“इन का होना अवश्य है”
“यीशु ने उन को उत्तर दिया, . . . इन का होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा।”—मत्ती २४:४-६.
१. हमें किस विषय में दिलचस्पी लेनी चाहिए?
इसमें कोई शक नहीं कि आप अपनी ज़िंदगी में और अपने आनेवाले कल में दिलचस्पी रखते हैं। तब तो आपको एक ऐसे विषय में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए जिसने सन् १८७७ में सी. टी. रसल का ध्यान खींचा। रसल, जिन्होंने वॉच टावर सोसाइटी की शुरुआत की, हमारे प्रभु की वापसी का मकसद और तरीका (अँग्रेज़ी) नाम की पुस्तिका लिखी। इस ६४ पन्नों की पुस्तिका में यीशु की वापसी, या भविष्य में उसके आने के बारे में बताया गया था। (यूहन्ना १४:३) इसी वापसी के बारे में प्रेरितों ने पूछा था जब वे जैतून पहाड़ पर थे: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती २४:३.
२. यीशु की भविष्यवाणी के बारे में विद्वानों के विचारों में इतना मतभेद क्यों है?
२ क्या आप यीशु का जवाब जानते हैं और क्या आप उसे समझते हैं? उसका जवाब हमें सुसमाचार की तीन पुस्तकों में, यानी मत्ती, मरकुस और लूका में मिलता है। प्रॉफॆसर डी. ए. कारसन कहते हैं: “बाइबल में ऐसे बहुत ही कम अध्याय हैं जिन पर बाइबल विद्वानों में इतना ज़्यादा मतभेद हुआ है जितना मत्ती २४ में लिखी उन बातों पर हुआ है, जो मरकुस १३ और लूका २१ के अध्यायों में भी पायी जाती हैं।” यह कहने के बाद वह भी इन्हीं अध्यायों को अपने तरीके से समझाता है। उसका यह नज़रिया भी दूसरे विद्वानों के विचार से मेल नहीं खाता और यह भी उनके विचारों की तरह एक इंसानी नज़रिया है। पिछले सौ सालों में इस तरह के विचारों ने यही दिखाया कि इनके माननेवाले लोगों में खुद विश्वास की कमी थी। उनका मानना था कि सुसमाचार-पुस्तकों में जो भी लिखा है वह यीशु ने कभी कहा ही नहीं था और यीशु ने असल में जो कहा था उसे बाद में बदल दिया गया, या कुछ लोग कहते हैं कि उसकी भविष्यवाणियाँ झूठी निकलीं। ये सभी ऐसे विद्वानों का नज़रिया है जो बाइबल को ईश्वर-प्रेरित नहीं मानते। यहाँ तक कि एक टीकाकार ने तो मरकुस की सुसमाचार-पुस्तक को ‘महायाना-बौद्ध की शिक्षा के मुताबिक’ समझाने की कोशिश की!
३. यहोवा के साक्षी यीशु की भविष्यवाणी के बारे में क्या मानते हैं?
३ मगर इन सब विचारों के विपरीत, यहोवा के साक्षी मानते हैं कि बाइबल ईश्वर-प्रेरित और भरोसेमंद है, इसीलिए वे यीशु की भविष्यवाणी पर विश्वास करते हैं जिसे उसने अपनी मौत से तीन दिन पहले जैतून पहाड़ पर अपने चार प्रेरितों को जवाब देने के लिए कहा था। सी. टी. रसल के ज़माने से, परमेश्वर के लोगों ने यीशु की इस भविष्यवाणी की धीरे-धीरे बेहतर समझ पायी है। पिछले कुछ सालों में, प्रहरीदुर्ग ने इस भविष्यवाणी के बारे में उनकी समझ को और भी स्पष्ट किया है। क्या आपने उनमें दी गयी जानकारी को अच्छी तरह समझा है? और क्या आप इसकी अहमियत समझते हैं?a आइए हम इस जानकारी पर फिर से विचार करें।
भविष्यवाणी की पूर्ति और दुःखद घटनाएँ
४. प्रेरितों ने भविष्य के बारे में यीशु से क्यों सवाल किया होगा?
