अध्याय 5
“बुद्धि . . . का सारा खज़ाना”
1-3. यीशु ने किन हालात में पहाड़ी उपदेश दिया? उसके सुननेवाले क्यों दंग रह गए?
ईसवी सन् 31 का समय है। यीशु मसीह कफरनहूम शहर के पास है। चहल-पहल से भरा यह शहर गलील झील के उत्तर-पश्चिम की तरफ बसा है। पास के एक पहाड़ पर यीशु अकेले सारी रात प्रार्थना में बिताता है। दिन चढ़ते ही वह चेलों को अपने पास बुलाता है और उनमें से 12 को चुनकर, उन्हें प्रेषित नाम देता है। इस बीच लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु का पीछा करती हुई वहाँ आ पहुँचती है। उनमें से कई लोग तो दूर-दूर से आए हैं। वे सब पहाड़ की समतल जगह पर जमा हो जाते हैं। वे यीशु को सुनने और अपनी बीमारियों से ठीक होने के लिए तरस रहे हैं। यीशु उन्हें निराश नहीं करता।—लूका 6:12-19.
2 वह भीड़ के पास आता है और जितने भी बीमार हैं उन्हें चंगा कर देता है। अब उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जो गंभीर बीमार से पीड़ित हो। फिर यीशु बैठकर भीड़ को सिखाने लगता है।a उसकी बातों से लोग ज़रूर हैरान हो उठे होंगे। आखिरकार, उन्होंने कभी किसी को यीशु की तरह सिखाते नहीं सुना था। यीशु अपनी शिक्षाओं को दमदार बनाने के लिए न तो इंसानी परंपराओं का और न ही जाने-माने यहूदी रब्बियों की बातों का हवाला देता है। बल्कि वह बार-बार परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे इब्रानी शास्त्र का हवाला देता है। उसका संदेश एकदम सीधा है, उसके शब्द समझने में आसान हैं और उनका मतलब बिलकुल साफ है। जब वह बोलना खत्म करता है तो भीड़ दंग रह जाती है। उन्हें होना भी चाहिए, क्योंकि उन्होंने धरती पर जीनेवाले सबसे बुद्धिमान इंसान की बातें जो सुनी हैं।—मत्ती 7:28, 29.
3 परमेश्वर के वचन में इस उपदेश के साथ-साथ यीशु की और भी बातें और काम दर्ज़ हैं। यह जाँचना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है कि बाइबल यीशु के बारे में क्या बताती है, क्योंकि उसी में “बुद्धि . . . का सारा खज़ाना” पाया जाता है। (कुलुस्सियों 2:3) यीशु को यह बुद्धि, यानी ज्ञान और समझ को काम में लाने की काबिलीयत, कहाँ से मिली? उसने यह बुद्धि किस तरह ज़ाहिर की? और हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
“इस आदमी को ऐसी बुद्धि . . . कहाँ से मिली?”
4. नासरत में यीशु के सुननेवालों ने क्या सवाल किया? और क्यों?
4 प्रचार के अपने एक दौरे में यीशु नासरत पहुँचा जहाँ वह पला-बढ़ा था और सभा-घर में सिखाने लगा। उसकी बातें सुनकर कई लोगों ने दाँतों तले उँगली दबा ली और हैरानी जतायी: “इस आदमी को ऐसी बुद्धि . . . कहाँ से मिली?” वे उसके माँ-बाप और भाई-बहनों को अच्छी तरह जानते थे। उन्हें पता था कि वह एक गरीब परिवार से है। (मत्ती 13:54-56; मरकुस 6:1-3) बेशक वे यह भी जानते थे कि इस बढ़ई ने रब्बियों के जाने-माने स्कूलों में शिक्षा नहीं हासिल की है। (यूहन्ना 7:15) इसलिए उनका पूछना वाजिब था कि इस आदमी को ऐसी बुद्धि कहाँ से मिली।
5. यीशु को बुद्धि देनेवाला कौन है, इस बारे में उसने क्या बताया?
