यीशु का जीवन और सेवकाई
दुःखियों के लिए संवेदना
फरीसियों की स्वार्थपरायण प्रथाओं के लिए उनकी भर्त्सना करने के बाद, यीशु अपने शिष्यों के साथ निकल जाते हैं। आप शायद याद करेंगे कि कुछ समय पहले, थोड़ा-सा विश्राम करने के हेतु, उन लोगों से दूर जाने की उनकी कोशिश व्यर्थ की गयी जब भीड़ों ने उन्हें ढूँढ़ निकाला। अब, अपने शिष्यों के साथ, वह सूर और सैदा के इलाके के लिए रवाना होते हैं, जो कि उत्तर की ओर कई मील दूर है। प्रत्यक्षतः यह इस्राएल की सीमाओं के पार एकमात्र सफ़र है जो यीशु अपने शिष्यों के साथ करते हैं।
रहने के लिए एक घर ढूँढ़ने के बाद, यीशु यह ज़ाहिर करते हैं कि वह नहीं चाहते कि किसी को उनका पता-ठिकाना मालूम पड़े। फिर भी, इस ग़ैर-इस्राएली क्षेत्र में भी, वह लोगों की नज़र से बच नहीं सकते। एक यूनानी औरत, जिसका जन्म यहाँ सूर के फीनीके में हुआ है, उन्हें ढूँढ़ निकालती है और बिनती करने लगती है: “हे प्रभु, दाऊद के सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है।” परन्तु, यीशु जवाब में एक शब्द भी नहीं कहते।
आख़िरकार, उनके शिष्य यीशु से कहते हैं: “इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है।”
उसकी ओर ध्यान न देने की अपनी वजह बताकर, यीशु कहते हैं: “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।”
परन्तु, वह औरत हार नहीं मानती। वह यीशु के पास आती है, उन्हें साष्टांग प्रणाम करके बिनती करती है: “हे प्रभु, मेरी सहायता कर!”
उस औरत के उत्साही निवेदन से यीशु का दिल किस तरह भर आया होगा! फिर भी, वह फिर से अपनी प्रथम ज़िम्मेदारी की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं, परमेश्वर की इस्राएल की जाति की सेवा करना। उसी समय, प्रत्यक्ष रूप से उसके विश्वास की परीक्षा लेने के लिए वह यहूदियों के ऐसे लोगों के ख़िलाफ़, जिनकी राष्ट्रिकता अलग है, पूर्वाग्रही दृष्टिकोण का सहारा लेते हैं, यह तर्क करते हुए: “लड़कों की रोटी लेकर छोटे कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” (न्यू.व.)
अपनी संवेदनाशील आवाज़ और मुख-भाव से, यीशु निश्चय ही ग़ैर-यहूदियों के प्रति अपनी कोमल भावनाएँ व्यक्त करते हैं। ग़ैर-इस्राएलियों का ज़िक्र “छोटे कुत्तों,” या कुत्ते के पिल्लों के तौर से करके, वह उनकी कुत्तों से की पूर्वाग्रही तुलना को कम कड़ा भी बनाते हैं। बुरा मानने के बजाय, वह औरत यीशु के यहूदी पूर्वाग्रहों के ज़िक्र को ही लेकर, यह बात विनम्र रूप से कहती है: “सत्य है प्रभु, पर छोटे कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उन के स्वामियों की मेज़ से गिरते हैं।”
“हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है,” यीशु कहते हैं। “जैसा तू चाहती है, तेरे लिए वैसा ही हो।” और वैसे ही होता है! जब वह अपने घर लौटती है, वह अपनी बेटी को खाट पर पड़ी हुई, पूरी तरह से स्वस्थ पाती है।
सैदा के तटीय इलाके से निकलकर, यीशु और उनके शिष्य देश से होते हुए यरदन नदी के नदी-शीर्ष की ओर जाते हैं। प्रत्यक्ष रूप से वे गलील की समुद्र से उत्तर की ओर किसी जगह से यरदन नदी पार करते हैं और दिकापुलिस देश में प्रवेश करते हैं, जो कि समुद्र के पूरब की ओर है। वहाँ वे एक पर्वत पर चढ़ते हैं, लेकिन भीड़ उन्हें ढूँढ़ निकालती है और यीशु के पास अपने लँगड़ों, अपंगों, अँधों, गूँगों और ऐसे कई लोगों को ले आते हैं, जो अन्य प्रकार से बीमार या विकलांग हैं। वे उन लोगों को यीशु के पाँवों पर लगभग फेंकते ही हैं, और वह उन्हें चंगा करते हैं। जब लोग देखते हैं कि गूँगे बोल रहे हैं, लँगड़े चल रहे हैं, और अँधे देख रहे हैं, तब वे चकित होके इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति करते हैं।
एक आदमी जो बहरा है और मुश्किल से बोल सकता है, उसपर यीशु ख़ास ध्यान देते हैं। बधिर लोग अक़सर आसानी से लज्जा महसूस करते हैं, ख़ासकर एक भीड़ में। शायद यीशु इस आदमी की ख़ास आशंका को ग़ौर करते हैं। इसलिए यीशु उसे संवेदनशील रूप से भीड़ में से कहीं अकेले ले जाते हैं। जब वे एकान्त में होते हैं, यीशु संकेत देते हैं कि वह उसके लिए क्या करने जा रहे हैं। वह उस आदमी के कानों में अपनी उँगलियाँ डालते हैं और, थूकने के बाद, उसकी जीभ को हाथ लगाते हैं। फिर, आकाश की ओर देखकर, यीशु गहराई से आह भरते हैं और कहते हैं: “खुल जा।” इस पर, उस आदमी की श्रवण-शक्ति उसे वापस मिल जाती है, और वह सामान्य रूप से बोल सकता है।
जब यीशु इतने सारे उपचारों को अनुष्ठित करते हैं, तब भीड़ क़दरदानी दिखाती है: “उस ने जो कुछ किया सब अच्छा किया है; वह बहरों को सुनने की और गूँगों को बोलने की शक्ति देता है।” मत्ती १५:२१-३१; मरकुस ७:२४-३७.
◻ यीशु उस यूनानी स्त्री की बेटी को फ़ौरन ही स्वस्थ क्यों नहीं करते?
◻ बाद में, यीशु अपने शिष्यों को कहाँ ले जाते हैं?
◻ यीशु संवेदनशील रूप से उस बहरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, जो कि मुश्किल से बोल सकता भी है?