“जो पढ़े, वह समझे”
“जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को . . . पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, . . . तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं।”—मत्ती २४:१५, १६.
१. लूका १९:४३, ४४ में दी गयी यीशु की चेतावनी का क्या परिणाम हुआ?
अगर हमें किसी आनेवाली विपत्ति के बारे में पहले से बता दिया जाए, तो हम उससे बच सकते हैं। (नीतिवचन २२:३) उन मसीहियों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जो सा.यु. ६६ में हुए रोमी आक्रमण से पहले यरूशलेम में रहते थे। यीशु ने उन्हें पहले से ही बता दिया था कि उस शहर को घेरा जाएगा और नाश कर दिया जाएगा। (लूका १९:४३, ४४) ज़्यादातर यहूदियों ने तो इस बात की सुनी-अनसुनी कर दी। मगर यीशु के चेलों ने इस चेतावनी को सुनकर उस पर अमल किया। और इसका परिणाम यह हुआ कि वे सा.यु. ७० की विपत्ति से बच गए।
२, ३. मत्ती २४:१५-२१ में दी गयी यीशु की भविष्यवाणी में हमें क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?
२ यीशु ने एक ऐसी भविष्यवाणी दी जो हमारे समय में पूरी होती है। इसमें उसने एक ऐसा चिन्ह दिया जिसमें कई घटनाओं के बारे में बताया गया था, जैसे युद्ध, अकाल, भूकंप, महामारियाँ और परमेश्वर के राज्य का प्रचार करनेवाले मसीहियों पर सताहट। (मत्ती २४:४-१४; लूका २१:१०-१९) इस भविष्यवाणी में यीशु ने एक ऐसी बात भी बतायी जिससे उसके चेलों को यह समझने में मदद मिलती कि अंत बहुत नज़दीक है। उसने कहा कि अंत से पहले ‘उजाड़नेवाली घृणित वस्तु पवित्र स्थान में खड़ी’ होगी। (मत्ती २४:१५) आइए हम यह देखें कि ये महत्त्वपूर्ण शब्द हमारे लिए क्यों बहुत ही ज़रूरी हैं, क्योंकि ये हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी के लिए काफी मायने रखते हैं।
३ चिन्ह बताने के बाद, यीशु ने कहा: “जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिस की चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्ता के द्वारा हुई थी, पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, (जो पढ़े, वह समझे)। तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं। जो कोठे पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे। और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे। उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिये हाय, हाय। और प्रार्थना किया करो; कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।”—मत्ती २४:१५-२१.
४. कौन-सी बात दिखाती है कि मत्ती २४:१५ की भविष्यवाणी की पहली सदी में पहली पूर्ति हुई थी?
४ इस भविष्यवाणी के बारे में मत्ती में जो जानकारी नहीं है, वह हम मरकुस और लूका में पाते हैं। मत्ती ने कहा कि यह घृणित वस्तु “पवित्र स्थान में खड़ी” है, वहीं मरकुस १३:१४ कहता है कि वह “जहां उचित नहीं वहां खड़ी” है। और वहीं लूका २१:२० में यीशु के ये शब्द दर्ज़ हैं: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है।” इससे हम यह समझ सकते हैं कि इसकी पहली पूर्ति सा.यु. ६६ में शुरू हुई जब रोमियों ने यरूशलेम और उसके मंदिर पर हमला किया। यरूशलेम और उसके मंदिर को यहूदी पवित्र समझते थे, मगर यहोवा की नज़रों में ये पवित्र नहीं रहे। और बाद में सा.यु. ७० में रोमियों ने यरूशलेम और उसके मंदिर, दोनों को पूरी तरह से नाश कर दिया। तो फिर उस समय में यह “घृणित वस्तु” क्या थी? और यह “पवित्र स्थान में” कैसे “खड़ी हुई”? इन सवालों के जवाब से हम यह साफ-साफ समझ सकेंगे कि यह भविष्यवाणी हमारे समय में कैसे पूरी होगी।
