यहोवा की सेवा करने में सच्चा आनन्द
“क्या ही धन्य है वह, जिसका सहायक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है।”—भजन संहिता १४६:५.
१, २. आनन्द की परिभाषा के संबंध में क्या कहा गया है, और आज अनेक लोगों के लिए आनन्द का अर्थ क्या है?
आनन्द क्या है? शब्दार्थ वैज्ञानिक, दार्शनिक, और धर्मविज्ञानी सदियों से इस शब्द की परिभाषा करने का प्रयास कर रहे हैं। परन्तु उन्होंने ऐसी परिभाषा नहीं दी है जो सर्वमान्य हो। दी एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका स्वीकार करती है: “‘आनन्द’ अत्यंत दुग्राह्य शब्दों में से एक है।” स्पष्ट है कि जीवन के प्रति उनके अपने दृष्टिकोण पर आधारित, आनन्द का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए विभिन्न है।
२ अनेक लोगों के लिए आनन्द अच्छे स्वास्थ्य, भौतिक वस्तुएं, और सुखद संगति के इर्द-गिर्द घूमती है। परन्तु, ऐसे भी लोग हैं जिनके पास यह सब कुछ होकर भी दुखी हैं। यहोवा को समर्पित पुरुष और स्त्रियों के लिए, बाइबल आनन्द के विषय में एक ऐसा विचार प्रस्तुत करती है जो सामान्य दृष्टिकोण से बिलकुल भिन्न है।
आनन्द का एक भिन्न दृष्टिकोण
३, ४. (क) यीशु ने किन लोगों को आनन्दित कहा? (ख) यीशु द्वारा ज़िक्र किए गए आनन्द के कारणों के विषय में क्या ग़ौर किया जा सकता है?
३ यीशु ने अपनी पहाड़ी उपदेश में यह नहीं कहा था कि आनन्द अच्छे स्वास्थ्य, भौतिक वस्तुएं, और इसी तरह की चीज़ों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि वे लोग सचमुच आनन्दित हैं जो “अपनी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के प्रति जागरूक हैं” और जो “धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं।” सच्चे आनन्द के लिए आवश्यक जिन दो कारणों को बताया गया है, उनसे संबंधित है यीशु का यह प्रतीयमान विरोधाभासी कथन: “धन्य हैं वे जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शान्ति पाएंगे।” (मत्ती ५:३-६, NW) यह स्पष्ट है कि यीशु यह नहीं कह रहे थे कि किसी प्रिय जन के मरने के कारण लोग अपने आप ही आनन्दित हो जाएंगे। बल्कि, वे उन लोगों के विषय में बोल रहे थे जो अपनी ही पापपूर्ण दशा और उसके परिणामों पर विचार करके शोकित होते हैं।
४ प्रेरित पौलुस ने कहा कि मानव सृष्टि पाप की दशा में इस आशा से कराहती है कि इसे “विनाश के दासत्व से छुटकारा” दिया जाए। (रोमीयों ८:२१, २२) वे मनुष्य जो मसीह के छुड़ौती रूपी बलिदान के द्वारा पापों के प्रायश्चित के लिए यहोवा का प्रबंध स्वीकार करते हैं और जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं, वे सचमुच सांत्वना पाते और आनन्दित किए जाते हैं। (रोमियों ४:६-८) अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने उन्हें भी आनन्दित कहा जो “नम्र हैं,” “दयावन्त हैं,” जिनके “मन शुद्ध हैं,” और जो “मेल करानेवाले हैं।” उन्होंने आश्वासन दिया कि सताए जाने पर भी ऐसे नम्र लोग अपने आनन्द को नहीं खोएंगे। (मत्ती ५:५-११) इस बात पर ध्यान देना रुचिकर है कि धनी और निर्धन, दोनों प्रकार के लोग, इन उच्च श्रेणी के आनन्द के कारणों द्वारा सामान्य स्तर पर आ जाते हैं।
सच्चे आनन्द का आधार
५. परमेश्वर के समर्पित सेवकों के लिए आनन्द का आधार क्या है?
