यीशु का जीवन और सेवकाई
यीशु वास्तव में कौन है?
जब यीशु और उसके शिष्यों को ले आनेवाली नाँव बैतसैदा पहुँचती है, लोग एक अँधे को उसके पास लाकर बिनती करते हैं कि वह उस आदमी को छूकर उसे स्वस्थ करे। यीशु उसका हाथ लेकर उसे उस गाँव के बाहर ले जाता है और उसकी आँखों पर थूकने के बाद उस से पूछता है: “क्या तू कुछ देखता है?”
वह आदमी कहता है: “मैं मनुष्यों को देखता हूँ; क्योंकि मुझे पेड़ दिखाई देते हैं, पर वे चल रहे हैं।” उस आदमी की आँखों पर अपने हाथ रखते हुए यीशु उसे उसकी दृष्टि लौटा देता है जिस से वह स्पष्ट रूप से देखने लगता है। यीशु फिर उस आदमी को इस आदेश के साथ घर भेज देता है कि वह उस शहर में प्रवेश ना करें।
यीशु अब अपने शिष्यों के साथ उत्तर पलिश्तीन की छोर में, कैसरिया फिलिप्पी नामक गाँव के लिए निकल पड़ता है। कैसरिया फिलिप्पी के सुन्दर स्थान की ओर यह क़रीब ३० मील (४८.२ कि.मि.) का लम्बा चढ़ाव है, समुद्र तट से क़रीब १,१५० फुट (३५०.५ मि.) ऊपर। इस सफ़र के लिए संभवतः दो दिन लगते हैं।
रास्ते में, यीशु अकेले में प्रार्थना करने जाता है। उसकी मृत्यु से पहले केवल क़रीब नौ या दस महीने बचे हैं, और वह अपने शिष्यों के बारे में चिन्तित है। बहुतों ने उसका पीछा पहले ही छोड़ दिया है। दूसरे प्रत्यक्षतः उलझे हुए और निराश हुए हैं क्योंकि उसने लोगों के उसे राजा बनाने के प्रयत्नों का तिरस्कार किया और शत्रुओं द्वारा उसके राज्याधिकार सिद्ध करने के लिए स्वर्ग से एक चिह्न की माँग करने पर भी ऐसा नहीं किया। उसके प्रेरित उसकी पहचान के बारे में क्या विश्वास करते हैं? जब वे उस जगह आते हैं जहाँ वह प्रार्थना करता है, यीशु पूछता है: “लोग क्या कहते हैं, मैं कौन हूँ?”
उन्होंने उत्तर दिया, “कितने तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं और कितने एलिय्याह, और कितने यिर्मयाह या भविष्यवक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।” जी हाँ, वे समझते हैं कि यीशु इन मरे हुओं में से एक है जिसे जिलाया गया है!
तब यीशु उनसे पूछता है, “परन्तु, तुम मुझे क्या कहते हो?”
पतरस तुरन्त कहता है, “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।”
पतरस के उत्तर पर अनुमोदन व्यक्त करने के बाद यीशु कहता है: “मैं भी तुझ से कहता हूँ, कि तू पतरस है; और मैं इस चट्टान पर अपनी कलीसिया बनाउँगा; और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।” यहाँ यीशु पहली बार घोषणा करता है कि वह एक मण्डली का निर्माण करेगा और यह कि, पृथ्वी पर उनकी वफ़ादार ज़िन्दगी के बाद, उसके सदस्यों को मृत्यु भी दासता में नहीं रखेगी। फिर वह पतरस से कहता है: “मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा।”
यीशु इस तरह प्रकट करता है कि पतरस ख़ास विशेषाधिकारों को पानेवाला है। नहीं, पतरस को प्रेरितों में पहला स्थान नहीं दिया गया और ना ही उसे मण्डली की बुनियाद बनाया गया। यीशु खुद वह चट्टान है जिस पर उसकी मण्डली का निर्माण किया जाएगा। लेकिन पतरस को तीन कुंजियाँ दी जानेवाली थीं, जिससे लोगों के अमुक समूहों के लिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के अवसर को, मानो, खोलना था।
पतरस ने पहली कुंजी को पिन्तेकुस्त सामान्य युग ३३ में उपयोग किया, जब उसने पश्चातापी यहूदियों को दिखाया कि बचने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए। थोड़े ही समय बाद उसने दूसरी कुंजी का उपयोग किया जब उसने वफ़ादार सामरियों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का अवसर खोला। फिर, सा. यु. ३६ में वही सुअवसर, कुरनेलियुस और उसके मित्र, खतनारहित ग़ैर-यहूदियों के लिए खोलकर उसने तीसरी कुंजी का उपयोग किया।
यीशु अपने प्रेरितों के साथ अपनी चर्चा जारी रखता है। वह उन कष्टों और मृत्यु के बारे में बताकर, जिसका वह यरूशलेम में जल्द ही सामना करनेवाला है, उन को निराश कर देता है। यह नहीं समझने के कारण कि यीशु को स्वर्गीय जीवन का पुनरुत्थान मिलेगा, पतरस यीशु को एक ओर ले जाता है और कहता है: “हे प्रभु, अपने ऊपर दया कर; परमेश्वर न करें, तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” यीशु फिरकर पतरस से कहता है: “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो, तू मेरे लिए ठोकर का कारण है, क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।”
प्रत्यक्षतः, प्रेरितों के अलावा यीशु के साथ दूसरे भी यात्रा कर रहे हैं, इसलिए वह उन्हें बुलाता है और स्पष्ट करता है कि उसके शिष्य बनना आसान नहीं होगा। “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे और अपना यातना-स्तंभ उठाकर, मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिए अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा।”
जी हाँ, यीशु के शिष्यों को, अगर उन्हें उसकी कृपा के योग्य सिद्ध होना है, धैर्यवान और आत्म-त्यागी बनना चाहिए, जैसे वह कहता है: “जो कोई इस व्यभिचारी और पापी पीढ़ी के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।” मरकुस ८:२२-३८; मत्ती १६:१३-२८; लूका ९:१८-२७; न्यू.व.
◆ यीशु अपने शिष्यों के बारे में चिन्तित क्यों है?
◆ यीशु की पहचान के बारे में लोगों का दृष्टिकोण क्या है?
◆ पतरस को कौनसी कुंजियाँ दी गयीं, और उनका उपयोग कैसे किया गया?
◆ पतरस को कैसी डाँट मिली, और क्यों?