५, ६. (क) दानिय्येल के अध्याय ९ के पढ़नेवालों को समझ की ज़रूरत क्यों थी? (ख) “घृणित वस्तु” की यीशु की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
५ यीशु ने पढ़नेवालों को समझ का इस्तेमाल करने के लिए कहा। क्या पढ़नेवालों को? शायद दानिय्येल अध्याय ९ के पढ़नेवालों को। वहाँ एक भविष्यवाणी दी गयी है जिससे पता चलता है कि मसीहा कब आएगा और यह भी बताया गया है कि मसीहा को साढ़े तीन साल के बाद ‘काट दिया जाएगा।’ उस भविष्यवाणी में यूँ लिखा है: “कंगूरे पर उजाड़नेवाली घृणित वस्तुएं दिखाई देंगी और निश्चय से ठनी हुई बात के समाप्त होने तक परमेश्वर का क्रोध उजाड़नेवाले पर पड़ा रहेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।)—दानिय्येल ९:२६, २७; कृपया दानिय्येल ११:३१; १२:११ भी देखिए।
६ यहूदियों ने सोचा कि करीब २०० साल पहले जब एन्टिऑकस IV ने मंदिर को अपवित्र किया था, तब यह भविष्यवाणी पूरी हो चुकी थी। लेकिन यीशु ने पढ़नेवालों को समझ इस्तेमाल करने के लिए कहा, क्योंकि “घृणित वस्तु” का आना और ‘पवित्र स्थान में खड़ा होना’ अब भी बाकी था। सो यहाँ यीशु उस रोमी सेना की बात कर रहा था, जो अपने ध्वजों के साथ सा.यु. ६६ में आनेवाली थी। इन ध्वजों को, जिन्हें रोमी काफी समय से इस्तेमाल करते आए थे, असल में पूजा जाता था, इसलिए ये यहूदियों के लिए घृणित थे।a तो फिर रोमी सैनिक “पवित्र स्थान में” कब ‘खड़े होते’? ऐसा तब हुआ जब रोमी सेना इन घृणित ध्वजों के साथ आयी और उसने यरूशलेम और उसके मंदिर पर आक्रमण किया, जिन्हें यहूदी पवित्र समझते थे। उन्होंने मंदिर के पास की दीवार को भी तोड़ना शुरू कर दिया। इस तरह, घृणित वस्तु अब पवित्र स्थान में खड़ी थी!—यशायाह ५२:१; मत्ती ४:५; २७:५३; प्रेरितों ६:१३.
हमारे समय की “घृणित वस्तु”
७. यीशु की कौन-सी भविष्यवाणी अभी हमारे समय में पूरी हो रही है?
७ मत्ती अध्याय २४ में दिए गए यीशु के चिन्ह को हमने दूसरे विश्व युद्ध से और भी बड़े, विश्व पैमाने पर पूरा होते हुए देखा है। लेकिन, यीशु ने अपनी भविष्यवाणी में आगे ये भी कहा था: “जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को . . . पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, . . . तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं।” (मत्ती २४:१५, १६) तो फिर, भविष्यवाणी के इस भाग को भी हमारे समय में पूरा होना चाहिए।
८. सालों से, यहोवा के साक्षियों ने हमारे समय की “घृणित वस्तु” की किस तरह पहचान करायी है?
८ यहोवा के सेवकों को पक्का यकीन था कि भविष्यवाणी का यह भाग हमारे समय में ज़रूर पूरा होगा। इसीलिए जनवरी १, १९२१ की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग ने इस भविष्यवाणी पर चर्चा की और इसे मध्य पूर्व में हो रही घटनाओं के साथ जोड़ा। उसके बाद दिसंबर १५, १९२९ की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग के पेज ३७४ में यह पक्के विश्वास के साथ कहा गया था: “पूरे राष्ट्र संघ का यही इरादा है कि वह सभी लोगों को परमेश्वर और मसीह से दूर कर दे। इसी वज़ह से यह एक उजाड़नेवाली वस्तु, यानी शैतान की रचना है, और इसीलिए यह परमेश्वर की नज़रों में घृणित है।” सो १९१९ में यह “घृणित वस्तु” दिखायी दी। और समय के गुज़रते, राष्ट्र संघ बदलकर संयुक्त राष्ट्र बन गया। और काफी समय से यहोवा के साक्षियों ने झूठी शांति लानेवाले मनुष्यों के इन संगठनों के बारे में कहा है कि वे परमेश्वर की नज़रों में घृणित हैं।
९, १०. “भारी क्लेश” के शुरू होने की हमारी पहली समझ की वज़ह से हमने “घृणित वस्तु” के पवित्र स्थान में खड़े होने के समय के बारे में क्या सोचा था?
