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“सब जातियों” को गवाही देनाप्रहरीदुर्ग—1994 | अगस्त 1
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“सब जातियों” को गवाही देना
“राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती २४:१४.
१. मत्ती २४:१४ में लिखे यीशु के शब्द उसके अनुयायियों के लिए एक आश्चर्य क्यों रहे होंगे?
यीशु के ऊपर दिए गए शब्दों को सुनकर उसके यहूदी शिष्य कितने आश्चर्यचकित हुए होंगे! पवित्रीकृत यहूदियों के लिए “अशुद्ध” गैर यहूदियों, अर्थात् ‘अन्यजातियों’ से जाकर बात करने का विचार ही बहुत दूर की बात थी, यहाँ तक की घृणित बात थी।a एक कर्त्तव्यनिष्ठ यहूदी एक अन्यजाति व्यक्ति के घर में क़दम रखने के बारे में भी नहीं सोचता! उन यहूदी शिष्यों को यीशु, उसके प्रेम, और उसके आदेश के बारे में अभी भी बहुत कुछ सीखना था। और उन्हें यहोवा की निष्पक्षता के बारे में अभी बहुत सीखना था।—प्रेरितों १०:२८, ३४, ३५, ४५.
२. (क) गवाहों की सेवकाई कितनी व्यापक रही है? (ख) कौनसे तीन मूलभूत तत्त्वों ने गवाहों की प्रगति में योगदान दिया है?
२ यहोवा के गवाहों ने जातियों में सुसमाचार प्रचार किया है जिसमें आधुनिक-दिन इस्राएल भी शामिल है। और अब वे इसे पहले से भी ज़्यादा जातियों में उद्घोषित कर रहे हैं। वर्ष १९९४ में कुछ २३० देशों में ४५ लाख से भी ज़्यादा गवाह प्रचार कर रहे हैं। वे दिलचस्पी दिखाने वालों के साथ लगभग ४५ लाख गृह बाइबल अध्ययन संचालित कर रहे हैं। यह काम विश्वव्यापी पूर्वधारणा के बावजूद किया जा रहा है, जो कि अकसर गवाहों की शिक्षाओं और उद्देश्यों की अज्ञानता पर आधारित होती है। जैसे प्रारंभिक मसीहियों के बारे में कहा गया था, वही उनके बारे में भी कहा जा सकता है: “क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत [या पंथ, NW] के विरोध में लोग बातें कहते हैं।” (प्रेरितों २८:२२) तो फिर हम उनकी सफल सेवकाई का श्रेय किसे दे सकते हैं? कम-से-कम ऐसे तीन तत्त्व हैं जो उनकी उन्नति को योगदान देते हैं—यहोवा की आत्मा के निर्देशन के अनुसार चलना, मसीह के व्यावहारिक तरीक़ों का अनुकरण करना, और प्रभावकारी संचार के लिए उपयुक्त साधनों को इस्तेमाल करना।
यहोवा की आत्मा और सुसमाचार
३. जो सम्पन्न किया गया है उसके लिए हम डींग क्यों नहीं मार सकते हैं?
३ क्या यहोवा के गवाह अपनी सफलता के लिए डींग मारते हैं, मानो वह उनकी किन्हीं ख़ास प्रतिभाओं के कारण मिलती है? नहीं, क्योंकि यीशु के शब्द लागू होते हैं: “जब उन सब कामों को कर चुको जिस की आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है।” समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त मसीहियों के नाते, यहोवा के गवाहों ने, चाहे उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हों, परमेश्वर की सेवा करने की ज़िम्मेदारी को स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया है। कुछ लोगों के लिए, इसका अर्थ है मिशनरियों के रूप में, या शाखा कार्यालयों में और मसीही प्रकाशनों को छापने की सहूलियतों के स्थानों पर स्वयंसेवकों के रूप में पूर्ण-समय की सेवा करना। अन्य लोग ऐसी मसीही तत्परता की वजह से धार्मिक भवनों का निर्माण कार्य, पायनियर सेवकों के रूप में पूर्ण-समय का प्रचार, या स्थानीय कलीसियाओं में सुसमाचार के प्रकाशकों के रूप में अंशकालिक प्रचार करते हैं। हम में से कोई भी अपना कर्त्तव्य निभाने, अर्थात् “जो हमें करना चाहिए था” उसे करने के लिए उचित रूप से शेखी नहीं मार सकता है।—लूका १७:१०; १ कुरिन्थियों ९:१६.
