माता-पिताओं और बच्चों: परमेश्वर को पहला स्थान दीजिए!
“परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर।”—सभोपदेशक १२:१३.
१. माता-पिताओं और बच्चों को कौन-सा भय विकसित करने की ज़रूरत है, और यह उनके लिए क्या करेगा?
यीशु मसीह के बारे में एक भविष्यवाणी ने कहा कि “वह यहोवा का भय मानने में हर्षित होगा।” (यशायाह ११:३, NHT) उसका भय मूलतः परमेश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा और विस्मय, परमेश्वर को अप्रसन्न करने का भय था, क्योंकि वह उससे प्रेम करता था। माता-पिताओं और बच्चों को परमेश्वर का ऐसा मसीह-समान भय विकसित करने की ज़रूरत है, जो उन्हें हर्षित करेगा जैसे इसने यीशु को किया था। उन्हें परमेश्वर के आदेशों को मानने के द्वारा उसको अपने जीवन में पहला स्थान देने की ज़रूरत है। एक बाइबल लेखक के अनुसार, “मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभोपदेशक १२:१३.
२. व्यवस्था की सबसे महत्त्वपूर्ण आज्ञा क्या थी, और यह मुख्यतः किसको दी गयी थी?
२ व्यवस्था की सबसे महत्त्वपूर्ण आज्ञा अर्थात् हमें ‘यहोवा से अपने सारे मन, प्राण, और शक्ति के साथ प्रेम रखना’ चाहिए, मुख्यतः माता-पिताओं को दी गयी थी। यह बात व्यवस्था के आगे के शब्दों से दिखती है: “तू [यहोवा से प्रेम रखने के बारे में इन शब्दों को] अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्थाविवरण ६:४-७; मरकुस १२:२८-३०) इस प्रकार माता-पिताओं को ख़ुद परमेश्वर से प्रेम रखने और वैसा ही करने के लिए अपने बच्चों को सिखाने के द्वारा परमेश्वर को पहला स्थान देने के लिए आज्ञा दी गयी थी।
एक मसीही ज़िम्मेदारी
३. यीशु ने बच्चों को ध्यान देने के महत्त्व को कैसे प्रदर्शित किया?
३ यीशु ने छोटे बच्चों को भी ध्यान देने के महत्त्व को प्रदर्शित किया। यीशु की पार्थिव सेवकाई के अन्त के निकट एक मौक़े पर, लोग अपने शिशुओं को उसके पास लाने लगे। प्रत्यक्षतः यह मानते हुए कि यीशु काफ़ी व्यस्त है, तो उसे तंग नहीं करना है, शिष्यों ने लोगों को रोकने की कोशिश की। लेकिन यीशु ने अपने शिष्यों को डांटा: “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो।” यहाँ तक कि यीशु ने “उन्हें गोद में लिया,” इस प्रकार छोटे बच्चों को ध्यान देने के महत्त्व को मर्मस्पर्शी तरीक़े से दिखाया।—लूका १८:१५-१७; मरकुस १०:१३-१६.
४. किन्हें ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाने’ की आज्ञा दी गयी थी, और यह बात उनसे क्या करने की माँग करती?
४ यीशु ने इसे भी स्पष्ट किया कि उसके अनुयायियों पर अपने बच्चों को सिखाने के अलावा दूसरों को भी सिखाने की ज़िम्मेदारी थी। अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद, यीशु “पांच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया”—जिनमें कुछ माता-पिता शामिल थे। (१ कुरिन्थियों १५:६) प्रत्यक्षतः यह गलील के एक पहाड़ पर हुआ जहाँ उसके ११ प्रेरित भी इकट्ठे हुए थे। वहाँ यीशु ने उन सब से आग्रह किया: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ, . . . और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती २८:१६-२०, तिरछे टाइप हमारे।) कोई भी मसीही इस आज्ञा की उपेक्षा करने में सही नहीं होगा! इसे पूरा करने के लिए माताओं और पिताओं से यह माँग की जाती है कि वे अपने बच्चों की देखभाल करें साथ ही साथ जन प्रचार और शिक्षण कार्य में हिस्सा लें।
५. (क) कौन-सी बात दिखाती है कि सब नहीं तो, अधिकांश प्रेरित विवाहित थे और इस कारण संभवतः उनके पास बच्चे थे? (ख) कौन-सी सलाह परिवार के सिरों को गम्भीरतापूर्वक लेनी थी?