९ पिछले लेख में मत्ती अध्याय २४ और २५ की भविष्यवाणी की नई समझ पर संक्षिप्त में फिर से विचार किया गया। लेकिन, क्या ‘पवित्र स्थान में खड़ी’ “घृणित वस्तु” के बारे में कुछ स्पष्टीकरण की ज़रूरत है? हाँ, ज़रूरत है। यीशु की भविष्यवाणी दिखाती है कि आनेवाले भारी “क्लेश” की शुरूआत और घृणित वस्तु का ‘पवित्र स्थान में खड़ा होना’ एक ही समय पर पूरा होता है। इस वज़ह से, हमें इस घृणित वस्तु के पवित्र स्थान में खड़े होने के समय के बारे में अपनी समझ को बदलने की ज़रूरत है, हालाँकि वह “घृणित वस्तु” काफी समय से मौजूद है। क्यों ज़रूरत है?
१० परमेश्वर के लोग पहले यह समझते थे कि भारी क्लेश का पहला चरण १९१४ में शुरू हो चुका है और उसका आखिरी चरण अरमगिदोन की लड़ाई में होगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६. अँग्रेज़ी, प्रहरीदुर्ग, अप्रैल १, १९३९, पेज ११० से तुलना कीजिए।) इसीलिए उन्होंने यह सोचा कि भारी क्लेश तो शुरू हो चुका है, सो वह “घृणित वस्तु” भी पवित्र स्थान में उसी वक्त, पहले विश्व युद्ध के बाद खड़ी हो गयी होगी।
११, १२. सन् १९६९ में “भारी क्लेश” की समझ में कौन-सा बदलाव किया गया?
११ बाद में इस भविष्यवाणी को और भी समझाया गया। गुरुवार, १० जुलाई, १९६९ के दिन, न्यू यॉर्क शहर में “पृथ्वी पर शांति” नाम के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के उस समय के उपाध्यक्ष, एफ. डब्ल्यू. फ्रान्ज़ ने एक ज़बरदस्त भाषण दिया। यीशु की भविष्यवाणी के बारे उस समय की जो समझ थी, उसकी फिर से चर्चा करते हुए भाई फ्रान्ज़ ने कहा: “यह कहा गया था कि ‘भारी क्लेश’ सा.यु. १९१४ में शुरू हो चुका है, मगर उस समय परमेश्वर ने इस क्लेश को पूरा होने नहीं दिया था, क्योंकि उसने पहले विश्व युद्ध को नवंबर, १९१८ में रोक दिया। तब से परमेश्वर ने समय गुज़रने दिया है ताकि उसके चुने हुए अभिषिक्त मसीहियों के बाकी बचे सदस्य अपना काम पूरा कर सकें। उसके बाद वह अरमगिदोन की लड़ाई में ‘भारी क्लेश’ का आखिरी चरण शुरू होगा।”
१२ इसके बाद समझ में बहुत ही बड़ा बदलाव किया गया: “पहली सदी की घटनाओं से तुलना करें तो, . . . हमारे समय का ‘भारी क्लेश’ सा.यु. १९१४ में शुरू नहीं हुआ। १९१४-१९१८ में आज के लाक्षणिक यरूशलेम [ईसाईजगत] पर जो कुछ गुज़री, वह ‘भारी क्लेश’ नहीं था। इसके बजाय, वह तो बस ‘पीड़ाओं का आरम्भ’ था . . . सो, ऐसा भारी क्लेश जो अब तक नहीं हुआ है, भविष्य में होगा। इस क्लेश में झूठे धर्मों के (जिसमें ईसाईजगत शामिल है) विश्व साम्राज्य का पूरी तरह विनाश होगा। इसके बाद अरमगिदोन होगा, यानी ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बड़े दिन की लड़ाई’ होगी।” सो, इसका मतलब है कि “भारी क्लेश” की शुरूआत और अंत भविष्य में होनेवाले हैं।
१३. हम क्यों कह सकते हैं कि “घृणित वस्तु” का ‘पवित्र स्थान में खड़ा होना’ अब भी बाकी है?