४ प्रेरितों को यकीन था कि यीशु ही मसीहा है। सो जब उन्होंने यीशु को अपनी मौत का, पुनरुत्थान का और वापसी का ज़िक्र करते हुए सुना, तो उन्होंने सोचा होगा, ‘अगर यीशु मर जाए, तो फिर वह उन सभी अद्भुत कामों को कैसे करेगा जिसकी मसीहा से उम्मीद की जाती है?’ साथ ही, यीशु ने यरूशलेम और उसके मंदिर के नाश के बारे में भी बात की। इसलिए प्रेरितों के मन में सवाल आया होगा कि ‘वो नाश कब और कैसे होगा?’ इन्हीं बातों को समझने की कोशिश करते हुए प्रेरितों ने पूछा: “ये बातें कब होंगी? और जब ये सब बातें पूरी होने पर होंगी उस समय का क्या चिन्ह होगा?”—मरकुस १३:४; मत्ती १६:२१, २७, २८; २३:३७-२४:२.
५. यीशु की भविष्यवाणी पहली सदी में कैसे पूरी हुई?
५ इसके जवाब में यीशु ने एक ऐसे चिन्ह के बारे में भविष्यवाणी की जिसमें कई घटनाएँ होतीं, जैसे युद्ध, अकाल, महामारियाँ, और भूईंडोल होना, साथ ही मसीहियों से बैर किया जाना और उन्हें सताया जाना, झूठे मसीहा उठ खड़े होना, और राज्य के सुसमाचार का प्रचार सारे जगत में किया जाना। और इनके बाद अंत आना था। (मत्ती २४:४-१४; मरकुस १३:५-१३; लूका २१:८-१९) यीशु ने सा.यु. ३३ की शुरूआत में यह सब कहा था। इसके बाद के दशकों के दौरान, उसके जागरूक चेले ठीक-ठीक समझ सकते थे कि जिन घटनाओं की भविष्यवाणी की गयी थी वे दरअसल उनकी आँखों के सामने साफ-साफ पूरी हो रही हैं। जी हाँ, इतिहास गवाह है कि यीशु द्वारा दिया गया चिन्ह उस समय दिखायी दिया और आगे चलकर सा.यु. ६६-७० में रोमियों के हाथों पूरी यहूदी व्यवस्था का अंत हुआ। लेकिन यह कैसे हुआ?
६. सामान्य युग ६६ में रोमियों और यहूदियों के बीच क्या हुआ?
६ सामान्य युग ६६ की गर्मियों में यहूदी कट्टरपंथियों ने यहूदिया में यरूशलेम के मंदिर के करीब एक दुर्ग में रोमी सैनिकों पर आक्रमण किया, जिसकी वज़ह से देश की दूसरी जगहों पर भी हिंसा की आग भड़क उठी। पुस्तक यहूदियों का इतिहास (अँग्रेज़ी) में प्रॉफॆसर हाइनरिख ग्रॆट्स कहते हैं: “सीरिया के गवर्नर की हैसियत से सॆस्टिअस गैलस का फर्ज़ था कि वह रोमी फौज के सम्मान को बनाए रखे, . . . इसलिए वह इस बात को बरदाश्त नहीं कर सका कि उसके चारों तरफ बगावत की आग फैल रही है और उसे रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की जा रही। सो उसने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और आस-पास के शासकों ने भी अपनी सेना भेज दी।” अब ३०,००० लोगों की इस सेना ने यरूशलेम को घेर लिया। थोड़ी-बहुत लड़ाई के बाद यहूदी लोग, मंदिर के पास नगर की जो दीवार थी, उसके पीछे चले गए। “उसके बाद, लगातार पाँच दिनों तक रोमी सैनिकों ने दीवारों को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन हर बार यहूदियों के तीर-भालों की वज़ह से उन्हें मजबूरन पीछे हटना पड़ा। छठे दिन जाकर कहीं वे उत्तरी दीवार के एक भाग को तोड़ने में कामयाब हुए जो मंदिर के सामने थी।”
७. यीशु के चेले दुविधा में क्यों नहीं पड़े जबकि यहूदी दुविधा में पड़ गए?
