मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
7-13 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 7-8
“अपना यातना का काठ उठाओ और मेरे पीछे चलते रहो”
अ.बाइ. मर 8:34 अध्ययन नोट
वह खुद से इनकार करे: इससे पता चलता है कि एक इंसान को अपनी ज़िंदगी पर जो अधिकार होता है उसे वह खुशी-खुशी त्याग दे या परमेश्वर को दे दे। इसमें अपनी इच्छाएँ, सुख-सुविधाएँ या अपने लक्ष्यों का त्याग करना भी शामिल हो सकता है। (2कुर 5:14, 15) यहाँ जो यूनानी क्रिया इस्तेमाल हुई है, मरकुस ने वही क्रिया उन आयतों में इस्तेमाल की जिनमें उसने बताया कि पतरस यीशु को जानने से इनकार करेगा और ऐसा करने के बाद वह इस बात को याद करता है।—मर 14:30, 31, 72.
आप जीवन की दौड़ में कैसे दौड़ रहे हैं?
14 शिष्य और अन्य व्यक्तियों की एक भीड़ को यीशु मसीह ने कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे (या, “उसे अपने आप को ‘ना’ कहना चाहिए,” चार्ल्स बी. विलियम्स अनुवाद) और अपना यातना स्तंभ उठाकर लगातार मेरे पीछे हो ले।” (मरकुस 8:34, NW) जब हम इस आमंत्रण को स्वीकार करते हैं, हमें “लगातार” करने के लिए तैयार होना चाहिए, इसलिए नहीं कि आत्म-त्याग में कुछ ख़ास खूबी है, परन्तु इसलिए कि एक पल की भूल, फ़ैसले में एक चूक, सब किए कराए पर पानी फेर सकती है, यहाँ तक कि हमारी सदा की ख़ैरियत को ख़तरे में डाल सकती है। आध्यात्मिक तरक़्क़ी अक़सर आहिस्ता होती है, लेकिन हर पल तैयार न होने पर यह तुरन्त रद्द की जा सकती है!
हमेशा तक जीने के लिए आप क्या कुरबानी देंगे?
3 इसी मौके पर यीशु ने दो बड़े ही दिलचस्प सवाल किए। पहला, “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण खोए तो उसे क्या लाभ?” दूसरा, “मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मर. 8:36, 37, NHT) पहले सवाल का जवाब तो साफ है। एक इंसान दुनिया-जहान पाकर अपनी जान से हाथ धो बैठे, तो बेशक उसे कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि वह अपनी दौलत और साज़ो-सामान का लुत्फ तभी उठा सकता है, जब वह ज़िंदा हो। यीशु के दूसरे सवाल से उसके सुननेवालों को शायद शैतान का वह दावा याद आया होगा, जो उसने अय्यूब के दिनों में किया था: “प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” (अय्यू. 2:4) जो लोग यहोवा की उपासना नहीं करते, उनके मामले में शैतान का यह दावा शायद सच हो। कई लोग तो ज़िंदा रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, अगर उन्हें नैतिक मूल्यों से समझौता करना पड़े, तो उससे भी नहीं कतराते। लेकिन मसीही उनके जैसे नहीं।
4 यीशु इसलिए नहीं आया था कि हमें इस दुनिया में अच्छी सेहत, दौलत और लंबी उम्र दे। इसके बजाय, वह इसलिए आया था कि हमें नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा दे। और यह आशा हमारे लिए बड़ी अनमोल है। (यूह. 3:16) तो फिर एक मसीही, यीशु के पहले सवाल का मतलब इस तरह समझेगा: “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अनंत जीवन की अपनी आशा खो दे तो उसे क्या लाभ?” जवाब है उसे कोई लाभ नहीं। (1 यूह. 2:15-17) यीशु के दूसरे सवाल का मतलब इस तरह समझा जा सकता है: ‘नयी दुनिया में जीने की अपनी आशा पक्की करने के लिए मैं आज किस हद तक त्याग करने को तैयार हूँ?’ हमारे जीने का तरीका इस सवाल का जवाब देगा और यह ज़ाहिर करेगा कि हम इस आशा को कितनी मज़बूती से थामे हुए हैं।—यूहन्ना 12:25 से तुलना कीजिए।
जीज़स द वे पेज 143 पै 4
इंसान का बेटा कौन है?
