मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
2-8 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 26
“फसह और स्मारक के बीच समानताएँ और असमानताएँ”
अ.बाइ. मत 26:17-20 तसवीर
फसह का खाना
1 फसह के खाने में ये चीज़ें ज़रूर होती थीं: (1) भुना हुआ मेम्ना (इसकी कोई हड्डी नहीं तोड़ी जानी थी), (2) बिन-खमीर की रोटी और (3) कड़वा साग। (निर्ग 12:5, 8; गि 9:11) मिशना के मुताबिक, कड़वा साग लेट्यूस (सलाद पत्ता), कासनी, चंद्रशूर या सिंहपर्णी हो सकता है। ज़ाहिर है कि इस साग से इसराएलियों को मिस्र में गुलामी के अपने कड़वे अनुभव की याद आती होगी। यीशु ने बिन-खमीर की रोटी अपने परिपूर्ण शरीर की निशानी के तौर पर इस्तेमाल की। (मत 26:26) प्रेषित पौलुस ने यीशु को “हमारे फसह का मेम्ना” कहा। (1कुर 5:7) पहली सदी के आते-आते फसह के खाने में दाख-मदिरा (4) भी शामिल की जाने लगी। यीशु ने दाख-मदिरा को अपने खून की निशानी के तौर पर इस्तेमाल किया, जो बलिदान के तौर पर बहाया जाता।—मत 26:27, 28.
अ.बाइ. मत 26:26 अध्ययन नोट
निशानी: यूनानी शब्द एस्टीन (शाब्दिक मतलब “है”) का यहाँ मतलब है, “सूचित करना; दर्शाना; चिन्ह; मतलब।” प्रेषित अच्छी तरह समझते थे कि एस्टीन का यही मतलब है क्योंकि इस मौके पर यीशु ज़िंदा था और इस मायने में उसका परिपूर्ण शरीर उनके सामने था। साथ ही, बिन-खमीर की जिस रोटी को वे खानेवाले थे वह भी उनके सामने थी। इसलिए वह रोटी उसका सचमुच का शरीर नहीं हो सकती थी। गौर करने लायक बात है कि यही यूनानी शब्द मत 12:7 में इस्तेमाल हुआ है और कई अनुवादों में इसके लिए शब्द “मतलब” लिखा है।
अ.बाइ. मत 26:28 अध्ययन नोट
खून . . . जो करार को पक्का करता है: यहोवा और अभिषिक्त मसीहियों के बीच नया करार यीशु के बलिदान से लागू हुआ। (इब्र 8:10) यीशु ने यहाँ वही शब्द इस्तेमाल किए जो मूसा ने सीनै पहाड़ पर इस्तेमाल किए थे, जब उसने बिचवई बनकर यहोवा और इसराएलियों के बीच कानून का करार लागू करवाया था। (निर्ग 24:8; इब्र 9:19-21) जिस तरह बैलों और बकरों के खून से यहोवा और इसराएल राष्ट्र के बीच कानून का करार पक्का हुआ, उसी तरह यीशु के खून से यहोवा और ‘परमेश्वर के इसराएल’ के बीच नया करार पक्का हुआ। यह करार ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन से लागू हुआ।—इब्र 9:14, 15.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मत 26:17 अध्ययन नोट
बिन-खमीर की रोटी के त्योहार के पहले दिन: बिन-खमीर की रोटी का त्योहार नीसान 15 को शुरू होता था यानी फसह (नीसान 14) के अगले दिन और यह त्योहार सात दिन तक मनाया जाता था। (अति. ख15 देखें।) लेकिन यीशु के दिनों में फसह इस त्योहार से इस कदर जुड़ गया था कि पूरे आठ दिनों को कभी-कभी “बिन-खमीर की रोटी का त्योहार” कहा जाता था। (लूक 22:1) इस संदर्भ में शब्द “पहले दिन” का अनुवाद “एक दिन पहले” भी किया जा सकता है। (यूह 1:15, 30 से तुलना करें, जहाँ “पहले दिन” के यूनानी शब्द [प्रोटोस] का अनुवाद “पहले” किया गया है। इन आयतों में लिखा है, “वह मुझसे पहले [प्रोटोस] से वजूद में था।”) इसलिए यूनानी शास्त्र के मूल पाठ और यहूदियों के दस्तूर के मुताबिक, यीशु के चेलों ने उससे यह सवाल नीसान 13 को पूछा होगा। फिर नीसान 13 को दिन के वक्त चेलों ने फसह की तैयारी की और उसी दिन “शाम होने पर” जब नीसान 14 शुरू हुआ तो उन्होंने फसह मनाया।—मर 14:16, 17.