७ ज़रा सोचिए कि ये सब देखकर यहूदी कितने दुविधा में पड़ गए होंगे, क्योंकि वे हमेशा से यही मानते आए थे कि परमेश्वर उनकी और उनके पवित्र नगर की रक्षा करेगा! लेकिन यीशु के चेलों को पहले से ही आगाह कर दिया गया था कि यरूशलेम का नाश होनेवाला है। यीशु ने उनसे कहा था: “वे दिन तुझ [यरूशलेम] पर आएंगे, कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएंगे। और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे।” (लूका १९:४३, ४४) तो फिर क्या इसका मतलब यह है कि यह भविष्यवाणी सा.यु. ६६ में यरूशलेम में रह रहे मसीहियों के लिए भी मौत का पैगाम थी?
८. यीशु ने किस दुःखद घटना के बारे में भविष्यवाणी की और वे ‘चुने हुए’ लोग कौन थे जिनके लिए उन दिनों को घटाया जाता?
८ जैतून पहाड़ पर प्रेरितों को जवाब देते वक्त यीशु ने भविष्यवाणी की: “वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्वर ने सृजी है अब तक न तो हुए, और न फिर कभी होंगे। और यदि प्रभु उन दिनों को न घटाता, तो कोई प्राणी भी न बचता; परन्तु उन चुने हुओं के कारण जिन को उस ने चुना है, उन दिनों को घटाया।” (मरकुस १३:१९, २०; मत्ती २४:२१, २२) सो वे दिन घटाए जाते और “चुने हुओं” को बचाया जाता। लेकिन, ये ‘चुने हुए’ लोग कौन थे? यकीनन वे यहोवा की उपासना करने का दावा करनेवाले ऐसे यहूदी नहीं थे, जिन्होंने उसका विरोध किया था और उसके बेटे को ठुकराया था। (यूहन्ना १९:१-७; प्रेरितों २:२२, २३, ३६) उस समय के सच्चे चुने हुए जन ऐसे यहूदी और गैर-यहूदी लोग थे जिन्होंने यीशु पर विश्वास किया था कि वही मसीहा और उद्धारक है। परमेश्वर ने इन्हीं लोगों को चुनकर सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन एक नयी आत्मिक जाति, यानी ‘परमेश्वर का इस्राएल’ बनाया था।—गलतियों ६:१६; लूका १८:७; प्रेरितों १०:३४-४५; १ पतरस २:९.
९, १०. जब रोमी आक्रमण हुआ तब उन दिनों को किस प्रकार “घटाया” गया और इसकी वज़ह से क्या हुआ?
९ तो फिर, क्या वाकई उन “दिनों को घटाया” गया और यरूशलेम के चुने हुए अभिषिक्त जनों को बचाया गया? प्रॉफॆसर ग्रॆट्स कहते हैं: “[सॆस्टिअस गैलस] ने वीर, जोशीले योद्धाओं के खिलाफ युद्ध करना और उस मौसम में लंबी लड़ाई छेड़ देना बुद्धिमानी की बात नहीं समझी, क्योंकि जल्द ही बारिश का मौसम शुरू होनेवाला था . . . जिसकी वज़ह से उसकी सेना को राशन-पानी और दूसरा ज़रूरी सामान मिलना मुश्किल हो सकता था। शायद इसी वज़ह से उसने सोचा कि वापस लौट जाने में ही अक्लमंदी है।” सॆस्टिअस गैलस ने चाहे जो भी सोचा हो, वह रोमी सेना के साथ शहर छोड़कर चला गया और यहूदी योद्धाओं ने उनका पीछा किया, जिससे गैलस की सेना को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा।
१० रोमी सेना अचानक वापस चली गयी और इस तरह उन “दिनों को घटाया” गया, जिसकी वज़ह से “प्राणी,” यानी यीशु के चेले बच सके जो यरूशलेम के अंदर फँसे हुए थे और जिनकी जान को खतरा था। इतिहास बताता है कि जैसे ही मौके का यह द्वार खुला, यीशु के चेले वहाँ से भाग निकले। यह कितना बेहतरीन सबूत है कि परमेश्वर भविष्य को जानने और अपने उपासकों को हर हाल में बचाने की काबिलियत रखता है! दूसरी तरफ, उन यहूदियों के बारे में क्या जिन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया था और जो यरूशलेम और यहूदिया में ही रह गए थे?
उस ज़माने के यहूदियों पर वह क्लेश आता
११. यीशु ने ‘इस पीढ़ी’ के बारे में क्या कहा?