५ सच्चे आनन्द का स्रोत भौतिक संपत्ति में नहीं मिलता है। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा: “धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता।” (नीतिवचन १०:२२) उन प्राणियों के लिए, जो यहोवा के विश्वमंडलीय सार्वभौमत्व को स्वीकार करते हैं, आनन्द यहोवा की आशिष से ऐसे जुड़ा हुआ है जिसे अलग किया ही नहीं जा सकता। चाहे वह नर हो या नारी, जिस समर्पित व्यक्ति पर यहोवा की आशिष है और जो उसे अनुभव कर सकता है, वह सच्चे अर्थ में आनन्दित है। बाइबल की दृष्टि से देखा जाए तो आनन्द के अर्थ में यहोवा की सेवा में संतोष, मनस्तोष और परितोष का अहसास शामिल है।
६. सचमुच आनन्दित होने के लिए यहोवा के लोगों से क्या आवश्यक है?
६ सच्चा आनन्द यहोवा के साथ एक अच्छे संबंध पर आधारित है। वह परमेश्वर से प्रेम और उनके प्रति वफ़ादारी पर आधारित है। यहोवा के समर्पित सेवक पौलुस के इन वचनों से हार्दिक रूप से सहमत हैं: “हम में से न तो कोई अपने लिए जीता है . . . हम प्रभु के लिए जीवित हैं . . . हम प्रभु ही के हैं।” (रोमीयों १४:७, ८) इस लिए, सच्चा आनन्द यहोवा के प्रति आज्ञाकारिता और उनकी इच्छानुरूप हर्षित अधीनता दर्शाने के अतिरिक्त किसी और रीति से नहीं मिल सकता। यीशु ने कहा: “धन्य वे हैं जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”—लूका ११:२८.
आनन्द के परिवर्तनीय कारण
७, ८. (क) आनन्द के कारणों का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है? (ख) विवाह और जनन के विषय में क्या कहा जा सकता है?
७ आगे दिए गए आनन्द के कारणों को “बुनियादी” या “अपरिवर्तनीय” कहा जा सकता है, क्योंकि वे यहोवा के समर्पित गवाहों के लिए सर्वदा उपयुक्त हैं। इसके अतिरिक्त, ऐसे भी कारण हैं जिन्हें परिवर्तनीय कहा जा सकता है, अर्थात वे जिनके द्वारा एक समय तो आनन्द प्राप्त हो सकता है, परन्तु दूसरे समय थोड़ा, या बिलकुल भी नहीं। कुलपतियों और मसीही-पूर्व युगों में, विवाह तथा जनन आनन्द के लिए अनिवार्य माने जाते थे। यह बात याकूब से राहेल द्वारा की गई हृदयविदारक निवेदन से भी प्रतीत होती है: ‘मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मैं मर जाऊंगी।’ (उत्पत्ति ३०:१) जनन के प्रति ऐसी मनोवृत्ति यहोवा के उद्देश्य के लिए उस समय उपयुक्त थी।—उत्पत्ति १३:१४-१६; २२:१७.
८ यहोवा के प्राचीन काल के लोगों में विवाह और जनन को परमेश्वर की आशिष माना जाता था। परन्तु, उनके इतिहास में विपत्ति के समय इनका व अन्य परिस्थितियों का संबंध संताप से जोड़ा गया था। (भजन संहिता १२७, १२८ को यिर्मयाह ६:१२; ११:२२; तथा विलापगीत २:१९; ४:४, ५ से तुलना करें.) इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि विवाह और जनन आनन्द के लिए स्थायी कारण नहीं हैं।
बीते समय में बिना विवाह के आनन्द
९. यिप्तह की पुत्री ने प्रतिवर्ष सराहना क्यों प्राप्त की?
९ परमेश्वर के कई सेवकों ने बिना विवाह के सच्चे आनन्द की प्राप्ति की है। अपने पिता की मन्नत का सम्मान करने के कारण, यिप्तह की बेटी अविवाहित ही रही। थोड़े समय तक उसने अपनी सहेलियों के साथ अपने कुँवारेपन पर विलाप किया। परन्तु यहोवा के भवन में जीवन भर सेवा करने में उसे क्या ही आनन्द मिला, शायद वह “मिलाप वाले तंबू के द्वार पर सेवा करने वाली महिलाओं” में से एक थी! (निर्गमन ३८:८) इस कारण, हर वर्ष उसकी सराहना होती थी।—न्यायियों ११:३७-४०.