अ.बाइ. मत 26:39 अध्ययन नोट
यह प्याला . . . हटा दे: बाइबल में अकसर “प्याला” लाक्षणिक तौर पर इस्तेमाल हुआ है जिसका मतलब है, एक व्यक्ति के लिए परमेश्वर की मरज़ी या उसका “तय हिस्सा।” (मत 20:22 का अध्ययन नोट देखें।) यीशु को बेशक इस बात की चिंता रही होगी कि परमेश्वर की निंदा करने और देशद्रोह के इलज़ाम में उसे जो मौत दी जानेवाली है उससे परमेश्वर की बदनामी हो सकती है। इसलिए उसने प्रार्थना की कि यह “प्याला” उसके सामने से हटा लिया जाए।
9-15 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 27-28
“लोगों के पास जाएँ और उन्हें चेला बनाएँ—क्यों, कहाँ, कैसे?”
‘तुम जाकर लोगों को चेला बनाओ’
4 यीशु को अपनी कलीसिया पर अधिकार है, और सन् 1914 से परमेश्वर के स्थापित नए राज्य में भी उसे अधिकार मिला है। (कुलुस्सियों 1:13; प्रकाशितवाक्य 11:15) वही प्रधान स्वर्गदूत है, इसलिए करोड़ों दूतों की स्वर्गीय सेना उसके अधीन है। (1 थिस्सलुनीकियों 4:16; 1 पतरस 3:22; प्रकाशितवाक्य 19:14-16) पिता ने यीशु को उस ‘सारी प्रधानता और सारे अधिकार और सामर्थ’ का अंत करने की शक्ति दी है जो धार्मिकता के उसूलों के खिलाफ हैं। (1 कुरिन्थियों 15:24-26; इफिसियों 1:20-23) यीशु का अधिकार सिर्फ ज़िंदा लोगों पर ही नहीं है। वह “जीवतों” के साथ-साथ ‘मरे हुओं का भी न्यायी’ है और परमेश्वर ने उसे मरे हुओं को जिलाने की शक्ति दी है। (प्रेरितों 10:42; यूहन्ना 5:26-28) बेशक इतना बड़ा अधिकारी जब कोई हुक्म देता है, तो उसे गंभीरता से लेना बहुत ज़रूरी है। इसीलिए हम ‘लोगों को चेला बनाने’ की मसीह की आज्ञा, पूरे आदर के साथ और खुशी-खुशी मानते हैं।
अ.बाइ. मत 28:19 अध्ययन नोट
सब राष्ट्रों के लोगों: यूनानी शब्द का शाब्दिक अनुवाद है “सब राष्ट्रों,” लेकिन संदर्भ से पता चलता है कि इस शब्द का मतलब है, सभी राष्ट्र के लोग। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें का यूनानी सर्वनाम पुल्लिंग है और इसका मतलब है लोग, जबकि “राष्ट्र” का यूनानी सर्वनाम नपुंसक लिंग है। “सब राष्ट्रों के लोगों” को प्रचार करने की यह आज्ञा नयी थी। यीशु की प्रचार सेवा से पहले, शास्त्र में बताया गया है कि गैर-यहूदियों को इसराएल में तभी स्वीकार किया जाता था जब वे यहोवा की सेवा करने के इरादे से आते थे। (1रा 8:41-43) लेकिन इस नयी आज्ञा में यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे न सिर्फ पैदाइशी यहूदियों को बल्कि दूसरे लोगों को भी प्रचार करें। इस तरह उसने ज़ोर दिया कि मसीहियों को पूरी दुनिया में चेला बनाने का काम करना है।—मत 10:1, 5-7; प्रक 7:9; मत 24:14 का अध्ययन नोट देखें।
चेला बनना सिखाओ: यूनानी क्रिया मथेत्यूयो का अनुवाद “सिखाना” किया जा सकता है ताकि लोगों को शिष्य या चेला बनाया जा सके। (मत 13:52 से तुलना करें, जहाँ इसका अनुवाद “सिखाया गया है” किया गया है।) “बपतिस्मा दो” और “सिखाओ” क्रियाएँ दिखाती हैं कि ‘चेला बनाने’ में क्या-क्या शामिल है।
अ.बाइ. मत 28:20 अध्ययन नोट
