उसकी मिसाल पर चलिए, जिसने हमेशा की ज़िंदगी का वादा किया
“परमेश्वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलो।”—इफि. 5:1.
1. कौन-सी काबिलीयत हमें यहोवा की मिसाल पर चलने में मदद दे सकती है?
यहोवा ने हमें इस काबिलीयत के साथ बनाया है कि हम दूसरों की भावनाएँ समझ सकते हैं। कुछ हद तक हम तब भी उनकी भावनाएँ समझ सकते हैं जब हम उनके जैसे हालात से कभी न गुज़रे हों। (इफिसियों 5:1, 2 पढ़िए।) यह काबिलीयत हमें यहोवा की मिसाल पर चलने में कैसे मदद दे सकती है? और हमें इस काबिलीयत का इस्तेमाल करते वक्त क्यों सावधान रहना चाहिए?
2. जब हम मुश्किलों का सामना करते हैं तब यहोवा को कैसा महसूस होता है?
2 यहोवा ने हम सभी को एक सुनहरा भविष्य देने का वादा किया है, फिर चाहे हम अभिषिक्त मसीही हों या ‘दूसरी भेड़’ के लोग। अभिषिक्त मसीही स्वर्ग में हमेशा जीने की आस लगा सकते हैं और ‘दूसरी भेड़’ के लोग धरती पर। किसी को कोई दुख-तकलीफ नहीं सहनी पड़ेगी। (यूह. 10:16; 17:3; 1 कुरिं. 15:53) लेकिन आज जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है, तो यहोवा हमारा दर्द समझता है। बीते समय में, इसराएलियों को मिस्र में मुश्किलें झेलते देखकर यहोवा को बहुत दुख हुआ। जी हाँ, “उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया।” (यशा. 63:9) सदियों बाद, जब यहोवा के लोग दोबारा मंदिर बना रहे थे और उन्हें अपने दुश्मनों का डर था, तब भी उसने उनकी तकलीफ को समझा। उसने उनसे कहा, “जो तुम को छूता है, वह मेरी आँख की पुतली ही को छूता है।” (जक. 2:8) ठीक जैसे माँ अपने बच्चे से प्यार करती है, वैसे यहोवा अपने सेवकों से प्यार करता है और उनकी मदद करना चाहता है। (यशा. 49:15) जब हम खुद को दूसरों की जगह रखकर उनका दर्द महसूस करने की कोशिश करते हैं, तो हम यहोवा के जैसा प्यार दिखा रहे होते हैं।—भज. 103:13, 14.
यीशु ने यहोवा के जैसा प्यार दिखाया
3. क्या बात दिखाती है कि यीशु को लोगों से हमदर्दी थी?
3 जिन मुश्किलों से लोग गुज़र रहे थे उनसे हालाँकि यीशु कभी नहीं गुज़रा था, फिर भी वह उनका दर्द समझ सका। उदाहरण के लिए, यीशु जानता था कि लोग कितनी मुश्किल भरी ज़िंदगी जी रहे हैं। धर्म-गुरु उनसे झूठ बोलते थे और अपनी तरफ से ढेर सारे नियम बना देते थे। लोग इन धर्म-गुरुओं से डर-डरकर जीते थे। (मत्ती 23:4; मर. 7:1-5; यूह. 7:13) हालाँकि यीशु उनसे कभी नहीं डरा और न ही उसने उनके झूठ पर कभी विश्वास किया, फिर भी वह समझ पाया कि लोग कैसा महसूस करते हैं। इसलिए “जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” (मत्ती 9:36) अपने पिता की तरह यीशु लोगों से प्यार करता था, उन पर दया और अनुग्रह या हमदर्दी दिखाता था।—भज. 103:8.
4. जब यीशु ने देखा कि लोगों को कैसी-कैसी तकलीफें सहनी पड़ती हैं, तो उसने क्या किया?
4 जब यीशु ने देखा कि लोगों को कैसी-कैसी तकलीफें सहनी पड़ती हैं, तो उसने उनकी मदद की, क्योंकि वह उनसे प्यार करता था। इस तरह हू-ब-हू उसने अपने पिता की तरह प्यार दिखाया। उदाहरण के लिए, एक बार यीशु और उसके प्रेषितों ने प्रचार करते-करते बहुत लंबा सफर तय किया था। अब वे बहुत थक गए थे और एकांत में थोड़ा आराम करना चाहते थे। लेकिन यीशु ने देखा कि बहुत-से लोग उसका इंतज़ार कर रहे हैं। वह समझ गया कि उन्हें उसकी मदद की ज़रूरत है, इसलिए थके होने के बावजूद वह “उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।”—मर. 6:30, 31, 34.
