दिल से माफ कीजिए
“इसी प्रकार यदि तुम में से प्रत्येक अपने भाई को हृदय से क्षमा न करे तो मेरा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे साथ वैसा ही करेगा।”—मत्ती १८:३५, NHT.
१, २. (क) एक पापिनी ने यीशु के लिए अपना एहसान कैसे दिखाया? (ख) यह देखकर यीशु ने शमौन को कौन-सी बात समझायी?
शायद वह एक वेश्या है। हैरानी की बात है कि वह एक ऐसे आदमी के घर चली आई है जो बहुत ही इज़्ज़तदार और धार्मिक है। लेकिन वहाँ जाकर वह जो करती है उसे देखकर तो लोग और भी दंग रह जाते हैं। उस घर में एक मेहमान आया हुआ है जो दुनिया का सबसे पवित्र इंसान है और यह औरत उसके सामने गिरकर रोने लगती है, अपने आँसुओं से उसके पाँव भिगोती है और बालों से उन्हें पोंछती है। इस इंसान ने जो भी किया था, उसके लिए वह औरत अपने दिल से एहसानमंद थी और यही उसके इज़हार का तरीका था।
२ वह औरत “उस नगर की एक पापिनी” थी और वह सबसे पवित्र इंसान था, यीशु मसीह। वह घर शिमोन नाम के एक फरीसी का था। उस औरत ने यीशु की जो सेवा की उसे यीशु ने तो स्वीकार किया लेकिन शमौन फरीसी को यह बहुत ही बुरा लगा क्योंकि वह एक बदनाम औरत थी। इसलिए शमौन को समझाने के लिए यीशु ने एक दृष्टांत बताया। एक महाजन के दो कर्जदार थे। एक आदमी का कर्ज़ बहुत ज़्यादा था। उसका कर्ज तो एक मज़दूर के दो साल के वेतन के बराबर था जबकि दूसरे आदमी का कर्ज तीन महीनों के वेतन से भी कम था। दोनों ही देनदार अपना कर्ज़ नहीं चुका पाए लेकिन महाजन ने “दोनों को क्षमा कर दिया।” इसमें कोई शक नहीं कि जिसका कर्ज़ ज़्यादा था वह महाजन का ज़्यादा एहसानमंद होकर उसे ज़्यादा प्यार करता। फिर यीशु ने समझाया कि किस तरह वह औरत भी उसी आदमी की तरह है जिसका कर्ज बहुत ज़्यादा था और जिसे माफ किया गया। वह यीशु की बहुत शुक्रगुज़ार थी इसलिए यीशु के लिए शमौन को जितना प्रेम था उससे कहीं अधिक वह यीशु से प्रेम रखती थी। इसलिए उसने यीशु के पाँव पर बहुमोल इत्र मला। फिर यीशु ने कहा: “जिस का थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।” इसके बाद यीशु ने उस औरत से कहा: “तेरे पाप क्षमा हुए।”—लूका ७:३६-४८.
३. हमें अपनी जाँच करने के लिए किन सवालों पर गौर करना चाहिए?
३ अब आप खुद से पूछिए, ‘उस औरत की जगह अगर मैं होता और मुझ पर भी ऐसी दया की जाती, तो क्या मैं दूसरों पर दया न करता और उन्हें माफ न करता? क्या मैं कठोर हो जाता?’ आप शायद कहें, ‘नहीं, बिलकुल नहीं!’ लेकिन ज़रा सोचकर देखिए, क्या आप हमेशा दूसरों को माफ करते हैं? क्या आपका स्वभाव ही ऐसा है कि आप दूसरों को आसानी से माफ कर देते हैं? क्या आपने कई बार दूसरों को माफ किया है? क्या दूसरे भी आपको हमेशा दिल से माफ करनेवाला इंसान समझते हैं? हममें से हरेक को इस मामले में सच्चाई से अपनी जाँच-परख करनी चाहिए। क्यों? आइए देखें।
माफी की ज़रूरत पूरी की गयी
४. हमें अपने बारे में किस सच्चाई को कबूल करना चाहिए?