१३ इस बदली हुई समझ से हम जान सकते हैं कि वह “घृणित वस्तु” पवित्र स्थान में कब खड़ी होगी। पहली सदी में जो हुआ था उसे याद कीजिए। सा.यु. ६६ में रोमियों ने यरूशलेम पर हमला किया था, मगर वे अचानक वापस चले गए। इससे मसीही ‘प्राणों’ को बचने का मौका मिला। (मत्ती २४:२२) इसी तरह, “भारी क्लेश” भी जल्द ही शुरू होगा, मगर परमेश्वर के चुने हुओं के कारण इसके दिन घटाए जाएँगें। इस खास बात पर ध्यान दीजिए: पहली सदी में “घृणित वस्तु” “पवित्र स्थान में [तब] खड़ी” हुई, जब सा.यु. ६६ में जनरल गैलस की रोमी सेना ने यरूशलेम शहर और मंदिर पर आक्रमण किया था। उसी तरह, हमारे समय में वह [झूठे धर्मों पर] आक्रमण अब भी होना बाकी है, जिससे “भारी क्लेश” शुरू होगा। सो, हालाँकि वह “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” १९१९ से मौजूद है, मगर वह अभी तक पवित्र स्थान में खड़ी नहीं हुई है। उसका पवित्र स्थान में खड़ा होना भविष्य में होगा।b ये कैसे होगा? और हमारे लिए यह समझना क्यों बहुत ज़रूरी है?
भविष्य में होनेवाला आक्रमण
१४, १५. अरमगिदोन की शुरूआत तक जो घटनाएँ होंगी उन्हें समझने में प्रकाशितवाक्य अध्याय १७ हमारी मदद कैसे करता है?
१४ प्रकाशितवाक्य की पुस्तक झूठे धर्मों पर होनेवाले एक भयंकर आक्रमण के बारे में बताती है। अध्याय १७ में ‘बड़े बाबुल, वेश्याओं की माता,’ यानी सारी दुनिया में फैले झूठे धर्मों के खिलाफ परमेश्वर के न्यायदंड के बारे में लिखा गया है। ईसाईजगत इन झूठे धर्मों का एक बड़ा भाग है और वह परमेश्वर की उपासना करने का दावा करता है। (यिर्मयाह ७:४ से तुलना कीजिए।) इसने और बाकी सभी झूठे धर्मों ने “पृथ्वी के राजाओं” के साथ काफी समय से नाजायज़ संबंध रखा है, लेकिन जब इन धर्मों का नाश होगा, तब यह संबंध खत्म हो जाएगा। (प्रकाशितवाक्य १७:२, ५) मगर यह नाश किसके हाथों होगा?
१५ प्रकाशितवाक्य एक “किरमिजी रंग के पशु” के बारे में बताता है जो अस्तित्त्व में आता है, फिर कुछ समय के लिए नहीं रहता और फिर दोबारा अस्तित्त्व में आता है। (प्रकाशितवाक्य १७:३, ८) पृथ्वी के सभी राजा इस पशु का साथ देते हैं। प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी में हमें जो अतिरिक्त बातें बतायी गयी हैं, उनसे हमें यह पहचानने में मदद मिलती है कि यह लाक्षणिक पशु ‘राष्ट्र संघ’ (“घृणित वस्तु”) है, जिसे शांति लाने के लिए बनाया गया है। इस संघ की शुरूआत १९१९ में हुई और यह अब ‘संयुक्त राष्ट्र’ बन गया है। प्रकाशितवाक्य १७:१६, १७ दिखाता है कि भविष्य में परमेश्वर इस “पशु” यानी ‘संयुक्त राष्ट्र’ के कुछ प्रमुख नेताओं के मन में यह बात डालेगा कि वे सारी दुनिया में फैले झूठे धर्मों को उजाड़ दें। इस आक्रमण के साथ “भारी क्लेश” की शुरूआत होगी।
१६. धर्म के मामले में कौन-कौन-सी खास घटनाएँ हो रही हैं?
