परमेश्वर की सेवा करने के लिए आपको क्या प्रेरित करता है?
“तू प्रभु [यहोवा, NW] अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।”—मरकुस १२:३०.
१, २. प्रचार कार्य के सम्बन्ध में कौन-सी रोमांचक बातें निष्पन्न की जा रही हैं?
एक गाड़ी का वास्तविक मूल्य केवल उसकी दिखावट से ही नहीं आँका जाता। रंग की एक परत शायद उसके बाह्य-स्वरूप को निखारे, और खूबसूरत डिज़ाइन एक संभव ख़रीदार को आकर्षित करे; लेकिन कहीं ज़्यादा महत्त्व की चीज़ें वे हैं जो आसानी से नज़र नहीं आतीं—इंजन जो गाड़ी को आगे बढ़ाता है, साथ ही अन्य सभी कलपुरजे जो उसे नियंत्रित करते हैं।
२ परमेश्वर के प्रति एक मसीही की सेवा के साथ भी वैसा ही है। यहोवा के साक्षियों में ईश्वरीय कार्यों की विपुलता है। प्रति वर्ष, परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने में एक अरब से भी ज़्यादा घंटे बिताए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, लाखों बाइबल अध्ययन संचालित किए जाते हैं, और बपतिस्मा प्राप्त करनेवालों की संख्या लाखों में है। अगर आप सुसमाचार के एक उद्घोषक हैं, तो फिर इन रोमांचक आँकड़ों में आपका भी एक भाग रहा है—चाहे यह प्रतीयमानतः छोटा ही क्यों न हो। और आप आश्वस्त हो सकते हैं कि “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।”—इब्रानियों ६:१०.
३. कार्यों के अलावा और कौन-सी बात मसीहियों के लिए अत्यधिक चिन्ता की होनी चाहिए, और क्यों?
३ बहरहाल, हमारी सेवा का वास्तविक मूल्य—सामूहिक रूप से या व्यक्तिगत रूप से—केवल आँकड़ों में नहीं मापा जाता। जैसे शमूएल को कहा गया, “मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।” (१ शमूएल १६:७) जी हाँ, हम अन्दर क्या हैं उसे परमेश्वर महत्त्वपूर्ण समझता है। माना कि कार्य अनिवार्य हैं। ईश्वरीय भक्ति के कार्य यहोवा की शिक्षा की शोभा बढ़ाते हैं और संभव शिष्यों को आकर्षित करते हैं। (मत्ती ५:१४-१६; तीतुस २:१०; २ पतरस ३:११) फिर भी, हमारे कार्य पूरी कहानी नहीं सुनाते। पुनरुत्थित यीशु के पास इफिसुस की कलीसिया के बारे में चिन्ता करने का कारण था—उनके भले कार्यों के रिकार्ड के बावजूद। ‘मैं तेरे काम जानता हूं,’ उसने उनसे कहा। “पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।”—प्रकाशितवाक्य २:१-४.
४. (क) परमेश्वर के लिए हमारी सेवा किस तरह एक कर्तव्य-विधि बन सकती है? (ख) आत्म-परीक्षण की ज़रूरत क्यों है?
४ एक ख़तरा है। कुछ कालावधि के बाद, परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा एक कर्तव्य-विधि की तरह बन सकती है। एक मसीही स्त्री ने अपनी स्थिति का वर्णन इस तरह किया: “मैं सेवा के लिए जाती, सभाओं में जाती, अध्ययन करती, प्रार्थना करती—लेकिन मैं यह सब बग़ैर कुछ महसूस किए आदतन करती।” बेशक, परमेश्वर के सेवकों की सराहना की जानी चाहिए जब वे ‘गिराए जाने’ या ‘दुःखी’ होने के बावजूद कड़े प्रयास करते हैं। (२ कुरिन्थियों ४:९; ७:६, NHT) फिर भी, जब हमारा मसीही नित्यक्रम एक ढर्रा बन जाता है, तब हमें मानो अन्दर झाँककर इंजन को देखने की ज़रूरत है। अच्छी से अच्छी गाड़ियों को भी नियमित रख-रखाव की ज़रूरत होती है; समान रूप से, सभी मसीहियों को नियमित आत्म-परीक्षण करने की ज़रूरत है। (२ कुरिन्थियों १३:५) दूसरे हमारे कार्य देख सकते हैं, लेकिन वे यह समझ नहीं सकते कि कौन-सी बात हमारे कार्यों को प्रेरित करती है। इसलिए, हम में से हरेक व्यक्ति को इस सवाल पर विचार करने की ज़रूरत है: ‘परमेश्वर की सेवा करने के लिए मुझे क्या प्रेरित करता है?’