४. मसीही सेवकाई के विश्वव्यापी विरोध को कैसे पार किया गया है?
४ जो भी सफलता हमें मिलती है उसका श्रेय यहोवा की आत्मा, या सक्रिय शक्ति को दिया जा सकता है। आज यह कहना उतना ही मान्य है जितना कि भविष्यवक्ता जकर्याह के दिनों में था: “जरुब्बाबेल के लिये यहोवा का यह वचन है: न तो बल से, और न शक्ति से, परन्तु मेरे आत्मा के द्वारा होगा, मुझ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” अतः, गवाहों के प्रचार कार्य के विश्वव्यापी विरोध को, मानवी प्रयास से नहीं, बल्कि यहोवा के मार्गदर्शन और सुरक्षा से पार किया गया है।—जकर्याह ४:६.
५. राज्य संदेश के फैलाने के कार्य में यहोवा कौनसी भूमिका निभाता है?
५ राज्य संदेश के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखानेवालों के बारे में यीशु ने कहा: “भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है। . . . जब तक किसी को पिता की ओर से यह बरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।” (यूहन्ना ६:४५, ६५) यहोवा हृदयों को और मनों को पढ़ सकता है, और वह उन्हें जानता है जो संभवतः उसे अभी न जानते हुए भी उसके प्रेम के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाएँगे। इस अद्वितीय सेवकाई को मार्गदर्शित करने के लिए वह अपने स्वर्गदूतों को भी इस्तेमाल करता है। इसीलिए यूहन्ना ने दर्शन में स्वर्गदूतीय सहभागिता देखी और लिखा: “मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा, जिस के पास पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था।”—प्रकाशितवाक्य १४:६.
आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत
६. एक व्यक्ति द्वारा सुसमाचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाने के लिए कौनसी मूल मनोवृत्ति की ज़रूरत है?
६ यहोवा एक व्यक्ति को सुसमाचार स्वीकार करने का मौका क्यों प्रदान करता है इसका एक और कारण यीशु द्वारा व्यक्त किया गया है: “ख़ुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।” (मत्ती ५:३, NW) एक आत्म-संतुष्ट व्यक्ति या वह जो सत्य की खोज नहीं कर रहा है, आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत नहीं होगा। वह केवल भौतिक, या शारीरिक बातों के संबंध में ही सोचता है। आत्म-संतोष एक बाधा बन जाती है। अतः, घर-घर जाते समय हमें मिलनेवाले अनेक लोग जब संदेश को अस्वीकार करते हैं, तो हमें उनकी प्रतिक्रिया के लिए सभी विविध कारणों पर ग़ौर करने की ज़रूरत है।
७. अनेक लोग सच्चाई के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया क्यों नहीं दिखाते?
