आत्म-बलिदान की आत्मा के साथ यहोवा की सेवा करना
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप को त्यागे और अपना यातना स्तंभ उठाए, और मेरे पीछे हो ले।”—मत्ती १६:२४, NW.
१. यीशु ने अपने शिष्यों को अपनी सन्निकट मृत्यु के बारे में कैसे बताया?
हिमशिखरीय हेर्मोन् पर्वत के पास, यीशु मसीह की ज़िन्दगी में एक मुख्य घड़ी आई। उसकी ज़िन्दगी का केवल एक साल से भी कम समय बाक़ी है। यह बात उसे पता है; उसके शिष्यों को नहीं। अब उनके जानने का समय आ गया है। यह सच है कि यीशु ने पहले भी अपनी सन्निकट मृत्यु का उल्लेख किया है, लेकिन यह पहली बार है कि उसने इसके बारे में इतनी स्पष्टतः बात की। (मत्ती ९:१५; १२:४०) मत्ती का वृत्तांत कहता है: “उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने लगा, कि मुझे अवश्य है, कि यरूशलेम को जाऊं, और पुरनियों और महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुख उठाऊं; और मार डाला जाऊं; और तीसरे दिन जी उठूं।”—मत्ती १६:२१; मरकुस ८:३१, ३२.
२. यीशु पर आनेवाले दुःखों के बारे में उसके शब्दों के प्रति पतरस की क्या प्रतिक्रिया थी?
२ यीशु की मृत्यु निकट है। लेकिन पतरस, इतना निराशाजनक प्रतीत होनेवाले विचार पर क्रुद्ध होता है। वह यह स्वीकार नहीं कर सकता कि मसीहा सचमुच मारा जाएगा। इसलिए, पतरस ने अपने स्वामी को झिड़कने की हिम्मत की। सर्वोतम इरादों से प्रेरित होकर, वह जल्दबाज़ी में आग्रह करता है: “हे प्रभु, परमेश्वर न करे; तुम पर ऐसा कभी न होगा।” परन्तु जैसे एक व्यक्ति निश्चित ही एक ज़हरीले साँप के सिर को कुचलता, वैसे ही यीशु तुरंत पतरस के अनुपयुक्त अनुग्रह को ठुकराता है। “हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो: तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”—मत्ती १६:२२, २३.
३. (क) पतरस ने अनजाने में कैसे अपने आपको शैतान का एक अभिकर्ता बनाया? (ख) एक आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी के प्रति पतरस कैसे एक ठोकर का कारण था?
३ पतरस ने अनजाने में अपने आपको शैतान का अभिकर्ता बनाया है। यीशु का प्रत्युत्तर उतना ही निश्चित है जितना कि तब था जब उसने जंगल में शैतान को उत्तर दिया। वहाँ इब्लीस ने यीशु को, बिना दुःख भोगे एक राजत्व, एक आराम की ज़िन्दगी के साथ प्रलोभित करने की कोशिश की। (मत्ती ४:१-१०) अब पतरस उसे अपने आप से अन्याय न करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यीशु जानता है कि यह उसके पिता की इच्छा नहीं। उसकी ज़िन्दगी आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी होनी थी, आत्म-संतोष की नहीं। (मत्ती २०:२८) ऐसी ज़िन्दगी बिताने में पतरस उसके लिए ठोकर का कारण बनता है; उसकी नेकनीयत सहानुभूति एक जाल बन जाती है।a लेकिन, यीशु स्पष्ट रीति से समझता है कि यदि उसने बलिदान से मुक्त एक ज़िन्दगी का विचार भी किया, तो वह एक शैतानी जाल के घातक चुंगल में फंसकर परमेश्वर के अनुग्रह को खो बैठेगा।
४. एक असंयमी आराम की ज़िन्दगी क्यों यीशु और उसके अनुयायियों के लिए नहीं थी?
४ इसलिए, पतरस की समझ में समंजन की ज़रूरत थी। यीशु को कहे गए उसके शब्द परमेश्वर के विचार के बजाय, मनुष्य के विचार को चित्रित करते थे। दुःख को न भोगने का एक आसान तरीक़ा, असंयमी आराम की ज़िन्दगी, यीशु के लिए नहीं थी; न ही ऐसी ज़िन्दगी उसके अनुयायियों के लिए थी, क्योंकि यीशु आगे पतरस से तथा बाक़ी के शिष्यों से कहता है: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप को त्यागे और अपना यातना स्तंभ उठाए, और मेरे पीछे हो ले।”—मत्ती १६:२४, NW.
