यीशु का जीवन और सेवकाई
एक असंभावनीय शिष्य
जैसे ही यीशु तट पर क़दम रखता है, क्या ही भयंकर नज़ारा दिखायी देता है! पास के क़ब्रिस्तान में से दो असाधारण रूप से प्रचण्ड मनुष्य बाहर आते हैं और उसकी ओर दौडते हैं। वे दुष्टात्माओं से आविष्ट हैं। चूँकि उन में का एक व्यक्ति शायद दूसरे से ज़्यादा हिंसक है और उसने दुष्टात्माओं के नियंत्रण तले ज़्यादा समय भुगता है, इसलिए वह ध्यान का केंद्र बन जाता है।
बहुत समय से यह दयनीय मनुष्य इन क़ब्रों के बीच नग्न अवस्था में जी रहा है। लगातार, दिन-रात, वह चिल्लाता है और अपने को पत्थरों से चीरता है। वह इतना हिंसक है कि किसी को उस रास्ते से गुज़रने की हिम्मत नहीं होती। उसे बाँध रखने की कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन वह ज़ंजीरें और अपने पैरों पर की बेड़ियाँ तोड़ डालता है। किसी में उसे शान्त करने की ताक़त नहीं।
जैसे ही वह मनुष्य यीशु के पास आकर उसके पैरों पर पड़ता है, उसे नियंत्रित करनेवाले दुष्टात्मा उसे चिल्लाने पर मजबूर करते हैं: “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।”
“हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ,” यीशु कहता रहता है। पर फिर यीशु पूछता है: “तेरा नाम क्या है?”
“मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं,” जवाब आता है। दुष्टात्माएँ उन लोगों के दुःखभोग देखना पसंद करते हैं, जिन्हें वे आविष्ट कर सकते हैं, और प्रत्यक्षतः कायर उत्तेजित भीड़ भाव से उनके ख़िलाफ़ इकट्ठा होना बहुत पसंद करते हैं। यीशु के सम्मुख आकर, वे बिनती करते हैं कि उन्हें अथाह कुण्ड में न भेजा जाए। एक बार फिर हम यीशु की बड़ी शक्ति देखते हैं, जिस से वह विद्वेषपूर्ण दुष्टात्माओं को अधीन कर सका। इस से यह भी प्रकट होता है कि दुष्टात्माओं को मालूम है कि अपने अगुवा, शैतान इब्लीस, के साथ उन्हें अथाह कुण्ड में डालना, उन पर परमेश्वर का अन्तिम न्यायदण्ड है।
पास के एक पहाड़ पर लगभग २,००० सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा है। तो दुष्टात्माएँ कहते हैं: “हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उनके भीतर जाए।” प्रकट रूप से दुष्टात्माओं को मांसल प्राणियों के शरीरों में प्रवेश करने में एक क़िस्म का अनैसर्गिक, परपीड़क सुख मिलता है। जब यीशु उन्हें सूअरों में प्रवेश करने की अनुमति देता है, तब पूरे २,००० सूअर खड़ी चट्टान पर से भगदड़ करके समुंदर में डूब जाते हैं।
सूअरों की देखभाल करनेवाले जब यह देखते हैं, तब वे जल्द से शहर और देहात में यह ख़बर सुनाने जाते हैं। उस पर, लोग यह देखने बाहर आते हैं कि क्या हुआ है। जब वे पहुँचते हैं, तो क्या देखते हैं, जिस आदमी से दुष्टात्माएँ निकल गए थे, वही आदमी कपड़े पहने और सचेत, यीशु के पैरों के पास बैठा है!
प्रत्यक्षदर्शी उन लोगों को बताते हैं कि वह आदमी किस तरह स्वस्थ किया गया था। वे सूअरों की अनोखी मृत्यु के बारे में भी बताते हैं। यह सुनने पर, लोगों के दिल पर एक बहुत बड़ा डर छा जाता है, और वे गंभीरतापूर्वक यीशु को उनका प्रदेश छोड़ जाने की बिनती करते हैं। वह उनकी बात मानकर कश्ती में बैठ जाता है। भूतपूर्व दुष्टात्मा-ग्रस्त मनुष्य यीशु से बिनती करता है कि उसे भी साथ चलने दिया जाए। लेकिन यीशु उस से कहता है: “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके यहोवा ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए हैं।”
आम तौर यीशु अपने ज़रिए स्वस्थ किए गए लोगों को आदेश देता है कि वे किसी से ने कहे, इसलिए कि वह नहीं चाहता कि लोग सनसनीखेज़ ख़बरों के आधार पर निर्णय लें। लेकिन यह अपवाद उचित है इसलिए कि यह भूतपूर्व दुष्टात्मा-ग्रस्त मनुष्य उन लोगों के बीच प्रचार करेगा, जिन से मिलने का मौका यीशु को संभवतः अब कभी न होगा। इसके अतिरिक्त, इस मनुष्य की उपस्थिति से यीशु की भलाई करने की शक्ति के बारे में साक्षी दी जाएगी, और इस से सूअरों की हानि के बाद कोई भी प्रतिकूल ख़बर व्यर्थ कर दी जाएगी।
यीशु के आदेशानुसार, भूतपूर्व दुष्टात्मा-ग्रस्त मनुष्य चला जाता है। वह सारे दिकापुलिस में वे सारी बातें घोषित करता है, जो यीशु ने उसके लिए की, और लोग बिल्कुल आश्चर्यचकित होते हैं। मत्ती ८:२८-३४; मरकुस ५:१-२०, न्यू.व.; लूका ८:२६-३९; प्रकाशितवाक्य २०:१-३.
◆ ऐसा शायद क्यों है कि जब कि दो दुष्टात्मा-ग्रस्त व्यक्ति मौजूद थे, एक ही पर ध्यान केंद्रित किया गया है?
◆ क्या दिखाता है कि दुष्टात्माएँ भविष्य में अथाह कुण्ड में डाले जाने के बारे में जानते हैं?
◆ प्रत्यक्ष रूप से, दुष्टात्माएँ मनुष्यों और जानवरों को आविष्ट करना क्यों पसंद करते हैं?
◆ यीशु भूतपूर्व दुष्टात्मा-ग्रस्त व्यक्ति के मामले में, यह आदेश देकर कि वह दूसरों को बताए कि उसने उसके लिए क्या किया था, अपवाद क्यों करता है?