वह चिन्ह क्या आपने उसे देखा है?
“समुद्र की सतह के काफी नीचे, एक लम्बा बेलनाकार पनडुब्बी स्थिर स्थित है, जो समुद्र की तूफ़ानी सतह पर तेजी से बहनेवाली लहरों से अप्रभावित है। उस पनडुब्बि के डेक से एक फलका खुलता है और एक रॉकेट जो ३० फुट से भी लम्बा और साढ़े चार फुट मोटा बाहर निकलकर ऊपर की ओर झपटकर उठता है। वह रॉकेट अपनी यात्रा संपीड़ित हवा के द्वारा शुरु करता है जो उसे ऊपर की ओर उठाता है, लेकिन समुद्र की सतह पर पहुँचने पर उसका इंजिन प्रज्वलित होता है और वह रॉकेट पानी से एक गरज के साथ निकलता है।”
मार्टिन कीन द्वारा लिखित रॉकेट्स, मिसाइल्स ॲन्ड स्पेस-क्राफ्ट पुस्तक का पनडुब्बि द्वारा प्रवर्तित प्रक्षेपास्त्र का यह वर्णन एक पुरानी भविष्यवाणी को अर्थपूर्ण बनाता है जो “समुद्र के गरजने” से उत्पन्न होनेवाले विश्व संकट के बारे में बताती है। (लूका २१:२५) प्रक्षेपास्त्र पनडुब्बियों से यह धमकी कितना महान है?
जेन्स फायटिंग शिप्स १९८६-८७ पुस्तक के अनुसार ब्रिटेन, चीन, फ्रान्स, सोवियत संघ, और संयुक्त राज्य अमरीका के पास सक्रीय सेवा में १३१ प्रक्षेपास्त्र पनडुब्बियाँ हैं। ऐसा कोई भी शहर नहीं जो उनकी पहुँच के बाहर है, और प्रक्षेपास्त्र साधारणतः लक्ष्य से एक मील के भीतर उतरते हैं। द गिन्नस बुक ऑफ रेकॉड्स के अनुसार कुछ इतने सारे प्रक्षेपास्त्रों को ले चलते हैं कि वे “५,००० मील के भीतर कोई भी राष्ट्र को नष्ट कर सकता है।” इससे बदतर यह है, कि कुछों ने यह दावा किया है कि केवल एक प्रक्षेपास्त्र पनडुब्बि के अस्त्र एक ऐसा अणु-शीतकाल को उत्पन्न करेगा जो पृथ्वी के सभी जीवन को जोखिम में डाल सकता है! दूर की पनडुब्बियों का नियंत्रण भी एक समस्या है। यह आशंका की गयी है कि एक पनडुब्बि में कोई अविचारी क्रिया एक विनाशक परमाणु-युध्द प्रवर्तित कर सकता है।
बहुतों ने एसी भयानक सम्भावनाओं को यीशु के भविष्यसूचक चिन्ह से जोड़ा है। क्या यह हो सकता है कि हमारी पीढ़ी उस चिन्ह की पूर्ति का अनुभव कर रही है? वास्ततिकताएँ जवाब हाँ में देती हैं। और इसका अर्थ है कि परमाणु-युध्द की धमकी से छुटकारा निकट है। (लूका २१:२८, ३२) एक इतनी सकारात्मक आशा होने के कारण हम आपको उस चिन्ह की पूर्ति के प्रमाण पर विचार करने के लिए आमन्त्रित करते हैं। उस चिन्ह के कुछ विशिष्ट बातें यहाँ पर उनकी आधुनिक पूर्ति के साथ उल्लेखित हैं।
“जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा।” (लूका २१:१०)
१९१४ से अब तक युद्धों में १००,०००,००० से अधिक लोग मर चुके हैं। विश्व यद्ध पहला १९१४ में आरम्भ हुआ और वह उस समय के अनेक यूरोपियन उपनिवेषों को न गिनते हुए भी २८ राष्ट्रों को शामिल किया। बहुत कम राष्ट्र तटस्थ रहे। उस ने १३,०००,००० से अधिक जानें ली और २१,०००,००० से अधिक सैनिकों को घायल छोड़ दिया। इसके बाद आ गया दूसरा विश्व युद्ध जो कहीं अधिक विनाशक था। और उसके बाद? “वार्स ऑफ द वल्ड” इस लेख में दक्षिण अफ्रीकी समाचार पत्र द स्टार लन्दन के सन्डे टाइम्स का उल्लेख यह करते हुए कहता है: “इस संसार के राष्ट्रों का एक चौथाई अब संघर्षों में फँसे हुए हैं।”
