यहोवा बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुँचाता है
“[परमेश्वर को] यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाए, तो उन के उद्धार के कर्त्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।”—इब्रानियों २:१०.
१. हम क्यों निश्चित हो सकते हैं कि इंसानों के लिए यहोवा का मक़सद पूरा होगा?
यहोवा ने पृथ्वी को परिपूर्ण मानवी परिवार के लिए सनातन घर के तौर पर बनाया ताकि वे अंतहीन ज़िंदगी का मज़ा लें। (सभोपदेशक १:४; यशायाह ४५:१२, १८) यह सच है कि हमारे परदादा आदम ने पाप किया और इस तरह उसने अपने बच्चों में पाप और मौत फैला दी। मगर, इंसानों के लिए परमेश्वर का मक़सद उसके प्रतिज्ञात वंश, यीशु मसीह के ज़रिए पूरा होगा। (उत्पत्ति ३:१५; २२:१८; रोमियों ५:१२-२१; गलतियों ३:१६) मनुष्यजगत के लिए प्यार ने यहोवा को प्रेरित किया कि “उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६) और प्यार ने ही यीशु को भी प्रेरित किया कि “बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) यह ‘सब के छुटकारे का दाम’ उन अधिकारों और आशाओं को फिर से ख़रीदता है जिन्हें आदम ने गवाँ दिया था और यह हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी को मुमकिन बनाता है।—१ तीमुथियुस २:५, ६; यूहन्ना १७:३.
२. यीशु के छुड़ौती बलिदान का प्रयोग वार्षिक प्रायश्चित्त दिन का प्रतिरूप कैसे था?
२ यीशु के छुड़ौती बलिदान का प्रयोग वार्षिक प्रायश्चित्त दिन का प्रतिरूप था। उस दिन, इस्राएल का महायाजक पहले तो पाप बलि के तौर पर एक बैल का बलिदान करता था और फिर उसके ख़ून को निवासस्थान के परमपवित्र स्थान में रखे गए पवित्र संदूक के सामने, और बाद के समयों में मंदिर में चढ़ाता था। यह खुद उसकी, उसके घराने की, और लेवी के गोत्र की ख़ातिर किया जाता था। उसी तरह, यीशु मसीह ने सबसे पहले अपने आत्मिक “भाइयों” के पापों को ढाँपने के लिए परमेश्वर को अपने ख़ून की क़ीमत पेश की। (इब्रानियों २:१२; १०:१९-२२; लैव्यव्यवस्था १६:६, ११-१४) प्रायश्चित्त के दिन, महायाजक पाप बलि के तौर पर एक बकरे की भी बलि चढ़ाता था और उसका ख़ून परमपवित्र स्थान में पेश करता था, और इस तरह इस्राएल के १२ ग़ैर-याजकीय गोत्रों के पापों के लिए प्रायश्चित करता था। उसी तरह, महायाजक यीशु मसीह अपने जीवनलहू को मनुष्यजाति के उन लोगों की ख़ातिर लागू करेगा जो विश्वास करते हैं, और उनके पापों को मिटाएगा।—लैव्यव्यवस्था १६:१५.
महिमा में पहुँचाए गए
३. इब्रानियों २:९, १० के मुताबिक़, परमेश्वर १,९०० सालों से क्या कर रहा है?
३ कुछ १,९०० सालों से यीशु के “भाइयों” के सिलसिले में परमेश्वर कुछ उल्लेखनीय काम कर रहा है। इसके बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे। क्योंकि जिस के लिये सब कुछ है, और जिस के द्वारा सब कुछ है, उसे [यहोवा परमेश्वर को] यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाए, तो उन के उद्धार के [मुख्य] कर्त्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।” (इब्रानियों २:९, १०) उद्धार का मुख्य कर्ता यीशु मसीह है, जिसने धरती पर एक इंसान की तरह रहते वक़्त दुःख उठाकर सिद्धता से आज्ञा माननी सीखी। (इब्रानियों ५:७-१०) परमेश्वर के आत्मिक पुत्र के तौर पर उत्पन्न होनेवाला यीशु पहला था।
४. यीशु को परमेश्वर के आत्मिक पुत्र के तौर पर कब और कैसे उत्पन्न किया गया?
