परमेश्वर का राज्य —क्या आप इसकी समझ पा रहे हैं?
“जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है।”—मत्ती १३:२३.
१. ‘स्वर्ग के राज्य’ के सम्बन्ध में कुछ आम विश्वास क्या हैं?
क्या आप ‘समझ’ पाए हैं कि परमेश्वर का राज्य क्या है? शताब्दियों के दौरान ‘स्वर्ग के राज्य’ की धारणाएँ व्यापक रूप से भिन्न रही हैं। आज गिरजे के कुछ सदस्यों के बीच यह आम विश्वास है कि राज्य ऐसी कुछ वस्तु है जिसे परमेश्वर धर्म-परिवर्तन के वक़्त एक व्यक्ति के हृदय में डालता है। अन्य लोग महसूस करते हैं कि यह एक ऐसी जगह है जहाँ अच्छे लोग मरने के बाद अनन्त सुख का आनन्द उठाने के लिए जाते हैं। और भी लोग दावा करते हैं कि परमेश्वर ने, सामाजिक और सरकारी मामलों में मसीही शिक्षाओं और अभ्यासों को मन में बिठाने के उनके कार्य द्वारा पृथ्वी पर राज्य लाना, मनुष्यों पर छोड़ दिया है।
२. बाइबल परमेश्वर के राज्य को कैसे समझाती है, और यह क्या निष्पन्न करेगा?
२ लेकिन, बाइबल स्पष्ट रूप से दिखाती है कि परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर कोई संस्थान नहीं है। यह न तो हृदय की कोई स्थिति है ना ही मानव समाज को ईसाई बनाना है। यह सच है कि इस बात की सही समझ कि यह राज्य क्या है, इसमें विश्वास करनेवालों के जीवन में बड़े-बड़े परिवर्तनों की ओर ले जाती है। लेकिन स्वयं राज्य ही ईश्वरीय रूप से संस्थापित स्वर्गीय सरकार है जो पाप और मृत्यु के प्रभाव को मिटाते हुए और पृथ्वी पर धार्मिक परिस्थितियों को पुनःस्थापित करते हुए, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करती है। पहले से ही यह राज्य स्वर्ग में सत्ता हासिल कर चुका है, और जल्द ही “वह उन सब [मानवी] राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।”—दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य ११:१५; १२:१०.
३. जब यीशु ने अपनी सेवकाई शुरू की, तो मनुष्यों के लिए क्या खोल दिया गया था?
३ इतिहासकार एच. जी. वॆल्स ने लिखा: “स्वर्ग के राज्य का यह धर्म-सिद्धान्त जो यीशु की मुख्य शिक्षा थी, और जो मसीही विश्वास में बहुत ही छोटी भूमिका अदा करता है, निश्चय ही सबसे क्रान्तिकारी धर्म-सिद्धान्तों में से एक रहा है जिसने कभी मानव विचार को झकझोरा और बदल दिया।” शुरूआत से ही, यीशु की सेवकाई का विषय था: “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती ४:१७) वह पृथ्वी पर अभिषिक्त राजा के तौर पर मौजूद था, और सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है कि मनुष्यों के लिए न केवल उस राज्य की आशिषों में भाग लेने के लिए बल्कि उस राज्य में यीशु के साथ संगी-शासक और याजक होने के लिए भी अब मार्ग खुल रहा था!—लूका २२:२८-३०; प्रकाशितवाक्य १:६; ५:१०.
४. पहली शताब्दी में, अनेक लोगों ने ‘राज्य के सुसमाचार’ के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और यह किस न्यायदण्ड की ओर ले गया?
४ जबकि अनेक लोगों ने ‘राज्य के’ रोमांचक “सुसमाचार” को सुना, केवल कुछ लोगों ने विश्वास किया। ऐसा अंशतः इसलिए था क्योंकि धार्मिक अगुओं ने “मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द कर” दिया था। (NHT) उन्होंने अपनी झूठी शिक्षाओं के द्वारा “ज्ञान की कुंजी ले . . . ली।” क्योंकि अधिकांश लोगों ने मसीहा और परमेश्वर के राज्य के अभिषिक्त राजा के रूप में यीशु को अस्वीकार किया, यीशु ने उनसे कहा: “परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।”—मत्ती ४:२३; २१:४३; २३:१३; लूका ११:५२.
५. यीशु के दृष्टान्तों को सुननेवाले उन अधिकांश लोगों ने कैसे दिखाया कि उन्होंने समझ सहित नहीं सुना?
