अध्याय उन्नीस
एक अच्छा पिता
1, 2. (क) यूसुफ और उसके परिवार को अचानक किस बदलाव से गुज़रना पड़ा? (ख) यूसुफ को कौन-सी बुरी खबर मरियम को सुनानी थी?
यूसुफ रात के अँधेरे में गधे पर सामान लाद रहा है। वह बेतलेहेम छोड़कर मिस्र के लंबे सफर पर जाने की तैयारी कर रहा है। उसे ज़रूर चिंता सता रही होगी कि मिस्र में उसका परिवार कैसे रहेगा। देश पराया, लोग पराए, भाषा नयी और तौर-तरीके भी नए!
2 यूसुफ को एक स्वर्गदूत ने सपने में परमेश्वर का यह संदेश सुनाया था कि राजा हेरोदेस उसके बेटे को मार डालना चाहता है। इसलिए उन्हें वहाँ से फौरन भाग निकलना होगा। यह बुरी खबर अपनी प्यारी पत्नी मरियम को सुनाना यूसुफ के लिए आसान नहीं रहा था। फिर भी उसने किसी तरह हिम्मत करके उसे बताया। (मत्ती 2:13, 14 पढ़िए।) यह सुनकर मरियम परेशान हो गयी। भला एक मासूम बच्चे को कोई क्यों मारना चाहता है? यह बात न मरियम समझ पा रही थी न ही यूसुफ। फिर भी उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा और वे मिस्र जाने की तैयारी करने लगे।
3. यूसुफ और उसके परिवार ने किन हालात में बेतलेहेम छोड़ा था? (तसवीर भी देखें।)
3 उसी रात यूसुफ, मरियम और यीशु चुपचाप बेतलेहेम से निकल गए। पूरा शहर बेखबर सो रहा था। वहाँ के लोगों को पता नहीं था कि उन पर क्या मुसीबत आनेवाली है। यूसुफ और उसका परिवार दक्षिण की तरफ जाने लगा। जैसे-जैसे पूरब में थोड़ी रौशनी दिखायी देने लगी यूसुफ ने सोचा होगा कि आगे क्या होगा। वह एक मामूली-सा बढ़ई था, तो भला वह इतनी ताकतवर शक्तियों से अपने परिवार की हिफाज़त कैसे करेगा? क्या वह अपने परिवार के लिए रोटी का इंतज़ाम कर पाएगा? यहोवा ने उसे इस खास बच्चे की देखभाल और परवरिश करने की जो भारी ज़िम्मेदारी सौंपी थी, क्या वह उसे निभा पाएगा? जी हाँ, यूसुफ के आगे बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ थीं। आइए देखें कि उसने कैसे एक-एक करके उन चुनौतियों का सामना किया। तब हम समझ पाएँगे कि हम सबको, खासकर पिताओं को यूसुफ के जैसे विश्वास की ज़रूरत क्यों है।
यूसुफ ने अपने परिवार की हिफाज़त की
4, 5. (क) यूसुफ की ज़िंदगी कैसे हमेशा के लिए बदल गयी? (ख) स्वर्गदूत ने कैसे यूसुफ को एक भारी ज़िम्मेदारी स्वीकार करने की हिम्मत दिलायी?
4 करीब एक साल पहले जब यूसुफ अपने शहर नासरत में रहता था तो उसकी मँगनी एली की बेटी मरियम से हुई थी। इसके बाद यूसुफ की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गयी। वह जानता था कि मरियम एक सीधी-सादी लड़की है जिसे यहोवा और उसके स्तरों से गहरा लगाव है। मगर फिर उसे पता चला कि मरियम गर्भवती है! उसने चुपचाप मरियम को तलाक देने का इरादा किया ताकि मरियम की बदनामी न हो!a मगर फिर एक स्वर्गदूत ने उसे सपने में बताया कि मरियम यहोवा की पवित्र शक्ति से गर्भवती हुई है। स्वर्गदूत ने यह भी बताया कि उसका जो बेटा होगा “वह अपने लोगों को पापों से उद्धार दिलाएगा।” उसने यूसुफ को यह कहकर हिम्मत दिलायी: “तू मरियम से शादी करने से मत डर।”—मत्ती 1:18-21.
