‘हे प्रभु, हमें सिखा कि प्रार्थना कैसे करें’
“उसके एक शिष्य ने उससे कहा, ‘हे प्रभु, हमें सिखा कि हम प्रार्थना कैसे करें।’”—लूका 11:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
1. यीशु के एक चेले ने क्यों उससे कहा कि वह उसे प्रार्थना करना सिखाए?
सामान्य युग 32 में, एक मौके पर एक चेले ने यीशु को प्रार्थना करते देखा। यीशु अपने पिता से क्या प्रार्थना कर रहा था यह उस चेले को सुनायी नहीं पड़ा, क्योंकि शायद यीशु मन-ही-मन प्रार्थना कर रहा था। लेकिन, जब यीशु प्रार्थना कर चुका तब उस चेले ने उससे कहा: “हे प्रभु, हमें सिखा कि हम प्रार्थना कैसे करें।” (लूका 11:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) चेले ने यह गुज़ारिश क्यों की? प्रार्थना, यहूदियों की ज़िंदगी और उपासना का एक आम हिस्सा थी। इब्रानी शास्त्र में भजन और दूसरी किताबों में ढेरों प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं। इसका मतलब यह हुआ कि यीशु का चेला ऐसी बात सिखाने की गुज़ारिश नहीं कर रहा था जिसकी उसे रत्ती भर भी जानकारी न थी या जो उसने कभी न किया हो। बेशक, वह यहूदी धर्म के अगुवों की दिखावटी और रस्मो-रिवाज़ से भरी प्रार्थनाओं से अच्छी तरह वाकिफ था। मगर अब जब उसने यीशु को प्रार्थना करते देखा था, तो ज़ाहिर है कि उसने पवित्र होने का ढोंग करनेवाले रब्बियों की दिखावटी प्रार्थनाओं और यीशु के प्रार्थना करने के तरीके में ज़मीन-आसमान का फर्क देखा।—मत्ती 6:5-8.
2. (क) क्या बात दिखाती है कि यीशु नहीं चाहता था कि हम शब्द-ब-शब्द आदर्श प्रार्थना दोहराएँ? (ख) हम क्यों जानना चाहते हैं कि प्रार्थना कैसे करें?
2 लगभग, 18 महीने पहले, यीशु ने पहाड़ी उपदेश में अपने चेलों को एक आदर्श प्रार्थना सिखायी थी जिसके मुताबिक वे प्रार्थना कर सकते थे। (मत्ती 6:9-13) लगता है कि यह चेला उस वक्त मौजूद नहीं था, इसलिए यीशु ने उसकी खातिर उस आदर्श प्रार्थना की खास बातों को दोहराया। गौर करने लायक बात यह है कि यीशु ने शब्द-ब-शब्द वह प्रार्थना नहीं दोहरायी। इससे पता चलता है कि वह प्रार्थना चर्च में की जानेवाली प्रार्थनाओं की तरह नहीं थी जिसे चेलों को जपना था। (लूका 11:1-4) उस बेनाम चेले की तरह हम भी प्रार्थना करना सीखना चाहते हैं ताकि हमारी प्रार्थनाएँ हमें यहोवा के और भी करीब लाएँ। तो फिर, आइए हम उस पूरी आदर्श प्रार्थना की जाँच करें, जिसे प्रेरित मत्ती ने दर्ज़ किया है। इसमें सात बिनतियाँ की गयी हैं, जिनमें से तीन परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में हैं और चार हमारी शारीरिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों के बारे में। इस लेख में, हम पहली तीन बिनतियों पर चर्चा करेंगे।
प्रेम करनेवाला पिता
3, 4. यहोवा को “हमारे पिता” पुकारने के क्या मायने हैं?
