इन अन्तिम दिनों में एकता बनाए रखिए
“तुम्हारा आचरण . . . सुसमाचार के योग्य हो, . . . एक आत्मा में स्थिर हो तथा एक मन होकर, एक साथ मिल कर सुसमाचार के विश्वास के लिए संघर्ष करते [र]हो।” —फिलिप्पियों १:२७, NHT.
१. यहोवा के साक्षियों और संसार के बीच क्या विषमता है?
ये ‘अन्तिम दिन’ हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि “कठिन समय” विद्यमान हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) इस “अन्त समय” में, जहाँ मानव समाज में अशान्ति है, यहोवा के साक्षी अपनी शान्ति और एकता के कारण स्पष्ट रूप से अलग दिखते हैं। (दानिय्येल १२:४) लेकिन यहोवा के उपासकों के विश्वव्यापी परिवार के प्रत्येक व्यक्ति से इस एकता को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करने की माँग की जाती है।
२. एकता बनाए रखने के बारे में पौलुस ने क्या कहा, और हम कौन-से सवाल पर विचार करेंगे?
२ प्रेरित पौलुस ने संगी मसीहियों को एकता बनाए रखने की सलाह दी। उसने लिखा: “तुम्हारा आचरण मसीह के सुसमाचार के योग्य हो, जिस से चाहे मैं आकर तुम्हें देखूं अथवा दूर रहूं, मैं तुम्हारे विषय में यही सुनूं कि तुम एक आत्मा में स्थिर हो तथा एक मन होकर, एक साथ मिल कर सुसमाचार के विश्वास के लिए संघर्ष करते हो और विरोधियों से किसी प्रकार भयभीत नहीं होते। यह उनके लिए तो विनाश का, परन्तु तुम्हारे लिए उद्धार का स्पष्ट चिन्ह है, जो परमेश्वर की ओर से है।” (फिलिप्पियों १:२७, २८, NHT) पौलुस के शब्द स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि हमें मसीहियों के तौर पर एक साथ कार्य करना है। तो फिर, इन कष्टकर समयों में अपनी मसीही एकता बनाए रखने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?
ईश्वरीय इच्छा के अधीन होइए
३. कब और कैसे पहले ख़तनारहित ग़ैरयहूदी लोग मसीह के अनुयायी बने?
३ अपनी एकता को बनाए रखने का एक तरीक़ा है हर समय ईश्वरीय इच्छा के अधीन होना। यह शायद अपने सोच-विचार में समंजन करने की माँग करेगा। यीशु मसीह के प्रारम्भिक यहूदी शिष्यों के बारे में विचार कीजिए। जब प्रेरित पतरस ने सा.यु. ३६ में ख़तनारहित ग़ैरयहूदियों को पहले प्रचार किया, तब परमेश्वर ने इन अन्यजातियों को पवित्र आत्मा प्रदान की, और उन्हें बपतिस्मा दिया गया। (प्रेरितों, अध्याय १०) तब तक, केवल यहूदी, यहूदी धर्म के मतधारक, और सामरी जैसे कि कूशी खोजा, यीशु मसीह के अनुयायी बने थे।—प्रेरितों ८:४-८, २६-३८.
४. कुरनेलियुस के सम्बन्ध में जो हुआ था उसे समझाने के बाद, पतरस ने क्या कहा, और इसने यीशु के यहूदी शिष्यों के लिए कौन-सी परीक्षा पेश की?
४ जब यरूशलेम के प्रेरित और अन्य भाइयों ने कुरनेलियुस और दूसरे ग़ैरयहूदी लोगों के धर्मपरिवर्तन के बारे में जाना, तो वे पतरस की रिपोर्ट सुनने के लिए उत्सुक थे। कुरनेलियुस और दूसरे विश्वासी ग़ैरयहूदी लोगों के सम्बन्ध में जो हुआ था उसे समझाने के बाद, प्रेरित ने इन शब्दों से समाप्त किया: “सो जब कि परमेश्वर ने उन्हें [उन विश्वासी अन्यजाति के लोगों को] भी [पवित्र आत्मा का] वही दान दिया, जो हमें [यहूदियों को] प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला था; तो मैं कौन था जो परमेश्वर को रोक सकता?” (प्रेरितों ११:१-१७) इसने यीशु मसीह के यहूदी अनुयायियों के लिए एक परीक्षा पेश की। क्या वे परमेश्वर की इच्छा के अधीन होते और विश्वासी ग़ैरयहूदियों को अपने संगी उपासकों की नाईं स्वीकारते? या क्या यहोवा के पार्थिव सेवकों की एकता ख़तरे में पड़ जाती?