उन्हें . . . सिखाओ: जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सिखाना” किया जाता है उसमें हिदायतें देना, समझाना, दलीलें देकर कायल करना और सबूत देना भी शामिल है। (मत 3:1; 4:23 के अध्ययन नोट देखें।) यीशु ने कहा कि लोगों को वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी उसने आज्ञा दी है। यह काम लगातार किया जाना है। इसमें यह सिखाना भी शामिल है कि वे कैसे यीशु की शिक्षाएँ दूसरों को सिखा सकते हैं, खुद उन्हें लागू कर सकते हैं और उसकी मिसाल पर चल सकते हैं।—यूह 13:17; इफ 4:21; 1पत 2:21.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मत 27:51 अध्ययन नोट
मंदिर: यहाँ यूनानी शब्द नेयोस का मतलब है, मंदिर की मुख्य इमारत जिसमें पवित्र और परम-पवित्र भाग हैं।
परदा: कढ़ाई किया हुआ यह खूबसूरत परदा मंदिर के पवित्र भाग को परम-पवित्र भाग से अलग करता था। यहूदियों की मान्यता है कि यह परदा करीब 18 मी. (60 फुट) लंबा, 9 मी. (30 फुट) चौड़ा और 7.4 से.मी. (2.9 इंच) मोटा था। इस भारी परदे को दो हिस्सों में फाड़कर यहोवा ने न सिर्फ यह ज़ाहिर किया कि वह अपने बेटे के कातिलों पर कितना क्रोधित है बल्कि यह भी ज़ाहिर किया कि अब इंसानों का स्वर्ग में दाखिल होना मुमकिन है।—इब्र 10:19, 20; शब्दावली देखें।
अ.बाइ. मत 28:7 अध्ययन नोट
उसके चेलों को बताओ कि उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया गया है: चेलों में से सबसे पहले इन औरतों को बताया गया कि यीशु ज़िंदा हो गया है। यही नहीं, इन्हें यह भी हिदायत दी गयी कि वे जाकर इस बारे में दूसरे चेलों को बताएँ। (मत 28:2, 5, 7) एक यहूदी परंपरा के मुताबिक (जो शास्त्र पर आधारित नहीं थी) औरतों को अदालत में गवाही देने की इजाज़त नहीं थी। लेकिन यहोवा के स्वर्गदूत ने इन औरतों को खुशी की यह खबर देने का काम सौंपकर उनका आदर किया।
16-22 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 1-2
“तेरे पाप माफ किए गए”
जीज़स द वे पेज 67 पै 3-5
“तेरे पाप माफ किए गए”
यीशु एक घर में बैठा लोगों को सिखा रहा है। वह घर लोगों से खचाखच भरा हुआ है। तभी चार लोग लकवे के मारे एक आदमी को खाट पर लिटाकर वहाँ लाते हैं। वे चाहते हैं कि यीशु उनके इस दोस्त को चंगा करे। मगर भीड़ की वजह से वे “उसे अंदर यीशु के पास नहीं ले जा” पाते। (मरकुस 2:4) ज़रा सोचिए, वे कितने निराश हो गए होंगे। फिर वे क्या करते हैं? वे घर की छत पर चढ़ जाते हैं और छत खोदकर खोल देते हैं और लकवे के मारे आदमी को उसकी खाट समेत छत से नीचे उतार देते हैं।
क्या यीशु उन लोगों पर गुस्सा हो जाता है कि वे इस तरह बीच में क्यों आ गए? जी नहीं, इसके बजाय वह उनका विश्वास देखकर दंग रह जाता है और लकवे के मारे आदमी से कहता है, “तेरे पाप माफ किए गए।” (मत्ती 9:2) पर क्या यीशु के पास लोगों के पाप माफ करने का अधिकार है? शास्त्री और फरीसी इस बात को लेकर बखेड़ा खड़ा कर देते हैं और कहते हैं, “यह आदमी क्या कह रहा है! यह तो परमेश्वर की निंदा कर रहा है। परमेश्वर के सिवा और कौन पापों को माफ कर सकता है?”—मरकुस 2:7.
