बाइबल की किताब नंबर 42—लूका
लेखक: लूका
लिखने की जगह: कैसरिया
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 56-58
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 3-सा.यु. 33
सुसमाचार की किताब, लूका को एक ऐसे इंसान ने लिखा जो न सिर्फ तेज़ दिमाग का था, बल्कि नर्मदिल भी था। इन बढ़िया गुणों और परमेश्वर की आत्मा की बदौलत ही उसने ऐसा ब्यौरा तैयार किया, जो सच्चा होने के साथ-साथ प्यार और दूसरी भावनाओं से सराबोर है। किताब की शुरूआती आयतों में लेखक दावा करता है: “[मैंने] उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक ठीक जांच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लि[खा]।” उसने जिस बारीकी और सावधानी से अपनी जानकारी पेश की, उससे उसका यह दावा सच साबित होता है।—लूका 1:3.
2 हालाँकि इस किताब में कहीं पर भी लूका का नाम नहीं आता, फिर भी शुरू के बाइबल विद्वान एकमत थे कि वही इसका लेखक है। मूराटोरी खंड (करीब सा.यु. 170) बताता है कि सुसमाचार की इस किताब को लूका ने लिखा था और आइरीनियस और सिकंदरिया के क्लैमेंट जैसे दूसरी सदी के लेखक भी यही मानते थे। इसके अलावा, खुद बाइबल में भी लूका के लेखक होने के ठोस सबूत पाए जाते हैं। पौलुस उसे कुलुस्सियों 4:14 में “प्रिय वैद्य लूका” कहता है। और उसकी किताब से ज़ाहिर होता है कि इसे एक वैद्य जैसा पढ़ा-लिखा इंसान ही लिख सकता था। लूका ने अच्छी भाषा का इस्तेमाल किया। और उसकी किताब में शब्दों का जितना भंडार है, उतना सुसमाचार की बाकी तीन किताबों को मिलाकर भी नहीं मिलता। इन वजहों से वह अपने अहम विषय के बारे में छोटी-से-छोटी और पूरी जानकारी दे पाया। कुछ लोग मानते हैं कि उसकी किताब में दर्ज़ उड़ाऊ पुत्र का किस्सा, अब तक की सबसे बेहतरीन छोटी कहानी है।
3 लूका 300 से भी ज़्यादा मेडिकल शब्दों का इस्तेमाल करता है और उनके मतलब भी समझाता है, जबकि मसीही यूनानी शास्त्र के दूसरे लेखकों ने उन शब्दों को (अगर इस्तेमाल भी किए थे) खुलकर नहीं समझाया।a मिसाल के लिए, कोढ़ का ज़िक्र करते वक्त, वह हर बार एक ही शब्द का इस्तेमाल नहीं करता। दूसरे लेखकों के लिए हर तरह का कोढ़, कोढ़ था। लेकिन वैद्य होने के नाते, लूका जानता था कि कोढ़ की अलग-अलग अवस्थाएँ होती हैं। इसलिए वह एक कोढ़ी आदमी के बारे में कहता है कि वह “कोढ़ से भरा हुआ” था। लाजर के बारे में वह कहता है कि वह “घावों से भरा हुआ” था। सुसमाचार के बाकी लेखकों में से सिर्फ लूका बताता है कि पतरस की सास को “तेज बुखार चढ़ा था।” (5:12; 16:20; 4:38, नयी हिन्दी बाइबिल) हालाँकि मत्ती, मरकुस और यूहन्ना बताते हैं कि पतरस ने महायाजक के दास का कान उड़ा दिया था, मगर सिर्फ लूका ही बताता है कि यीशु ने उसे चंगा किया था। (22:51) और सिर्फ एक डॉक्टर ही यह दर्ज़ कर सकता है कि एक स्त्री को “अठारह वर्ष से एक दुर्बल करनेवाली दुष्टात्मा लगी थी, और वह कुबड़ी हो गई थी, और किसी रीति से सीधी नहीं हो सकती थी।” “प्रिय वैद्य लूका” के सिवा और कौन इतनी बारीकी से बता सकता है कि एक सामरी ने एक घायल आदमी के “घावों पर तेल और दाखरस ढालकर पट्टियां बान्धी” थी?—13:11; 10:34.