४ यीशु को अपने आत्मिक पुत्र के रूप में उत्पन्न करने के लिए यहोवा ने अपनी पवित्र आत्मा या सक्रिय शक्ति का इस्तेमाल किया, ताकि उसे स्वर्गीय महिमा में पहुँचाए। जब यीशु यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के साथ अकेला था, तब उसने खुद को परमेश्वर को पेश किया और इसकी निशानी के तौर पर निमज्जित हुआ। लूका के सुसमाचार का बयान कहता है: “जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया, और यीशु भी बपतिस्मा लेकर प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया। और पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में कबूतर की नाईं उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई, कि तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूं।” (लूका ३:२१, २२) यूहन्ना ने यीशु पर पवित्र आत्मा को आते हुए देखा और यहोवा को अपने प्यारे बेटे पर सरे-आम अपनी रज़ामंदी ज़ाहिर करते हुए सुना। उस वक़्त और पवित्र आत्मा के ज़रिए, यहोवा ने यीशु को उन “बहुत से पुत्रों” में पहले पुत्र के तौर पर उत्पन्न किया जिन्हें ‘महिमा में पहुँचाया जाएगा।’
५. यीशु के बलिदान से लाभ प्राप्त करनेवाले पहले कौन रहे हैं, और उनकी गिनती कितनी है?
५ यीशु के “भाइयों” को उसके बलिदान से सबसे पहले लाभ मिला है। (इब्रानियों २:१२-१८) दर्शन में, प्रेरित यूहन्ना ने उन्हें मेम्ने, यानी पुनरुत्थित प्रभु यीशु मसीह के साथ स्वर्गीय सिय्योन पहाड़ पर महिमा में देखा। यूहन्ना ने उनकी गिनती भी बतायी, और कहा: “मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है। . . . ये तो परमेश्वर [और मेम्ने] के निमित्त पहिले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। और उन के मुंह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं।” (प्रकाशितवाक्य १४:१-५) सो स्वर्ग में ‘महिमा में पहुँचाए गए बहुत से पुत्रों’ की गिनती कुल मिलाकर १,४४,००१ है—यीशु और उसके आत्मिक भाई।
‘परमेश्वर से जन्मे’
६, ७. कौन ‘परमेश्वर से जन्मे’ हैं, और उनके लिए इसका क्या अर्थ है?
६ यहोवा से उत्पन्न लोग ‘परमेश्वर से जन्मे’ हैं। ऐसे ही लोगों से बात करते हुए प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका [यहोवा का] बीज उस में बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है।” (१ यूहन्ना ३:९) यह “बीज” परमेश्वर की पवित्र आत्मा है। उसके वचन के साथ काम करते हुए, उसने १,४४,००० के हरेक सदस्य को स्वर्गीय आशा के लिए “नया जन्म” दिया है।—१ पतरस १:३-५, २३.
७ यीशु इंसान के रूप में अपने जन्म से ही परमेश्वर का पुत्र था, ठीक जैसे परिपूर्ण पुरुष आदम भी “परमेश्वर का पुत्र” था। (लूका १:३५; ३:३८) मगर, यीशु के बपतिस्मे के बाद यह ग़ौरतलब है कि यहोवा ने कहा: “तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझ से मैं प्रसन्न हूं।” (मरकुस १:११) इस घोषणा के साथ आनेवाली पवित्र आत्मा से यह साफ़ हो गया कि परमेश्वर ने तब यीशु को अपने आत्मिक पुत्र के रूप में उत्पन्न किया। यह ऐसा था मानो यीशु को तब इस अधिकार के साथ “नया जन्म” दिया गया कि स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मिक पुत्र के रूप में फिर एक बार जीवन पाए। उसकी तरह, उसके १,४४,००० आत्मिक भाइयों ने भी ‘नये सिरे से जन्म’ लिया है। (यूहन्ना ३:१-८; प्रहरीदुर्ग, नवंबर १५, १९९२, पृष्ठ ३-६, अंग्रेज़ी, देखिए।) साथ ही यीशु की तरह, परमेश्वर ने उन्हें भी अभिषिक्त किया है और उन्हें सुसमाचार सुनाने का काम दिया है।—यशायाह ६१:१, २; लूका ४:१६-२१; १ यूहन्ना २:२०.