उचित प्रेरणा के लिए बाधाएँ
५. यीशु ने कौन-सी आज्ञा को सबसे मुख्य कहा?
५ जब यीशु से पूछा गया कि इस्राएल को दी गयी आज्ञाओं में से सबसे मुख्य आज्ञा कौन-सी थी, उसने एक आदेश को उद्धृत किया। यह आदेश बाह्य रूप पर नहीं, बल्कि आन्तरिक प्रेरणा पर केंद्रित था: “तू प्रभु [यहोवा, NW] अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।” (मरकुस १२:२८-३०) इस तरह यीशु ने उस बात की पहचान करायी जिसे परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा के पीछे प्रेरक बल होना चाहिए—प्रेम।
६, ७. (क) शैतान ने पारिवारिक दायरे पर किस तरह धोखेबाज़ी से हमला किया है, और क्यों? (२ कुरिन्थियों २:११) (ख) एक व्यक्ति का पालन-पोषण ईश्वरीय अधिकार के प्रति उसकी मनोवृत्ति को कैसे प्रभावित कर सकता है?
६ प्रेम के अत्यावश्यक गुण को विकसित करने की हमारी क्षमता में शैतान बाधा डालना चाहता है। ऐसा करने के लिए, पारिवारिक दायरे पर आक्रमण करना, उसके द्वारा प्रयोग किया गया एक तरीक़ा है। क्यों? क्योंकि यहीं पर प्रेम के बारे में हमारी पहली और सबसे स्थायी धारणा बनती है। शैतान इस बाइबल सिद्धान्त को बखूबी जानता है कि बचपन में जो सीखा है वह बड़े होने पर फ़ायदेमंद हो सकता है। (नीतिवचन २२:६) वह प्रेम की हमारी धारणा को छोटी उम्र में ही धोख़ेबाज़ी से विकृत करने का प्रयास करता है। ‘इस रीति-व्यवस्था के ईश्वर’ की हैसियत से, शैतान देखता है कि उसके उद्देश्य पूरे हो रहे हैं जब अनेक लोग ऐसे घरों में बढ़ते हैं जो प्रेम का आशियाना नहीं, बल्कि कड़वाहट, क्रोध, और गाली-गलौज के मैदाने-जंग हैं।—२ कुरिन्थियों ४:४, NW; इफिसियों ४:३१, ३२; ६:४, फुटनोट NW; कुलुस्सियों ३:२१.
७ किताब अपने पारिवारिक जीवन को सुखी बनाना (अंग्रेज़ी) ने कहा कि जिस तरीक़े से एक पिता अपनी जनकीय भूमिका निभाता है, उसका इस बात पर एक स्थायी प्रभाव पड़ सकता है कि “मानवी और ईश्वरीय, दोनों अधिकार के प्रति उसके बच्चे कैसी मनोवृत्ति दिखाएँगे।”a अपने निष्ठुर पिता की कठोर देखरेख के अधीन बड़ा हुआ एक मसीही पुरुष स्वीकार करता है: “मेरे लिए, यहोवा की आज्ञा पालन करना आसान है; लेकिन उससे प्रेम करना काफ़ी ज़्यादा मुश्किल है।” बेशक, आज्ञाकारिता अत्यावश्यक है, क्योंकि परमेश्वर की नज़रों में ‘आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर है।’ (१ शमूएल १५:२२, NHT) क्या बात केवल आज्ञाकारिता से आगे बढ़ने और हमारी उपासना के पीछे प्रेरक बल के तौर पर यहोवा के लिए प्रेम विकसित करने में हमारी मदद कर सकती है?
“मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है”
८, ९. यीशु के छुड़ौती बलिदान से यहोवा के लिए हमारा प्रेम कैसे उत्तेजित होना चाहिए?
८ यहोवा के प्रति पूरे हृदय से प्रेम विकसित करने के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है, यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान की क़दरदानी। “जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।” (१ यूहन्ना ४:९) जब एक बार हम इसे समझ लेते और इसकी क़दर करते हैं, तब प्रेम का यह कार्य प्रेम की प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले [यहोवा, NW] ने हम से प्रेम किया।”—१ यूहन्ना ४:१९.
९ मनुष्य के उद्धारकर्ता के तौर पर सेवा करने की अपनी कार्य-नियुक्ति को यीशु ने तत्परता से स्वीकार किया। “हम ने प्रेम इसी से जाना, कि उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए।” (१ यूहन्ना ३:१६; यूहन्ना १५:१३) यीशु के आत्म-बलिदानी प्रेम से हम में एक क़दरदान प्रतिक्रिया जागनी चाहिए। इसे सचित्रित करने के लिए: फ़र्ज़ कीजिए कि आपको डूबने से बचाया गया था। क्या आप सीधे घर जाते, बदन पोंछते और इसके बारे में भूल जाते? निश्चित ही नहीं! आप उस व्यक्ति के लिए कृतज्ञता महसूस करते जिसने आपको बचाया। आख़िरकार, आप अपनी ज़िन्दगी के लिए उस व्यक्ति के ऋणी हैं। क्या हम यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के कुछ कम ऋणी हैं? छुड़ौती के बग़ैर, हम में से प्रत्येक व्यक्ति पाप और मृत्यु में मानो डूब जाता। इसके बजाय, प्रेम के इस महान कार्य की वजह से, हमारे पास एक परादीस पृथ्वी पर सर्वदा जीने की प्रत्याशा है।—रोमियों ५:१२, १८; १ पतरस २:२४.
१०. (क) हम छुड़ौती को व्यक्तिगत बात कैसे बना सकते हैं? (ख) मसीह का प्रेम हमें कैसे विवश करता है?
१० छुड़ौती पर मनन कीजिए। छुड़ौती को व्यक्तिगत रूप से लीजिए, जैसे पौलुस ने किया: “मैं शरीर में अब जो जीवित हूं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं, जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया।” (गलतियों २:२०) ऐसा मनन हार्दिक प्रेरणा को उत्तेजित करेगा, क्योंकि पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा: “मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिये कि . . . वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा।” (२ कुरिन्थियों ५:१४, १५) द जेरुसलेम बाइबल (अंग्रेज़ी) कहती है कि मसीह का प्रेम “हमें अभिभूत करता है।” जब हम मसीह के प्रेम पर विचार करते हैं, तब हम विवश होते हैं, गहराई से प्रेरित होते हैं, यहाँ तक कि अभिभूत होते हैं। यह हमारे हृदय को छू लेता है और हमें क्रियाशील होने के लिए प्रेरित करता है। जैसे जे. बी. फिलिपस् का अनुवाद इसका भावानुवाद करता है, “हमारे कार्यों का मूल स्रोत मसीह का प्रेम है।” किसी अन्य तरह की प्रेरणा हम में स्थायी फल उत्पन्न नहीं करेगी, जैसे फरीसियों के उदाहरण द्वारा दिखाया गया है।
‘फरीसियों के खमीर से चौकस रहना’
११. धार्मिक कार्यों के प्रति फरीसियों की मनोवृत्ति का वर्णन कीजिए।
११ फरीसियों ने परमेश्वर की उपासना को पूरी तरह बेजान कर दिया। परमेश्वर के लिए प्रेम पर ज़ोर देने के बजाय, उन्होंने आध्यात्मिकता के मापदंड के रूप में कार्यों पर ज़ोर दिया। विस्तृत नियमों में उनकी तल्लीनता ने उन्हें बाहर से तो धर्मी प्रकट किया, लेकिन भीतर से वे ‘मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरे’ हुए थे।—मत्ती २३:२७.
१२. यीशु के एक पुरुष को चंगा करने के बाद, फरीसियों ने कैसे दिखाया कि वे मन में कठोर हैं?
