क्या इस किताब पर भरोसा किया जा सकता है?
“मैं किसी भी अन्य सांसारिक [लौकिक] इतिहास से ज़्यादा बाइबल में विश्वसनीयता के निश्चित चिन्ह पाता हूँ।”—सर आइज़िक न्यूटन, विख्यात अंग्रेज़ वैज्ञानिक।१
क्या इस किताब—बाइबल—पर भरोसा किया जा सकता है? क्या यह सचमुच जीवित रहे लोगों का, वास्तव में मौजूद रही जगहों का, और असल में घटी घटनाओं का ज़िक्र करती है? अगर ऐसा है, तो इस बात का सबूत होना चाहिए कि इसे सावधान, सत्यवादी लेखकों ने लिखा था। सबूत मौजूद है। इसका ज़्यादातर भाग ज़मीन में दबा हुआ पाया गया है, और उससे भी ज़्यादा सबूत इस किताब में ही है।
सबूत को खोदकर निकालना
बाइबल देशों में ज़मीन में दबी प्राचीन कलाकृतियों की खोज ने बाइबल की ऐतिहासिक और भौगोलिक यथार्थता का समर्थन किया है। केवल कुछ सबूतों को लीजिए जिन्हें कुछ पुरातत्त्ववेत्ताओं ने खोदकर निकाला है।
दाऊद को, एक साहसी युवा चरवाहा जो इस्राएल का राजा बना, बाइबल के पाठक अच्छी तरह जानते हैं। उसका नाम बाइबल में १,१३८ बार आता है, और ‘दाऊद का घराना’ यह पद—जो अकसर उसके राजवंश को सूचित करता है—२५ बार आता है। (१ शमूएल १६:१३; २०:१६) लेकिन, हाल के समय तक बाइबल के अलावा कोई स्पष्ट सबूत नहीं था कि दाऊद कभी जीवित रहा था। क्या दाऊद का चरित्र केवल काल्पनिक था?
सन् १९९३ में पुरातत्त्ववेत्ताओं के एक दल ने, प्रोफ़ॆसर अवराम बीराँ के नेतृत्व में एक विस्मयकारी खोज की, जिसकी रिपोर्ट इस्राएल शोध पत्रिका में दी गयी थी। तॆल दान नामक एक प्राचीन टीले के आसपास, इस्राएल के उत्तरी भाग में, उन्हें एक बसाल्ट पत्थर मिला। उस पत्थर पर “दाऊद का घराना” और “इस्राएल का राजा” शब्द तराशे हुए हैं।२ यह शिलालेख, जो सा.यु.पू. नौंवी शताब्दी के समय का है, कहा जाता है कि अरामवासियों द्वारा खड़े किए गए विजय के स्मृति-स्तंभ का एक भाग है। अरामवासी पूर्व में रहनेवाले इस्राएल के शत्रु थे। यह प्राचीन शिलालेख इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
प्रोफ़ॆसर बीराँ और उसके सहयोगी, प्रोफ़ॆसर योसॆफ़ नावॆह द्वारा दी गयी एक रिपोर्ट पर आधारित, बाइबलीय पुरातत्त्व समीक्षा में एक लेख ने कहा: “यह पहली बार है कि दाऊद का नाम, बाइबल के अलावा किसी अन्य प्राचीन अभिलेख में पाया गया है।”३a इस शिलालेख के बारे में एक और बात उल्लेखनीय है। “दाऊद का घराना,” यह पद एक शब्द की तरह लिखा गया है। भाषा विशेषज्ञ प्रोफ़ॆसर ऐनसन रेनी समझाता है: “शब्द विभाजक . . . अकसर निकाल दिया जाता है, ख़ासकर अगर संयुक्त-पद एक जाना-माना विशिष्ट नाम है। सामान्य युग पूर्व मध्य-नौवीं शताब्दी में ‘दाऊद का घराना’ निश्चय ही ऐसा विशिष्ट राजनैतिक और भौगोलिक नाम था।”५ सो साफ़ है कि राजा दाऊद और उसका राजवंश प्राचीन संसार में विख्यात थे।
क्या नीनवे—अश्शूर का महान नगर जिसका उल्लेख बाइबल में है—सचमुच अस्तित्त्व में था? उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक भी, कुछ बाइबल आलोचकों ने ऐसा मानने से इनकार किया। लेकिन १८४९ में, सर ऑस्टन हॆनरी लेयार्ड ने कूयनजिक में राजा सन्हेरीब के महल के खँडहर खोदकर निकाले थे। यह स्थान प्राचीन नीनवे का एक भाग साबित हुआ। इस प्रकार आलोचक उस विषय पर चुप हो गए। लेकिन इन खँडहरों को कुछ और भी कहना था। एक सुरक्षित कमरे की दीवारों पर, एक मज़बूत नगर पर जीत दिखाता हुआ एक दृश्य था, जिसमें बंदियों को चढ़ाई करनेवाले राजा के सामने चलाया जा रहा था। राजा के ऊपर ये शब्द नक़्श किए गए हैं: “सन्हेरीब, संसार का राजा, अश्शूर का राजा, निमेदू -सिंहासन पर बैठा और लाकीश (ला-की-सू) से (लिए गए) लूट के माल का मुआयना किया।”६