७ अनेक लोग सुनने से इनकार करते हैं, क्योंकि वे ढिठाई से अपने वंशागत धर्म पर चलते हैं, और कोई चर्चा करने के इच्छुक नहीं हैं। दूसरे लोग एक ऐसे धर्म द्वारा आकर्षित हुए हैं जो उनके व्यक्तित्व को जँचता है। कुछ लोगों को रहस्यवादी धर्म चाहिए, दूसरे लोग भावुकता से प्रभावित होकर प्रतिक्रिया दिखाते हैं, और कुछ अन्य लोग अपने गिरजे की सामाजिक गतिविधियों में ख़ासकर दिलचस्पी रखते हैं। आज अनेकों ने एक ऐसी जीवन-शैली अपनायी है जो परमेश्वर के स्तरों के विरुद्ध है। संभवत:, वे एक अनैतिक जीवन जीते हैं, जिसकी वजह से वे कहते हैं, “मुझे दिलचस्पी नहीं है।” दूसरे लोग, जो शायद शिक्षित और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के होने का दावा करते हैं, बाइबल की जटिलता को नज़रअंदाज करते हुए अतिसरल कहकर उसे अस्वीकार करते हैं।—१ कुरिन्थियों ६:९-११; २ कुरिन्थियों ४:३, ४.
८. अस्वीकरण के कारण हमारा जोश कम क्यों नहीं होना चाहिए? (यूहन्ना १५:१८-२०)
८ क्या अधिकांश लोगों द्वारा अस्वीकरण से जीवन-रक्षक सेवकाई में हमारे विश्वास और जोश को कम होना चाहिए? रोमियों को लिखे पौलुस के शब्दों से हम सांत्वना पा सकते हैं: ‘यदि कुछ लोगों ने विश्वास नहीं भी किया तो क्या हुआ? क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को व्यर्थ ठहराएगा? ऐसा कदापि न हो! वरन् परमेश्वर ही सच्चा ठहरे, चाहे प्रत्येक व्यक्ति झूठा पाया जाए, जैसा कि लिखा है, “कि तू अपनी बातों में खरा, और अपने न्याय में सच्चा ठहरे।”’—रोमियों ३:३, ४, NHT.
९, १०. क्या प्रमाण है कि अनेक देशों में विरोध को पार किया गया है?
९ हम संसार-भर में ऐसे देशों के अनेक उदाहरणों से प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं, जो कि बहुत ही अप्रतिक्रियाशील प्रतीत हुए थे, और फिर भी, समय आने पर बिलकुल विपरीत साबित हुए हैं। यहोवा और स्वर्गदूत जानते थे कि सत्हृदयी लोगों को ढूँढा जाना था—लेकिन यहोवा के गवाहों को अपनी सेवकाई में लगे रहना और धीरज धरना था। उदाहरण के लिए, कुछ ऐसे देशों को लीजिए, जहाँ ५० साल पहले कैथोलिक धर्म एक अलंघ्य बाधा प्रस्तुत करता हुआ प्रतीत होता था—अर्जेंटाइना, आयरलैंड, इटली, कोलम्बिया, पुर्तगाल, ब्राज़ील, मैक्सिको, और स्पेन। वर्ष १९४३ में गवाह लोग बहुत कम थे, विश्व-भर में सिर्फ़ १,२६,०००, जिनमें से ७२,००० अमरीका में थे। गवाहों को जिस अज्ञानता और पूर्वधारणा का सामना करना पड़ा वह एक ऐसी ईंट की दीवार के समान प्रतीत होती थी जिसे तोड़ा नहीं जा सकता। फिर भी, आज प्रचार के कुछ सबसे सफल परिणाम इन देशों में मिले हैं। अनेक भूतपूर्व साम्यवादी देशों के बारे में भी यह सच है। वर्ष १९९३ में कीव, यूक्रेन के अधिवेशन में ७,४०२ लोगों का बपतिस्मा इस बात का प्रमाण देता है।
१० अपने पड़ोसियों को सुसमाचार बताने के लिए गवाहों ने कौनसे तरीक़ों को इस्तेमाल किया है? क्या उन्होंने लोगों को धर्मान्तरित करने के लिए भौतिक प्रलोभनों का इस्तेमाल किया है, जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या उन्होंने सिर्फ़ ग़रीबों और अशिक्षित लोगों से भेंट की है, जैसा दूसरों ने दावा किया है?