१२ एक अवसर पर यीशु ने करुणा से एक पुरुष को चंगा किया जिसका हाथ सूख गया था। यह पुरुष एक ऐसी बीमारी की तात्कालिक चंगाई का अनुभव करने से कितना ख़ुश हुआ होगा, जिसके कारण बेशक उसे काफ़ी शारीरिक और भावात्मक असुविधा हुई थी! फिर भी, फरीसियों ने उसके साथ आनन्द नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने एक बारीक़ी पर नुकताचीनी की—कि यीशु ने सब्त के दिन सहायता की थी। व्यवस्था की अपनी पारिभाषिक व्याख्या में तल्लीन, फरीसी लोग व्यवस्था के वास्तविक अभिप्राय से पूरी तरह चूक गए। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि यीशु “उन के मन की कठोरता से उदास” हुआ! (मरकुस ३:१-५) इसके अतिरिक्त, उसने अपने शिष्यों को आगाह किया: “फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकस रहना।” (मत्ती १६:६) हमारे लाभ के लिए बाइबल में उनके कार्यों और मनोवृत्तियों का पर्दाफ़ाश किया गया है।
१३. फरीसियों के उदाहरण में हमारे लिए कौन-सा सबक है?
१३ फरीसियों का उदाहरण हमें सिखाता है कि हमें कार्यों के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण रखने की ज़रूरत है। वाक़ई, कार्य अत्यावश्यक हैं, क्योंकि ‘विश्वास कर्म बिना मरा हुआ है।’ (याकूब २:२६) लेकिन, अपरिपूर्ण मनुष्यों में दूसरे लोग जो हैं उसके अनुसार नहीं बल्कि, वे जो कार्य करते हैं, उसके अनुसार उन्हें आँकने की प्रवृत्ति होती है। कभी-कभी, हम शायद ख़ुद को भी इसी तरह आँकें। हम पर कार्य की सनक सवार हो सकती है, मानो वह हमारी आध्यात्मिकता की एकमात्र कसौटी हो। हम अपने अभिप्रायों को जाँचने के महत्त्व को भूल सकते हैं। (२ कुरिन्थियों ५:१२ से तुलना कीजिए।) हम कठोर विधिवादी बन सकते हैं, जो ‘मच्छर को तो छान डालते हैं, परन्तु ऊंट को निगल जाते हैं,’ जो बारीक़ी से नियम का पालन तो करते हैं परन्तु उसके उद्देश्य का उल्लंघन करते हैं।—मत्ती २३:२४.
१४. फरीसी एक अशुद्ध कटोरे या थाली के समान कैसे थे?
१४ फरीसी यह नहीं समझ सके कि अगर एक व्यक्ति सचमुच यहोवा से प्रेम करता है, तो ईश्वरीय भक्ति के काम स्वाभाविक परिणाम होंगे। आध्यात्मिकता अन्दर से बाहर की ओर आती है। इस मामले में फरीसियों के ग़लत सोच-विचार के लिए यीशु ने उनकी कड़ी निन्दा की, और कहा: “हे कपटी शास्त्रियो, और फरीसियो, तुम पर हाय, तुम कटोरे और थाली को ऊपर ऊपर से तो मांजते हो परन्तु वे भीतर अन्धेर असंयम से भरे हुए हैं। हे अन्धे फरीसी, पहिले कटोरे और थाली को भीतर से मांज कि वे बाहर से भी स्वच्छ हों।”—मत्ती २३:२५, २६.