4 लूका ने अपनी किताब कब लिखी? प्रेरितों की किताब का लेखक (जो लूका ही है) प्रेरितों 1:1 में कहता है कि उसने “पहली पुस्तिका” यानी सुसमाचार की किताब को प्रेरितों से पहले लिखा था। प्रेरितों की किताब शायद सा.यु. 61 के आस-पास लिखी गयी थी, जब लूका रोम में पौलुस के साथ था, जो कैसर से अपनी अपील की सुनवाई का इंतज़ार कर रहा था। इससे ऐसा लगता है कि लूका ने सुसमाचार की किताब शायद कैसरिया में करीब सा.यु. 56-58 में लिखी। यह उस समय की बात है जब पौलुस की तीसरी मिशनरी यात्रा खत्म हो चुकी थी और लूका उसके साथ फिलिप्पी से कैसरिया लौटा था, जहाँ पौलुस ने दो साल कैद में काटे और फिर उसे सुनवाई के लिए रोम ले जाया गया था। इन दो सालों के दौरान क्योंकि लूका पैलिस्टाइन में था, इसलिए वह यीशु की ज़िंदगी और सेवा के बारे में “सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक ठीक जांच” कर पाया। इन सारी बातों को मद्देनज़र रखते हुए ऐसा मालूम होता है कि लूका की किताब, मरकुस की किताब से पहले लिखी गयी थी।
5 लूका ने अपनी सुसमाचार की किताब में जितनी घटनाएँ दर्ज़ कीं, वह उनका चश्मदीद गवाह नहीं था। क्योंकि वह 12 प्रेरितों में से नहीं था और शायद वह यीशु की मौत के बाद ही मसीही बना था। मगर हाँ, मिशनरी सेवा में वह पौलुस का करीबी साथी ज़रूर था। (2 तीमु. 4:11; फिले. 24) इसलिए, जैसे कि उम्मीद की जा सकती है, लूका की किताब में पौलुस का असर देखा जा सकता है। और यह बात लूका 22:19, 20 और 1 कुरिन्थियों 11:23-25 में प्रभु के संध्या भोज के बारे में दिए उन दोनों के ब्यौरों की तुलना करने से साफ पता चलता है। इसके अलावा, अपनी किताब को लिखने के लिए लूका ने मत्ती की किताब से भी मदद ली होगी। ‘सब बातों की ठीक ठीक जाँच’ करने के लिए लूका ने ऐसे कई लोगों का इंटरव्यू लिया होगा, जो यीशु की ज़िंदगी में हुई घटनाओं के चश्मदीद गवाह थे। जैसे, यीशु के बचे हुए चेले और शायद यीशु की माँ, मरियम। हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि लूका ने भरोसेमंद जानकारी इकट्ठी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
6 सुसमाचार की चारों किताबों की जाँच करने पर यह साफ हो जाता है कि इसके लेखकों ने महज़ एक-दूसरे के ब्यौरे को नहीं दोहराया। और ना ही सिर्फ इस वजह से अपनी-अपनी किताबें लिखी कि बाइबल के इस अहम रिकॉर्ड के कई गवाह हों। बाकी लेखकों के मुकाबले लूका ने अपनी किताब को एकदम निराले ढंग से लिखा है। उसकी किताब में कुल मिलाकर 59 प्रतिशत जानकारी दूसरी किताबों में नहीं दी गयी है। उसने कम-से-कम ऐसे छः चमत्कार और बारह से ज़्यादा दृष्टांत दर्ज़ किए, जो सुसमाचार की दूसरी किताबों में नहीं पाए जाते। उसकी किताब के एक-तिहाई हिस्से में घटनाओं का ब्यौरा और दो-तिहाई हिस्से में संवाद दिए गए हैं। इसलिए यह किताब सुसमाचार की बाकी किताबों से सबसे बड़ी है। मत्ती ने अपनी किताब यहूदियों के लिए और मरकुस ने गैर-यहूदियों, खासकर रोमियों के लिए लिखी थी। लूका की किताब “श्रीमान् थियुफिलुस” को और उसके ज़रिए यहूदियों और गैर-यहूदियों को लिखी गयी थी। (लूका 1:3, 4) उसकी किताब हर किस्म के लोगों को दिलचस्प लगे, इसके लिए लूका ‘परमेश्वर के पुत्र आदम’ तक यीशु की वंशावली बताता है। उसने सिर्फ इब्राहीम तक यीशु की वंशावली नहीं दी, जैसे मत्ती ने खासकर यहूदियों के लिए दी थी। लूका, शमौन की भविष्यवाणी का खास ज़िक्र करता है कि यीशु “अन्य जातियों से परदा हटाने” (NW) का ज़रिया ठहरेगा और यह भी कहता है कि “हर प्राणी परमेश्वर के उद्धार को देखेगा।”—3:38; 2:29-32; 3:6.