१६ क्योंकि “भारी क्लेश” की शुरूआत होना बाकी है, तो क्या घृणित वस्तु का ‘पवित्र स्थान में खड़ा’ होना भी बाकी है? हाँ, बाकी है। जबकि इस सदी की शुरूआत में वह “घृणित वस्तु” अस्तित्त्व में आयी, और अब कई वर्षों से मौजूद है, वह जल्द ही कुछ ऐसा करेगी जिससे यह दिखेगा कि वह “पवित्र स्थान में” खड़ी है। जिस तरह मसीह के पहली सदी के चेले इस बात की ओर ध्यान लगाए हुए थे कि घृणित वस्तु किस तरह “पवित्र स्थान में खड़ी” होगी, उसी तरह आज के मसीही भी इसकी ओर ध्यान लगाए हुए हैं। मगर, हमें इसके बारे में पूरी तरह से जानने के लिए इसके भविष्य में पूरा होने तक इंतज़ार करना होगा। लेकिन, यह अभी से देखा जा सकता है कि कुछ देशों में धर्म के लिए नफरत बढ़ रही है। कुछ नेता, सच्चाई छोड़नेवाले धर्मद्रोहियों के साथ मिलकर सभी धर्मों के और खासकर सच्चे मसीहियों के खिलाफ बैर और दुश्मनी भड़का रहे हैं। (भजन ९४:२०, २१; १ तीमुथियुस ६:२०, २१) इस तरह यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रों के ये नेता अब ‘मेम्ने से लड़’ रहे हैं, और जैसे प्रकाशितवाक्य १७:१४ में बताया गया है, यह लड़ाई और भी घमासान होती जाएगी। जबकि वे परमेश्वर के मेम्ने, यानी यीशु मसीह को, जो अब स्वर्ग में है और जिसे बहुत सम्मान और अधिकार दिया गया है, कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकते, इसलिए वे ज़मीन पर परमेश्वर के सच्चे उपासकों से, खासकर उसके “पवित्र लोगों” से बैर करेंगे और उनसे लड़ेंगे। (दानिय्येल ७:२५. रोमियों ८:२७; कुलुस्सियों १:२; प्रकाशितवाक्य १२:१७ से तुलना कीजिए।) मगर, परमेश्वर हमें यकीन दिलाता है कि इस लड़ाई में मेम्ना और उसकी सेना जीतकर ही रहेंगे।—प्रकाशितवाक्य १९:११-२१.
१७. हालाँकि हम दावे के साथ तो नहीं कहते, मगर यह कब कहा जा सकता है कि “घृणित वस्तु” पवित्र स्थान में खड़ी है?
१७ कुछ समय बाद सभी झूठे धर्मों को उजाड़ दिया जाएगा। सारी दुनिया में फैले इन झूठे धर्मों का, यानी बड़े बाबुल का ज़रूर विनाश होगा क्योंकि वह ‘पवित्र लोगों का लोहू पीने से मतवाली’ है और रानी बन बैठी है। उसने पृथ्वी के राजाओं पर गंदा प्रभाव डालकर उन्हें अपने कब्ज़े में रखा है। मगर यह सब अचानक ही खत्म हो जाएगा, क्योंकि “दस सींग . . . और पशु” उससे बैर करेंगे और उस पर आक्रमण करेंगे। (प्रकाशितवाक्य १७:६, १६; १८:७, ८) सो, जब ‘किरमिजी रंग का पशु’ इस वेश्या पर, यानी झूठे धर्मों पर जिसका ईसाईजगत प्रमुख भाग है, आक्रमण करेगा, तब हम यह कह सकते हैं कि वह “घृणित वस्तु” मानो पवित्र स्थान में खड़ी हो गयी है।c इस तरह धर्मद्रोही ईसाईजगत का उजाड़ा जाना शुरू होगा, जो पवित्र होने का स्वाँग रचता है।
‘भागना’—मगर कैसे?