यीशु जानता है कि वे क्या सोच रहे हैं। वह उनसे कहता है, “तुम क्यों अपने मन में ये बातें सोच रहे हो? इस लकवे के मारे आदमी से क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना, ‘उठ, अपनी खाट उठा और चल-फिर’?” (मरकुस 2:8, 9) यीशु भविष्य में जो बलिदान देनेवाला है, उसके आधार पर वह उस आदमी के पाप माफ कर सकता है।
अ.बाइ. मर 2:9 अध्ययन नोट
क्या कहना ज़्यादा आसान है: यह कहना किसी के लिए भी आसान था कि वह पाप माफ कर सकता है, क्योंकि इस दावे को सच साबित करने के लिए किसी सबूत की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन यह कहना कि उठ . . . और चल-फिर आसान नहीं था। इसके लिए यीशु को चमत्कार करना होता ताकि सब देख पाते कि उसके पास पाप माफ करने का भी अधिकार है। इस घटना और यश 33:24 के मुताबिक, हम इसलिए बीमार होते हैं क्योंकि हम पापी हैं।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मर 1:11 अध्ययन नोट
स्वर्ग से आवाज़ सुनायी दी: खुशखबरी की किताबों में बताया गया है कि यहोवा ने तीन मौकों पर इंसानों से बात की और यह पहला मौका था।—मर 9:7; यूह 12:28 के अध्ययन नोट देखें।
तू मेरा . . . बेटा है: स्वर्ग में यीशु परमेश्वर का बेटा था। (यूह 3:16) धरती पर जब वह इंसान के रूप में पैदा हुआ तब भी “परमेश्वर का बेटा” कहलाया क्योंकि वह आदम की तरह परिपूर्ण था। (लूक 1:35; 3:38) लेकिन ऐसा लगता है कि यहाँ परमेश्वर ने जब उसे अपना बेटा कहा तो वह सिर्फ उसकी पहचान नहीं करा रहा था। सबूत दिखाते हैं कि यह बात कहकर और पवित्र शक्ति उँडेलकर वह ज़ाहिर कर रहा था कि यीशु, जो अब तक आम आदमी था, अब से उसका चुना हुआ बेटा है। वह इस मायने में “दोबारा पैदा” हुआ कि उसके पास वापस स्वर्ग में जीवन पाने की आशा है, जहाँ परमेश्वर उसे राजा और महायाजक ठहराएगा।—यूह 3:3-6; 6:51; लूक 1:31-33 और इब्र 2:17; 5:1, 4-10; 7:1-3 से तुलना करें।
मैंने तुझे मंज़ूर किया है: या “जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ; जिससे मैं बहुत खुश हूँ।” यही शब्द मत 12:18 में इस्तेमाल हुए हैं जहाँ यश 42:1 की बात लिखी है। इस आयत में वादा किए गए मसीहा या मसीह के बारे में बताया गया है। अपने बेटे यीशु के बारे में परमेश्वर का ऐलान और उस पर पवित्र शक्ति उँडेलना इस बात का सबूत था कि वही वादा किया गया मसीहा है।—मत 3:17; 12:18 के अध्ययन नोट देखें।
अ.बाइ. मर 2:28 अध्ययन नोट
सब्त के दिन का . . . प्रभु: खुद को यह उपाधि देकर (मत 12:8; लूक 6:5) यीशु ज़ाहिर कर रहा था कि उसे सब्त के दिन पर अधिकार दिया गया है ताकि वह अपने पिता का काम पूरा कर सके। (यूह 5:19; 10:37, 38 से तुलना करें।) यीशु ने जो अनोखे चमत्कार किए थे उनमें से कुछ उसने सब्त के दिन ही किए। इनमें बीमारों को ठीक करना शामिल था। (लूक 13:10-13; यूह 5:5-9; 9:1-14) ज़ाहिर है कि यह इस बात की झलक थी कि जब वह धरती पर राज करेगा तो वह कैसे लोगों को राहत दिलाएगा। उसके राज में सब्त के दिन की तरह सबको विश्राम मिलेगा।—इब्र 10:1.
23-29 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 3-4
“सब्त के दिन चंगाई”
जीज़स द वे पेज 78 पै 1-2
सब्त के दिन क्या करना सही है?