5 यीशु ने जो बुद्धि ज़ाहिर की वह सिर्फ उसके परिपूर्ण दिमाग की उपज नहीं थी। अपनी सेवा के दौरान जब वह मंदिर में खुलेआम सिखा रहा था तब उसने कहा: “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।” (यूहन्ना 7:16) जी हाँ, यीशु को बुद्धि देनेवाला उसका पिता यहोवा परमेश्वर है जिसने उसे धरती पर भेजा था। (यूहन्ना 12:49) लेकिन यीशु ने यहोवा से बुद्धि कैसे पायी?
6, 7. यीशु ने किन तरीकों से अपने पिता से बुद्धि पायी?
6 यहोवा की पवित्र शक्ति यीशु के दिलो-दिमाग पर काम कर रही थी। वादा किए गए मसीहा यानी यीशु के बारे में यशायाह ने भविष्यवाणी की: “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी।” (यशायाह 11:2) यहोवा की शक्ति यीशु पर ठहरी रही और उसके विचारों और फैसलों को सही राह दिखाती रही। तो क्या इसमें कोई ताज्जुब है कि यीशु ने अपनी बातों और कामों से सर्वोत्तम बुद्धि का सबूत दिया?
7 यीशु ने अपने पिता से एक और बेहतरीन तरीके से बुद्धि पायी। जैसा कि हमने अध्याय 2 में देखा था, धरती पर आने से पहले वह अनगिनत युगों तक अपने पिता के साथ था। इस दौरान यीशु के पास अच्छा मौका था कि वह अपने पिता के विचारों को अपने ज़हन में उतार सके। हम यह अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि बेटे ने अपने पिता से कितनी गहरी बुद्धि पायी होगी। उसने एक “कुशल कारीगर” (NHT) की तरह सभी जीवित और निर्जीव चीज़ों की सृष्टि करने में अपने पिता का हाथ बँटाया। इसलिए धरती पर आने से पहले उसे बुद्धि का साकार रूप कहा गया है। (नीतिवचन 8:22-31; कुलुस्सियों 1:15, 16) धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु उस बुद्धि का इस्तेमाल कर सका जो उसने स्वर्ग में अपने पिता से पायी थी।b (यूहन्ना 8:26, 28, 38) इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं कि यीशु की बातों से उसका बेशुमार ज्ञान और गहरी समझ झलकती है और उसके हर काम से उसकी समझ-बूझ।
8. यीशु के चेले होने के नाते हम बुद्धि कैसे पा सकते हैं?
8 यीशु के चेले होने के नाते हमें भी बुद्धि के लिए यहोवा से मदद माँगनी होगी। (नीतिवचन 2:6) बेशक, यहोवा कोई चमत्कार करके हमारे दिमाग में बुद्धि नहीं भर देगा। लेकिन अगर हम सच्चे मन से प्रार्थना करें कि वह हमें ज़िंदगी की मुश्किलों का सामना करने के लिए बुद्धि दे, तो वह हमारी ज़रूर सुनेगा। (याकूब 1:5) यह बुद्धि पाने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी होगी। हमें उसे इस तरह ढूँढ़ना होगा जिस तरह कोई “गुप्त धन” की खोज में लगा रहता है। (नीतिवचन 2:1-6) जी हाँ, हमें परमेश्वर के वचन का गहराई से अध्ययन करना होगा, जहाँ यहोवा की बुद्धि पायी जाती है। और सीखी बातों के मुताबिक चलना होगा। बुद्धि पाने में, खासकर यहोवा के बेटे की मिसाल हमारी मदद कर सकती है। आइए ऐसे कुछ दायरे देखें जिनमें यीशु ने अपनी बुद्धि ज़ाहिर की और यह सीखें कि कैसे हम उसके नक्शे-कदम पर चल सकते हैं।
बुद्धि की बातें
9. यीशु की शिक्षाएँ बुद्धि से भरपूर क्यों थीं?