११ बहुत-से यहूदियों का यह विश्वास था कि मंदिर से जुड़ा हुआ उनकी उपासना का प्रबंध हमेशा तक बना रहेगा। लेकिन यीशु ने कहा: “अंजीर के पेड़ से यह . . . सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, बरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मत्ती २४:३२-३५.
१२, १३. यीशु ने जब “इस पीढ़ी” का ज़िक्र किया, तब उसके चेलों ने इसे किस अर्थ में समझा होगा?
१२ यीशु के चिन्ह के मुताबिक जो घटनाएँ सामान्य युग ६६ तक होनी थीं, उनमें से कई घटनाओं को मसीहियों ने पूरा होते हुए देखा, जैसे लड़ाइयाँ, अकाल और पूरी दुनिया में राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया जाना। (प्रेरितों ११:२८; कुलुस्सियों १:२३) मगर अंत कब आता? इसके जवाब के लिए हमें पहले यह देखना होगा कि “यह पीढ़ी [यूनानी, येनेआ]” से यीशु का क्या मतलब था जब उसने कहा कि “यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” अकसर, यीशु ने उस ज़माने के यहूदियों को, जो यहोवा का विरोध करते थे, एक “दुष्ट और व्यभिचारिणी पीढ़ी” कहा। इन यहूदियों में उनके धर्मगुरू भी थे। (मत्ती ११:१६; १२:३९, ४५; १६:४; १७:१७; २३:३६, NHT) सो जैतून पहाड़ पर जब उसने फिर से ‘इस पीढ़ी’ का ज़िक्र किया, तब ज़ाहिर है कि वह यहूदी जाति के बनने के समय से अब तक के सब यहूदियों का ज़िक्र नहीं कर रहा था, ना ही वह अपने चेलों के बारे में कह रहा था, जबकि वे “चुना हुआ वंश” थे और इस चिन्ह को देखनेवाले थे। (१ पतरस २:९) ना ही यीशु समय की एक अवधि को “यह पीढ़ी” कह रहा था।
१३ इसके बजाय, “पीढ़ी” से यीशु का मतलब था उस ज़माने के यहूदी जो यीशु द्वारा बताए हुए चिन्ह को पूरा होते हुए देखते और जो यहोवा के विरोधी थे। लूका २१:३२ में बतायी गयी “इस पीढ़ी” का मतलब बताते हुए प्रॉफॆसर जोएल बी. ग्रीन कहते हैं: “सुसमाचार की तीसरी पुस्तक में, ‘इस पीढ़ी’ (और इससे संबंधित शब्दों) का हमेशा मतलब है ऐसे लोग जो परमेश्वर के उद्देश्य का विरोध करते हैं। . . . [इसका मतलब ये] ऐसे लोग हैं जो घमंडी और ढीठ होकर परमेश्वर के उद्देश्य को ठुकराते हैं।”b
१४. उस “पीढ़ी” को किन हालात से गुज़रना पड़ा, लेकिन मसीहियों के लिए परिणाम कैसे अलग था?
१४ इस तरह, यहोवा का विरोध करनेवाली वह दुष्ट यहूदी पीढ़ी, जो उस चिन्ह को देखती, वही पीढ़ी पूरी यहूदी व्यवस्था का अंत भी देखती। (मत्ती २४:६, १३, १४) और ऐसा ही हुआ! सा.यु. ७० में सम्राट वॆस्पेसियन का बेटा, टाइटस रोमी सेना के साथ हमला करने के लिए वापस आया। उसने शहर को घेर लिया। इसकी वज़ह से अंदर फँसे हुए यहूदियों पर जो कुछ गुज़री, उसे सुनकर कलेजा काँप उठता है।c चश्मदीद गवाह फ्लेविअस जोसीफस रिपोर्ट करता है कि जब तक रोमियों ने शहर पर आक्रमण करके उसे पूरी तरह तहस-नहस कर दिया, तब तक करीबन ११,००,००० यहूदी मारे जा चुके थे और फिर वे लोग कुछ १,००,००० यहूदियों को बंदी बनाकर ले गए। इनमें से ज़्यादातर बंदी जल्द ही भूख से तड़प-तड़पकर मर गए या फिर उन्हें रोमी अखाड़ों में फेंक दिया गया जहाँ जंगली जानवरों ने उन्हें फाड़ खाया। सचमुच, सा.यु. ६६-७० में यरूशलेम के शहर पर जो क्लेश आया और इस तरह पूरी यहूदी व्यवस्था का जो अंत हुआ, वह सबसे भारी क्लेश था, जो न तो उससे पहले कभी हुआ था, न ही बाद में कभी होता। लेकिन उन मसीहियों के लिए परिणाम कितना अलग था, जिन्होंने यीशु की चेतावनी को माना और सा.यु. ६६ में रोमी सेनाओं के चले जाने के बाद यरूशलेम छोड़कर चले गए थे! और जब सा.यु. ७० में अंत आया, तब इन ‘चुने हुए’ अभिषिक्त मसीहियों को ‘बचाया’ गया था।—मत्ती २४:१६, २२.