५. (क) एक मसीही ज़िन्दगी जीने की क्या चुनौती है? (ख) एक मसीही को किन तीन आवश्यक चीज़ों के लिए तैयार रहना चाहिए?
५ बार-बार, यीशु इस मुख्य विषय को दोहराता है: मसीही ज़िन्दगी जीने की चुनौती। यीशु के अनुयायी होने के लिए, मसीहियों को, अपने अगुआ के समान, आत्म-बलिदान की आत्मा के साथ यहोवा की सेवा करनी चाहिए। (मत्ती १०:३७-३९) इस प्रकार, वह तीन आवश्यक बातों को सूचीबद्ध करता है, जिन्हें करने के लिए एक मसीही को तैयार होना चाहिए: (१) अपने आपको त्यागना, (२) अपने यातना स्तंभ को उठाना, और (३) लगातार उसका अनुगमन करना।
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे”
६. (क) एक व्यक्ति अपने आपको कैसे त्यागता है? (ख) अपने से ज़्यादा हमें किस को ख़ुश करना है?
६ अपने आपको त्यागने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति को अपने आपका पूर्ण रीति से इन्कार करना पड़ेगा, एक तरह से स्वयं के प्रति मृत्यु। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “त्याग करना” किया गया है, उसका मूल अर्थ है “ना कहना”; इसका अर्थ है “सम्पूर्ण रूप से इन्कार करना।” इसलिए, यदि आप मसीही ज़िन्दगी की चुनौती को स्वीकार करते हैं, आप स्वेच्छापूर्वक अपनी महत्वाकांक्षाओं, आराम, इच्छाओं, ख़ुशी, सुख-विलास को त्यागते हैं। सार में, आप अपनी सम्पूर्ण ज़िन्दगी और इसमें शामिल सब कुछ, यहोवा परमेश्वर को हमेशा के लिए सौंप देते हैं। स्वयं को त्यागना, कभी-कभार किसी सुख विलास से अपने आपको इन्कार करने से अधिक अर्थ रखता है। इसके बजाय, इसका अर्थ यह है कि एक व्यक्ति को स्वयं पर अधिकार त्यागकर यहोवा को दे देना चाहिए। (१ कुरिन्थियों ६:१९, २०) एक व्यक्ति जिसने स्वयं को त्यागा है, अपने आपको नहीं, बरन परमेश्वर को ख़ुश करने के लिए जीता है। (रोमियों १४:८; १५:३) इसका यह अर्थ है कि उसकी ज़िन्दगी के हर क्षण, वह स्वार्थी इच्छाओं को ना कहता है और यहोवा को हाँ कहता है।
७. एक मसीही का यातना स्तंभ क्या है, और वह इसे कैसे उठाता है?
७ इसलिए, अपने यातना स्तंभ को उठाने में गम्भीर बातें अंतर्ग्रस्त हैं। स्तंभ उठाना एक बोझ और मृत्यु का प्रतीक है। यदि ज़रूरत पड़ी, तो मसीही व्यक्ति यीशु मसीह के अनुयायी होने के कारण दुःख भोगने या लज्जित होने या सताए जाने या मरने को भी तैयार होता है। यीशु ने कहा: “जो अपना यातना स्तंभ लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं।” (मत्ती १०:३८, NW) सभी लोग जो दुःख भोगते हैं, यातना स्तंभ नहीं उठा रहे होते हैं। दुष्ट लोगों की बहुत-सी ‘पीड़ाएँ’ हैं लेकिन यातना स्तंभ नहीं। (भजन ३२:१०) परन्तु, मसीही व्यक्ति की ज़िन्दगी यहोवा के प्रति बलिदान संबंधी सेवा के यातना स्तंभ को उठाने की ज़िन्दगी है।
८. यीशु ने अपने अनुयायियों के लिए जीवन का क्या नमूना रखा?