जी हाँ, अगर यीशु के चेले उसकी मंज़ूरी पाना चाहते हैं, तो उनमें हिम्मत और त्याग की भावना होनी चाहिए। यीशु कहता है, “जो कोई इस विश्वासघाती और पापी पीढ़ी के सामने मेरा चेला होने और मेरे वचनों पर विश्वास करने में शर्मिंदा महसूस करता है, उसे इंसान का बेटा भी उस वक्त स्वीकार करने में शर्मिंदा महसूस करेगा, जब वह अपने पिता से महिमा पाकर पवित्र स्वर्गदूतों के साथ आएगा।” (मरकुस 8:38) जब यीशु आएगा, तो “वह हरेक को उसके चालचलन के मुताबिक बदला देगा।”—मत्ती 16:27.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
आपने पूछा
यीशु के विरोधियों के लिए हाथ न धोना क्यों एक मसला बन गया था?
▪ यह उन कई मसलों में से एक था जिनको लेकर यीशु के विरोधी, उसमें और उसके चेलों में दोष निकालते थे। मूसा के कानून में बताया गया था कि कौन-सी चीज़ें एक इंसान को अशुद्ध कर सकती हैं। जैसे, शरीर से रिसाव, कोढ़ और इंसान और जानवरों की लाश को छूने से। कानून में यह भी हिदायतें दी गयी थीं कि अशुद्धता कैसे दूर की जा सकती है। जैसे, एक व्यक्ति बलिदान चढ़ाकर, नहाकर या धोकर या पानी छिड़ककर ऐसा कर सकता था।—लैव्य. अध्या. 11-15; गिन. अध्या. 19.
यहूदी धर्म-गुरुओं ने, जिन्हें रब्बी भी कहा जाता है, इन कानूनों में खुद के नियम जोड़ दिए थे। एक किताब के मुताबिक रब्बियों ने और भी नियम बना दिए थे जिनमें बारीक जानकारियाँ थी कि एक व्यक्ति को क्या बात अशुद्ध कर सकती है और कैसे उससे दूसरे अशुद्ध हो सकते हैं। रब्बियों ने ये भी नियम बनाए थे कि किस तरह के बरतन और चीज़ें अशुद्ध हो सकती हैं और अशुद्ध नहीं हो सकतीं। साथ ही, दोबारा शुद्ध होने के लिए लोगों को कौन-से रीति-रिवाज़ मानने थे।
यीशु के विरोधियों ने उससे पूछा, “आखिर क्यों तेरे चेले हमारे बुज़ुर्गों की ठहरायी परंपराओं का पालन नहीं करते और दूषित हाथों से खाना खाते हैं?” (मर. 7:5) वे धर्म-गुरु यह नहीं कह रहे थे कि बिना हाथ धोए खाना खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं है। फरीसियों ने नियम बनाया था कि खाना खाने से पहले एक व्यक्ति को रिवाज़ के मुताबिक हाथ धुलवाने चाहिए। ऊपर ज़िक्र की गयी किताब यह भी बताती है, “सवाल यह भी था कि पानी डालने के लिए कौन-से बरतन इस्तेमाल किए जाने चाहिए, किस तरह का पानी अच्छा रहेगा, किसे पानी डालना चाहिए और कहाँ तक हाथ धोने चाहिए।”
इंसानों के बनाए इन सभी नियमों के बारे में यीशु का क्या कहना था? उसने यहूदी धर्म-गुरुओं से कहा, “यशायाह ने तुम कपटियों के बारे में बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी, जैसा लिखा है: ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनके दिल मुझसे [यहोवा से] कोसों दूर रहते हैं। ये बेकार ही मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।’ इंसानों की परंपराओं को पकड़े रहने के लिए, तुम परमेश्वर की आज्ञाओं को छोड़ देते हो।”—मर. 7:6-8.
क्या आप में “मसीह का मन” है?