यह दृश्य और शिलालेख, जिन्हें ब्रिटिश म्यूज़ियम में देखा जा सकता है, यहूदियाई नगर लाकीश पर सन्हेरीब की जीत के बाइबल वृत्तांत से मेल खाते हैं, जो २ राजा १८:१३, १४ में अभिलिखित है। उस खोज के महत्त्व पर टिप्पणी करते हुए, लेयार्ड ने लिखा: “ये शोध किए जाने से पहले, किसने इस बात को संभव माना होगा कि उस मिट्टी और कूड़े के ढेर तले, जहाँ नीनवे का स्थल था, सन्हेरीब और [यहूदा के राजा] हिजकिय्याह के बीच हुई लड़ाइयों का इतिहास पाया जाएगा, जिसे ख़ुद सन्हेरीब ने उसी समय लिखा था जब वे लड़ी गयीं, और जिससे बाइबल अभिलेख के छोटे-छोटे विवरण भी सच साबित होते हैं?”७
पुरातत्त्ववेत्ताओं ने अनेक अन्य कलाकृतियाँ खोदकर निकाली हैं—मिट्टी के बरतन, इमारतों के खँडहर, मिट्टी की पटियाएँ, सिक्के, दस्तावेज़, स्मृति-स्तंभ, और नक़्क़ाशियाँ—जो बाइबल की यथार्थता की पुष्टि करती हैं। खुदाई करनेवालों ने कसदियों का ऊर नगर खोद निकाला है, वह व्यावसायिक और धार्मिक केंद्र जहाँ इब्राहीम जीया था।८ (उत्पत्ति ११:२७-३१) उन्नीसवीं शताब्दी में खोदकर निकाली गयी नैबोनाइडस शिला, सा.यु.पू. ५३९ में महान कुस्रू द्वारा बाबुल के पतन का वर्णन करती है। इस घटना का वर्णन दानिय्येल अध्याय ५ में दिया गया है।९ प्राचीन थिस्सलुनीके में एक तोरणपथ पर पाए गए एक शिलालेख में (जिसके टुकड़े ब्रिटिश म्यूज़ियम में सुरक्षित रखे गए हैं) नगर के उन अधिकारियों का नाम है जिनका वर्णन बतौर “पॉलीटार्क्स” किया गया है। यह शब्द जो प्राचीन यूनानी साहित्य में नहीं है लेकिन बाइबल लेखक लूका ने इसका प्रयोग किया था।१० (प्रेरितों १७:६, NW फुटनोट) इस प्रकार लूका की यथार्थता इस बात में साबित हुई—जैसे अन्य बातों में यह पहले ही साबित हो चुकी थी।—लूका १:३ से तुलना कीजिए।
लेकिन पुरातत्त्ववेत्ता, बाइबल से तो दूर, एक दूसरे से भी हमेशा सहमत नहीं होते। फिर भी, बाइबल अपने आप में इस बात का पक्का सबूत लिए हुए है कि यह ऐसी किताब है जिस पर भरोसा किया जा सकता है।
निष्पक्षता से प्रस्तुत
सच्चे इतिहासकार न केवल जीत (जैसे सन्हेरीब द्वारा लाकीश की जीत के बारे में शिलालेख है) बल्कि हार भी, न केवल सफलता बल्कि असफलता भी, न केवल गुण बल्कि अवगुण भी लिखेंगे। बहुत कम लौकिक इतिहासकारों ने ऐसी सत्यवादिता दिखाई है।
अश्शूर के इतिहासकारों के बारे में, डैनियल डी. लकनबिल समझाता है: “अकसर यह स्पष्ट होता है कि राजसी अभिमान ने माँग की कि ऐतिहासिक यथार्थता से खिलवाड़ किया जाए।”११ ऐसे “राजसी अभिमान” का उदाहरण देते हुए, अश्शूर के राजा, अशुरनसिरपाल के ऐतिहासिक लेखों में यह डींग हाँकी गयी है: “मैं राजसी हूँ, मैं महान हूँ, मैं गौरवशाली हूँ, मैं शक्तिशाली हूँ, मुझे सम्मान प्राप्त है, मुझे महिमा प्राप्त है, मैं सबसे श्रेष्ठ हूँ, मैं बलशाली हूँ, मैं बहादुर हूँ, मैं शेर की तरह साहसी हूँ, और मैं शूरवीर हूँ!”१२ क्या आप ऐसे ऐतिहासिक लेखों में जो कुछ पढ़ेंगे उसे यथार्थ इतिहास की तरह स्वीकार करेंगे?