१५. ऐसे उदाहरणों के हवाले दीजिए जो दिखाते हैं कि यीशु बाह्य रूप से ज़्यादा देखता है।
१५ एक कटोरे, थाली, या यहाँ तक कि एक इमारत का बाहरी रूप सब कुछ प्रकट नहीं करता। यीशु के शिष्य यरूशलेम के मन्दिर की खूबसूरती से विस्मित हो गए थे। उसके अन्दर होनेवाले कार्यों की वजह से यीशु ने उसे “डाकुओं की खोह” कहा। (मरकुस ११:१७; १३:१) जो मन्दिर के बारे में सच था, वह लाखों तथाकथित मसीहियों के बारे में भी सच है, जैसे मसीहीजगत का रिकार्ड दिखाता है। यीशु ने कहा कि वह उसके नाम से “अचम्भे के काम” करनेवाले कुछ लोगों को ‘कुकर्म करनेवाले’ होने का न्याय देगा। (मत्ती ७:२२, २३) इसके बिलकुल विपरीत, उसने एक विधवा के बारे में यह कहा जिसने मन्दिर में ना के बराबर दान डाला: “मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है . . . इस ने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है।” (मरकुस १२:४१-४४) असंगत न्याय? बिलकुल नहीं। दोनों परिस्थितियों में, यीशु ने यहोवा के दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित किया। (यूहन्ना ८:१६) उसने कार्यों के पीछे के अभिप्राय को देखा और तदनुसार न्याय किया।
“हर एक को उस की सामर्थ के अनुसार”
१६. हमें हमेशा अपनी गतिविधि की तुलना एक अन्य मसीही की गतिविधियों से करने की ज़रूरत क्यों नहीं है?
१६ अगर हमारे अभिप्राय उचित हैं, तो फिर निरन्तर तुलना करने की कोई ज़रूरत नहीं है। उदाहरण के लिए, एक अन्य मसीही सेवकाई में जितना समय बिताता है, उतना ही समय बिताने का, या प्रचार में उसकी उपलब्धियों की बराबरी करने का स्पर्धात्मक रूप से प्रयास करने के द्वारा शायद ही कोई फ़ायदा हो। यीशु ने कहा कि यहोवा को अपने पूरे हृदय, मन, प्राण, और शक्ति से प्रेम करें—किसी और के नहीं। हर इंसान की क़ाबिलियत, ताक़त, और हालात अलग-अलग होते हैं। अगर आपकी परिस्थिति अनुमति देती है, तो प्रेम आपको सेवकाई में काफ़ी समय बिताने के लिए प्रेरित करेगा—शायद एक पूर्ण-समय के पायनियर सेवक के रूप में भी। बहरहाल, अगर आप बीमारी से संघर्ष कर रहे हैं, तो सेवकाई में आप जितना समय बिताना चाहते हैं, आप शायद उससे कम समय बिताएँ। निरुत्साहित मत होइए। परमेश्वर के प्रति वफ़ादारी घंटो में नहीं नापी जाती। शुद्ध अभिप्राय रखने से, आपके पास आनन्द के लिए कारण होगा। पौलुस ने लिखा: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।”—गलतियों ६:४.
१७. अपने शब्दों में, तोड़ों के दृष्टान्त को संक्षिप्त में बताइए।
१७ तोड़ों के बारे में यीशु के दृष्टान्त पर ग़ौर कीजिए, जो मत्ती २५:१४-३० में अभिलिखित है। एक पुरुष ने परदेश जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी सम्पत्ति उन्हें सौंप दी। “उस ने एक को पांच तोड़, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उस की सामर्थ के अनुसार दिया।” जब स्वामी अपने दासों से लेखा लेने के लिए लौटा, तो उसने क्या पाया? जिस दास को पाँच तोड़े दिए गए थे, उसने पाँच तोड़े और कमाए। इसी तरह, जिस दास को दो तोड़े दिए गए थे, उसने दो तोड़े और कमाए। जिस दास को एक तोड़ा दिया गया था, उसने उसे मिट्टी में दबा दिया और अपने स्वामी के धन को बढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं किया। इस स्थिति के बारे में स्वामी का क्या न्याय था?
१८, १९. (क) स्वामी ने जिस दास को दो तोड़े दिए थे, उसकी तुलना उस दास के साथ क्यों नहीं की जिसे पाँच तोड़े दिए गए थे? (ख) तोड़ों का दृष्टान्त हमें सराहना और तुलना के बारे में क्या सिखाता है? (ग) तीसरे दास का न्याय प्रतिकूल रूप से क्यों किया गया?
