अध्ययन लेख 15
यीशु के चमत्कारों से हम क्या सीख सकते हैं?
‘वह पूरे देश में भलाई करता रहा और लोगों को ठीक करता रहा।’—प्रेषि. 10:38.
गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श
एक झलकa
1. यीशु के पहले चमत्कार के बारे में बताइए।
ईसवी सन् 29 की बात है। पतझड़ का समय है और यीशु ने अभी-अभी अपनी सेवा शुरू की है। उसे, उसकी माँ मरियम और उसके कुछ चेलों को शादी की एक दावत में बुलाया गया है। यह दावत काना नाम की एक जगह पर रखी गयी है जो यीशु के शहर नासरत से कुछ ही दूरी पर है। मरियम उस परिवार को बहुत अच्छे-से जानती है और शायद मेहमानों की खातिरदारी करने में लगी हुई है। लेकिन तभी एक समस्या खड़ी हो जाती है। दाख-मदिरा कम पड़ जाती है।b शायद उम्मीद से ज़्यादा मेहमान आ गए हैं। अगर कुछ नहीं किया गया, तो दूल्हा-दुल्हन और उनके परिवारवालों को बहुत शर्मिंदा होना पड़ सकता है। इसलिए मरियम तुरंत अपने बेटे के पास जाती है और उससे कहती है, “उनकी दाख-मदिरा खत्म हो गयी है।” (यूह. 2:1-3) तब यीशु कुछ ऐसा करता है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। वह चमत्कार करके पानी को “बेहतरीन दाख-मदिरा” में बदल देता है।—यूह. 2:9, 10.
2-3. (क) यीशु ने और कौन-से चमत्कार किए? (ख) हमें यीशु के चमत्कारों पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
2 आगे चलकर यीशु ने और भी कई चमत्कार किए।c इस तरह उसने हज़ारों लोगों की मदद की। जैसे बाइबल में बताया गया है कि एक बार उसने 5,000 आदमियों को खाना खिलाया और एक बार 4,000 आदमियों को। अगर उन आदमियों के साथ आयी औरतों और बच्चों को भी गिना जाए, तो शायद यीशु ने कुल मिलाकर 27,000 से भी ज़्यादा लोगों को खाना खिलाया होगा। (मत्ती 14:15-21; 15:32-38) उन दोनों मौकों पर यीशु ने बीमार लोगों को भी ठीक किया। (मत्ती 14:14; 15:30, 31) सोचिए, जब यीशु ने चमत्कार करके इतने सारे लोगों को ठीक किया और खाना खिलाया, तो लोग कितने दंग रह गए होंगे!
3 यीशु के चमत्कार आज हमारे लिए भी बहुत मायने रखते हैं। इस लेख में हम यीशु के चमत्कारों से कुछ ऐसी बातें सीखेंगे जिनसे हमारा विश्वास बढ़ेगा। हम इस बात पर भी ध्यान देंगे कि यीशु ने चमत्कार करते वक्त कैसे दिखाया कि वह नम्र है और उसमें लोगों के लिए करुणा है और यह भी कि हम उसकी तरह कैसे बन सकते हैं।
यहोवा और यीशु के बारे में सीख
4. यीशु के चमत्कारों से हम किसके बारे में सीख सकते हैं?