9 मरकुस कहता है कि वह आदमी बहरा था और ठीक से बोल नहीं पाता था। इस आदमी को अपनी इस कमज़ोरी की वज़ह से चार लोगों के सामने आने में कितनी शर्मिंदगी और झिझक महसूस होती होगी। शायद उसकी इन्हीं भावनाओं को समझते हुए यीशु ने कुछ ऐसा किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। वह उसे भीड़ से अलग ले गया और इशारों से उसे समझाया कि वह आगे क्या करनेवाला है। यीशु ने “अपनी उंगलियां उसके कानों में डालीं, और थूक कर उस की जीभ को छूआ।” (मरकुस 7:33) फिर यीशु ने स्वर्ग की ओर देखकर आह भरी। ऐसा करके यीशु मानो उससे यह कह रहा था कि ‘मैं परमेश्वर से शक्ति पाकर तुझे चंगा करनेवाला हूँ।’ इसके बाद यीशु ने कहा: “खुल जा।” (मरकुस 7:34) फौरन वह आदमी सुनने लगा और दूसरों की तरह ठीक से बोलने भी लगा।
10 इस घटना में यीशु ने उस आदमी के साथ जो कुछ किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं? यही कि यीशु लोगों की भावनाओं को, उनके जज़्बात को समझता था, उनके लिए उसके दिल में हमदर्दी थी। उसकी इसी हमदर्दी की वज़ह से वह लोगों की मदद किए बिना नहीं रह पाता था। वह कभी लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाता था। हम यीशु के नक्शेकदम पर चलना चाहते हैं, इसलिए हमें भी दूसरों के लिए अपने दिल में हमदर्दी पैदा करनी चाहिए, और हमें अपने बर्ताव में इसे दिखाना चाहिए। ऐसा करके हम दिखाएँगे कि हममें मसीह का मन है। बाइबल में हमसे कहा गया है: ‘सब के सब एक दिल और हमदर्द रहो, भाइयों से प्यार रखो, नरम दिल और नम्र बनो।’ (1 पतरस 3:8, हिंदुस्तानी बाइबल) इसका मतलब यह है कि हमें अपनी बोलचाल में दूसरों की भावनाओं और जज़्बात का लिहाज़ करना चाहिए।
11 यह हम कलीसिया में अपने भाइयों के साथ कैसे कर सकते हैं? हमारे मन में अपने भाइयों के लिए इज़्ज़त और सम्मान होना चाहिए, और जैसे हम चाहते हैं कि लोग हमारे साथ व्यवहार करें, हमें भी दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। (मत्ती 7:12) इसका मतलब है कि जब हम दूसरों के साथ बात करते हैं तो हम सोच-समझकर बात करेंगे और यह भी ध्यान देंगे कि हम किस अंदाज़ में बात करते हैं। (कुलुस्सियों 4:6) याद रखिए कि बिना सोच-समझकर “उतावली से बोलने वाले की बातें तलवार के समान छेदती हैं।” (नीतिवचन 12:18, NHT) परिवार में लिहाज़ कैसे दिखाया जा सकता है? जो पति-पत्नी एक-दूसरे को सचमुच दिल से प्यार करते हैं, वे एकदूसरे की भावनाओं की कदर करते हैं। (इफिसियों 5:33) वे आपस में कठोर, तीखी, कड़वी और चुभनेवाली बात नहीं करते, एकदूसरे पर ताना नहीं कसते, और हर बात में नुक़्स नहीं निकालते। ऐसी बातों से अपने साथी के दिल को चोट ही पहुँचती है। तलवार का घाव भर जाता है मगर ऐसी बातों से पहुँचनेवाले ज़ख्म आसानी से नहीं भरते। बच्चों की भी भावनाएँ होती हैं, आत्म-सम्मान होता है। उनका लिहाज़ करना माता-पिताओं के लिए बहुत ज़रूरी है। जब बच्चा कोई गलती करता है, तो माता-पिता को उसकी गलती सुधारते समय उसकी बेइज़्ज़ती नहीं करनी चाहिए, उसे ज़लील नहीं करना चाहिए। (कुलुस्सियों 3:21) इस तरह जब हम दूसरों का लिहाज़ करते हैं, यानी उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उनके साथ पेश आते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हममें मसीह का मन है।
14-20 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 9-10
“विश्वास मज़बूत करनेवाला एक दर्शन”
बाइबल की भविष्यवाणियाँ मसीह की तरफ इशारा करती हैं
9 यीशु को अपने मसीहा होने का सबूत दिए एक साल से ज़्यादा समय बीत चुका है। सामान्य युग 32 का फसह आया और चला गया। यीशु पर विश्वास करनेवाले बहुत-से चेलों ने अब उसके पीछे चलना छोड़ दिया है। इसकी वजह शायद उन पर ढाए गए ज़ुल्म, धन-दौलत का लोभ या जीवन की चिंताएँ रही होंगी। दूसरे शायद यह देखकर उलझन में पड़ गए या निराश हो गए कि जब लोगों ने यीशु को राजा बनाना चाहा, तो उसने क्यों इनकार कर दिया। और जब यहूदी धर्म-गुरुओं ने यीशु को स्वर्ग से चिन्ह दिखाने को कहा, तब उसने कोई चिन्ह नहीं दिखाया जिससे उसकी महिमा होती। (मत्ती 12:38, 39) यीशु के ऐसा इनकार करने की वजह से शायद कुछ चेलों के मन में संदेह पैदा हुआ। यही नहीं, यीशु ने अपने चेलों के सामने कुछ ऐसी बातों का खुलासा करना शुरू किया था जिन्हें समझना उन्हें बड़ा मुश्किल लग रहा था। जैसे उसने कहा: “मुझे अवश्य है कि यरूशलेम को जाऊं, और पुरनियों और महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुख उठाऊं; और मार डाला जाऊं।”—मत्ती 16:21-23.