सुसमाचार फैलाने के सफल तरीक़े
११. अपनी सेवकाई में यीशु ने कौनसा उत्तम उदाहरण रखा? (यूहन्ना ४:६-२६ देखिए।)
११ यीशु और उसके शिष्यों ने एक आदर्श स्थापित किया जिसका अनुकरण गवाह शिष्य-बनाने के अपने काम में आज भी करते हैं। जहाँ कहीं लोग थे चाहे अमीर या ग़रीब, यीशु वहाँ गया—घरों पर, सार्वजनिक स्थानों पर, झील के किनारों पर, पहाड़ी ढालों पर, यहाँ तक की आराधनालयों में भी।—मत्ती ५:१, २; ८:१४; मरकुस १:१६; लूका ४:१५.
१२, १३. (क) पौलुस ने मसीहियों के लिए एक आदर्श कैसे प्रदान किया? (ख) यहोवा के गवाहों ने पौलुस के उदाहरण का अनुकरण कैसे किया है?
१२ स्वयं अपनी सेवकाई के संबंध में प्रेरित पौलुस उचित रूप से कह सका: “तुम जानते हो, कि पहिले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुंचा, मैं हर समय तुम्हारे साथ . . . प्रभु की सेवा करता ही रहा। और जो जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उन को बताने और लोगों के साम्हने और घर घर सिखाने से कभी न झिझका।”—प्रेरितों २०:१८-२०.
१३ यहोवा के गवाह संसार-भर में प्रेरितिक आदर्श, अर्थात् घर-घर की सेवकाई का अनुकरण करने के लिए जाने जाते हैं। एक महंगी, सतही, और अव्यक्तिक टी.वी. सेवकाई पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, गवाह लोग लोगों के पास जाते हैं, चाहे अमीर हो या ग़रीब, और उनसे आमने-सामने बात करते हैं। वे परमेश्वर और उसके वचन के बारे में चर्चा करने के लिए इच्छुक रहते हैं।b वे भौतिक वस्तुओं का मुफ़्त वितरण करने के द्वारा धान्य मसीही बनाने की कोशिश नहीं करते हैं। जो तर्क करने के लिए इच्छुक हैं, उन्हें वे बताते हैं कि मानवजाति की समस्याओं का एकमात्र सच्चा हल परमेश्वर के राज्य के द्वारा शासकत्व है, जो हमारी पृथ्वी की परिस्थितियों को बेहतरी के लिए बदल देगा।—यशायाह ६५:१७, २१-२५; २ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:१-४.
१४. (क) अनेक मिशनरियों और पायनियरों ने एक ठोस नींव कैसे डाली है? (ख) जापान में यहोवा के गवाहों के अनुभव से हम क्या सीखते हैं?
१४ यथासंभव देशों में काम सम्पन्न करने के लिए, मिशनरियों और पायनियरों ने अनेक देशों में एक मोरचा स्थापित किया है। उन्होंने एक नींव डाली है, और फिर स्थानीय गवाहों ने नेतृत्व किया है। अतः, प्रचार जारी रखने और उसे सुव्यवस्थित रखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी गवाहों की ज़रूरत नहीं पड़ी है। एक उत्कृष्ट उदाहरण जापान का है। वर्ष १९४९ में, वहाँ ख़ासकर आस्ट्रेलेशियाई और ब्रिटिश मिशनरी गए, भाषा का अध्ययन किया, उस युद्धोत्तर काल की थोड़ी-बहुत अपरिष्कृत परिस्थितियों के अनुकूल बने, और घर-घर गवाही देने के लिए चल पड़े। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, जापान में गवाहों पर पाबंदी लगायी गयी और उन्हें सताया गया। सो मिशनरियों ने वहाँ आकर सिर्फ़ मुट्ठी भर सक्रिय जापानी गवाह पाए। लेकिन आज वे ३,००० से भी ज़्यादा कलीसियाओं में, १,८७,००० से भी ज़्यादा संख्या में बढ़ गए हैं! उनकी प्रारंभिक सफलता का रहस्य क्या था? वहाँ २५ सालों से भी ज़्यादा समय से सेवा कर रहे एक मिशनरी ने कहा: “लोगों से बातचीत करना सीखना सबसे महत्त्वपूर्ण था। उनकी भाषा बोलने से, हम उनके साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित कर सकते थे, उनकी जीवन-शैली को समझ सकते थे और उसकी क़दर कर सकते थे। हमें दिखाना था कि हम जापानियों से प्रेम करते हैं। अपने मसीही मूल्यों का समझौता किए बग़ैर हम ने नम्रता से स्थानीय समुदाय का एक भाग बनने का प्रयत्न किया।”
मसीही आचरण भी एक गवाही
१५. गवाहों ने मसीही आचरण कैसे प्रदर्शित किया है?