“और बड़े बड़े भूईंडोल होंगे।” (लूका २१:११)
उनकी पुस्तका तेरा नॉन फर्मा में स्टॅनफर्ड यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक जेरे और शाह ने १६४, “विश्व के महत्त्वपूर्ण भूईंडोल” की मुख्य बातों की सूची बनायी हैं जो गए तीन हज़ार वर्षों के दौरान हुए। इस कुल संख्या से, ८९, १९१४ के बाद आ पड़े, और वे कुछ १,०४७,९४४ जानें साथ ले गए। इस सूची में केवल मुख्य भूकम्प शामिल हैं और १९८४ में तेरा नॉन फर्मा के प्रकाशन के बाद अब तक तो चिले, सोवियत संघ, और मेक्सिको में विनाशक भूकम्प हुए हैं जिसका परिणाम और अधिक हज़ारों की मृत्यु थीं।
“जगह जगह . . . मरियाँ पड़ेगी।” (लूका २१:११)
१९१८ में एक भयंकर महामारी ने मनुष्य-जाती पर हमला किया। वह, जो स्पॅनिश फ्लू के नाम से ज्ञात था, सेन्ट हेलीना के द्वाप के अलावा बाकी सभी निवास स्थानों मे फैल गयी और युद्ध के चार वर्षों में मारे गए लोगों से अधिक लोगों को खत्म कर दिया। चिकित्सा-विज्ञान ने उस समय से अब तक काफी तरक्कियाँ की है और फिर भी यह एक विरोधाभासी बात है। द लॅन्सेट स्पष्ट करता है: “आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान की विराधाभासी बात लैंगिक रूप से प्रसारित बीमारियों (एस.टी.डी) का सबसे से सामान्य सूचनीय बीमारियों के एक वर्ग के रूप में स्थायित्व है। . . . लैंगिक रूप से प्रसारित बीमारियों पर नियंत्रण किसी समय हमारी पकड़ के भीतर प्रतीत हो रहा था लेकिन हाल के वर्षों में ये हमारी पकड़ से दुर रहे हैं।”
कई अन्य बीमारियाँ भी हैं जिसे आधुनिक चिकित्सा नियंत्रण में नहीं ला सका है जैसे कि कैंन्सर और हृद-धमनी बीमारी। अवरोक्त बीमारी, द[क्षिण] अ[फ्रीका] के फॅमिली प्रॅक्टिज़ के अनुसार, “एक नयी बात है। . . . यह पहला विश्व युद्धोत्तर समाज का एक परिणाम है।” ब्रिटेन में कार्डियोवास्कुलर अपडेट—इन्साईट इन्टु हार्ट डिसीज़ पुस्तक के अनुसार हृदय की बीमारी और उच्चरक्तचाप “मृत्यु-दर का एक मुख्य कारण है”। वह आगे कहती है कि “उनके नियंत्रण में बहुत कम उन्नती की गयी हैं।”
प्रगतिशील देंशों में लाखों लोग मलेरिया, निद्रा-रोग, बिलहार्ज़िया, और अन्य बीमारियाँ से पीड़ित हैं। दुनिया की सब से बुरी बीमारियों में से एक दस्त है। मेडिसिन इन्टरनॅशनल पत्रिका स्पष्ट करती है: “यह अनुमान किया गया है कि [हर] साल एशिया, अफ्रीका और लतीन अमरीका के शिशुओं और छोटे बच्चों में दस्त की कुछ ५००० लाख घटनाओं का होना सम्भव हैं।”
“जगह जगह अकाल . . . पड़ेगी।” (लूका २१:११)
साधारणतः युद्ध के साथ अकाल भी आते हैं। विश्व युद्ध पहला भी असामान्य नहीं था। उसके परिणामस्वरूप भयंकर अकाल आ पड़े। और उसके बाद? एक विशेष पत्रिका द चॅलेन्ज ऑफ इन्टरनॅशनलिज़म—फॉर्टी इयर्स ऑफ द युनाइटड नेशन्स (१९४५-१९८५): “जब कि १९५० में कुछ १,६५०० लाख लोग कुपोषित थे १९८३ में २,२५०० लाख लोग कुपोषित हैं; अन्य शब्दों में कहो तो, ६००० लाख लोगों की बढ़ती या करीब ३६ प्रतिशत अधिक।” हाल में अफ्रीका में जो सूखा हुआ था उसके बाद एक विध्वंसक अकाल आ पड़ा। न्यूज़वीक पत्रिका ने रिपोर्ट की कि “एक वर्ष में कुछ १० लाख इथियोपियन कृषक और ५००,००० सूदानी बच्चें मर गए।” अन्य देशों से भी हज़ारों लोग मर गए।