4 यीशु के चमत्कारों से हम ऐसी बहुत-सी बातें सीख सकते हैं जिनसे हमारा विश्वास बढ़ सकता है। इनसे ना सिर्फ हम यीशु के बारे में, बल्कि उसके पिता यहोवा के बारे में भी बहुत कुछ जान सकते हैं। वह इसलिए कि वह ये चमत्कार अपने पिता की मदद से ही कर पाया था। प्रेषितों 10:38 में लिखा है, ‘परमेश्वर ने पवित्र शक्ति से उसका अभिषेक किया और उसे ताकत दी और वह पूरे देश में भलाई करता रहा और शैतान के सताए हुओं को ठीक करता रहा क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था।’ यह भी याद रखिए कि यीशु हू-ब-हू अपने पिता की तरह है इसलिए उसने जो कहा या किया और जो चमत्कार किए, उनसे हम जान सकते हैं कि यहोवा किस तरह सोचता है या कैसा महसूस करता है। (यूह. 14:9) आइए ऐसी तीन बातों पर ध्यान दें जो हम यीशु के चमत्कारों से सीख सकते हैं।
5. यीशु ने किस वजह से चमत्कार किए? (मत्ती 20:30-34)
5 पहली सीख: यीशु और उसका पिता हमसे बहुत प्यार करते हैं। जब यीशु धरती पर था, तो उसके कामों से पता चला कि वह लोगों से कितना प्यार करता है। प्यार होने की वजह से ही उसने चमत्कार करके लोगों की तकलीफें दूर कीं। एक बार दो अंधे आदमी मदद के लिए ज़ोर-ज़ोर से यीशु को पुकारने लगे। (मत्ती 20:30-34 पढ़िए।) उन्हें देखकर यीशु “तड़प उठा” और उसने उन्हें ठीक कर दिया। यहाँ जिस यूनानी क्रिया का अनुवाद “तड़प उठा” किया गया है, उसका मतलब है, किसी के लिए करुणा से भर जाना। यीशु के दिल में लोगों के लिए इतनी करुणा इसलिए थी क्योंकि वह उनसे प्यार करता था। इसी करुणा की वजह से उसने लोगों को खाना खिलाया और एक बार एक कोढ़ी को ठीक किया। (मत्ती 15:32; मर. 1:41) इससे हम यकीन रख सकते हैं कि “कोमल करुणा” करनेवाला परमेश्वर यहोवा और उसका बेटा यीशु हमसे बहुत प्यार करते हैं और हमें तकलीफ में देखकर उन्हें भी तकलीफ होती है। (लूका 1:78; 1 पत. 5:7) यहोवा और यीशु बेसब्री से उस दिन का इंतज़ार कर रहे होंगे जब वे इंसानों की सभी तकलीफें हमेशा के लिए दूर कर देंगे।
6. यहोवा ने यीशु को कितनी ताकत दी है?
6 दूसरी सीख: यहोवा ने यीशु को सभी इंसानों की समस्याएँ दूर करने की ताकत दी है। यीशु ने जो चमत्कार किए उनसे पता चलता है कि वह ऐसी मुश्किलें भी दूर कर सकता है जिन्हें इंसान खुद दूर नहीं कर सकता। जैसे उसके पास इतनी ताकत है कि वह बीमारी और मौत को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है। यहाँ तक कि वह पाप को भी पूरी तरह मिटा सकता है जो सारी समस्याओं की जड़ है। (मत्ती 9:1-6; रोमि. 5:12, 18, 19) उसने चमत्कार करके दिखाया कि वह “हर तरह” की बीमारी दूर कर सकता है और जिनकी मौत हो गयी है, उन्हें भी ज़िंदा कर सकता है। (मत्ती 4:23; यूह. 11:43, 44) उसके पास आंधी-तूफान को भी काबू में करने की ताकत है और उसके सामने दुष्ट स्वर्गदूत भी नहीं टिक सकते। (मर. 4:37-39; लूका 8:2) यह देखकर हमारा कितना हौसला बढ़ता है कि यहोवा ने अपने बेटे को इतना कुछ करने की ताकत दी है।
7-8. (क) यीशु के चमत्कारों से हमें किस बात का यकीन हो जाता है? (ख) आप नयी दुनिया में कौन-सा चमत्कार देखने के लिए बेताब हैं?