१५ बहरहाल, लोगों ने सिर्फ़ बाइबल संदेश के प्रति ही अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं दिखायी है। उन्होंने मसीहियत को कामों में भी देखा है। अति दुःखद स्थितियों, जैसे गृह-युद्ध, जनजातीय झगड़ों, और नृजातीय शत्रुता में भी, उन्होंने गवाहों के प्रेम, मेल-मिलाप और एकता को देखा है। गवाहों ने सभी संघर्षों में मसीही तटस्थता की एक स्पष्ट स्थिति बनाए रखी है, और यीशु के शब्दों को पूरा किया है: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना १३:३४, ३५.
१६. कौन-सा अनुभव व्यावहारिक मसीही प्रेम को सचित्रित करता है?
१६ पड़ोसी के प्रति प्रेम एक वयोवृद्ध पुरुष के मामले में सचित्रित किया गया था जिसने एक स्थानीय अख़बार को “श्री. और श्रीमती अच्छे महाशय” के बारे में लिखा। उसने व्याख्या की कि जब उसकी पत्नी मर रही थी तब उसके पड़ोसी उसके साथ कृपालु थे। “उसकी मौत होने के बाद . . . से वे लोग बहुत ही अच्छे रहे हैं,” उसने लिखा। “उन्हों ने मुझे ‘गोद लिया’ है . . . , मेरे सब तरह के काम काज किए हैं और ७४-साल के एक सेवा-निवृत्त की समस्याओं को सुलझाने में मदद की है। जो बात इसे और असामान्य बनाती है वह यह है कि वे लोग अश्वेत हैं, मैं श्वेत हूँ। वे यहोवा के गवाह हैं, मैं एक निष्क्रिय कैथोलिक हूँ।”
१७. हमें कौन-से मार्ग से दूर रहना चाहिए?
१७ यह अनुभव सचित्रित करता है कि हम अनेक तरीक़ों से गवाही दे सकते हैं, जिसमें हमारा दैनिक आचरण भी सम्मिलित है। दरअसल, जब तक कि हमारा आचरण मसीह-समान नहीं है, हमारी सेवकाई फरीसियों-जैसी, बेअसर होगी। हम उनकी तरह नहीं होना चाहते जिनका यीशु ने वर्णन किया: “इसलिये वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना; परन्तु उन के से काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।”—मत्ती २२:३७-३९; २३:३.
दास वर्ग उचित साधन प्रदान करता है
१८. सत्हृदयी लोगों की मदद करने के लिए बाइबल साहित्य हमें कैसे सज्जित करता है?
