यहोवा अपने भक्तों को बचाना जानता है
“यहोवा जानता है कि जो उसकी भक्ति करते हैं उन्हें परीक्षा से कैसे निकाले।”—2 पत. 2:9.
हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा:
अपना मकसद पूरा करने के लिए यह तय कर सकता है कि कौन-सी घटना कब घटेगी?
अपने लोगों को बचाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करेगा?
जानता है कि भविष्य में घटनाएँ क्या मोड़ लेंगी?
1. “महा-संकट” के दौरान धरती पर कैसे हालात होंगे?
शैतान की दुनिया पर यहोवा का कहर अचानक ही टूट पड़ेगा। (1 थिस्स. 5:2, 3) जैसे-जैसे ‘यहोवा के भयानक दिन’ की घटनाएँ पूरी होंगी, धरती पर हालात बदतर होते जाएँगे और लोगों में हाहाकार मच जाएगा। (सप. 1:14-17) यह भारी मुश्किलों और परेशानियों का दौर होगा। इसीलिए बाइबल कहती है कि उस वक्त “ऐसा महा-संकट होगा जैसा दुनिया की शुरूआत से न अब तक हुआ और न फिर कभी होगा।”—मत्ती 24:21, 22 पढ़िए।
2, 3. (क) “महा-संकट” के दौरान परमेश्वर के लोगों को क्या झेलना पड़ेगा? (ख) हम भविष्य में होनेवाली घटनाओं के लिए खुद को कैसे तैयार कर सकते हैं?
2 “महा-संकट” के आखिरी दौर में यहोवा के लोगों पर “मागोग देश के गोग” का चौतरफा हमला होगा। इस दौरान दुश्मनों की “बलवन्त सेना” यहोवा के लोगों पर इस तरह चढ़ाई करेगी “जैसे बादल भूमि पर छा जाता है।” (यहे. 38:2, 14-16) उस वक्त कोई भी इंसानी संगठन यहोवा के लोगों की मदद के लिए नहीं आएगा। सिर्फ यहोवा ही उन्हें छुटकारा दे पाएगा। जब यहोवा के लोग मौत से रू-बरू होंगे, तो वे क्या करेंगे?
3 अगर आप यहोवा के एक सेवक हैं, तो क्या आपको यकीन है कि यहोवा अपने लोगों को महा-संकट से बचाने की ताकत रखता है और वह ऐसा ज़रूर करेगा? प्रेषित पतरस ने लिखा: “यहोवा जानता है कि जो उसकी भक्ति करते हैं उन्हें परीक्षा से कैसे निकाले, साथ ही वह दुष्टों को नाश करने के लिए उन्हें न्याय के दिन तक रख छोड़ना भी जानता है।” (2 पत. 2:9) बीते ज़माने में यहोवा ने जिस तरह अपने लोगों को दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया, उन वाकयों पर मनन करने से हम भविष्य में होनेवाली घटनाओं का सामना करने के लिए तैयार हो पाएँगे। आइए अब हम इनमें से तीन वाकयों पर गौर करें, जिनसे इस बात पर हमारा विश्वास और भी मज़बूत हो जाएगा कि यहोवा अपने लोगों को बचा सकता है।
जलप्रलय से बच निकलना
4. जलप्रलय के मामले में यह क्यों ज़रूरी था कि हर काम वक्त पर किया जाए?
4 आइए पहले हम नूह के दिनों के जलप्रलय के बारे में देखें। इस मामले में यहोवा की मरज़ी पूरी हो, इसके लिए ज़रूरी था कि हर काम वक्त पर किया जाए। जलप्रलय से पहले एक बड़ा जहाज़ बनाना था और उसमें जानवरों को इकट्ठा करना था। यह कोई आसान काम नहीं था। क्या यहोवा ने सोचा कि पहले जहाज़ तैयार हो जाए, फिर देखेंगे कि जलप्रलय कब लाना है या यह कि अगर जहाज़ समय पर तैयार नहीं हुआ, तो जलप्रलय की तारीख आगे बढ़ा देंगे? जी नहीं, उत्पत्ति की किताब में हम ऐसा कुछ नहीं पढ़ते। दरअसल, नूह को जहाज़ बनाने की आज्ञा देने से बहुत पहले ही परमेश्वर ने जलप्रलय का समय तय कर दिया था। हम यह कैसे कह सकते हैं?