7 तीसरी सीख: हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ने अपने राज में जो आशीषें देने का वादा किया है, वे हमें ज़रूर मिलेंगी। धरती पर रहते वक्त यीशु ने जो चमत्कार किए थे, उनसे पता चलता है कि भविष्य में वह एक राजा के तौर पर और भी बड़े पैमाने पर यह सब करेगा। ज़रा सोचिए उस वक्त कैसा माहौल होगा: हम सबकी सेहत अच्छी होगी, क्योंकि यीशु हर तरह की बीमारी और शारीरिक कमज़ोरी दूर कर देगा। (यशा. 33:24; 35:5, 6; प्रका. 21:3, 4) फिर कोई भूखे पेट नहीं सोएगा और ना ही किसी को प्राकृतिक विपत्तियों की मार सहनी पड़ेगी। (यशा. 25:6; मर. 4:41) हमारे अपने “जो स्मारक कब्रों में हैं,” उनसे हम दोबारा मिल पाएँगे। (यूह. 5:28, 29) आप नयी दुनिया में कौन-सा चमत्कार देखने के लिए बेताब हैं?
8 जब यीशु ने चमत्कार किए, तो उसने दिखाया कि वह कितना नम्र है और उसमें लोगों के लिए कितनी करुणा है। ये ऐसे गुण हैं जो हम सभी को अपने अंदर बढ़ाने चाहिए। आइए उसके दो चमत्कारों पर गौर करें। सबसे पहले, हम उस चमत्कार पर गौर करेंगे जो उसने काना में शादी की दावत में किया था।
नम्र होना सीखें
9. यीशु ने शादी की दावत में चमत्कार क्यों किया? (यूहन्ना 2:6-10)
9 यूहन्ना 2:6-10 पढ़िए। जब शादी की दावत में दाख-मदिरा खत्म हो गयी, तो क्या यीशु के लिए कोई चमत्कार करना ज़रूरी था? नहीं। मसीहा के बारे में ऐसी कोई भविष्यवाणी नहीं की गयी थी कि वह चमत्कार करके दाख-मदिरा बनाएगा। लेकिन सोचिए अगर आपकी शादी हो और आपने मेहमानों को खिलाने-पिलाने के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उसमें कोई कमी रह जाए, तो आपको कैसा लगेगा? यीशु ने उस परिवार के, खासकर दूल्हा-दुल्हन के बारे में सोचा। वह नहीं चाहता था कि उन्हें शर्मिंदा होना पड़े। उसे उन पर दया आयी और वह उनके लिए कुछ करना चाहता था, इसलिए उसने एक चमत्कार किया। उसने करीब 390 लीटर (103 गैलन) पानी को बेहतरीन दाख-मदिरा में बदल दिया। लेकिन उसने इतनी सारी दाख-मदिरा क्यों बनायी? शायद इसलिए कि जो बच जाए, वह आगे चलकर काम आ सके या उसे बेचकर दूल्हा-दुल्हन के हाथ में कुछ पैसे आ जाएँ। उस चमत्कार के बाद दूल्हा-दुल्हन ने कितनी चैन की साँस ली होगी!
10. यूहन्ना अध्याय 2 में जो किस्सा दर्ज़ है, उसकी कुछ बारीकियाँ बताइए। (तसवीर भी देखें।)
10 यूहन्ना अध्याय 2 में जो किस्सा दर्ज़ है, आइए उसकी कुछ बारीकियों पर ध्यान दें। क्या आपने गौर किया कि पत्थर के उन मटकों को यीशु ने खुद पानी से नहीं भरा? इसके बजाय उसने सेवकों से ऐसा करने के लिए कहा, ताकि लोगों का ध्यान उसकी तरफ ना जाए। (आयत 6, 7) और पानी को दाख-मदिरा में बदलने के बाद वह खुद उसे लेकर दावत की देखरेख करनेवाले के पास नहीं गया, बल्कि उसने सेवकों को भेजा। (आयत 8) और उसने दाख-मदिरा का प्याला लेकर सब मेहमानों के सामने ये डींगें नहीं मारीं, ‘ज़रा पीकर तो देखो, मैंने बनायी है अभी-अभी!’
11. हम यीशु के चमत्कार से क्या सीख सकते हैं?