४ आप अच्छी तरह जानते हैं कि आप असिद्ध हैं। और इस बात को समझाने के लिए शायद आप १ यूहन्ना १:८ के शब्द दोहराए: “यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं।” (रोमियों ३:२३; ५:१२) कुछ लोगों ने तो अपने पापी स्वभाव की वज़ह से बहुत ही गंदे और घिनौने काम किए हैं। शायद आपने इतने बुरे काम न किए हों, लेकिन कई बार और अलग-अलग तरीकों से आप परमेश्वर के ऊँचे दर्जों पर पूरे नहीं उतरे होंगे, दूसरे शब्दों में कहें तो आपने पाप किया होगा। क्या यह सच नहीं है?
५. किस बात के लिए हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए?
५ इसलिए, आपका हाल भी वैसा ही है जैसा प्रेरित पौलुस ने बताया था: “[परमेश्वर] ने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, [यीशु] के साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया।” (कुलुस्सियों २:१३; इफिसियों २:१-३) इन शब्दों पर गौर कीजिए, “हमारे सब अपराधों को क्षमा किया।” इसमें हमारे तमाम अपराध या पाप आ जाते हैं। हम सभी को दाऊद की तरह ही बिनती करनी चाहिए: “हे यहोवा अपने नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।”—भजन २५:११.
६. जब माफ करने की बात आती है, तो यहोवा के बारे में हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?
६ आपको, या हम सबको, अपने पापों की माफी कैसे मिल सकती है? सबसे बड़ी बात यह है कि यहोवा खुद हमें माफ करना चाहता है। माफ करना उसके स्वभाव ही में है, यह उसका एक खास गुण है। (निर्गमन ३४:६, ७; भजन ८६:५) लेकिन हाँ, परमेश्वर हमें तभी माफ करेगा जब हम प्रार्थना में उससे माफी माँगेंगे, उससे क्षमा की बिनती करेंगे। (२ इतिहास ६:२१; भजन १०३:३, १०, १४) और परमेश्वर ने माफी देने के लिए एक सही इंतज़ाम भी किया है। यह इंतज़ाम है यीशु का छुड़ौती बलिदान।—रोमियों ३:२४; १ पतरस १:१८, १९; १ यूहन्ना ४:९, १४.
७. किस बात में आपको परमेश्वर जैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए?
७ परमेश्वर का इस तरह हमें माफ करना, हमारे लिए एक सबक है कि हमें एक-दूसरे के साथ कैसे पेश आना चाहिए। पौलुस ने यही बात समझाने के लिए कहा: “एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।” (इफिसियों ४:३२) इसमें कोई दो राय नहीं कि पौलुस हमसे परमेश्वर के आदर्श पर चलने के लिए कह रहा है, क्योंकि अगली आयत कहती है: “इसलिये प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो।” (इफिसियों ५:१) इन दोनों आयतों के संबंध को क्या आपने समझा? पौलुस एक ज़बरदस्त दलील पेश कर रहा है कि यहोवा ने आपके सब अपराध क्षमा किए हैं इसलिए आपको उसकी तरह ही “करुणामय हो[ना है], दूसरे के अपराध क्षमा” करना है। मगर अपने आप से पूछिए, ‘क्या मैं ऐसा कर रहा हूँ? अगर किसी को माफ करना मेरे स्वभाव में ही नहीं है, तो क्या मैं परमेश्वर जैसा बनने की कोशिश कर रहा हूँ, जो खुले दिल से सबको माफ करता है?’
हमें दूसरों को माफ करना सीखना चाहिए
८. मसीही कलीसिया के भाई-बहनों के बारे में किस सच्चाई को हमें समझना चाहिए?
