अविवाहित अवस्था—निर्विघ्न गतिविधि का द्वार
“तुम्हारा मन प्रभु की सेवा में निर्विघ्न लगा रहे।” —१ कुरिन्थियों ७:३५, NHT.
१. कुरिन्थ के मसीहियों के बारे में कौन-सा हैरान करनेवाला समाचार पौलुस तक पहुँचा?
प्रेरित पौलुस कुरिन्थ, यूनान में अपने मसीही भाइयों के बारे में चिन्तित था। लगभग पाँच साल पहले उसने उस समृद्ध नगर में, जो अपनी अनैतिकता के लिए विख्यात था, कलीसिया स्थापित की थी। अब, लगभग सा.यु. ५५ में, जब वह इफिसुस में था जो एशिया माइनर में है, तब उसे कुरिन्थ से गुटबाज़ी की और अनैतिकता के एक गंभीर मामले को बरदाश्त करने की हैरान करनेवाली रिपोर्टें मिलीं। इसके अलावा, पौलुस को कुरिन्थ के मसीहियों का एक पत्र मिला था जिसमें उन्होंने लैंगिक सम्बन्धों, कौमार्यव्रत, विवाह, अलगाव, और पुनर्विवाह पर मार्गदर्शन माँगा था।
२. कुरिन्थ में व्याप्त अनैतिकता का असर उस नगर के मसीहियों पर प्रत्यक्षतः कैसे हो रहा था?
२ प्रतीत होता है कि कुरिन्थ में व्याप्त घोर अनैतिकता का असर स्थानीय कलीसिया पर दो तरीक़े से हो रहा था। कुछ मसीही नैतिक लापरवाही के वातावरण को स्वीकार कर रहे थे और अनैतिकता को बरदाश्त कर रहे थे। (१ कुरिन्थियों ५:१; ६:१५-१७) प्रत्यक्षतः दूसरे, उस नगर में सर्वव्याप्त भोग-विलास की ओर प्रतिक्रिया के रूप में सभी लैंगिक संभोग से, दम्पतियों को भी, दूर रहने की सलाह देने की ज़्यादती तक चले गए।—१ कुरिन्थियों ७:५.
३. कुरिन्थियों को अपनी पहली पत्री में पौलुस ने शुरू में किन विषयों पर ध्यान दिया?
३ उस लम्बी पत्री में जो पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखी, उसने पहले फूट की समस्या को सम्बोधित किया। (१ कुरिन्थियों, अध्याय १-४) उसने उन्हें मनुष्यों के पीछे चलने से दूर रहने का प्रबोधन दिया, जो हानिकर मत-विभाजन का ही कारण बन सकता है। उन्हें परमेश्वर के ‘सहकर्मियों’ के रूप में संयुक्त होना चाहिए। तब उसने कलीसिया को नैतिक रूप से शुद्ध रखने के बारे में उन्हें सुनिश्चित निर्देश दिए। (अध्याय ५, ६) इसके बाद प्रेरित ने उनके पत्र की ओर ध्यान दिया।
अविवाहित अवस्था की सलाह
४. पौलुस का क्या अर्थ था जब उसने कहा कि “यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए”?
४ उसने शुरू किया: “उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए।” (१ कुरिन्थियों ७:१) यहाँ अभिव्यक्ति “स्त्री को न छूए” का अर्थ है लैंगिक सुख के लिए एक स्त्री के साथ शारीरिक संपर्क से दूर रहना। क्योंकि पौलुस व्यभिचार की निन्दा पहले ही कर चुका था, अब वह विवाह प्रबन्ध के अन्दर लैंगिक सम्बन्धों का ज़िक्र कर रहा था। इसलिए, अब पौलुस अविवाहित अवस्था की सलाह दे रहा था। (१ कुरिन्थियों ६:९, १६, १८. उत्पत्ति २०:६; नीतिवचन ६:२९ से तुलना कीजिए।) थोड़ा आगे जाकर उसने लिखा: “परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूं, कि उन के लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं।” (१ कुरिन्थियों ७:८) पौलुस अविवाहित था, शायद विधुर था।—१ कुरिन्थियों ९:५.