एक बड़े पैमाने पर पूर्ति
१५. हम यह कैसे कह सकते हैं कि यीशु की भविष्यवाणी सा.यु. ७० के बाद बड़े पैमाने पर पूरी होगी?
१५ मगर, यीशु का मतलब सिर्फ सा.यु. ७० के अंत से नहीं था, क्योंकि यीशु ने पहले कहा था कि शहर का विनाश होने के बाद वह यहोवा के नाम से आएगा। (मत्ती २३:३८, ३९; २४:२) इस बात को उसने जैतून पहाड़ पर अपनी भविष्यवाणी में और भी साफ तरीके से समझाया। इस भविष्यवाणी में आनेवाले “भारी क्लेश” का ज़िक्र करने के बाद उसने कहा कि झूठे मसीहा उठ खड़े होंगे और अन्य जातियाँ यरूशलेम को काफी समय तक रौंदेंगी। (मत्ती २४:२१, २३-२८; लूका २१:२४) सो, क्या इन बातों से यह नहीं पता चलता कि यीशु सिर्फ सा.यु. ७० में यरूशलेम के अंत की बात नहीं कर रहा था, मगर वह एक और भी बड़े, विश्व पैमाने पर इस भविष्यवाणी के पूरा होने की बात कर रहा था? हाँ, इतिहास गवाह है कि यीशु इस भविष्यवाणी के विश्व पैमाने पर पूरी होने की बात कर रहा था। जब हम मत्ती २४:६-८ और लूका २१:१०, ११ की तुलना प्रकाशितवाक्य ६:२-८ (जो सा.यु. ७० में यरूशलेम पर आए क्लेश के बाद लिखा गया था) से करते हैं, तब इससे भी हमें पता चलता है कि यह भविष्यवाणी और भी बड़े पैमाने पर पूरी होगी, यानी विश्व पैमाने पर लड़ाइयाँ, अकाल और महामारियाँ होंगी। यीशु की इसी भविष्यवाणी को हम विश्व पैमाने पर १९१४ के प्रथम विश्वयुद्ध के समय से पूरी होते हुए देख रहे हैं।
१६-१८. आगे कौन-कौन-सी घटनाएँ होंगी?
१६ काफी सालों से यहोवा के साक्षी सिखाते आए हैं कि यीशु ने जो चिन्ह दिया था, वह हमारे समय में दिखायी दे रहा है और इसका मतलब है कि “भारी क्लेश” अभी आना बाकी है। सो इस चिन्ह को देखनेवाली आज की दुष्ट “पीढ़ी” इस क्लेश को भी देखेगी। सो जिस तरह गैलस ने सा.यु. ६६ में यरूशलेम पर आक्रमण किया, जो कि क्लेश की शुरूआत थी और उसके कुछ समय बीतने के बाद अंत आया, ऐसा लगता है कि ठीक उसी तरह हमारे समय में पहले सभी झूठे धर्मों पर एक आक्रमण होगा, और फिर कुछ समय बीतने के बाद अंत आएगा।d और यह अंत विश्वव्यापी पैमाने पर होनेवाला एक विनाश होगा, ठीक उसी तरह जैसे सा.यु. ७० में पूरी यहूदी व्यवस्था का विनाश हुआ था।
१७ हमारे समय में आनेवाले क्लेश के बारे में यीशु ने कहा: “उन दिनों के क्लेश [झूठे धर्म के नाश] के बाद तुरन्त सूर्य अन्धियारा हो जाएगा, और चान्द का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियां हिलाई जाएंगी। तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।”—मत्ती २४:२९, ३०.