५ उल्लेखनीय है कि प्रेरितों को भी प्रचार करने साथ ही साथ परमेश्वर के झुण्ड की रखवाली करने की बाध्यता को अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के साथ संतुलित करना था। (यूहन्ना २१:१-३, १५-१७; प्रेरितों १:८) ऐसा इसलिए क्योंकि सब नहीं तो, अधिकांश विवाहित थे। अतः प्रेरित पौलुस ने समझाया: “क्या हमें यह अधिकार नहीं, कि किसी मसीही बहिन को ब्याह कर के लिए फिरें, जैसा और प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं?” (१ कुरिन्थियों ९:५, तिरछे टाइप हमारे; मत्ती ८:१४) कुछ प्रेरितों के पास शायद बच्चे भी रहे होंगे। प्रारंभिक इतिहासकार, जैसे यूसीबीयस, कहते हैं कि पतरस के पास थे। सभी प्रारंभिक मसीही माता-पिताओं को शास्त्रीय सलाह मानने की ज़रूरत थी: “यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।”—१ तीमुथियुस ५:८.
मुख्य ज़िम्मेदारी
६. (क) परिवारवाले मसीही प्राचीनों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (ख) एक प्राचीन की मुख्य ज़िम्मेदारी क्या है?
६ मसीही प्राचीन जिनके परिवार हैं आज प्रेरितों के ही जैसी स्थिति में हैं। उन्हें सार्वजनिक रूप से प्रचार करने और परमेश्वर के झुण्ड की रखवाली करने की अपनी बाध्यता को अपने परिवारों की आध्यात्मिक और भौतिक ज़रूरतों की देखरेख करने की अपनी ज़िम्मेदारी के साथ संतुलित करना है। कौन-सी गतिविधि को प्राथमिकता दी जानी चाहिए? मार्च १५, १९६४ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) ने कहा: “[पिता की] पहली बाध्यता अपने परिवार के प्रति है, और वह, असल में, सही ढंग से सेवा नहीं कर सकता यदि वह इस बाध्यता की देखभाल नहीं करता है।”
७. मसीही पिता परमेश्वर को पहला स्थान कैसे देते हैं?
७ सो पिताओं को ‘यहोवा की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, अपने बच्चों का पालन-पोषण करने’ की आज्ञा मानने के द्वारा परमेश्वर को पहला स्थान देना चाहिए। (इफिसियों ६:४) यह ज़िम्मेदारी किसी और को नहीं दी जा सकती, यद्यपि एक पिता के पास शायद मसीही कलीसिया में गतिविधियों का निरीक्षण करने की नियुक्ति भी हो। ऐसे पिता अपनी ज़िम्मेदारियों की देखरेख—भौतिक, आध्यात्मिक, और भावात्मक रूप से परिवार के सदस्यों के लिए प्रबन्ध करना—और साथ ही साथ कलीसिया में अध्यक्षता तथा निरीक्षण कैसे कर सकते हैं?
आवश्यक सहारा प्रदान करना
८. एक प्राचीन की पत्नी उसे कैसे सहारा दे सकती है?