इसके विपरीत, बाइबल लेखकों ने सुखद निष्पक्षता दिखायी। इस्राएल के अगुवे, मूसा ने अपने भाई हारून और अपनी बहन मरियम, अपने भतीजों नादाब और अबीहू, और अपनी जाति के लोगों की कमियों का, साथ ही ख़ुद अपनी ग़लतियों का साफ़-साफ़ ब्यौरा दिया। (निर्गमन १४:११, १२; ३२:१-६; लैव्यव्यवस्था १०:१, २; गिनती १२:१-३; २०:९-१२; २७:१२-१४) राजा दाऊद की गंभीर ग़लतियों पर परदा नहीं डाला गया बल्कि उन्हें लिख दिया गया—और यह दाऊद के शासनकाल के दौरान किया गया। (२ शमूएल, अध्याय ११ और २४) मत्ती, अपने नाम की किताब का लेखक, बताता है कि कैसे प्रेरित (जिनमें वह एक था) अपने व्यक्तिगत महत्त्व पर झगड़ते थे और कैसे उन्होंने यीशु की गिरफ़्तारी की रात को उसे त्याग दिया। (मत्ती २०:२०-२४; २६:५६) मसीही यूनानी शास्त्र की पत्रियों के लेखकों ने कुछ प्रारंभिक मसीही कलीसियाओं में समस्याएँ होने की बात को खुलकर स्वीकार किया, जिनमें लैंगिक अनैतिकता और झगड़े जैसी बातें शामिल थीं। और इन समस्याओं पर बात करते वक़्त उन्होंने घुमा-फिरा कर बात नहीं की।—१ कुरिन्थियों १:१०-१३; ५:१-१३.
ऐसा सच्चा, खुला ब्यौरा देना सच्चाई के प्रति हार्दिक दिलचस्पी सूचित करता है। क्योंकि बाइबल लेखक अपने प्रियजनों, अपनी जाति के लोगों, और ख़ुद अपने बारे में भी नकारात्मक जानकारी का ब्यौरा देने के लिए तैयार थे, क्या उनके लेखनों पर भरोसा करने का अच्छा कारण नहीं है?
