-
आपने पूछाप्रहरीदुर्ग (अध्ययन)—2018 | नवंबर
-
-
अपनी ज़िंदगी की आखिरी शाम यीशु ने अपने प्रेषितों को सलाह दी कि वे भाइयों के बीच ऊँचा ओहदा पाने की कोशिश न करें। उसने उनसे कहा, “दुनिया के राजा लोगों पर हुक्म चलाते हैं और जो अधिकार रखते हैं, वे दानी कहलाते हैं। मगर तुम्हें ऐसा नहीं होना है।”—लूका 22:25, 26.
-
-
आपने पूछाप्रहरीदुर्ग (अध्ययन)—2018 | नवंबर
-
-
जब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मगर तुम्हें ऐसा नहीं होना है,” तो उसके कहने का मतलब क्या था? क्या वह यह कहना चाहता था कि उन्हें लोगों की भलाई के बारे में नहीं सोचना चाहिए? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था। शायद वह यह कहना चाह रहा था कि उदारता दिखाने के पीछे हमारा इरादा सही होना चाहिए।
यीशु के दिनों में अमीर लोग अपना नाम कमाना चाहते थे, इसलिए वे रंग-भूमि में नाटक और खेल-कूद आयोजित करते थे, बगीचे और मंदिर बनवाते थे और इसी तरह के दूसरे कामों में दान देते थे। लेकिन यह सब वे लोगों से वाह-वाही पाने, मशहूर होने या चुनाव में मत पाने के लिए करते थे। एक लेख में बताया गया है, “हालाँकि ऐसे दानी लोगों ने सच्चे मन से कुछ उदारता के काम किए थे, लेकिन उनके ज़्यादातर कामों के पीछे राजनैतिक स्वार्थ होता था।” यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उनमें बड़ा बनने का जुनून और स्वार्थ की भावना नहीं होनी चाहिए।
कुछ साल बाद प्रेषित पौलुस ने इसी अहम सच्चाई पर ज़ोर दिया कि दान देते वक्त हमारा इरादा सही होना चाहिए। उसने कुरिंथ के मसीहियों को लिखा, “हर कोई जैसा उसने अपने दिल में ठाना है वैसा ही करे, न कुड़कुड़ाते हुए, न ही किसी दबाव में क्योंकि परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”—2 कुरिं. 9:7.
-