१८, १९. किन कारणों से हम कह सकते हैं कि ‘पहाड़ों पर भागने’ का मतलब धर्म बदलना नहीं होगा?
१८ यीशु ने कहा कि जब “घृणित वस्तु” ‘पवित्र स्थान में खड़ी हो’ जाए, तब जो समझे वह भाग जाए। जब यीशु ने भाग जाने की बात की, तब क्या उसका मतलब यह था कि उस आखिरी घड़ी में, जब वह “घृणित वस्तु” “पवित्र स्थान में खड़ी” होगी, तब कई लोग झूठे धर्मों से भागकर सच्चे धर्म को अपना लेंगे? बिलकुल भी नहीं। इसे जानने के लिए आइए देखें कि यह भविष्यवाणी पहली सदी में कैसे पूरी हुई। यीशु ने कहा: “जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जाएं। जो कोठे पर हो, वह अपने घर से कुछ लेने को नीचे न उतरे और न भीतर जाए। और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने के लिये पीछे न लौटे। उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिये हाय हाय! और प्रार्थना किया करो कि यह जाड़े में न हो।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मरकुस १३:१४-१८.
१९ यीशु यहाँ सिर्फ यरूशलेम के लोगों को भाग जाने के लिए नहीं कह रहा था, मानो उन्हें सिर्फ यहूदी उपासना के प्रमुख धर्म स्थान से ही भागना था; ना ही उस चेतावनी में धर्म बदलने, यानी झूठे धर्मों से भागकर सच्चे धर्म को अपनाने का ज़िक्र था। यीशु के चेलों को एक चेतावनी की ज़रूरत नहीं थी कि वे अपना धर्म बदल लें, क्योंकि वे तो पहले ही सच्चे मसीही बन चुके थे। और जब सा.यु. ६६ में आक्रमण हुआ, तब यरूशलेम और पूरी यहूदिया के यहूदी लोगों ने अपना धर्म छोड़कर मसीही धर्म को नहीं अपना लिया। प्रॉफॆसर हाइनरिक ग्रॆट्स कहते हैं कि जिन लोगों ने भाग रहे रोमियों का पीछा किया, वे, “यहूदी कट्टरपंथी दल [जिन्हें ज़ॆलट्स कहा जाता था] खुशी से ज़ोर-ज़ोर से विजय-गीत गाते हुए यरूशलेम (८ अक्तूबर) को लौटे, उनके दिलों में आज़ादी का विश्वास था और खुशी की लहर थी। . . . क्या परमेश्वर ने उतनी ही दया के साथ उनकी मदद नहीं की थी जितनी उसने उनके पूर्वजों की मदद की थी? अब उन यहूदी कट्टरपंथियों के दिलों में भविष्य को लेकर खौफ नाम की कोई चीज़ नहीं थी।”
२०. पहली सदी के यीशु के शिष्यों ने पहाड़ों पर भाग जाने की उसकी चेतावनी के बारे में क्या किया?
२० तो फिर, उस समय चुने हुए मसीहियों ने यीशु की चेतावनी को कैसे माना? वे यहूदिया छोड़कर, यरदन के उस पार पहाड़ों पर भाग गए। यहूदिया से भागकर उन्होंने यह दिखाया कि वे पूरी यहूदी व्यवस्था से, यानी उसकी राजनैतिक और धार्मिक व्यवस्था से भाग गए हैं और उसका कोई भाग नहीं हैं। वे अपने खेतों को, अपने घर-बार को, अपना सब कुछ पीछे छोड़कर भाग गए थे। उन्हें पूरा यकीन था कि यहोवा उनकी मदद करेगा और उनकी रक्षा करेगा, इसलिए उन्होंने उस वक्त ज़िंदगी की ज़रूरी चीज़ों को नहीं, बल्कि यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत दी।—मरकुस १०:२९, ३०; लूका ९:५७-६२.
