कलीसिया के कुछ लोग कैसे प्रभावित हुए हैं?
८ आधुनिक समय में, ऐसे अनेक देशों में जहाँ तलाक़ आसानी से मिल जाता है, वहाँ तलाक़-दर ऊँचाइयाँ छू रही हैं। मसीही कलीसिया भी प्रभावित हुई है। बाधाओं को लांघने में प्राचीनों की मदद माँगने और अपने विवाह को सफल बनाने की कोशिश करने के बजाय, कुछ लोगों ने इसे बहुत ही जल्दी परे रख दिया है। अकसर बच्चों को एक ऊँची भावात्मक क़ीमत चुकाने के लिए छोड़ दिया जाता है।—मत्ती १९:८, ९.
९, १०. यहोवा की हमारी उपासना पर हमें किस प्रकार विचार करना चाहिए?
९ जैसे हमने पहले देखा, मलाकी के दिन की शोचनीय आध्यात्मिक स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए, यहोवा ने स्पष्ट रूप से यहूदा की सतही उपासना की निन्दा की और दिखाया कि वह केवल शुद्ध उपासना स्वीकार करेगा। क्या इससे हमें यहोवा परमेश्वर, विश्व के सर्वसत्ताधारी प्रभु अर्थात् असल पवित्रता के स्रोत, की हमारी उपासना की गुणवत्ता पर विचार नहीं करना चाहिए? क्या हम वास्तव में परमेश्वर को पवित्र सेवा दे रहे हैं? क्या हम अपने आपको आध्यात्मिक रूप से एक स्वच्छ स्थिति में रखते हैं?
१० इसका यह अर्थ नहीं है कि हमें परिपूर्ण होना ज़रूरी है, जो कि असम्भव है, या हमें अपनी तुलना दूसरों के साथ करनी चाहिए। लेकिन इसका यह अर्थ ज़रूर है कि प्रत्येक मसीही को परमेश्वर को ऐसी उपासना देनी चाहिए जो उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अधीन उसका सर्वोत्तम है। यह हमारी उपासना की गुणवत्ता को सूचित करती है। हमारी पावन सेवा को हमारा सर्वोत्तम—पवित्र सेवा—होना चाहिए। यह कैसे निष्पन्न होता है?—लूका १६:१०; गलतियों ६:३, ४.
शुद्ध हृदय शुद्ध उपासना की ओर ले जाते हैं
११, १२. अपवित्र आचरण कहाँ से उत्पन्न होता है?
११ यीशु ने स्पष्ट रूप से सिखाया कि व्यक्ति की कथनी और करनी से जो उसके हृदय में है वह प्रत्यक्ष हो जाएगा। यीशु ने आत्म-धर्मी, फिर भी अपवित्र फरीसियों से कहा: “हे सांप के बच्चो, तुम बुरे होकर क्योंकर अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है।” बाद में उसने दिखाया कि बुरे कर्म हृदय, या आन्तरिक व्यक्ति के बुरे विचारों से निकलते हैं। उसने कहा: “जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्योंकि कुचिन्ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती हैं। येही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।”—मत्ती १२:३४; १५:१८-२०.
१२ यह हमें समझने में मदद देता है कि अपवित्र कर्म मात्र साहजिक नहीं होते या बिना किसी पूर्व आधार के नहीं होते। ये दूषित विचारों का परिणाम होते हैं जो हृदय में छिपे हुए रहते हैं—गुप्त इच्छाएँ और शायद स्वैरकल्पनाएँ। इसीलिए यीशु कह सका: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” दूसरे शब्दों में, किसी क्रिया से पहले ही परस्त्रीगमन और व्यभिचार हृदय में जड़ पकड़ चुके हैं। फिर, सही परिस्थिति मिलने पर, वे अपवित्र विचार अपवित्र आचरण बन जाते हैं। परस्त्रीगमन, व्यभिचार, लौंडेबाज़ी, चोरी, ईशनिन्दा, और धर्मत्याग कुछ प्रत्यक्ष परिणाम बन जाते हैं।—मत्ती ५:२७, २८; गलतियों ५:१९-२१.
१३. अपवित्र विचार अपवित्र कार्यों की ओर कैसे ले जा सकते हैं, इसके कौन-से कुछ उदाहरण हैं?