5. उत्पत्ति 6:3 के मुताबिक यहोवा ने क्या ऐलान किया और कब किया?
5 बाइबल बताती है कि यहोवा ने स्वर्ग में अपने एक फैसले का ऐलान किया। उत्पत्ति 6:3 में हम पढ़ते हैं: “मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।” क्या परमेश्वर यहाँ इंसानों की औसत आयु की बात कर रहा था? जी नहीं, दरअसल यहोवा बता रहा था कि वह कितने साल बाद दुष्ट इंसानों का सफाया करेगा।a हम जानते हैं कि जलप्रलय ईसा पूर्व 2,370 में शुरू हुआ। तो इसका मतलब है कि परमेश्वर ने 120 साल पहले यानी ईसा पूर्व 2,490 में यह फैसला सुनाया था। उस वक्त नूह की उम्र 480 साल थी। (उत्प. 7:6) इसके करीब 20 साल बाद, ईसा पूर्व 2,470 में नूह का पहला बेटा पैदा हुआ। इसके बाद उसके दो और बेटे हुए। (उत्प. 5:32) जलप्रलय के शुरू होने में करीब सौ साल ही बचे थे, लेकिन यहोवा ने अब तक नूह को यह जानकारी नहीं दी थी कि मानवजाति को बचाने में उसकी क्या खास भूमिका होगी। परमेश्वर नूह को यह कब बताता?
6. यहोवा ने नूह को जहाज़ बनाने की आज्ञा कब दी?
6 शायद नूह के बेटों के जन्म के कई दशकों बाद ही यहोवा ने नूह को बताया कि वह क्या करनेवाला है। हम यह कैसे कह सकते हैं? परमेश्वर का प्रेरित वचन ज़ाहिर करता है कि जब यहोवा ने नूह को जहाज़ बनाने की आज्ञा दी, तब नूह के बेटे बड़े हो चुके थे और उनकी शादी हो चुकी थी। यहोवा ने नूह से कहा: “तेरे संग मैं वाचा बान्धता हूं: इसलिये तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज़ में प्रवेश करना।” (उत्प. 6:9-18) मुमकिन है कि जलप्रलय के बस 40 या 50 साल पहले ही नूह को जहाज़ बनाने की आज्ञा दी गयी थी।
7. (क) नूह और उसके परिवार ने अपना विश्वास कैसे ज़ाहिर किया? (ख) परमेश्वर ने नूह को जलप्रलय के आने का वक्त कब बताया?
7 जैसे-जैसे जहाज़ तैयार हो रहा था, नूह और उसके परिवार ने सोचा होगा कि परमेश्वर कैसे अपना मकसद पूरा करेगा और कब जलप्रलय शुरू होगा। लेकिन इस बात की जानकारी ना होने की वजह से वे जहाज़ बनाने के काम में धीमे नहीं पड़ गए। बाइबल बताती है: “परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।” (उत्प. 6:22) जी हाँ, उसने बिलकुल वैसा ही किया। आखिरकार जलप्रलय से बस सात दिन पहले यहोवा ने नूह को बताया कि जलप्रलय कब शुरू होगा। नूह और उसके परिवार के पास बस जानवरों को जहाज़ में चढ़ाने भर का समय था। इस तरह, ‘नूह की अवस्था के छः सौवें वर्ष के दूसरे महीने के सत्तरवें दिन,’ जब आकाश के झरोखे खोले गए, तब सब कुछ तैयार था।—उत्प. 7:1-5, 11.
8. जलप्रलय का वाकया हमारे इस यकीन को कैसे पक्का करता है कि यहोवा सही वक्त पर अपने लोगों को बचाना जानता है?
