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प्रभु का संध्या भोज इसे कितनी बार मनाया जाना चाहिए?प्रहरीदुर्ग—1994 | मार्च 1
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वह एक उत्सव
यह अनुपालन यीशु द्वारा उसकी मृत्यु के दिन शुरू किया गया। उसने अपने प्रेरितों के साथ यहूदी फसह का पर्व मनाया था। फिर उसने फसह की कुछ अखमीरी रोटी उन्हें यह कहते हुए दी: “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है।” उसके बाद, यीशु ने दाखमधु का कटोरा यह कहते हुए दिया: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” उसने यह भी कहा: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका २२:१९, २०; १ कुरिन्थियों ११:२४-२६) यह अनुपालन प्रभु का संध्या भोज, या स्मारक कहलाता है। यह एकमात्र उत्सव है जिसको मनाने की आज्ञा यीशु ने अपने अनुयायियों को दी।
अनेक गिरजे यह दावा करते हैं कि वे इस अनुपालन को भी अपने अन्य सभी पर्वों के साथ-साथ मनाते हैं, लेकिन अधिकांश इसे भिन्न रूप से मनाते हैं, वैसे नहीं जैसे यीशु ने आज्ञा दी थी। शायद उत्सव मनाने की बारंबारता सबसे उल्लेखनीय भिन्नता है। कुछ गिरजे इसे मासिक, साप्ताहिक, यहाँ तक कि दैनिक रूप से भी मनाते हैं। क्या यीशु का यही अभिप्राय था जब उसने अपने अनुयायियों से कहा: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो”? द न्यू इंग्लिश बाइबल कहती है: “इसे मेरे स्मारक के रूप में किया करो।” (१ कुरिन्थियों ११:२४, २५) एक स्मारक या जयंती कितनी बार मनायी जाती है? सामान्य रूप से, साल में सिर्फ़ एक बार।
यह भी याद रखिए कि यीशु ने इस अनुपालन को शुरू किया और फिर यहूदी कलेण्डर की तारीख़, निसान १४ को मरा।a वह फसह का दिन था, वह त्योहार जो यहूदियों को उस बड़े छुटकारे की याद दिलाता था जो उन्होंने मिस्र में सा.यु.पू. १६वीं शताब्दी में अनुभव किया था। उस समय एक मेम्ने के बलिदान के परिणामस्वरूप यहूदियों के पहलौठों का उद्धार हुआ, जबकि यहोवा के स्वर्गदूत ने मिस्र के सभी पहलौठों का घात किया।—निर्गमन १२:२१, २४-२७.
यह हमारी समझ में कैसे मदद करता है? मसीही प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।” (१ कुरिन्थियों ५:७) यीशु की मृत्यु फसह का बड़ा बलिदान था, जिसने मानवजाति को कहीं बड़े उद्धार का अवसर दिया। इसलिए, मसीहियों के लिए मसीह की मृत्यु के स्मारक ने यहूदी फसह का स्थान ले लिया है।—यूहन्ना ३:१६.
फसह एक वार्षिक उत्सव था। तो फिर, तर्कसंगत रूप से, स्मारक भी वैसा ही है। फसह—जिस दिन यीशु मरा—हमेशा यहूदी महीने, निसान के १४वें दिन आता था। अतः, मसीह की मृत्यु का स्मारक साल में एक बार कलेण्डर की उस तारीख़ को मनाया जाना चाहिए जो निसान १४ से मेल खाती है। वर्ष १९९४ में वह दिन सूर्यास्त के बाद, शनिवार, मार्च २६ है। लेकिन ऐसा क्यों है कि मसीहीजगत के गिरजों ने इसे ख़ास अनुपालन का दिन नहीं बनाया है? इतिहास की एक हल्की-सी झलक इस प्रश्न का उत्तर देगी।
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प्रभु का संध्या भोज इसे कितनी बार मनाया जाना चाहिए?प्रहरीदुर्ग—1994 | मार्च 1
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a निसान, यहूदी साल का पहला महीना, नए चाँद के पहली बार दिखने से शुरू होता था। अतः निसान १४ हमेशा पूर्णिमा के समय आता था।
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