८ स्पष्टतया, जिन प्राचीनों की पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ हैं, वे सहारे से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ऊपर-उद्धृत प्रहरीदुर्ग ने बताया कि एक मसीही पत्नी अपने पति के लिए सहारा हो सकती है। इसने कहा: “वह उसके लिए उसकी विभिन्न नियुक्तियों को तैयार करने को यथासंभव सुविधाजनक बना सकती है, और घर में एक अच्छी सारणी रखने, समय पर भोजन तैयार रखने, तत्परता से कलीसिया सभाओं में जाने के लिए तैयार होने के द्वारा उसका और अपना क़ीमती समय बचाने में मदद कर सकती है। . . . अपने पति के निर्देशन में, मसीही पत्नी बच्चों को यहोवा को प्रसन्न करने के लिए जिस मार्ग पर उन्हें चलना चाहिए, उसमें प्रशिक्षित करने के लिए बहुत कुछ कर सकती है।” (नीतिवचन २२:६) जी हाँ, पत्नी को “सहायक” होने के लिए सृष्ट किया गया था, और उसका पति बुद्धिमत्तापूर्वक उसकी सहायता का स्वागत करेगा। (उत्पत्ति २:१८) उसका सहारा उसे और भी प्रभावकारी रीति से दोनों, अपनी पारिवारिक और कलीसियाई ज़िम्मेदारियों की देखरेख करने में समर्थ कर सकता है।
९. थिस्सलुनीके कलीसिया में किसे कलीसिया के अन्य सदस्यों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था?
९ लेकिन, मसीही प्राचीनों की पत्नियाँ ही नहीं हैं जो ऐसी गतिविधि में हिस्सा ले सकती हैं जिससे एक ओवरसियर को सहारा मिलता है जिसे दोनों, ‘परमेश्वर के झुण्ड की रखवाली’ और अपने घराने की देखरेख करनी है। (१ पतरस ५:२) और कौन हिस्सा ले सकते हैं? प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीके के भाइयों से आग्रह किया कि जो ‘उनके अगुवे’ हैं उनके प्रति आदर दिखाएँ। फिर भी, इन्हीं भाइयों को आगे कहते हुए—विशिष्ट रूप से उन्हें जो अगुआई नहीं कर रहे हैं—पौलुस ने लिखा: “हे भाइयों, हम तुमसे आग्रह करते हैं कि उपद्रवी को ताड़ना दो, हताश प्राणों से सांत्वनापूर्वक बात करो, निर्बलों को सहारा दो, सभी के प्रति सहनशील रहो।”—१ थिस्सलुनीकियों ५:१२-१४, NW.
१०. कलीसिया पर सभी भाइयों की प्रेममय सहायता का क्या उत्तम प्रभाव पड़ता है?
१० कितना उत्तम है जब एक कलीसिया में भाइयों के पास वह प्रेम है जो उन्हें हताश लोगों को सांत्वना देने, निर्बलों को सहारा देने, उपद्रवी लोगों को ताड़ना देने, और सब के प्रति सहनशील रहने के लिए प्रेरित करता है! थिस्सलुनीके के भाइयों ने, जिन्होंने हाल ही में बाइबल सच्चाई को बड़े क्लेश सहने के बावजूद स्वीकार किया था, ऐसा करने के लिए पौलुस की सलाह को लागू किया। (प्रेरितों १७:१-९; १ थिस्सलुनीकियों १:६; २:१४; ५:११) पूरी कलीसिया को मज़बूत और एक करने में उनके प्रेममय सहयोग का जो उत्तम प्रभाव हुआ, उसके बारे में सोचिए! समान रूप से, आज जब भाई एक दूसरे को सांत्वना, सहारा, और ताड़ना देते हैं, तो यह प्राचीनों, जिनके पास देखरेख करने के लिए अकसर परिवार होते हैं, की रखवाली करने की ज़िम्मेदारियों को सँभालना काफ़ी आसान बना देता है।
११. (क) यह निष्कर्ष निकालना क्यों तर्कसंगत है कि पद “भाइयों” में स्त्रियाँ शामिल थीं? (ख) एक प्रौढ़ मसीही स्त्री आज जवान स्त्रियों को कौन-सी मदद दे सकती है?