बारीक़ियों में यथार्थ
अदालती मुक़द्दमों में गवाहों के बयान की विश्वसनीयता अकसर छोटी-छोटी बातों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। बारीक़ियों में तालमेल, उस बयान पर यथार्थ और सच्चा होने की मुहर लगा सकता है, जबकि गंभीर असमानताएँ जालसाज़ी को उजागर कर सकती हैं। दूसरी ओर, हद से ज़्यादा साफ़-सुथरा वृत्तांत भी—जिसमें हर बारीक़ी को अच्छी तरह सजाया गया है—एक झूठे बयान का भेद खोल सकता है।
इस संबंध में बाइबल लेखकों का “बयान” कितना सही है? बाइबल के लेखकों ने असाधारण सुसंगति दिखायी। छोटी-छोटी बातों में भी तालमेल है। लेकिन, इस तालमेल को सोच-विचारकर नहीं बिठाया गया, जिससे मिलीभगत का कोई अंदेशा हो। दी गयी समान जानकारी में कोई साज़िश नहीं की गयी यह स्पष्ट है, और लेखक अकसर अनजाने ही एक दूसरे से सहमत होते हैं। कुछ उदाहरणों को लीजिए।
बाइबल लेखक मत्ती ने लिखा: “और यीशु ने पतरस के घर में आकर उस की सास को ज्वर में पड़ी देखा।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती ८:१४) मत्ती ने यहाँ एक दिलचस्प लेकिन अनावश्यक विवरण दिया: पतरस विवाहित था। इस छोटी-सी सच्चाई का समर्थन पौलुस ने किया, उसने लिखा: “क्या मुझे यह अधिकार नहीं, कि किसी मसीही बहिन को ब्याह कर के लिए फिरूँ, जैसा और प्रेरित और . . . कैफा करते हैं?”b (१ कुरिन्थियों ९:५, द न्यू इंग्लिश बाइबल) संदर्भ दिखाता है कि पौलुस अनुचित आलोचना के विरुद्ध अपनी सफ़ाई दे रहा था। (१ कुरिन्थियों ९:१-४) साफ़ है कि यह छोटी-सी सच्चाई—पतरस का विवाहित होना—मत्ती के वृत्तांत की यथार्थता का समर्थन करने के लिए पौलुस ने पेश नहीं की बल्कि संयोगवश यह बात बता दी गयी।
चारों सुसमाचार-पुस्तकों के लेखकों—मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना—ने लिखा कि यीशु की गिरफ़्तारी की रात को, उसके एक शिष्य ने तलवार निकाली और महायाजक के दास पर वार किया, और उसका कान काट डाला। केवल यूहन्ना की सुसमाचार-पुस्तक एक अनावश्यक लगनेवाला विवरण देती है: “उस दास का नाम मलखुस था।” (यूहन्ना १८:१०, २६) क्यों सिर्फ़ यूहन्ना उस व्यक्ति का नाम देता है? कुछ आयतों के बाद वृत्तांत में एक छोटी-सी बात बतायी गयी है जो और कहीं नहीं है: यूहन्ना “महायाजक का जाना पहचाना था।” वह महायाजक के घराने का भी जाना-पहचाना था; वहाँ के नौकर उससे और वह उनसे परिचित था। (यूहन्ना १८:१५, १६) तो फिर, यह स्वाभाविक ही था कि यूहन्ना ने उस घायल व्यक्ति का नाम बताया, जबकि अन्य सुसमाचार-पुस्तकों के लेखक नहीं बताते, जिनके लिए वह व्यक्ति एक अजनबी था।
कभी-कभार, किसी वृत्तांत में सविस्तार स्पष्टीकरण नहीं दिया गया लेकिन कहीं और संयोगवश कुछ कथन किए गए हैं। उदाहरण के लिए, यहूदी महासभा के सामने यीशु के मुक़द्दमे के बारे में मत्ती का वृत्तांत कहता है कि उपस्थित कुछ लोगों ने “उस के मुंह पर . . . थप्पड़ मार के कहा। हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी करके कह: कि किस ने तुझे मारा?” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती २६:६७, ६८) उन्होंने यीशु से “भविष्यद्वाणी” करने के लिए क्यों कहा कि किसने उसे मारा था, जबकि मारनेवाला वहाँ उसके सामने खड़ा था? मत्ती स्पष्ट नहीं करता। लेकिन दो अन्य सुसमाचार-पुस्तक लेखक छूटा हुआ विवरण देते हैं: यीशु के सतानेवालों ने उसे थप्पड़ मारने से पहले उसका मुँह ढक दिया था। (मरकुस १४:६५; लूका २२:६४) मत्ती यह चिन्ता किए बग़ैर कि हरेक विवरण दिया गया है या नहीं अपना विषय पेश करता है।