“आकाश में भयंकर बातें और बड़े बड़े चिन्ह प्रगट होंगे। और सूरज और चान्द और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे, और पृथ्वी पर, देश देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएंगे। और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।” (लूका २१:११, २५, २६)
पहला विश्व युद्ध ने भयानक अस्त्रों को पेश किया। आकाश से विमान और हवाई जहाज़ और वायु-पोत, बम और गोलियाँ बरसानें लगे। इससे भी अधिक भयानक वह नाशन था जो दुसरे विश्व युद्ध के समय निस्सहाय नागरिकों पर बरसाया था जिन में दो अणु-बम भी शामिल थे।
सागर भी नये विभीषणों का स्थान बन गया था। जब पहला विश्व युद्ध आरम्भ हुआ, पनडुब्बियाँ बहुत तुच्छ समझी जाती थीं, किन्तु, दूसरे विश्व युद्ध के अन्त तक तो उन्होंने दस हज़ार से अधिक जहाज़ों को डुबा दिया था। अपनी पुस्तक सब्मरीन डिज़ाइन और डिवेलपमेन्ट में नॉमन फ्रीड़मॅन बताते हैं “बिना चेतावनी के व्यापारी जहाज़ों को डुबाना, जिस में [सवारी]लाइनर भी थे, ‘सम्पूर्ण युद्ध’ का नया ओर भयानक अभ्यास का एक भाग प्रतीत हो रहा है।”
आज कई प्रक्षेपास्त्र पनडुब्बियों को दुनिया के प्रधान जहाज़ों के रूप में मानते हैं। समुद्र में के अस्त्रों को ले चलनेवाली पनडुब्बियाँ, विमान-वाहक, और अन्य युध्दपातों में भी भयानक अस्त्र हैं। जेन्स फायटिंग शिप्स १९८६-८७ पुस्तक के अनुसार अब ९२९ पनडुब्बियाँ, ३० विमान-वाहक, ८४ बड़े युद्धपोत, ३६७ छोटे युद्धपोत, ६७५ जल-पोत, २७६ कोर्विट, २,०२४ तेज़ आक्रमण के यान और अन्य हाज़ारों सैनिक जहाज़ ५२ राष्ट्रों की सक्रिय सेवा में है। इस में और अनगिनत छोटे बल्कि विनाशक सुरंग भी मिलाओ। कभी भी समुद्र मे मनुष्य द्वारा ऐसा एक खतरनाक “अशांति” नहीं हई है।
मनुष्य “सूरज और चान्द और तारों” के प्रदेश तक पहुँच चुका है। प्रक्षेपास्त्र उनके लक्ष्यों पर आ गिरने से पहले अन्तरिक्ष की ओर बड़ी तेजी से जाता है। अन्तरिक्षयान सौर-मण्डल और उसके पार तक चले गए हैं। राष्ट्र, पृथ्वी के चारों ओर घूमनेवाले मनुष्य-निर्मित उपग्रहों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। नौसंचालन-सम्बन्धी और मौसमविज्ञान-सम्बन्धी उपग्रह उन्हें भयंकर यथार्थता के साथ युद्धनीतिक अस्त्रों से निशान लगा सकते हैं। सम्प्रेषण और गुप्तचर उपग्रहों का भी विस्तृत उपयोग किया जा रहा है। मायकल शीहन अपनी पुस्तक द आम्स रेज़ में कहते हैं, “उपग्रह, बड़ी शक्तियों की सशस्त्र सेना की आँखे, कान और आवाज़ बन गए हैं।”