एक और सब्त के दिन यीशु एक सभा-घर में जाता है। यह शायद गलील का कोई सभा-घर है। यहाँ यीशु एक आदमी को देखता है, जिसका दायाँ हाथ सूखा हुआ है। (लूका 6:6) शास्त्री और फरीसी यीशु पर नज़र जमाए हुए हैं। किसलिए? वे यीशु से पूछते हैं, “क्या सब्त के दिन बीमारों को ठीक करना सही है?” इससे पता चलता है कि वे किस इरादे से यीशु पर नज़र रखे हुए हैं।—मत्ती 12:10.
यहूदी धर्म-गुरुओं का मानना है कि सब्त के दिन सिर्फ उसका इलाज किया जा सकता है, जिसकी जान खतरे में हो। इसका मतलब है कि अगर सब्त के दिन किसी की हड्डी टूट जाए या किसी को मोच आ जाए, तो उसका इलाज करना मना है, क्योंकि उसकी जान खतरे में नहीं है। इससे साफ पता चलता है कि शास्त्रियों और फरीसियों ने यीशु से वह सवाल इसलिए नहीं किया कि उन्हें उस सूखे हाथवाले आदमी पर दया आ रही है और वे चाहते हैं कि वह चंगा हो जाए, बल्कि इसलिए कि वे यीशु को दोषी ठहराने का बहाना ढूँढ़ रहे हैं।
जीज़स द वे पेज 78 पै 3
सब्त के दिन क्या करना सही है?
मगर यीशु धर्म-गुरुओं की टेढ़ी सोच अच्छी तरह जानता है। शास्त्र में सिर्फ यह नियम था कि सब्त के दिन काम करना मना है, मगर धर्म-गुरुओं ने इस बारे में ढेर सारे सख्त नियम बना दिए हैं, जो शास्त्र पर आधारित नहीं हैं। (निर्गमन 20:8-10) उन्होंने यीशु को पहले भी सब्त के दिन भले काम करने की वजह से दोषी ठहराया था। यीशु उन लोगों के सवाल का मुँह-तोड़ जवाब देने के लिए सूखे हाथवाले आदमी से कहता है, “उठ और यहाँ बीच में आ।”—मरकुस 3:3.
अ.बाइ. मर 3:5 अध्ययन नोट
बहुत दुखी हुआ और उसने गुस्से से भरकर: सिर्फ मरकुस ने लिखा कि इस मौके पर जब यीशु ने धर्म गुरुओं के दिलों की कठोरता देखी, तो उसे कैसा महसूस हुआ। (मत 12:13; लूक 6:10) यीशु की भावनाओं के बारे में मरकुस को पतरस ने बताया होगा, जो खुद एक भावुक इंसान था।—“मरकुस की किताब पर एक नज़र” देखें।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मर 3:29 अध्ययन नोट
पवित्र शक्ति के खिलाफ निंदा की बातें कहेगा: निंदा की बातों का मतलब है, ऐसी बातें जो परमेश्वर या पवित्र चीज़ों के खिलाफ कही जाती हैं, या जिनसे परमेश्वर की बदनामी या उसका अपमान होता है। परमेश्वर ही पवित्र शक्ति देता है, इसलिए जानबूझकर उस शक्ति के कामों का विरोध करना या उन्हें नकारना परमेश्वर की निंदा करना है। जैसे मत 12:24, 28 और मर 3:22 में लिखा है, यहूदी धर्म गुरु जानते थे कि यीशु पवित्र शक्ति की मदद से चमत्कार कर रहा है, फिर भी उन्होंने कहा कि वह शैतान की ताकत से चमत्कार कर रहा है।
वह ऐसे पाप का दोषी होगा जो कभी नहीं मिटेगा: मालूम पड़ता है कि यहाँ जानबूझकर किए गए ऐसे पाप की बात की गयी है, जिसका अंजाम हमेशा का विनाश होता है। ऐसे पाप की माफी के लिए कोई बलिदान नहीं है।—इसी आयत में पवित्र शक्ति के खिलाफ निंदा की बातें कहेगा पर अध्ययन नोट और इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मत 12:31 का अध्ययन नोट देखें।
क्या आप ‘शास्त्रों का मतलब समझते’ हैं?