3 शुरू से ही, यीशु ने दिखाया कि हमारी प्रार्थनाओं से साफ नज़र आना चाहिए कि यहोवा के साथ हमारा करीबी रिश्ता है और हमारे मन में उसके लिए गहरी श्रद्धा है। पहाड़ी उपदेश देते वक्त यीशु ने खास तौर पर अपने उन चेलों के फायदे के लिए समझाना शुरू किया जो पहाड़ की ढलान पर उसके आस-पास इकट्ठा थे। उसने बताया कि उन्हें यहोवा से बिनती करते वक्त उसे “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है” कहना चाहिए। (मत्ती 6:9) एक विद्वान के मुताबिक, यीशु ने चाहे उस वक्त की मशहूर इब्रानी या अरामी भाषा में बात की हो, मगर उसने “पिता” के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया यह वही शब्द था जो एक नन्हा सा बालक अपने पिता को प्यार से पुकारने के लिए इस्तेमाल करता है। ‘ऐसा शब्द जो एक बच्चे की ज़बान से निकलता है।’ यहोवा को ‘अपना पिता’ पुकारना दिखाता है कि हमारा उसके साथ प्यार और भरोसे का रिश्ता है।
4 जब हम कहते हैं “हमारे पिता” तो हम यह भी स्वीकार करते हैं कि हम उन स्त्री-पुरुषों के बड़े परिवार का एक हिस्सा हैं जो यहोवा को जीवन-दाता मानकर उसका सम्मान करता है। (तिरछे टाइप हमारे; यशायाह 64:8; प्रेरितों 17:24, 28) आत्मा से जन्म लेनेवाले मसीहियों को बतौर “परमेश्वर के पुत्र” गोद लिया गया है, इसलिए वे उसे ‘हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकार’ सकते हैं। (तिरछे टाइप हमारे; रोमियों 8:14, 15) आज लाखों लोग इन अभिषिक्त जनों का वफादारी से साथ दे रहे हैं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की है और अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए पानी में बपतिस्मा लिया है। ये सारी ‘अन्य भेड़ें’ भी यीशु के नाम से यहोवा से प्रार्थना कर सकती हैं और उसे “हमारे पिता” कहकर पुकार सकती हैं। (यूहन्ना 10:16, NW; 14:6) हम अपने स्वर्गीय पिता की महिमा करने, हमारी खातिर किए गए भलाई के कामों के लिए उसे धन्यवाद देने और अपनी चिंता का बोझ उस पर डालने के लिए बार-बार उससे प्रार्थना करते हैं, इस यकीन के साथ कि उसे हमारी परवाह है।—फिलिप्पियों 4:6, 7; 1 पतरस 5:6, 7.
यहोवा के नाम के लिए प्यार
5. आदर्श प्रार्थना की पहली बिनती क्या है और यह सही क्यों है?
5 पहली बिनती में, जो बात पहले आनी चाहिए वही कही गयी है: “तेरा नाम पवित्र माना जाए।” (मत्ती 6:9) जी हाँ, हमें सबसे ज़्यादा इस बात को अहमियत देनी चाहिए कि यहोवा का नाम पवित्र किया जाए। हम उससे प्यार करते हैं और जिन-जिन तरीकों से उसके नाम पर कीचड़ उछाला जा रहा है वह हमसे बरदाश्त नहीं होता। शैतान ने बगावत की और पहले इंसानी जोड़े को यहोवा परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने को उकसाया। इस तरह, उसने विश्व पर हुकूमत करने के परमेश्वर के तरीके पर सवाल उठाकर यहोवा के नाम की निंदा की। (उत्पत्ति 3:1-6) यही नहीं, सदियों से लेकर आज तक, जो लोग परमेश्वर के सेवक होने का दावा करते हैं उनके शर्मनाक काम और शिक्षाओं ने यहोवा के नाम को बदनाम किया है।
6. अगर हम यहोवा का नाम पवित्र किए जाने के लिए प्रार्थना करते हैं तो हम क्या नहीं करेंगे?