हाल का एक उदाहरण लिबिया पर की गयी वायू हमला था। एविएशन वीक ॲन्ड स्पेस टेकनॉलॉजी रिपोर्ट करती है: “यू.एस. . . . उपग्रह चित्रों का आक्रमण तैयारी और युद्धोत्तर निर्धारण के लिए उपयोग किए गए थे। रक्षा और मौसमविज्ञान-सम्बन्धी उपग्रह कार्यक्रम आक्रमण के लिए मौसम की जानकारी प्रदान किया और आदेश और नियंत्रण में सैनिक संप्रेषण अन्तरिक्षयान शामिल थे।” सैनिक उपग्रहों के द्वारा प्रदर्शित महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण दोनों महान शक्तियों के पास उपग्रह-विरोधी अस्त्र हैं। अन्तरिक्ष में अस्त्रों का आधार स्थापित करना, एक ऐसे कार्यक्रम के तले जो आम तौर से स्टार वार्स के रूप में ज्ञात है, एक महान शक्ति का प्रकट उद्देश्य है। वास्तव में बड़ी शक्तियाँ अन्तरिक्ष युद्ध में भाग लेंगे या नहीं यह केवल समय ही बता सकता है।
इस बीच, जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, “भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा”। अपराध, आतंक, आर्थिक विफलता, रसायन प्रदूषण, और परमाणु विद्युत् संयंत्र से विकिरण विषाक्तन और साथ ही परमाणु-युद्ध की बढ़ती हुई धमकी, सभी “भय” के कारण हैं। ब्रिटिश पत्रिका न्यू स्टेट्समेन रिपोर्ट करती है कि उस देश के “आधा से अधिक” युवजन “यह महसूस करते हैं कि परमाणुयुद्ध उनके जीवन में होगा और ७० प्रतिशत विश्वास करते हैं कि वह एक दिन तो अपरिहार्य है।”
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वह चिन्ह—उसका अर्थ क्या है?
लाखों लोग, २०-वी सदी के इतिहास को ध्यान में रखते हुए उस चिन्ह की जाँच करने के बाद उसकी पूर्ति के बारे में आश्वस्त हो गए हैं। (मत्ती, अध्याय २४ और मरकुस, अध्याय १३ भी देखें।) १९१४ की पीढ़ी सचमुच एक चिन्हित पीढ़ी है। वह वही है जो यीशु के शब्दों की दूसरी पूर्ति से सम्बन्धित है: “जब तक ये सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त न होगा।” (लूका २१:३२) “सब बातों” में मानव जाति की जटिल समस्याओं से छुटकारा भी शामिल है।
यीशु ने उसके शिष्यों को आश्वस्त किया: “जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा। . . . जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है।” परमेश्वर का राज्य, जो एक अमानवीय विश्व शासन है, इस पृथ्वी को एक सार्वभौम परादीस में बदल देगा। इसलिए, जितनी जल्दी वह चिन्ह सच निकलेगा उतनी जल्दी छुटकारा भी आएगा।—लूका २१:२८, ३१; भजन ७२:१-८.
शायद आपने इस भविष्यसूचक चिन्ह पर पूर्व विचार नहीं किया होगा। हम आपको परमेश्वर के वचन की जाँच करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। ऐसे करना आपको मानव जाति के लिए परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में अधिक समझने के योग्य बनाएगा। इस तरह आप सीखेंगे कि यहोवा परमेश्वर उन से क्या चाहता है जिन्हें वह आनेवाले पार्थिव परादीस में ‘पहुँचाएगा’।—भजन ३७:१०, ११; सपन्याह २:२, ३; प्रकाशितवाक्य २१:३-५.
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Courtesy of German Railroads Information Office, New York
Eric Schwab/WHO
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Jerry Frank/United Nations
U.S. Air Force photo