यहोवा के जैसा प्यार दिखाइए
5, 6. अगर हम अपने भाई-बहनों के लिए यहोवा के जैसा प्यार दिखाना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा? एक उदाहरण दीजिए। (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
5 अगर हम यहोवा के जैसा प्यार दिखाना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा? ज़रा इस उदाहरण पर गौर कीजिए। ऐलन नाम का एक जवान भाई है। वह एक बुज़ुर्ग भाई के बारे में सोच रहा है, जो ठीक से चल नहीं सकते और उनकी आँखों की रौशनी भी कमज़ोर है। ऐलन यीशु की कही बात याद करता है, “ठीक जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” (लूका 6:31) ऐलन खुद से पूछता है, ‘मैं क्या चाहता हूँ कि लोग मेरे साथ करें?’ वह कहता है, ‘मैं चाहता हूँ कि वे मेरे साथ फुटबॉल खेलें!’ लेकिन यह बुज़ुर्ग भाई दौड़ नहीं सकते, इसलिए वे फुटबॉल नहीं खेल सकते। तो फिर ऐलन को क्या करना चाहिए? उसे खुद से पूछना चाहिए, ‘अगर मैं उस बुज़ुर्ग भाई की जगह होता, तो मैं क्या चाहता कि दूसरे मेरे साथ करें?’
6 हालाँकि ऐलन जवान है, मगर वह यह समझने की कोशिश करता है कि अगर वह बुज़ुर्ग होता तो वह कैसा महसूस करता। इसलिए वह उस बुज़ुर्ग भाई के साथ समय बिताता है और उनकी बात ध्यान से सुनता है। धीरे-धीरे वह समझ पाता है कि भाई को बाइबल पढ़ने और प्रचार में एक घर से दूसरे घर जाने में कितनी मुश्किल होती है। अब वह समझ पा रहा है कि वह उस बुज़ुर्ग भाई की कैसे मदद कर सकता है। उससे जितना हो सकता है, वह उनकी पूरी-पूरी मदद करना चाहता है। हम भी कुछ ऐसा ही कर सकते हैं। अगर हम अपने भाई-बहनों के लिए यहोवा के जैसा प्यार दिखाना चाहते हैं, तो हमें खुद को उनकी जगह रखकर देखना होगा और समझना होगा कि वे कैसा महसूस करते हैं।—1 कुरिं. 12:26.
7. हम अपने भाई-बहनों का दर्द कैसे समझ सकते हैं?
7 लेकिन दूसरों का दर्द समझना हमेशा आसान नहीं होता, खास तौर से तब, जब हम उनके जैसे हालात से कभी न गुज़रे हों। उदाहरण के लिए, हो सकता है हमारे बहुत-से भाई-बहन बीमार हों या उन्हें कोई चोट लगी हो या उम्र ढलने की वजह से वे बहुत परेशान रहते हों। कुछ शायद गहरी निराशा (डिप्रेशन) से जूझ रहे हों या दिन-रात उन्हें कोई चिंता सताती हो, या हो सकता है बीते समय में उनके साथ कुछ दुर्व्यवहार हुआ हो, जिस वजह से वे आज भी बहुत परेशान रहते हों। कुछ शायद अपने बच्चों की अकेले परवरिश करते हों या शायद उनके परिवार के सदस्य सच्चाई में न हों। हर कोई किसी-न-किसी समस्या से जूझ रहा है। और ज़्यादातर भाई-बहनों की समस्याएँ ऐसी हैं, जिनसे हम शायद कभी न गुज़रे हों। फिर भी हम उनके लिए अपना प्यार दिखाना चाहते हैं, उनकी मदद करना चाहते हैं। तो फिर हम कैसे उनकी मदद कर सकते हैं? शायद हर किसी को अलग तरह से मदद की ज़रूरत हो। इसलिए बेहतर होगा कि हम हर व्यक्ति की बात ध्यान से सुनें और हमेशा यह समझने की कोशिश करें कि वह कैसा महसूस करता है। इससे हम जान पाएँगे कि हम कैसे बेहतर ढंग से उसकी मदद कर सकते हैं। हम उसे यह याद दिला सकते हैं कि यहोवा उसकी परेशानी के बारे में कैसा महसूस करता है। या फिर हम किसी और तरीके से उसकी मदद कर सकते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम यहोवा की मिसाल पर चल रहे होते हैं।—रोमियों 12:15; 1 पतरस 3:8 पढ़िए।
यहोवा की तरह कृपा दिखाइए
8. लोगों के साथ कृपा से पेश आने में किस बात से यीशु को मदद मिली?