यूहन्ना की सुसमाचार-पुस्तक एक ऐसे अवसर के बारे में बताती है जब एक बड़ी भीड़ यीशु की शिक्षा सुनने के लिए इकट्ठी हुई। अभिलेख के अनुसार, जब यीशु ने भीड़ को देखा, तो उसने “फिलिप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिये कहां से रोटी मोल लाएं?” (तिरछे टाइप हमारे।) (यूहन्ना ६:५) उपस्थित सभी शिष्यों में से, यीशु ने फिलिप्पुस से क्यों पूछा कि वे कहाँ से कुछ रोटी मोल ला सकते हैं? लेखक नहीं बताता। लेकिन, इसके समान वृत्तांत में लूका रिपोर्ट करता है कि यह घटना बैतसैदा के निकट घटी, जो गलील सागर के उत्तरी तट पर एक नगर था, और इससे पहले यूहन्ना की सुसमाचार-पुस्तक यह कहती है कि “फिलिप्पुस . . . बैतसैदा का निवासी था।” (यूहन्ना १:४४; लूका ९:१०) सो यीशु ने उचित ही ऐसे व्यक्ति से पूछा जिसका गृह नगर पास था। विवरणों के बीच का तालमेल अनोखा है, फिर भी यह साफ़ है कि अनजाने ही ऐसा हुआ।
कुछ मामलों में अमुक विवरणों को छोड़ देना बाइबल लेखक की विश्वसनीयता को बढ़ाता ही है। उदाहरण के लिए, १ राजा का लेखक इस्राएल में पड़े प्रचंड सूखे के बारे में बताता है। यह सूखा इतना प्रचंड था कि राजा को अपने घोड़ों और खच्चरों को जीवित रखने के लिए पर्याप्त पानी और घास नहीं मिल रही थी। (१ राजा १७:७; १८:५) फिर भी, वही वृत्तांत कहता है कि भविष्यवक्ता एलिय्याह ने कर्म्मेल पर्वत पर (बलि के लिए प्रयोग करने की ख़ातिर) इतना पानी लाए जाने का आदेश दिया कि संभवतः १,००० वर्ग मीटर के घेरे की ख़ंदक भर जाए। (१ राजा १८:३३-३५) सूखे के बीच, यह सारा पानी कहाँ से आया? पहला राजा के लेखक ने स्पष्ट करने की चेष्टा नहीं की। लेकिन, इस्राएल में रहनेवाला हर व्यक्ति जानता था कि कर्म्मेल भूमध्य सागर के तट पर था, जैसे उस वृत्तांत में संयोग से की गयी एक टिप्पणी से सूचित होता है। (१ राजा १८:४३) इसलिए, समुद्र का पानी आसानी से मिल गया होगा। अन्य बातों में बारीक़ियाँ बतानेवाली यह किताब, अगर केवल सच का नक़ाब ओढ़े महज़ एक कहानी होती, तो उसका लेखक, जो इस मामले में फिर एक चतुर जालसाज़ होता, ऐसे परस्पर-विरोध को पाठ में क्यों रहने देता?
तो क्या बाइबल पर भरोसा किया जा सकता है? बाइबल असली लोगों, असली जगहों, और असली घटनाओं का ज़िक्र करती है, इसकी पुष्टि करने के लिए पुरातत्त्ववेत्ताओं ने पर्याप्त कलाकृतियाँ खोदकर निकाली हैं। लेकिन, इससे भी अधिक प्रेरित करनेवाला सबूत बाइबल में ही पाया जाता है। निष्कपट लेखकों ने कड़वा सच लिखने में किसी को नहीं बख़्शा—ख़ुद को भी नहीं। लेखनों की आंतरिक सुसंगति, जिसमें बिना साज़िश के दी गयी समान जानकारी शामिल है, इस “बयान” को सच की खनक देती है। ‘विश्वसनीयता के ऐसे निश्चित चिन्ह’ लिए हुए, बाइबल वाक़ई एक ऐसी किताब है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं।
[फुटनोट]
a उस खोज के बाद, प्रोफ़ॆसर आन्द्रे लॆमेर ने रिपोर्ट किया कि मेशा शिला (जिसे मोआबी शिला भी कहा जाता है), की खोज १८६८ में की गयी थी, पर एक क्षतिग्रस्त पंक्ति का नया पुनर्निर्माण दिखाता है कि उसमें भी “दाऊद के घराने” का ज़िक्र आता है।४
b “कैफा” नाम “पतरस” का यहूदी समतुल्य है।—यूहन्ना १:४२.
[पेज 15 पर तसवीर]
तॆल दान टुकड़ा
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
लाकीश की घेराबंदी का वर्णन करती हुई अश्शूर की दीवार आकृति, जिसका ज़िक्र २ राजा १८:१३, १४ में किया गया है