10 बस अगले 9-10 महीनों में वह घड़ी आती जब ‘यीशु जगत छोड़कर पिता के पास जाता।’ (यूहन्ना 13:1) इसलिए यीशु को अपने वफादार चेलों के बारे में बहुत चिंता होने लगी। वह उनमें से कुछ चेलों को ठीक वही चीज़ दिखाने का वादा करता है, जो उसने अविश्वासी यहूदियों को दिखाने से इनकार किया था। जी हाँ, स्वर्ग से एक चिन्ह। यीशु कहता है: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो यहां खड़े हैं, उन में से कितने ऐसे हैं; कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।” (मत्ती 16:28) बेशक यीशु यह नहीं कह रहा था कि उसके कुछ चेले तब तक ज़िंदा रहेंगे, जब तक कि मसीहाई राज्य सन् 1914 में स्थापित नहीं हो जाता। इसके बजाय, यीशु अपने तीन करीबी चेलों को एक दर्शन में अपनी उस शानदार महिमा की झलक दिखाना चाहता था, जो उसे राजा बनने पर मिलती। यही दर्शन रूपांतरण कहलाता है।
बाइबल की भविष्यवाणियाँ मसीह की तरफ इशारा करती हैं
11 यीशु छः दिन के बाद पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर ले जाता है। शायद यह हर्मोन पर्वत था। वहाँ ‘उनके सामने यीशु का रूपान्तर होता है और उसका मुंह सूर्य की नाईं चमकता और उसका वस्त्र ज्योति की नाईं उजला हो जाता है।’ यीशु के साथ मूसा और एलिय्याह नबी बातें करते दिखायी देते हैं। यह सनसनीखेज़ घटना ज़रूर रात में घटी होगी, जिससे उसकी महिमा का तेज और भी साफ दिखायी दिया होगा। दरअसल, यह दर्शन इतना असल लग रहा था कि पतरस ने वहाँ तीन मण्डप बनाना चाहा—एक यीशु के लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए। पतरस अभी बोल ही रहा है कि एक उजला बादल उन्हें छा लेता है और उसमें से यह आवाज़ आती है: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं: इस की सुनो।”—मत्ती 17:1-6.
अ.बाइ. मर 9:7 अध्ययन नोट
आवाज़: खुशखबरी की किताबों में बताया गया है कि यहोवा ने तीन मौकों पर इंसानों से बात की और यह दूसरा मौका था।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
मरकुस किताब की झलकियाँ
10:6-9. परमेश्वर चाहता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे से कभी अलग न हों। इसलिए शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ आने पर पति-पत्नी को जल्दबाज़ी में तलाक नहीं लेना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें बाइबल के सिद्धांतों को लागू करने के ज़रिए समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए।—मत्ती 19:4-6.