6 यहोवा का नाम पवित्र किए जाने की हमारी प्रार्थना दिखाती है कि इस विश्व पर हुकूमत करने के हक पर उठाए गए सवाल के मामले में हम किस तरफ हैं—बेशक हम पूरे दिल से यह मानते हैं कि हुकूमत करने का हक सिर्फ यहोवा का है। यहोवा चाहता है कि इस विश्व में ऐसे बुद्धिमान प्राणी रहें जो अपनी मरज़ी से और खुशी-खुशी उसकी धर्मी हुकूमत के अधीन रहें, क्योंकि वे उससे और उसके नाम से जुड़ी हर बात से प्रेम करते हैं। (1 इतिहास 29:10-13; भजन 8:1; 148:13) यहोवा का नाम हमें बहुत प्यारा है, इसलिए हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे उस पवित्र नाम पर कलंक लगे। (यहेजकेल 36:20, 21; रोमियों 2:21-24) यहोवा के नाम के पवित्र किए जाने और प्यार की खातिर उसकी हुकूमत के अधीन होने पर ही इस विश्व और इसके रहनेवालों की शांति का दारोमदार है। इसलिए जब हम प्रार्थना करते हैं कि “तेरा नाम पवित्र माना जाए,” तो हम यह भरोसा दिखाते हैं कि यहोवा का उद्देश्य ज़रूर पूरा होगा और इससे उसकी महिमा होगी।—यहेजकेल 38:23.
राज्य जिसके लिए हम प्रार्थना करते हैं
7, 8. (क) यीशु ने जिस राज्य के लिए हमें प्रार्थना करना सिखाया वह क्या है? (ख) इस राज्य के बारे में हम दानिय्येल और प्रकाशितवाक्य की किताबों में क्या सीखते हैं?
7 आदर्श प्रार्थना की दूसरी बिनती है: “तेरा राज्य आए।” (मत्ती 6:10) इस गुज़ारिश का, पहली बिनती के साथ गहरा नाता है। यहोवा अपने नाम को पवित्र करने के लिए जो ज़रिया इस्तेमाल करेगा वह मसीहाई राज्य है, यह स्वर्ग में उसकी सरकार है जिसका राजा उसके पुत्र, यीशु मसीह को ठहराया गया है। (भजन 2:1-9) दानिय्येल की भविष्यवाणी में मसीहाई राज्य को “एक पत्थर” बताया गया है जिसे एक “पहाड़” से काटा गया। (दानिय्येल 2:34, 35, 44, 45) पहाड़, इस विश्व पर यहोवा की हुकूमत को दर्शाता है, इसलिए इस पहाड़ से निकलनेवाला पत्थर, विश्व पर यहोवा की हुकूमत को ज़ाहिर करने का एक नया ज़रिया है। भविष्यवाणी में, वह पत्थर “बड़ा पहाड़ बनकर सारी पृथ्वी में फैल गया,” जो दिखाता है कि मसीहाई राज्य इस धरती पर राज करते हुए परमेश्वर की हुकूमत की पैरवी करेगा।
8 मसीह के साथ उसके राज्य में 1,44,000 लोग भी हैं, जो “मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं” ताकि वे राजाओं और याजकों की हैसियत से उसके साथ राज करें। (प्रकाशितवाक्य 5:9,10; 14:1-4; 20:6) दानिय्येल इन्हें “परमप्रधान के पवित्र लोग” कहता है, जिन्हें अपने मुखिया मसीह के साथ “राज्य और प्रभुता और धरती पर के राज्य की महिमा” मिलती है। उनका “राज्य सदा का राज्य है, और सब प्रभुता करनेवाले उसके अधीन होंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे।” (दानिय्येल 7:13, 14, 18, 27) यही वह स्वर्गीय सरकार है जिसके लिए मसीह ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया।
राज्य के आने के लिए क्यों अब भी प्रार्थना करें?
9. परमेश्वर का राज्य आए यह प्रार्थना करना हमारे लिए सही क्यों है?
9 अपनी आदर्श प्रार्थना में, यीशु ने हमें परमेश्वर के राज्य के आने के लिए प्रार्थना करना सिखाया। बाइबल की भविष्यवाणियों का पूरा होना दिखाता है कि मसीहाई राज्य सन् 1914 में स्वर्ग में स्थापित हुआ।a इसलिए, क्या अब भी हमारे लिए यह प्रार्थना करना ठीक है कि वह राज्य “आए”? बेशक। क्योंकि दानिय्येल की भविष्यवाणी में, मसीहाई राज्य जिसे एक पत्थर से दर्शाया गया है, वह इंसानी राजनैतिक सरकारों से जिन्हें एक विशाल मूर्ति से दर्शाया गया है, मुकाबला करने के लिए बड़ी तेज़ी से चला आ रहा है। यह पत्थर भविष्य में उस मूर्ति से इस तरह टकराएगा कि वह चूर-चूर हो जाएगी। दानिय्येल की भविष्यवाणी आगे कहती है: ‘वह राज्य किसी दूसरी जाति के हाथ में न किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।’—दानिय्येल 2:44.
10. हम क्यों परमेश्वर के राज्य के आने का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं?
10 हम उस दिन का बड़ी बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जब परमेश्वर का राज्य शैतान की दुष्ट व्यवस्था के खिलाफ कार्यवाही करेगा। क्योंकि इसकी वजह से यहोवा का पावन नाम पवित्र किया जाएगा और उसकी हुकूमत का विरोध करनेवाले तमाम लोगों को मिटा दिया जाएगा। हम सच्चे दिल से यह प्रार्थना करते हैं: “तेरा राज्य आए,” और प्रेरित यूहन्ना के साथ कहते हैं, “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।” (प्रकाशितवाक्य 22:20) जी हाँ, हमारी दुआ है कि यीशु आए और यहोवा का नाम पवित्र करे और उसकी हुकूमत को बुलंद करे, ताकि भजनहार के ये शब्द सच हों: “जिस से [लोग] जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।”—भजन 83:18.
‘तेरी इच्छा पूरी हो’
11, 12. (क) जब हम परमेश्वर की इच्छा ‘जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी होने’ के लिए प्रार्थना करते हैं, तब हम असल में किस बात के लिए बिनती करते हैं? (ख) यहोवा की इच्छा पूरी होने के लिए हमारी प्रार्थना का और क्या मतलब होता है?
11 आगे यीशु ने अपने चेलों को इस बारे में प्रार्थना करना सिखाया: “तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती 6:10) यह विश्व यहोवा की इच्छा से ही वजूद में आया है। स्वर्ग में शक्तिशाली प्राणी पुकारकर कहते हैं: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” (प्रकाशितवाक्य 4:11) “जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है” उन सबके लिए यहोवा का कुछ उद्देश्य है। (इफिसियों 1:8-10) जब हम पर परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के लिए प्रार्थना करते हैं, तो असल में हम यहोवा से अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए बिनती करते हैं। इस तरह हम यह भी दिखाते हैं कि हम सारे विश्व में परमेश्वर की इच्छा पूरी होने का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं।
12 इस प्रार्थना के ज़रिए हम यह भी दिखाएँगे कि हम यहोवा की मरज़ी के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने को तैयार हैं। यीशु ने कहा: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्ना 4:34) यीशु की तरह, हम समर्पित मसीहियों को भी परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने से खुशी मिलती है। यहोवा और उसके बेटे के लिए हमारा प्यार हमें उकसाता है कि हम अपनी ज़िंदगी “मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं बरन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार” जीएँ। (1 पतरस 4:1, 2; 2 कुरिन्थियों 5:14, 15) हम ऐसे कामों से दूर रहने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं जिनके बारे में हमें पता है कि वे यहोवा की मरज़ी के खिलाफ हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 4:3-5) बाइबल पढ़ाई और अध्ययन के लिए वक्त मोल लेने से, हम ‘ध्यान से समझते हैं, कि प्रभु की इच्छा क्या है।’ इसमें पूरे ज़ोर-शोर से “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करना भी शामिल है।—इफिसियों 5:15-17; मत्ती 24:14.