८ यीशु की बतायी गई आख़री शर्त यह है कि हम लगातार उसका अनुगमन करें। यीशु हम से केवल यही मांग नहीं करता कि हम उसकी सिखाई हुई बातों को स्वीकार करके विश्वास करें, बल्कि यह भी कि हम, अपनी पूरी ज़िन्दगी, उस नमूने का लगातार अनुसरण करें, जो उसने हमारे लिए रखा। और उसकी ज़िन्दगी के नमूने में देखी जानेवाली कुछ प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? जब उसने अपने अनुयायियों को उनका आख़री नियुक्त-कार्य दिया, तब उसने कहा: “तुम जाकर . . . चेला बनाओ . . . और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती २८:१९, २०) यीशु ने राज्य के सुसमाचार को प्रचार किया और सिखाया। यही कार्य उसके सबसे पहले शिष्यों और, सच में, पूरी प्रारंभिक मसीही कलीसिया ने भी किया। संसार का भाग न होने के साथ-साथ, यह उत्साहपूर्वक क्रियाकलाप उन पर संसार की शत्रुता और विरोध लाया, जिसके कारण उनका यातना स्तंभ उठाना और भी भारी हो गया।—यूहन्ना १५:१९, २०; प्रेरितों ८:४.
९. यीशु ने दूसरे लोगों से कैसा व्यवहार किया?
९ अन्य लोगों के साथ उसका व्यवहार एक और विशिष्ट नमूना है जो यीशु की ज़िन्दगी में दिखाई दिया। वह कृपालु और “नम्र और मन में दीन” था। इस प्रकार, उसके श्रोताओं ने आत्मा में ताज़गी का अनुभव किया और वे उसकी उपस्थिति से प्रोत्साहित हुए। (मत्ती ११:२९) उसने उन्हें धमकाकर अपने पीछे आने को नहीं कहा और न ही नियम पर नियम बनाए कि उन्हें यह कैसा करना चाहिए; न ही उसने उन्हें दोषी महसूस करवाकर अपना शिष्य बनने के लिए मजबूर किया। उनकी आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी के बावजूद, वे सच्ची ख़ुशी विकिरण करते थे। यह उन लोगों की तुलना में क्या ही सुस्पष्ट वैषम्य है, जो लोग “अन्तिम दिनों” को चिह्नित करनेवाली भोगासक्ति की सांसारिक आत्मा रखते हैं!—२ तीमुथियुस ३:१-४.
यीशु की आत्म-बलिदान की आत्मा को विकसित कीजिए और इसे कायम रखिए
१०. (क) फिलिप्पियों २:५-८ के अनुसार, मसीह ने अपना त्याग कैसे किया? (ख) यदि हम मसीह के अनुयायी हैं, तो हमें कैसी मनोवृत्ति दिखानी चाहिए?
१० स्वयं को त्यागने में यीशु ने उदाहरण रखा। उसने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के द्वारा अपने यातना स्तंभ को उठाया और लगातार उठाए रखा। पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को लिखा: “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। बरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस [यातना स्तंभ, NW] की मृत्यु भी सह ली।” (फिलिप्पियों २:५-८) और कौन अपने आपको इतनी सम्पूर्ण रीति से त्याग सकता है? यदि आप मसीह यीशु के हैं और आप उसके एक अनुयायी हैं, तो आपको यह समान मनोवृत्ति रखनी चाहिए।
११. आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी जीने का अर्थ किसकी इच्छा के लिए जीना है?
११ एक और प्रेरित, पतरस, हमें बताता है कि क्योंकि यीशु ने हमारे लिए दुःख उठाया और अपनी जान दी, मसीहियों को सुसज्जित योद्धाओं के समान, अपने आपको उसी आत्मा के साथ शस्त्र-सज्जित करना चाहिए जो आत्मा यीशु में थी। वह लिखता है: “सो जब कि मसीह ने शरीर में होकर दुख उठाया तो तुम भी उस ही मनसा को धारण करके हथियार बान्ध लो क्योंकि जिस ने शरीर में दुख उठाया, वह पाप से छूट गया। ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं बरन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो।” (१ पतरस ३:१८; ४:१, २) यीशु की आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि वह इस विषय में कैसा महसूस करता था। वह अपनी भक्ति में एकनिष्ठ था, और हमेशा अपने पिता की इच्छा को अपनी इच्छी से ज़्यादा महत्त्व देता था, यहाँ तक कि एक घृणित मृत्यु भी सह ली।—मत्ती ६:१०; लूका २२:४२.