5 यूसुफ एक नेक और आज्ञाकारी इंसान था, इसलिए उसने वही किया जो स्वर्गदूत ने उससे कहा था। उसने यह भारी ज़िम्मेदारी स्वीकार की: एक ऐसे बच्चे की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी जो उसका अपना नहीं होता, मगर परमेश्वर का सबसे प्यारा बेटा होता। बाद में उसने सम्राट का एक हुक्म माना और अपनी गर्भवती पत्नी के साथ बेतलेहेम में नाम लिखवाने के लिए गया। वहीं पर मरियम ने बच्चे को जन्म दिया।
6-8. (क) किन घटनाओं की वजह से यूसुफ और उसके छोटे परिवार की ज़िंदगी में एक और बदलाव आया? (ख) क्या सबूत है कि शैतान ने उस ‘तारे’ का इस्तेमाल किया था? (फुटनोट भी देखें।)
6 इसके बाद यूसुफ अपने परिवार को लेकर वापस नासरत नहीं गया। वे बेतलेहेम में ही रह गए जो यरूशलेम से कुछ ही किलोमीटर दूर था। वे गरीब थे, फिर भी यूसुफ ने मरियम और यीशु की हिफाज़त और देखभाल करने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। कुछ ही समय बाद उन्हें रहने के लिए एक सादा-सा घर मिल गया। जब यीशु शायद एक-डेढ़ साल का हुआ तो एक बार फिर अचानक उनकी ज़िंदगी में बदलाव आया।
7 पूरब से कुछ आदमी उनके घर आए। वे ज्योतिषी थे जो शायद बहुत दूर बैबिलोन से आए थे। वे एक ‘तारे’ का पीछा करते हुए यूसुफ और मरियम के घर आए और उन्होंने कहा कि वे उस बच्चे को ढूँढ़ रहे हैं जो यहूदियों का राजा बनेगा। उन्होंने यीशु का बहुत आदर किया।
8 ज्योतिषियों ने यीशु के पास आकर उसकी जान खतरे में डाल दी, फिर चाहे उन्हें इसका एहसास था या नहीं। उन्होंने जो “तारा” देखा था वह उन्हें सीधे बेतलेहेम नहीं यरूशलेम ले गया था।b वहाँ उन्होंने दुष्ट राजा हेरोदेस को बताया कि वे एक बच्चे को ढूँढ़ रहे हैं जो यहूदियों का राजा बनेगा। यह खबर सुनते ही हेरोदेस जलन और गुस्से से भर गया।
9-11. (क) हम कैसे जानते हैं कि कोई और भी था जो हेरोदेस और शैतान से भी ज़्यादा शक्तिशाली था? (ख) मिस्र का सफर, कथा-कहानियों में बतायी बातों से कैसे अलग था?