५. प्रेरितों और अन्य भाइयों ने इस सच्चाई के प्रति कैसी अनुक्रिया दिखायी कि परमेश्वर ने ग़ैरयहूदियों को मन फिराव का दान दिया है, और हम इस मनोवृत्ति से क्या सीख सकते हैं?
५ वृत्तान्त कहता है: “यह सुनकर, वे [प्रेरित और अन्य भाई] चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।” (प्रेरितों ११:१८) उस मनोवृत्ति ने यीशु के अनुयायियों की एकता को बनाए रखा और इसे बढ़ावा दिया। केवल थोड़े समय में, प्रचार कार्य ग़ैरयहूदियों, या अन्यजातियों में बढ़ता गया, और यहोवा की आशीष ऐसी गतिविधियों पर थी। जब एक नयी कलीसिया की स्थापना के सम्बन्ध में हमारे सहयोग का निवेदन किया जाता है या जब परमेश्वर की पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के अधीन कोई ईश्वरशासित समंजन किया जाता है तब हमें ख़ुद चुपचाप स्वीकार करना चाहिए। पूरे मन से दिया गया हमारा सहयोग यहोवा को प्रसन्न करेगा और इन अन्तिम दिनों में अपनी एकता को बनाए रखने में हमारी मदद करेगा।
सच्चाई से लगे रहिए
६. यहोवा के उपासकों की एकता पर सच्चाई का क्या प्रभाव है?
६ उपासकों के यहोवा के परिवार के भाग के तौर पर, हम एकता बनाए रखते हैं क्योंकि हम सभी “परमेश्वर की ओर से सिखाए” जाते हैं और उसकी प्रकट सच्चाई को दृढ़तापूर्वक थामे रहते हैं। (यूहन्ना ६:४५; भजन ४३:३) चूँकि हमारी शिक्षाएँ परमेश्वर के वचन पर आधारित हैं, हम सभी सहमति में बात करते हैं। हम यहोवा द्वारा “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए उपलब्ध कराए गए आध्यात्मिक भोजन को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकारते हैं। (मत्ती २४:४५-४७) ऐसी एकसमान शिक्षा विश्वभर में हमारी एकता को बनाए रखने में हमारी सहायता करती है।
७. यदि हमें व्यक्तिगत तौर पर किसी मुद्दे को समझने में कठिनाई होती है, तो हमें क्या करना चाहिए, और हमें क्या नहीं करना चाहिए?
७ तब क्या जब हमें व्यक्तिगत तौर पर किसी मुद्दे को समझने या स्वीकारने में कठिनाई होती है? हमें बुद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और शास्त्र तथा मसीही प्रकाशनों में शोध करना चाहिए। (नीतिवचन २:४, ५; याकूब १:५-८) एक प्राचीन के साथ चर्चा शायद मदद करे। यदि मुद्दा फिर भी समझ में नहीं आता है, तो यह सर्वोत्तम होगा कि विषय को पड़ा रहने दे। शायद विषय पर अधिक जानकारी प्रकाशित की जाएगी, और फिर हमारी समझ विस्तृत होगी। लेकिन, कलीसिया के दूसरे लोगों से हमारी ख़ुद की भिन्न राय को स्वीकारने के लिए क़ायल करने की कोशिश करना ग़लत होगा। ऐसा करना फूट बोना होगा, एकता बनाए रखने का काम नहीं। “सत्य पर चलते” रहने और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना कितना बेहतर होगा!—३ यूहन्ना ४.
८. सच्चाई के प्रति कौन-सी मनोवृत्ति उचित है?
८ पहली शताब्दी में, पौलुस ने कहा: “अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।” (१ कुरिन्थियों १३:१२) हालाँकि प्रारम्भिक मसीहियों ने पूरा-पूरा विवरण नहीं देखा, वे संयुक्त बने रहे। अब हमारे पास यहोवा के उद्देश्य और सच्चाई के उसके वचन की और भी स्पष्ट समझ है। इसीलिए आइए हम ‘विश्वासयोग्य दास’ के ज़रिए हमें प्राप्त सच्चाई के लिए कृतज्ञ हों। और आइए हम धन्यवादित हों कि यहोवा ने अपने संगठन के ज़रिए हमें मार्गदर्शित किया है। जबकि हमारे पास हमेशा उतना ही ज्ञान नहीं रहा है, हम आध्यात्मिक रूप से भूखे या प्यासे नहीं रहे हैं। इसके बजाय, हमारा चरवाहा, यहोवा ने हमें संयुक्त रखा है और हमारी अच्छी परवाह की है।—भजन २३:१-३.