५, ६. (क) यह क्यों स्पष्ट है कि पौलुस एक संन्यासी जीवन-शैली की सलाह नहीं दे रहा था? (ख) पौलुस ने अविवाहित रहने की सलाह क्यों दी?
५ संभव है कि कुरिन्थ के मसीही यूनानी तत्वज्ञान के संपर्क में आ गए थे, जिसके अमुक मतों के समर्थकों ने नितांत वैराग्य, या आत्म-त्याग का गुणगान किया। क्या यह कारण हो सकता है कि क्यों कुरिन्थियों ने पौलुस से पूछा कि क्या मसीहियों के लिए सभी लैंगिक संभोग से दूर रहना “अच्छा” होगा? पौलुस के उत्तर ने यूनानी तत्वज्ञान को प्रतिबिंबित नहीं किया। (कुलुस्सियों २:८) कैथोलिक धर्मविज्ञानियों से भिन्न, उसने किसी मठ या आश्रम में कौमार्य वैरागी जीवन की सलाह कहीं भी नहीं दी, मानो अविवाहित व्यक्ति ख़ासकर पवित्र हैं और अपनी जीवन-शैली और प्रार्थनाओं के द्वारा अपने ख़ुद के उद्धार में योग दे सकते हैं।
६ “आजकल क्लेश के कारण” पौलुस ने अविवाहित रहने की सलाह दी। (१ कुरिन्थियों ७:२६) वह शायद उस मुसीबत के समय का ज़िक्र कर रहा हो जिससे मसीही गुज़र रहे थे, जो विवाह द्वारा और भी मुश्किल बन सकता था। (१ कुरिन्थियों ७:२८) अविवाहित मसीहियों को उसकी सलाह थी: “उन के लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं।” विधुरों को उसने कहा: “यदि तेरे पत्नी नहीं, तो पत्नी की खोज न कर।” मसीही विधवाओं के बारे में उसने लिखा: “जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूं, कि परमेश्वर का आत्मा मुझ में भी है।”—१ कुरिन्थियों ७:८, २७, ४०.
अविवाहित रहने के लिए कोई ज़बरदस्ती नहीं
७, ८. कौन-सी बात दिखाती है कि पौलुस किसी मसीही को अविवाहित रहने के लिए विवश नहीं कर रहा था?
७ निश्चित ही यहोवा की पवित्र आत्मा पौलुस को मार्गदर्शित कर रही थी जब उसने यह सलाह दी। कौमार्यव्रत और विवाह के बारे में उसकी पूरी प्रस्तुति संतुलन और आत्म-संयम दिखाती है। वह इसे विश्वास या अविश्वास का मामला नहीं बनाता। इसके बजाय, यह स्वतंत्र चुनाव का प्रश्न है, जिसके संतुलन का झुकाव उन लोगों के लिए अविवाहित रहने के पक्ष में है जो उस अवस्था में निष्कलंक रहने में समर्थ हैं।
८ यह कहने के तुरन्त बाद कि “यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए,” पौलुस ने आगे कहा: “परन्तु व्यभिचार के डर से [“व्यभिचार के प्रचलन के कारण,” NW] हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो।” (१ कुरिन्थियों ७:१, २) अविवाहित व्यक्तियों और विधवाओं को यह सलाह देने के बाद कि “ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं,” उसने जल्दी से आगे कहा: “परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है।” (१ कुरिन्थियों ७:८, ९) फिर से, विधुरों के लिए उसकी सलाह थी: “पत्नी की खोज न कर: परन्तु यदि तू ब्याह भी करे, तो पाप नहीं।” (१ कुरिन्थियों ७:२७, २८) यह संतुलित सलाह चुनाव की स्वतंत्रता प्रकट करती है।
९. यीशु और पौलुस के अनुसार, विवाहित और अविवाहित अवस्था, दोनों परमेश्वर की ओर से वरदान कैसे हैं?
