अनावश्यक चिंता से होशियार!
चिंता के बारे में चिंता ही क्यों करना? क्या कभी-भी चिंता नहीं करनी चाहिए? जी हाँ, करनी चाहिए। मगर अनावश्यक चिंता से हमारा ही नुकसान होता है। इससे हममें निराशा पैदा हो सकती है जिससे काम करने की हमारी इच्छा और ताकत घट जाती है। बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “चिन्ता से मनुष्य का हृदय निराश होता है।”—नीतिवचन १२:२५, NHT.
रिसर्च दिखाती हैं कि चिंता करने से शरीर को काफी नुकसान हो सकता है। किताब अपनी नव्ज़ पर काबू रखना (अंग्रेज़ी) कहती है: “डॉक्टर जानते हैं कि कैसे चिंता करने से शरीर ठीक से काम नहीं करता। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता (या कम हो सकता) है; इससे व्हाइट ब्लड सॆल बढ़ सकता है; लिवर में अड्रनलिन के काम करने से अचानक ब्लड शुगर कम-ज़्यादा हो सकता है। इससे आपके दिल की धड़कन भी कम-ज़्यादा हो सकती है। डॉ. चार्ल्स मायो ने कहा: ‘चिंता का असर शरीर में रक्त संचार पर, दिल पर, ग्रंथियों पर, और पूरे नर्वस सिस्टम पर पड़ता है।’”—डॉ. पी. स्टेनक्रॉन और डी. लाफिआ, १९७०, पेज १४.
मगर, इससे भी ज़्यादा खतरनाक, अनावश्यक चिंता से होनेवाला आध्यात्मिक नुकसान हैं। इसीलिए बाइबल चिंता के असर के बारे में काफी कुछ कहती है। इब्रानी में चिंता या परेशानी का अर्थ देने के लिए कई शब्द हैं। इनमें से एक (त्सरार) का मतलब है शारीरिक रूप से चार दीवारी में रहना और इसका अनुवाद अलग-अलग तरीके से किया जाता है, जैसे ‘बान्धना,’ ‘बंद कर देना,’ और ‘ढूंस देना।’ (निर्गमन १२:३४; नीतिवचन २६:८, NW; यशायाह ४९:१९) लाक्षणिक अर्थ में इसका मतलब है ‘चिंतित होना; संकट में पड़ना।’ (उत्पत्ति ३२:७; १ शमूएल २८:१५) एक और शब्द है दाआग, जिसका अनुवाद होता है ‘चिंता करना; डर जाना’; इसका संबंध देआगाह इस शब्द से है, जिसका मतलब है हद से ज़्यादा “चिंता” या उदासी होना। (१ शमूएल ९:५; यशायाह ५७:११; नीतिवचन १२:२५) यूनानी संज्ञा मेरीम्ना का अनुवाद होता है “चिंता,” और उससे संबंधित क्रिया मेरीम्नाओ का मतलब है ‘चिंता करना।’—मत्ती १३:२२; लूका १२:२२.
यीशु मसीह ने बताया कि अगर हम ज़िंदगी में इस दुनिया की समस्याओं की चिंता को लेकर बैठे रहेंगे, तो ‘परमेश्वर के वचन’ के लिए कदर पूरी तरह खत्म हो सकती है। ठीक जैसे जंगली झाड़ियाँ एक छोटे से पौधे को बढ़कर फल लाने नहीं देतीं, उसी तरह चिंता हमारी आध्यात्मिक उन्नति को परमेश्वर की स्तुति करने के लिए फल लाने से रोक सकती है। (मत्ती १३:२२; मरकुस ४:१८, १९; लूका ८:७, ११, १४) ‘अंतिम दिनों’ की अपनी भविष्यवाणी में यीशु ने आगाह किया कि जो अपनी ज़िंदगी में चिंताओं में डूब जाएँगे, और आध्यात्मिक बातों को भूल जाएँगे, परमेश्वर का पुत्र उनसे खुश नहीं होगा। और जब यीशु अपनी महिमा में लौटेगा, तब उनका हमेशा-हमेशा के लिए नाश किया जाएगा।—लूका २१:३४-३६.
वाजिब चिंताएँ या परवाह
तो फिर, किन बातों की चिंता करना ठीक है? सबसे पहले, तो परमेश्वर यहोवा को खुश करने की चिंता करना ठीक है, जिससे उसके सेवकों को आशीषें मिलेंगी। साथ ही, बहुत ही बड़ी गलती करनेवाले को भजनहार की तरह महसूस करना चाहिए: “अपने पाप के कारण मैं अत्यधिक व्याकुल हूँ।” (भजन ३८:१८) पाप करने पर जो सही चिंता होती है, उससे इंसान उस गलती को कूबल करता है, उससे पश्चाताप करता है और अपने गलत रास्ते से फिरकर परमप्रधान परमेश्वर के साथ फिर एक बार अच्छा रिश्ता जोड़ता है। फिर भी सभी मसीहियों को चिंता होनी चाहिए कि हमारे संगी विश्वासी आध्यात्मिक, शारीरिक और भौतिक रूप से ठीक-ठाक हैं। (१ कुरिन्थियों १२:२५-२७) प्रेरित यूहन्ना ने जब गयुस को खत लिखा तो इसी प्रकार की चिंता उस खत में दिखायी दी: “हे प्रिय, मेरी यह प्रार्थना है; कि जैसे तू आत्मिक उन्नति कर रहा है, वैसे ही तू सब बातों में उन्नति करे, और भला चंगा रहे।” (३ यूहन्ना २) प्रेरित पौलुस ने “सब कलीसियाओं की चिन्ता” के बारे बात की। (२ कुरिन्थियों ११:२८) उसे बड़ी चिंता थी कि सभी लोग अंत तक परमेश्वर के बेटे के वफादार शिष्य बने रहें।
बाइबल में “प्रभु की बातों की चिन्ता” के बारे में बात की गयी है। इसका मतलब है उन सभी बातों की चिंता करना जो परमेश्वर के बेटे के कामों को बढ़ावा दें। क्योंकि अविवाहित मसीहियों पर अपने साथी की और बच्चों की ज़िम्मेदारियाँ नहीं होतीं, सो वे लोग “संसार की बातों” की कम चिंता करके “प्रभु की बातों” की ओर ज़्यादा ध्यान दे सकते हैं। ये सब विवाहित लोग नहीं कर सकते।—१ कुरिन्थियों ७:३२-३५.
साथ ही प्रेरित पौलुस ने लिखा कि मसीही पति-पत्नी को “संसार की बातों की चिन्ता” होगी। ऐसी चिंताएँ अविवाहित मसीहियों को नहीं होतीं। जब अविवाहित लोगों की बात आती है, तो जो चीज़ें उसकी अपनी, अपने घर की और ज़िंदगी की ज़रूरतों के लिए काफी होंगी, यानी रोटी कपड़ा और मकान, वही चीज़ें एक परिवार के लिए काफी न हों। और पति-पत्नी के बीच एकदम नज़दीकी रिश्ता होता है। इसकी वज़ह से, वे दोनों जब अपने पूरे परिवार की शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और आध्यात्मिक खैरियत बरकरार रखने और एक दूसरे को खुश करने की चिंता करते हैं, तो वह चिंता या परवाह सही है। अगर मान लीजिए कोई बीमारी, या इमरजेंसी नहीं भी आए, तो भी जिन पति-पत्नियों को बच्चे हैं उन्हें ज़िंदगी से ताल्लुक रखनेवाले कई काम या ‘संसार की बातें’ करने पड़ते हैं जिन्हें आध्यात्मिक काम नहीं कहा जा सकता। एक अविवाहित मसीही को इतने झमेले नहीं उठाने पड़ते।
फिर भी, दुनिया की चिंताओं में पूरी तरह नहीं डूब जाना चाहिए। ये बात उनके लिए भी सही है जो शादी-शुदा हैं और जिनका अपना परिवार है। यीशु मसीह ने लाज़र की बहन, मरथा को यह बात साफ-साफ बतायी। अपने मेहमान की खातिरदारी करने की चिंता में वह भूल गयी कि उसे यीशु की बातों को सुनने के लिए वक्त निकालना चाहिए था। लेकिन, मरियम ने “उत्तम भाग” चुना था, यानी वह परमेश्वर के बेटे से आध्यात्मिक आहार ले रही थी।—लूका १०:३८-४२.
अनावश्यक चिंता से दूर रहिए
सो हम अनावश्यक चिंता से कैसे दूर रह सकते हैं? हमें पूरी तरह भरोसा करना चाहिए कि यहोवा अपने सेवकों की खैरियत के बारे में प्रेम के साथ चिंता करता है। इससे हम अनावश्यक चिंता से दूर रह सकते हैं। भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने कहा: “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिस ने परमेश्वर को अपना आधार माना हो। . . . [उसे] कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा।” (यिर्मयाह १७:७, ८) अपने पहाड़ी उपदेश में भी यीशु मसीह ने यही बात कही। चिंता के बारे में अपनी सलाह को उसने इस शब्दों के साथ समाप्त किया: “कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुख बहुत है।” (मत्ती ६:२५-३४) हर मसीही के लिए हर दिन अपनी ही चिंता लेकर आता है। सो उसमें कल की भी चिंता जोड़ने की ज़रूरत नहीं कि कल क्या होगा, क्या नहीं। हो सकता है कल ऐसा कुछ भी न हो जिसके बारे में हम इतनी चिंता कर रहे हैं।
अगर सताहट के समय किसी मसीही को पूछताछ के लिए अधिकारियों के सामने खड़ा किया जाता है, तो परमेश्वर पर भरोसा होने से वह चिंता से मुक्त हो सकता है। अपने वचन में यहोवा अपने वफादार सेवकों को हौसला देता है कि अपनी आत्मा के ज़रिए वह उन्हें परीक्षा के समय खैरियत से रखेगा और उनके लिए अच्छी गवाही देना मुमकिन बनाएगा।—मत्ती १०:१८-२०; लूका १२:११, १२.
सो, जब हम पर मुसीबतें आ पड़ती हैं जिनकी वज़ह से हम चिंतित, परेशान और आशंकित हो सकते हैं, तो हमें प्रार्थना के साथ अपने स्वर्गीय पिता के पास जाना चाहिए। इस तरह हम ‘अपनी सारी चिंता यहोवा पर डाल’ सकते हैं, और यकीन कर सकते हैं कि यहोवा, जो हमारी चिंता करता है, हमारी प्रार्थनाओं को सुनेगा। (१ पतरस ५:७) पौलुस कहता है: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, . . . परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं।” इससे हमारे दिल को तसल्ली, यानी परमेश्वर की शांति मिलेगी जो हमारे दिलो-दिमाग की हिफाज़त भी करेगी। (फिलिप्पियों ४:६, ७) तब, हमारे दिल में हमें कोई परेशानी, कोई तकलीफ या चिंता नहीं होगी, और हमारे मन को भी चिंता की वज़ह से होनेवाले विकर्षण और परेशानियाँ नहीं होंगी। सो आइए हम पवित्र शास्त्र में दी गयी बुद्धिमानी की सलाह मानें और अनावश्यक चिंता ना करें।