१८ सब जातियों में सुसमाचार प्रचार करने के लिए एक और अत्यावश्यक तत्त्व, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा तैयार किए गए बाइबल साहित्य की उपलब्धता है। हमारे पास ऐसी किताबें, ब्रोशर, ट्रैक्ट, और पत्रिकाएँ हैं जो लगभग सभी निष्कपट प्रश्नकर्ता को संतोषप्रद जवाब दे सकती हैं। यदि हम किसी मुसलमान, हिंदू, बौद्धधर्मी, या यहूदी से मिलते हैं, तो हम एक वार्तालाप और संभवतः एक बाइबल अध्ययन शुरू करने के लिए परमेश्वर के लिए मनुष्यजाति की खोज (अंग्रेज़ी) किताब या विविध ट्रैक्टों और पुस्तिकाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि एक विकासवादी सृष्टि के बारे में पूछता है, तो हम किताब जीवन—यहाँ कैसे आया? क्रमविकास से सा सृष्ट से? (अंग्रेज़ी) इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि एक युवा व्यक्ति पूछता है, ‘जीवन का उद्देश्य क्या है?’ तो हम उसे किताब युवाओं के प्रश्न—व्यावहारिक उत्तर (अंग्रेज़ी) की ओर निर्देशित कर सकते हैं। यदि एक व्यक्ति हताशा, थकान, बलात्कार, तलाक़ जैसी व्यक्तिगत समस्याओं द्वारा गंभीरता से प्रभावित है, तो हमारे पास ऐसी पत्रिकाएँ हैं जिनमें ऐसे विषयों को एक व्यावहारिक तरीक़े से सम्बोधित किया गया है। सच ही, वह विश्वासयोग्य दास वर्ग जो यीशु की भविष्यवाणी के अनुसार “समय पर . . . भोजन” प्रदान करेगा, अपनी भूमिका निभा रहा है।—मत्ती २४:४५-४७.
१९, २०. अल्बानिया में राज्य कार्य ने कैसे तेज़ी पकड़ी है?
१९ परन्तु लोगों तक पहुँचने के लिए, इस साहित्य को कई भाषाओं में तैयार करना ज़रूरी रहा है। बाइबल और शास्त्रीय साहित्य को २०० से भी ज़्यादा भाषाओं में अनुवाद करना कैसे संभव हुआ है? अल्बानिया के उदाहरण का संक्षिप्त विचार सचित्रित करता है कि विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग बड़ी परेशानियों के बावजूद और भाषा की तत्क्षण पहुँच के लिए आधुनिक पिन्तेकुस्त के बग़ैर किस तरह सुसमाचार को बढ़ावा देने में समर्थ हुआ है।—प्रेरितों २:१-११.
२० कुछ ही साल पहले तक अल्बानिया को एकमात्र सचमुच नास्तिक साम्यवादी देश माना जाता था। नैशनल जियोग्राफिक (अंग्रेज़ी) पत्रिका ने १९८० में कहा: “अल्बानिया [धर्म] निषिद्ध करता है, १९६७ में इसने ख़ुद को ‘संसार का पहला नास्तिक राष्ट्र’ घोषित किया। . . . अल्बानिया की नयी पीढ़ी को सिर्फ़ नास्तिकता पता है।” अब जबकि साम्यवाद का पतन हो गया है, अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पहचाननेवाले अल्बानियाई लोग यहोवा के गवाहों द्वारा किए जा रहे प्रचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं। वर्ष १९९२ में टीराना में इतालवी और अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान रखने वाले युवा गवाहों की एक छोटी सी अनुवादकों की टीम बनायी गयी। दूसरी जगहों से भेंट करनेवाले योग्य भाइयों ने उन्हें लैपटॉप कंप्यूटर इस्तेमाल करना सिखाया कि उस पर अल्बानियाई भाषा में लिख सकें। उन्होंने ट्रेक्टों और प्रहरीदुर्ग पत्रिका का अनुवाद शुरू किया। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, वे अन्य बहुमूल्य बाइबल प्रकाशनों के अनुवाद पर काम करते हैं। फ़िलहाल, उस छोटे से देश में (जनसंख्या ३२,६२,०००) कुछ २०० सक्रिय गवाह हैं, और १९९४ में १,९८४ लोग स्मारक के लिए उपस्थित हुए।
हम सब पर एक ज़िम्मेदारी है
२१. हम किस तरह के समय में जी रहे हैं?
