वह चिन्ह क्या आप उसकी ओर ध्यान दे रहे हैं?
“हम चाहते हैं कि हर एक देश के लोग समृद्धि, कल्याण और खुशी का अनुभव करें। इस ओर तक का रास्ता एक परमाणनीय-मुक्त, अहिंसात्मक दुनिया उत्पन्न करने के ज़रिए है।”—सोवियत नेता मिखाएल गोर्बाचेव द्वारा लिखित पेरेस्त्रोइका.
तर्कसंगत रूप से, अनेक अविश्वास करते हैं कि मनुष्य ऐसी विश्व परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए सचमुच योग्य है। एक और नेता, यीशु मसीह, ने इस से भी ज़्यादा शानदार चीज़ की प्रतिज्ञा की—एक परादीस पृथ्वी जिस में मृत्यु की क्रिया भी पलट दी जाएगी। (मत्ती ५:५; लूका २३:४३; यूहन्ना ५:२८, २९) अवश्य, इसे पूरा करने का साधन दैवी हस्तक्षेप है। ऐसा हस्तक्षेप “कब” आएगा, इस प्रश्न के उत्तर में, यीशु ने कहा: “परमेश्वर का राज्य प्रगट रूप से नहीं आता।” पहले-पहले, तो केवल प्रतीकात्मक उकाब की आँख वाले तीक्ष्ण रूप से प्रतिबोधी लोग ही उसे समझ सकते। (लूका १७:२०, ३७) ऐसा क्यों?
हमें चिन्ह की ज़रूरत क्यों है
उसके स्वर्गारोहण से लेकर अब तक, यीशु मसीह “अगम्य ज्याति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा, और न कभी देख सकता है।” (१ तीमुथियुस ६:१६) इस प्रकार, वास्तविक मानवी आँखें उसे फिर कभी नहीं देखेंगे। जैसा यीशु ने उसके पार्थीव जीवन के आख़री दिन पर कहा: “और थोड़ी देर रह गयी है कि फिर संसार मुझे न देखेगा।” (यूहन्ना १४:१९) वह सिर्फ़ एक प्रतीकात्मक रूप से देखा जा सकता है।—इफिसियों १:१८; प्रकाशितवाक्य १:७.
फिर भी, यीशु ने कहा कि यह पहचानना उसके चेलों के लिए संभव होता कि परमेश्वर का राज्य कब शासन करना शुरू करता। कैसे? एक चिन्ह के ज़रिए। “तेरी उपस्थिति का क्या चिन्ह होगा?” इस प्रश्न के उत्तर में यीशु ने अपने भावी अदृश्य शासन के दृश्य सबूत की रूप-रेखा दी।—मत्ती २४:३.
उस चिन्ह में एक दृष्टान्त सम्मिलित था जो दिखाता है कि उस से किस तरह के लोग लाभ प्राप्त करते। “जहाँ लोथ हो,” यीशु ने कहा, “वहीं उकाब इकट्ठे होंगे।” (मत्ती २४:२८, न्यू.व.) जो कोई परमेश्वर का नया संसार दाख़िल करने के लिए वर्तमान व्यवस्था के अंत से बचे रहना चाहते हैं, उन्हें ‘इकट्ठा होकर’ मसीह के उकाब-जैसे “चुने हुओं” के साथ आत्मिक भोजन का आनन्द लेना चाहिए।—मत्ती २४:३१, ४५-४७.
अधीरता से सावधान रहना
कोई भी मनुष्य वर्तमान दुष्ट व्यवस्था की समाप्ति की तारीख़ नहीं निकाल सकता। “उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता,” यीशु ने कहा, “न स्वर्ग के दूत और न पूत्र, परन्तु केवल पिता।”—मरकुस १३:३२, ३३.
फिर भी, क्या ऐसा हो सकता है कि वह चिन्ह कई मानवी पीढ़ियों के दौरान घटित हो सकता है? नहीं। वह चिन्ह एक विशेष पीढ़ी में घटित होनेवाला है। जिस पीढ़ी ने चिन्ह की शुरुआत देखी, वही पीढ़ी “एक भारी क्लेश” में उसकी पराकाष्ठा देखेगी, “जैसा जगत के आरम्भ से अब तक नहीं हुआ।” तीन इतिहासकार, मत्ती, मरकुस, और लूका ने यीशु के इस बात पर का आश्वासन लिपिबद्ध किया।—मरकुस १३:१९, ३०; मत्ती २४:१३, २१, २२, ३४; लूका २१:२८, ३२.