आत्मा से उत्पन्न होने का सबूत
८. (क)यीशु के मामले में आत्मा से उत्पन्न होने का क्या सबूत था? (ख) उसके आरंभिक शिष्यों के मामले में आत्मा से उत्पन्न होने का क्या सबूत था?
८ इस बात का सबूत था कि यीशु आत्मा से उत्पन्न था। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने आत्मा को यीशु पर उतरते देखा और नव अभिषिक्त मसीहा के आत्मिक पुत्रत्व के बारे में परमेश्वर की घोषणा सुनी। लेकिन यीशु के शिष्य कैसे जानते कि वे आत्मा से उत्पन्न हैं? स्वर्ग जाने के दिन पर यीशु ने कहा: “यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्रात्मा से बपतिस्मा पाओगे।” (प्रेरितों १:५) यीशु के शिष्यों ने सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन “पवित्रात्मा से बपतिस्मा” पाया। उस समय आत्मा के उंडेले जाने के साथ “आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द” हुआ और हर शिष्य पर “आग की सी जीभें” दिखायी दीं। सबसे हैरतअंगेज़ बात थी कि “जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, [शिष्य] अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” सो इस बात का सबूत था कि मसीह के अनुयायियों के लिए परमेश्वर के पुत्र के रूप में स्वर्गीय महिमा का रास्ता खुल चुका है। इस सबूत को उन्होंने अपनी आँखों से देखा और अपने कानों से सुना।—प्रेरितों २:१-४, १४-२१; योएल २:२८, २९.
९.इस बात का कौन-सा सबूत था कि सामरी, कुरनेलियुस, और पहली सदी के अन्य लोग आत्मा से उत्पन्न थे?
९ कुछ समय बाद, सुसमाचारक फिलिप्पुस ने सामरिया में प्रचार किया। हालाँकि सामरियों ने उसके संदेश को क़बूल किया और बपतिस्मा लिया, फिर भी उनके पास इसका सबूत नहीं था कि परमेश्वर ने उन्हें अपने पुत्रों के रूप में उत्पन्न किया है। जब प्रेरित पतरस और यूहन्ना ने प्रार्थना की और उन विश्वास करनेवालों पर अपने हाथ रखे, “उन्हों ने पवित्र आत्मा पाया।” यह कुछ इस तरीक़े से हुआ जिससे वहाँ के देखनेवाले समझ सके। (प्रेरितों ८:४-२५) यह इस बात का सबूत था कि विश्वास करनेवाले सामरी परमेश्वर के पुत्रों के तौर पर उत्पन्न हो चुके हैं। उसी तरह, सा.यु. ३६ में कुरनेलियुस और दूसरे अन्यजातियों ने परमेश्वर की सच्चाई को क़बूल किया। पतरस और उसके साथ गए यहूदी विश्वासी “चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उंडेला गया है। क्योंकि उन्हों ने उन्हें भांति भांति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना।” (प्रेरितों १०:४४-४८) पहली सदी के कई मसीहियों ने ‘आत्मिक बरदान’ पाए, जैसे कि अलग-अलग भाषाओं में बोलना। (१ कुरिन्थियों १४:१२, ३२) इस तरह इन लोगों के पास स्पष्ट प्रमाण थे कि वे आत्मा से उत्पन्न थे। लेकिन, बाद के मसीही कैसे जानते कि वे आत्मा से उत्पन्न हैं या नहीं?
आत्मा की गवाही
१०, ११. रोमियों ८:१५-१७ के आधार पर, आप कैसे समझाएँगे कि आत्मा उन लोगों को गवाही देती है जो मसीह के सहवारिस हैं?