9 मगर खुशी की बात है कि कोई और भी था जो हेरोदेस और शैतान से भी ज़्यादा शक्तिशाली था! जब ज्योतिषी यीशु के घर आए और उसे अपनी माँ के साथ देखा तो उन्होंने उसे तोहफे में “सोना, लोबान और गंधरस” दिया और बदले में कुछ नहीं माँगा। अचानक ऐसी कीमती चीज़ें पाकर यूसुफ और मरियम को बहुत अजीब लगा होगा। ज्योतिषी वापस हेरोदेस के पास जाना चाहते थे ताकि उसे बताएँ कि उन्होंने बच्चे को कहाँ देखा। मगर यहोवा ने उन्हें रोक दिया। उसने एक सपने के ज़रिए उन्हें दूसरे रास्ते से घर लौटने के लिए कहा।—मत्ती 2:1-12 पढ़िए।
10 ज्योतिषियों के जाने के फौरन बाद यहोवा के स्वर्गदूत ने यूसुफ को खबरदार किया, “उठ, बच्चे और उसकी माँ को लेकर मिस्र भाग जा। जब तक मैं न कहूँ, वहीं रहना क्योंकि हेरोदेस इस बच्चे को मार डालने के लिए इसकी तलाश करनेवाला है।” (मत्ती 2:13) यूसुफ ने फौरन आज्ञा मानी, जैसे हमने शुरू में देखा। उसकी सबसे बड़ी चिंता थी बच्चे की जान बचाना, इसलिए वह अपने परिवार को लेकर मिस्र चला गया। झूठे धर्म के माननेवाले ज्योतिषियों ने जो कीमती तोहफे दिए थे, वे अब मिस्र जाने और वहाँ रहने में यूसुफ के बहुत काम आते।
11 बाद में चलकर कथा-कहानियों में इस सफर को बहुत ही रोमांचक और मज़ेदार बताया गया। उनमें बताया गया है कि नन्हे यीशु ने चमत्कार से सफर की दूरी कम कर दी, चोर-डाकुओं को निहत्था कर दिया, यहाँ तक कि खजूर के पेड़ों को झुका दिया ताकि उसकी माँ फल तोड़ सके।c मगर सच्चाई यह है कि सफर बहुत लंबा और मुश्किल था क्योंकि वे एक अनजान जगह जा रहे थे।
यूसुफ ने अपने परिवार के लिए अपना आराम त्याग दिया
12. इस खतरनाक दुनिया में बच्चों की परवरिश करते समय, माता-पिता यूसुफ से क्या सीख सकते हैं?
12 आज माता-पिता यूसुफ से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उसने अपने परिवार को खतरे से बचाने के लिए अपना काम छोड़ दिया और आराम त्याग दिया। इससे पता चलता है कि वह अपने परिवार को यहोवा की दी हुई अमानत मानता था। आज माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश एक खतरनाक दुनिया में कर रहे हैं जहाँ ऐसी शक्तियाँ काम कर रही हैं जो बच्चों को खतरे में डाल सकती हैं, उन्हें गलत रास्ते में बहका सकती हैं, यहाँ तक कि उनकी ज़िंदगी बरबाद कर सकती हैं। जो माता-पिता यूसुफ की तरह अपने बच्चों को इन खतरों से बचाने के लिए ठोस कदम उठाते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं, वे सचमुच काबिले-तारीफ हैं!
यूसुफ ने अपने परिवार की देखभाल की
13, 14. यूसुफ और मरियम वापस नासरत जाकर क्यों बस गए?
13 ऐसा मालूम पड़ता है कि यूसुफ का परिवार ज़्यादा समय तक मिस्र में नहीं रहा क्योंकि कुछ ही समय बाद स्वर्गदूत ने यूसुफ को बताया कि हेरोदेस मर चुका है। यूसुफ अपने परिवार को लेकर वापस अपने देश चला आया। एक बहुत पुरानी भविष्यवाणी थी कि यहोवा अपने बेटे को ‘मिस्र से बुलाएगा।’ (मत्ती 2:15) यूसुफ ने इस भविष्यवाणी को पूरा करने में मदद दी। मगर अब वह अपने परिवार को लेकर कहाँ बसता?
14 यूसुफ ने बहुत सोच-समझकर कदम उठाया। उसने हेरोदेस के बाद आए राजा अरखिलाउस से बचकर रहने का बुद्धि-भरा फैसला लिया क्योंकि वह भी खूँखार था और किसी की भी जान लेने से झिझकता नहीं था। परमेश्वर की हिदायत मानकर यूसुफ अपने परिवार को लेकर यरूशलेम से दूर उत्तर की तरफ चला गया ताकि उसे यरूशलेम में होनेवाली साज़िशों से बचाकर रखे। वह वापस गलील के नासरत चला गया जो उसका अपना शहर था और वहीं अपने परिवार के साथ बस गया।—मत्ती 2:19-23 पढ़िए।
15, 16. (क) यूसुफ बढ़ई के नाते क्या-क्या काम करता था? (ख) वह किन औज़ारों का इस्तेमाल करता होगा?