ज़ुबान का सही-सही इस्तेमाल कीजिए
९. ज़ुबान का इस्तेमाल एकता को बढ़ावा देने के लिए कैसे किया जा सकता है?
९ दूसरों को प्रोत्साहित करने में ज़ुबान का इस्तेमाल करना एकता और भाइचारे की भावना को बढ़ावा देने का एक महत्त्वपूर्ण तरीक़ा है। ख़तना के सवाल का समाधान करनेवाली पत्री, जो पहली-शताब्दी के शासी निकाय द्वारा भेजी गयी थी, प्रोत्साहन का स्रोत थी। उसे पढ़ने के बाद, अन्ताकिया के ग़ैरयहूदी शिष्य “प्रोत्साहन पाकर अति आनन्दित हुए।” यहूदा और सीलास ने, जिन्हें पत्री के साथ यरूशलेम से भेजा गया था, “भाइयों को लम्बा उपदेश देकर प्रोत्साहित और दृढ़ किया।” निःसंदेह, पौलुस और बरनबास की उपस्थिति ने भी अन्ताकिया के संगी विश्वासियों को प्रोत्साहित और मज़बूत किया। (प्रेरितों १५:१-३, २३-३२, NHT) हम भी काफ़ी कुछ ऐसा ही कर सकते हैं जब हम मसीही सभाओं के लिए इकट्ठे होते हैं और अपनी उपस्थिति तथा प्रोत्साहक टिप्पणियों के ज़रिए “एक दूसरे को प्रोत्साहित करते” हैं।—इब्रानियों १०:२४, २५, NHT.
१०. यदि गाली-गलौज होती है, तो एकता को बनाए रखने के लिए शायद क्या करना पड़ेगा?
१० लेकिन, ज़ुबान का ग़लत इस्तेमाल हमारी एकता के लिए ख़तरा पेश कर सकता है। “जीभ . . . एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगें मारती है,” शिष्य याकूब ने लिखा। “देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े बन में आग लग जाती है।” (याकूब ३:५) यहोवा झगड़ा उत्पन्न करनेवाले लोगों से घृणा करता है। (नीतिवचन ६:१६-१९) ऐसी बातचीत मतभेद उत्पन्न कर सकती है। तो फिर, तब क्या जब गाली-गलौज होती है, यानी कि, किसी पर गालियों की बौछार करना या उसे अपमानित करनेवाली बात कहना? प्राचीन ग़लती करनेवाले की मदद करने की कोशिश करेंगे। लेकिन, अपश्चातापी गाली देनेवाले को बहिष्कृत किया जाना चाहिए ताकि कलीसिया की शान्ति, व्यवस्था, और एकता बनायी रखी जा सके। आख़िरकार, पौलुस ने लिखा: “यदि कोई भाई कहलाकर, . . . गाली देनेवाला . . . हो, तो उस की संगति मत करना; बरन ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना।”—१ कुरिन्थियों ५:११.
११. यदि हमने कुछ ऐसा कह दिया है जिससे हमारे और एक संगी विश्वासी के बीच तनाव उत्पन्न हुआ हो, तो नम्रता क्यों महत्त्वपूर्ण है?
११ ज़ुबान पर लगाम लगाना एकता बनाए रखने में हमारी मदद करता है। (याकूब ३:१०-१८) लेकिन मान लीजिए कि हमने कुछ ऐसा कह दिया है जिससे हमारे और एक संगी मसीही के बीच तनाव उत्पन्न हुआ है। अपने भाई के साथ मेल-मिलाप करने में पहल करना, यदि ज़रूरी हो तो माफ़ी माँगना क्या उचित न होगा? (मत्ती ५:२३, २४) यह सच है कि यह नम्रता, या दीनता की माँग करता है, लेकिन पतरस ने लिखा: “एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बान्धे रहो, क्योंकि परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।” (१ पतरस ५:५) अपनी ग़लतियों को स्वीकारते हुए और उचित क्षमा याचना करते हुए, नम्रता हमें अपने भाइयों के साथ ‘मेल मिलाप को ढूंढने’ के लिए प्रेरित करेगी। यह यहोवा के परिवार की एकता को बनाए रखने में मदद करती है।—१ पतरस ३:१०, ११.