अ.बाइ. मर 10:17, 18 अध्ययन नोट
अच्छे गुरु: ज़ाहिर है कि यह आदमी “अच्छे गुरु” कहकर यीशु की चापलूसी कर रहा था और बस दिखावे के लिए यह उपाधि इस्तेमाल कर रहा था। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि धर्म गुरु माँग करते थे कि इस तरह की उपाधि देकर उनका आदर किया जाए। हालाँकि यीशु को इस बात से एतराज़ नहीं था कि लोग सही इरादे से उसे “गुरु” और “प्रभु” कहें (यूह 13:13), मगर इस मौके पर उसने सारा आदर-सम्मान अपने पिता को देने के लिए कहा।
कोई अच्छा नहीं है, सिवा परमेश्वर के: यहाँ यीशु कह रहा था कि अच्छा क्या है इसका स्तर तय करने का हक सिर्फ यहोवा को है। सारे जहान का मालिक होने के नाते सिर्फ उसी को यह तय करने का अधिकार है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। अच्छे-बुरे के ज्ञान के पेड़ का फल खाकर आदम और हव्वा ने यहोवा से बगावत की और उसका यह हक खुद लेना चाहा। मगर यीशु उनके जैसा नहीं था, उसने नम्र होकर स्तर ठहराने का हक अपने पिता के पास रहने दिया। परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में अच्छाई के स्तर साफ-साफ बताए हैं।—मर 10:19.
जीएँ मसीहियो की तरह
तलाकनामा: कानून में एक नियम था कि अगर कोई आदमी अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है, तो उसे कानूनी दस्तावेज़ तैयार करना था और शायद उसे मुखियाओं से सलाह लेनी थी। इस तरह यह नियम उसे इस गंभीर फैसले पर दोबारा सोचने का काफी वक्त देता था। ज़ाहिर है कि यह नियम इसराएलियों को जल्दबाज़ी में तलाक लेने से रोकता था और औरतों के हक की हिफाज़त करता था। (व्य 24:1) मगर यीशु के दिनों में धर्म गुरुओं ने छोटी-मोटी बातों पर तलाक लेने की छूट दे दी थी। पहली सदी के इतिहासकार जोसीफस ने, जो खुद एक तलाकशुदा फरीसी था, कहा कि तलाक “किसी भी वजह से लिया जा सकता है (और आदमियों के पास तलाक देने की कई वजह हैं)।”
अपनी पत्नी को तलाक देता है: या “अपनी पत्नी को भेज देता है।” मरकुस में लिखी यीशु की बात पढ़ने से लग सकता है कि एक व्यक्ति चाहे किसी भी वजह से तलाक ले वह दोबारा शादी नहीं कर सकता। लेकिन यह आयत समझने के लिए ज़रूरी है कि हम मत 19:9 को ध्यान में रखें जहाँ यीशु की पूरी बात लिखी है। वहाँ यीशु के ये शब्द भी दर्ज़ हैं: “नाजायज़ यौन-संबंध के अलावा किसी और वजह से।” इससे पता चलता है कि एक व्यक्ति तब व्यभिचार का दोषी होता है जब वह “नाजायज़ यौन-संबंध” (यूनानी में पोर्निया) को छोड़ किसी और वजह से तलाक लेता है।
उस पहली औरत का हक मारता है और व्यभिचार करने का दोषी है: या “उसके खिलाफ व्यभिचार करता है।” रब्बी सिखाते थे कि आदमी “किसी भी वजह से” अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। (मत 19:3, 9) लेकिन यीशु ने यहाँ इस शिक्षा को गलत ठहराया। कोई अपनी पत्नी के खिलाफ व्यभिचार कर सकता है, यह बात ज़्यादातर यहूदियों के लिए नयी थी क्योंकि रब्बियों का कहना था कि एक पति अपनी पत्नी के खिलाफ कभी व्यभिचार कर ही नहीं सकता। वे सिखाते थे कि सिर्फ पत्नी बेवफा हो सकती है। लेकिन यीशु ने इस आयत में लिखी बात कहकर सिखाया कि पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे के वफादार रहना चाहिए। इस तरह उसने औरतों का सम्मान किया और उनका दर्जा उठाया।
21-27 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 11-12
“उसने सब लोगों से ज़्यादा डाला”