९ पौलुस ने दिखाया कि विवाह और अविवाहित अवस्था, दोनों परमेश्वर की ओर से वरदान हैं। “मैं यह चाहता हूं, कि जैसा मैं हूं, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष बरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का।” (१ कुरिन्थियों ७:७) निःसंदेह उसके मन में यीशु की बात थी। यह स्थापित करने के बाद कि विवाह परमेश्वर की ओर से है, यीशु ने दिखाया कि राज्य हितों को बढ़ाने के लिए स्वेच्छा से अविवाहित रहना एक ख़ास दान है: “सब यह वचन ग्रहण नहीं कर सकते, केवल वे जिन को यह दान दिया गया है। क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे; और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य ने नपुंसक बनाया: और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हों ने स्वर्ग के राज्य के लिये अपने आप को नपुंसक बनाया है, जो इस को ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे।”—मत्ती १९:४-६, ११, १२.
अविवाहित अवस्था के वरदान को ग्रहण करना
१०. एक व्यक्ति अविवाहित अवस्था के वरदान को कैसे “ग्रहण” कर सकता है?
१० जबकि यीशु और पौलुस, दोनों ने अविवाहित अवस्था को एक “बरदान” कहा, दोनों में से किसी ने नहीं कहा कि यह कोई चमत्कारी वरदान है जो केवल कुछ लोगों के पास है। यीशु ने कहा कि उस वरदान को ‘सब ग्रहण नहीं करते,’ और जो ऐसा कर सकते हैं उसने उन्हें प्रबोधन दिया कि इसे ‘ग्रहण करें,’ जैसा कि यीशु और पौलुस ने किया। यह सच है कि पौलुस ने लिखा: “विवाह करना कामातुर रहने से भला है,” लेकिन वह उनकी बात कर रहा था जो ‘संयम नहीं कर सकते।’ (१ कुरिन्थियों ७:९) पहले के लेखनों में, पौलुस ने दिखाया कि मसीही कामातुर होने से बच सकते हैं। (गलतियों ५:१६, २२-२४) आत्मा के अनुसार चलने का अर्थ है कि यहोवा की आत्मा को अपना हर क़दम मार्गदर्शित करने दें। क्या युवा मसीही ऐसा कर सकते हैं? जी हाँ, यदि वे निकटता से यहोवा के वचन के अनुसार चलें। भजनहार ने लिखा: “जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से।”—भजन ११९:९.
११. ‘आत्मा के अनुसार चलने’ का क्या अर्थ है?
११ इसमें अनेक टीवी कार्यक्रमों, फ़िल्मों, पत्रिका लेखों, पुस्तकों, और गीत के बोलों के द्वारा फैलाए गए अनुज्ञात्मक विचारों से सावधान रहना सम्मिलित है। ऐसे विचार शरीर-केंद्रित हैं। एक ऐसे मसीही युवक या युवती को जो अविवाहित अवस्था को ग्रहण करना चाहता है, ‘शरीर के अनुसार नहीं बरन आत्मा के अनुसार चलना चाहिए, क्योंकि शारीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं।’ (रोमियों ८:४, ५) आत्मा की बातें धर्मी, पवित्र, प्रीतिकर, सद्गुणी हैं। युवा और वृद्ध, सभी मसीहियों के लिए ‘इन्हीं पर ध्यान लगाना’ अच्छा है।—फिलिप्पियों ४:८, ९.
१२. अविवाहित अवस्था के वरदान को ग्रहण करने में काफ़ी हद तक क्या सम्मिलित है?
१२ अविवाहित अवस्था के वरदान को ग्रहण करना काफ़ी हद तक उस लक्ष्य पर अपना मन लगाने और उसका पीछा करने में मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना करने की बात है। (फिलिप्पियों ४:६, ७) पौलुस ने लिखा: “यदि किसी ने कोई प्रयोजन न होने पर, अपने हृदय में यह ठान लिया है, लेकिन स्वयं अपनी इच्छा पर अधिकार रखता है और स्वयं अपने हृदय में यह निर्णय कर लिया है, कि स्वयं अपना कुँवारापन रखेगा, तो वह अच्छा करेगा। अतः वह भी जो अपना कुँवारापन विवाह में देता है अच्छा करता है, लेकिन वह जो इसे विवाह में नहीं देता और भी अच्छा करेगा।”—१ कुरिन्थियों ७:३७, ३८, NW.