१३ इसे विभिन्न तरीक़ों से सचित्रित किया जा सकता है। कुछ देशों में, जुएख़ाने शीघ्र बढ़ रहे हैं, और इस प्रकार जुआ खेलने के अवसर को बढ़ाते हैं। व्यक्ति अपनी आर्थिक समस्याओं को हल करने की कोशिश में इस आभासी-हल का सहारा लेने के लिए प्रलोभित हो सकता है। भ्रामक तर्क शायद एक भाई को अपने बाइबल सिद्धान्तों को ठुकराने या उनके महत्त्व को कम करने के लिए प्रेरित करे।c दूसरे मामले में, अश्लील साहित्य की सहज सुलभता, चाहे वह टीवी, वीडियो, कम्प्यूटरों, या पुस्तकों के ज़रिए हो, एक मसीही को अपवित्र आचरण की ओर ले जा सकती है। उसे केवल अपने आध्यात्मिक हथियारों की उपेक्षा करने की ज़रूरत है, और उसके एहसास होने से पहले ही, वह अनैतिकता में पड़ चुका है। लेकिन अधिकांश मामलों में, पाप की ओर ढलाव मन से शुरू होता है। जी हाँ, ऐसी स्थितियों में, याकूब के शब्दों की पूर्ति होती है: “प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनता है।”—याकूब १:१४, १५; इफिसियों ६:११-१८.
१४. अपने अपवित्र आचरण से अनेक लोग कैसे सम्भले हैं?
१४ ख़ुशी की बात है कि अनेक मसीही जो कमज़ोरी की वजह से पाप करते हैं सच्चा पश्चात्ताप दिखाते हैं, और ऐसे लोगों को प्राचीन आध्यात्मिक रूप से पुनःसमंजित करने में समर्थ होते हैं। ऐसे अनेक जन भी जो पश्चात्ताप की कमी की वजह से बहिष्कृत किए जाते हैं अंततः अपने होश में आते हैं और कलीसिया में पुनःस्थापित किए जाते हैं। उन्हें यह एहसास होता है कि जब उन्होंने अपवित्र विचारों को हृदय में जड़ पकड़ने दिया, तब कितनी आसानी से शैतान ने उन्हें बहका दिया।—गलतियों ६:१; २ तीमुथियुस २:२४-२६; १ पतरस ५:८, ९.
चुनौती—अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करना
१५. (क) हमें अपनी कमज़ोरियों को स्वीकारना क्यों ज़रूरी है? (ख) कौन-सी बात हमें अपनी कमज़ोरियों को मानने में मदद दे सकती है?
१५ हमें अपने हृदय को वस्तुगत दृष्टि से जानने का प्रयास करना चाहिए। क्या हम अपनी कमज़ोरियों को स्वीकारने, उन्हें मानने, और उन पर विजय पाने के लिए कार्य करने के वास्ते इच्छुक हैं? क्या हम एक सच्चे मित्र से यह पूछने कि हम कैसे उन्नति कर सकते हैं, और फिर सलाह को सुनने के लिए इच्छुक हैं? पवित्र बने रहने के लिए हमें अपनी ख़ामियों पर विजय पाना ज़रूरी है। क्यों? क्योंकि शैतान हमारी कमज़ोरियों को जानता है। वह हमें पाप करने और अपवित्र आचरण में पड़ने के लिए उकसाने के लिए अपनी धूर्त चालों का इस्तेमाल करेगा। अपनी धूर्त युक्तियों के द्वारा, वह हमें परमेश्वर के प्रेम से जुदा करने की कोशिश करता है ताकि हम यहोवा की उपासना के लिए पवित्रीकृत तथा उपयोगी न रहें।—यिर्मयाह १७:९; इफिसियों ६:११; याकूब १:१९.
१६. पौलुस को कौन-सा संघर्ष करना पड़ा?
१६ प्रेरित पौलुस की अपनी तकलीफ़ें और परीक्षाएँ थीं, जैसे उसने रोमियों के नाम अपनी पत्री में प्रमाणित किया: “मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु बास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूं। . . . मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था की बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।”—रोमियों ७:१८-२३.
१७. कमज़ोरियों के साथ अपने संघर्ष में पौलुस कैसे विजयी हुआ?
१७ अब पौलुस के मामले में अनिवार्य मुद्दा यह है कि उसने अपनी कमज़ोरियों को माना। इनके बावजूद वह कह सका: “मैं भीतरी [आध्यात्मिक] मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं।” पौलुस अच्छी बातों से प्रेम और बुरी बातों से घृणा करता था। लेकिन फिर भी उसके सामने एक लड़ाई थी, वही लड़ाई जो हम सब के सामने है—शैतान, संसार, और देह के विरुद्ध लड़ाई। सो हम इस संसार और इसके सोच-विचार से अलग होकर पवित्र बने रहने की लड़ाई कैसे जीत सकते हैं?—२ कुरिन्थियों ४:४; इफिसियों ६:१२.
हम कैसे पवित्र बने रह सकते हैं?