8 परमेश्वर के बेटे ने कहा, “परम-प्रधान . . . एहसान न माननेवालों और दुष्टों पर भी कृपा करता है।” (लूका 6:35) यीशु मसीह इस मामले में भी हू-ब-हू अपने पिता की तरह है। जब यीशु धरती पर था, तो लोगों के साथ कृपा से पेश आने में किस बात से उसे मदद मिली? उसने इस बारे में पहले से सोचा कि उसकी बातों और कामों का दूसरों पर कैसा असर हो सकता है। उस स्त्री की मिसाल लीजिए, जिसने बहुत-से बुरे काम किए थे। वह यीशु के पास आयी और रोने लगी। वह इतना रोयी कि उसके आँसू यीशु के पैरों पर गिरने लगे। यीशु देख सकता था कि वह अपने पापों की वजह से कितनी दुखी है और उसने इसके लिए पश्चाताप भी किया है। उसने भाँप लिया कि अगर वह उसके साथ रुखाई से पेश आएगा, तो वह अंदर से और भी टूटकर रह जाएगी। इसलिए उसने उस औरत के अच्छे कामों के लिए उसकी सराहना की और उसे माफ कर दिया। यीशु ने उस स्त्री के लिए जो किया, उससे एक फरीसी सहमत नहीं था। मगर यीशु उस फरीसी के साथ भी प्यार से पेश आया।—लूका 7:36-48.
9. यहोवा की तरह हम कैसे लोगों के साथ कृपा से पेश आ सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
9 यहोवा की तरह हम कैसे लोगों के साथ कृपा से पेश आ सकते हैं? हम जो कहना या करना चाहते हैं, उसके बारे में हमें पहले से सोचना चाहिए, ताकि हम दूसरों के साथ नर्मी से पेश आएँ और उनकी भावनाओं को चोट न पहुँचे। प्रेषित पौलुस ने लिखा कि एक मसीही को “लड़ने की ज़रूरत नहीं बल्कि ज़रूरी है कि वह सब लोगों के साथ नर्मी से पेश आए।” (2 तीमु. 2:24) ज़रा सोचिए कि आगे बताए हालात में आप कैसे नर्मी से पेश आ सकते हैं: आपने जिसे काम पर रखा है, वह ठीक से काम नहीं करता। ऐसे में आप क्या करेंगे? एक भाई काफी समय बाद सभा में आता है। उसके साथ आप कैसे पेश आएँगे? प्रचार में आप एक ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं, जो व्यस्त होने की वजह से आपकी बात सुनने से इनकार कर देता है। उसके साथ आप कैसे नर्मी से पेश आएँगे? आपने अपनी पत्नी से सलाह लिए बिना कुछ योजना बनायी है और वह आपसे पूछती है कि आपने उससे इस बारे में क्यों नहीं पूछा। क्या आप उसके साथ नर्मी से पेश आएँगे? ऐसे हालात में यह समझना ज़रूरी है कि दूसरे कैसा महसूस करते हैं और हमारी बातों का उन पर क्या असर हो सकता है। ऐसा करने से हम जान पाएँगे कि अगर हम यहोवा की तरह, लोगों के साथ कृपा से पेश आना चाहते हैं, तो हमें क्या कहना या करना चाहिए।—नीतिवचन 15:28 पढ़िए।
यहोवा की तरह बुद्धि से काम लीजिए
10, 11. यहोवा की तरह हम कैसे बुद्धि से काम ले सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
10 यहोवा के पास बेजोड़ बुद्धि है और वह चाहे तो यह देख सकता है कि भविष्य में क्या होगा। हालाँकि हम भविष्य के बारे में पहले से तो नहीं जान सकते, मगर हम उसकी तरह बुद्धि से काम ज़रूर ले सकते हैं। कैसे? कोई फैसला लेने से पहले हमें सोचना चाहिए कि इसका हम पर या दूसरों पर क्या असर हो सकता है। हमें इसराएलियों की तरह नहीं होना चाहिए। उन्होंने इस बारे में नहीं सोचा कि अगर वे यहोवा की आज्ञा नहीं मानेंगे तो इसका क्या अंजाम होगा। उन्होंने यहोवा के साथ अपने रिश्ते के बारे में नहीं सोचा और यह भी नहीं सोचा कि यहोवा ने उनके लिए क्या कुछ किया है। यह बात मूसा समझ गया था और वह जानता था कि इसराएली जो करने जा रहे हैं वह यहोवा की नज़र में बुरा है। इसलिए उसने सब इसराएलियों के सामने कहा, “यह जाति युक्तिहीन तो है, और इनमें समझ है ही नहीं। भला होता कि ये बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपने अन्त का विचार करते!”—व्यव. 31:29, 30; 32:28, 29.