अ.बाइ. मर 12:41, 42 अध्ययन नोट
दान-पात्रों: प्राचीन यहूदी लेखों में बताया गया है कि इन दान-पात्रों का आकार तुरही या नरसिंगे जैसा था। ज़ाहिर है कि इनका मुँह ऊपर की तरफ होता था और छोटा होता था। लोग इनमें तरह-तरह के चढ़ावों के लिए दान डालते थे। दान-पात्रों के लिए यहाँ इस्तेमाल हुआ यूनानी शब्द यूह 8:20 में भी आया है, जहाँ दान-पात्रों की जगह के बारे में बताया गया है। मुमकिन है कि यह जगह ‘औरतों के आँगन’ में थी। (अति. ख11 देखें।) रब्बियों के लेखों के मुताबिक उस आँगन में दीवारों के पास 13 दान-पात्र रखे रहते थे। माना जाता है कि मंदिर में खज़ाने का गोदाम भी था जिसमें इन दान-पात्रों का पैसा लाकर रखा जाता था।
दो पैसे: शा., “दो लेप्टा।” शब्द लेप्टा यूनानी शब्द लेप्टौन का बहुवचन है, जिसका मतलब है एक छोटी और पतली चीज़। लेप्टौन एक ऐसा सिक्का था जो एक दीनार का 1/128वाँ हिस्सा होता था। ज़ाहिर है कि इसराएल में यह ताँबे या काँसे का सबसे छोटा सिक्का होता था।—शब्दावली में “लेप्टौन” और अति. ख14 देखें।
जिनकी कीमत न के बराबर थी: शा., “जो एक कौद्रान के बराबर थे।” यूनानी शब्द कोद्रानटेस (लातीनी शब्द कौद्रान्स से निकला) का मतलब है, ताँबे या काँसे का रोमी सिक्का जो एक दीनार का 1/64वाँ हिस्सा होता था। यहूदी जो सिक्के इस्तेमाल करते थे, उनकी कीमत बताने के लिए मरकुस ने यहाँ रोमी मुद्रा का ज़िक्र किया।—अति. ख14 देखें।
प्र97 10/15 पेज 16-17 पै 16-17
यहोवा तन मन से की गयी आपकी सेवा को बहुमूल्य समझता है
16 दो दिन बाद, निसान 11 को, यीशु ने मंदिर में लगभग पूरा दिन बिताया, जहाँ उसके अधिकार पर सवाल उठाया गया था और उसने कर, पुनरुत्थान, और अन्य मामलों पर कठिन सवालों के जवाब दिए थे। उसने अन्य बातों समेत, “विधवाओं के घरों को खा” जाने के लिए शास्त्रियों और फरीसियों की निंदा की। (मरकुस 12:40) फिर यीशु बैठ गया, स्पष्टतः स्त्रियों के आँगन में, जहाँ यहूदी परंपरा के अनुसार 13 दान पेटियाँ थीं। वह कुछ देर तक बैठा, और उसने लोगों को अपने अंशदान डालते हुए ध्यान से देखा। कई अमीर लोग आए, कुछ लोग शायद आत्म-धार्मिकता के दिखावे के साथ, यहाँ तक कि ठाठ-बाट के साथ। (मत्ती 6:2 से तुलना कीजिए।) यीशु की नज़र एक ख़ास स्त्री पर टिक गयी। किसी साधारण व्यक्ति को शायद उसमें या उसकी भेंट में कोई ख़ासियत नहीं नज़र आयी होगी। परंतु यीशु, जो दूसरों के हृदय जान सकता था, जानता था कि वह “एक कंगाल विधवा” थी। वह उसकी भेंट की रक़म भी ठीक-ठीक जानता था—“दो दमड़ियां, जो एक अधेले के बराबर होती हैं।”—मरकुस 12:41, 42.
17 यीशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया, क्योंकि वह चाहता था कि वे उस बात को अपनी आँखों से देखें जो वह सिखाने ही वाला था। यीशु ने कहा कि उसने “मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से . . . सब से बढ़कर डाला है।” उसकी राय में, बाक़ी सभी लोगों ने मिलकर जितना डाला, उससे बढ़कर उसने डाला। उसने “जो कुछ उसका था” वह दिया—अपनी आख़िरी फूटी कौड़ी भी। ऐसा करने के द्वारा, उसने अपने-आपको यहोवा के चिंता करनेवाले हाथों के हवाले कर दिया। इस प्रकार, परमेश्वर को देने के एक उदाहरण के रूप में जिस व्यक्ति को चुना गया वह ऐसी औरत है जिसकी भेंट भौतिक क़ीमत में लगभग कुछ भी नहीं थी। लेकिन, परमेश्वर की नज़रों में वह बहुमूल्य थी!—मरकुस 12:43, 44; याकूब 1:27.