१० सभी १,४४,००० अभिषिक्त मसीहियों के पास पक्का प्रमाण है कि उनके पास परमेश्वर की आत्मा है। इस सिलसिले में पौलुस ने लिखा: “तुम को . . . लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं। आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाए कि उसके साथ महिमा भी पाएं।” (रोमियों ८:१५-१७) अभिषिक्त मसीहियों के पास अपने स्वर्गीय पिता के लिए पुत्रत्व की एक प्रबल भावना होती है। (गलतियों ४:६, ७) उन्हें पक्का यक़ीन है कि उन्हें स्वर्गीय राज्य में मसीह के सहवारिसों के तौर पर आत्मिक पुत्रत्व के लिए उत्पन्न किया गया है। इसमें, यहोवा की पवित्र आत्मा एक अहम भूमिका निभाती है।
११ परमेश्वर की पवित्र आत्मा के प्रभाव में, अभिषिक्त जनों की अंतरात्मा, या उनकी प्रबल मनोवृत्ति उन्हें मजबूर करती है कि परमेश्वर का वचन स्वर्गीय राज्य के बारे में जो कहता है उसे खुद पर लागू करें। मिसाल के तौर पर, जब वे पढ़ते हैं कि शास्त्र यहोवा के आत्मिक बच्चों के बारे में क्या कहता है, तो वे फ़ौरन इकरार करते हैं कि ऐसी बातें उन पर लागू होती हैं। (१ यूहन्ना ३:२) वे जानते हैं कि उन्होंने “मसीह यीशु का [और उसकी मृत्यु का] बपतिस्मा” लिया है। (रोमियों ६:३) उन्हें पक्का यक़ीन है कि वे परमेश्वर के आत्मिक पुत्र हैं, जिन्हें मरने के बाद यीशु की तरह स्वर्गीय महिमा के लिए पुनरुत्थित किया जाएगा।
१२. परमेश्वर की आत्मा ने अभिषिक्त मसीहियों में क्या पैदा किया है?
१२ आत्मिक पुत्रत्व के लिए उत्पन्न किया जाना यह एक पैदा की हुई इच्छा नहीं है। आत्मा से उत्पन्न जन स्वर्ग इसलिए नहीं जाना चाहते कि पृथ्वी पर आज की मुश्किलों से वे तंग आ गए हैं। (अय्यूब १४:१) इसके बजाय, यहोवा की आत्मा ने इन असली अभिषिक्त जनों में एक ऐसी उम्मीद और इच्छा पैदा की है जो आम तौर पर इंसानों में नहीं होती। ऐसे उत्पन्न जन जानते हैं कि ख़ुशहाल परिवार और दोस्तों से घिरे, परादीस पृथ्वी पर मानवी सिद्धता का अनंत जीवन बहुत ही बढ़िया बात होगी। लेकिन, ऐसी ज़िंदगी उनके दिल की मुख्य इच्छा नहीं है। अभिषिक्त जनों की स्वर्गीय आशा इतनी प्रबल होती है कि वे अपनी मर्ज़ी से पृथ्वी की सभी आशाओं और रिश्ते-नातों को क़ुरबान कर देते हैं।—२ पतरस १:१३, १४.
१३. दूसरा कुरिन्थियों ५:१-५ के मुताबिक़, पौलुस की “बड़ी लालसा” क्या थी, और यह आत्मा से उत्पन्न जनों के सिलसिले में क्या सूचित करता है?