२१ संसार की घटनाएँ एक पराकाष्ठा पर पहुँच रही हैं। अपराध और हिंसा में वृद्धि, स्थानीय युद्धों में हत्याओं और बलात्कार, प्रचलित लापरवाह नैतिकता और उसका फल जैसे लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियों, और वैध अधिकार के प्रति अनादर की घटनाओं के कारण संसार अराजक और अनियंत्रणीय बनता प्रतीत होता है। हम उत्पत्ति में वर्णित जलप्रलय-पूर्व समयों के समरूप समय में हैं: “यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है। और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ।”—उत्पत्ति ६:५, ६; मत्ती २४:३७-३९.
२२. सभी यहोवा के गवाहों पर कौनसी मसीही ज़िम्मेदारी है?
२२ नूह के दिन की तरह ही, यहोवा कार्यवाही करेगा। परन्तु अपने न्याय और प्रेम के कारण वह चाहता है कि पहले सुसमाचार और चेतावनी संदेश सब जातियों में प्रचार किया जाए। (मरकुस १३:१०) इस संबंध में यहोवा के गवाहों पर एक ज़िम्मेदारी है—ऐसे लोगों को ढूँढना जो परमेश्वर की शांति के योग्य हैं और उन्हें उसके शांति के तरीक़े सिखाना। जल्द ही, परमेश्वर के निर्धारित समय में, प्रचार कार्य सफलतापूर्वक समाप्त हो जाएगा। “तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती १०:१२, १३; २४:१४; २८:१९, २०.
[फुटनोट]
a अन्यजाति लोगों पर अतिरिक्त जानकारी के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ न्यू यॉर्क, निग. द्वारा प्रकाशित शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्ट, (अंग्रेज़ी) खण्ड II, पृष्ठ ४७२-४ पर विषय “जातियाँ” देखिए।
b मसीही सेवकाई पर व्यावहारिक सुझावों के लिए अगस्त १५, १९८४ की द वॉचटावर, पृष्ठ १५ पर “प्रभावकारी सेवक कैसे बनें” और पृष्ठ २१ पर “प्रभावकारी सेवकाई के कारण ज़्यादा शिष्य” देखिए।
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“सब जातियों” को गवाही देनाप्रहरीदुर्ग—1994 | अगस्त 1
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[पेज 28 पर बक्स]
देश गवाह १९४३ में सक्रिय १९९३ में
अर्जेंटाइना ३७४ १,०२,०४३
आयरलैंड १५०? ४,२२४
इटली विश्व युद्ध II-कोई रिकार्ड नहीं २,०१,४४०
कोलम्बिया ?? ६०,८५४
चिली ७२ ४४,६६८
पुर्तगाल कार्य का कोई रिकार्ड नहीं ४१,८४२
पेरू कार्य का कोई रिकार्ड नहीं ४५,३६३
पोलैंड विश्व युद्ध II-कोई रिकार्ड नहीं १,१३,५५९
फिलीपींस विश्व युद्ध II-कोई रिकार्ड नहीं १,१६,५७६
फ्रांस विश्व युद्ध II-कोई रिकार्ड नहीं १,२२,२५४
ब्राज़ील ४३० ३,६६,२९७
मैक्सिको १,५६५ ३,८०,२०१
युरुग्वे २२ ९,१४४
वेनेजुइला कार्य का कोई रिकार्ड नहीं ६४,०८१
स्पेन कार्य का कोई रिकार्ड नहीं ९७,५९५
[पेज 26 पर तसवीर]
अनेक कैथोलिक देशों, जैसे कि स्पेन में यहोवा के गवाह बढ़ रहे हैं
[पेज 27 पर तसवीरें]
पृथ्वी-भर के राष्ट्रों में यहोवा के गवाह सक्रिय हैं
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