मरे हुओं के बारे में परमेश्वर का नज़रिया
जब किसी का कोई अपना गुज़र जाता है, तो ऐसा लगता है मानो उसकी पूरी दुनिया ही उजड़ गयी है। ज़िंदगी में उसे खालीपन और अकेलापन महसूस होता है, और बरबादी का एहसास होता है। अपने अज़ीज़ की मौत से एक इंसान इस कदर गम में डूब जाता है कि वह खुद को बिलकुल बेसहारा महसूस करता है, क्योंकि आज धरती पर जीनेवाला कोई भी, एक मरे हुए इंसान में दोबारा जान नहीं डाल सकता, फिर चाहे उसके पास कितनी ही दौलत, ताकत या रुतबा क्यों न हो।
लेकिन हमारा सिरजनहार इस मामले को बिलकुल अलग नज़रिए से देखता है। जब वह पहले इंसान को मिट्टी से बना सकता था, तो वह ज़रूर मरे हुए इंसान को फिर से ज़िंदा कर सकता है। इसी वजह से परमेश्वर मरे हुओं के प्रति ऐसा नज़रिया रखता है मानो वे अभी भी ज़िंदा हैं। पुराने ज़माने के वफादार सेवक जो अब दुनिया में नहीं हैं, उनके बारे में यीशु ने कहा: “[परमेश्वर के] निकट सब जीवित हैं।” दूसरे शब्दों में कहें तो वे सभी परमेश्वर की नज़र में अब भी ज़िंदा हैं।—लूका 20:38.
जब यीशु इस धरती पर था तो उसे मरे हुओं का पुनरुत्थान करने की शक्ति दी गयी थी। (यूहन्ना 5:21) इसलिए जो वफादार लोग मर गए हैं, उनके बारे में वह अपने पिता के जैसा ही महसूस करता है। उदाहरण के लिए, जब उसका दोस्त लाजर मर गया तो उसने अपने चेलों से कहा: “मैं उसे जगाने जाता हूं।” (यूह 11:11) इंसानी नज़र से देखा जाए तो लाजर मर चुका था, मगर यहोवा और यीशु के लिए वह सो रहा था।
यीशु के राज्य शासन में “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरि 24:15) समय के गुज़रते, पुनरुत्थान पानेवालों को परमेश्वर की तरफ से सिखाया जाएगा और वे धरती पर अनंतकाल तक जीने की आशा पाएँगे।—यूहन्ना 5:28, 29.
यह सच है कि अपने अज़ीज़ की मौत से एक इंसान को बेहद दुःख और पीड़ा होती है, जो सालों-साल रहती है। लेकिन, यह जानने पर कि परमेश्वर मरे हुओं को किस नज़र से देखता है, हमें बहुत सांत्वना मिलती है और हममें आशा जागती है। —2 कुरिन्थियों 1:3, 4