८ कितना अच्छा होता अगर मसीही कलीसिया में बहुत कम ही ऐसी नौबत आती कि हमें किसी वज़ह से दूसरों को माफ करना पड़ता। मगर ऐसा होता नहीं है। इसमें भी कोई शक नहीं कि हमारे भाई-बहन यीशु के नक्शे-कदम पर चलकर सबको प्यार करने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं। (यूहन्ना १३:३५; १५:१२, १३; गलतियों ६:२) वे काफी समय से और अब भी कोशिश कर रहे हैं कि इस दुष्ट संसार के सोचने, बोलने और व्यवहार करने के तौर-तरीकों का अपनी ज़िंदगी से नामो-निशान मिटा दें। वे सही मायनों में नए मनुष्यत्व के मुताबिक चलना चाहते हैं। (कुलुस्सियों ३:९, १०) फिर भी, हम इस सच्चाई को नकार नहीं सकते कि सारी दुनिया की मसीही कलीसिया या हमारे इलाके की मसीही कलीसिया के भाई-बहन असिद्ध इंसान ही हैं। लेकिन देखा जाए तो वे आज उस वक्त के मुकाबले कहीं बेहतर इंसान हैं जब वे सच्चाई में नहीं थे, हालाँकि वे अब भी असिद्ध ही हैं।
९, १०. अगर भाइयों के बीच कोई समस्या उठ खड़ी हो तो हमें क्यों ताज्जुब नहीं करना चाहिए?
९ यहोवा परमेश्वर ने बाइबल में यह लिखवाया है कि हमें कलीसिया से यानी अपने भाई-बहनों से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वे सिद्ध इंसानों की तरह पेश आएँ इसके बजाय हमें उन्हें माफ करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसकी एक मिसाल है, कुलुस्सियों ३:१३ में पौलुस के ये शब्द: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।”
१० गौर करने लायक बात है, यहाँ बाइबल एक बार फिर हमें याद दिलाती है कि दूसरों के अपराध माफ करना हमारी ज़िम्मेदारी है क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम परमेश्वर से अपने अपराधों की माफी पाने की बात सोच भी नहीं सकते। लेकिन दूसरों के अपराध क्षमा करना मुश्किल लग सकता है। क्यों? क्योंकि जैसा पौलुस ने भी माना, “किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो” सकता है। पौलुस जानता था कि भाइयों पर दोष लगाने की कई वज़हें हो सकती हैं। पहली सदी में भी जिन मसीही “पवित्र” जनों के लिए ‘स्वर्ग की आशा रखी हुई’ थी, उनको भी एक-दूसरे पर दोष लगाने के कारण मिले होंगे। (कुलुस्सियों १:२, ५) जब ऐसी खास आशीष पानेवाले मसीहियों के साथ ऐसा था, तो क्या हम आज के मसीहियों से इससे ज़्यादा की उम्मीद कर सकते हैं, जिन्हें परमेश्वर की पवित्र शक्ति से यह गवाही नहीं मिली कि वे ‘परमेश्वर के चुने हुए, पवित्र और प्रिय हैं।’ (कुलुस्सियों ३:१२) इसलिए हो सकता है कि हमारी कलीसिया में दोष लगाने के वाजिब कारण हों या फिर मनगढ़न्त कारण हों। मगर इस वज़ह से हमें कभी-भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि हमारी कलीसिया में कोई बहुत भारी खोट है।
११. शिष्य याकूब हमें किस खतरे से सावधान करता है?
११ यीशु के सौतेले भाई याकूब के शब्दों से भी पता चलता है कि कभी-कभी ही सही, पर ऐसे हालात ज़रूर पैदा होंगे जब हमें अपने भाइयों को माफ करने की ज़रूरत पड़ेगी। “तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कार्यों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रकट करे जो ज्ञान से उत्पन्न होती है। परन्तु यदि तुम्हारे हृदय में कटु ईर्ष्या और स्वार्थी आकांक्षा हो तो गर्व न करना, और न सत्य के विरोध में झूठ ही बोलना।” (याकूब ३:१३, १४, NHT) “कटु ईर्ष्या और स्वार्थी आकांक्षा” और वह भी सच्चे मसीहियों के दिल में? जी हाँ, याकूब के शब्दों से साफ पता लगता है कि पहली सदी के मसीहियों में ऐसी भावनाएँ पैदा हो गयी थीं और आज भी होंगी।
१२. फिलिप्पी कलीसिया में कौन-सी समस्या उठ खड़ी हुई थी?