6 हम इस मिसाल से क्या सीख सकते हैं? सबसे पहले, हमें इस बात को कबूल करना चाहिए कि बाइबल विद्यार्थी सच्चाई में कितनी जल्दी तरक्की करेगा यह हमारे हाथ में नहीं है। हालाँकि हम विद्यार्थी की मदद करने और उसे सहारा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, लेकिन बपतिस्मा लेने के लिए हम कभी उस पर दबाव नहीं डालते। इसके बजाय, हम नम्रता से इस बात को कबूल करते हैं कि उसे खुद ही फैसला लेना होगा कि वह परमेश्वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करेगा या नहीं। हमें इस बात को याद रखना चाहिए कि यहोवा एक व्यक्ति के समर्पण को सिर्फ तभी कबूल करता है, जब वह यहोवा के लिए प्यार से उभारे जाकर खुद अपनी मरज़ी से उसकी सेवा करने का फैसला करता है।—भज. 54:6; 110:3.
7 दूसरा, इस मिसाल से हम जो सबक सीखते हैं, उसे समझने से हमें मदद मिलेगी कि जब हम अपने बाइबल विद्यार्थियों को शुरू-शुरू में तरक्की करते नहीं देखते, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। हमें सब्र रखना चाहिए। (याकू. 5:7, 8) हमारे खूब मेहनत करने के बावजूद भी अगर हमारा बाइबल विद्यार्थी यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित नहीं करता, तो हमें खुद को दोष नहीं देना चाहिए। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम अच्छे शिक्षक नहीं हैं। यहोवा सच्चाई के बीज को सिर्फ ऐसे दिलों में बढ़ने देता है, जो नम्र हों और खुद में बदलाव लाने के लिए तैयार हों। (मत्ती 13:23) इसलिए हम प्रचार काम में कितने असरदार हैं, यह हमें इस बात से नहीं आँकना चाहिए कि हमारे कितने विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया है। खुद यहोवा भी प्रचार काम में हमारी कामयाबी को इस बात से नहीं आँकता कि हमारे बाइबल विद्यार्थी कितनी तरक्की करते हैं। इसके बजाय, वह हमारी मेहनत की कदर करता है।—लूका 10:17-20; 1 कुरिंथियों 3:8 पढ़िए।
8 तीसरा, एक व्यक्ति के दिल में राज का बीज किस तरह बढ़ रहा है यह हमें हमेशा नज़र नहीं आता। मिसाल के लिए, एक मिशनरी भाई एक जोड़े के साथ अध्ययन कर रहा था, जिन्हें सिगरेट पीने की आदत थी। एक दिन उन्होंने उस मिशनरी से कहा कि वे बपतिस्मा-रहित प्रचारक बनना चाहते हैं। मिशनरी ने उन्हें याद दिलाया कि पहले उन्हें सिगरेट पीना छोड़ना होगा। जब इस जोड़े ने भाई को बताया कि उन्होंने कुछ महीने पहले ही सिगरेट पीना छोड़ दिया था, तो भाई को बहुत ताज्जुब हुआ। किस बात ने इस जोड़े को यह फैसला लेने के लिए उभारा था? उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि अगर वे उस भाई के सामने न पीएँ, मगर चोरी-छिपे पीएँ, तब भी वे यहोवा की नज़रों से नहीं बच सकते और यहोवा को कपट से सख्त नफरत है। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि अगर उन्हें सिगरेट पीना ही है, तो वे भाई के सामने पीएँगे या फिर इसे पूरी तरह छोड़ देंगे। यहोवा के लिए उनके दिल में जो प्यार बढ़ रहा था, उस प्यार ने उन्हें उकसाया कि वे सही फैसला लें। जी हाँ, राज का बीज उनके दिल में बढ़ रहा था, बस वह भाई इस बात से बेखबर था!
जीएँ मसीहियों की तरह
“कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ”
अ.बाइ. मर 4:9 अध्ययन नोट
कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ: बीज बोनेवाले की मिसाल देने से पहले यीशु ने कहा, “ध्यान से सुनो।” (मर 4:3) फिर मिसाल के आखिर में उसने इस आयत में लिखे शब्द कहे। इस तरह उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि उसके चेलों के लिए उसकी सलाह सख्ती से मानना ज़रूरी है। इसी तरह का बढ़ावा इन आयतों में दिया गया है: मत 11:15; 13:9, 43; मर 4:23; लूक 8:8; 14:35; प्रक 2:7, 11, 17, 29; 3:6, 13, 22; 13:9.