7 अपनी पूरी किताब में लूका एक बेमिसाल कहानीकार साबित होता है। वह घटनाओं को तरतीब से और सही-सही दर्ज़ करता है। उसकी किताबों की सच्चाई और ईमानदारी इस बात के ठोस सबूत हैं कि उसकी किताबें भरोसेमंद हैं। एक वकील और लेखक ने एक बार कहा था: “प्रेम कहानियों, पौराणिक कथाओं और झूठी गवाही में घटनाएँ कहाँ और कब हुईं, इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं दी जाती। लेकिन यह तो हम वकीलों को सिखायी गयी वकालत के पहले उसूल का उल्लंघन है। वह उसूल है, ‘किसी भी घटना का दावा करने में यह बताना ज़रूरी है कि घटना कब और कहाँ हुई थी।’ इस मामले में, बाइबल में दिए ब्यौरे बारीकी से और ठीक-ठीक बताते हैं कि घटनाएँ किस तारीख को और किस जगह घटी थीं।”b इसके सबूत में वह लूका 3:1, 2 का हवाला देता है: “तिबिरियुस कैसर के राज्य के पंद्रहवें वर्ष में जब पुन्तियुस पीलातुस यहूदिया का हाकिम था, और गलील में हेरोदेस नाम चौथाई का इतूरैया, और त्रखोनीतिस में, उसका भाई फिलिप्पुस, और अबिलेने में लिसानियास चौथाई के राजा थे। और जब हन्ना और कैफा महायाजक थे, उस समय परमेश्वर का वचन जंगल में जकरयाह के पुत्र यूहन्ना के पास पहुंचा।” लूका ने यहाँ समय या जगह के बारे में कच्ची-पक्की जानकारी नहीं दी, बल्कि उसने सात अधिकारियों के नाम बताए ताकि हम पता लगा सकें कि यूहन्ना और यीशु ने अपनी सेवा कब शुरू की थी।
8 लूका हमें दो सुराग देता है, जिससे हम यीशु के जन्म के समय का पता लगा सकते हैं। वह लूका 2:1, 2 में कहता है: “उन दिनों में औगूस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं। यह पहिली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस सूरिया का हाकिम था।” यह उस समय की बात थी, जब यूसुफ और मरियम नाम लिखवाने या पंजीकरण करवाने बेतलेहेम गए, और उसी दौरान यीशु वहाँ पैदा हुआ।c हम इस टीकाकार की बात से पूरी तरह सहमत हैं, जो कहता है: “इतिहास की घटनाओं को दर्ज़ करते वक्त लूका गहरी खोजबीन करता था और हमेशा सही जानकारी देता था।”d हमें लूका के इस दावे को सच मानना पड़ेगा कि उसने ‘सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक ठीक जाँचा’ है।
9 लूका यह भी बताता है कि इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों की एक-एक बात कैसे यीशु मसीह में पूरी हुई थी। इस बारे में वह यीशु की ईश्वर-प्रेरित गवाही का हवाला देता है। (24:27, 44) इसके अलावा, वह उन भविष्यवाणियों को भी सही-सही दर्ज़ करता है, जो यीशु ने आगे होनेवाली घटनाओं के बारे में की थी। इनमें से कई भविष्यवाणियाँ बहुत ही शानदार और अचूक तरीके से पूरी हो चुकी हैं। मिसाल के लिए, यीशु की भविष्यवाणी के मुताबिक सा.यु. 70 में यरूशलेम के चारों तरफ नुकीले खूंटों से मोर्चाबंदी की गयी, बहुत मारकाट मची और यरूशलेम का सर्वनाश कर दिया गया। (लूका 19:43, 44; 21:20-24; मत्ती 24:2) इतिहासकार फ्लेवियस जोसीफस रोमी सेना के साथ था और वह उस विनाश का चश्मदीद गवाह था। वह बताता है कि खूंटे तैयार करने के लिए यरूशलेम के बाहर 16 किलोमीटर तक आस-पास के सभी पेड़ों को काटा गया था और मोर्चाबंदी 7.2 किलोमीटर लंबी थी। वह यह भी बताता है कि कई औरतें और बच्चे अकाल में मारे गए, 1,000,000 से भी ज़्यादा यहूदियों की जानें गयीं और 97,000 को बंदी बनाया गया था। रोम में आर्च ऑफ टाइटस स्मारक आज भी मौजूद है, जिसमें रोमी सेना को जीत के जुलूस में यरूशलेम के मंदिर से लूट का माल ले जाते दिखाया गया है।e हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि लूका में ईश्वर-प्रेरणा से दर्ज़ दूसरी भविष्यवाणियाँ भी अचूक तरीके से पूरी होंगी।
क्यों फायदेमंद है
30 “लूका रचित सुसमाचार” की किताब से एक इंसान का परमेश्वर के वचन पर हौसला बढ़ता है और उसका विश्वास मज़बूत होता है, ताकि वह इस बैरी संसार से आनेवाले हमलों का डटकर मुकाबला कर सके। लूका इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों के पूरा होने की कई मिसालें देता है। इसमें यीशु, यशायाह की किताब से हवाला देकर अपनी सेवा के बारे में साफ-साफ बताता है और लूका इस सेवा का ज़िक्र अपनी किताब में बार-बार करता है। (लूका 4:17-19; यशा. 61:1, 2) वह एक मौका था, जब यीशु ने नबियों की किताबों से हवाला दिया था। उसने व्यवस्था से भी हवाला दिया, जैसे जब शैतान ने तीन बार उसे लुभाना चाहा, तो उसने साफ इनकार किया था। इसके अलावा, जब एक मौके पर उसने अपने दुश्मनों से पूछा कि “मसीह को दाऊद का सन्तान क्योंकर कहते हैं?” तब उसने भजनों से हवाला दिया। लूका की किताब में इब्रानी शास्त्र के दूसरे कई हवाले दिए गए हैं।—लूका 4:4, 8, 12; 20:41-44; व्यव. 8:3; 6:13, 16; भज. 110:1.
31 जकर्याह 9:9 की भविष्यवाणी के मुताबिक, जब यीशु गदही के बच्चे पर सवार होकर यरूशलेम आया, तो उसकी महिमा में भीड़-की-भीड़ जयजयकार करने लगी और उस पर भजन 118:26 लागू किया। (लूका 19:35-38) इब्रानी शास्त्र में यीशु की शर्मनाक मौत और पुनरुत्थान के सिलसिले में जिन छः बातों की भविष्यवाणी की गयी थी, उनका ज़िक्र लूका की सिर्फ दो आयतों में किया गया है। (लूका 18:32, 33; भज. 22:7; यशा. 50:6; 53:5-7; योना 1:17) यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद ज़बरदस्त तरीके से अपने चेलों के मन में इब्रानी शास्त्र की अहमियत बिठायी। “उस ने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों। तब उस ने पवित्र शास्त्र बूझने के लिये उन की समझ खोल दी।” (लूका 24:44, 45) यीशु मसीह के शुरूआती चेलों की तरह हम भी इब्रानी शास्त्र की भविष्यवाणियों की पूर्ति पर ध्यान दे सकते हैं, जिनके बारे में लूका और मसीही यूनानी शास्त्र के दूसरे लेखक बहुत ही अच्छे तरीके से समझाते हैं। ऐसा करने पर हम अपनी समझ बढ़ाएँगे और अपने विश्वास को मज़बूत करेंगे।
32 अपनी किताब में लूका लगातार पढ़नेवालों का ध्यान परमेश्वर के राज्य की तरफ खींचता है। किताब की शुरूआत में, एक स्वर्गदूत मरियम से वादा करता है कि उसकी कोख से जन्म लेनेवाला बच्चा “याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” और किताब के आखिरी अध्यायों में यीशु अपने प्रेरितों के साथ राज्य की वाचा बाँधने की बात करता है। इस तरह लूका शुरू से लेकर आखिर तक राज्य की आशा पर ज़ोर देता है। (1:33; 22:28-30क) वह बताता है कि यीशु ने राज्य के प्रचार काम की अगुवाई की और इसी काम के लिए पहले 12 प्रेरितों को, फिर 70 चेलों को भेजा गया था। (4:43; 9:1, 2; 10:1, 8, 9) राज्य में दाखिल होने के लिए, यह ज़रूरी है कि एक इंसान अपना पूरा ध्यान राज्य पर लगाए रहे। इसी बात पर ज़ोर देते हुए यीशु ने साफ शब्दों में कहा, “मरे हुओं को अपने मुरदे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कथा सुना” और “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”—9:60, 62.