१२ पहली सदी की एक सच्ची मिसाल लीजिए। ये दो अभिषिक्त बहनों का मामला था जिनका कलीसिया में काफी अच्छा नाम था क्योंकि प्रचार काम में उन्होंने पौलुस के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर बहुत मेहनत की थी। आपको शायद याद हो कि ये बहनें यूओदिया और सुन्तुखे थीं। वे दोनों फिलिप्पी कलीसिया में थीं। फिलिप्पियों ४:२, ३ से पता चलता है कि उनके बीच किसी बात को लेकर मनमुटाव था, हालाँकि इसका पूरा ब्यौरा बाइबल नहीं देती। क्या इस मनमुटाव की वज़ह, बिना सोचे-समझे कही गयी कोई बात, उनके किसी रिश्तेदार की बेइज़्ज़ती या एक-दूसरे से आगे बढ़ने की जलन थी? वज़ह चाहे जो भी रही हो, यह मामला इतना गंभीर हो गया कि रोम में रहते वक्त पौलुस को भी इसकी खबर मिल गई। इन दोनों आध्यात्मिक बहनों ने शायद एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया होगा, सभाओं में एक-दूसरे से दूर-दूर रहती होंगी या अपने दोस्तों से एक-दूसरे की बुराई करती होंगी।
१३. यूओदिया और सुन्तुखे ने शायद किस तरह आपसी मतभेद दूर किया होगा और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
१३ क्या आपको यह जानी-पहचानी बात लगती है? क्या ऐसा ही कुछ आपकी कलीसिया के किसी भाई या बहन के साथ कभी हुआ था या क्या आप खुद ऐसी समस्या से गुज़र चुके हैं? आज भी कभी-कभी ऐसी समस्या उठ सकती है। तब हम क्या कर सकते हैं? पौलुस ने पहली सदी की उन दोनों समर्पित बहनों से गुज़ारिश की कि वे “प्रभु में एक मन” होकर रहें। शायद ये बहनें इस बात पर राज़ी हुईं होंगी कि वे इस मामले पर खुलकर बात करेंगी और गलतफहमियाँ दूर करेंगी। उन्होंने यहोवा की मिसाल पर चलकर एक-दूसरे को माफ किया होगा। बेशक यूओदिया और सुन्तुखे अपनी समस्या को हल करने में कामयाब हुईं और हम भी हो सकते हैं। हम भी एक-दूसरे की गलतियाँ ज़रूर माफ कर सकते हैं।
माफ करके शांति कायम कीजिए
१४. अगर आपको किसी से कुछ शिकायत है तो उसे भूल जाना ही क्यों बेहतर है?
१४ अगर आपको किसी भाई या बहन के खिलाफ कुछ शिकायत है तो उसे माफ करने के लिए आपको क्या करना होगा? दरअसल, इसके लिए कोई एक सीधा-सीधा तरीका नहीं है। लेकिन हाँ, बाइबल में ऐसी कुछ मिसालें दी गई हैं और सलाह दी गई है जो हमारे काम आ सकती है। इसमें एक सुझाव दिया गया है, हालाँकि इसे मानना इतना आसान नहीं पर यह सबसे बढ़िया सुझाव है, वह है कि बात को भूल जाओ और ऐसे दिखाओ मानो कुछ हुआ ही नहीं। अकसर जब समस्या पैदा होती है, जैसे यूओदिया और सुन्तुखे के बीच हुई थी, तो लोग एक-दूसरे पर दोष लगाने लगते हैं। अगर आप ऐसे हालात में हों तो आपको भी शायद लगे कि कसूर आपका नहीं दूसरे का है या वह आपसे भी ज़्यादा कसूरवार है। मगर, इस तरह सोचने के बजाय क्या आप माफी देकर किस्से को वहीं खत्म कर सकते हैं? याद रखिए कि अगर, हाँ अगर सारा कसूर दूसरे व्यक्ति का ही है तो आपके पास इस मामले को अनदेखा करने, उसे माफ कर देने और किस्से को वहीं खत्म कर देने का बढ़िया मौका है। लेकिन हाँ, हो सकता है कि सारा कसूर सिर्फ दूसरे व्यक्ति का ही न हो।
१५, १६. (क) मीका ने यहोवा परमेश्वर के बारे में क्या लिखा? (ख) इसका मतलब क्या है कि यहोवा “अपराधों को अनदेखा” करता है?