परन्तु, अधीर होने का ख़तरा है। १९१४ में विश्व युद्ध I की शुरुआत से पचत्तर साल बीत चुके हैं। एक मानवी दृष्टिकोण से, शायद यह एक बहुत ही लंबा समय लगता है। लेकिन कुछ उकाब-आँखोंवाले मसीही, जिन्होंने विश्व युद्ध I देखा, वे अब भी ज़िंदा हैं। उनकी पीढ़ी अब तक गुज़र नहीं गयी है।
जब उसने चिन्ह दिया, यीशु ने अधीर होने के ख़तरे के बारे में चेतावनी दी। उसने ऐसे व्यक्तियों के विषय बताया जो अपने मन में कहेंगे: “मेरा स्वामी देर कर रहा है।” यीशु ने दिखाया कि ऐसी भावनाएँ, अगर उन पर रोक न लगा दी गयीं, मूर्ख काम में परिणामित हो सकते हैं। (मत्ती २४:४८-५१, न्यू.व.) मसीह के प्रेरितों ने इसके बारे में थोड़ा ज़्यादा कहा।
“ठट्ठा करनेवाले”
बाइबल लिपिक यहूदा के अनुसार, मसीह के प्रेरितों ने निम्नलिखित चेतावनी दी थी: “पिछले दिनों में ऐसे ठट्ठा करनेवाले होंगे, जो अपनी अभक्ति के अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।”—यहूदा १७, १८.
“अभक्ति की अभिलाषा” आसानी से एक स्वच्छ नए संसार में जीवन की अभिलाषा की जगह ले सकेगी। इस दुनिया के अभिव्यक्ति और संचार के तरीक़ों की वजह से यह आज खास तौर से खतरनाक़ है। मानवी इतिहास में पहले कभी हिंसा, भूत विद्या, और लैंगिक अनैतिकता इस हद तक प्रदर्शित नहीं किए गए। ये अक़्सर रेडियो और संगीत पेशकशों का मूल-विषय होते हैं, और ये अनेक टी.वी. कार्यक्रम, विडियो, विज्ञापन, किताबें, और पत्रिकाओं में दिखायी देते हैं।
वह चिन्ह ऐसी अभक्ति की अन्त की ओर संकेत करती है। स्वाभाविक रूप से, फिर, जिन लोगों को अधर्मी बातों की भूख है, वे इस चिन्ह की ठट्ठा करते हैं। जैसे पूर्वबतलाया गया, वे तर्क करते हैं कि “सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था।”—२ पतरस ३:३, ४.
‘प्रेम ठण्डा होता है’
हाल में, न्यूज़वीक पत्रिका ने एक ७५ वर्षीय अमरीकी लेखक, पौल बोल्स, की मुलाक़ात ली। “इस संसार के विषय आप का नज़रिया क्या है?” इस प्रश्न का उत्तर देते हुए, बोल्स ने कहा: “यह दुनिया एक नैतिक भावार्थ में चूर-चूर हो गयी है। अब कोई भी ईमानदार नहीं जिस तरह वे ६० साल पहले हुआ करते थे। तब सज्जन होना क्या है, इसकी संकल्पना थी; यह हमारी पश्चिमी संस्कृति की एक मूल्यवान् विशेषता थी। अब कोई भी [परवाह] नहीं करता। पैसों पर भी एक बहुत ही बड़ा ज़ोर है।”
आज स्थिति वैसी ही है जैसे बाइबल ने पूर्वसूचित किया। यीशु ने पूर्वबतलाया: “अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (मत्ती २४:१२; २ तीमुथियुस ३:१-५) जैसे जैसे स्वार्थ और लोभ बढ़ता है, परमेश्वर के लिए प्रेम घटता है। अपराधी कार्यों, आतंकवाद, बेईमान व्यापारी अभ्यास, लैंगिक अनैतिकता, और नशीली दवाइयों के कुप्रयोग में भाग लेकर अधिकाधिक लोग दिखाते हैं कि वे अपने खुद की अभिलाषाओं को परमेश्वर के नियमों के आगे रखते हैं।
कुछेक उस चिन्ह की पूर्ति पहचानते तो हैं लेकिन खुद को खुश कराने में इतना मग्न होने की वजह से वे उस पर अमल करने से रह जाते हैं। दूसरी ओर, उस चिन्ह की ओर ध्यान देना परमेश्वर और पड़ोसी के लिए निःस्वार्थ प्रेम दिखाने में सहिष्णुता आवश्यक करता है।—मत्ती २४:१३, १४.
“जीवन की चिन्ताएँ”
यीशु ने यह भी चेतावनी दी कि, स्वार्थी खुशियों के अतिरिक्त, वैध शारीरिक ज़रूरतें कुछ लोगों को इतना मग्न बनाएँगी कि वे चिन्ह की उपेक्षा करेंगे। उसने प्रोत्साहित किया: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा।”—लूका २१:३४, ३५.
बाइबल तो आनन्दित पारिवारिक जीवन प्रोत्साहित करती है। (इफिसियों ५:२४–६:४) अक़्सर यह आवश्यक करता है कि परिवार का प्रमुख अपनी पत्नी और बच्चों के लिए प्रबंध करने के लिए किसी प्रकार के रोज़गार या व्यापार में लगा हो। (१ तीमुथियुस ५:८) फिर भी, अपने जीवन को केवल परिवार, व्यापार, या भौतिक चीज़ों के इर्द-गिर्द घूमने देना अदूरदर्शिता होगी। इसी ख़तरे की वजह से, यीशु ने चिताया: “जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। जिस दिन तक नूह जहाज़ पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया। . . . मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।”—लूका १७:२६-३०; मत्ती २४:३६-३९.
“लिया जाएगा” या “छोड़ दिया जाएगा”?
समय बीतने पर है। जल्द ही, परमेश्वर का राज्य मामलों को ठीक करने के लिए दख़ल देगा। तब हर एक मानव दो में से किसी एक तरीक़े से प्रभावित होगा। जैसा यीशु ने समझाया: “उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। दो स्त्रियाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी।”—मत्ती २४:४०, ४१.
जब वह निर्णायक समय आएगा, आपकी स्थिति क्या होगी? क्या आपको विनाश के लिए छोड़ दिया जाएगा, या क्या आपको उत्तरजीविता के लिए साथ ले लिया जाएगा? सही दिशा में आपका मार्गदर्शन होने के लिए, एक बार फिर उस दृष्टान्त पर ग़ौर करें जो यीशु ने दिया: “जहाँ लोथ है, वहाँ उकाब इकट्ठे होंगे।”—लूका १७:३४-३७; मत्ती २४:२८.
यीशु इस प्रकार दूरदर्शी, संयुक्त कार्य की ज़रूरत पर ज़ोर दे रहा था। जो लोग उत्तरजीविता के लिए ले लिये जाते हैं वे वही हैं जो नियमित रूप से इकट्ठा होते हैं और परमेश्वर के दिए आत्मिक पोषण से फ़ायदा लेते हैं। करोड़ों ने अनुभव किया है कि ऐसा आत्मिक भरण यहोवा के गवाहों के ६०,००० से अधिक मण्डलियों में से किसी एक के साथ नज़दीक के मेल-जोल से और बाइबल-आधारित प्रकाशन, जैसा कि यह जो आप अब पढ़ रहे हैं, उनके अध्ययन के ज़रिए आता है।
पैंतीस लाख से ज़्यादा यहोवा के गवाह अपने पड़ोसियों को “राज्य का सुसमाचार” देकर उस चिन्ह में विश्वास प्रकट करते हैं। (मत्ती २४:१४) क्या आप सुसमाचार के प्रति सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं? अगर ऐसा है, तो आप एक पार्थीव परादीस में उत्तरजीविता की प्रतिज्ञा पर गंभीरतापूर्वक विचार कर सकते हैं।
[पेज 5 पर तसवीरें]
अनेक भोग-विलास में इतने मग्न हैं कि वे उस चिन्ह की उपेक्षा करते हैं
[पेज 6 पर तसवीरें]
उस चिन्ह की ओर ध्यान देने में परमेश्वर के वचन से भरण प्राप्त करने के लिए इकट्ठा होना सम्मिलित है