9 यीशु की बातें सुनने के लिए भीड़-की-भीड़ उसके पास उमड़ चली आती थी। (मरकुस 6:31-34; लूका 5:1-3) और क्यों न हो, वह जब भी कुछ कहता, हमेशा बेजोड़ बुद्धि की बातें कहता। उसकी शिक्षाओं से साफ पता चलता कि उसे परमेश्वर के वचन का गहरा ज्ञान है और मामलों की तह तक पहुँचने की लाजवाब काबिलीयत है। उसकी शिक्षाओं से हर इंसान फायदा पा सकता है और ये कभी पुरानी नहीं पड़तीं। ये आज भी हमारे लिए उतनी ही फायदेमंद हैं जितनी तब थीं जब ये दी गयी थीं। आइए भविष्यवाणी में बताए “अद्भुत परामर्श दाता” यानी यीशु की बातों में पायी जानेवाली बुद्धि के कुछ उदाहरण देखें।—यशायाह 9:6, नयी हिन्दी बाइबिल।
10. यीशु ने हमें कौन-से अच्छे गुण बढ़ाने के लिए उकसाया? और क्यों?
10 यीशु की ज़्यादातर शिक्षाएँ पहाड़ी उपदेश में दी गयी हैं, जिसका ज़िक्र इस अध्याय की शुरूआत में किया गया था। इस पूरे उपदेश में न तो किसी और घटना का ब्यौरा दिया गया है और न ही कोई दूसरी बात कही गयी है। इसमें यीशु ने सलाह दी कि हमारी बोली और व्यवहार किस तरह का होना चाहिए। इतना ही नहीं, उसने यह भी बताया कि हम किन वजहों से फलाँ बात कहते या फलाँ काम करते हैं। वह अच्छी तरह जानता था कि हम जो सोचते और महसूस करते हैं, वही कहते और करते भी हैं। इसलिए यीशु ने उकसाया कि हम अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ाएँ। जैसे, कोमल स्वभाव, न्याय होते देखने की भूख, दया दिखाने और शांति कायम करने की इच्छा और दूसरों के लिए प्यार। (मत्ती 5:5-9, 43-48) जैसे-जैसे हम ये गुण बढ़ाएँगे, हमें इसके बढ़िया नतीजे मिलेंगे। हमारी अच्छी बातचीत और व्यवहार से न सिर्फ यहोवा का दिल खुश होगा बल्कि दूसरों के साथ हमारे रिश्ते में भी मिठास बढ़ेगी।—मत्ती 5:16.
11. पाप के कामों की बात करते वक्त यीशु किस तरह मामले की जड़ तक गया?
11 जब यीशु पाप के कामों की बात कर रहा था, तो उसने हमें सिर्फ उनसे दूर रहने की सलाह नहीं दी। बल्कि यह भी बताया कि किस वजह से एक इंसान ऐसे पाप करता है। मिसाल के लिए, उसने महज़ यह नहीं कहा कि हमें हिंसा के कामों से दूर रहना चाहिए। बल्कि हमें खबरदार भी किया कि हम अपने दिल में गुस्से की आग को सुलगने न दें। (मत्ती 5:21, 22; 1 यूहन्ना 3:15) उसी तरह उसने सिर्फ यह नहीं कहा कि व्यभिचार से दूर रहो, बल्कि उस वासना से आगाह भी किया जो हमारे दिल में पनप सकती है और हमसे यह पाप करवा सकती है। यीशु ने बताया कि हमें ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हमारी आँखें हमारे अंदर गलत इच्छाएँ न जगाएँ और हमें गलत काम करने के लिए न लुभाएँ। (मत्ती 5:27-30) इस तरह यीशु मामलों की जड़ तक गया। उसने ऐसे रवैयों और इच्छाओं की तरफ ध्यान दिलाया जो एक इंसान को पाप की ओर ले जाती हैं।—भजन 7:14.
12. यीशु के चेले उसकी सलाहों के बारे में क्या मानते हैं? वे ऐसा क्यों सोचते हैं?
