सुखी हैं वे जो “आनंदित परमेश्वर” की सेवा करते हैं
“सुखी हैं वे लोग जिनका परमेश्वर यहोवा है!”—भज. 144:15.
1. यहोवा के साक्षी खुश क्यों रहते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
यहोवा के साक्षी खुश रहते हैं। जब भी वे मिलते हैं, हमेशा एक-दूसरे से बात करते हैं और खुलकर हँसते हैं, फिर चाहे वे सभा या सम्मेलन के लिए मिलें या फुरसत के पल बिताने के लिए। वे इतने खुश क्यों रहते हैं? इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वे यहोवा को जानते हैं, जो “आनंदित परमेश्वर” है। वे उसकी सेवा करते हैं और उसकी तरह बनने की कोशिश करते हैं। (1 तीमु. 1:11; भज. 16:11) यहोवा खुशी का स्रोत है, इसलिए वह चाहता है कि हम भी खुश रहें। वह हमारी खुशी के लिए बहुत कुछ करता है।—व्यव. 12:7; सभो. 3:12, 13.
2, 3. (क) खुश रहने का मतलब क्या है? (ख) खुश रहना मुश्किल क्यों हो सकता है?
2 क्या आप खुश रहते हैं? खुश रहने या सुखी होने का मतलब है, अंदर से अच्छा महसूस करना, अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट होना या आनंद से भर जाना। बाइबल बताती है कि जिन लोगों का यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता है, वे ही सच्ची खुशी पा सकते हैं। लेकिन आज की दुनिया में खुश रहना या सुखी होना मुश्किल हो सकता है। इसकी कई वजह हैं।
3 कभी हमारे किसी अपने का बहिष्कार हो जाता है या किसी अपने की मौत हो जाती है। किसी का तलाक हो जाता है, तो किसी की नौकरी चली जाती है। किसी-किसी घर में लड़ाइयाँ होती रहती हैं। कभी साथ काम करनेवाले या पढ़नेवाले हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, तो कभी यहोवा की सेवा करने की वजह से हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं या हमें जेल में डाला जाता है। हो सकता है कि हमारी सेहत बिगड़ जाए, हमें कोई बड़ी बीमारी लग जाए या हम गहरी निराशा में डूब जाएँ। इन सब हालात में खुश रहना बहुत मुश्किल हो सकता है। लेकिन याद रखिए कि यीशु मसीह को, जो “धन्य [या खुश] और एकमात्र शक्तिमान सम्राट” है, लोगों को दिलासा देना और उन्हें खुशी देना अच्छा लगता था। (1 तीमु. 6:15; मत्ती 11:28-30) पहाड़ी उपदेश में उसने ऐसी कई बातें बतायीं, जिनकी वजह से हम सुखी रह सकते हैं, इसके बावजूद कि हम शैतान की दुनिया में जी रहे हैं और कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
खुश रहने के लिए यहोवा के साथ गहरी दोस्ती होना ज़रूरी है
4, 5. (क) खुशी पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (ख) हमेशा खुश रहने के लिए क्या ज़रूरी है?
4 जो बात यीशु ने सबसे पहले कही, वह बहुत अहम है। उसने कहा, “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।” (मत्ती 5:3) अगर हममें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है, तो हमें इस बात का एहसास होगा कि हमें परमेश्वर को जानना चाहिए, उससे मदद और मार्गदर्शन लेना चाहिए। हम कैसे दिखा सकते हैं कि हममें यह भूख है? बाइबल का अध्ययन करके, परमेश्वर की आज्ञा मानकर और उसकी उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत देकर। यह सब करने से हमें खुशी मिलेगी और हमारा यह विश्वास मज़बूत होगा कि भविष्य के बारे में परमेश्वर के वादे ज़रूर पूरे होंगे। यह “आशा” हमें “खुशी देती है” और इसकी वजह से हम मुश्किलों में धीरज रख पाते हैं।—तीतु. 2:13.