१५ माफ करने के मामले में आइए हम कभी-भी यहोवा परमेश्वर के आदर्श को न भूलें। (इफिसियों ४:३२–५:१) वह बार-बार हमारे पापों को अनदेखा करता है, इस बारे में भविष्यवक्ता मीका ने लिखा: “तेरे समान परमेश्वर कौन है जो अधर्म को क्षमा करता और अपने निज भाग के बचे हुओं के अपराधों को अनदेखा करता है? तू सदा क्रोधित नहीं रहता, क्योंकि करुणा दिखाना तुझे भाता है।”—मीका ७:१८, NHT.
१६ बाइबल जब कहती है कि यहोवा हमारे “अपराधों को अनदेखा” करता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह पापों को देख नहीं पाता मानो इस मामले में वह अपनी याददाश्त खो बैठता है। ज़रा शिमशोन और दाऊद को याद कीजिए। उन दोनों ने ही बहुत बड़े और गंभीर पाप किए। काफी वक्त बीत जाने के बाद भी यहोवा को उनके पाप याद थे; और उसने उन्हें बाइबल में लिखवा दिया था इसलिए हमें भी उनके कुछ पापों के बारे में पता है। फिर भी, माफ करने में हमारे आर्दश, यहोवा परमेश्वर ने उन्हें दया दिखायी और अपने वचन में उनकी मिसाल दर्ज की जिससे हम भी उनके जैसा विश्वास बढ़ा सकें।—इब्रानियों ११:३२; १२:१.
१७. (क) दूसरों की गलतियों या उनके द्वारा किए गए अपमान को अनदेखा करने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी? (ख) अगर हम ऐसा करते हैं तो हम किस तरह यहोवा की तरह काम कर रहे होंगे? (फुटनोट देखिए।)
१७ जी हाँ, यहोवा बार-बार हमारे अपराधों को ‘अनदेखा’a करता या मानो अपनी नज़रों से दूर करता है, और दाऊद ने भी कई बार उससे ऐसी ही बिनती की थी। (२ शमूएल १२:१३; २४:१०) क्या हम भी इस मामले में परमेश्वर जैसे हो सकते हैं? अगर हमारे भाई-बहन असिद्धता की वज़ह से कभी हमारी बेइज़्ज़ती करें या हमारे साथ रूखा व्यवहार करें तो क्या हम उनकी गलती भूल जाने के लिए तैयार हैं? मान लीजिए कि आप एक ऐसे जैट विमान में बैठे हैं जो उड़ान भरने के लिए हवाई-पट्टी पर तेज़ी से चला जा रहा है। आप बाहर देखते हैं और आपको हवाई-पट्टी के पास अपनी जान-पहचान का कोई व्यक्ति नज़र आता है। वह बड़े ही भद्दे ढंग से जीभ बाहर निकालकर आपको चिढ़ाने की बचकानी हरकत करता है। आप जान जाते हैं कि वह आदमी गुस्से में है और शायद आपको देखकर ही उसने मुँह चिढ़ाया है। या हो सकता है कि आपको नहीं किसी और को देखकर उसने ऐसा किया हो। जो भी हो, जब आपका विमान उड़ान भरने के लिए चक्कर लगाता है तो आप उस आदमी से काफी ऊँचाई पर होते हैं और वह सिर्फ एक चींटी जैसा नज़र आता है। एक ही घंटे के अंदर आप उससे मीलों दूर चले आते हैं और उसका वह चिढ़ाता हुआ मुँह बहुत पीछे छूट जाता है। उसी तरह, अगर हम यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश करें और अपमान को देखकर भी अनदेखा कर दें तो कई बार हमें दूसरों को माफ करने में आसानी होगी और इसी में अक्लमंदी है। (नीतिवचन १९:११) आज से दस साल बाद या परमेश्वर के राज्य में दो सौ साल बाद क्या वह अपमान बेमाने नहीं हो जाएगा? तो क्यों न आज उसे अनदेखा कर दिया जाए?