१२. क्या आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी यीशु को नापसंद थी? स्पष्ट कीजिए।
१२ चाहे यीशु की आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी अनुसरण करने के लिए कठिन और चुनौती भरी थी, तो भी यह उसे नापसन्द नहीं थी। इसके बजाय, यीशु ने अपने आप को ईश्वरीय इच्छा के अधीन करने में आनन्द लिया। उसके लिए, अपने पिता की इच्छा पूरी करना भोजन के समान था। उसे इससे सच्ची संतुष्टि प्राप्त हुई, जैसे एक व्यक्ति को अच्छे भोजन से संतुष्टि प्राप्त होती है। (मत्ती ४:४; यूहन्ना ४:३४) इस प्रकार, यदि आप सच में अपनी ज़िन्दगी में संतोष महसूस करना चाहते हैं, तो इससे अधिक उत्तम कार्य कोई नहीं कि आप यीशु के उदाहरण का अनुसरण करने के द्वारा उसकी मनोवृत्ति को विकसित करें।
१३. प्रेम कैसे आत्म-बलिदान की आत्मा को प्रेरित करनेवाली शक्ति है?
१३ सचमुच, आत्म-बलिदान की आत्मा को प्रेरित करनेवाली शक्ति कौन-सी है? एक ही शब्द में, प्रेम। यीशु ने कहा: “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती २२:३७-३९) एक मसीही स्वार्थी होने के साथ-साथ उन शब्दों का पालन नहीं कर सकता। सबसे पहले तो, यहोवा के लिए प्रेम और फिर पड़ोसी के लिए प्रेम के द्वारा उसे ख़ुद की ख़ुशी और हित को नियन्त्रित करना होगा। इसी प्रकार यीशु ने अपनी ज़िन्दगी व्यतीत की, और यही वह अपने अनुयायियों से भी अपेक्षा करता है।
१४. (क) इब्रानियों १३:१५, १६ में कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ समझायी गयी हैं? (ख) उत्साह के साथ सुसमाचार को प्रचार करने के लिए क्या हमें प्रोत्साहित करता है?
१४ प्रेरित पौलुस ने प्रेम के इस नियम को समझा। उसने लिखा: “हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें। पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है।” (इब्रानियों १३:१५, १६) मसीही लोग यहोवा को पशुओं की या ऐसी किसी चीज़ की बलि नहीं चढ़ाते हैं; इसलिए, उन्हें एक भौतिक मंदिर में उपासना के कार्य को निभाने के लिए मानवीय याजकों की ज़रूरत नहीं है। हमारा स्तुतिरूपी बलिदान मसीह यीशु द्वारा चढ़ाया जाता है। और हम परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम मुख्यतः उसी स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उसके नाम के अंगीकार के द्वारा दिखाते हैं। विशेषकर, प्रेम में सुस्थिर हमारी अस्वार्थी आत्मा हमें उत्साह के साथ सुसमाचार को प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित करती है, कि हम परमेश्वर को अपने होठों का फल चढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहने की कोशिश करें। इस तरीक़े से हम पड़ोसी के प्रति भी प्रेम दिखाते हैं।
आत्म-बलिदान प्रचुर आशिषें लाता है
१५. आत्म-बलिदान संबन्धित कौन-से प्रश्न हम अपने आप से पूछ सकते हैं?
१५ एक क्षण के लिए ठहरिए और निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिए: क्या मेरी ज़िन्दगी का वर्तमान नमूना एक आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी प्रदर्शित करता है? क्या मेरे लक्ष्य ऐसी ज़िन्दगी की ओर संकेत करते हैं? क्या मेरे परिवार के सदस्य मेरे उदाहरण से आध्यात्मिक लाभांश की कटनी काट रहे हैं? (१ तीमुथियुस ५:८ से तुलना कीजिए.) अनाथों और विधवाओं के बारे में क्या? क्या वे भी मेरी आत्म-बलिदान की आत्मा से लाभ उठाते हैं? (याकूब १:२७) क्या मैं अपने सार्वजनिक स्तुतिरूपी बलिदान में बिताए समय को बढ़ा सकता हूँ? क्या मैं पायनियर, बैथल, या मिशनरी सेवा के विशेषाधिकार की ओर बढ़ सकता हूँ, या क्या मैं एक ऐसे क्षेत्र में जाकर सेवा कर सकता हूँ जहाँ राज्य उद्घोषकों की ज़्यादा ज़रूरत है?
१६. एक आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी बिताने में पटुता हमारी मदद कैसे कर सकती है?
