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“भारी तादाद में लोग उसके पास आए”मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
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2 रास्ते में यीशु की कुछ धर्म-गुरुओं के साथ ज़बरदस्त बहस होती है। इसके बाद वहाँ थोड़ी हलचल होती है। कुछ लोग अपने बच्चों को यीशु के पास लाते हैं। शायद ये बच्चे अलग-अलग उम्र के हैं, क्योंकि मरकुस ने इन बच्चों के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया, वही शब्द उसने पहले 12 साल की एक बच्ची के लिए इस्तेमाल किया था। जबकि लूका ने इन बच्चों के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया उसका अनुवाद ‘नन्हे-मुन्ने’ किया जा सकता है। (लूका 18:15; मरकुस 5:41, 42; 10:13) इसमें कोई शक नहीं कि बच्चे जहाँ होते हैं वहाँ थोड़ा-बहुत शोरगुल और चहल-पहल भी होती है। यीशु के चेले माता-पिताओं को डाँट देते हैं और उन्हें वहाँ से जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यीशु बहुत ही व्यस्त है, उसके पास बच्चों के लिए बिलकुल भी वक्त नहीं। इस पर यीशु क्या करता है?
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“भारी तादाद में लोग उसके पास आए”मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
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4, 5. (क) हम क्यों इतने यकीन के साथ कह सकते हैं कि यीशु के पास कोई भी बेझिझक आ सकता था? (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
4 यीशु अगर कठोर स्वभाव का या घमंडी होता या अगर वह मिलनसार न होता, तो शायद वे बच्चे उसके पास नहीं आते, न ही उनके माता-पिता बेझिझक उसके पास आते। ज़रा इस घटना को अपने मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। देखिए कि यीशु बच्चों पर अपना प्यार लुटा रहा है, उन्हें आशीष दे रहा है और यह बता रहा है कि परमेश्वर की नज़र में बच्चों का बहुत मोल है। यह सब देखकर बच्चों के माता-पिताओं के चेहरे कैसे खुशी से खिल उठे होंगे! यह सच है कि उस वक्त यीशु के कंधों पर सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी का बोझ था, फिर भी वही एक ऐसा इंसान था जिसके पास कोई भी बेझिझक आ सकता था।
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