५ एक मौक़े पर एक बड़ी भीड़ को सिखाते वक़्त यीशु ने, अपने रिवाज़ के मुताबिक़, भीड़ को परखने और राज्य में केवल सतही दिलचस्पी रखनेवालों को अलग करने के लिए कई दृष्टान्तों का इस्तेमाल किया। पहले दृष्टान्त में एक बोनेवाला शामिल था जिसने चार प्रकार की भूमि में बीज बोए। पहले तीन प्रकार की भूमि, पौधों को उगाने के लिए अनुकूल नहीं थी, लेकिन अन्तिम प्रकार की भूमि “अच्छी भूमि” थी जिसने अच्छा फल उत्पन्न किया। छोटा दृष्टान्त इस सलाह के साथ समाप्त हुआ: “जिस के कान हों वह [“ध्यान देकर,” NW] सुन ले।” (मत्ती १३:१-९) उपस्थित लोगों में से अधिकांश लोगों ने उसे सुना, लेकिन उन्होंने ध्यान देकर नहीं ‘सुना।’ उनमें यह जानने की कोई अभिप्रेरणा, कोई वास्तविक दिलचस्पी नहीं थी कि भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में बोया गया बीज कैसे स्वर्ग के राज्य के समान था। वे घर लौटकर अपने दैनंदिन जीवन में लग गए, संभवतः यह सोचकर कि यीशु के दृष्टान्त नैतिक विषयों वाली अच्छी कहानियों के सिवाय कुछ नहीं थे। चूँकि उनके हृदय अप्रतिक्रियाशील थे, उन्होंने क्या ही बढ़िया समझ और महान विशेषाधिकार और अवसर खो दिए!
६. “राज्य के भेदों” की समझ केवल यीशु के शिष्यों को क्यों दी गयी थी?
६ यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उन को नहीं।” यशायाह को उद्धृत करते हुए, उसने आगे कहा: “क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्हों ने अपनी आंखें मूंद ली हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्हें चंगा करूं। पर धन्य हैं तुम्हारी आंखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मत्ती १३:१०-१६; मरकुस ४:११-१३.
राज्य की ‘समझ पाना’
७. राज्य की ‘समझ’ पाना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
७ यीशु ने समस्या की नब्ज़ को पकड़ा। इसका ताल्लुक़ राज्य संदेश की ‘समझ’ पाने से था। अपने शिष्यों से उसने अकेले में कहा: “सो तुम बोनेवाले का दृष्टान्त सुनो। जो कोई राज्य का वचन सुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्ट आकर छीन ले जाता है।” उसने आगे समझाया कि चार प्रकार की भूमि, हृदय की उन विभिन्न परिस्थितियों को चित्रित करती हैं जिनमें “राज्य का वचन” बोया जाता। (तिरछे टाइप हमारे।)—मत्ती १३:१८-२३; लूका ८:९-१५.
८. पहले तीन प्रकार की भूमि में बोए गए “बीज” को किस बात ने फल उत्पन्न करने से रोका?
८ हर मामले में “बीज” अच्छा था, लेकिन फल भूमि की अवस्था पर निर्भर करता। यदि हृदय की भूमि एक व्यस्त, सख़्त बनी सड़क के समान थी, जो अनेक अनाध्यात्मिक गतिविधियों द्वारा कठोर बन गयी है तो राज्य संदेश सुननेवाले व्यक्ति को अपने लिए यह बहाना बनाना और कहना आसान होगा कि राज्य के लिए कोई समय नहीं था। उपेक्षित बीज को उसके जड़ पकड़ने से पहले ही आसानी से छीन लिया जा सकता था। लेकिन तब क्या यदि बीज पत्थरीली भूमि के सदृश हृदय में बोया गया हो? बीज शायद अंकुरित हो, लेकिन उसे पोषण और स्थायित्व के लिए अपनी जड़ों को कुछ गहराई तक भी भेजने में कठिनाई होती। परमेश्वर का एक आज्ञाकारी सेवक होने की सम्भावना, विशेषकर सताहट की तीव्रता में, अभिभूत करनेवाली चुनौती पेश करती, और वह व्यक्ति ठोकर खाता। और फिर, यदि हृदय की भूमि इतनी काँटे-समान चिन्ताओं से या दौलत के लिए भौतिकवादी इच्छा से भरी हुई होगी तो कमज़ोर राज्य पौधा घुट जाएगा। जीवन की इन तीन प्रारूपिक स्थितियों में, कोई राज्य फल उत्पन्न नहीं होगा।
९. अच्छी भूमि में बोया गया बीज अच्छा फल उत्पन्न करने में क्यों समर्थ हुआ?
