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कौन सचमुच आनंदित हैं?प्रहरीदुर्ग—1989 | जनवरी 1
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अपने चेलों को अपने शब्द निर्दिष्ट करते हुए, यीशु शुरु करता है: “धन्य हो तुम, जो दीन हो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है। धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो, क्योंकि तृप्त किए जाओगे। धन्य हो तुम, जो अब रोते हो, क्योंकि हँसोगे। धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के कारण लोग तुम से बैर करेंगे . . . उस दिन आनंदित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिए स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है।”
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कौन सचमुच आनंदित हैं?प्रहरीदुर्ग—1989 | जनवरी 1
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परंतु, आनंदित होने से यीशु का मतलब, केवल खुशमिज़ाज या उल्लासपूर्ण होना नहीं है, जैसा कि जब कोई व्यक्ति मज़ा करता है। सच्ची खुशी अधिक गहरी होती है जिसके अर्थ में तृप्ति, संतोष का एक एहसास और जीवन में परितोष के विचार का समावेश है।
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कौन सचमुच आनंदित हैं?प्रहरीदुर्ग—1989 | जनवरी 1
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यीशु का क्या मतलब है? ऐसा क्यों है कि धन-संपत्ति का होना, हँसते हँसते सुख-विलास में लगे रहना, और मनुष्यों की प्रशंसा में आनंद करना विपत्ति लाता है? यह इसलिए है कि जब किसी व्यक्ति के पास ये चीज़ें होती हैं या वह इन्हें मूल्यवान समझता है, तब परमेश्वर के प्रति सेवा, जो अकेले सच्ची खुशी ला सकती है, उसके जीवन से अलग रखी जाती है। उसके साथ-साथ यीशु का यह मतलब न था कि मात्र ग़रीब, भूख़ा, और शोकपूर्ण होना ही किसी व्यक्ति को आनंदित बनाता है। परंतु, अक़्सर ऐसे असुविधा-प्राप्त व्यक्ति शायद यीशु के उपदेशों के अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाएँगे, और इस प्रकार वे सच्चे आनंद से आशीर्वाद प्राप्त किए जाते हैं।
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