30 अप्रैल–6 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 5-6
“हमारे अपने जो नहीं रहे, उन्हें यीशु ज़िंदा कर सकता है”
अ.बाइ. मर 5:39 अध्ययन नोट
मरी नहीं बल्कि सो रही है: बाइबल में अकसर मौत की तुलना नींद से की गयी है। (भज 13:3; यूह 11:11-14; प्रेष 7:60; 1कुर 7:39; 15:51; 1थि 4:13) यीशु उस लड़की को ज़िंदा करनेवाला था, इसीलिए शायद उसने ऐसा कहा होगा। वह दिखाना चाहता था कि जैसे गहरी नींद से लोगों को जगाया जा सकता है, वैसे ही मरे हुओं को ज़िंदा किया जा सकता है। लड़की को ज़िंदा करने की ताकत यीशु को अपने पिता से मिली थी, “जो मरे हुओं को ज़िंदा करता है और जो बातें अब तक पूरी नहीं हुई हैं उनके बारे में ऐसे बात करता है मानो वे पूरी हो चुकी हों।”—रोम 4:17.
जीज़स द वे पेज 118 पै 6
एक छोटी लड़की ज़िंदा हो जाती है!
यीशु ने इससे पहले जब भी किसी को चंगा किया, तो उससे कहा कि वह यह बात सब लोगों में न फैलाए। इस बार भी वह लड़की के माता-पिता से यही कहता है। मगर वे इतने खुश हैं कि उनसे रहा नहीं जाता। वे और दूसरे लोग यह खबर “उस पूरे इलाके में” फैला देते हैं। (मत्ती 9:26) अगर हम उनकी जगह होते, तो शायद हम भी यही करते। इससे पहले भी एक बार यीशु ने एक व्यक्ति को ज़िंदा किया था।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मर 5:19 अध्ययन नोट
रिश्तेदारों को बता: आम तौर पर यीशु यह हिदायत देता था कि उसके चमत्कारों के बारे में किसी को न बताया जाए (मर 1:44; 3:12; 7:36), मगर यहाँ उसने इस आदमी से कहा कि वह जाकर अपने रिश्तेदारों को बताए कि उसके साथ क्या हुआ है। यीशु ने शायद ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसे उस इलाके से जाने को कहा गया था और इस वजह से उसे लोगों को गवाही देने का मौका नहीं मिलता। साथ ही, उस आदमी के ऐसा करने से सूअरों के नाश होने की खबर सुनकर लोगों में खलबली नहीं मचती।
अ.बाइ. मर 6:11 अध्ययन नोट
अपने पैरों की धूल झाड़ देना: चेलों का ऐसा करना दिखाता कि परमेश्वर उस घर के लोगों का जो न्याय करता उसके लिए वे ज़िम्मेदार नहीं होते। ये शब्द मत 10:14 और लूक 9:5 में भी पाए जाते हैं। इन शब्दों के साथ-साथ मरकुस ने यह भी लिखा: ताकि उन्हें गवाही मिले और लूका ने लिखा, “ताकि उनके खिलाफ गवाही हो।” पौलुस और बरनबास जब पिसिदिया इलाके के अंताकिया शहर में थे तो उन्होंने भी यह हिदायत मानी। (प्रेष 13:51) पौलुस जब कुरिंथ में था तो उसने कुछ इससे मिलता-जुलता ही किया। उसने अपने कपड़े झाड़े और वहाँ के लोगों से कहा, “तुम्हारा खून तुम्हारे ही सिर पड़े। मैं निर्दोष हूँ।” (प्रेष 18:6) पैरों की धूल झाड़ना, इस तरह के व्यवहार से चेले शायद वाकिफ थे। धर्मी होने का दम भरनेवाले यहूदी जब गैर-यहूदियों के देश से सफर करके आते थे, तो अपने इलाकों में घुसने से पहले पैरों की धूल झाड़ देते थे क्योंकि वे सोचते थे कि उस देश की मिट्टी अशुद्ध है। लेकिन ज़ाहिर है कि जब यीशु ने अपने चेलों को यह हिदायत दी तो उसके मन में यह बात नहीं थी।