यहोवा तन मन से की गयी आपकी सेवा को बहुमूल्य समझता है
17 यीशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया, क्योंकि वह चाहता था कि वे उस बात को अपनी आँखों से देखें जो वह सिखाने ही वाला था। यीशु ने कहा कि उसने “मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से . . . सब से बढ़कर डाला है।” उसकी राय में, बाक़ी सभी लोगों ने मिलकर जितना डाला, उससे बढ़कर उसने डाला। उसने “जो कुछ उसका था” वह दिया—अपनी आख़िरी फूटी कौड़ी भी। ऐसा करने के द्वारा, उसने अपने-आपको यहोवा के चिंता करनेवाले हाथों के हवाले कर दिया। इस प्रकार, परमेश्वर को देने के एक उदाहरण के रूप में जिस व्यक्ति को चुना गया वह ऐसी औरत है जिसकी भेंट भौतिक क़ीमत में लगभग कुछ भी नहीं थी। लेकिन, परमेश्वर की नज़रों में वह बहुमूल्य थी!—मरकुस 12:43, 44; याकूब 1:27.
प्र88 10/1 पेज 27 पै 7
क्या आपका अर्पण एक त्याग है?
इस वृतांत से हम अनेक मूल्यवान उपदेशों को सीख सकते हैं विशेष प्रमुखता से वह यह हो सकता है, जबकि हमारे सबके पास सच्ची उपासना को अपनी भौतिकता से आधार देने के लिए साधन है, फिर भी जो हम सहजता से दे सकते हैं वह नहीं, तो हमारी दृष्टी में जो मूल्यवान है उसे देते हैं, तो वह परमेश्वर की दृष्टी में मूल्यवान है। दूसरी रीति से देखा जायें तो, जिससे हमें कुछ क्षति नहीं पहुंचेगी ऐसा अर्पण हम देते हैं तो क्या हमारा वह अर्पण त्याग है?
‘परमेश्वर के वचन’ में बुद्धि
15 क्या यह बात मायने नहीं रखती कि उस दिन मंदिर में आनेवाले तमाम लोगों में से, सिर्फ उस विधवा पर ध्यान दिया गया और उसके बारे में बाइबल में दर्ज़ करवाया गया? इस मिसाल से, यहोवा हमें सिखाता है कि वह एक कदरदान परमेश्वर है। वह पूरे तन-मन से दिए गए हमारे हर दान से खुश होता है, फिर चाहे दूसरों के दान की तुलना में हमारा दान कितना ही कम क्यों न दिखायी दे। दिल को दिलासा देनेवाली इतनी बड़ी सच्चाई हमें सिखाने का, यहोवा के पास इस मिसाल से बेहतर और क्या तरीका हो सकता था!
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. मर 11:17 अध्ययन नोट
सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर: खुशखबरी की किताबों के तीन लेखकों ने यश 56:7 की बात लिखी, लेकिन सिर्फ मरकुस ने ये शब्द लिखे: “सब राष्ट्रों [देश-देश के लोगों] के लिए।” (मत 21:13; लूक 19:46) यरूशलेम का मंदिर इसलिए बना था ताकि इसराएली और परमेश्वर का डर माननेवाले परदेसी वहाँ आकर यहोवा की उपासना कर सकें और उससे प्रार्थना कर सकें। (1रा 8:41-43) यीशु ने उन यहूदियों को फटकार लगाकर एकदम सही किया, क्योंकि वे मंदिर में व्यापार कर रहे थे और उन्होंने उसे लुटेरों का अड्डा बना दिया था। इस वजह से सब राष्ट्रों के लोग यहोवा के प्रार्थना के घर में नहीं आ रहे थे। इस तरह उनसे यहोवा को जानने का मौका छीना जा रहा था।
जीज़स द वे पेज 244 पै 7
अंजीर का पेड़—विश्वास के बारे में एक सीख
इसके कुछ ही समय बाद यीशु और उसके चेले यरूशलेम आते हैं। अपने दस्तूर के मुताबिक यीशु मंदिर जाता है और लोगों को सिखाने लगता है। एक दिन पहले यीशु ने पैसे बदलनेवाले सौदागरों के साथ जो किया था, शायद उस वजह से प्रधान याजक और मुखिया यीशु से कहने लगे, “तू ये सब किस अधिकार से करता है? किसने तुझे यह अधिकार दिया है?”—मरकुस 11:28.
28 मई–3 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 13-14
“इंसानों का डर एक फंदा है—इसमें मत फँसिए!”