11 ज़रा इस हालात पर गौर कीजिए। मान लीजिए आप किसी के साथ डेटिंग कर रहे हैं। ऐसे में आपको क्या याद रखना चाहिए? आपको याद रखना चाहिए कि जब आप किसी को चाहने लगते हैं, तब अपने जज़्बातों और लैंगिक इच्छाओं को काबू में रखना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए ऐसा कुछ मत कीजिए जिससे यहोवा के साथ आपका अनमोल रिश्ता खतरे में पड़ सकता है! इसके बजाय, यहोवा की इस बुद्धि-भरी सलाह के मुताबिक कदम उठाइए, “चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़कर दण्ड भोगते हैं।”—नीति. 22:3.
अपने सोच-विचार पर काबू रखिए
12. हम जो सोचते हैं, उसका हम पर बुरा असर कैसे हो सकता है?
12 एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने सोच-विचार पर काबू रखता है। हमारे सोच-विचार आग की तरह होते हैं। आग हमें फायदा भी पहुँचा सकती है और नुकसान भी। अगर इसका सावधानी से इस्तेमाल किया जाए तो इससे फायदा हो सकता है, जैसे हम इससे खाना पका सकते हैं। लेकिन अगर हम सावधान न रहें तो यही आग हमारा घर जलाकर राख कर सकती है। यहाँ तक कि हमारी जान ले सकती है। उसी तरह हम जिन बातों के बारे में सोचते हैं, उससे या तो हमें फायदा हो सकता है या नुकसान। हम यहोवा से जो बातें सीखते हैं, अगर हम उनके बारे में सोचें तो इससे हमें फायदा होगा। लेकिन अगर हम लैंगिक अनैतिकता के बारे में सोचते रहें और बुरे काम करने की कल्पना करते रहें तो इसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है। एक वक्त ऐसा आएगा कि हममें बुरे काम करने की इतनी ज़बरदस्त इच्छा होगी कि हम ये काम कर बैठेंगे। नतीजा, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता बरबाद हो जाएगा।—याकूब 1:14, 15 पढ़िए।
13. हव्वा ने अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या कल्पना की?
13 इस मामले में हम पहली स्त्री, हव्वा से सबक सीख सकते हैं। यहोवा ने आदम और हव्वा को आज्ञा दी थी कि वे “भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है,” उसका फल न खाएँ। (उत्प. 2:16, 17) लेकिन शैतान ने हव्वा से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे! वरन् परमेश्वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” हव्वा कल्पना करने लगी कि अगर वह खुद यह तय कर सके कि उसके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा, तो उसकी ज़िंदगी कितनी बेहतर होगी। वह इस बारे में सोचती ही रही और उसने “देखा कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ” है। फिर क्या हुआ? “उसने उसमें से तोड़कर खाया, और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया।” (उत्प. 3:1-6) नतीजा, “पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी।” (रोमि. 5:12) गलत काम करने के बारे में सोचते रहने का क्या ही भयानक अंजाम हुआ!
14. लैंगिक अनैतिकता के बारे में बाइबल हमें किस तरह खबरदार करती है?
14 माना कि हव्वा ने जो पाप किया, वह लैंगिक अनैतिकता से जुड़ा पाप नहीं था। लेकिन बाइबल हमें लैंगिक अनैतिकता के बारे में कल्पना करने से खबरदार करती है। यीशु ने कहा, “हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस स्त्री के साथ व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती 5:28) पौलुस ने भी खबरदार किया, “शरीर की वासनाओं को पूरा करने के मनसूबे न बाँधो।”—रोमि. 13:14.
15. हमें कौन-सी दौलत पर ध्यान लगाए रखना चाहिए और क्यों?