१३ ऐसे लोगों में परमेश्वर द्वारा दी गयी स्वर्गीय जीवन की आशा इतनी प्रबल होती है कि उनकी भावनाएँ पौलुस की तरह होती हैं, जिसने लिखा: “हम जानते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं, परन्तु चिरस्थाई है। इस में तो हम कहरते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपने स्वर्गीय घर को पहिन लें। कि इस के पहिनने से हम नङ्गे न पाए जाएं। और हम इस डेरे में रहते हुए बोझ से दबे कहरते रहते हैं; क्योंकि हम उतारना नहीं, बरन और पहिनना चाहते हैं, ताकि वह जो मरनहार है जीवन में डूब जाए। और जिस ने हमें इसी बात के लिये तैयार किया है वह परमेश्वर है, जिस ने हमें बयाने में आत्मा भी दिया है।” (२ कुरिन्थियों ५:१-५) पौलुस की “बड़ी लालसा” थी की एक अमर आत्मिक प्राणी के तौर पर स्वर्ग के लिए पुनरुत्थित किया जाए। मानवी शरीर का ज़िक्र करते हुए उसने लाक्षणिक भाषा में गिर जानेवाले डेरे का इस्तेमाल किया, जो एक पक्के घर की बराबरी में नाज़ुक और अस्थायी बसेरा होता है। हालाँकि ऐसे मसीही जिनके पास आनेवाले स्वर्गीय जीवन के बयाने के रूप में पवित्र आत्मा है, इस पृथ्वी पर एक नश्वर शारीरिक देह में रहते हैं, फिर भी वे ‘परमेश्वर की ओर से भवन,’ यानी एक अमर, अविनाशी, आत्मिक देह की आस लगाते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:५०-५३) पौलुस की तरह वे उत्सुकता से कहते हैं: “हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं, और [मानवी] देह से अलग होकर प्रभु के साथ [स्वर्ग में] रहना और भी उत्तम समझते हैं।”—२ कुरिन्थियों ५:८.
ख़ास वाचाओं में बांधे गए
१४. स्मारक समारोह को स्थापित करते समय, यीशु ने पहले किस वाचा का ज़िक्र किया, और यह आत्मिक इस्राएलियों के संबंध में कौन-सी भूमिका निभाती है?
१४ आत्मा से उत्पन्न मसीही निश्चित हैं कि उन्हें दो ख़ास वाचाओं में बाँधा गया है। यीशु ने इनमें से एक का ज़िक्र किया जब उसने अख़मीरी रोटी और दाखरस का इस्तेमाल अपनी आनेवाली मृत्यु के स्मारक को स्थापित करने के लिए किया, और दाखरस के कटोरे के बारे में कहा: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” (लूका २२:२०; १ कुरिन्थियों ११:२५) नई वाचा के सहभागी कौन हैं? यहोवा परमेश्वर और आत्मिक इस्राएल के सदस्य—जिनकी ख़ातिर यहोवा का उद्देश्य है कि उन्हें स्वर्गीय महिमा में पहुँचाए। (यिर्मयाह ३१:३१-३४; गलतियों ६:१५, १६; इब्रानियों १२:२२-२४) यह नई वाचा यीशु के बहाए गए लहू द्वारा कारगर बनी, और यह जातियों में से यहोवा के नाम के लिए कुछ लोग निकालती है और इन आत्मा से उत्पन्न मसीहियों को इब्राहीम के “वंश” का एक भाग बनाती है। (गलतियों ३:२६-२९; प्रेरितों १५:१४) यह नई वाचा सभी आत्मिक इस्राएलियों को स्वर्ग में अमर जीवन के लिए पुनरुत्थित किए जाने के द्वारा महिमा में पहुँचाए जाने का प्रबंध करती है। क्योंकि यह “सनातन वाचा” है, इसके लाभ हमेशा-हमेशा के लिए बने रहेंगे। यह तो वक़्त ही बताएगा कि क्या यह वाचा हज़ार साल के दौरान और उसके बाद किसी और तरीक़े से भी भूमिका निभाएगी या नहीं।—इब्रानियों १३:२०.
१५. लूका २२:२८-३० के सामंजस्य में यीशु के अभिषिक्त अनुयायियों को किस अन्य वाचा में बाँधा जाने लगा है, और कब?