१२. यहोवा के लोगों की एकता को बढ़ावा देने और इसे बनाए रखने में हम ज़ुबान का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?
१२ यदि हम अपनी ज़ुबान का सही-सही इस्तेमाल करते हैं, तो हम यहोवा के संगठन के लोगों की पारिवारिक भावना को आगे बढ़ा सकते हैं। क्योंकि पौलुस ने यही किया, वह थिस्सलुनीकियों को याद दिला सका: “जैसे तुम जानते हो, कि जैसा पिता अपने बालकों के साथ बर्ताव करता है, वैसे ही हम तुम में से हर एक को भी उपदेश करते, और शान्ति देते, और समझाते थे। कि तुम्हारा चाल-चलन परमेश्वर के योग्य हो।” (१ थिस्सलुनीकियों २:११, १२) इस सम्बन्ध में एक उत्तम उदाहरण रख चुके होने के कारण, पौलुस संगी मसीहियों से ‘हताश प्राणियों से सांत्वनापूर्वक बोलने’ के लिए आग्रह कर सका। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) इसके बारे में सोचिए कि हम दूसरों को सांत्वना देने, प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने में ज़ुबान का इस्तेमाल करने के द्वारा कितना भला कर सकते हैं। जी हाँ, “अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है!” (नीतिवचन १५:२३) इसके अतिरिक्त, ऐसी बोली यहोवा के लोगों की एकता को बढ़ावा देने और इसे बनाए रखने में मदद करती है।
क्षमाशील होइए!
१३. हमें क्षमाशील क्यों होना चाहिए?
१३ यदि हमें मसीही एकता को बनाए रखना है, तो ऐसे अपराधी को क्षमा करना अत्यावश्यक है, जिसने माफ़ी माँगी है। और हमें कितनी बार क्षमा करना चाहिए? यीशु ने पतरस से कहा: ‘सात बार नहीं, बरन सात बार के सत्तर गुने तक।’ (मत्ती १८:२२) यदि हम अक्षमाशील हैं, तो हम ख़ुद के हित के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। यह कैसे? दुश्मनी और दुर्भाव रखना हमसे हमारी मन की शान्ति छीन लेगा। और यदि हम क्रूर और अक्षमाशील तरीक़ों के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं, तो हम अपने ऊपर दुःख ला सकते हैं। (नीतिवचन ११:१७) दुर्भाव रखना परमेश्वर को अप्रसन्न करता है और गम्भीर पाप की ओर ले जा सकता है। (लैव्यव्यवस्था १९:१८) याद रखिए कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का दुष्ट हेरोदियास द्वारा योजित षड्यंत्र में सर कलम कर दिया गया, जो उससे “बैर रखती” थी।—मरकुस ६:१९-२८.
१४. (क) क्षमा के बारे में मत्ती ६:१४, १५ हमें क्या सिखाता है? (ख) किसी को क्षमा करने से पहले क्या हमें हमेशा माफ़ी माँगे जाने का इन्तज़ार करना चाहिए?
१४ यीशु की आदर्श प्रार्थना में ये शब्द शामिल हैं: “हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं।” (लूका ११:४) यदि हम अक्षमाशील हैं, तो हमें इसका ख़तरा है कि एक-न-एक दिन यहोवा हमारे पापों को और क्षमा नहीं करेगा, क्योंकि यीशु ने कहा: “यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा।” (मत्ती ६:१४, १५) सो यदि हम वास्तव में उपासकों के यहोवा के परिवार में एकता बनाए रखने में अपना भाग अदा करना चाहते हैं, तो हम क्षमाशील होंगे, संभवतः किसी अपराध को महज़ भूलना जो शायद लापरवाही के कारण किया गया हो और जिसके पीछे कोई बुरी नियत न रही हो। पौलुस ने कहा: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।” (कुलुस्सियों ३:१३) जब हम क्षमाशील होते हैं, तो हम यहोवा के संगठन की बहुमोल एकता को बनाए रखने में मदद करते हैं।
एकता और व्यक्तिगत निर्णय
१५. व्यक्तिगत निर्णय करते वक़्त कौन-सी बात यहोवा के लोगों को एकता बनाए रखने में मदद करती है?