९ लेकिन, अच्छी भूमि में बोए गए राज्य बीज के बारे में क्या? यीशु जवाब देता है: “जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती १३:२३) राज्य की ‘समझ’ पाने में, वे अपनी-अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों के मुताबिक़ अच्छा फल उत्पन्न करते।
समझ के साथ ज़िम्मेदारी आती है
१०. (क) यीशु ने कैसे दिखाया कि राज्य की ‘समझ’ पाना दोनों, आशिषें और ज़िम्मेदारी लाती है? (ख) जाकर चेला बनाने की यीशु की नियुक्ति क्या केवल पहली-शताब्दी के शिष्यों पर ही लागू होती है?
१० राज्य के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए छः और दृष्टान्त देने के बाद, यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा: “क्या तुम ने ये सब बातें समझीं?” (तिरछे टाइप हमारे।) जब उन्होंने “हां” में जवाब दिया, तब उसने कहा: “इसलिये हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान है जो अपने भण्डार से नईं और पुरानी वस्तुएं निकालता है।” यीशु द्वारा प्रदान की गयी शिक्षाएँ और प्रशिक्षण उसके शिष्यों को ऐसे प्रौढ़ मसीही बनाएगा जो अपने “भण्डार” से बढ़िया आध्यात्मिक भोजन की अन्तहीन सप्लाई निकाल सकता है। इसमें से अधिकांश परमेश्वर के राज्य से सम्बन्धित है। यीशु ने स्पष्ट किया कि राज्य की ‘समझ’ पाना न केवल आशिषें लाएगा बल्कि ज़िम्मेदारी भी लाएगा। उसने आदेश दिया: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—मत्ती १३:५१, ५२; २८:१९, २०.
११. जब १९१४ आया, तब राज्य से सम्बन्धित कौन-सी घटनाएँ घटीं?
११ जैसे प्रतिज्ञा की गयी, शताब्दियों से लेकर आज तक यीशु ने अपने सच्चे शिष्यों के साथ रहना जारी रखा है। इन अन्तिम दिनों में, उसने उन्हें प्रगतिशील रूप से समझ दी है, और उसने उन्हें सत्य के बढ़ते प्रकाश के इस्तेमाल के लिए ज़िम्मेदार भी ठहराया है। (लूका १९:११-१५, २६) १९१४ में, राज्य घटनाएँ शीघ्र और नाटकीय रूप से घटने लगीं। उस साल, न केवल लम्बे समय से प्रत्याशित राज्य का “जन्म” हुआ बल्कि “रीति-व्यवस्था की समाप्ति” (NW) शुरू हुई। (प्रकाशितवाक्य ११:१५; १२:५, १०, NHT; दानिय्येल ७:१३, १४, २७) वर्तमान घटनाओं के अर्थ को समझते हुए, सच्चे मसीहियों ने इतिहास का सबसे बड़ा राज्य-प्रचार और शिक्षण अभियान संचालित किया है। यीशु ने इसे पूर्वबताया, उसने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती २४:१४.
१२. (क) व्यापक आधुनिक-दिन राज्य गवाही का परिणाम क्या रहा है? (ख) इस शक्की संसार में, मसीहियों के लिए क्या ख़तरा है?
१२ यह विशाल राज्य गवाही कार्य २३० से भी ज़्यादा देशों में पहुँच चुका है। पहले ही, कुछ ५० लाख सच्चे शिष्य इस कार्य में हिस्सा ले रहे हैं, तथा और भी लोग इकट्ठे किए जा रहे हैं। लेकिन यदि हम शिष्यों की संख्या की तुलना पृथ्वी के ५६० करोड़ निवासियों के साथ करें, तो यह स्पष्ट है कि यीशु के दिन की तरह, मनुष्यजाति का अधिकांश भाग राज्य की ‘समझ’ को नहीं पाता है। जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, अनेक लोग ठट्ठा करते हैं और कहते हैं: “उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई?” (२ पतरस ३:३, ४) मसीहियों के तौर पर हमारे लिए ख़तरा है कि उनकी आत्मसंतोष, शक्की, भौतिकवादी मनोवृत्ति आहिस्ता-आहिस्ता, जिस दृष्टिकोण से हम अपने राज्य विशेषाधिकारों को देखते हैं उसे प्रभावित कर सकती है। इस संसार के लोगों द्वारा घिरे होने की वजह से, हम आसानी से उनकी कुछ मनोवृत्तियों और अभ्यासों को अपनाना शुरू कर सकते हैं। यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि हम परमेश्वर के राज्य की ‘समझ’ पाएँ और उसे दृढ़ता से पकड़े रहें!
राज्य के सम्बन्ध में अपनी जाँच करना
१३. राज्य सुसमाचार के प्रचार की नियुक्ति के सम्बन्ध में, हम कैसे जाँच कर सकते हैं कि हम समझ के साथ ‘सुनना’ जारी रखे हुए हैं या नहीं?
१३ यीशु ने कटनी की इस अवधि के बारे में कहा, जिसमें हम जी रहे हैं: “मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे। . . . उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाईं चमकेंगे; जिस के कान हों वह सुन ले।” (मत्ती १३:४१, ४३) क्या आप राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के आदेश के प्रति आज्ञाकारी प्रतिक्रियाशीलता के साथ ‘सुनना’ जारी रखे हुए हैं? याद रखिए, “जो अच्छी भूमि में बोया गया” उसने ‘वचन को सुनकर समझा’ और अच्छा फल उत्पन्न किया।—मत्ती १३:२३.
१४. जब उपदेश दिया जाता है, तो हम कैसे दिखाते हैं कि हमने दी गयी सलाह को ‘समझा’ है?
१४ व्यक्तिगत अध्ययन करते वक़्त और मसीही सभाओं में उपस्थित होते वक़्त, हमें ‘अपना मन समझ की ओर लगाना’ है। (नीतिवचन २:१-४, NHT) आचरण, पहनावे, संगीत, और मनोरंजन के बारे में जब सलाह दी जाती है, तो हमें इसे अपने हृदयों में उतरने और कोई आवश्यक समंजन करने के लिए हमें प्रेरित करने देना है। कभी सफ़ाई पेश मत कीजिए, बहाने मत बनाइए, या फिर अनुक्रिया दिखाने से मत चूकिए। यदि राज्य हमारे जीवन में वास्तविक है, तो हम उसके स्तरों के अनुसार जीएँगे और दूसरों से इसके बारे में उत्साहपूर्वक घोषणा करेंगे। यीशु ने कहा: “जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।”—मत्ती ७:२१-२३.
१५. ‘पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहना’ क्यों महत्त्वपूर्ण है?
१५ मानवी प्रवृत्ति है आवश्यक रोटी, कपड़े, और मकान के लिए चिन्तित होना, लेकिन यीशु ने कहा: “परन्तु तुम पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो तो ये सब वस्तुएं तुम्हें दे दी जाएंगी।” (मत्ती ६:३३, ३४, NHT) प्राथमिकताओं को तय करते वक़्त, राज्य को अपने जीवन में पहले रखिए। आवश्यक वस्तुओं से संतुष्ट होते हुए अपने जीवन को सादा रखिए। अपने जीवन को अनावश्यक गतिविधियों और वस्तुओं से भर देना बेवकूफ़ी होगी, संभवतः यह सफ़ाई पेश करते हुए कि चूँकि यह ज़रूरी नहीं है कि ये चीज़ें अपने आप में बुरी हैं, ऐसा करना स्वीकार्य है। जबकि यह शायद सच हो, ऐसी अनावश्यक चीज़ों की प्राप्ति और इस्तेमाल हमारे व्यक्तिगत अध्ययन, मसीही सभाओं में उपस्थित होने, और प्रचार कार्य में भाग लेने की हमारी सारणी बनाने पर क्या असर करेगा? यीशु ने कहा कि राज्य एक व्यापारी की तरह है जिसे एक “बहुमूल्य मोती मिला [और] उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।” (मत्ती १३:४५, ४६) परमेश्वर के राज्य के बारे में हमें ऐसा ही महसूस करना चाहिए। हमें पौलुस का अनुकरण करना चाहिए, न कि देमास का जिसने सेवकाई को छोड़ दिया ‘क्योंकि उसने इस संसार को प्रिय जाना।’—२ तीमुथियुस ४:१०, १८; मत्ती १९:२३, २४; फिलिप्पियों ३:७, ८, १३, १४; १ तीमुथियुस ६:९, १०, १७-१९.
“अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे”
१६. परमेश्वर के राज्य की ‘समझ’ पाना ग़लत आचरण से दूर रहने में हमारी मदद कैसे करेगा?