१८. हम कैसे पवित्र बने रह सकते हैं?
१८ सबसे आसान रास्ता अपनाने से या असंयमी होने से पवित्रता हासिल नहीं होती। उस प्रकार का व्यक्ति अपने आचरण के लिए हमेशा बहाने बनाता रहेगा और कहीं और दोष थोपने की कोशिश करेगा। शायद हमें अपने कार्यों के लिए ज़िम्मेदार होना सीखना है और उन कुछ लोगों की तरह नहीं होना है, जो दावा करते हैं कि पारिवारिक पृष्ठभूमि या आनुवंशिकी की वजह से किस्मत उन पर हावी हो गयी। मामले की जड़ उस व्यक्ति के हृदय में है। क्या वह धार्मिकता से प्रेम करता या करती है? पवित्रता के लिए तरसता या तरसती है? परमेश्वर की आशीष का/की इच्छुक है? भजनहार ने पवित्रता की ज़रूरत को स्पष्ट किया जब उसने कहा: “बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूंढ़ और उसी का पीछा कर।” प्रेरित पौलुस ने लिखा: “प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो।”—भजन ३४:१४; ९७:१०; रोमियों १२:९.
१९, २०. (क) हम अपने मन को कैसे मज़बूत कर सकते हैं? (ख) प्रभावकारी व्यक्तिगत अध्ययन में क्या-क्या शामिल है?
१९ यदि हम यहोवा के दृष्टिकोण से विषयों को देखते हैं और यदि हमारे पास मसीह का मन है, तो हम ‘भलाई में लगे रह’ सकते हैं। (१ कुरिन्थियों २:१६) यह कैसे निष्पन्न होता है? परमेश्वर के वचन के नियमित अध्ययन और उस पर नियमित मनन के द्वारा। कितनी ही बार यह सलाह दी जा चुकी है! लेकिन क्या हम इसे पर्याप्त गम्भीरता से लेते हैं? उदाहरण के लिए, क्या आप वास्तव में सभा में आने से पहले बाइबल पाठों की जाँच करते हुए इस पत्रिका का अध्ययन करते हैं? अध्ययन से हमारा यह अर्थ नहीं है कि हरेक अनुच्छेद में मात्र चन्द वाक्यांशों को रेखांकित करना। एक अध्ययन लेख पर तक़रीबन १५ मिनट में एक सरसरी नज़र दौड़ायी जा सकती है और उसे रेखांकित किया जा सकता है। क्या इसका यह अर्थ है कि हमने लेख का अध्ययन किया है? वास्तव में, प्रत्येक लेख जो आध्यात्मिक लाभ प्रस्तुत करता है उसका अध्ययन करने और उसे आत्मसात् करने के लिए एक या दो घंटे लग सकते हैं।
२० संभवतः हमें हर सप्ताह कुछ घंटों के लिए टीवी से दूर हटने और वास्तव में अपनी व्यक्तिगत पवित्रता पर एकाग्र होने के लिए अपने आपको अनुशासित करने की ज़रूरत है। हमारा नियमित अध्ययन हमें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करता है, जिससे हमारा मन सही निर्णय करने के लिए—ऐसे निर्णय जो “पवित्र चालचलन” की ओर ले जाते हैं—प्रेरित होता है।—२ पतरस ३:११; इफिसियों ४:२३; ५:१५, १६.
२१. कौन-से सवाल का जवाब दिया जाना बाक़ी है?
२१ अब सवाल यह है, किन अतिरिक्त गतिविधि और आचरण के क्षेत्रों में हम मसीहियों के तौर पर पवित्र हो सकते हैं, जिस प्रकार यहोवा पवित्र है? आगामी लेख विचार करने के लिए कुछ विषय प्रस्तुत करेगा।
[फुटनोट]
a यह दो-खण्डीय संदर्भ रचना, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित की गयी है।
b “विश्वासघात” का अर्थ क्या है, इसकी और पूरी-पूरी चर्चा के लिए, फरवरी ८, १९९४ की सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २१ पर “किस प्रकार के तलाक़ से परमेश्वर घृणा करता है?” देखिए।
c जुआ क्यों अपवित्र आचरण है, इस पर अधिक जानकारी के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अगस्त ८, १९९४ की सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ १४-१५ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ इस्राएल में पवित्रता के स्रोत की पहचान कैसे की गयी थी?
◻ किन तरीक़ों से मलाकी के दिन में इस्राएली उपासना अपवित्र थी?
◻ अपवित्र आचरण कहाँ से शुरू होता है?
◻ पवित्र होने के लिए, हमें क्या स्वीकारना चाहिए?
◻ हम कैसे पवित्र बने रह सकते हैं?