२१. जब “घृणित वस्तु” आक्रमण करेगी, तब क्या नहीं होगा?
२१ अब आइए देखें कि यह हमारे समय में बड़े पैमाने पर कैसे पूरा होता है। हमने कई सालों से लोगों को झूठे धर्मों से निकलकर बाहर आने और सच्चा धर्म अपनाने के लिए आग्रह किया है। (प्रकाशितवाक्य १८:४, ५) और लाखों लोग हमारे आग्रह को सुनकर झूठे धर्मों से बाहर आए हैं और उन्होंने सच्चे धर्म को अपनाया है। मगर, यीशु की भविष्यवाणी में यह नहीं कहा गया है कि “भारी क्लेश” के शुरू होने पर भीड़-की-भीड़ झूठे धर्मों से भागकर सच्चे धर्म को अपना लेगी। असल में देखा जाए तो, सा.यु. ६६ में बड़ी तादाद में यहूदी लोगों ने अपना धर्म बदलकर मसीहियत नहीं अपनायी थी। सो, यह चेतावनी सच्चे मसीहियों के लिए है, ताकि वे इस चेतावनी को सुनकर भाग जाएँ और इस तरह बच निकलें।
२२. जब यीशु ने पहाड़ों पर भाग जाने के लिए कहा, तो उसका हमारे लिए क्या मतलब है?
२२ फिलहाल तो भारी क्लेश के बारे में पूरी-पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन हम यह ज़रूर कह सकते हैं कि यीशु ने जब हमें ‘भाग जाने’ के लिए कहा, तब वह हमें किसी एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए नहीं कह रहा था, क्योंकि परमेश्वर के लोग तो दुनिया के हर कोने में हैं। सो हमारे लिए भागने का मतलब यह तो होगा ही कि हम अपने और झूठे धर्मों के बीच साफ-साफ फर्क बनाए रखें। मगर यह भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि यीशु ने चेतावनी दी थी कि अपने कपड़े या दूसरी ज़रूरी चीज़ें इकट्ठा करने के लिए अपने-अपने घर में वापस न जाएँ। (मत्ती २४:१७, १८) सो हमारे लिए भागने का मतलब ऐसी परीक्षाएँ हो सकती हैं, जिनसे यह परखा जाएगा कि हम किसे सबसे ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं, इस व्यवस्था की अपनी संपत्ति और धन-दौलत को, या फिर परमेश्वर से मिलनेवाले उद्धार को? जी हाँ, उस समय हम पर शायद बहुत सारी मुसीबतें आएँ या फिर हमें काफी कुछ त्याग करना पड़े। मगर, उस समय हम पर चाहे जो भी परीक्षा आए, जो भी मुसीबत आए या जो भी त्याग करना पड़े, हमें वह सब करने के लिए तैयार रहना होगा, ठीक उसी तरह जैसे पहली सदी के मसीहियों ने किया, जब वे यरदन को पार करके यहूदिया से पीरिया को भाग गए थे।
२३, २४. (क) हमें सुरक्षा सिर्फ कहाँ मिलेगी? (ख) ‘घृणित वस्तु को पवित्र स्थान में खड़ी हुई’ देखने के बारे में यीशु की चेतावनी का हम पर कैसा असर होना चाहिए?