15 एक और तरह के ख्वाब देखना खतरनाक हो सकता है। वह है, माला-माल होने के ख्वाब देखना जबकि परमेश्वर को खुश करने पर कोई ध्यान न देना। एक अमीर आदमी को लगता है कि उसकी दौलत “ऊँचे पर बनी हुई शहरपनाह है” जो उसकी हिफाज़त करेगी। (नीति. 18:11) मगर यीशु ने कहा कि जो इंसान “धन-दौलत बटोरने में लगा रहता है” जबकि यहोवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह नहीं देता, वह मूर्ख है। वह “परमेश्वर की नज़र में असल में कंगाल है।” (लूका 12:16-21) जब हम यहोवा की मरज़ी के मुताबिक काम करके “स्वर्ग में धन जमा” करते हैं, तो उसका दिल कितना खुश होता है और हमें भी कितनी खुशी होती है! (मत्ती 6:20; नीति. 27:11) वाकई, यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता, दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है!
हद-से-ज़्यादा चिंता मत कीजिए
16. जब हम किसी बात से बहुत परेशान होते हैं, तो क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
16 अगर हम इस दुनिया में अमीर बनने की कोशिश करेंगे, तो हम और भी चिंताओं के बोझ से दब जाएँगे। (मत्ती 6:19) यीशु ने कहा था कि जो हमेशा धन-दौलत के बारे में सोचता रहता है, उसके लिए परमेश्वर के राज को ज़िंदगी में पहली जगह देना बहुत मुश्किल होगा। (मत्ती 13:18, 19, 22) कुछ लोग हमेशा इस चिंता में रहते हैं कि कहीं उनके साथ कुछ बुरा न हो जाए। अगर हम हद-से-ज़्यादा चिंता करते रहेंगे तो हम बीमार पड़ सकते हैं, यहाँ तक कि यहोवा पर हमारा विश्वास कमज़ोर पड़ने लग सकता है। इसके बजाय, हमें भरोसा रखना चाहिए कि यहोवा हमारी मदद करेगा। बाइबल कहती है, “चिन्ता से मनुष्य का हृदय निराश होता है, परन्तु शान्ति की बात उसे आनन्दित कर देती है।” (नीति. 12:25, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) इसलिए अगर आप किसी बात से बहुत परेशान हैं या चिंता में हैं, तो किसी ऐसे व्यक्ति से बात कीजिए जो यहोवा की सेवा करता है और जो आपको अच्छी तरह जानता है। जैसे आपके माता-पिता, आपका जीवन-साथी या कोई अच्छा दोस्त। वे आपका हौसला बढ़ा सकते हैं कि आप यहोवा पर भरोसा रखें और इस तरह वे आपकी चिंता कम करने में मदद कर सकते हैं।
17. जब हम चिंता या परेशानी में होते हैं, तब यहोवा कैसे हमारी मदद कर सकता है?
17 हमारी चिंता या परेशानी जितनी अच्छी तरह यहोवा समझता है, उतनी अच्छी तरह और कोई नहीं समझ सकता। जब हम परेशान होते हैं, तो यहोवा हमें मन की शांति दे सकता है। पौलुस ने लिखा, “किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर को बताते रहो। और परमेश्वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्ति से कहीं ऊपर है, मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।” (फिलि. 4:6, 7) इसलिए जब आप किसी चिंता या परेशानी में होते हैं, तो सोचिए कि यहोवा कैसे उसके साथ आपकी दोस्ती मज़बूत बनाए रखने में आपको मदद देता है। सोचिए कि वह हमारे भाई-बहनों, प्राचीनों, विश्वासयोग्य दास, स्वर्गदूतों और यीशु के ज़रिए कैसे मदद देता है।
18. सोचने या कल्पना करने की हमारी काबिलीयत कैसे हमारी मदद कर सकती है?
18 जैसा कि हमने इस लेख में सीखा, जब हम अपनी सोचने या कल्पना करने की काबिलीयत के ज़रिए दूसरों का दर्द समझने की कोशिश करते हैं, तब हम यहोवा की मिसाल पर चल रहे होते हैं। (1 तीमु. 1:11; 1 यूह. 4:8) जब हम दूसरों के लिए प्यार दिखाते हैं, उनके साथ कृपा से पेश आते हैं, जब हम पहले से सोचते हैं कि हमारे कामों का क्या अंजाम हो सकता है और जब हम हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करते तब हम खुश रहते हैं। आइए हम कल्पना करें कि परमेश्वर के राज में हमारी ज़िंदगी कैसी होगी। साथ ही, सोचने या कल्पना करने की अपनी काबिलीयत का इस्तेमाल करके हम यहोवा के जैसा प्यार दिखाएँ, दूसरों के साथ कृपा से पेश आएँ, बुद्धि से काम लें और खुश रहें।—रोमि. 12:12.