१५ परमेश्वर ने हमें स्वतंत्र नैतिक प्राणी बनाया जिनके पास व्यक्तिगत निर्णय करने का विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारी है। (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०; गलतियों ६:५) फिर भी, हम अपनी एकता बनाए रखने में समर्थ हैं क्योंकि हम बाइबल नियमों और सिद्धान्तों का अनुपालन करते हैं। व्यक्तिगत निर्णय करते समय हम इन्हें मद्देनज़र रखते हैं। (प्रेरितों ५:२९; १ यूहन्ना ५:३) मान लीजिए कि तटस्थता के सम्बन्ध में एक सवाल खड़ा होता है। हम यह याद रखने के द्वारा एक जानकार व्यक्तिगत निर्णय कर सकते हैं कि हम “संसार के नहीं” हैं और कि हमने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल” बना ली हैं। (यूहन्ना १७:१६; यशायाह २:२-४) उसी तरह, जब हमें राष्ट्र के साथ अपने सम्बन्ध के बारे में एक व्यक्तिगत निर्णय करना है, तो हम लौकिक मामलों में अपने आपको “प्रधान अधिकारियों” के अधीन करने के साथ-साथ ‘जो परमेश्वर का है, उसे परमेश्वर को’ देने के बारे में बाइबल जो कहती है उस पर ध्यान देंगे। (रोमियों १३:१-७; लूका २०:२५; तीतुस ३:१, २) जी हाँ, व्यक्तिगत निर्णय करते वक़्त बाइबल नियमों और सिद्धान्तों को मद्देनज़र रखना हमारी मसीही एकता को बनाए रखने में मदद करता है।
१६. ऐसे निर्णय करते वक़्त, जो शास्त्रीय तौर पर न तो सही हैं ना ही ग़लत, एकता को बनाए रखने में हम कैसे मदद कर सकते हैं? सचित्रित कीजिए।
१६ हम मसीही एकता को बनाए रखने में तब भी मदद कर सकते हैं जब हम ऐसा निर्णय करते हैं जो पूर्णतः व्यक्तिगत है और जो शास्त्रीय तौर पर न तो सही है ना ही ग़लत। यह कैसे? उन लोगों के लिए प्रेममय चिन्ता दिखाने के द्वारा जो शायद हमारे निर्णय से प्रभावित हों। सचित्रित करने के लिए: प्राचीन कुरिन्थ की कलीसिया में, मूर्तियों को चढ़ाए गए मांस के सम्बन्ध में एक सवाल खड़ा हुआ। निश्चय ही, एक मसीही किसी मूर्तिपूजा-सम्बन्धी धर्मक्रिया में हिस्सा नहीं लेगा। लेकिन, इस प्रकार का अच्छी तरह से लहू निकाला हुआ शेष मांस को खाना, जो आम बाज़ार में बिकता था, पापपूर्ण नहीं था। (प्रेरितों १५:२८, २९; १ कुरिन्थियों १०:२५) फिर भी, कुछ मसीहियों के अन्तःकरण इस मांस के खाने पर परेशान थे। इसीलिए पौलुस ने अन्य मसीहियों से इन मसीहियों को ठोकर देने से दूर रहने के लिए आग्रह किया। दरअसल, उसने लिखा: “यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाए, तो मैं कभी किसी रीति से मांस न खाऊंगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूं।” (१ कुरिन्थियों ८:१३) सो यद्यपि कोई बाइबल नियम या सिद्धान्त सम्मिलित नहीं है, ऐसे व्यक्तिगत निर्णय करने में दूसरों का लिहाज़ करना कितना प्रेममय है, जो परमेश्वर के परिवार की एकता को प्रभावित कर सकता है!
१७. जब हमें व्यक्तिगत निर्णय करने होते हैं, तब क्या करना उचित है?
१७ यदि हम निश्चित नहीं हैं कि कौन-सा मार्ग अपनाना है, तो ऐसे तरीक़े से निर्णय करना बुद्धिमत्तापूर्ण है जिससे हमारा अन्तःकरण शुद्ध रहता है, और दूसरों को हमारे निर्णय का आदर करना चाहिए। (रोमियों १४:१०-१२) निश्चय ही, जब हमें व्यक्तिगत निर्णय करना होता है, तो हमें प्रार्थना में यहोवा का मार्गदर्शन ढूँढना चाहिए। भजनहार की तरह, हम विश्वस्त रूप से प्रार्थना कर सकते हैं: ‘अपना कान मेरी ओर लगा क्योंकि तू मेरे लिये चट्टान और मेरा गढ़ है; इसलिये अपने नाम के निमित्त मेरी अगुआई कर, और मुझे आगे ले चल।’—भजन ३१:२, ३.