१०. यहोवा ने यिर्मयाह से क्या मांग की, और क्या इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इसके परिणामस्वरूप उसने दु:खी जीवन बिताया?
१० उस प्रभावशाली समय के कारण जिसमें भविष्यवक्ता यिर्मयाह रहता था, यहोवा की ओर से यह उसके लिए आवश्यक हुआ कि वह अविवाहित और नि:सन्तान ही रहे। (यिर्मयाह १६:१-४) परन्तु यिर्मयाह ने परमेश्वर के इन वचनों की सत्यता का अनुभव किया: “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना है।” (यिर्मयाह १७:७) भविष्यवक्ता के रूप में ४० से अधिक वर्षों तक की सेवा में, यिर्मयाह ने एक अविवाहित पुरुष के तौर से परमेश्वर की वफ़ादारी से सेवा की। जहाँ तक हम जानते हैं, उसने न तो विवाह किया, और न ही उसकी कोई सन्तान थी। फिर भी, कौन यिर्मयाह के उस रीति से आनन्दित रहने पर संदेह कर सकता है, जिस रीति से शेष वफ़ादार यहूदी थे, जो ‘यहोवा की भलाई के कारण प्रफुल्लित थे’?—यिर्मयाह ३१:१२.
११. यहोवा के वफ़ादार सेवकों के कुछेक शास्त्रीय उदाहरण कौन हैं, जो विवाहित साथी के न होने पर भी आनन्दित थे?
११ और भी अनेक लागों ने बिना विवाहित साथी के यहोवा की सेवा आनन्द से की है। वे या तो अविवाहित, विधवा या विदुर थे। भविष्यवक्तिन हन्नाह; शायद दोरकास, या तबीता; प्रेरित पौलुस; और वह सर्वश्रेष्ठ आदर्श—यीशु मसीह—उन में से थे।
आज अविवाहित परन्तु आनन्दित
१२. यहोवा के कुछ आनन्दित व समर्पित सेवकों ने आज किस बात को ग्रहण किया है, और क्यों?
१२ आज हज़ारों यहोवा के गवाह बिना विवाहित साथी के वफ़ादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। कुछ लोगों ने यीशु के इस निमंत्रण को स्वीकार किया है: “जो [अविवाहित दशा के वरदान] को ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे।” उन्होंने ऐसा “स्वर्ग के राज्य के लिए” किया है। (मत्ती १९:११, १२, NW) अर्थात, उन्होंने राज्य हितों को बढ़ावा देने के लिए अधिक समय और शक्ति लगाकर अपनी परमेश्वर-प्रदत्त स्वतंत्रता का सदुपयोग किया है। उनमें से अनेक पायनियर, मिशनरी या वॉचटावर सोसायटी के विश्व मुख्यालय या शाखाओं में बेथेल परिवार के सदस्य के रूप में सेवा कर रहे हैं।
१३. कौनसे उदाहरण यह दर्शाते हैं कि मसीही अविवाहित रहकर भी आनन्दित हो सकते हैं?
१३ एक वृद्धा प्रिय बहन ने अपनी जीवन-कहानी को एक संकेतिक शीर्षक दिया, “एक पायनियर के रूप में अविवाहित और आनन्दित।” (द वॉचटावर, मई १, १९८५, पृष्ठ २३-२६) एक और अविवाहित बहन कहती है, जिसने बेथेल में ५० वर्ष सेवा की: “मैं अपने जीवन तथा कार्य से पूर्णत: संतुष्ट हूँ। मैं एक ऐसे कार्य में, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, पहले से कहीं अधिक व्यस्त हूँ। मुझे कोई पछतावा नहीं है। यदि अवसर मिले तो वही निर्णय मैं फिर से करूंगी।”—द वॉचटावर, जून १५, १९८२, पृष्ठ १५.
१४, १५. (क) प्रेरित पौलुस के अनुसार, अविवाहित बने रहने के लिए क्या आवश्यक है? (ख) पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि अविवाहित व्यक्ति “बेहतर” करता है, तथा “और भी धन्य है”?