१८. अगर हमें किसी का अपराध माफ करना मुश्किल लगता है तो माफ करने में हमें कौन-सी सलाह मदद करेगी?
१८ मगर, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी ने आपके खिलाफ कुछ गलती की है और आपने इस बारे में प्रार्थना की और उसे माफ करने की कोशिश भी की लेकिन आप माफ कर नहीं कर पाते। तब क्या? यीशु ने कहा कि उस व्यक्ति के पास जाकर अकेले में भेदभाव को सुलझाने की कोशिश करें ताकि आप दोनों के बीच शांति कायम हो सके। यीशु ने कहा, “इसलिये यदि तू अपनी भेंट बेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं बेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।”—मत्ती ५:२३, २४.
१९. अपने भाई के साथ शांति कायम करने के लिए हमें कैसा रुख अपनाना चाहिए और कैसा नहीं?
१९ गौर कीजिए, यीशु ने यह नहीं कहा कि अपने भाई के पास आप उसे यह समझाने के लिए जाएँ कि दरअसल गलती आपकी नहीं उसकी थी। हो सकता है गलती उसी की हो या शायद दोनों की। गलती चाहे किसी की भी हो, हम इस मकसद से बात नहीं करेंगे कि दूसरे से उसकी गलती मनवाएँ। अगर आप इसी मकसद से बातचीत शुरू करते हैं तो आप कामयाब नहीं होंगे। हमें बातचीत के दौरान अपने खिलाफ किए गए अपराध की एक-एक बात को भी फिर से दोहराना नहीं चाहिए। और जब शांति से बातचीत करने के बाद पता चले कि दरअसल सारी समस्या की जड़ एक गलतफहमी है तो मसीही प्रेम दिखाते हुए, आप दोनों इसे दूर करने की कोशिश कर सकते हैं। बातचीत के बाद भी हो सकता है कि आप दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह सहमत न हों, लेकिन क्या सहमत होना वाकई ज़रूरी है? इसके बजाय क्या यह बेहतर न होगा कि आप दोनों कम-से-कम इस बात में एक-दूसरे से सहमत हों कि आप दोनों एक होकर सच्चे दिल से हमारे क्षमा करनेवाले परमेश्वर की सेवा करना चाहते हैं? जब आप दोनों इस सच्चाई को मान लेते हैं, तो आप शायद एक-दूसरे से कहें, “मुझे अफसोस है कि हमारी कमज़ोरी की वज़ह से हमारे बीच यह भेदभाव पैदा हो गया। प्लीज़, आप भी इसे भूल जाइए मैं भी भूल जाऊँगा।”
२०. हम प्रेरितों की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
२० याद रखिए कि यीशु के प्रेरितों के बीच भी भेदभाव थे, क्योंकि उनमें कुछ ऐसे थे जो दूसरों से ज़्यादा सम्मान पाना चाहते थे। (मरकुस १०:३५-३९; लूका ९:४६; २२:२४-२६) इस वज़ह से तनाव पैदा हो जाता था, शायद आपस में मनमुटाव हो जाता था या वे एक-दूसरे के साथ अच्छा सलूक नहीं करते थे। इसके बावजूद भी वे ऐसे अपराधों को अनदेखा करके साथ-साथ काम करते रहे। एक प्रेरित ने बाद में लिखा: “जो कोई जीवन की इच्छा रखता है, और अच्छे दिन देखना चाहता है, वह अपनी जीभ को बुराई से, और अपने होंठों को छल की बातें करने से रोके रहे। वह बुराई का साथ छोडे, और भलाई ही करे; वह मेल मिलाप को ढूंढ़े, और उसके यत्न में रहे।”—१ पतरस ३:१०, ११.