१६ जब कुरिन्थ की कलीसिया अनैतिकता को बरदाश्त कर रही थी, तब पौलुस ने साफ़-साफ़ कहा: “क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्त्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।” (१ कुरिन्थियों ६:९, १०) यदि हम परमेश्वर के राज्य की ‘समझ’ पाते हैं, तो हम अपने आपको यह सोचने में धोखा नहीं देंगे कि जब तक यहोवा हमें मसीही सेवा में व्यस्त देखता है, तब तक वह किसी प्रकार की अनैतिकता को बरदाश्त करेगा। हमारे बीच अशुद्ध काम का ज़िक्र तक नहीं होना चाहिए। (इफिसियों ५:३-५) क्या आप पाते हैं कि इस संसार के कुछ गन्दे सोच-विचार या अभ्यास आपके जीवन में आहिस्ता-आहिस्ता घुस रहे हैं? उन्हें तुरन्त अपने जीवन से काट फेंकिए! राज्य बहुत बहुमूल्य है जिसे ऐसी वस्तुओं की ख़ातिर खोया नहीं जा सकता।—मरकुस ९:४७.
१७. परमेश्वर के राज्य के लिए मूल्यांकन किन तरीक़ों से नम्रता को बढ़ावा देगा और ठोकर दिलाने के कारणों को हटाएगा?
१७ यीशु के शिष्यों ने पूछा: “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” यीशु ने एक छोटे बच्चे को उनके मध्य रखकर जवाब दिया और कहा: “मैं तुम से सच कहता हूं, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा।” (मत्ती १८:१-६) घमण्डी, माँग करनेवाले, परवाह न करनेवाले, और उपद्रवी लोग परमेश्वर के राज्य में नहीं होंगे, ना ही वे राज्य की प्रजा होंगे। क्या आपके भाइयों के लिए आपका प्रेम, आपकी नम्रता, आपका ईश्वरीय भय, आपके आचरण द्वारा दूसरों को ठोकर दिलाने से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है? या क्या आप अपने “अधिकारों” पर अड़ जाते हैं चाहे इस मनोवृत्ति और आचरण से दूसरे कैसे भी प्रभावित क्यों न हों?—रोमियों १४:१३, १७.
१८. आज्ञाकारी मनुष्यजाति के लिए क्या परिणाम होगा जब परमेश्वर का राज्य, उसकी इच्छा “जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी” होने का कारण होगा?
१८ हमारा स्वर्गीय पिता, यहोवा, जल्द ही इस भावप्रवण प्रार्थना का पूरी तरह से जवाब देगा: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” जल्द ही शासन करनेवाला राजा, यीशु मसीह इस अर्थ में आएगा कि न्याय अर्थात् “भेड़ों” को “बकरियों” से अलग करने के लिए अपने सिंहासन पर विराजमान हो। उस नियुक्त समय पर, “राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।” बकरियाँ ‘अनन्त दण्ड भोगेंगी परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।’ (मत्ती ६:१०; २५:३१-३४, ४६) ‘बड़ा क्लेश’ पुरानी व्यवस्था और उन सभी को जो राज्य की ‘समझ’ पाने से इनकार करते हैं हटा देगा। लेकिन “बड़े क्लेश” के लाखों उत्तरजीवी और वे अरबों लोग जिन्हें पुनरुत्थित किया जाएगा, पुनःस्थापित पार्थिव परादीस में अन्तहीन राज्य आशिषों के वारिस होंगे। (प्रकाशितवाक्य ७:१४) राज्य पृथ्वी की नयी सरकार है जो स्वर्ग से शासन कर रही है। यह पृथ्वी और मनुष्यजाति के लिए यहोवा के उद्देश्य को पूरा करेगा, और यह सब उसके सबसे पवित्र नाम के पवित्रीकरण के लिए होगा। क्या वह ऐसी विरासत नहीं है जो कार्य किए जाने, त्याग किए जाने, और इन्तज़ार किए जाने के योग्य है? हमारे लिए राज्य की ‘समझ’ पाने का यही अर्थ होना चाहिए!
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ परमेश्वर का राज्य क्या है?
◻ यीशु के अधिकांश सुननेवालों ने राज्य की ‘समझ’ क्यों नहीं पायी?
◻ राज्य की ‘समझ’ पाना दोनों, आशिष और ज़िम्मेदारी कैसे लाता है?
◻ प्रचार के सम्बन्ध में, क्या सूचित करता है कि हमने राज्य की ‘समझ’ पायी है या नहीं?
◻ अपने आचरण द्वारा हम कैसे दिखाते हैं कि हमने दी गयी सलाह को ‘समझा’ है?
[पेज 17 पर तसवीरें]
यीशु के शिष्यों ने राज्य की ‘समझ’ पायी और अच्छा फल उत्पन्न किया