उद्देश्य सहित अविवाहित अवस्था
१३, १४. (क) प्रेरित पौलुस ने अविवाहित और विवाहित मसीहियों के बीच क्या तुलना की? (ख) केवल कैसे एक अविवाहित मसीही उनकी तुलना में जो विवाहित हैं, “और भी अच्छा” कर सकता है?
१३ अपने आप में अविवाहित अवस्था सराहनीय नहीं है। तो फिर, किस अर्थ में वह ‘और भी अच्छी’ हो सकती है? यह असल में इस पर निर्भर करता है कि एक व्यक्ति उस स्वतंत्रता को कैसे प्रयोग करता है जो यह लाती है। पौलुस ने लिखा: “परन्तु मैं यह चाहता हूं कि तुम चिन्तामुक्त रहो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता करता है कि प्रभु को कैसे प्रसन्न करे, पर विवाहित पुरुष सांसारिक बातों की चिन्ता करता है कि अपनी पत्नी को कैसे प्रसन्न करे, और उसका ध्यान बंट जाता है। और जो अविवाहित या कुंवारी है, उसे प्रभु की बातों की चिन्ता रहती है, कि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो; परन्तु जो विवाहिता है उसको सांसारिक बातों की चिन्ता रहती है, कि अपने पति को कैसे प्रसन्न रखे। मैं ये बातें तुम्हारे ही लाभ के लिए कहता हूं—तुम्हें रोकने के लिए नहीं, वरन् इसलिए कि जो शोभनीय है वही हो और तुम्हारा मन प्रभु की सेवा में निर्विघ्न लगा रहे।”—१ कुरिन्थियों ७:३२-३५, NHT.
१४ एक अविवाहित मसीही जो अपनी अविवाहित अवस्था को स्वार्थी लक्ष्यों का पीछा करने के लिए प्रयोग करता है वह विवाहित मसीहियों से “और भी अच्छा” नहीं कर रहा है। वह “स्वर्ग के राज्य के लिये” नहीं, बल्कि निजी कारणों के लिए अविवाहित रह रहा है। (मत्ती १९:१२) अविवाहित पुरुष या स्त्री को चाहिए कि “प्रभु की बातों की चिन्ता” में रहे, चिन्ता करे कि “प्रभु को कैसे प्रसन्न करे,” और “प्रभु की सेवा में निर्विघ्न लगा रहे।” इसका अर्थ है यहोवा और मसीह यीशु की सेवा करने में एकचित्त ध्यान लगाना। केवल ऐसा करने के द्वारा ही अविवाहित मसीही पुरुष और स्त्रियाँ विवाहित मसीहियों से “और भी अच्छा” कर रहे हैं।
निर्विघ्न गतिविधि
१५. पहला कुरिन्थियों अध्याय ७ में पौलुस के तर्क का निचोड़ क्या है?
१५ इस अध्याय में पौलुस का पूरा तर्क यह है: जबकि विवाह विधिसंगत है और अमुक परिस्थितियों में कुछ लोगों के लिए अनुकूल है, फिर भी अविवाहित अवस्था निश्चित ही उस मसीही पुरुष या स्त्री के लिए लाभकारी है जो कम से कम विकर्षण के साथ यहोवा की सेवा करना चाहती है। जबकि विवाहित व्यक्ति का “ध्यान बंट जाता है,” अविवाहित मसीही “प्रभु की बातों” पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्वतंत्र है।
१६, १७. एक अविवाहित मसीही “प्रभु की बातों” पर कैसे और अच्छी तरह से ध्यान केंद्रित कर सकता है?
१६ प्रभु की बातें क्या हैं जिन पर एक अविवाहित मसीही उनकी तुलना में जो विवाहित हैं, अधिक स्वतंत्रता के साथ ध्यान लगा सकता है? एक और संदर्भ में, यीशु ने “जो परमेश्वर का है,” उसके बारे में बोला—वे चीज़ें जो एक मसीही कैसर को नहीं दे सकता। (मत्ती २२:२१) ये चीज़ें मूलतः एक मसीही के जीवन, उपासना, और सेवकाई के सम्बन्ध में हैं।—मत्ती ४:१०; रोमियों १४:८; २ कुरिन्थियों २:१७; ३:५, ६; ४:१.
