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हरेक अपने-अपने अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेगाप्रहरीदुर्ग—2003 | मई 15
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एक बार फिर यीशु ने उस जाति की बुरी आध्यात्मिक स्थिति को बताने के लिए अंजीर के पेड़ का दृष्टांत दिया। अपनी मौत के चार दिन पहले, बैतनिय्याह से यरूशलेम की ओर जाते वक्त उसने एक अंजीर का पेड़ देखा जिसमें बहुत सारी पत्तियाँ थीं मगर एक भी फल नहीं था। जबकि पत्तियों के साथ-साथ ही पहली कटनी के अंजीर भी उगने लगते हैं और कभी-कभी पत्तियों के पहले ही आ जाते हैं। तो अब इस पेड़ पर फल न होना यही दिखाता है कि यह पेड़ बेकार था।—मरकुस 11:13, 14.b
यहूदी जाति का धोखा देनेवाला बाहरी रूप उस फल न लानेवाले अंजीर के पेड़ की तरह ही था जो दिखने में तंदुरुस्त लगता था। वह राष्ट्र भी ऐसा फल नहीं ला सका जिससे परमेश्वर खुश हो और आखिरकार उसने यहोवा के अपने बेटे को ठुकरा दिया। यीशु ने उस फल ना देनेवाले पेड़ को श्राप दिया और अगले दिन उसके चेलों ने देखा कि वह पेड़ पूरी तरह सूख गया था। उस सूखे हुए पेड़ ने सही तौर से यह सूचित किया कि भविष्य में परमेश्वर, यहूदियों को अपने चुने हुए लोगों के तौर पर अस्वीकार करता।—मरकुस 11:20, 21.
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हरेक अपने-अपने अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेगाप्रहरीदुर्ग—2003 | मई 15
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b यह घटना बैतफगे गाँव के पास ही घटी थी। इस नाम का मतलब है “पहली कटनी के अंजीरों का घर।” इससे यह पता चलता है कि यह इलाका, पहली कटनी के अंजीरों की बढ़िया उपज के लिए मशहूर था।
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