२३ उस समय भी हमें सिर्फ यहोवा की और उसके पहाड़-समान संगठन की शरण में बने रहना चाहिए। (२ शमूएल २२:२, ३; भजन १८:२; दानिय्येल २:३५, ४४) सिर्फ वहीं हमें सुरक्षा मिलेगी! हम उन लोगों की तरह नहीं होंगे जो ‘पहाड़ों की खोहों और चट्टानों’ की ओर भागेंगे, यानी इंसानों के ऐसे संगठनों और संस्थानों की ओर, जो बड़े बाबुल के उजड़ जाने के बाद कुछ समय तो रहेंगे, मगर उनका भी नाश कर दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य ६:१५; १८:९-११) यह सच है कि शायद उस समय हालात बहुत ही मुश्किल हो जाएँ, ठीक जैसे उन सभी लोगों के लिए हालात बेहद मुश्किल रहे होंगे जो सा.यु. ६६ में यहूदिया से भाग रहे थे, जैसे गर्भवती स्त्रियाँ या वे लोग जिन्हें ठंड या बारिश के मौसम में भागना पड़ा होगा। चाहे जो भी हो, हम पूरा विश्वास रख सकते हैं कि परमेश्वर हमें हर हाल में बचाएगा। इसलिए आइए हम अभी से यहोवा पर और उसके बेटे पर जो अब उसके राज्य का राजा बन चुका है अपना भरोसा पक्का करते जाएँ।
२४ हमें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है कि भविष्य में क्या होगा। जब यीशु ने भविष्यवाणी की, तब वह यह नहीं चाहता था कि उसके चेले ये सभी बातें सुनकर डर जाएँ, और ना ही वह यह चाहता है कि हम आज या फिर आनेवाले दिनों में डर के साये में जीएँ। यह भविष्यवाणी कहकर उसने हमें सावधान कर दिया था ताकि हम तैयार और सतर्क रहें। जब झूठे धर्मों और इस दुनिया की दुष्ट व्यवस्था का पूरी तरह नाश होगा, तब वफादार मसीहियों का नाश नहीं होगा। इसके बजाय, ये मसीही समझ के साथ काम लेंगे और ‘उस घृणित वस्तु को पवित्र स्थान में खड़ी हुई’ देखने के बारे में जो चेतावनी दी गयी थी, उसे मानेंगे। तब वे अपने मज़बूत विश्वास की वज़ह से ठोस कदम उठाएँगे। इसलिए, आइए यीशु ने जो कहा था, उसे हम कभी न भूलें: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मरकुस १३:१३.
[फुटनोट]
a “रोम के मंदिरों में इन ध्वजों को श्रद्धा के साथ पूजा जाता था; और जैसे-जैसे रोमियों को दूसरे देशों पर जीत मिलती जाती थी, वैसे-वैसे इन ध्वजों के लिए उनकी श्रद्धा बढ़ती जाती थी . . . [सैनिकों के लिए तो] शायद यह दुनिया की सबसे पवित्र चीज़ थी। रोमी सैनिक अपने ध्वज की शपथ खाते थे।”—दी एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, ११वाँ संस्करण।
b हालाँकि सा.यु. ६६-७० में हुई यीशु के शब्दों की पूर्ति से हम यह समझ सकते हैं कि ये बातें भारी क्लेश के वक्त कैसे पूरी होंगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे समय में सभी घटनाएँ बिलकुल उसी तरह होंगी जैसे सा.यु. ६६-७० में हुई थीं, क्योंकि इन दोनों की परिस्थिति और समय अलग-अलग है।
c कृपया अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग, दिसंबर १५, १९७५, पेज ७४१-४ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” पहली सदी में कैसे दिखायी दी?
◻ हम यह क्यों कह सकते हैं कि हमारे समय की “घृणित वस्तु” का पवित्र स्थान में खड़ा होना बाकी है?
◻ “घृणित वस्तु” द्वारा किस आक्रमण के बारे में प्रकाशितवाक्य में पहले से बताया गया है?
◻ हमारे लिए ‘भागने’ का मतलब क्या है?
[पेज 16 पर तसवीर]
बड़े बाबुल को ‘वेश्याओं की माता’ कहा गया है
[पेज 17 पर तसवीर]
प्रकाशितवाक्य अध्याय १७ का किरमिजी रंग का पशु ही वह “घृणित वस्तु” है जिसके बारे में यीशु ने कहा था
[पेज 18 पर तसवीर]
किरमिजी रंग का पशु धर्मों को पूरी तरह से नाश करने के लिए उस पर आक्रमण करेगा