१६ आत्म-बलिदान की आत्मा के साथ पूर्ण सामर्थ्य से यहोवा की सेवा करने के लिए कभी-कभी सिर्फ़ थोड़ी-सी पटुता की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए, जैनट, इक्वेडोर में एक नियमित पायनियर, पूर्ण-समय नौक़री करती थी। जल्द ही, उसकी समय-सारणी के कारण उसे नियमित-पायनियर कार्य के आवश्यक घंटों को ख़ुशी-ख़ुशी पूरा करने में कठिनाई होने लगी। उसने अपने नियोक्ता को यह समस्या समझाने का निश्चय किया और कार्य के घंटों को कम करने के लिए निवेदन किया। चूँकि वह उसके कार्य के समय को कम करने के लिए राज़ी नहीं था, अगली बार वह अपने साथ मारीआ को ले गई, जो अंशकालिक नौकरी की खोज में थी ताकि वह पायनियर कार्य कर सके। दोनों ने पूरे दिन के काम को बाँटकर, आधा-आधा दिन काम करने का प्रस्ताव रखा। नियोक्ता ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। अब दोनों बहनें नियमित पायनियर हैं। इस अच्छे परिणाम को देखकर, काफ़ा, जो उसी कम्पनी के लिए पूर्ण-समय नौकरी करने के साथ-साथ अपने पायनियर कार्य के घंटों को पूरा करने की कोशिश करते करते थक गई थी, अपने साथ मागाली को ले गई और उसने नियोक्ता के आगे समान प्रस्ताव रखा। इसे भी स्वीकार किया गया। इस प्रकार, चार बहनें पायनियर कार्य करने में समर्थ हुई हैं, बजाय दो बहनों के जो कि पूर्ण-समय सेवा छोड़ने की सोच रही थीं। पटुता और पहल करने से लाभदायक फल मिले।
१७-२१. एक विवाहित दंपति ने ज़िन्दगी में अपने उद्देश्य पर कैसे पुनर्विचार किया, और परिणाम क्या हुआ?
१७ इसके अतिरिक्त, पिछले दस सालों से ईवोन की आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी पर विचार कीजिए। उसने मई १९९१ में वॉच टावर सोसाइटी को निम्नलिखित पत्र लिखा:
१८ “अक्तूबर १९८२ में, मेरे परिवार ने और मैंने ब्रुक्लिन बैथल की सैर की। इसको देखकर मुझ में वहाँ स्वेच्छा काम करने की इच्छा जागी। मैंने एक निवेदन-पत्र पढ़ा, और उसमें एक ध्यान देने योग्य प्रश्न था, ‘पिछले छः महीनों के लिए क्षेत्र सेवा में आपके औसतन घंटे क्या हैं? यदि औसतन घंटे दस से कम हैं, तो स्पष्ट कीजिए क्यों।’ मुझे कोई उचित कारण न मिला, इसलिए मैंने एक लक्ष्य रखा और पाँच महीनों के लिए इसे पूरा किया।
१९ “चाहे पायनियर कार्य न करने के लिए कई कारण मेरे मन में आए, पर जब मैंने यहोवा के गवाहों की १९८३ वार्षिक पुस्तक पढ़ी, तो मुझे विश्वास हुआ कि दूसरों ने पायनियर कार्य करने के लिए मेरी रुकावटों से भी बड़ी रुकावटों पर विजय पायी है। इसलिए, अप्रैल १, १९८३, को मैंने अपनी अच्छी वेतन वाली पूर्ण-समय की नौकरी छोड़ दी और एक सहयोगी पायनियर बन गई, और सितम्बर १, १९८३, को मैं नियमित पायनियरों में शामिल हो गई।
२० “अप्रैल १९८५ में मुझे एक उत्तम सहायक सेवक से विवाह करने की ख़ुशी प्राप्त हुई। तीन साल बाद, पायनियर कार्य संबंधी एक ज़िला अधिवेशन भाषण से प्रेरित होकर मेरे पति ने मेरी ओर घूमकर धीमी आवाज़ में पूछा, ‘क्या कोई कारण है कि क्यों मुझे सितम्बर १ से पायनियर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए?’ उन्होंने अगले दो सालों के लिए इस कार्य में मेरा साथ दिया।
२१ “मेरे पति ने ब्रुक्लिन बैथल में भी दो सप्ताह के लिए निर्माण कार्य करने के लिए अपने को स्वेच्छापूर्वक पेश किया, और अंतरराष्ट्रीय निर्माण कार्यक्रम के लिए निवेदन-पत्र भेजा। सो मई १९८९ में हम एक महीने के लिए नाइजीरिया के शाखा निर्माण में मदद करने के लिए निकल पड़े। कल हम जर्मनी जाएँगे, जहाँ हमारे लिए पोलैंड में प्रवेश करने के लिए वीज़ा का प्रबन्ध किया जाएगा। हम रोमांचित हैं कि हम एक ऐसे उल्लेखनीय निर्माण प्रयोजन में अंतर्ग्रस्त हैं और कि इस नए प्रकार की पूर्ण-समय सेवा के भाग हैं।”
२२. (क) पतरस के समान, हम कैसे अनजाने में ठोकर का कारण बन सकते हैं? (ख) आत्म-बलिदान की आत्मा के साथ यहोवा की सेवा करना किस चीज़ पर निर्भर नहीं है?