१४ उस शब्द “निर्णय” पर ध्यान दीजिए। पौलुस लिखते हैं: “परन्तु जो मन में दृढ़ रहता है, और उसको प्रयोजन न हो, वरन अपनी इच्छा पूरी करने में अधिकार रखता हो, और अपने मन में यह बात ठान ली हो, कि मैं अपने कुँवारेपन को विवाह में अर्पण करूँगा, वह अच्छा करता है। सो जो अपना कुँवारापन विवाह में अर्पण करता है, वह अच्छा करता है पर जो विवाह नहीं करता, वह बेहतर करता है।” (१ कुरिन्थियों ७:३७, ३८, NW) यह “बेहतर” क्यों है? पौलुस समझाते हैं: “मैं यह चाहता हूँ कि तुम्हें चिन्ता न हो: अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को क्योंकर प्रसन्न रखे। . . . अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, . . . यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिए कहता हूँ . . . कि जैसा सोहता है, वैसा ही किया जाए; कि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।—१ कुरिन्थियों ७:३२-३५.
१५ क्या ‘प्रभु को प्रसन्न रखने’ की बात को ध्यान में रखकर “एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे” रहना आनन्द से संबंधित है? स्पष्ट है कि पौलुस का विचार ऐसा ही था। एक मसीही विधवा के विषय में बोलते हुए, उसने कहा: “जिस से चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में। परन्तु जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्वर का आत्मा मुझ में भी है।” (तिरछा टाइप हमारा.)—१ कुरिन्थियों ७:३९, ४०.
अविवाहित दशा के लाभ
१६. यहोवा के अविवाहित गवाह किन लाभों का आनन्द उठाते हैं?
१६ चाहे कोई मसीही स्वेच्छा से या हालात की मजबूरी से अविवाहित रहता है, उसकी अविवाहित दशा के कारण उसे अनेक व्यक्तिगत लाभ होते हैं। अविवाहित व्यक्तियों के पास परमेश्वर के वचन का अध्ययन और उस पर चिन्तन करने के लिए प्राय: अधिक समय होता है। यदि वे इस परिस्थिति का लाभ उठाते हैं तो उनकी आध्यात्मिकता में उन्नति हो सकती है। विवाहित साथी न होने के कारण, जिनको वे अपनी समस्याएं बता सके, अनेक जन यहोवा पर और भी निर्भर रहना तथा सभी बातों में निर्देश पाने के लिए उन्हीं की ओर ताकना सीखते हैं। (भजन संहिता ३७:५) यहोवा के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में यह सहायता करता है।
१७, १८. (क) यहोवा के अविवाहित सेवकों को सेवकाई के कौनसे विस्तृत अवसर प्राप्त हैं? (ख) यहोवा के कुछेक अविवाहित सेवकों ने अपने आनन्द का वर्णन कैसे किया है?
१७ अविवाहित मसीहियों को यहोवा की प्रशंसा के लिए सेवकाई के विस्तृत अवसर प्राप्त होते हैं। मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल में विशेष प्रशिक्षण अब केवल उन्हीं भाइयों को दिया जाता है जो अविवाहित या विदुर हैं। अविवाहित बहनें भी परमेश्वर की सेवा में विशेष अनुग्रहों को पाने का प्रयत्न करने के लिए अधिक स्वतंत्र हैं। वह वृद्धा बहन जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, उसने एक अफ्रीकी देश में सेवा करना स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जब, उसी के शब्दों में, वह “एक ५० वर्षीय तनिक कमज़ोर स्त्री” थी। और वह बहन वहीं रही, वहाँ प्रतिबंध लगने पर भी, जब सभी मिशनरियों का उस देश से निकाल दिया गया था। जबकि उसकी उम्र अब ८० वर्ष से अधिक है, वह फिर भी पायनियरिंग कर रही है। क्या वह आनन्दित है? उसने अपनी जीवन-कथा में लिखा: “अविवाहित रहने के कारण जो अतिरिक्त स्वतंत्रता और गतिशीलता मिलती है, उसे मैंने सेवकाई में व्यस्त रहने में उपयोग किया है। और इससे मुझे बहुत आनन्द मिला है। . . . इन वर्षों में यहोवा के साथ मेरा संबंध घनिष्ठ हुआ है। एक अफ्रीकी देश में एक अविवाहित स्त्री होने पर भी मैंने अनुभव किया है कि यहोवा मेरा रक्षक रहा है।”
१८ एक भाई की बातें भी ध्यान देने योग्य हैं, जिसने वॉचटावर सोसायटी के मुख्यालय में कई दशकों तक सेवा की। वह आनन्दित था, जब कि उसने कभी विवाह नहीं किया, और उसे स्वर्गीय जीवन की आशा थी, जहाँ विवाह करने की कोई प्रत्याशा नहीं। जब वह ७९ वर्ष का था, उसने लिखा: “प्रति दिन मैं अपने प्यारे स्वर्गीय पिता से अपनी आध्यात्मिकता और शरीर को स्वस्थ व मज़बूत बनाए रखने के लिए प्रार्थना में सहायता और बुद्धि मांगता हूँ, ताकि मैं उनकी पवित्र इच्छा पूरी करता रहूँ। इन बीते उनचास वर्षों में मैंने सचमुच यहोवा की सेवा में एक आनन्दित, पुरस्कारदायक और धन्य जीवन का सुख पाया है। और यहोवा के अनुग्रह से, मैं उनके आदर और महिमा तथा उनके लोगों की आशिष के लिए निरन्तर सेवकाई में लगे रहने की आशा करता हूँ। . . . यहोवा का आनन्द मुझे विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ते रहने, और उस समय की ओर आस लगाए रखने में सहायता करता है, जब यहोवा के शत्रु होंगे ही नहीं और समस्त पृथ्वी उसी की महिमा से भरपूर होगी।”—गिनती १४:२१; नहेमायाह ८:१०; द वॉचटावर, नवम्बर १५, १९६८, पृष्ठ ६९९-७०२.
सच्चा आनन्द किस पर निर्भर है?
१९. हमारा आनन्द सर्वदा किस बात पर आधारित रहेगा?
१९ यहोवा के साथ हमारा अनमोल संबंध, उनकी स्वीकृति, और उनकी आशिषें—इन्हीं कारणों के द्वारा हमें अनादिकाल तक सच्चा आनन्द मिलता रहेगा। सच्चा आनन्द उत्पन्न करने वाले इन कारणों के प्रति उचित दृष्टिकोण रखने के द्वारा, यहोवा के विवाहित सेवक भी यह समझते हैं कि उनका विवाह ही उनके जीवन में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चीज़ नहीं है। वे प्रेरित पौलुस की सलाह को मानते हैं: “हे भाइयो, मैं यह कहता हूँ, कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिनके पत्नी हों, वे ऐसे हों मानो उनके पत्नी नहीं।” (१ कुरिन्थियों ७:२९) इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अपनी पत्नियों की अवहेलना करे। प्रौढ़ मसीही पति यहोवा की सेवा को प्रथम स्थान देते हैं, और वैसा ही उनकी परमेश्वर का भय माननेवाली, प्रेममय और सहयोग देने वाली पत्नियाँ भी करती हैं, कुछ तो अपने पतियों के साथ पूरे समय की सेवा में भी लगी हैं।—नीतिवचन ३१:१०-१२, २८; मत्ती ६:३३.
२०. विवाह के विशेष अनुग्रहों के प्रति अनेक मसीहियों की कौनसी उचित मनोवृत्ति है?
२० वे विवाहित भाई जो सफरी अध्यक्ष, बेथेल स्वंयसेवक, मण्डली के प्राचीन हैं—यथार्थ में, सभी विवाहित मसीही जो राज्य हितों को प्रथम स्थान देते हैं—वे ‘पूर्णत: संसार का उपयोग’ नहीं करते हैं; वे ऐसा प्रयत्न करते हैं कि उनके विवाह-संबंधी ख़ास अनुग्रह यहोवा की सेवा में उनके समर्पित जीवन से मेल खाएं। (१ कुरिन्थियों ७:३१) फिर भी, वे आनन्दित हैं। क्यों? इस लिए कि उनके आनन्द का मुख्य कारण उनका विवाह नहीं परन्तु यहोवा के प्रति उनकी सेवकाई है। और अनेक वफ़ादार पति और पत्नियाँ—हाँ, और उनके बच्चे भी—इन्हीं बातों में आनन्दित हैं।
२१, २२. (क) यिर्मयाह ९:२३, २४ के आधार पर किन बातों के द्वारा हमें आनन्द से भर जाना चाहिए? (ख) नीतिवचन ३:१३-१८ में आनन्द के किन कारणों का ज़िक्र किया गया है?
२१ यिर्मयाह भविष्यवक्ता ने लिखा: “यहोवा यों कहता है, बुद्धिमान अपनी बुद्धि पर घमण्ड न करे, न वीर अपनी वीरता पर, न धनी अपने धन पर घमण्ड करे; परन्तु जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता है, कि मैं ही वह यहोवा हूं, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है; क्योंकि मैं इन्हीं बातों से प्रसन्न रहता हूं।”—यिर्मयाह ९:२३, २४.
२२ चाहे हम अविवाहित हों या विवाहित, हमारे आनन्द का सबसे बड़ा स्रोत होना चाहिए यहोवा के बारे में हमारा ज्ञान, और यह दृढ़ विश्वास कि उनकी आशिषें हम पर इस लिए हैं कि हम उन्हीं की इच्छा पूरी करते हैं। हम इस लिए भी आनन्दित हैं क्योंकि हमें इस बात की समझ है कि महत्त्व की बातों को नापने का सही मापदंड किन चीज़ों से बनता है, यानी वे चीज़ें जिनमें यहोवा आनन्द लेते हैं। सुलैमान राजा, जिसने अनेक विवाह किए थे, उसने विवाह को आनन्द की एक मात्र कुंजी नहीं माना। उसने कहा: “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चाँदी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है। वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं। उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिए वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं वह धन्य हैं।”—नीतिवचन ३:१३-१८.
२३, २४. हमें क्यों इस बात का यक़ीन हो सकता है कि यहोवा के सभी वफ़ादार सेवक नयी रीति-व्यवस्था में आनन्दित होंगे?
२३ ऐसा हो कि हम में से वे लोग, जो विवाहित हैं ईश्वरीय इच्छा पूरी करने में अनंत आनन्द प्राप्त करें। और हमारे वे भाई और बहन जो स्वेच्छा से या हालात की मजबूरी से अविवाहित हैं, वे अपनी सभी परीक्षाओं में धीरज रखें और यहोवा की सेवा में अभी और सर्वदा आनन्द और संतुष्टि प्राप्त करते रहें। (लूका १८:२९, ३०; २ पतरस ३:११-१३) परमेश्वर की आनेवाली रीति-व्यवस्था में “पुस्तकें” खोली जाएंगी। (प्रकाशितवाक्य २०:१२) इन में नई-नई उत्तेजक आज्ञाएं और विधियाँ होंगी जिनके द्वारा आज्ञाकारी मानवजाति को आनन्द मिलेगा।
२४ निश्चय ही, हम विश्वस्त हो सकते हैं कि हमारे “आनंदपूर्ण परमेश्वर” ने हमारे लिए निराले ढंग से अच्छी वस्तुएं रखी हैं जिनके कारण हमें संपूर्ण आनन्द की प्राप्ति होगी। (१ तिमुथियुस १:११, NW) परमेश्वर ‘अपनी मुट्ठी खोलकर सब प्राणीयों की मनोकामना पूरी’ करते रहेंगे। (भजन संहिता १४५:१६, NW) इस में कोई आश्चर्य नहीं कि यहोवा की सेवा करने में सच्चा आनन्द अभी भी मिलता है और सर्वदा मिलता रहेगा।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ यहोवा के समर्पित सेवकों के लिए आनन्द का आधार क्या है?
▫ बाइबल के समय में, यहोवा के कुछेक आनन्दित, अविवाहित सेवक कौन थे?
▫ पौलुस ने अविवाहित रहने की सलाह क्यों दी, और कुछ मसीहियों ने इसे एक आनन्दित जीवन कैसे पाया है?
▫ हमारा आनन्द सर्वदा किस बात पर निर्भर रहेगा?
▫ हमें क्यों यक़ीन होना चाहिए कि सभी वफ़ादार लोग नयी रीति-व्यवस्था में आनन्दित रहेंगे?
[पेज 29 पर तसवीरें]
अनेक अविवाहित बहनें पूरे समय की सेविकाओं के रूप में आनन्द के साथ यहोवा की सेवा कर रही हैं
[पेज 31 पर तसवीरें]
यहोवा के हितों के लिए सेवा करना ही आनन्द का प्राथमिक स्रोत है