8 जलप्रलय का वाकया दिखाता है कि यहोवा न सिर्फ वक्त का पाबंद है बल्कि अपने भक्तों को बचाने की काबिलीयत भी रखता है। जैसे-जैसे इस दुनिया की व्यवस्था के अंत का समय नज़दीक आ रहा है, हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा का जो भी मकसद है, वह उसके नियुक्त समय पर ज़रूर पूरा होगा; ठीक उस “दिन और उस घड़ी,” जो उसने ठहरायी है।—मत्ती 24:36; हबक्कूक 2:3 पढ़िए।
लाल समुद्र पर बचाए गए
9, 10. मिस्री सेना को फँसाने के लिए यहोवा ने अपने लोगों का इस्तेमाल कैसे कियाः?
9 हमने अब तक देखा कि यहोवा यह तय कर सकता है कि कौन-सी घटना कब होगी ताकि उसका मकसद सही वक्त पर पूरा हो। और क्या बात दिखाती है कि यहोवा अपने भक्तों को बचा सकता है? आइए अब हम दूसरे वाकए पर गौर करें जो दिखाता है कि यहोवा अपना मकसद पूरा करने की असीम ताकत रखता है। अपने सेवकों को बचा पाने की खुद की ताकत पर यहोवा को इतना भरोसा है कि कभी-कभार तो उसने दुश्मनों को फँसाने के लिए अपने लोगों को चारे की तरह इस्तेमाल किया। इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाने के लिए उसने कुछ ऐसा ही किया।
10 करीब 30 लाख इसराएली मिस्र देश से निकले थे। मूसा के ज़रिए यहोवा इसराएलियों को ऐसे रास्ते से ले गया कि फिरौन को लगा कि वे उलझन में पड़कर रास्ता भटक गए हैं। (निर्गमन 14:1-4 पढ़िए।) शिकार को फँसा हुआ देखकर फिरौन खुद को रोक नहीं पाया। उसने अपनी सेना लेकर इसराएलियों का पीछा किया और लाल समुद्र तक पहुँच गया। ऐसा लग रहा था कि अब इसराएलियों के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। (निर्ग. 14:5-10) लेकिन हकीकत यह थी कि उन्हें कोई खतरा नहीं था। क्यों? क्योंकि बहुत जल्द यहोवा उन्हें बचानेवाला था।
11, 12. (क) यहोवा ने अपने लोगों को कैसे बचाया? (ख) इसका नतीजा क्या हुआ, और इस वाकए से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?
11 जो “बादल का खम्भा” इसराएलियों के आगे चलकर उन्हें राह दिखाता था, वह अब उनके पीछे की तरफ हो गया। इसकी वजह से फिरौन की सेना कुछ देख नहीं पायी और इसराएलियों का पीछा नहीं कर पायी। उनके सामने अंधकार छा गया, जबकि इस खम्भे ने इसराएलियों को रात में प्रकाश दिया। (निर्गमन 14:19, 20 पढ़िए।) फिर यहोवा ने समुद्र के दो भाग कर दिए जिससे “उसके बीच सूखी भूमि हो गई।” बेशक इसमें बहुत समय लगा होगा क्योंकि बाइबल बताती है कि “यहोवा ने रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई” और इसके बाद, “इसराएली समुद्र के बीच स्थल ही स्थल पर होकर चले।” फिरौन की सेना रथों पर थी और इसराएली पैदल। लेकिन फिर भी वे उनसे आगे नहीं निकल पाए क्योंकि यहोवा इसराएलियों की ओर से लड़ रहा था। यहोवा ने “मिस्रियों की सेना पर दृष्टि करके उन्हें घबरा दिया। और उस ने उनके रथों के पहियों को निकाल डाला, जिससे उनका चलाना कठिन हो गया।”—निर्ग. 14:21-25.