१८ सो, यीशु कहता है कि “उन दिनों के क्लेश के बाद” आसमान में कुछ भयंकर घटनाएँ होंगी। (योएल २:२८-३२; ३:१५ से तुलना कीजिए।) इन घटनाओं को देखकर सारे दुष्ट लोग बुरी तरह हकबका जाएँगे और उनका दिल दहल जाएगा और वे “छाती पीटेंगे।” “भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते [कई] लोगों के जी में जी न रहेगा।” लेकिन सच्चे मसीहियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होगा! वे ‘अपने सिर ऊपर उठाएँगे; क्योंकि उनका छुटकारा निकट होगा।’—लूका २१:२५, २६, २८.
भविष्य में न्याय होनेवाला है!
१९. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि भेड़ों और बकरियों के दृष्टांत की बातें कब पूरी होंगी?
१९ ध्यान दीजिए कि मत्ती २४:२९-३१ में भविष्यवाणी की गयी है कि (१) मनुष्य का पुत्र आएगा, (२) और उसका आना बड़े ऐश्वर्य के साथ होगा, (३) उसके साथ स्वर्गदूत होंगे, और (४) पृथ्वी के सब कुलों के लोग उसे देखेंगे। यीशु इन्हीं बातों को भेड़ों और बकरियों के दृष्टांत में दोहराता है। (मत्ती २५:३१-४६) इसलिए हम कह सकते हैं कि जिस आक्रमण के साथ क्लेश शुरू होता है, उसके बाद इस दृष्टांत की बातें पूरी होंगी। उस वक्त यीशु अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा और न्याय करने के लिए अपने सिंहासन पर बैठेगा। (यूहन्ना ५:२२; प्रेरितों १७:३१. १ राजा ७:७; दानिय्येल ७:१०, १३, १४, २२, २६; मत्ती १९:२८ से तुलना कीजिए।) मगर किन लोगों का न्याय किया जाएगा और उनका क्या अंजाम होगा? यह दृष्टांत दिखाता है कि सारी जातियाँ मानो यीशु के स्वर्गीय सिंहासन के सामने इकट्ठी होंगी, और वह उनका न्याय करेगा।
२०, २१. (क) यीशु के दृष्टांत की भेड़ों का क्या होगा? (ख) भविष्य में बकरियों का क्या होगा?
२० जो लोग भेड़-समान हैं उनको अलग करके यीशु की दायीं ओर किया जाएगा, यानी यीशु उनके पक्ष में न्याय करेगा। क्यों? क्योंकि उन लोगों ने यीशु के भाइयों के साथ, यानी उन अभिषिक्त मसीहियों के साथ भलाई की है जो मसीह के साथ स्वर्ग में शासन करेंगे। (दानिय्येल ७:२७; इब्रानियों २:९-३:१) इस दृष्टांत के मुताबिक ही, आज भेड़-समान लाखों मसीहियों ने कबूल किया है कि ये अभिषिक्त मसीही यीशु के आत्मिक भाई हैं और उन्होंने इन अभिषिक्त मसीहियों के काम में उनका हाथ बँटाया है। इसी वज़ह से, भेड़समान लोगों से बनी इस “बड़ी भीड़” के पास यह आशा है कि वे “बड़े क्लेश” से बच निकलें और जब परमेश्वर के राज्य में यह सारी पृथ्वी सुख और शांति का एक सुंदर बगीचा बन जाएगी, तब उसमें वे हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी पाएँ।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४; २१:३, ४; यूहन्ना १०:१६.
२१ लेकिन बकरी-समान लोगों का अंजाम कितना फरक होगा! उनके बारे में मत्ती २४:३० कहता है कि जब यीशु आता है तब वे अपनी ‘छाती पीटेंगे।’ और क्यों न पीटें! वे तो लगातार राज्य सुसमाचार को ठुकराते रहे हैं, यीशु के चेलों का विरोध करते रहे हैं और इस मिटनेवाले संसार को पसंद करते रहे हैं। (मत्ती १०:१६-१८; १ यूहन्ना २:१५-१७) यीशु ही यह फैसला करता है कि कौन बकरी है कौन नहीं। पृथ्वी पर रह रहे उसके किसी भी चेले को यह फैसला करने का हक नहीं है। इन बकरियों के बारे में यीशु कहता है: ‘ये अनन्त दण्ड भोगेंगे।’—मत्ती २५:४६.