११ क्या उन “भाइयों” में स्त्रियाँ भी शामिल थीं जिन्हें प्रेरित पौलुस सम्बोधित कर रहा था? जी हाँ, वे थीं, क्योंकि अनेक स्त्रियाँ विश्वासी बन गयीं। (प्रेरितों १७:१, ४; १ पतरस २:१७; ५:९) ऐसी स्त्रियाँ किस प्रकार की सहायता दे सकती थीं? कलीसियाओं में ऐसी युवा स्त्रियाँ थीं जिन्हें अपनी “देह की इच्छाओं” को नियंत्रित करने में समस्या थी या जो ‘हताश प्राण’ बन गयीं। (१ तीमुथियुस ५:११-१३, NHT) आज कुछ स्त्रियों की समान समस्याएँ हैं। उन्हें शायद एक ऐसे व्यक्ति की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो जो उनकी समस्याओं को सुने और सहानुभूतिशील हो। अकसर एक प्रौढ़ मसीही स्त्री ऐसी सहायता प्रदान करने के लिए सर्वोत्तम व्यक्ति है। उदाहरण के लिए, वह दूसरी स्त्री के साथ ऐसी निजी समस्याओं की चर्चा कर सकती है जो एक मसीही पुरुष अपने आप उचित रूप से सँभाल नहीं सकता। ऐसी मदद प्रदान करने के महत्त्व को विशिष्ट करते हुए, पौलुस ने लिखा: ‘बूढ़ी स्त्रियाँ अच्छी बातें सिखानेवाली हों। ताकि वे जवान स्त्रियों को चितौनी देती रहें, कि अपने पतियों और बच्चों से प्रीति रखें। और संयमी, पतिव्रता, घर का कारबार करनेवाली, भली और अपने अपने पति के आधीन रहनेवाली हों, ताकि परमेश्वर के वचन की निन्दा न होने पाए।’—तीतुस २:३-५.
१२. कलीसिया में सभी के लिए किनके निर्देशन का पालन करना अति-महत्त्वपूर्ण है?
१२ नम्र बहनें कलीसिया में क्या ही आशीष हैं जब वे अपने सहयोग से दोनों, अपने पतियों और प्राचीनों को सहारा देती हैं! (१ तीमुथियुस २:११, १२; इब्रानियों १३:१७) जिन प्राचीनों की पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ हैं, वे विशेषकर लाभ प्राप्त करते हैं जब सभी प्रेम की आत्मा में एक दूसरे की मदद करने में सहयोग देते हैं और जब सभी नियुक्त चरवाहों के निर्देशन के अधीन होते हैं।—१ पतरस ५:१, २.
माता-पिताओं, आप किसे पहला स्थान देते हैं?
१३. अनेक पिता कैसे अपने परिवारों में असफल होते हैं?
१३ सालों पहले एक प्रमुख मनोरंजनकर्ता ने टिप्पणी की: “मैं सफल पुरुषों को सैकड़ों लोगों वाली कम्पनियाँ चलाते हुए देखता हूँ; वे जानते हैं कि व्यापारिक संसार की हर परिस्थिति से कैसे निपटना है, कैसे अनुशासन और इनाम देना है। लेकिन जो सबसे बड़ा व्यापार वे चला रहे हैं वह उनका परिवार है और वे इसमें असफल होते हैं।” क्यों? क्या यह इसलिए नहीं कि वे व्यापार और अन्य अभिरुचियों को पहला स्थान देते हैं और परमेश्वर की सलाह की उपेक्षा करते हैं? उसका वचन कहता है: “ये आज्ञाएं जो मैं . . . सुनाता हूं . . . तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना।” और यह रोज़ किया जाना था। माता-पिताओं को अपना समय—और ख़ासकर अपना प्रेम तथा गहरी चिन्ता—बहुतायत में देने की ज़रूरत है।—व्यवस्थाविवरण ६:६-९.
१४. (क) माता-पिताओं को अपने बच्चों की देखभाल कैसे करनी चाहिए? (ख) बच्चों के उचित प्रशिक्षण में क्या शामिल है?
