यीशु का जीवन और सेवकाई
उत्पीड़न का सामना करने की तैयारी
अपने प्रेरितों को प्रचार कार्य पूरा करने के तरीक़ों के बारे में आदेश देने के बाद, यीशु उन्हें विरोधियों के बारे में चेतावनी देते हैं। वह कहते हैं: “देखो, मैं तुम्हें भेड़ों की नाईं भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ . . . परन्तु लोगों से सावधान रहो, क्योंकि वे तुम्हें महा सभाओं में सौंपेंगे, और अपनी पंचायतों में तुम्हें कोड़े मारेंगे। तुम मेरे लिए हाकिमों और राजाओं के सामने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिए पहुँचाए जाओगे।”
उस तीव्र उत्पीड़न के बावजूद भी, जो उनके शिष्य सामना करेंगे, यीशु आश्वासन देते हुए यह वादा करते हैं: “जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे तो यह चिन्ता न करना, कि हम किस रीति से; या क्या कहेंगे: क्योंकि जो कुछ तुम को कहना होगा, वह उसी घड़ी तुम्हें बता दिया जाएगा। क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो परन्तु तुम्हारे पिता का आत्मा तुम में बोलता है।”
“इसके अतिरिक्त,” यीशु कहते हैं, “भाई, भाई को और पिता पुत्र को, घात के लिए सौंपेंगे, और लड़केवाले माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे।” वह आगे कहते हैं: “मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।”
प्रचार कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण बात है, इसलिए यीशु समझदारी की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं, ताकि वे इस कार्य को पूरा करने के लिए आज़ाद रहे। “जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो दूसरे को भाग जाना,” वह कहते हैं, इसलिए कि “मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम इस्राएल के सब नगरों में न फिर चुकोगे, कि मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।”
यह सही है यीशु ने यह आदेश, चेतावनी और प्रोत्साहन अपने बारह प्रेरितों को दिया था, लेकिन यह उन सब के लिए भी था जो उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद विश्वव्यापी प्रचार कार्य में भाग लेते। यह इस वास्तविकता से प्रमाणित है कि उन्होंने कहा था कि उनके शिष्यों से ‘सब लोग बैर करेंगे,’ न कि सिर्फ़ वे इस्राएली लोग, जिनके पास प्रेरितों को प्रचार करने के लिए भेजा गया था। इसके अलावा, जब यीशु ने उन्हें उनके प्रचार के लघु अभियान पर बाहर भेजा था तब प्रत्यक्ष रूप से प्रेरितों को शासकों और राजाओं के सामने हाज़िर नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त, उस समय विश्वासियों के परिवार के सदस्यों ने उन्हें घात किए जाने के लिए लोगों के हवाले नहीं कर दिया था।
इसलिए जब यीशु ने कहा कि उनके शिष्य सब नगरों में न फिर चुकेंगे, “कि मनुष्य का पुत्र आ जाएगा,” तो यीशु भविष्यसूचक रूप से हमें बता रहे थे कि आरमागेडोन में महिमान्वित राजा यीशु मसीह, यहोवा के कार्य करनेवाले पदाधिकारी के रूप में आने से पहले, उनके शिष्य सम्पूर्ण पृथ्वी के क्षेत्र में परमेश्वर के स्थापित राज्य के बारे में प्रचार कार्य समाप्त नहीं करते।
अपने प्रचार कार्य के आदेश देना जारी रखते हुए, यीशु कहता है: “चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं; और न दास अपने स्वामी से।” इसलिए उनके शिष्यों को उसी प्रकार का दुर्व्यवहार और उत्पीड़न मिलने की अपेक्षा करनी चाहिए जैसा यीशु को परमेश्वर का राज्य प्रचार करने के कारण मिला था। फिर भी वह सावधान करते हैं: “उन से मत डरना, जो शरीर को घात करते हैं, पर प्राण को घात नहीं कर सकते; पर उसी से डरो, जो प्राण और शरीर दोनों को गेहेन्ना में नाश कर सकते हैं।” (न्यू.व.)
यीशु ने इस मामले में एक उदाहरण प्रस्तुत किया। यहोवा परमेश्वर, वह व्यक्ति जिनको संपूर्ण शक्ति है, के प्रति अपनी वफ़ादारी पर समझौता करने के बजाय, यीशु ने निडरता से मृत्यु सह ली। जी हाँ, यह यहोवा ही हैं जो न सिर्फ़ किसी व्यक्ति के प्राण (यहाँ जिसका अर्थ है, किसी व्यक्ति का भविष्य में जीवित प्राणी बनने की प्रत्याशा) को नाश कर सकते हैं, परन्तु जो अनन्त जीवन का आनन्द लेने के लिए एक व्यक्ति को पुनः जीवित भी कर सकते हैं। यहोवा कितने प्रेममय और कृपालु स्वर्गीय पिता हैं!
इसके बाद यीशु अपने शिष्यों को एक दृष्टान्त द्वारा प्रोत्साहित करते हैं, जिस में उनके लिए यहोवा की प्रेममय चिन्ता पर ज़ोर दिया गया है। वह पूछते हैं: “क्या पैसे में दो गौरैये नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिए डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो।”
जिस राज्य संदेश के विषय में यीशु ने अपने शिष्यों को प्रचार करने की आज्ञा दी थी, वह परिवारों को विभाजित करेगा, क्योंकि परिवार के कुछ सदस्य उसे स्वीकार करेंगे और अन्य उसे अस्वीकार करेंगे। “यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूँ,” वह समझाते हैं, “मैं मिलाप कराने नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ।” इसलिए परिवार के किसी सदस्य को बाइबल सच्चाई स्वीकार करने के लिए साहस आवश्यक है। “जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं,” यीशु ग़ौर करता है, “और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं।”
अपने आदेशों को समाप्त करते हुए, यीशु समझाते हैं कि जो उनके शिष्यों को ग्रहण करते हैं, वे उन्हें भी ग्रहण करते हैं। “जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूँ, वह किसी रीति से अपना प्रतिफल न खोएगा।” मत्ती १०:१६-४२.
◆ यीशु ने अपने शिष्यों को कौनसी चेतावनियाँ दी?
◆ यीशु ने उन्हें कैसा प्रोत्साहन और सान्त्वना दिया?
◆ यीशु के आदेश क्यों आधुनिक मसीहियों पर भी लागू होते हैं?
◆ यीशु का कोई शिष्य किस रीति से अपने गुरु से बड़ा नहीं?