१७ अविवाहित व्यक्ति सामान्यतः यहोवा की सेवा में समय बिताने के लिए अधिक स्वतंत्र होते हैं, जो उनकी आध्यात्मिकता को और उनकी सेवकाई के विस्तार को लाभ पहुँचा सकता है। वे व्यक्तिगत अध्ययन और मनन में अधिक समय बिता सकते हैं। अविवाहित मसीही उनकी तुलना में जो विवाहित हैं, अपनी सारणी में अपना बाइबल पठन अधिक सरलता से बिठा सकते हैं। वे सभाओं और क्षेत्र सेवा के लिए बेहतर तैयारी कर सकते हैं। यह सब उनके ‘अपने ही लाभ’ के लिए है।—१ कुरिन्थियों ७:३५, NHT.
१८. अनेक अविवाहित भाई कैसे दिखा सकते हैं कि वे यहोवा की सेवा “निर्विघ्न” करना चाहते हैं?
१८ अनेक अविवाहित भाई जो पहले ही सहायक सेवकों के रूप में सेवा कर रहे हैं, यहोवा को यह कहने के लिए स्वतंत्र हैं: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह ६:८) वे सेवकाई-कार्य प्रशिक्षण स्कूल में उपस्थित होने के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो केवल ऐसे अविवाहित सहायक सेवकों और प्राचीनों के लिए है जो वहाँ सेवा करने के लिए स्वतंत्र हैं जहाँ और अधिक आवश्यकता है। वे भाई भी जो अपनी कलीसिया छोड़ने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, सहायक सेवकों या प्राचीनों के रूप में अपने भाइयों की सेवा करने के लिए अपने आपको उपलब्ध कर सकते हैं।—फिलिप्पियों २:२०-२३.
१९. अनेक अविवाहित बहनें कैसे आशिष-प्राप्त हैं, और कौन-से एक तरीक़े से वे कलीसियाओं के लिए एक आशिष हो सकती हैं?
१९ अविवाहित बहनें, जिनका सलाह लेने और मन की बात बताने के लिए कोई मानवी सिर नहीं है, “अपना बोझ यहोवा पर डाल” देने के लिए शायद अधिक प्रवृत्त हों। (भजन ५५:२२; १ कुरिन्थियों ११:३) यह ख़ासकर उन बहनों के लिए महत्त्वपूर्ण है जो यहोवा के लिए प्रेम के कारण अविवाहित हैं। यदि कुछ समय बाद वे विवाह करती भी हैं, तो वह “केवल प्रभु में” होगा, अर्थात् केवल किसी ऐसे व्यक्ति से जो यहोवा को समर्पित है। (१ कुरिन्थियों ७:३९) प्राचीन शुक्रगुज़ार हैं कि उनकी कलीसियाओं में अविवाहित बहनें हैं; वे प्रायः बीमारों और बुज़ुर्गों से मिलने जाती हैं और उनकी मदद करती हैं। यह सभी सम्बन्धित जनों के लिए ख़ुशी लाता है।—प्रेरितों २०:३५.
२०. अनेक मसीही कैसे दिखा रहे हैं कि वे ‘प्रभु की सेवा में निर्विघ्न लगे हुए हैं’?
२० अनेक युवा मसीहियों ने अपने कार्य इस तरह व्यवस्थित किए हैं कि ‘प्रभु की सेवा में निर्विघ्न लगे रहें।’ (१ कुरिन्थियों ७:३५, NHT) वे पूर्ण-समय पायनियर सेवकों, और मिशनरियों के रूप में, या वॉच टावर सोसाइटी के एक शाखा दत्नतर में यहोवा की सेवा कर रहे हैं। और वे क्या ही आनन्दित समूह हैं! उनकी उपस्थिति कितनी स्फूर्तिदायी है! यहोवा और यीशु की आँखों में, वे “ओस के समान” हैं।—भजन ११०:३.