15 यूसुफ और मरियम ने एक सादगी-भरी ज़िंदगी बितायी, मगर यह आसान नहीं थी। बाइबल में यूसुफ को जब बढ़ई कहा गया तो मूल भाषा में बढ़ई के लिए इस्तेमाल हुए शब्द का मतलब है लकड़ी के अलग-अलग काम करना। जैसे पेड़ काटना, उन्हें ढोकर ले जाना और सुखाना ताकि उनसे मकान, नाव, छोटे-छोटे पुल, बैल-गाड़ियाँ, पहिए, जुए और खेती-बाड़ी के औज़ार बनाए जा सकें। (मत्ती 13:55) यह बहुत मेहनत का काम होता था। बाइबल के ज़माने में ज़्यादातर बढ़ई अपने छोटे-से घर के सामने या घर से सटे हुए कमरे में काम करते थे।
16 यूसुफ तरह-तरह के औज़ारों का इस्तेमाल करता होगा जिनमें से कुछ औज़ार शायद उसे अपने पिता से मिले थे। जैसे साहुल, आरी, रंदा, बसुला, हथौड़ा, छेनी, बरमा, तरह-तरह के गोंद और शायद कीलें भी, इसके बावजूद कि वे बहुत महँगे होते थे।
17, 18. (क) यीशु ने अपने पिता यूसुफ से क्या सीखा? (ख) यूसुफ को पहले से ज़्यादा मेहनत क्यों करनी पड़ी?
17 कल्पना कीजिए कि जब यीशु छोटा था तो वह कैसे ध्यान से अपने पिता को काम करते हुए देखता होगा। यह देखकर उसे कितनी खुशी होती होगी कि उसके पिता के बाज़ुओं में कितनी ताकत है, हाथों में कैसा हुनर है और आँखों से ही चीज़ों को परखने की कैसी काबिलीयत है। यूसुफ ने शायद अपने बेटे को छोटे-छोटे काम करना सिखाया होगा, जैसे मछली की सूखी खाल से लकड़ी को घिसकर चिकना बनाना। उसने यीशु को तरह-तरह की लकड़ियों को पहचानना भी सिखाया होगा। मिसाल के लिए उसने बताया होगा कि गूलर, बाँज और जैतून की लकड़ी में क्या फर्क है।
18 यीशु ने यह भी जाना कि यूसुफ जिन मज़बूत हाथों से पेड़ काटता, शहतीरें तैयार करता और हथौड़े से लकड़ियों को पीटता था, उन्हीं हाथों में कैसी कोमलता भी थी। उसने गौर किया होगा कि यूसुफ कैसे उन हाथों से उसे, उसकी माँ और उसके भाई-बहनों को प्यार से छूता और थपथपाता था। जी हाँ, आगे चलकर यूसुफ और मरियम का बहुत बड़ा परिवार बना। यीशु के अलावा उनके कम-से-कम छः बच्चे थे। (मत्ती 13:55, 56) यूसुफ को उन सबकी देखभाल करने और उनका पेट पालने के लिए पहले से ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी।
यूसुफ जानता था कि अपने परिवार को यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता बनाने में मदद देना सबसे ज़रूरी है
19. यूसुफ अपने परिवार को यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता बनाने में कैसे मदद देता था?