33 सुसमाचार की दूसरी किताबों के मुकाबले लूका की किताब प्रार्थना के मामले पर ज़ोर देती है। यह बताती है कि जब जकरयाह मंदिर में था, तब लोगों की सारी मंडली बाहर प्रार्थना कर रही थी। वह यह भी बताती है कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का जन्म दरअसल प्रार्थनाओं का जवाब था और नबिया हन्नाह दिन-रात प्रार्थना करती थी। लूका की किताब यीशु के बारे में कहती है कि उसने अपने बपतिस्मे के वक्त, 12 प्रेरितों को चुनने से पहले पूरी रात और रूपांतरण के दौरान प्रार्थना की। यीशु ने अपने चेलों को हिदायत दी: “नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना।” और इस बात को समझाने के लिए उसने एक विधवा का दृष्टांत दिया, जो इंसाफ के लिए एक न्यायी से तब तक भीख माँगती है, जब तक न्यायी उसे इंसाफ नहीं दे देता। सिर्फ लूका ही बताता है कि चेलों ने यीशु से गुज़ारिश की कि वह उन्हें प्रार्थना करना सिखाए। और सिर्फ उसी की किताब में हम पढ़ते हैं कि जब यीशु जैतून पहाड़ पर प्रार्थना कर रहा था, तब एक स्वर्गदूत ने आकर उसे ढाढ़स दिया था। लूका ही अकेला ऐसा लेखक था, जिसने यीशु की आखिरी प्रार्थना के इन शब्दों को दर्ज़ किया: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं।” (1:10, 13; 2:37; 3:21; 6:12; 9:28, 29; 18:1-8; 11:1; 22:39-46; 23:46) लूका के ज़माने की तरह आज भी प्रार्थना एक अहम इंतज़ाम है, जिसके ज़रिए परमेश्वर की मरज़ी पूरी करनेवालों को हौसला मिलता है।
34 अपने तेज़ दिमाग और कलम के जादू से लूका ने यीशु की शिक्षाओं में प्यार की भावना को उजागर किया और उन्हें जानदार बनाया। यीशु ने कमज़ोरों, सताए और कुचले हुओं के लिए जो प्यार, कृपा, दया और करुणा दिखायी, वह शास्त्रियों और फरीसियों के रूखे, बाहरी, दिखावटी धर्म से एकदम अलग था। (4:18; 18:9) यीशु ने हमेशा कंगालों, बंधुओं, अंधों और कुचले हुओं की हौसला-अफज़ाई की। इस तरह वह उन लोगों के लिए एक बढ़िया आदर्श छोड़ गया, जो ‘उसके चिन्हों पर चलना’ चाहते हैं।—1 पत. 2:21.
35 अद्भुत काम करनेवाले परमेश्वर के सिद्ध बेटे, यीशु ने अपने चेलों और सभी नेकदिल लोगों के लिए प्यार और परवाह दिखायी। हमें भी अपनी सेवा में प्यार दिखाने की कोशिश करनी चाहिए। जी हाँ, “हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा” हमें ऐसा करने को उकसाती है। (लूका 1:78, NW) इसके लिए “लूका रचित सुसमाचार” वाकई बहुत ही फायदेमंद है। हम यहोवा के बहुत आभारी हो सकते हैं कि उसने “प्रिय वैद्य” लूका को इतना सही और हौसला बढ़ानेवाला ब्यौरा लिखने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि यह ब्यौरा बताता है कि हमें उद्धार परमेश्वर के राज्य के द्वारा मिलेगा, जिसका राजा यीशु मसीह है और जो ‘परमेश्वर के उद्धार का ज़रिया’ है।—कुलु. 4:14; लूका 3:6, NW.
[फुटनोट]
a लूका की डॉक्टरी भाषा (अँग्रेज़ी), सन् 1954, डब्ल्यू. के. होबर्ट, पेज 11-28.
b एक वकील बाइबल की जाँच करता है (अँग्रेज़ी), सन् 1943, आय. एच. लिनटन, पेज 38.
c इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 766-7.
d नयी खोज और बाइबल (अँग्रेज़ी), सन् 1955, ए. रेन्डल शॉर्ट, पेज 211.
e यहूदी लड़ाई (अँग्रेज़ी), V, 491-515, 523 (12, 1-4); VI, 420 (9, 3); इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 751-2 भी देखिए।