11 यीशु के इस चमत्कार से हम क्या सीख सकते हैं? यही कि हमें नम्र होना चाहिए। यीशु ने अपने इस चमत्कार के बारे में शेखी नहीं मारी। असल में उसने जो भी काम किए, उनके बारे में कभी-भी शेखी नहीं मारी। इसके बजाय वह नम्र था। वह जो भी करता था, उसका सारा श्रेय और महिमा अपने पिता को देता था। (यूह. 5:19, 30; 8:28) हमें भी यीशु की तरह नम्र रहना चाहिए और अपनी कामयाबियों के बारे में डींगें नहीं मारनी चाहिए। हम यहोवा और उसके लोगों के लिए जो भी करते हैं, उसके बारे में शेखी मारने के बजाय आइए हम इस बात पर गर्व करें कि हमें इतने महान परमेश्वर की सेवा करने का सम्मान मिला है। (यिर्म. 9:23, 24) आइए हम अपने कामों का श्रेय हमेशा यहोवा को दें, क्योंकि उसकी मदद के बिना तो हम कुछ भी नहीं कर सकते।—1 कुरिं. 1:26-31.
12. हम और कैसे यीशु की तरह नम्र हो सकते हैं? एक उदाहरण देकर समझाइए।
12 यीशु की तरह नम्र होने का एक और तरीका है। ज़रा कल्पना कीजिए, एक जवान सहायक सेवक को पहली बार जन भाषण देना है। एक प्राचीन उसके साथ काफी समय बिताता है और भाषण तैयार करने में उसकी मदद करता है। इस वजह से वह सहायक सेवक बहुत बढ़िया भाषण देता है और मंडली में सभी को बहुत अच्छा लगता है। सभा के बाद कोई उस प्राचीन के पास आकर कहता है, ‘उस भाई ने कितना बढ़िया भाषण दिया, है ना?’ अब क्या प्राचीन को यह कहना चाहिए, ‘हाँ, पर मुझे उसकी बहुत मदद करनी पड़ी’? या उसे नम्र होना चाहिए और कुछ ऐसा कहना चाहिए, ‘सही में, उसने बहुत अच्छा भाषण दिया। मज़ा आ गया’? जब हम नम्र होते हैं, तो हमने दूसरों के लिए जो भले काम किए हैं, उनका श्रेय हम खुद नहीं लेते। हमें यह जानकर खुशी होती है कि हम दूसरों के लिए जो करते हैं, उसे यहोवा देखता है और वह उसकी कदर करता है। (मत्ती 6:2-4 से तुलना करें; इब्रा.13:16) सच में, जब हम यीशु की तरह नम्र रहते हैं, तो इससे यहोवा खुश होता है।—1 पत. 5:6.
करुणा करना सीखें
13. नाईन शहर के पास यीशु क्या देखता है और फिर वह क्या करता है? (लूका 7:11-15)
13 लूका 7:11-15 पढ़िए। ज़रा इस किस्से के बारे में कल्पना करने की कोशिश कीजिए। यीशु को धरती पर सेवा करते हुए लगभग दो साल हो गए हैं। वह गलील प्रदेश के नाईन शहर जा रहा है। यह शूनेम से कुछ ही दूरी पर है, जहाँ करीब 900 साल पहले भविष्यवक्ता एलीशा ने एक औरत के बेटे को ज़िंदा किया था। (2 राजा 4:32-37) जैसे ही यीशु शहर के फाटक के पास पहुँचता है, वह देखता है कि शहर से एक अर्थी जा रही है। यह बहुत दुख की घड़ी है, क्योंकि एक विधवा के इकलौते बेटे की मौत हो गयी है। मगर वह माँ अकेली नहीं है। उसके साथ शहर से बड़ी तादाद में लोग जा रहे हैं। तभी यीशु अर्थी को रोकता है और उस माँ के लिए ऐसा कुछ करता है जिससे उसके गम के आँसू खुशी के आँसुओं में बदल जाते हैं। वह उसके बेटे को ज़िंदा कर देता है! खुशखबरी की किताबों में दर्ज़ उन तीन किस्सों में से यह पहला किस्सा है जब यीशु मरे हुओं को ज़िंदा करता है।
14. लूका अध्याय 7 में दर्ज़ किस्से की कुछ बारीकियाँ बताइए। (तसवीर भी देखें।)
14 आइए लूका अध्याय 7 के इस किस्से की कुछ बारीकियों पर ध्यान दें। क्या आपने गौर किया कि पहले यीशु की ‘नज़र उस माँ पर पड़ी,’ फिर “वह तड़प उठा।” (आयत 13) शायद जब यीशु ने देखा होगा कि वह माँ अपने बेटे की अर्थी के साथ-साथ जा रही है और कितना रो रही है, तो उसका दिल भर आया होगा। यीशु को उस माँ पर सिर्फ तरस ही नहीं आया, बल्कि उसने उसके लिए कुछ किया भी, ऐसा कुछ जिससे पता चला कि उसके दिल में कितनी करुणा है। उसने उससे कहा, “मत रो।” उसने ज़रूर यह बात बड़े प्यार से कही होगी। फिर उसने उस माँ के बिना कुछ कहे ही उसके बेटे को ज़िंदा कर दिया और “उसे उसकी माँ को सौंप दिया।”—आयत 14, 15.