२२ यदि आप स्वयं पायनियर कार्य नहीं कर सकते हैं, तो क्या आप पूर्ण-समय सेवा में लगे उन लोगों को प्रोत्साहित कर सकते हैं कि वे अपने विशेषाधिकार को थामे रहें, और शायद ऐसा करने में उनकी मदद भी करें? या क्या आप परिवार के किसी नेकनीयत सदस्यों या दोस्तों के समान होंगे, जो शायद पतरस की तरह एक पूर्ण-समय सेवक को आराम करने, अपने से अन्याय न करने के लिए कहें, यह न समझते हुए कि यह कैसे एक ठोकर का कारण बन सकता है? सच है, यदि एक पायनियर का स्वास्थ्य गम्भीर ख़तरे में है या यदि वह मसीही ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं कर रहा है, तो शायद कुछ समय के लिए उसे पूर्ण-समय सेवा छोड़नी पड़े। एक आत्म-बलिदान की आत्मा के साथ यहोवा की सेवा करना, पायनियर, बैथल सदस्य, या किसी अन्य प्रकार की उपाधियों पर निर्भर नहीं करता है। इसके बजाय, यह इस पर निर्भर करता है कि हम कैसे व्यक्ति हैं—कैसे सोचते हैं, क्या करते हैं, दूसरों से कैसा व्यवहार करते हैं, अपनी ज़िन्दगी कैसे जीते हैं।
२३. (क) हम कैसे परमेश्वर के सहकर्मी होने के आनन्द को लेते रह सकते हैं? (ख) इब्रानियों ६:१०-१२ में हमें क्या आश्वासन मिलता है?
२३ यदि सचमुच हम में आत्म-बलिदान की आत्मा है, तो हमें परमेश्वर के संगी सेवक होने का आनन्द मिलेगा। (१ कुरिन्थियों ३:९) हमें यह संतुष्टि होगी कि हम यहोवा के मन को आनन्दित कर रहे हैं। (नीतिवचन २७:११) और हमें यह आश्वासन है कि जब तक हम उसके वफ़ादार रहेंगे, यहोवा कभी हमें न भूलेगा और न हमें त्यागेगा।—इब्रानियों ६:१०-१२.
[फुटनोट]
a यूनानी भाषा में, “ठोकर का कारण” (σκάνδαλον, skanʹda·lon) मौलिक रूप से “जाल के उस भाग का नाम था जिसके साथ चुग्गा लगा होता था, और इस प्रकार स्वयं जाल या फंदा था।”—वाइन्स् एकस्पॉज़ीटरी डिक्शनरि ऑफ़ ओल्ड एण्ड न्यू टेस्टमेंट वर्डस् (Vine’s Expository Dictionary of Old and New Testament Words).
आपके विचार क्या हैं?
▫ पतरस कैसे अनजाने में आत्म-बलिदान की ज़िन्दगी के प्रति ठोकर का कारण बना?
▫ अपने को त्यागने का क्या अर्थ है?
▫ एक मसीही अपना यातना स्तंभ कैसे उठाता है?
▫ हम कैसे एक आत्म-बलिदान की आत्मा को विकसित करते हैं और इसे कायम रखते हैं?
▫ आत्म-बलिदान की आत्मा को कौन-सी शक्ति प्रेरित करती है?
[पेज 9 पर तसवीरें]
क्या आप अपने आपको त्यागने, अपने यातना स्तंभ को उठाने, और लगातार यीशु का अनुगमन करने के लिए तैयार हैं?