२१. माफ करने के बारे में यीशु ने कौन-सी बढ़िया सलाह दी?
२१ अब तक, हमने माफ करने का एक पहलू देखा: हमने पहले जो पाप किए थे, वे सब परमेश्वर ने माफ किए हैं, इसलिए हमें उसके जैसे होना चाहिए और अपने भाइयों को माफ करना चाहिए। (भजन १०३:१२; यशायाह ४३:२५) इसका दूसरा पहलू भी है, जो हमें यीशु द्वारा सिखायी गयी प्रार्थना में मिलता है। यीशु ने कहा: “यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।” यही बात यीशु ने एक साल बाद फिर दोहरायी जब उसने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया: “हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं।” (मत्ती ६:१२, १४; लूका ११:४) और अपनी मौत के कुछ ही दिन पहले, यीशु ने कहा: “जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो, तो क्षमा करो: इसलिये कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे।”—मरकुस ११:२५.
२२, २३. अगर हम अपने भाइयों को माफ करते हैं तो इसका असर हमारे भविष्य पर कैसे होगा?
२२ जी हाँ, अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारे पापों को माफ करे तो ज़रूरी है कि पहले हम अपने भाइयों को माफ करें। जब किसी भाई या बहन के साथ कुछ अनबन पैदा हो जाती है, तो अपने आप से पूछिए: ‘थोड़े-से तिरस्कार या अपमान, या फिर असिद्धता की वज़ह से की गयी किसी गलती के लिए किसी भाई या बहन को दोषी ठहराने से ज़्यादा क्या परमेश्वर की माफी पाना ज़रूरी नहीं है?’ जवाब तो आप खुद जानते हैं।
२३ लेकिन अगर मामला सिर्फ थोड़ी-सी बेइज़्ज़ती या तिरस्कार से ज़्यादा गंभीर हो, तब क्या? और मत्ती १८:१५-१८ में यीशु की सलाह कब लागू होती है? इन मामलों पर आइए हम अगले लेख में गौर करें।
[फुटनोट]
a एक विद्वान कहते हैं कि मीका ७:१८ में इब्रानी की जो लाक्षणिक भाषा इस्तेमाल की गयी है वह “एक ऐसे मुसाफिर को ध्यान में रखकर की गयी है जो रास्ते में पड़ी किसी चीज़ को अनदेखा करके आगे बढ़ जाता है, क्योंकि वह उस चीज़ पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहता। इसका मतलब है कि परमेश्वर को हमारे पाप नज़र तो आते हैं पर उसे लगता है कि उन पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं है। वह जान-बूझकर इन्हें नज़रअंदाज़ करता है क्योंकि वह इन पापों के लिए कोई सज़ा नहीं देना चाहता। जी हाँ वह सज़ा नहीं देता, बल्कि माफ करता है।”—न्यायियों ३:२६; १ शमूएल १६:८.
क्या आपको याद है?
◻ माफ करने के मामले में यहोवा ने हमारे लिए कैसा आदर्श रखा है?
◻ कलीसिया के भाई-बहनों के बारे में हमें क्या याद रखना चाहिए?
◻ ज़्यादातर मामलों में, अपनी बेइज़्ज़ती या तिरस्कार के बारे में हमें क्या करना चाहिए?
◻ अगर ज़रूरत पड़े, तो अपने भाई के साथ शांति कायम करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
[पेज 15 पर तसवीर]
किसी भाई-बहन के साथ मतभेद हो जाने पर उसे अनदेखा करने की कोशिश कीजिए; कुछ समय के बाद यह मामला धीरे-धीरे बेमाने हो जाएगा