12 यीशु की बुद्धि-भरी बातों की तो दाद देनी पड़ेगी! इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि “भीड़ उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग रह गयी।” (मत्ती 7:28) उसके चेले होने के नाते हम मानते हैं कि उसकी बुद्धि-भरी सलाहें हमें जीने का तरीका सिखाती हैं। हम यीशु के कहे मुताबिक दया, शांति, और प्यार जैसे गुणों को पैदा करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि इस तरह हम ऐसे चालचलन की बुनियाद डाल रहे होंगे जो यहोवा को भाता है। हम अपने दिल से ज़बरदस्त क्रोध और अनैतिक इच्छाओं को उखाड़ फेंकने की जी-जान से कोशिश करते हैं जिनके बारे में यीशु ने आगाह किया था। क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसा करने से हम पाप में पड़ने से बचेंगे।—याकूब 1:14, 15.
ऐसी ज़िंदगी जो बुद्धि के चलाए चलती है
13, 14. क्या दिखाता है कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी के बारे में समझ-बूझ से फैसला किया?
13 यीशु ने न सिर्फ अपनी बातों से बल्कि अपने कामों से भी बुद्धि दिखायी। उसने अपने फैसलों, खुद के बारे में अपने नज़रिए और दूसरों के साथ अपने व्यवहार में—जी हाँ, अपने जीने के तरीके से बुद्धि के कई खूबसूरत पहलू ज़ाहिर किए। आइए ऐसे कुछ उदाहरण देखें जिनसे पता चलता है कि यीशु ‘व्यवहारिक बुद्धि और सोचने-समझने की काबिलीयत’ के मुताबिक काम करता था।—नीतिवचन 3:21, NW.
14 बुद्धि में समझ-बूझ से काम लेना शामिल है। ज़िंदगी किस तरह जीनी है, इसका फैसला करते वक्त यीशु ने समझ-बूझ दिखायी। ज़रा सोचिए, अगर यीशु चाहता तो अपने लिए एक आलीशान घर बना सकता था, अच्छा-खासा कारोबार खड़ा कर सकता था या दुनिया में नामो-शोहरत हासिल कर सकता था। लेकिन यीशु जानता था कि इन चीज़ों के पीछे ज़िंदगी लगाना “व्यर्थ है और हवा पकड़ने के बराबर है।” (सभोपदेशक 4:4, बुल्के बाइबिल; 5:10) ऐसी ज़िंदगी जीना बुद्धिमानी नहीं मूर्खता है। यीशु ने अपनी ज़िंदगी को सादा रखने का फैसला किया। धन-दौलत कमाने या ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी। (मत्ती 8:20) अपनी शिक्षाओं के मुताबिक उसने अपनी आँख एक ही मकसद पर लगाए रखी। वह है परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना। (मत्ती 6:22) यीशु ने बुद्धिमानी दिखाते हुए अपना समय और अपनी ताकत परमेश्वर के राज के कामों में लगायी। ये काम गाड़ी, बँगला, पैसे से कहीं ज़्यादा अहमियत रखते हैं और आशीषें पहुँचाते हैं। (मत्ती 6:19-21) इस तरह यीशु हमारे लिए एक नमूना छोड़ गया ताकि हम उस पर चल सकें।
15. यीशु के चेले कैसे दिखाते हैं कि वे अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखते हैं? ऐसा करना बुद्धिमानी का रास्ता क्यों है?
15 आज भी यीशु के चेले देखते हैं कि अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखना बुद्धिमानी है। इसलिए वे बेवजह अपने सिर पर कर्ज़ नहीं चढ़ाते। और न ही गैर-ज़रूरी कामों में उलझते हैं, जिससे उनके पास समय और ताकत ही न बचे। (1 तीमुथियुस 6:9, 10) बहुत-से मसीहियों ने अपना रहन-सहन सादा बनाने के लिए कदम उठाए हैं ताकि वे प्रचार काम में ज़्यादा वक्त बिता सकें और हो सके तो पूरे समय के प्रचारक बन सकें। इससे बढ़कर बुद्धिमानी का रास्ता और कोई नहीं हो सकता। क्योंकि राज के कामों को अपनी ज़िंदगी में सही जगह देने से हमें सबसे ज़्यादा खुशी और संतोष मिलता है।—मत्ती 6:33.
16, 17. (क) यीशु ने किन तरीकों से दिखाया कि वह अपनी सीमाओं को पहचानता था और खुद से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता था? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम अपनी सीमाएँ पहचानते हैं और खुद से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करते?
16 बाइबल बताती है कि बुद्धि का मर्यादा से गहरा ताल्लुक है। मर्यादा का मतलब है अपनी सीमाओं को पहचानना। (नीतिवचन 11:2, NW) यीशु अपनी सीमाएँ पहचानता था और खुद से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता था। वह जानता था कि वह अपने सुननेवालों में से हर किसी को नहीं बदल सकता। (मत्ती 10:32-39) उसे यह भी पता था कि वह अकेले सबको राज का संदेश नहीं सुना सकेगा। इसलिए उसने बुद्धिमानी दिखाते हुए चेला बनाने का काम अपने शिष्यों को सौंपा। (मत्ती 28:18-20) उसने नम्र होकर यह कबूल किया कि वे उससे भी ‘बड़े-बड़े काम करेंगे।’ क्योंकि वे यीशु से ज़्यादा लंबे समय तक और बड़े पैमाने पर लोगों को प्रचार कर सकेंगे। (यूहन्ना 14:12) यीशु ने यह भी माना कि उसे मदद की ज़रूरत है। उसने उन स्वर्गदूतों की मदद कबूल की जो वीराने में उसकी सेवा करने आए थे और उस स्वर्गदूत की भी जो गतसमनी के बाग में उसकी हिम्मत बँधाने आया था। यही नहीं, ज़िंदगी की सबसे मुश्किल घड़ी में परमेश्वर के इस बेटे ने अपने पिता को मदद के लिए पुकारा।—मत्ती 4:11; लूका 22:43; इब्रानियों 5:7.
17 हमें भी अपनी सीमाओं को पहचानना चाहिए और खुद से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। बेशक हम तन-मन से प्रचार और चेला बनाने का काम करना चाहते हैं और उसके लिए जी-तोड़ संघर्ष करते हैं। (लूका 13:24; कुलुस्सियों 3:23) लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यहोवा हमारी तुलना किसी से नहीं करता और न ही हमें करनी चाहिए। (गलातियों 6:4) व्यावहारिक बुद्धि हमारी मदद करेगी कि हम अपनी काबिलीयतों और हालात को ध्यान में रखकर ऐसे लक्ष्य रखें जिन्हें हम हासिल कर सकते हैं। इसके अलावा बुद्धि, ज़िम्मेदार भाइयों को यह कबूल करने में मदद देगी कि उनकी कुछ सीमाएँ हैं और उन्हें भी समय-समय पर मदद और हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत है। मर्यादा का गुण उन भाइयों को यह पहचानने में मदद देगा कि यहोवा एक मसीही भाई को उनकी ‘हिम्मत बँधानेवाला मददगार’ बना सकता है। इतना ही नहीं, इस गुण की बदौलत वे एहसान-भरे दिल से इस मदद को स्वीकार भी कर सकेंगे।—कुलुस्सियों 4:11.
18, 19. (क) क्या दिखाता है कि यीशु अपने चेलों के लिए लिहाज़ दिखाता और उनके साथ प्यार से पेश आता था? (ख) दूसरों में अच्छाइयाँ ढूँढ़ने और उनके लिए लिहाज़ दिखाने की हमारे पास क्या बेहतरीन वजह है? और हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?
18 याकूब 3:17 कहता है: ‘जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है, वह लिहाज़ दिखानेवाली होती है।’ यीशु अपने चेलों के लिए लिहाज़ दिखाता और उनके साथ प्यार से पेश आता था। वह उनकी खामियों से अच्छी तरह वाकिफ था, फिर भी वह उनमें अच्छाइयाँ ढूँढ़ता था। (यूहन्ना 1:47) वह जानता था कि जिस रात उसे गिरफ्तार किया जाएगा उसके चेले उसे छोड़कर भाग जाएँगे, मगर उसने उनकी वफादारी पर शक नहीं किया। (मत्ती 26:31-35; लूका 22:28-30) पतरस ने तो यीशु को जानने से तीन बार इनकार कर दिया था। फिर भी, यीशु ने पतरस के लिए यहोवा से मिन्नत की और उसकी वफादारी पर भरोसा जताया। (लूका 22:31-34) धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात, जब यीशु अपने पिता से प्रार्थना कर रहा था तो उसने अपने चेलों की गलतियाँ नहीं गिनायीं। इसके बजाय, उनकी अच्छाई पर ध्यान देते हुए उसने कहा: “उन्होंने तेरा वचन माना है।” (यूहन्ना 17:6) उनकी असिद्धताओं के बावजूद यीशु ने उन्हें राज का प्रचार करने और चेले बनाने का काम सौंपा। (मत्ती 28:19, 20) इसमें कोई शक नहीं कि यीशु ने अपने चेलों पर जो भरोसा और विश्वास दिखाया, उससे उन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने का हौसला मिला होगा।
19 यीशु के चेलों के पास इस मामले में उसकी मिसाल पर चलने की अच्छी वजह है। अगर परमेश्वर का बेटा सिद्ध होते हुए भी अपने असिद्ध चेलों के साथ सब्र से पेश आया, तो हम पापी इंसानों को एक-दूसरे के साथ पेश आते वक्त और भी ज़्यादा लिहाज़ दिखाने की ज़रूरत है। (फिलिप्पियों 4:5) मसीही भाई-बहनों की कमियों पर ध्यान देने के बजाय हमें उनमें अच्छाइयाँ देखनी चाहिए। हमारे लिए यह याद रखना बुद्धिमानी होगी कि उन्हें यहोवा अपने पास खींच लाया है। (यूहन्ना 6:44) उसने ज़रूर उनमें कुछ अच्छी बात देखी होगी और हमें भी ऐसा करना चाहिए। ऐसा रवैया रखने से हम उनकी खामियों को अनदेखा करेंगे। साथ ही, हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि हम किन बातों में उनकी तारीफ कर सकते हैं। (नीतिवचन 19:11) जब हम अपने मसीही भाई-बहनों पर भरोसा दिखाते हैं, तो हम उनकी मदद कर रहे होंगे कि वे यहोवा की सेवा में अपना भरसक करें और उससे खुशी पाएँ।—1 थिस्सलुनीकियों 5:11.
20. खुशखबरी की किताबों में दिए खज़ाने का हमें क्या करना चाहिए? और क्यों?
20 यीशु की ज़िंदगी और उसकी सेवा के बारे में खुशखबरी की किताबों में दर्ज़ ब्यौरे सचमुच बुद्धि का खज़ाना है। इस अनमोल खज़ाने का हमें क्या करना चाहिए? पहाड़ी उपदेश के आखिर में यीशु ने अपने सुननेवालों को उकसाया कि वे उसकी बुद्धि-भरी बातों को सिर्फ सुनें नहीं बल्कि उस पर चलें भी। (मत्ती 7:24-27) अपनी सोच और इरादों को यीशु की बुद्धि-भरी बातों और कामों के मुताबिक ढालिए। साथ ही, उसकी बातों और कामों के अनुसार चलिए। इस तरह हम आज सबसे बेहतरीन ज़िंदगी का लुत्फ उठाएँगे और हमेशा की ज़िंदगी की ओर ले जानेवाली राह पर चलते रहेंगे। (मत्ती 7:13, 14) इससे बढ़कर बुद्धिमानी का रास्ता हो ही नहीं सकता!
a उस दिन यीशु ने जो भाषण दिया, वह पहाड़ी उपदेश के नाम से जाना गया। यह उपदेश मत्ती 5:3–7:27 में दर्ज़ है। इसमें 107 आयतें हैं और इसे देने में करीब 20 मिनट लगे होंगे।
b यीशु के बपतिस्मे पर जब “आकाश खुल गया,” तो ऐसा मालूम होता है कि उसे स्वर्ग की ज़िंदगी की सारी बातें याद आ गयीं।—मत्ती 3:13-17.