5 हमेशा खुश रहने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करते रहें। प्रेषित पौलुस ने लिखा, “प्रभु में हमेशा खुश रहो। मैं एक बार फिर कहता हूँ, खुश रहो!” (फिलि. 4:4) यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने के लिए ज़रूरी है कि हम उससे मिलनेवाली बुद्धि पाएँ। बाइबल में लिखा है, “सुखी है वह इंसान जो बुद्धि हासिल करता है, सुखी है वह जो पैनी समझ को ढूँढ़ लेता है। जो बुद्धि को थामते हैं, उनके लिए यह जीवन का पेड़ है, जो इसे थामे रहते हैं, वे सुखी माने जाएँगे।”—नीति. 3:13, 18.
6. हमेशा खुश रहने के लिए और क्या करना ज़रूरी है?
6 हमेशा खुश रहने के लिए बाइबल पढ़ना ही काफी नहीं है, बल्कि उससे सीखी हुई बातों पर चलते रहना भी ज़रूरी है। यीशु ने भी इस बात की अहमियत बतायी। उसने कहा, “तुमने ये बातें जान ली हैं, लेकिन अगर तुम ऐसा करो तो सुखी होगे।” (यूह. 13:17; याकूब 1:25 पढ़िए।) परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने और हमेशा खुश रहने के लिए सीखी हुई बातों पर चलते रहना बहुत ज़रूरी है। लेकिन आज हम खुश कैसे रह सकते हैं, जबकि हम इतनी परेशानियों से घिरे हुए हैं? आइए देखें कि इस बारे में यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में आगे क्या कहा।
ऐसी बातें जो हमें सुखी बनाती हैं
7. जो मातम मनाते हैं, वे सुखी कैसे हो सकते हैं?
7 “सुखी हैं वे जो मातम मनाते हैं क्योंकि उन्हें दिलासा दिया जाएगा।” (मत्ती 5:4) शायद हम सोचें, ‘अगर कोई मातम मना रहा है, तो वह सुखी कैसे हो सकता है?’ यहाँ यीशु ऐसे हर इंसान की बात नहीं कर रहा था, जो मातम मनाता है। बहुत-से दुष्ट लोग भी मातम मनाते हैं या दुखी होते हैं, क्योंकि “आखिरी दिनों” में जीने की वजह से उन पर ऐसी परेशानियाँ टूट पड़ती हैं, जिनका “सामना करना मुश्किल” होता है। (2 तीमु. 3:1) लेकिन वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के बारे में नहीं, इसलिए वे उसके साथ कोई दोस्ती नहीं करते और सुखी नहीं रह पाते। यीशु मातम मनानेवाले जिन लोगों की बात कर रहा था, उनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है। वे मातम मनाते हैं, क्योंकि वे देखते हैं कि इतने सारे लोग परमेश्वर को ठुकराते हैं या उस तरह नहीं जीते जिस तरह परमेश्वर चाहता है। मातम मनानेवाले इन लोगों को एहसास है कि वे पापी हैं और यह भी कि दुनिया में बहुत-से बुरे काम हो रहे हैं। यहोवा इन मातम मनानेवालों पर ध्यान देता है, उन्हें अपने वचन के ज़रिए दिलासा देता है, खुशियाँ देता है और आगे चलकर हमेशा की ज़िंदगी देगा।—यहेजकेल 5:11; 9:4 पढ़िए।
8. कोमल स्वभाव के होने से हम सुखी कैसे रह सकते हैं?
8 “सुखी हैं वे जो कोमल स्वभाव के हैं क्योंकि वे धरती के वारिस होंगे।” (मत्ती 5:5) कोमल स्वभाव का होने से एक इंसान किस तरह सुखी होता है? आज बहुत-से लोगों का स्वभाव गुस्सैल और बेरुखा है, जिससे कई समस्याएँ खड़ी होती हैं। लेकिन जब वे सच्चाई सीखते हैं, तो वे खुद में बदलाव करते हैं और “नयी शख्सियत” धारण करते हैं। वे “करुणा से भरपूर गहरे लगाव, कृपा, नम्रता, कोमलता और सब्र” जैसे गुण दर्शाते हैं। (कुलु. 3:9-12) इस वजह से वे शांति से जीते हैं, दूसरों के साथ उनका रिश्ता अच्छा रहता है और वे खुश रहते हैं। यही नहीं, जैसे परमेश्वर के वचन में वादा किया गया है, भविष्य में “वे धरती के वारिस होंगे।”—भज. 37:8-10, 29.
9. (क) यीशु के कहने का क्या मतलब था कि कोमल स्वभाव के लोग “धरती के वारिस होंगे”? (ख) “नेकी के भूखे-प्यासे” लोग सुखी क्यों हो सकते हैं?
9 कोमल स्वभाव के लोग किस मायने में “धरती के वारिस होंगे”? जब अभिषिक्त मसीही राजा और याजक के तौर पर धरती पर राज करेंगे, तो मानो वे धरती के वारिस होंगे। (प्रका. 20:6) जिन लाखों लोगों को स्वर्ग जाने की आशा नहीं है, वे इस मायने में धरती के वारिस होंगे कि वे इस पर हमेशा जीएँगे। वे परिपूर्ण होंगे और शांति और खुशी से रहेंगे। इन दोनों समूह के लोगों के बारे में यीशु ने यह भी कहा था, “सुखी हैं वे जो नेकी के भूखे-प्यासे हैं।” (मत्ती 5:6) जब यहोवा सारी दुष्टता खत्म कर देगा, तब नेकी के भूखे-प्यासे लोग तृप्त होंगे। (2 पत. 3:13) वे सुखी होंगे और फिर कभी मातम नहीं मनाएँगे।—भज. 37:17.
10. दयालु होने का मतलब क्या है?
10 “सुखी हैं वे जो दयालु हैं क्योंकि उन पर दया की जाएगी।” (मत्ती 5:7) दयालु होने का मतलब है, जो लोग तकलीफ में हैं, उन पर तरस खाना, करुणा करना और उनसे स्नेह रखना। लेकिन दया सिर्फ एक भावना नहीं है। बाइबल सिखाती है कि दयालु होने का मतलब है, दूसरों की मदद के लिए कुछ करना।
11. दयालु सामरी की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?
11 लूका 10:30-37 पढ़िए। दयालु सामरी की मिसाल में यीशु ने बहुत बढ़िया तरीके से समझाया कि दयालु होने का मतलब क्या है। सामरी आदमी के मन में बड़ी करुणा और दया थी, इसलिए उसने उस घायल आदमी की मदद की। यह मिसाल देने के बाद यीशु ने कानून के जानकार आदमी से कहा, “जा और तू भी ऐसा ही कर।” हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं उस दयालु सामरी की तरह व्यवहार करता हूँ? जब लोग तकलीफ में होते हैं, तो क्या मैं उन पर दया करता हूँ? उनकी मदद के लिए मैं और क्या कर सकता हूँ? क्या मैं बुज़ुर्ग भाई-बहनों, विधवा बहनों या फिर ऐसे बच्चों की मदद कर सकता हूँ, जिनके माता-पिता सच्चाई में नहीं हैं? क्या मैं उन लोगों को “अपनी बातों से तसल्ली” दे सकता हूँ, “जो मायूस हैं”?’—1 थिस्स. 5:14; याकू. 1:27.
12. जब हम लोगों पर दया करते हैं, तो हमें खुशी क्यों मिलती है?
12 लोगों पर दया करने से हमें खुशी क्यों मिलती है? जब हम लोगों पर दया करते हैं, तो हम उन्हें कुछ दे रहे होते हैं और यीशु ने कहा था कि देने से खुशी मिलती है। हम जानते हैं कि लोगों पर दया करके हम यहोवा को खुश कर रहे होते हैं, इसलिए भी हमें खुशी मिलती है। (प्रेषि. 20:35; इब्रानियों 13:16 पढ़िए।) दयालु व्यक्ति के बारे में राजा दाविद ने कहा, “यहोवा उसकी हिफाज़त करेगा और उसकी जान सलामत रखेगा। उसे धरती पर सुखी इंसान माना जाएगा।” (भज. 41:1, 2) अगर हम लोगों पर दया और करुणा करते हैं, तो यहोवा हम पर दया करेगा और हम सदा खुश रहेंगे।—याकू. 2:13.
“जिनका दिल शुद्ध है,” वे सुखी क्यों रहते हैं?
13, 14. “जिनका दिल शुद्ध है,” वे सुखी क्यों रहते हैं?
13 यीशु ने कहा, “सुखी हैं वे जिनका दिल शुद्ध है क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।” (मत्ती 5:8) दिल शुद्ध रखने के लिए ज़रूरी है कि हम गंदी या गलत बातों के बारे में न सोचें और न ही उन बातों की इच्छा रखें। यह करना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि तभी यहोवा हमारी उपासना से खुश होगा।—2 कुरिंथियों 4:2 पढ़िए; 1 तीमु. 1:5.
14 जिनका दिल शुद्ध है, उनका ही यहोवा के साथ रिश्ता अच्छा हो सकता है। उनके बारे में यहोवा ने कहा, “सुखी हैं वे जिन्होंने अपने चोगे धोए हैं।” (प्रका. 22:14) ‘उन्होंने अपने चोगे धोए हैं,’ इसका क्या मतलब है? अभिषिक्त मसीहियों के लिए इसका मतलब है कि वे यहोवा की नज़र में शुद्ध हैं, वह उन्हें स्वर्ग में अमर जीवन देगा और वे हमेशा पूरी तरह खुश रहेंगे। बड़ी भीड़ के लोगों के लिए इसका मतलब है कि यहोवा उन्हें अपने साथ दोस्ती करने देता है, क्योंकि वह उन्हें नेक समझता है और धरती पर हमेशा की ज़िंदगी देगा। उनके बारे में बाइबल कहती है कि उन्होंने “अपने चोगे मेम्ने के खून में धोकर सफेद किए हैं।”—प्रका. 7:9, 13, 14.
15, 16. जिनका दिल शुद्ध है, वे किस मायने में ‘परमेश्वर को देख’ सकते हैं?
15 यहोवा ने कहा, “कोई भी इंसान मुझे देखकर ज़िंदा नहीं रह सकता।” (निर्ग. 33:20) फिर जिनका दिल शुद्ध है, वे कैसे ‘परमेश्वर को देख’ सकते हैं? जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “देखेंगे” किया गया है, उसका मतलब कल्पना करना, समझना या जानना हो सकता है। इस वजह से परमेश्वर को देखने का मतलब है, यह समझना कि वह कैसा है और उसमें कौन-से गुण हैं। (इफि. 1:18) यीशु ने हू-ब-हू परमेश्वर के जैसे गुण दर्शाए, इसलिए वह कह पाया, “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।”—यूह. 14:7-9.
16 हम और किस मायने में ‘परमेश्वर को देख’ सकते हैं? जब हम यह महसूस करते हैं कि वह हमारी मदद कैसे करता है, तो हम एक तरह से उसे ‘देख’ रहे होते हैं। (अय्यू. 42:5) इसके अलावा उन आशीषों पर ध्यान लगाकर हम उसे ‘देख’ सकते हैं, जो उसने शुद्ध मन के अपने वफादार सेवकों को देने का वादा किया है। अभिषिक्त मसीही तो सच में यहोवा को देखेंगे, जब उन्हें स्वर्ग में ज़िंदा किया जाएगा।—1 यूह. 3:2.
परेशानियों के बावजूद हम सुखी रह सकते हैं
17. शांति कायम करने से खुशी क्यों मिलती है?