१४ बाइबल हमें याद दिलाती है कि बच्चे यहोवा का दिया हुआ भाग हैं। (भजन १२७:३) क्या आप अपने बच्चों की देखभाल परमेश्वर की सम्पत्ति की तरह करते हैं, एक ऐसा तोहफ़ा जो उसने आपके सुपुर्द किया है? आपका बच्चा संभवतः अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाएगा यदि आप उसे अपनी बाँहों में लेते हैं, इस प्रकार अपनी प्रेममय परवाह और ध्यान प्रदर्शित करते हैं। (मरकुस १०:१६) लेकिन, ‘एक बच्चे को शिक्षा उसी मार्ग की देना, जिस में उसको चलना चाहिये’ मात्र आलिंगनों और चुम्बनों से ज़्यादा की माँग करता है। जीवन के फन्दों से दूर रहने की बुद्धि से सुसज्जित होने के लिए, एक बच्चे को प्रेममय अनुशासन की भी ज़रूरत है। एक जनक ‘यत्न से अपने बच्चे को शिक्षा देने’ के द्वारा असल प्रेम दिखाता है।—नीतिवचन १३:१, २४; २२:६.
१५. कौन-सी बात जनकीय अनुशासन की ज़रूरत को दिखाती है?
१५ जनकीय अनुशासन की ज़रूरत अपने दफ़्तर में आनेवाले बच्चों के बारे में एक स्कूल सलाहकारी के वर्णन से देखी जा सकती है: “वे दयनीय, निराश, और खोए हुए हैं। जब वे स्थिति की वास्तविकता के बारे में बात करते हैं, तब वे रोते हैं। अनेक—एक व्यक्ति के विचार से भी कहीं ज़्यादा—बच्चों ने आत्महत्या की कोशिश की है, इसलिए नहीं कि वे इतने ख़ुश हैं कि इसे बरदाश्त ही नहीं कर सकते; बल्कि इसलिए कि वे इतने दुःखी, उपेक्षित, और तनावपूर्ण महसूस करते हैं क्योंकि इतनी छोटी उम्र में वे ‘अपना कार्यभार ख़ुद सँभालते’ हैं और इसे सँभालना बस के बाहर की बात है।” वह आगे कहती है: “एक युवा व्यक्ति के लिए यह महसूस करना डरावनी बात है कि वह कार्यभार सँभाल रहा है।” यह सच है कि बच्चे अनुशासन से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे वास्तव में जनकीय मार्गदर्शन और प्रतिबन्धों की क़दर करते हैं। वे ख़ुश हैं कि उनके माता-पिता इतनी चिन्ता करते हैं कि उनके लिए सीमाएँ निर्धारित करते हैं। “इसने मेरे सिर से एक भारी बोझ उतार दिया है,” एक किशोर कहता है जिसके माता-पिता सीमाएँ निर्धारित करते हैं।
१६. (क) मसीही घरों में पाले-पोसे गए कुछ बच्चों को क्या होता है? (ख) एक बच्चे के पथभ्रष्ट मार्ग का अनिवार्यतः यह अर्थ क्यों नहीं है कि माता-पिता द्वारा दिया गया प्रशिक्षण अच्छा नहीं था?
१६ फिर भी, ऐसे माता-पिताओं के होने के बावजूद जो उनसे प्रेम करते हैं और उत्तम प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, कुछ युवा, यीशु के दृष्टान्त के उड़ाऊ पुत्र की तरह, जनकीय मार्गदर्शन को ठुकराते हैं और भटक जाते हैं। (लूका १५:११-१६) लेकिन, इस बात का अपने आप में शायद यह अर्थ न हो कि माता-पिता ने अपने बच्चे को सही ढंग से प्रशिक्षित करने की अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं की, जैसे नीतिवचन २२:६ निर्दिष्ट करता है। ‘बच्चे को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह उस से न हटेगा’ के बारे में कथन एक सामान्य नियम के रूप में दिया गया था। अफ़सोस की बात है, उड़ाऊ पुत्र की तरह, कुछ बच्चे ‘अपमान के साथ अपने जनक की आज्ञा नहीं मानेंगे।’—नीतिवचन ३०:१७.