१८ पहले, आइए हम उन दासों पर ग़ौर करें जिन्हें क्रमशः पाँच और दो तोड़े दिए गए थे। इनमें से प्रत्येक दास को स्वामी ने कहा: “धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास।” क्या स्वामी ने पाँच तोड़ों वाले दास से यह कहा होता, अगर उसने केवल दो तोड़े कमाए होते? शायद ही! दूसरी ओर, उसने दो तोड़े कमानेवाले दास से नहीं कहा: ‘आपने पाँच क्यों नहीं कमाए? अपने संगी दास को देखो, उसने मेरे लिए कितना सारा कमाया है!’ जी नहीं, उस करुणामय स्वामी ने, जिसने यीशु को चित्रित किया, तुलना नहीं की। उसने “हर एक को उस की सामर्थ के अनुसार” तोड़े दिए, और उसने बदले में उतनी ही अपेक्षा की जितना प्रत्येक दास दे सकता था। दोनों दासों को समान सराहना मिली, क्योंकि दोनों ने अपने स्वामी के लिए पूरे मन से कार्य किया। हम सब इससे सीख सकते हैं।
१९ बेशक, तीसरे दास की सराहना नहीं की गयी। दरअसल, उसे बाहर अन्धेरे में फेंक दिया गया। केवल एक तोड़ा पाने पर, उससे उस दास के जितना कमाने की अपेक्षा नहीं की जाती जिसे पाँच तोड़े दिए गए थे। लेकिन, उसने कोशिश भी नहीं की! उसका प्रतिकूल न्याय मूल रूप से उसके हृदय की “दुष्ट और आलसी” मनोवृत्ति के कारण हुआ, जिससे स्वामी के लिए प्रेम का अभाव प्रदर्शित हुआ।
२०. यहोवा हमारे सीमा-बन्धनों को किस नज़र से देखता है?
२० यहोवा हम में से प्रत्येक जन से अपेक्षा करता है कि हम उसे अपनी पूरी शक्ति से प्रेम करें, फिर भी यह कितना हृदयस्पर्शी है कि “वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं”! (भजन १०३:१४) नीतिवचन २१:२ कहता है कि “यहोवा मन को जांचता है”—आँकड़ों को नहीं। वह किसी भी सीमा-बन्धन को समझता है जिस पर हमारा कोई बस नहीं है, चाहे वह आर्थिक, शारीरिक, भावात्मक, या किसी अन्य प्रकार की क्यों न हो। (यशायाह ६३:९) साथ ही, वह हम से अपेक्षा करता है कि हम अपने संसाधनों का सर्वोत्तम प्रयोग करें। यहोवा परिपूर्ण है, लेकिन अपने अपरिपूर्ण उपासकों के साथ व्यवहार करते वक़्त, वह परिपूर्णता की माँग नहीं करता। वह न तो अपने व्यवहारों में असंगत है, और न ही अपनी अपेक्षाओं में अयथार्थवादी है।
२१. अगर परमेश्वर के लिए हमारी सेवा प्रेम द्वारा प्रेरित है, तो कौन-से अच्छे परिणाम हो सकते हैं?
२१ यहोवा से अपने पूरे हृदय, प्राण, मन, और शक्ति से प्रेम करना “सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।” (मरकुस १२:३३) अगर हम प्रेम द्वारा प्रेरित होते हैं, तो फिर हम परमेश्वर की सेवा में जितना कर सकते हैं उतना करेंगे। पतरस ने लिखा कि अगर ईश्वरीय गुण, जिनमें प्रेम भी शामिल है, “तुम में बने रहें तथा बढ़ते जाएं तो हमारे प्रभु यीशु मसीह के पूर्ण ज्ञान में ये तुम्हें न तो अयोग्य और न निष्फल होने देंगे।”—२ पतरस १:८, NHT.
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
पुनर्विचार में
◻ परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा के पीछे किस बात को प्रेरक बल होना चाहिए?
◻ यीशु का प्रेम हमें यहोवा की सेवा करने के लिए कैसे विवश करता है?
◻ फरीसियों की किस तल्लीनता से हमें दूर रहना चाहिए?
◻ हमारी सेवा की तुलना एक अन्य मसीही की सेवा से करते रहना क्यों मूर्खतापूर्ण है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
लोगों की क़ाबिलियत, ताक़त, और हालात अलग-अलग होते हैं