12 जब सभी इसराएली दूसरी तरफ सुरक्षित पहुँच गए, तब यहोवा ने मूसा को निर्देश दिया: “अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्रियों, और उनके रथों, और सवारों पर फिर बहने लगे।” जब मिस्री सैनिक बचने के लिए भागने लगे, तो “यहोवा ने उनको समुद्र के बीच ही में झटक दिया।” बचने का कोई रास्ता न था। फिरौन की सेना “में से एक भी न बचा।” (निर्ग. 14:26-28) इस तरह यहोवा ने ज़ाहिर किया कि वह अपने लोगों बचाने की ताकत रखता है फिर चाहे हालात जैसे भी हों।
यरूशलेम के नाश से बच निकलना
13. यीशु ने क्या निर्देश दिए और उसके चेलों के मन में शायद क्या सवाल उठा हो?
13 यहोवा जानता है कि भविष्य में घटनाएँ क्या मोड़ लेंगी और अपना मकसद पूरा करने के लिए वह इस जानकारी का इस्तेमाल करता है। तीसरे वाकए में हम इसका सबूत देखेंगे। आइए हम पहली सदी में यरूशलेम की घेराबंदी से जुड़ी घटनाओं पर गौर करें। ईसवी सन् 70 में यरूशलेम का नाश होनेवाला था। लेकिन कई साल पहले ही यहोवा ने अपने बेटे के ज़रिए यरूशलेम और यहूदिया के मसीहियों को उस विनाश से बचने के निर्देश दे दिए थे। यीशु ने कहा था: “जब तुम्हें वह उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़, जिसके बारे में दानिय्येल भविष्यवक्ता के ज़रिए बताया गया था, एक पवित्र जगह में खड़ी नज़र आए . . . तब जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें।” (मत्ती 24:15, 16) लेकिन चेले कैसे पहचानते कि यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है?
14. वक्त के बीतते जो घटनाएँ घटीं, उनसे यीशु के निर्देशों का मतलब कैसे साफ हुआ?
14 वक्त के बीतते जो घटनाएँ हुईं उनसे यीशु की बातों का मतलब साफ होता गया। ईसवी सन् 66 में यहूदियों की बगावत को कुचलने के लिए सेस्टियस गैलस रोमी फौज के साथ यरूशलेम आया। जब इन कट्टरपंथी यहूदियों ने, जिन्हें ज़ेलट्स कहा जाता है, मंदिर में पनाह ली, तो उन तक पहुँचने के लिए रोमी सेना, मंदिर की दीवार तोड़ने लगी। यीशु के जो चेले सचेत थे, वे समझ गए कि मूर्तिनुमा झंडों के साथ एक गैर-मसीही फौज (“घिनौनी चीज़”), मंदिर की दीवार तक (“एक पवित्र जगह”) आ पहुँची है। अब वक्त आ गया था कि यीशु के चेले “पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें।” चारों तरफ से घिरे उस शहर से वे कैसे निकलते? घटनाओं का रुख अचानक ही बदलनेवाला था।
15, 16. (क) यीशु ने क्या खास निर्देश दिए और यह क्यों ज़रूरी था कि उसके चेले उसकी बात मानें? (ख) हमारा उद्धार किस बात पर निर्भर है?
15 हालाँकि कोई साफ वजह नज़र नहीं आ रही थी, मगर सेस्टियस गैलस और उसकी फौज अचानक यरूशलेम छोड़कर जाने लगी। कट्टरपंथी यहूदी उनका पीछा करते हुए शहर से बाहर चले गए। अब यीशु के चेलों के सामने अचानक ही यरूशलेम से भाग निकलने का मौका खुल गया था। यीशु ने उन्हें यह खास निर्देश दिया था कि वे अपना सामान साथ ना ले जाएँ और बिना देर किए वहाँ से निकल जाएँ। (मत्ती 24:17, 18 पढ़िए।) क्या उनका तुरंत वहाँ से निकल जाना ज़रूरी था? जवाब जल्द ही मिल गया। कुछ ही दिनों में कट्टरपंथी लौट आए और यरूशलेम और यहूदिया के रहनेवालों पर बगावत में शामिल होने का दबाव डालने लगे। शहर के हालात तब और भी बदतर हो गए जब लोगों पर अधिकार जमाने के लिए कई यहूदी गुट आपस में लड़ने लगे। वहाँ से भाग निकलना बहुत ही मुश्किल हो गया। जब ईसवी सन् 70 में रोमी वापस आए, तब तो वहाँ से निकलना नामुमकिन हो गया। (लूका 19:43) जो उस शहर में रह गए थे, वे अब फँस चुके थे! लेकिन जो मसीही यीशु के निर्देशों को मानकर पहाड़ों पर भाग गए थे, उनकी जान बच गयी। उन्होंने अपनी आँखों से देखा कि यहोवा कैसे अपने लोगों को बचाता है। हम इस वाकए से क्या सीख सकते हैं?