१७. पथभ्रष्ट बच्चों के माता-पिता किस बात से सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं?
१७ एक पथभ्रष्ट बेटे के पिता ने शोक प्रकट किया: “मैं ने उसके हृदय तक पहुँचने की बार-बार कोशिश की है। मैं नहीं जानता कि क्या करना है क्योंकि मैं कई कोशिशें कर चुका हूँ। कुछ भी सफल नहीं हुआ।” आशा है कि ऐसे पथभ्रष्ट बच्चे, समय आने पर, उन्हें प्राप्त हुए प्रेममय प्रशिक्षण को याद करेंगे और उस उड़ाऊ पुत्र की तरह वापस आएँगे। लेकिन सत्य फिर भी यही है कि कुछ बच्चे विद्रोह करते हैं और अनैतिक काम करते हैं जिससे उनके माता-पिता को अत्यधिक ठेस पहुँचती है। माता-पिता इस बात की जानकारी से सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं कि पृथ्वी पर जीनेवाले सर्वश्रेष्ठ शिक्षक ने भी अपने पुराने विद्यार्थी, यहूदा इस्करियोती को उसे पकड़वाते हुए देखा। और ख़ुद यहोवा भी निःसंदेह दुःखी हुआ जब उसके अनेक आत्मिक पुत्रों ने उसकी सलाह को ठुकराया और विद्रोही साबित हुए जबकि उसका इसमें कोई दोष नहीं था।—लूका २२:४७, ४८; प्रकाशितवाक्य १२:९.
बच्चों—आप किसे प्रसन्न करेंगे?
१८. बच्चे कैसे दिखा सकते हैं कि वे परमेश्वर को पहला स्थान देते हैं?
१८ यहोवा आप युवजनों से आग्रह करता है: “प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो।” (इफिसियों ६:१) युवा लोग ऐसा करने के द्वारा परमेश्वर को पहला स्थान देते हैं। मूढ़ मत होइए! “मूढ़ अपने पिता की शिक्षा का तिरस्कार करता है,” परमेश्वर का वचन कहता है। ना ही आपको अहंकार में आकर यह मानना चाहिए कि आप अनुशासन के बिना रह सकते हैं। सच्चाई यह है कि “ऐसे लोग हैं जो अपनी दृष्टि में शुद्ध हैं, तौभी उनका मैल धोया नहीं गया।” (नीतिवचन १५:५; ३०:१२) सो ईश्वरीय निर्देशन का पालन कीजिए—माता-पिता की आज्ञाओं और अनुशासन पर ‘कान लगाइए,’ उसे ‘हृदय में रखिए,’ ‘न भूलिए’, उस पर ‘मन लगाइए,’ उसे ‘मानिए,’ और ‘न तजिए।’—नीतिवचन १:८; २:१; ३:१; ४:१; ६:२०.
१९. (क) बच्चों के पास यहोवा की आज्ञा मानने के लिए कौन-से शक्तिशाली कारण हैं? (ख) युवजन कैसे दिखा सकते हैं कि वे परमेश्वर के कृतज्ञ हैं?