19 मगर यूसुफ जानता था कि इन सबसे बढ़कर उसकी ज़िम्मेदारी है, यहोवा की उपासना करने और उसके साथ अच्छा रिश्ता बनाने में परिवार की मदद करना। इसलिए उसने अपने बच्चों के साथ वक्त बिताया ताकि उन्हें यहोवा और उसके कानून के बारे में सिखा सके। वह और मरियम नियमित तौर पर बच्चों को सभा-घर में ले जाते थे जहाँ कानून पढ़कर सुनाया जाता और समझाया जाता था। वहाँ से आने के बाद शायद यीशु के मन में कई सवाल रहे होंगे और यूसुफ उनके जवाब देने की पूरी कोशिश करता होगा। यूसुफ अपने परिवार को त्योहार मनाने यरूशलेम भी ले जाता था जो 120 किलोमीटर दूर था। सालाना फसह के लिए उन्हें यरूशलेम जाने, वहाँ त्योहार मनाने और वापस लौटने में शायद दो हफ्ते लग जाते थे।
20. मसीही पिता यूसुफ की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
20 आज मसीही पिता यूसुफ की मिसाल पर चलते हैं। हालाँकि वे अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, मगर वे बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाने के काम को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं। वे पारिवारिक उपासना में बच्चों को सिखाने और उन्हें मसीही सभाओं और सम्मेलनों में ले जाने के लिए काफी मेहनत करते हैं। यूसुफ की तरह वे जानते हैं कि बच्चों के लिए वे जो कर सकते हैं, उसमें सबसे खास है उन्हें यहोवा के बारे में सिखाना।
उन्हें काफी तनाव से गुज़रना पड़ा
21. (क) फसह का समय यूसुफ के परिवार के लिए कैसा होता था? (ख) यूसुफ और मरियम को कब एहसास हुआ कि यीशु कहीं नहीं है?
21 जब यीशु 12 साल का था तो यूसुफ हमेशा की तरह अपने परिवार को लेकर यरूशलेम के लिए निकल पड़ा। वे फसह मनाने जा रहे थे। यह खुशी का मौका था। वसंत के इस मौसम में देहात का पूरा इलाका हरा-भरा था और वहाँ से बड़े-बड़े परिवार साथ मिलकर सफर कर रहे थे। जैसे-जैसे वे यरूशलेम के नज़दीक पहुँचे वे पहाड़ चढ़ने लगे जहाँ हरियाली कम थी और उनमें से कई लोग चढ़ाई के गीत गाने लगे जो काफी जाने-माने थे। (भज. 120-134) जब वे यरूशलेम पहुँचे तो वहाँ हज़ारों लोगों की भीड़ लगी होगी। फसह मनाने के बाद सभी परिवार मिलकर वापस घर की तरफ रवाना हुए। यूसुफ और मरियम को काफी काम रहा होगा, इसलिए उन्होंने सोचा होगा कि यीशु बाकी मुसाफिरों के साथ या शायद रिश्तेदारों के साथ होगा। एक पूरा दिन सफर करने के बाद जाकर उन्हें एहसास हुआ कि यीशु कहीं नहीं है। उनके तो होश उड़ गए होंगे!—लूका 2:41-44.
22, 23. (क) जब यीशु कहीं नहीं मिला तो यूसुफ और मरियम ने क्या किया? (ख) यीशु को पाने पर मरियम ने क्या कहा?
22 यूसुफ और मरियम पागलों की तरह यीशु को ढूँढ़ने लगे और ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वापस यरूशलेम पहुँच गए। कल्पना कीजिए, जब वे वहाँ की गलियों में यीशु का नाम ज़ोर-ज़ोर से पुकार रहे होंगे तो उन्हें वे गलियाँ कितनी खाली और अजीब-सी लगी होंगी। उन्होंने सोचा होगा कि लड़का कहाँ रह गया? ढूँढ़ते-ढूँढ़ते तीन दिन हो गए। अब तो यूसुफ ने सोचा होगा कि यहोवा ने उस पर भरोसा करके उसे जो अमानत दी थी कहीं उसकी देखभाल करने में वह बुरी तरह नाकाम तो नहीं हो गया। आखिर में वे मंदिर गए। उन्होंने वहाँ का हर कोना छान मारा और जब वे उस कमरे में आए जहाँ कानून के बड़े-बड़े जानकार बैठे थे तो उन्होंने देखा कि यीशु उनके बीच बैठा है! अब जाकर उनकी जान में जान आयी होगी!—लूका 2:45, 46.