मसीही एकता हमेशा बनाए रखिए
१८. मसीही कलीसिया की एकता को पौलुस ने कैसे सचित्रित किया?
१८ पहला कुरिन्थियों अध्याय १२ में, पौलुस ने मसीही कलीसिया की एकता को सचित्रित करने के लिए मानव शरीर का इस्तेमाल किया। उसने अन्योन्याश्रय और प्रत्येक अंग के महत्त्व पर ज़ोर दिया। “यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती?” पौलुस ने पूछा। “परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है। आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवों से कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।” (१ कुरिन्थियों १२:१९-२१) उसी तरह, यहोवा के उपासकों के परिवार के हम सभी जन समान कार्य नहीं करते हैं। फिर भी, हम संयुक्त हैं, और हमें एक दूसरे की ज़रूरत है।
१९. परमेश्वर के आध्यात्मिक प्रबन्धों से हम कैसे लाभ उठा सकते हैं, और एक वृद्ध भाई ने इस सम्बन्ध में क्या कहा?
१९ जिस प्रकार शरीर को भोजन, देखरेख, और निर्देशन की ज़रूरत है, हमें उन आध्यात्मिक प्रबन्धों की ज़रूरत है जो परमेश्वर हमें अपने वचन, आत्मा, और संगठन के ज़रिए देता है। इन प्रबन्धों से लाभ उठाने के लिए, हमें यहोवा के पार्थिव परिवार का भाग होना है। परमेश्वर की सेवा में अनेक साल रहने के बाद, एक भाई ने लिखा: “मैं इतना कृतज्ञ हूँ कि मैं यहोवा के उद्देश्यों के ज्ञान में १९१४ से पहले के उन प्रारम्भिक दिनों से, जब सब कुछ इतना स्पष्ट नहीं था . . . आज तक रहा हूँ जब सच्चाई चिलचिलाती धूप की नाईं चमकती है। यदि मेरे लिए कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा है, तो वह है यहोवा के दृश्य संगठन के क़रीब रहने का विषय। मेरे प्रारम्भिक अनुभव ने मुझे सिखाया कि मानवी तर्क पर निर्भर करना कितनी मूर्खता है। जब मैंने मन में इस मुद्दे को ठान लिया, मैंने विश्वासी संगठन के साथ रहने का दृढ़संकल्प किया। नहीं तो एक व्यक्ति को यहोवा का अनुग्रह और आशीष कैसे प्राप्त हो सकती है?”
२०. यहोवा के लोगों के तौर पर अपनी एकता के बारे में क्या करने का हमारा दृढ़संकल्प होना चाहिए?
२० यहोवा ने अपने लोगों को सांसारिक अन्धकार और मतभेद से बुलाया है। (१ पतरस २:९) उसने हमें अपने साथ और हमारे संगी विश्वासियों के साथ आशीषित एकता में लाया है। यह एकता उस नयी रीति-व्यवस्था में विद्यमान होगी जो इतनी निकट है। इसलिए, इन कठिन अन्तिम दिनों में, आइए हम ‘प्रेम को धारण करना’ जारी रखें और अपनी बहुमोल एकता को बढ़ावा देने और इसे बनाए रखने के लिए अपना भरसक करें।—कुलुस्सियों ३:१४, NHT.
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ परमेश्वर की इच्छा करना और सच्चाई से लगे रहना, एकता बनाए रखने में हमारी मदद क्यों कर सकते हैं?
◻ एकता ज़ुबान के उचित इस्तेमाल के साथ कैसे सम्बन्धित है?
◻ क्षमाशील होने में क्या सम्मिलित है?
◻ व्यक्तिगत निर्णय करते वक़्त हम कैसे एकता बनाए रख सकते हैं?
◻ मसीही एकता क्यों बनाए रखें?
[पेज 16 पर तसवीरें]
जिस प्रकार यह चरवाहा अपने झुण्ड को इकट्ठे रखता है, उसी प्रकार यहोवा अपने लोगों को संयुक्त रखता है
[पेज 18 पर तसवीरें]
जब हम चोट पहुँचाते हैं, तब नम्रतापूर्वक माफ़ी माँगने के द्वारा हम एकता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं