रत्न मरकुस के सुसमाचार से
यहोवा के आत्मा ने मरकुस को यीशु के पार्थिव जीवन और सेवकाई का एक स्फूर्तिला विवरण लिखने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि इस सुसमाचार में नहीं कहा गया कि मरकुस उसका लेखक है, पपाइयस, जस्टिन मार्टर, टेर्टुलियन, ऑरिजेन, यूसेबियस, जेरोम, और अन्यों के लेखों में, जिनके लेखन हमारे सामान्य युग के पहले चार सदियों की अवधि में लिखे गए, इस बात का प्रमाण है।
परम्परा के अनुसार, प्रेरित पतरस ने इस सुसमाचार के लिए मूलभूत जानकारी दी। उदाहरणार्थ, ऑरिजेन ने कहा कि मरकुस ने “पतरस के आदेशों के अनुसार” इसे लिखा। लेकिन प्रत्यक्ष रूप से मरकुस को अन्य स्रोतों से भी जानकारी प्राप्य थी, इसलिए कि चेले उसकी माता के घर में मिलते थे। दरअसल, चूँकि मरकुस संभवतः वह “जवान” था जो यीशु के गिरफ़्तार करनेवालों की पकड़ से भाग निकला, उसका शायद मसीह से भी निजी संपर्क रहा होगा।—मरकुस १४:५१, ५२; प्रेरितों के काम १२:१२.
किस के लिए लिखी?
प्रत्यक्ष रूप से मरकुस ने अन्यजातीय पाठकों का विचार करके लिखा। उदाहरणार्थ, उसकी संक्षिप्त शैली रोमी स्वभाव के लिए उपयुक्त था। उसने “कुरबान” की परिभाषा “संकल्प हो चुका,” ऐसे की (७:११) और सूचित किया कि मन्दिर ज़ैतून पहाड़ पर से दिखायी देता था। (१३:३) मरकुस ने यह भी व्याख्या दी कि फरीसी “उपवास करते थे” और सदूकी “कहते हैं कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं।” (२:१८; १२:१८) ऐसी टीका-टिप्पणी यहूदी पाठकों के लिए अनावश्यक होती।
निश्चय ही, मरकुस का सुसमाचार पढ़ना किसी को भी फ़ायदेमंद हो सकता है। लेकिन कौनसी पूर्वपीठिका विशेषताएँ हमें उसके कुछ रत्नों का मूल्यांकन करने की मदद कर सकती हैं?
परमेश्वर का पुत्र, एक चमत्कार करनेवाला
मरकुस मसीह के परमेश्वर की शक्ति द्वारा किए चमत्कारों का विवरण देता है। उदाहरणार्थ, एक प्रसंग पर एक घर में इतनी भीड़ थी कि एक लकवाग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ बनने के लिए, उसे छत में खोदे गए छेद में से यीशु के पास उतारा जाना पड़ा। (२:४) चूँकि घर भरा हुआ था, उस आदमी को शायद किसी सीढ़ी पर से या बाहर वाली ज़ीनों पर से ऊपर लिया गया होगा। लेकिन छत में से खोदने की क्या ज़रूरत थी? अधिकांश छत सपाट थे और एक दीवार से दूसरे दीवार तक पहुँचनेवाली काँड़ियों पर रखे जाते थे। उन काँड़ियों के आड़े-तिरछे कड़ियाँ हुआ करती थीं जिन पर डालियाँ और सरकण्डे, इत्यादि हुआ करती थीं। उसके ऊपर मिट्टी की मोटी तह थी जिसके ऊपर चिकनी मिट्टी या चिकनी मिट्टी और चूना के पलस्तर की तह चढ़ायी गयी थी। इसलिए, यीशु के सामने आने के लिए, मनुष्यों को उस मिट्टी के छत में से खोदना पड़ा। लेकिन उनके ऐसा करने के बाद उन्हें क्या आशीष मिली! मसीह ने उस आदमी को स्वस्थ किया, और वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने परमेश्वर की महिमा की! (२:१-१२) यह क्या ही आश्वासन है कि यहोवा का पुत्र नयी दुनिया में अद्भुत रोगमुक्ति कार्य करेगा!
यीशु ने अपना एक चमत्कार एक नौके पर किया जब “तकिया पर” सोकर उठाए जाने के बाद उसने गलील की झील पर आयी आँधी को शान्त किया। (४:३५-४१, न्यू.व.) वह तकिया उस नरम किस्म की न थी जो हम आज बिस्तर पर सिर रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं। वह शायद बस एक ऊनी खाल ही था जिसपर खेवैये बैठा करते थे, या एक बोल्स्टर या जहाज़ के पिछले भाग में सीट के तौर से काम आनेवाला तकिया था। किसी भी तरह, जब यीशु ने समुन्दर से कहा, “शान्त रह, थम जा!” वहाँ उपस्थित लोगों को कार्यशील विश्वास का प्रमाण मिला, इसलिए कि “आँधी थम गयी और बड़ा चैन हो गया।”
डेकापोलिस में सेवकाई
गलील की झील पार करते हुए, यीशु ने डेकापोलिस, या दस-नगरी क्षेत्र में प्रवेश किया। हालाँकि इन नगरों में बड़ी यहूदी जनसंख्या थी, वे यूनानी या हेल्लेनी संकृति के केंद्र थे। वहाँ, गिरासेनियों के देश में, यीशु ने एक ऐसे आदमी को अशुद्ध आत्मा के कब्ज़े से छुड़ाया, जो “कब्रों में रहा करता था।”—५:१-२०.
कभी-कभी, चट्टानों से काटे गए कब्र पागलों का बसेरा, अपराधियों का डेरा, या ग़रीबों के रहने की जगह हुआ करते थे। (यशायाह २२:१६; ६५:२-४ से तुलना करें।) एक १९वीं सदी लेख के अनुसार, एक दर्शक, जो उस क्षेत्र गया जहाँ यीशु उस भूताविष्ट व्यक्ति से मिला, उसने ऐसे ही एक बसेरे के बारे में कहा: “कब्र अन्दर की तरफ़ से आठ फुट ऊँचा था, इसलिए कि पत्थर की देहरी से फ़र्श तक एक ढलवें चबूतरे की उतार थी। उसका परिमाण लम्बाई और चौडाई में लगभग बारह कदम था; लेकिन चूँकि दरवाज़े के सिवाय बाक़ी कहीं से भी कोई रोशनी नहीं मिलती थी, हम देख नहीं पाए कि उसमें एक भीतरी कक्ष था या नहीं, जैसा कि कुछ दूसरों में था। भीतर अब भी एक पूरी शवपेटिका थी, और यह अब उस परिवार के द्वारा मक्का, इत्यादि खाद्य-सामग्री रखने की पेटी के तौर से इस्तेमाल की जा रही थी, जिस से मरे हुए का यह बिगाड़ा गया कब्र इस प्रकार जीवितों का एक शीतल, और सुविधाजनक आश्रय बन गया था।”
यीशु और परम्परा
एक अवसर पर फरीसी और कुछ लिपिकों ने यह शिकायत की कि यीशु के शिष्यों ने बिना धोए हुए हाथों से खाते हैं। गैर-यहूदी पाठकों के लाभ के लिए मरकुस ने विवरण दिया कि फरीसी और अन्य यहूदी ‘तब तक नहीं खाते जब तक वे अपने हाथ कोहनियों तक धो नहीं लेते।’ बाजार से लौटने पर वे अपने आप को पानी छिड़कने के द्वारा साफ करने के बाद ही खाते थे और उनकी परम्पराओं में “कटोरों और लाटों और तांबे के बरतनों को धोना-मांजना” शामिल था।—७:१-४.
खाने से पहले अपने आप पर पाखण्डपूर्ण रीति से पानी छिड़कने के अलावा ये यहूदी उन बरतनों को, जो वे भोजन के समय उपयोग करते थे, बपतिस्मा देते थे या पानी में निमंजित करते थे। वे परम्परा से कितने घिरे हुए थे यह विद्वान् जॉन लाइटफुट द्वारा चित्रित किया गया है। राबिनी लेखों का उल्लेख करते हुए उन्होंने दिखाया कि काफी ध्यान ऐसी बातों को दिया जाता था जैसे पानी की मात्रा, ढंग, और धोने के लिए उचित समय। लाइटफुट ने एक ऐसे स्रोत का उल्लेख किया जो यह सूचित करता है कि कुछ यहूदी इसलिए खाने से पहले ध्यानपूर्वक धो लेते थे ताकि वे शिब्ता के द्वारा कोई हानि से दूर रह सकते थे, “एक ऐसी दुष्ट आत्मा जो रात को मनुष्यों के हाथों पर बैठती है और अगर कोई अपना भोजन बिना धोए हुए हाथों से छू लेता है तो वह आत्मा फिर उस भोजन पर बैठती है और उसे खतरा होता है।” यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि यीशु ने उन लिपिकों और फरीसियों की निन्दा की क्योंकि वे ‘परमेश्वर की आज्ञा को टालकर मनुष्यों की रीतियों को, मानते थे।—७:५-८.
यीशु की अन्तिम सार्वजनिक सेवकाई
गलील में उसकी बाद की सेवकाई और पेरिया में उसके कार्य के बारे में बताने के बाद मरकुस यरूशलेम में की और उसके चारों ओर की घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। उदाहरणार्थ, उसने एक ऐसे अवसर के बारे में बताया जब मसीह मन्दिर की तिजोरियों में पैसा डालनेवाले लोगों का निरीक्षण कर रहा था। यीशु ने देखा कि एक गरीब विधवा ने केवल ‘कम मूल्य के दो छोटे सिक्कों को दान दिया।’ फिर भी उसने कहा कि वह अन्य सभों से अधिक दी क्योंकि उन्होंने अपने अधिशेष से दिया जबकि ‘इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है।’ (१२:४१-४४) यूनानी मूल के अनुसार उसने दो लेप्टा का दिया था। लेप्टन यहूदी तांबे का या कांस्य सिक्कों में सब से छोटा था, और आज उसका आर्थिक मूल्य प्रायः उपेक्षणीय है। लेकिन इस गरीब औरत ने सच्ची उपासना के समर्थन में एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वह सब कुछ की जो वह कर सकती थी।—२ कुरिन्थियों ९:६, ७.
जैसे यीशु की सेवकाई समाप्त होने लगी, उससे पीलातूस द्वारा पूछताछ की गयी जिसका नाम और उपाधि ‘अधिपति’ १९६१ में कैसरिया में एक शिलालेख पर पाया गया। बहिर्वर्ती प्रदेशों में, जैसे यहूदिया में, एक राज्यपाल (अधिपति) के पास सैन्य निग्रह था, आर्थिक संचालन के लिए ज़िम्मेदार था, और एक न्यायकर्ता के रूप में कार्य करता था। पीलातूस के पास यीशू को छुडाने का अधिकार था लेकिन वह यीशु के विरोधियों के सामने झुक गया और उसे खम्बे पर चढाने के लिए दे देने और उस राजद्रोही खूनी बरब्बास को मुक्त करने के द्वारा भीड़ को संतुष्ट करने की कोशिश की।—१५:१-१५.
पीलातूस की बाद की ज़िन्दगी और मृत्यु के बारे में विभिन्न धारणाएं हैं। उदाहरणार्थ इतिहासकार यूसेबियस ने लिखा: “पीलातूस स्वयं, हमारे उद्धारकर्ता के समय का राज्यपाल, ऐसी विपत्तियों में शामिल हो गया कि वह अपना ही वधिक बन्ने में और आपने ही हाथ से खुद को सज़ा देने में मजबूर हो जाता है; ऐसे प्रतीत होता है कि दैवी न्याय उस पर आ पड़ने में देर नहीं की।” किन्तु, ऐसी एक सम्भावना के बावजूद, सब से महत्त्वपूर्ण मृत्यु यीशु की थी। वह रोमी सेना अफसर (शतपति) जो मसीह की मृत्यु और उससे सम्बन्धित आश्चर्यजनक घटनाओं को देखा वास्तव में सत्य बोला जब उसने कहा: “सचमुच यह मनुष्य परमेश्वर का पुत्र था।”
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Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.
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Israel Department of Antiquities and Museums; photograph from Israel Museum, Jerusalem