16 महा-संकट के दौरान जब एक-के-बाद-एक घटनाएँ घटेंगी, तो बच निकलने के लिए बहुत ज़रूरी होगा कि मसीही परमेश्वर के वचन और संगठन से मिले निर्देशों को मानें। मिसाल के लिए, यीशु की यह आज्ञा कि चेले “पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें”, आज हमारे ज़माने में भी लागू होती है। हम यह तो नहीं जानते कि हमें किस मायने में भागना होगा।b मगर हम यकीन रख सकते हैं कि जब इन निर्देशों को मानने का वक्त आएगा, तब यहोवा इनका मतलब साफ-साफ बता देगा। हमारा उद्धार आज्ञा मानने पर निर्भर है, इसलिए अच्छा होगा कि हम खुद से पूछें: ‘यहोवा अपने लोगों को जो निर्देश देता है, उनके बारे में मैं कैसा रवैया दिखाता हूँ? क्या मैं उन्हें तुरंत मानने के लिए तैयार रहता हूँ या उन्हें मानने में ढिलायी करता हूँ?’—याकू. 3:17.
आगे होनेवाली घटनाओं के लिए तैयार
17. हबक्कूक की भविष्यवाणी परमेश्वर के लोगों पर आनेवाले हमले के बारे में क्या ज़ाहिर करती है?
17 चलिए अब हम दोबारा गोग के उस चौतरफे हमले के बारे में देखें, जिसका ज़िक्र इस लेख की शुरूआत में किया गया था। यहेजकेल की तरह हबक्कूक ने भी इस बारे में भविष्यवाणी की। उसने कहा: “मैं सुनकर भीतर ही भीतर कांप उठा, इसे सुनकर मेरे होंठ थरथराने लगे, मेरी हड्डियां गलने लगीं और मैं खड़े खड़े कांपने लगा, फिर भी मैं बड़े धीरज से उस संकट के दिन [परमेश्वर के दिन] की प्रतीक्षा करूंगा जो हम पर चढ़ाई करने वालों पर आएगा।” (हब. 3:16, न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) परमेश्वर के लोगों पर होनेवाले हमले के बारे में सुनकर ही यह भविष्यवक्ता इतना घबरा गया कि उसके होंठ काँपने लगे और वह बेजान-सा हो गया। हबक्कूक की इस बात से ज़ाहिर होता है कि जब गोग की सेना हमारे विरुद्ध आएगी तो हमारी हालत कितनी खराब होगी। लेकिन यह भविष्यवक्ता, यहोवा के महान दिन के आने का धीरज से इंतज़ार कर रहा था और उसे भरोसा था कि यहोवा अपने लोगों को बचाएगा। हम भी ऐसा ही भरोसा दिखा सकते हैं।—हब. 3:18, 19.
18. (क) आनेवाले हमले से ना डरने की हमारे पास क्या वजह है? (ख) हम अगले लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?
18 जिन तीन वाकयों पर हमने गौर किया वे साफ ज़ाहिर करते हैं कि यहोवा अपने लोगों को बचाना जानता है। ऐसा हो नहीं सकता है कि उसका मकसद पूरा ना हो, उसकी जीत पक्की है। लेकिन उसकी जीत में शामिल होने के लिए हमें अंत तक वफादार रहना होगा। आज खराई बनाए रखने में यहोवा हमारी मदद कैसे करता है? इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।
[फुटनोट]
[पेज 24 पर तसवीर]
क्या इसराएलियों को वाकई फिरौन की सेना से कोई खतरा था?