१९ आपके पास यहोवा की आज्ञा मानने के लिए शक्तिशाली कारण हैं। वह आपसे प्रेम करता है, और उसने आपकी रक्षा करने और एक सुखी जीवन का आनन्द उठाने में आपकी मदद करने के लिए आपको अपने नियम दिए हैं, जिनमें बच्चों का अपने माता-पिताओं की आज्ञा मानने का नियम शामिल है। (यशायाह ४८:१७) उसने आपके लिए अपने पुत्र को मरने के लिए भी दिया है ताकि आप पाप और मृत्यु से छुटकारा पाकर अनन्त जीवन का आनन्द उठा सकें। (यूहन्ना ३:१६) क्या आप कृतज्ञ हैं? परमेश्वर स्वर्ग से देख रहा है, यह देखने के लिए आपके हृदय को जाँच रहा है कि आप उससे सचमुच प्रेम करते हैं और उसके प्रबन्धों की क़दर करते हैं या नहीं। (भजन १४:२) शैतान भी देख रहा है, और वह यह दावा करते हुए परमेश्वर पर ताना कस रहा है कि आप उसकी आज्ञा को नहीं मानेंगे। जब आप परमेश्वर की अवज्ञा करते हैं तब आप शैतान को ख़ुश और यहोवा को ‘उदास करते’ हैं। (भजन ७८:४०, ४१) यहोवा आपसे अनुरोध करता है: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर [मेरे प्रति आज्ञाकारी होने के द्वारा] मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” (नीतिवचन २७:११) जी हाँ, सवाल यह है, आप किसे प्रसन्न करेंगे, शैतान को या यहोवा को?
२०. जब एक युवा भयभीत हो जाती है तब भी वह यहोवा की सेवा करने का साहस कैसे बनाए रखी है?
२० जब शैतान और उसके संसार की ओर से आप पर दबाव आता है, तब परमेश्वर की इच्छा करना आसान नहीं है। यह डरावना हो सकता है। एक युवा ने कहा: “भयभीत होना ठण्डा पड़ जाने के समान है। आप इसके बारे में कुछ कर सकते हैं।” वह समझाती है: “जब आपको ठण्ड लगती है, आप स्वेटर पहन लेते हैं। यदि आपको फिर भी ठण्ड लगती है, तब आप एक और स्वेटर पहन लेते हैं। और आप तब तक कुछ-न-कुछ पहनते रहते हैं जब तक कि ठण्डक जाती नहीं और आपको और ठण्ड नहीं लगती। सो जब आप भयभीत हैं तब यहोवा से प्रार्थना करना ठण्ड लगने के समय स्वेटर पहनने के समान है। एक प्रार्थना के बाद भी यदि मैं भयभीत हूँ, तो मैं फिर से प्रार्थना करती हूँ, तब तक बार-बार करती हूँ जब तक कि मेरा भय नहीं जाता। और यह सफल होता है। इसने मुझे कठिनाई से दूर रखा है!”
२१. यदि हम यहोवा को अपने जीवन में पहला स्थान देने की वास्तव में कोशिश करते हैं, तो वह हमारी सहायता कैसे करेगा?
२१ यदि हम परमेश्वर को अपने जीवन में पहला स्थान देने की वास्तव में कोशिश करते हैं, तो यहोवा हमारी सहायता करेगा। वह जब ज़रूरत हो तब स्वर्गदूतीय मदद प्रदान करते हुए हमें मज़बूत करेगा, जैसा उसने अपने पुत्र के लिए भी किया। (मत्ती १८:१०; लूका २२:४३) आप सभी माता-पिताओं और बच्चों, साहसी होइए। मसीह-समान भय रखिए, और वह आपको हर्षित करेगा। (यशायाह ११:३) जी हाँ, “परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभोपदेशक १२:१३.
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
◻ यीशु के प्रारंभिक अनुयायियों को कौन-सी ज़िम्मेदारियों को संतुलित करने की ज़रूरत थी?
◻ मसीही माता-पिताओं को कौन-सी ज़िम्मेदारी पूरी करनी है?
◻ परिवारवाले मसीही प्राचीनों को कौन-सी मदद उपलब्ध है?
◻ कलीसिया में बहनें कौन-सी मूल्यवान सेवा दे सकती हैं?
◻ बच्चों को कौन-सी सलाह और निर्देशन का पालन करना अति-महत्त्वपूर्ण है?
[पेज 15 पर तसवीरें]
अकसर एक प्रौढ़ मसीही स्त्री एक युवा स्त्री को आवश्यक सहायता प्रदान कर सकती है
[पेज 17 पर तसवीरें]
पथभ्रष्ट बच्चों के माता-पिता शास्त्र से कौन-सी सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं?