राज की खोज कीजिए, चीज़ों की नहीं
“[परमेश्वर के] राज की खोज में लगे रहो और ये चीज़ें तुम्हें दे दी जाएँगी।”—लूका 12:31.
1. हमारी ज़रूरतों और ख्वाहिशों में क्या फर्क है?
कहते हैं कि इंसान की ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, मगर उसकी ख्वाहिशों की कोई सीमा नहीं होती। बहुत-से लोगों को शायद अपनी शारीरिक ज़रूरतों और ख्वाहिशों के बीच कोई फर्क नहीं लगता। वैसे इनमें फर्क क्या है? ज़रूरत वह होती है जिस पर आपकी ज़िंदगी निर्भर हो। जैसे, खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह। और ख्वाहिश वह होती है, जो आप पाना चाहते हैं, लेकिन ज़िंदा रहने के लिए वह ज़रूरी नहीं है।
2. ऐसी कुछ चीज़ें क्या हैं, जो लोग पाना चाहते हैं?
2 इंसान जहाँ रहते हैं, उसके हिसाब से उनकी ख्वाहिशों या चाहतों में फर्क हो सकता है। जैसे दुनिया के कुछ हिस्सों में लोग चाहते हैं कि उनके पास मोबाइल फोन हो, मोटरसाइकिल हो या थोड़ी ज़मीन हो। लेकिन कुछ जगहों पर लोग चाहते हैं कि उनके पास खूब सारे महँगे-महँगे कपड़े हों, आलीशान घर हो या महँगी-से-महँगी गाड़ी हो। हम चाहे जहाँ भी रहते हों या हमारे पास जितना भी पैसा हो, हम ज़्यादा-से-ज़्यादा चीज़ें चाहने लग सकते हैं, जबकि उनकी हमें ज़रूरत नहीं या उन्हें हम खरीद नहीं सकते।
धन-दौलत और सुख-सुविधा की चीज़ों से प्यार मत कीजिए
3. यह कैसे पता चलता है कि एक व्यक्ति को चीज़ों से प्यार है?
3 यह कैसे पता चलता है कि एक व्यक्ति को धन-दौलत और सुख-सुविधा की चीज़ों से प्यार है? उसके रवैए से। ऐसा इंसान परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते से ज़्यादा चीज़ों को अहमियत देता है। वह बस इस बात से संतुष्ट नहीं रहता कि उसकी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं, वह हमेशा और पाना चाहता है। जिनके पास ज़्यादा पैसा नहीं है या जो महँगी-महँगी चीज़ें नहीं खरीदते, उनमें भी ऐसा रवैया हो सकता है। और शायद वे ज़िंदगी में परमेश्वर के राज को पहली जगह देना भी बंद कर दें।—इब्रा. 13:5.
4. शैतान ‘आँखों की ख्वाहिशों’ का कैसे फायदा उठाता है?
4 शैतान हमें यकीन दिलाना चाहता है कि हम ज़िंदगी में तभी खुश रह सकते हैं, जब हमारे पास खूब सारी चीज़ें होंगी। इसलिए वह इस दुनिया और हमारी ‘आँखों की ख्वाहिशों’ का फायदा उठाकर हमारे अंदर हमेशा यह इच्छा पैदा करने की कोशिश करता है कि हमें और चीज़ें चाहिए। (1 यूह. 2:15-17; उत्प. 3:6; नीति. 27:20) हम बराबर ऐसे विज्ञापन देखते-सुनते रहते हैं जो हमें नयी-नयी चीज़ें खरीदने के लिए कायल करते हैं। क्या कभी ऐसा हुआ कि आपने कोई चीज़ बस इसलिए खरीद ली, क्योंकि वह आपकी आँखों में चढ़ गयी थी या आपने उसका विज्ञापन देखा था? अगर हाँ, तो शायद बाद में आपको एहसास हुआ हो कि दरअसल आपको उसकी ज़रूरत नहीं थी। जब हम गैर-ज़रूरी चीज़ें खरीदते रहते हैं, तो हम अपनी ज़िंदगी को बहुत उलझा देते हैं। ये चीज़ें यहोवा की सेवा में हमारे लिए रुकावट बन सकती हैं। ये हमारा वह समय चुरा सकती हैं जो हम बाइबल अध्ययन करने, नियमित तौर पर प्रचार करने, सभाओं की तैयारी करने और उनमें जाने में लगाते हैं। याद रखिए कि प्रेषित यूहन्ना ने क्या चेतावनी दी थी, “यह दुनिया मिटती जा रही है और इसके साथ इसकी ख्वाहिशें भी मिट जाएँगी।”
5. जो लोग अपनी ज़्यादातर ताकत ढेर सारी चीज़ें बटोरने में लगाते हैं, उनके साथ क्या हो सकता है?
5 शैतान चाहता है कि हम अपनी ताकत यहोवा की सेवा में लगाने के बजाय, खूब पैसा कमाने और चीज़ें बटोरने में लगाएँ। (मत्ती 6:24) लेकिन अगर हम अपने लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा चीज़ें बटोरने में ही लगे रहें, तो हमारी ज़िंदगी एकदम खोखली हो जाएगी। हम शायद खीझने लगें या पैसों की तंगी के शिकार हो जाएँ। इससे भी बदतर, यहोवा और उसके राज पर से हमारा विश्वास उठ सकता है। (1 तीमु. 6:9, 10; प्रका. 3:17) यीशु ने कहा था, ‘बाकी सब चीज़ों की चाहत’ काँटों की तरह हैं। यह चाहत बीज को यानी राज के संदेश को उगने और फल लाने से रोक सकती है।—मर. 4:14, 18, 19.
6. हम बारूक से क्या सबक सीख सकते हैं?
6 ज़रा भविष्यवक्ता यिर्मयाह के सचिव बारूक के बारे में सोचिए। एक वक्त पर वह अपने लिए ‘बड़ाई खोजने’ लगा था। इसलिए परमेश्वर ने उसे याद दिलाया कि बहुत जल्द यरूशलेम का नाश हो जाएगा। लेकिन उसने बारूक से वादा किया कि वह उसकी जान बचाएगा। (यिर्म. 45:1-5) बारूक को समझना चाहिए था कि यहोवा चीज़ें नहीं, बल्कि उसकी जान बचानेवाला है। (यिर्म. 20:5) आज हम उस मुकाम पर जी रहे हैं, जब शैतान की दुनिया का अंत बहुत करीब है। इसलिए यह वक्त ज़्यादा-से-ज़्यादा चीज़ें बटोरने का नहीं है। और हमें यह भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि आज हमारे पास जो चीज़ें हैं, वे महा-संकट में बच जाएँगी, भले ही वे हमारे लिए कितनी भी कीमती हों।—नीति. 11:4; मत्ती 24:21, 22; लूका 12:15.
7. अब हम क्या गौर करेंगे और क्यों?
7 तो फिर यह कैसे हो सकता है कि हम अपनी और अपने परिवार की देखभाल भी करते रहें और अपना ध्यान ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों पर भी लगाए रखें? हम चीज़ों से प्यार करने से कैसे बच सकते हैं? और ऐसा हम क्या कर सकते हैं, ताकि हम अपनी ज़रूरतें पूरी करने के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता न करें? इस मामले में यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में बहुत बढ़िया सलाह दी थी। (मत्ती 6:19-21) आइए हम मत्ती 6:25-34 पढ़ें और उस पर गौर करें। इससे हमें यकीन हो जाएगा कि हमें क्यों राज की खोज करते रहना चाहिए, न कि चीज़ों की।—लूका 12:31.
यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करता है
8, 9. (क) हमें अपनी ज़रूरतों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए? (ख) यीशु, इंसानों और उनकी ज़रूरतों के बारे में क्या जानता था?
8 मत्ती 6:25 पढ़िए। यीशु जानता था कि उसके चेलों को अपने खाने-पीने और कपड़ों की चिंता है। इसलिए पहाड़ी उपदेश में उसने उनसे कहा, “अपनी जान के लिए चिंता करना बंद करो।” यीशु उन्हें यह समझाना चाहता था कि उन्हें क्यों इन सारी चीज़ों की इतनी चिंता नहीं करनी चाहिए। वह जानता था कि अगर वे हद-से-ज़्यादा चिंता करेंगे, तो वे भूल जाएँगे कि ज़िंदगी में क्या बातें ज़्यादा अहमियत रखती हैं, फिर चाहे उनकी चिंता ज़रूरी चीज़ों के बारे में क्यों न हो। यीशु को अपने चेलों की इतनी परवाह थी कि उसने अपने उपदेश में चार बार उन्हें इस खतरे के बारे में आगाह किया।—मत्ती 6:27, 28, 31, 34.
9 लेकिन यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि हमें अपने खाने-पीने और कपड़ों की चिंता नहीं करनी चाहिए? क्या खाना और कपड़ा हमारे लिए ज़रूरी नहीं? बेशक ज़रूरी है! और अगर ये चीज़ें खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं होंगे, तो चिंता करना लाज़िमी है। यह बात यीशु भी जानता था। वह जानता था कि लोगों की क्या ज़रूरतें हैं। वह यह भी जानता था कि “आखिरी दिनों में” उसके चेलों को और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। (2 तीमु. 3:1) देखा जाए तो आज कई लोगों को नौकरी मिलना मुश्किल है और महँगाई आसमान छू रही है। कई जगहों पर लोग बहुत गरीब हैं, दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी उनके लिए बहुत मुश्किल है। लेकिन यीशु यह भी जानता था कि इंसान की ज़िंदगी “भोजन से और शरीर” ‘कपड़ों’ से ज़्यादा मायने रखता है।
10. जब यीशु ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया, तो उसने किन बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत देने के लिए कहा?
10 उसी उपदेश में पहले यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि उन्हें स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से अपनी ज़रूरतों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए। वे कह सकते थे, “आज के इस दिन की रोटी हमें दे।” (मत्ती 6:11) एक और मौके पर उसने उन्हें इस तरह प्रार्थना करने के लिए कहा, “आज के दिन की ज़रूरत के मुताबिक हमें आज की रोटी दे।” (लूका 11:3) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम हमेशा अपनी ज़रूरतें पूरी करने के बारे में सोचते रहें। दरअसल यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि अपनी ज़रूरतों के बारे में प्रार्थना करने से ज़्यादा ज़रूरी है परमेश्वर के राज के लिए प्रार्थना करना। (मत्ती 6:10; लूका 11:2) फिर अपने चेलों का हौसला बढ़ाने के लिए यीशु ने उन्हें समझाया कि कैसे यहोवा अपनी सृष्टि में सभी जीव-जंतुओं का खयाल रखता है।
11, 12. यहोवा जिस तरह पंछियों का खयाल रखता है, उससे हम क्या सीखते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
11 मत्ती 6:26 पढ़िए। हमें “आकाश में उड़नेवाले पंछियों को ध्यान से” देखना चाहिए। वैसे तो पंछी छोटे जीव होते हैं, लेकिन वे खाते बहुत हैं। दरअसल, अगर पंछी इंसान के बराबर होते तो वे इंसान से ज़्यादा खाना खाते। पंछी फल, कीड़े-मकोड़े और बीज खाते हैं। लेकिन उन्हें न बीज बोना पड़ता है, न फसल उगानी पड़ती है। उनकी हर ज़रूरत यहोवा पूरी करता है। (भज. 147:9) हाँ यह बात सच है कि यहोवा उनके मुँह में खाना नहीं डालता। उन्हें खुद जाकर ढूँढ़ना पड़ता है, लेकिन अगर ढूँढ़ें, तो उन्हें बहुतायत में मिलता है।
12 यीशु को इस बात का पूरा भरोसा था कि उसका पिता अगर पंछियों का खयाल रखता है, तो वह इंसानों का भी खयाल रखेगा।[1] (1 पत. 5:6, 7) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहें। हमें मेहनत करनी चाहिए, फिर चाहे हम फसल उगाएँ या खाना-पीना खरीदने के लिए पैसा कमाएँ। यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष दे सकता है। और जब हमारे पास पैसा या खाने-पीने की चीज़ें नहीं होंगी, तब भी वह हमारी ज़रूरतें पूरी कर सकता है। जैसे, ज़रूरत की घड़ी में वह शायद दूसरों को उभारे कि वे अपनी चीज़ें हमारे साथ मिल-बाँटकर खाएँ। यहोवा पंछियों को बसेरा भी देता है। उसने उन्हें अपने लिए घोंसला बनाने की काबिलीयत दी है और इसे बनाने के लिए ज़रूरी चीज़ें भी। उसी तरह यहोवा हमारे परिवार के रहने का बंदोबस्त भी कर सकता है।
13. क्या बात दिखाती है कि हमारा मोल आकाश के पंछियों से बढ़कर है?
13 अपने चेलों को यह याद दिलाने के बाद कि यहोवा पंछियों को खिलाता-पिलाता है, यीशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारा मोल उनसे बढ़कर नहीं?” (लूका 12:6, 7 से तुलना कीजिए।) जब यीशु ने यह बात कही, तो उसने सोचा होगा कि जल्द ही वह सभी इंसानों की खातिर अपनी जान कुरबान करनेवाला है। जी हाँ, यीशु ने पंछियों या दूसरे जीव-जंतुओं के लिए अपनी जान नहीं दी। उसने हमारे लिए अपनी जान दी ताकि हम हमेशा जी सकें।—मत्ती 20:28.
14. इंसान चिंता करके क्या नहीं कर सकता?
14 मत्ती 6:27 पढ़िए। यीशु ने यह क्यों कहा कि इंसान चिंता करके अपनी ज़िंदगी एक पल के लिए भी नहीं बढ़ा सकता? क्योंकि अपनी ज़रूरतों के बारे में बेवजह चिंता करने से हमारी ज़िंदगी बढ़ नहीं जाएगी। इसके बजाय, बहुत ज़्यादा चिंता करने से हम बीमार पड़ सकते हैं और हमारी मौत भी हो सकती है।
15, 16. (क) यहोवा जिस तरह सोसन के फूलों का खयाल रखता है, उससे हम क्या सीखते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) हम खुद से क्या पूछ सकते हैं और क्यों?
15 मत्ती 6:28-30 पढ़िए। हममें से कौन नहीं चाहेगा कि उसके पास अच्छे कपड़े हों, खासकर जब वह प्रचार में, सभाओं और सम्मेलनों में जाता है? लेकिन क्या हमें यह चिंता करनी चाहिए कि हमारे पास “पहनने के लिए कपड़े कहाँ से आएँगे”? एक बार फिर यीशु ने अपने चेलों को याद दिलाया कि कैसे यहोवा अपनी सृष्टि का खयाल रखता है। उसने “मैदान में उगनेवाले सोसन के फूलों” की मिसाल दी। यह मिसाल देते वक्त शायद उसके मन में “सोसन के फूलों” की तरह दिखनेवाले और भी खूबसूरत फूल रहे होंगे। इनमें से किसी भी फूल को अपने लिए कपड़े नहीं सिलने पड़ते। मगर वे इतने खूबसूरत दिखते हैं कि यीशु ने कहा “राजा सुलैमान भी अपने पूरे वैभव में इन फूलों की तरह सज-धज न सका”!
16 अब ध्यान दीजिए कि यीशु ने इसके बाद क्या कहा, “अगर परमेश्वर मैदान में उगनेवाले घास-फूस को . . . ऐसे शानदार कपड़े पहनाता है, तो अरे, कम विश्वास रखनेवालो, क्या वह तुम्हें न पहनाएगा?” ज़रूर पहनाएगा! लेकिन यीशु के चेलों को अपना विश्वास और बढ़ाना था। (मत्ती 8:26; 14:31; 16:8; 17:20) उन्हें भरोसा रखना था कि यहोवा उनकी देखभाल करना चाहता है और ऐसा करेगा भी। हम क्या कहेंगे? क्या हमें यकीन है कि यहोवा हमारा खयाल रखेगा?
17. किस वजह से यहोवा के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है?
17 मत्ती 6:31, 32 पढ़िए। जो यहोवा को नहीं जानते, उनमें से बहुत-से लोगों का बस यही मकसद होता है कि खूब पैसा कमाओ और चीज़ों का अंबार लगाओ। लेकिन अगर हम भी वैसा ही करें, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है। हम जानते हैं कि यहोवा हमारा पिता है और वह हमसे प्यार करता है। हमें यकीन है कि अगर हम उसकी आज्ञा मानेंगे और ज़िंदगी में उसके राज को पहली जगह देंगे, तो वह हमारी हर ज़रूरत पूरी करेगा, बल्कि उससे भी बढ़कर हमें देगा। हम यह भी जानते हैं कि यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता होने से ही हमें सच्ची खुशी मिल सकती है और इससे हमें मदद मिलेगी कि अगर हमारे पास ‘खाना और कपड़ा’ है, तो हम उसी से संतुष्ट रहें।—1 तीमु. 6:6-8.
क्या आप ज़िंदगी में राज को पहली जगह देते हैं?
18. यहोवा हममें से हर एक के बारे में क्या जानता है और वह हमारे लिए क्या करेगा?
18 मत्ती 6:33 पढ़िए। अगर हम ज़िंदगी में परमेश्वर के राज को पहली जगह दें, तो यहोवा हमारी हर ज़रूरत पूरी करेगा। यीशु ने समझाया कि हम क्यों इस वादे पर यकीन कर सकते हैं। उसने कहा, “तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है।” यहोवा तो हमसे भी पहले यह जानता है कि हमारी क्या ज़रूरतें हैं। (फिलि. 4:19) वह जानता है कि आपका कौन-सा कपड़ा अब और काम नहीं आएगा। वह यह भी जानता है कि आपको किस तरह का खाना चाहिए। वह जानता है कि आपको और आपके परिवार को रहने की जगह चाहिए। यहोवा आपको वह हर चीज़ देगा, जिसकी आपको सच में ज़रूरत है।
19. हमें यह चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए कि कल क्या होगा?
19 मत्ती 6:34 पढ़िए। एक बार फिर यीशु ने अपने चेलों से कहा, ‘कभी चिंता न करना।’ यहोवा हमारी हर दिन की ज़रूरतें पूरी करेगा। इसलिए हमें हद-से-ज़्यादा यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि कल क्या होगा, क्योंकि अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम खुद पर भरोसा करने लग सकते हैं। नतीजा, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता बिगड़ सकता है। इसलिए हमें उसी पर पूरा भरोसा रखना चाहिए।—नीति. 3:5, 6; फिलि. 4:6, 7.
पहले राज की खोज कीजिए, बाकी ज़रूरतें यहोवा पूरी करेगा
20. (क) यहोवा की सेवा में आप क्या लक्ष्य रख सकते हैं? (ख) सादगी-भरी ज़िंदगी जीने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
20 अगर हम ज़्यादा-से-ज़्यादा चीज़ें इकट्ठी करने में लग जाएँ, तो शायद यहोवा की सेवा अच्छी तरह करने के लिए हमारे पास समय ही न बचे। यह वाकई बड़े दुख की बात होगी। हमें यहोवा को अपना अच्छे-से-अच्छा देना चाहिए। उदाहरण के लिए, क्या आप ऐसी मंडली में जा सकते हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है? क्या आप पायनियर सेवा कर सकते हैं? और अगर आप पहले से पायनियर हैं, तो क्या आपने ‘राज प्रचारकों के लिए स्कूल’ में जाने की सोची है? क्या आप हफ्ते में कुछ दिन बेथेल या रिमोट ट्रांस्लेशन ऑफिस (अनुवाद काम के लिए बनाए गए दफ्तर) में सेवा कर सकते हैं? या आप ‘स्थानीय योजना और निर्माण’ स्वयं-सेवक बन सकते हैं और कुछ समय राज-घरों के निर्माण में मदद कर सकते हैं। सोचिए, आप सादगी-भरी ज़िंदगी जीने के लिए क्या कर सकते हैं, ताकि राज के कामों के लिए आपके पास ज़्यादा समय और ताकत हो। “सादगी-भरी ज़िंदगी कैसे जीएँ” बक्स में इस बारे में कुछ सुझाव दिए गए हैं। यहोवा से प्रार्थना कीजिए, ताकि आप सही फैसले ले पाएँ। फिर ज़रूरी फेरबदल कीजिए।
21. यहोवा के करीब आने में क्या बात आपकी मदद करेगी?
21 यीशु ने सिखाया कि हमें पहले राज की खोज करनी चाहिए। ऐसा करने से हम अपनी ज़रूरतों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करेंगे। साथ ही, हम यहोवा के करीब आते जाएँगे, क्योंकि हमें भरोसा है कि वह हमारी देखभाल करेगा। हम खुद पर काबू रखना सीखेंगे और हर वह चीज़ नहीं खरीदेंगे जो हम चाहते हैं या जो दुनिया परोसती है भले ही हम उसे खरीद सकते हों। अगर आज हम सादगी-भरी ज़िंदगी जीएँ, तो हम यहोवा के वफादार बने रह पाएँगे और “असली ज़िंदगी पर मज़बूत पकड़ हासिल कर” पाएँगे, जिसका उसने वादा किया है।—1 तीमु. 6:19.
^ [1] (पैराग्राफ 12) कभी-कभी यहोवा के कुछ सेवकों को भरपेट खाना नहीं मिल पाता। यहोवा ऐसा क्यों होने देता है, इसे समझने के लिए 15 सितंबर, 2014 की प्रहरीदुर्ग के पेज 22 पर दिया लेख “आपने पूछा” देखिए।