१५ उन “बहुत से पुत्रों को,” जिनके लिए यहोवा का मक़सद है कि उन्हें “महिमा में पहुंचाए,” व्यक्तिगत रूप से स्वर्गीय राज्य की वाचा में भी बांधा गया है। अपने और अपने पदचिन्हों पर चलनेवाले शिष्यों के बीच की इस वाचा के बारे में यीशु ने कहा: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।” (लूका २२:२८-३०) राज्य वाचा की स्थापना तब की गयी जब यीशु के शिष्य सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किए गए। यह वाचा मसीह के और उसके सह राजाओं के बीच हमेशा के लिए चलती रहती है। (प्रकाशितवाक्य २२:५) सो, आत्मा से उत्पन्न मसीहियों को पक्का यक़ीन है कि वे नई वाचा में और राज्य की वाचा में बंधे हैं। इसलिए, प्रभु के सांझ भोज के समारोह में, पृथ्वी पर बचे हुए सिर्फ़ थोड़े-से अभिषिक्त जन उस रोटी को खाते हैं, जो यीशु के निष्पाप मानव शरीर को सूचित करती है, और दाखमधु पीते हैं, जो मौत में बहाए गए उसके परिपूर्ण लहू को सूचित करता है और जो नई वाचा को वैध बनाता है।—१ कुरिन्थियों ११:२३-२६; प्रहरीदुर्ग, फरवरी १, १९९०, पृष्ठ १७-२० देखिए।
बुलाए हुए, चुने हुए, और वफ़ादार
१६, १७. (क) महिमा में पहुंचाए जाने के लिए, १,४४,००० लोगों के बारे में क्या सच होना चाहिए? (ख) “दस राजा” कौन हैं, और वे मसीह के “भाइयों” के पार्थिव शेषवर्ग के साथ कैसे पेश आते हैं?
१६ यीशु के छुड़ौती बलिदान का पहला प्रयोग १,४४,००० के लिए स्वर्गीय जीवन के लिए बुलाया जाना और परमेश्वर द्वारा आत्मा से उत्पन्न किए जाने के द्वारा चुन लिया जाना मुमकिन बनाता है। और इसमें कोई दो राय नहीं कि महिमा में पहुंचाए जाने के लिए, उन्हें ‘अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने के लिए भली भांति यत्न करते’ रहना है, और उन्हें मरते दम तक वफ़ादार साबित होना है। (२ पतरस १:१०; इफिसियों १:३-७; प्रकाशितवाक्य २:१०) ज़मीन पर अब भी बचा अभिषिक्त जनों का छोटा-सा शेषवर्ग अपनी खराई बनाए हुए है, हालाँकि सभी राजनैतिक शक्तियों को सूचित करनेवाले “दस राजा” उनका विरोध करते हैं। एक स्वर्गदूत ने कहा: “ये मेम्ने से लड़ेंगे, और मेम्ना उन पर जय पाएगा; क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु, और राजाओं का राजा है: और जो बुलाए हुए, और चुने हुए, और विश्वासी [वफ़ादार] उसके साथ हैं, वे भी जय पाएंगे।”—प्रकाशितवाक्य १७:१२-१४.
१७ मानवी शासक ‘राजाओं के राजा,’ यीशु के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि वह स्वर्ग में है। लेकिन वे उसके “भाइयों” के उस शेषवर्ग से नफ़रत ज़रूर करते हैं जो अब भी ज़मीन पर है। (प्रकाशितवाक्य १२:१७) यह अरमगिदोन के परमेश्वर के युद्ध में ख़त्म हो जाएगी, जब ‘राजाओं के राजा’ और उसके उन “भाइयों” को विजय दी जाएगी, “जो बुलाए हुए, और चुने हुए, और विश्वासी [वफ़ादार]” हैं। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) इस दरमियान, आत्मा से उत्पन्न मसीही बहुत ही व्यस्त हैं। यहोवा द्वारा उन्हें महिमा में पहुँचाए जाने से पहले वे अब क्या कर रहे हैं?
आपका जवाब क्या है?
◻ परमेश्वर किसे ‘महिमा में पहुँचाता’ है?
◻ “परमेश्वर से जन्मे” होने का मतलब क्या है?
◻ कुछ मसीहियों को कैसे ‘आत्मा गवाही देती’ है?
◻ आत्मा से उत्पन्न जनों को किन वाचाओं में बाँधा गया है?
[पेज 15 पर तसवीर]
सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, इस बात का प्रमाण दिया गया कि स्वर्गीय महिमा के लिए रास्ता खोला जा चुका था