23 यीशु उन जानकारों की बात ध्यान से सुन रहा था और उत्सुकता से उनसे सवाल पूछ रहा था। वे आदमी उसकी समझ और उसके जवाबों से दंग रह गए थे। मगर मरियम और यूसुफ यह देखकर दंग रह गए कि यीशु वहाँ क्यों रह गया। बाइबल के मुताबिक यूसुफ ने कुछ नहीं कहा। मगर मरियम ने जो कहा उससे पता चलता है कि उन दोनों पर क्या बीती थी। मरियम ने कहा, “बेटा, तूने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देख, तेरा पिता और मैं तुझे पागलों की तरह ढूँढ़ रहे थे!”—लूका 2:47, 48.
24. बाइबल बच्चों की परवरिश के बारे में कैसे सही तसवीर पेश करती है?
24 बाइबल का यह ब्यौरा बच्चों की परवरिश करने के बारे में एक सही तसवीर पेश करता है। वह यह कि एक बच्चे की परवरिश करना काफी तनाव-भरा हो सकता है, फिर चाहे वह परिपूर्ण क्यों न हो। आज की इस खतरनाक दुनिया में बच्चों को बड़ा करने में माता-पिताओं को और भी तनाव से गुज़रना पड़ता है और बाइबल भी इस बात को कबूल करती है। इसलिए माता-पिता हिम्मत रख सकते हैं।
25, 26. (क) यीशु ने अपने माता-पिता को क्या जवाब दिया? (ख) यूसुफ को अपने बेटे की बात सुनकर कैसा लगा होगा?
25 यीशु मंदिर में क्यों रह गया था? एक तो इसलिए कि पूरी दुनिया में वही एक जगह थी जहाँ रहकर उसने अपने पिता यहोवा के बहुत करीब महसूस किया। दूसरी वजह, वह यहोवा के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा सीखना चाहता था। उसने अपने माता-पिता को जवाब देते वक्त उनका अनादर नहीं किया बल्कि सिर्फ मंदिर में रह जाने की वजह बतायी: “तुम मुझे यहाँ-वहाँ क्यों ढूँढ़ रहे थे? क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं अपने पिता के घर में होऊँगा?”—लूका 2:49.
26 यीशु की इस बात के बारे में यूसुफ ने कई बार सोचा होगा। उसे शायद गर्व महसूस हुआ होगा, आखिर उसने अपने इस बेटे को यह सिखाने में कड़ी मेहनत की थी कि वह अपने पिता यहोवा के बारे में ऐसा ही महसूस करे। उस छोटी उम्र में ही यीशु को एहसास हो गया कि एक “पिता” कितना प्यार करनेवाला होता है। इसमें काफी हद तक यूसुफ का हाथ था क्योंकि वह एक अच्छा पिता था।
27. (क) एक पिता के नाते आप पर कौन-सी बड़ी ज़िम्मेदारी है? (ख) आपको यूसुफ की मिसाल क्यों याद रखनी चाहिए?
27 अगर आप एक पिता हैं तो क्या आपको एहसास है कि आप पर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है? अगर आप अपने बच्चों से प्यार करेंगे और उनकी हिफाज़त करेंगे तो उनके लिए यह समझना आसान होगा कि यहोवा भी एक पिता है जो हमसे प्यार करता है और हमारी हिफाज़त करता है। अगर आपके सौतेले बच्चे हैं या गोद लिए हुए बच्चे हैं तो यूसुफ को हमेशा याद रखिए। हर बच्चे को अनमोल समझिए और कभी मत भूलिए कि हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है। उन बच्चों को अपने पिता यहोवा के करीब आने में मदद दीजिए।—इफिसियों 6:4 पढ़िए।
यूसुफ अपनी ज़िम्मेदारी निभाता रहा
28, 29. (क) लूका 2:51, 52 से हम यूसुफ के बारे में क्या सीखते हैं? (ख) यूसुफ ने बुद्धि हासिल करने में अपने बेटे की कैसे मदद की होगी?
