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कलीसिया की उन्नति होती रहेप्रहरीदुर्ग—2007 | मई 1
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10. मत्ती 18:15-17 के मुताबिक, गंभीर समस्याओं को कैसे सुलझाया जाना था?
10 यीशु ने इस बात की तरफ इशारा किया था कि कलीसिया में प्राचीनों और सहायक सेवकों का इंतज़ाम किया जाएगा। याद कीजिए कि उसने मत्ती 18:15-17 में क्या बताया। उसने कहा कि कभी-कभी परमेश्वर का एक सेवक, दूसरे सेवक के खिलाफ अपराध कर सकता है और इससे उनके बीच समस्या पैदा हो सकती है। ऐसे में जिस सेवक को ठेस पहुँची है, उसे दूसरे सेवक के पास जाना चाहिए और अकेले में ‘उसे उसका दोष बताना’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) चाहिए। लेकिन अगर वह सेवक अपना दोष कबूल नहीं करता, तो मदद के लिए एक-दो और जनों को बुलाया जा सकता है, जो मामले से अच्छी तरह वाकिफ हों। मगर इसके बाद भी अगर मामला नहीं सुलझता, तब क्या? यीशु ने कहा: “यदि वह उन की भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्यजाति और महसूल लेनेवाले के ऐसा जान।” जब यीशु ने यह बात कही थी, तो उस वक्त यहूदी लोग “परमेश्वर की कलीसिया” थे। इसलिए यीशु की हिदायत पहले उन पर लागू हुई।a मगर बाद में जब मसीही कलीसिया स्थापित हुई, तब यीशु की हिदायत उस पर लागू होने लगी। यह एक और सबूत है जो दिखाता है कि परमेश्वर के लोगों को कलीसिया में संगठित किया जाएगा, ताकि हरेक मसीही की उन्नति हो और उसे मार्गदर्शन दिया जा सके।
11. समस्याओं को सुलझाने में, प्राचीन क्या भूमिका निभाते हैं?
11 जिस तरह इस्राएलियों की कलीसिया में, पुरनिए न्यायी के तौर पर सेवा करते थे, उसी तरह अध्यक्ष, मसीही कलीसिया के नुमाइंदे के तौर समस्याओं को सुलझाते थे या पाप के मामलों से निपटते थे। और यह बात तीतुस 1:9 में दी गयी प्राचीनों की योग्यताओं से भी मेल खाती है। यह सच है कि इलाके की कलीसिया के प्राचीन असिद्ध थे, ठीक तीतुस की तरह। इसके बावजूद, पौलुस ने तीतुस को उन लोगों को ‘सुधारने’ के लिए कलीसियाओं के पास भेजा ‘जिनमें दोष थे।’ (NW) (तीतुस 1:4,5) आज, प्राचीन की ज़िम्मेदारी के लिए ऐसे भाइयों की सिफारिश की जाती है, जो समय के गुज़रते अपने विश्वास और भक्ति का सबूत देते हैं। इसलिए कलीसिया के बाकी लोगों को, प्राचीनों के इंतज़ाम के ज़रिए मिलनेवाले निर्देशन और वे जिस तरीके से अगुवाई लेते हैं, उस पर भरोसा रखना चाहिए।
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कलीसिया की उन्नति होती रहेप्रहरीदुर्ग—2007 | मई 1
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a बाइबल विद्वान, एल्बर्ट बार्न्स् मानते हैं कि यीशु की इस हिदायत का, कि “कलीसिया से कह दे,” यह मतलब हो सकता है, “उन लोगों से बात करना जिन्हें ऐसे मामलों की जाँच करने का अधिकार दिया गया है, यानी चर्च के नुमाइंदे। यहूदियों के अराधनालय में ऐसे पुरनिए हुआ करते थे, जो न्यायी के तौर पर सेवा करते थे और जिनके सामने इस तरह के मामले पेश किए जाते थे।”
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