सतत कौमार्यव्रत नहीं
२१. (क) यह क्यों स्पष्ट है कि पौलुस ने कौमार्यव्रत लेने का प्रोत्साहन नहीं दिया? (ख) उसने क्या सूचित किया जब उसने “नवयौवन के ढलने के बाद” की उम्र का होने के बारे में कहा?
२१ पौलुस की सलाह का एक मुख्य मुद्दा यह है कि मसीही अपने जीवन में अविवाहित अवस्था ग्रहण करें तो “अच्छा” करेंगे। (१ कुरिन्थियों ७:१, ८, २६, ३७) लेकिन, किसी भी हालत वह उन्हें कौमार्यव्रत लेने के लिए नहीं आमंत्रित करता। इसके विपरीत, उसने लिखा: “यदि कोई सोचता है कि वह अपने कुँवारेपन के साथ अनुचित रीति से व्यवहार कर रहा है, यदि ऐसा नवयौवन के ढलने के बाद है, और यह इसी प्रकार होना है, तो वह जो चाहे करे; वह पाप नहीं करता। वे विवाह कर लें।” (१ कुरिन्थियों ७:३६, NW) “नवयौवन के ढलने के बाद” अनुवादित उस एक यूनानी शब्द (हाइपराक्मॉस) का आक्षरिक अर्थ है “सर्वोच्च बिन्दु से परे” और यह लैंगिक कामना के शिखर आवेश के जाने को सूचित करता है। सो जिन्होंने अविवाहित अवस्था में कई साल बिताए हैं और जो अंततः महसूस करते हैं कि उन्हें विवाह करना चाहिए, वे एक संगी विश्वासी से विवाह करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं।—२ कुरिन्थियों ६:१४.
२२. हर दृष्टिकोण से यह एक मसीही के लिए क्यों लाभकारी है कि बहुत छोटी उम्र में विवाह न करे?
२२ जो साल एक युवा मसीही यहोवा की सेवा निर्विघ्न करने में बिताता है वे बुद्धिमानी से लगायी गयी पूँजी हैं। वे उसे व्यावहारिक बुद्धि, अनुभव, और अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में समर्थ करते हैं। (नीतिवचन १:३, ४) एक व्यक्ति जो राज्य के लिए अविवाहित रहा है यदि बाद में विवाहित जीवन और संभवतः जनकता की ज़िम्मेदारियों को अपनाने का निर्णय करता है, तो वह कहीं बेहतर स्थिति में है।
२३. विवाह का विचार करनेवाले कुछ लोगों के मन में शायद क्या हो, लेकिन आगे के लेखों में किस प्रश्न पर चर्चा की जाएगी?
२३ कुछ मसीही जिन्होंने अविवाहित अवस्था में पूर्ण-समय यहोवा की सेवा करने में कई साल बिताए हैं ध्यान से अपना भावी साथी चुनते हैं, इस विचार से कि किसी प्रकार की पूर्ण-समय सेवा करते रहें। यह निश्चित ही अति सराहनीय है। कुछ शायद इस विचार से विवाह करने का सपना देखें कि वे किसी भी तरह अपने विवाह को अपनी सेवा में बाधा नहीं डालने देंगे। लेकिन क्या एक विवाहित मसीही को यहोवा के प्रति अपनी सेवा में ध्यान लगाने के लिए उतना स्वतंत्र महसूस करना चाहिए जितना कि वह अविवाहित अवस्था में था या थी? इस प्रश्न पर आगे के लेखों में चर्चा की जाएगी।
पुनर्विचार के रूप में
◻ प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया को लिखने की ज़रूरत क्यों महसूस की?
◻ हम क्यों जानते हैं कि पौलुस एक संन्यासी जीवन-शैली की सलाह नहीं दे रहा था?
◻ एक व्यक्ति अविवाहित अवस्था को कैसे “ग्रहण” कर सकता है?
◻ अविवाहित बहनें अपनी अविवाहित अवस्था से कैसे लाभ उठा सकती हैं?
◻ किन तरीक़ों से अविवाहित भाई यहोवा की सेवा “निर्विघ्न” करने की अपनी स्वतंत्रता का लाभ उठा सकते हैं?