28 यूसुफ की आगे की ज़िंदगी के बारे में बाइबल में बहुत कम बताया गया है, मगर जो भी बताया गया है वह गौर करने लायक है। हम पढ़ते हैं कि यीशु “लगातार उनके [यानी अपने माता-पिता के] अधीन रहा।” हम यह भी पढ़ते हैं कि “यीशु डील-डौल और बुद्धि में बढ़ता गया और परमेश्वर और लोगों की कृपा उस पर बनी रही।” (लूका 2:51, 52 पढ़िए।) इन बातों से हम यूसुफ के बारे में क्या जान सकते हैं? कई बातें जान सकते हैं। एक है कि यूसुफ अपने परिवार की अगुवाई करता रहा, इसलिए उसके परिपूर्ण बेटे ने उसके अधिकार का आदर किया और हमेशा उसके अधीन रहा।
29 हम यह भी पढ़ते हैं कि यीशु बुद्धि में बढ़ता गया। बुद्धि हासिल करने में भी यूसुफ ने अपने बेटे की ज़रूर मदद की होगी। उन दिनों यहूदियों में एक पुरानी कहावत मशहूर थी जिसे आज भी वे मानते हैं। कहावत यह है कि अमीर और रुतबेदार आदमी ही सही मायनों में बुद्धिमान बन सकते हैं, जबकि बढ़ई, किसान और लोहार जैसे मज़दूर “न सही-गलत में फर्क कर सकते हैं, न किसी का न्याय कर सकते हैं और न ही मिसालें समझ सकते हैं।” मगर यीशु ने बड़े होकर साबित किया कि वह कहावत झूठी है। जब वह छोटा था तो उसने देखा होगा कि उसका पिता भले ही एक गरीब बढ़ई था, मगर वह कितनी अच्छी तरह सिखाता था कि यहोवा की नज़र में ‘क्या सही है और क्या गलत।’ उसने कई बार यूसुफ से ये बातें सीखी होंगी।
30. यूसुफ ने परिवार के मुखियाओं के लिए क्या मिसाल रखी?
30 बाइबल यह भी बताती है कि यीशु डील-डौल में बढ़ता गया। इसमें भी यूसुफ का काफी हाथ रहा होगा। उसने यीशु के खाने-पीने का अच्छा ध्यान रखा होगा, तभी वह बड़ा होकर एक सेहतमंद आदमी बना। यूसुफ ने उसे काम में हुनरमंद होना भी सिखाया। इसलिए यीशु को न सिर्फ बढ़ई का बेटा बल्कि “बढ़ई” भी कहा जाता था। (मर. 6:3) यूसुफ की मेहनत रंग लायी। आज परिवार के मुखियाओं के लिए यूसुफ की मिसाल पर चलना बुद्धिमानी होगी। उन्हें अपने बच्चों की सेहत का खयाल रखना चाहिए और उन्हें कामकाज सिखाना चाहिए ताकि वे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
31. (क) सबूतों के मुताबिक यूसुफ की मौत कब हुई? (बक्स भी देखें।) (ख) यूसुफ ने हम सबके लिए क्या मिसाल रखी?
31 यीशु ने करीब 30 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया था, फिर उस घटना के बाद से बाइबल में यूसुफ का कोई ज़िक्र नहीं मिलता। सबूत दिखाते हैं कि जब यीशु ने अपनी सेवा शुरू की तो उस वक्त तक मरियम विधवा हो चुकी थी। (यह बक्स देखें, “यूसुफ की मौत कब हुई?”) फिर भी यूसुफ ने एक अच्छा पिता होने की छाप छोड़ी। उसने अपने परिवार की हिफाज़त की, उनकी देखभाल की और वह आखिर तक अपनी ज़िम्मेदारी निभाता रहा। हर पिता, हर परिवार के मुखिया और हर मसीही को यूसुफ के जैसा विश्वास बढ़ाना चाहिए।
a उन दिनों मँगनी को शादी के बराबर समझा जाता था।
b यह “तारा” आसमान में दिखनेवाले बाकी तारों जैसा नहीं था और न ही परमेश्वर ने इसका इस्तेमाल किया था। इससे साफ है कि शैतान ने यीशु को मार डालने की कोशिश में इस तारे का इस्तेमाल किया था।
c बाइबल साफ बताती है कि यीशु ने “पहला चमत्कार” बपतिस्मे के बाद ही किया था।—यूह. 2:1-11.