२२. यीशु की भविष्यवाणी के किस भाग पर हमें और भी ध्यान देना है?
२२ मत्ती अध्याय २४ और २५ की भविष्यवाणी की बढ़ती हुई समझ हासिल करना हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात रही है। लेकिन, यीशु की भविष्यवाणी का एक भाग है जिस पर हमें और भी ध्यान देना है और वह है, ‘उजाड़नेवाली वह घृणित वस्तु जो पवित्र स्थान में खड़ी है।’ यीशु ने अपने चेलों से कहा कि इस संबंध में समझ से काम लें और ज़रूरी कदम उठाने के लिए तैयार रहें। (मत्ती २४:१५, १६) यह “घृणित वस्तु” क्या है? वह पवित्र स्थान में कब खड़ी होती है? और हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी से इसका क्या ताल्लुक है? अगला लेख इसकी चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a फरवरी १, १९९४, अक्तूबर १५ और नवंबर १, १९९५, और अगस्त १५, १९९६ के प्रहरीदुर्ग के अध्ययन लेख देखिए।
b ब्रिटिश विद्वान जी. आर. बीज़ली-मरी कहते हैं: “बाइबल विद्वानों को ‘यह पीढ़ी’ ये शब्द समझने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। जबकि पुरानी यूनानी भाषा में येनेआ का मतलब जन्म, संतान और इसीलिए जाति भी रहा है, . . . [इब्रानी शास्त्र के यूनानी भाषा के अनुवाद, यानी सेप्टुआजेंट] में इस शब्द को ज़्यादातर इब्रानी शब्द दॉर का अनुवाद करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इब्रानी शब्द दॉर का मतलब है मनुष्यजाति की शुरूआत से अब तक का समय, ज़माना या किसी खास वक्त पर जी रही पीढ़ी। . . . ऐसा लगता है कि यीशु की बातों में इसका मतलब हमेशा उसके ज़माने के लोग रहा है, साथ ही उसने इसे हमेशा निंदा के लिए इस्तेमाल किया था।”
c यहूदियों का इतिहास (अँग्रेज़ी) में प्रॉफॆसर ग्रॆट्स कहते हैं कि कभी-कभी रोमी लोग एक ही दिन में ५०० कैदियों को सूली पर चढ़ा देते थे। दूसरे बंदी यहूदियों के हाथ काटकर उन्हें वापस शहर के अंदर भेज दिया जाता था। और शहर के अंदर के हालात कैसे थे? “पैसे की कोई कीमत नहीं रही क्योंकि लोग पैसों से रोटी भी नहीं खरीद सकते थे। सड़े-गले और बिलकुल घिनौने खाने के लिए, मुट्ठी भर सूखी घास के लिए, चमड़े के एक टुकड़े के लिए, या कुत्तों को दिए जानेवाले बेकार खाने के लिए लोग सड़कों पर वहशियों की तरह लड़ते थे। . . . दिन-ब-दिन लाशों का अंबार लगता जा रहा था और गर्मी की उमसदार हवा बीमारियाँ फैला रही थी। सारा शहर बीमारी, अकाल और तलवार का शिकार हो गया।”
d अगला लेख आनेवाले क्लेश के इस भाग की चर्चा करता है।
क्या आपको याद है?
◻ पहली सदी में मत्ती २४:४-१४ कैसे पूरा हुआ था?
◻ जैसे मत्ती २४:२१, २२ में भविष्यवाणी की गयी थी, प्रेरितों के समय में किस तरह दिनों को घटाया गया और प्राणों को बचाया गया?
◻ मत्ती २४:३४ में बतायी गयी “पीढ़ी” की खासियत क्या थी?
◻ हम यह कैसे जानते हैं कि जैतून पहाड़ पर दी गयी भविष्यवाणी फिर से, और विश्व पैमाने पर पूरी होगी?
◻ भेड़ और बकरियों के दृष्टांत की बातें कब और कैसे पूरी होंगी?
[पेज 12 पर तसवीर]
रोम में आर्क ऑफ टाइटस का एक भाग, जिसमें यरूशलेम के विनाश से मिला लूट का माल दिखाया गया है
[चित्र का श्रेय]
Soprintendenza Archeologica di Roma