स्वर्ग में यहोवा की इच्छा
13. शैतान की बगावत से बहुत पहले, स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी हो रही थी?
13 स्वर्ग में यहोवा की इच्छा बहुत पहले से पूरी हो रही थी यानी उसके एक आत्मिक पुत्र के बगावत करने और शैतान बनने से भी बहुत पहले। नीतिवचन की किताब परमेश्वर के पहिलौठे बेटे को बुद्धि का साक्षात् रूप बताती है। यह दिखाती है कि परमेश्वर का एकलौता बेटा युगों-युगों से ‘हर समय उसके साम्हने आनन्दित रहता था’ और अपने पिता की इच्छा पूरी करने से खुशी पाता था। आगे चलकर, वह यहोवा का “कुशल कारीगर” (NHT) बना और उसने “स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी,” सृष्टि की सब चीज़ें बनायीं। (नीतिवचन 8:22-31; कुलुस्सियों 1:15-17) यहोवा ने यीशु को अपने वचन, या प्रवक्ता की तरह इस्तेमाल किया।—यूहन्ना 1:1-3.
14. भजन 103 में, स्वर्ग में यहोवा के दूत उसकी इच्छा कैसे पूरी करते हैं, इसके बारे में हम क्या सीखते हैं?
14 भजनहार दिखाता है कि यहोवा की हुकूमत सारी सृष्टि के ऊपर है और लाखों-करोड़ों स्वर्गदूत उसकी हिदायतें सुनते हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं। लिखा है: “यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। हे यहोवा के दूतो, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो! हे यहोवा की सारी सेनाओ, हे उसके टहलुओ, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो! हे यहोवा की सारी सृष्टि, उसके राज्य [हुकूमत] के सब स्थानो में उसको धन्य कहो।”—भजन 103:19-22.
15. यीशु के राज्य अधिकार पाने से, स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा पूरी होने पर क्या असर पड़ा?
15 शैतान, बगावत करने के बाद भी, स्वर्ग में परमेश्वर के दरबार में हाज़िर हो सकता था, जैसा कि अय्यूब की किताब बताती है। (अय्यूब 1:6-12; 2:1-7) लेकिन, प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी कहती है कि वह वक्त आएगा जब शैतान और उसकी दुष्टात्माओं को स्वर्ग से हमेशा के लिए बाहर निकाल दिया जाएगा। ज़ाहिर है कि वह वक्त सन् 1914 में यीशु मसीह के राज्य अधिकार में आने के कुछ ही समय बाद आया। तब से, उन बागियों के लिए स्वर्ग में कोई जगह नहीं रही। उन पर पृथ्वी पर ही रहने की पाबंदी लगा दी गयी। (प्रकाशितवाक्य 12:7-12) स्वर्ग में अब यहोवा की हुकूमत का विरोध करनेवाली कोई आवाज़ सुनायी नहीं देती, सिर्फ वही आवाज़ें सुनायी देती हैं जो मिलकर “मेम्ने” मसीह यीशु की और यहोवा की महिमा करती हैं और उसके अधीन रहती हैं। (प्रकाशितवाक्य 4:9-11) यहोवा की इच्छा सही मायनों में स्वर्ग में पूरी हो रही है।
पृथ्वी के लिए यहोवा की इच्छा
16. आदर्श प्रार्थना से, इंसानों की आशा के बारे में ईसाईजगत की शिक्षा कैसे गलत ठहरती है?
16 ईसाईजगत के चर्च सिखाते हैं कि सब अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं और वे पृथ्वी का कोई ज़िक्र नहीं करते। मगर यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती 6:10) क्या आज किसी भी सूरत में कहा जा सकता है कि धरती पर कुल मिलाकर यहोवा की इच्छा पूरी हो रही है, जहाँ चारों तरफ हिंसा, अन्याय, बीमारी और मौत फैली हुई है? ऐसा बिलकुल नहीं कहा जा सकता! इसलिए, प्रेरित पतरस ने जो वादा दर्ज़ किया है, उसी के मुताबिक हमें इस धरती परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के लिए दिल से प्रार्थना करनी चाहिए। उसने लिखा था: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश [मसीह के हाथों में मसीहाई राज्य की सरकार] और नई पृथ्वी [धर्मी इंसानों का समाज] की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।”—2 पतरस 3:13.
17. इस धरती के लिए यहोवा का उद्देश्य क्या है?
17 यहोवा ने इस धरती को एक उद्देश्य से सृजा था। उसने यशायाह भविष्यवक्ता को यह लिखने की प्रेरणा दी: “यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यों कहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है।” (यशायाह 45:18) परमेश्वर ने पहले इंसानी जोड़े को एक फिरदौस में जगह दी और उन्हें आज्ञा दी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति 1:27, 28; 2:15) इससे साफ ज़ाहिर है कि सिरजनहार का उद्देश्य है कि यह धरती सिद्ध और धर्मी इंसानों से आबाद हो, जो खुशी-खुशी उस की हुकूमत के अधीन हों और मसीह के वादा किए हुए फिरदौस में सदा तक जीएँ।—भजन 37:11, 29; लूका 23:43, NW.
18, 19. (क) परमेश्वर की इच्छा सारी धरती पर हर तरह से पूरी होने के लिए पहले क्या किया जाना चाहिए? (ख) यीशु की आदर्श प्रार्थना के दूसरे किन पहलुओं की जाँच अगले लेख में की जाएगी?
18 इस धरती के लिए यहोवा की इच्छा हर तरह से तब तक पूरी नहीं होगी जब तक इस पर ऐसे लोग होंगे जो जानबूझकर उसकी हुकूमत के खिलाफ काम करते हैं। मसीह की अगुवाई में, परमेश्वर शक्तिशाली आत्मिक सेनाओं के ज़रिए ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवालों को नाश करेगा।’ शैतान की सारी दुष्ट व्यवस्था, इसका झूठा धर्म, भ्रष्ट राजनीति, लालची और बेईमान व्यापार व्यवस्था और विनाशकारी सैन्य शक्ति हमेशा-हमेशा के लिए मिटा दी जाएगी। (प्रकाशितवाक्य 11:18; 18:21; 19:1, 2, 11-18) यहोवा की हुकूमत बुलंद की जाएगी और उसका नाम पवित्र किया जाएगा। हम इन्हीं बातों के लिए प्रार्थना करते हैं जब हम कहते हैं: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।”—मत्ती 6:9, 10.
19 मगर अपनी आदर्श प्रार्थना में यीशु ने दिखाया कि हम अपने निजी मामलों के बारे में भी प्रार्थना कर सकते हैं। इन पहलुओं के बारे में उसने क्या-क्या हिदायतें दीं, इसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
[फुटनोट]
a दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! किताब का अध्याय 6 देखें। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
दोहराने के लिए
• यहोवा को “हमारे पिता” कहना क्यों सही है?
• यहोवा का नाम पवित्र किए जाने के लिए प्रार्थना करना हमारे लिए सबसे ज़रूरी क्यों है?
• हम परमेश्वर के राज्य के आने के लिए प्रार्थना क्यों करते हैं?
• जब हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर की इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी हो तो इसका क्या मतलब है?
[पेज 9 पर तसवीर]
यीशु की प्रार्थनाएँ, पवित्रता का ढोंग करनेवाले फरीसियों की प्रार्थनाओं से बहुत अलग थीं
[पेज 10 पर तसवीर]
मसीही परमेश्वर के राज्य के आने, उसका नाम पवित्र किए जाने, और उसकी इच्छा पूरी करने के बारे में प्रार्थना करते हैं