15. हम यीशु के इस चमत्कार से क्या सीख सकते हैं?
15 यीशु के इस चमत्कार से हम क्या सीख सकते हैं? यही कि जिनके अज़ीज़ अब नहीं रहे, हमें उन पर करुणा करनी चाहिए। माना कि हम यीशु की तरह किसी को ज़िंदा नहीं कर सकते, पर हम उन भाई-बहनों पर थोड़ा और ध्यान दे सकते हैं जिन्होंने अपनों को खोया है। हम आगे बढ़कर उनसे ऐसी बातें कह सकते हैं जिससे उन्हें तसल्ली मिले। और उनकी मदद करने के लिए हमसे जो हो सके, वह कर सकते हैं।d (नीति. 17:17; 2 कुरिं. 1:3, 4; 1 पत. 3:8) अगर हम उनसे प्यार के दो शब्द भी कहें या उनके लिए थोड़ा-सा भी कुछ करें, तो इससे उनकी बहुत हिम्मत बढ़ सकती है।
16. आप उस बहन से क्या सीख सकते हैं जिसने एक माँ का हौसला बढ़ाया? (तसवीर भी देखें।)
16 एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। कुछ साल पहले की बात है। एक दिन सभा में सब लोग गीत गा रहे थे। वह गीत मरे हुओं के ज़िंदा होने की आशा के बारे में था। तभी एक बहन ने देखा कि कुछ दूरी पर एक दूसरी बहन रो रही है। उसे याद आया कि कुछ ही समय पहले उस बहन की बेटी की मौत हो गयी थी। वह फौरन उस बहन के पास गयी और उसके कंधे पर हाथ रखा और फिर उसके साथ खड़े होकर गीत गाने लगी। जिस बहन ने अपनी बच्ची खोयी थी, वह बताती है, “उस पल भाई-बहनों के लिए मेरे दिल में प्यार उमड़ आया।” वह बहुत खुश थी कि वह उस दिन सभा में गयी। वह कहती है, “राज-घर ही वह जगह है जहाँ हमें मदद मिल सकती है।” जिन भाई-बहनों का “मन कुचला हुआ है” या जो बहुत निराश हैं, उनकी मदद के लिए जब हम थोड़ा भी कुछ करते हैं, तो यहोवा उस पर ध्यान देता है और उसकी बहुत कदर करता है।—भज. 34:18.
कुछ ऐसा अध्ययन करें जिससे और भी फायदा हो
17. यीशु के चमत्कारों का अध्ययन करने से हम क्या सीख सकते हैं?
17 खुशखबरी की किताबों में यीशु के जिन चमत्कारों के बारे में बताया गया है, उनका अध्ययन करने से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हम जान पाएँगे कि यहोवा और यीशु हमसे कितना प्यार करते हैं और यीशु के पास इंसानों की सभी समस्याएँ दूर करने की ताकत है। इनसे हमारा यह यकीन भी बढ़ेगा कि यहोवा बहुत जल्द अपने राज में अपने सारे वादे पूरे करेगा। जब हम इन किस्सों का अध्ययन करते हैं, तो हम सोच सकते हैं कि इनसे हमें यीशु के कौन-से गुणों के बारे में पता चलता है और हम उसकी तरह कैसे बन सकते हैं। तो क्यों ना एक दिन पारिवारिक उपासना या निजी अध्ययन करते वक्त यीशु के कुछ चमत्कारों का अध्ययन करें? देखिए कि आप उन चमत्कारों से कौन-सी बातें सीख सकते हैं। फिर आप वे बातें दूसरों को भी बता सकते हैं। सोचिए कि ऐसा करने से भाई-बहनों के साथ आपकी कितनी अच्छी बातचीत होगी और आप एक-दूसरे का कितना हौसला बढ़ा पाएँगे!—रोमि. 1:11, 12.
18. अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
18 करीब-करीब अपनी सेवा के आखिर में एक बार फिर यीशु एक मरे हुए व्यक्ति को ज़िंदा करता है। हालाँकि उसने पहले भी लोगों को ज़िंदा किया था, पर यह चमत्कार एकदम हटकर था। इस बार उसने अपने जिगरी दोस्त को ज़िंदा किया और हालात भी बिलकुल अलग थे। खुशखबरी की किताब में दर्ज़ इस चमत्कार से हम क्या सीख सकते हैं? और इस बारे में अध्ययन करने से हमारा यह विश्वास कैसे बढ़ता है कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा? इन सवालों के जवाब अगले लेख में दिए जाएँगे।
गीत 20 तूने अपना अनमोल बेटा दिया
a यीशु ने एक ज़बरदस्त तूफान को शांत किया, बीमारों को ठीक किया और मरे हुओं को ज़िंदा किया। जब हम उसके इन चमत्कारों के बारे में पढ़ते हैं, तो हैरान रह जाते हैं। लेकिन बाइबल में इनके बारे में सिर्फ इसलिए नहीं लिखा है कि इन्हें पढ़कर हमें मज़ा आए, बल्कि हम इनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस लेख में हम यीशु के कुछ चमत्कारों के बारे में चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि उनसे हम यहोवा और यीशु के बारे में क्या सीख सकते हैं, जिससे हमारा विश्वास बढ़ेगा। उन चमत्कारों से हम कुछ ऐसे गुणों के बारे में भी जानेंगे जो हमें अपने अंदर बढ़ाने चाहिए।
b बाइबल का एक विद्वान बताता है, “इसराएल के आस-पास के देशों में लोग मेहमान-नवाज़ी करना अपना फर्ज़ समझते थे। अगर किसी ने अपने घर मेहमानों को बुलाया हो, तो उससे उम्मीद की जाती थी कि वह उनके लिए ज़रूरत से बढ़कर इंतज़ाम करे। और अगर मेहमानों की अच्छे-से खातिरदारी करनी हो, तब तो उससे भी कहीं ज़्यादा इंतज़ाम करने होते थे, जैसे शादी की दावतों में।”
c खुशखबरी की किताबों में यीशु के 30 से भी ज़्यादा चमत्कारों के बारे में बताया गया है। और कुछ मौकों पर तो हरेक चमत्कार के बारे में अलग से बताया भी नहीं गया है। जैसे, एक बार “पूरा शहर” यीशु के पास आ गया और उसने “बहुत-से लोगों को ठीक किया।”—मर. 1:32-34.
d जिनके अपने अब नहीं रहे, उन्हें तसल्ली देने के लिए आप क्या कर सकते हैं या उनसे क्या कह सकते हैं? इस बारे में कुछ सुझाव जानने के लिए 2016 की प्रहरीदुर्ग के अंक 3 में दिया लेख “जो अपनों से बिछड़ गए हैं, उन्हें दिलासा दीजिए” लेख पढ़ें।
e तसवीर के बारे में: यीशु पीछे खड़ा हुआ है और दूल्हा-दुल्हन और उनके मेहमान बेहतरीन दाख-मदिरा का मज़ा ले रहे हैं।