विश्वास की मिसाल पेज 200 पै 14
उसने प्रभु से माफ करना सीखा
14 पतरस बहुत एहतियात बरतते हुए भीड़ के पीछे-पीछे जा रहा था। आखिरकार वह यरूशलेम की एक बहुत बड़ी हवेली के फाटक के पास पहुँचा। यह हवेली कैफा नाम के अमीर और ताकतवर महायाजक की थी। आम तौर पर ऐसी हवेलियों में बीचों-बीच एक आँगन हुआ करता था और सामने की तरफ एक फाटक। पतरस फाटक के पास पहुँच तो गया, मगर उसे अंदर नहीं जाने दिया गया। यूहन्ना महायाजक को जानता था, इसलिए वह पहले से ही अंदर था। उसने फाटक पर खड़ी दासी से कहा कि पतरस को अंदर आने दे। मगर लगता है अंदर आने के बाद पतरस, यूहन्ना के साथ-साथ नहीं रहा और न ही उसने हवेली के अंदर यीशु के पास जाने की कोशिश की। इसके बजाय, वह आँगन में ही रहा जहाँ कुछ दास और सेवक ठंड में आग ताप रहे थे। वहाँ से वे यीशु के खिलाफ झूठी गवाही देनेवालों को अंदर आते-जाते देख सकते थे।—मर. 14:54-57; यूह. 18:15, 16, 18.
इंसाइट-2 पेज 619 पै 6
पतरस
पतरस एक और चेले की मदद से महायाजक के घर के आँगन में पहुँच गया। यह चेला शायद पतरस के पीछे-पीछे गया था या फिर उसके साथ ही महायाजक के घर तक गया था। (यूह 18:15, 16) लेकिन वहाँ पहुँचकर पतरस किसी कोने में चुपचाप नहीं खड़ा रहा, बल्कि दूसरे लोगों के साथ मिलकर आग तापने लगा। उस आग की रोशनी में कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया कि वह भी यीशु का चेला है। पतरस गलीली था, इसलिए उसके बोलने के लहज़े से उनका शक और भी बढ़ गया। जब वे उससे कहने लगे कि तू भी यीशु के साथ था, तो उसने यीशु को जानने से तीन बार इनकार कर दिया। तीसरी बार तो अपनी बात साबित करने के लिए वह खुद को कोसने लगा और कसम खाने लगा। उसी वक्त कहीं से मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी और यीशु ने “मुड़कर सीधे पतरस को देखा।” पतरस यह बरदाश्त नहीं कर पाया और बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा। (मत 26:69-75; मर 14:66-72; लूक 22:54-62; यूह 18:17, 18) क्या पतरस ने अपना विश्वास खो दिया? जी नहीं, क्योंकि यीशु ने पहले ही पतरस के लिए जो मिन्नत की थी, वह सुन ली गयी और उसने अपना विश्वास बरकरार रखा।—लूक 22:31, 32.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
मरकुस किताब की झलकियाँ
14:51, 52—वह नौजवान कौन था, जो “नंगा भाग गया” था? इस घटना का ज़िक्र मरकुस के सिवा और किसी ने नहीं किया। इसलिए इस नतीजे पर पहुँचना सही होगा कि वह अपनी ही बात कर रहा था।
जीज़स द वे पेज 287 पै 4
यीशु को हन्ना के पास, फिर कैफा के पास ले जाया जाता है
कैफा जानता है कि अगर कोई परमेश्वर का बेटा होने का दावा करता है, तो यहूदियों को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आती। कुछ वक्त पहले जब यीशु ने परमेश्वर को अपना पिता कहा था, तो यहूदी उसे मार डालना चाहते थे, क्योंकि उनके हिसाब से वह “खुद को परमेश्वर के बराबर ठहरा रहा था।” (यूहन्ना 5:17, 18; 10:31-39) इस वजह से कैफा बड़ी चालाकी से यीशु से कहता है “मैं तुझे जीवित परमेश्वर की शपथ दिलाता हूँ, हमें बता, क्या तू परमेश्वर का बेटा मसीह है?” (मत्ती 26:63) यीशु ने पहले भी कई बार खुद को परमेश्वर का बेटा कहा है। (यूहन्ना 3:18; 5:25; 11:4) अगर आज वह चुप रहे, तो यह ऐसा होगा मानो वह परमेश्वर का बेटा और मसीह होने से इनकार कर रहा है। यही वजह है कि वह कहता है, “हाँ मैं हूँ। और तुम लोग इंसान के बेटे को शक्तिशाली परमेश्वर के दाएँ हाथ बैठा और आकाश के बादलों के साथ आता देखोगे।”—मरकुस 14:62.