17 यीशु ने यह भी कहा, “सुखी हैं वे जो शांति कायम करते हैं।” (मत्ती 5:9) जब हम लोगों के साथ शांति कायम करने में पहल करते हैं, तो हम सुखी हो सकते हैं। चेले याकूब ने लिखा, “जो शांति कायम करते हैं, उनके लिए शांति के हालात में नेकी का फल बोया जाता है।” (याकू. 3:18) अगर मंडली में या परिवार में किसी के साथ आपकी अनबन चल रही है, तो यहोवा से बिनती कीजिए कि शांति कायम करने में वह आपकी मदद करे। यहोवा आपको अपनी पवित्र शक्ति देगा, जिससे आप मसीही गुण दर्शा पाएँगे और आप खुश रहेंगे। यीशु ने भी समझाया कि शांति कायम करने के लिए पहल करना बहुत ज़रूरी है। उसने कहा, “अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और फिर आकर अपनी भेंट चढ़ा।”—मत्ती 5:23, 24.
18, 19. ज़ुल्म सहने के बावजूद मसीही खुश क्यों रहते हैं?
18 “सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें, तुम पर ज़ुल्म ढाएँ और तुम्हारे बारे में तरह-तरह की झूठी और बुरी बातें कहें।” यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि ज़ुल्म सहने पर भी हम सुखी होंगे? इसका जवाब हमें उसकी आगे कही बात से पता चलता है। उसने कहा, “तब तुम मगन होना और खुशियाँ मनाना इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है। उन्होंने तुमसे पहले के भविष्यवक्ताओं पर भी इसी तरह ज़ुल्म ढाए थे।” (मत्ती 5:11, 12) जब प्रेषितों को मारा-पीटा गया और हुक्म दिया गया कि वे प्रचार न करें, तब “वे महासभा के सामने से . . . बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल दिए।” बेशक वे पीटे जाने की वजह से खुश नहीं थे, बल्कि वे इसलिए खुश थे कि ‘उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक समझा गया।’—प्रेषि. 5:41.
19 आज जब यहोवा के लोगों पर ज़ुल्म ढाया जाता है, तो वे भी खुशी-खुशी सब सह लेते हैं। (याकूब 1:2-4 पढ़िए।) प्रेषितों की तरह हमें भी इस बात से खुशी नहीं मिलती कि हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं। लेकिन हम यहोवा के वफादार रहना चाहते हैं और वह भी हमें सबकुछ सहने की ताकत और हिम्मत देता है, इसलिए हम यह सब खुशी-खुशी सह लेते हैं। गौर कीजिए कि हेनरिक डॉर्निक और उनके भाई के साथ क्या हुआ। अगस्त 1944 में उन्हें यातना शिविर में डाल दिया गया था। उन पर ज़ुल्म ढानेवालों ने कहा, “इन्हें किसी भी बात के लिए मजबूर करना नामुमकिन है। लेकिन शहीद होने के लिए वे खुशी-खुशी तैयार हो जाते हैं।” भाई डॉर्निक ने बताया, “ऐसा नहीं था कि मैं शहीद होना चाहता था, फिर भी यह सब सहने से मुझे खुशी मिली। मैं यहोवा का वफादार रहना चाहता था, इसलिए मैंने हिम्मत से काम लिया और अपनी गरिमा बनाए रखी।” उन्होंने यह भी कहा, “लगातार प्रार्थना करने से मैं यहोवा के और भी करीब आ पाया और वह भी मेरा भरोसेमंद मददगार साबित हुआ।”
20. हमें “आनंदित परमेश्वर” की सेवा करने से खुशी क्यों मिलती है?
20 जब “आनंदित परमेश्वर” यहोवा हमसे खुश होता है, तो इससे हमें खुशी मिल सकती है, फिर चाहे हम पर ज़ुल्म ढाए जाएँ, परिवार के लोग हमारा विरोध करें, हम बीमार हों या बूढ़े हो जाएँ। (1 तीमु. 1:11) हमें इस बात से भी खुशी मिलती है कि हमारा परमेश्वर, “जो झूठ नहीं बोल सकता,” अपने सारे वादे जल्द पूरा करेगा। (तीतु. 1:2) उस वक्त हमें वे परेशानियाँ याद भी नहीं आएँगी, जो आज हम सहते हैं। दरअसल हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि फिरदौस में ज़िंदगी कैसी होगी और हम कितने खुश होंगे। जी हाँ, हम “बड़ी शांति के कारण अपार खुशी पाएँगे।”—भज. 37:11.