यीशु का जीवन और सेवकाई
दया में शिक्षा
यीशु अब भी नाईन में हो सकता है जहाँ उसने हाल ही में एक विधवा के पुत्र का पुनरुत्थान किया है, या शायद वह निकट के ही एक नगर में भेंट कर रहा है। एक फरीसी जिसका नाम शिमौन है चाहता है कि ऐसे आश्चर्यजनक कार्य करने वाले को देखे। अतः वह यीशु को अपने साथ भोजन के लिये आमन्त्रित करता है।
इस अवसर पर उपस्थित लोगों की सेवा का एक अच्छा मौका मान कर यीशु उस निमन्त्रण को स्वीकार कर लेता है वैसे ही जैसे वह पापी और महसूल लेनेवाले के साथ खाने का निमन्त्रण स्वीकार करता था। तथापि, जब वह घर में प्रवेश करता है, यीशु का वैसा हार्दिक स्वागत नहीं होता जैसा अतिथियों का किया जाता है।
उसकी चप्पलें व पैरों की तरफ से वस्त्र, गलील की धूलभरी सड़कों पर चलने के कारण गन्दे हो गये थे और यहाँ की परम्परा के अनुसार अतिथी के पैरों को ठण्डे पानी से धोना अतिथिसत्कार का एक भाग था। लेकिन यीशु के वहाँ पहुँचने पर उसके पैर नहीं धोये गये। न ही किसी ने उसे चूमा जो सामान्य आचारों का प्रतीक था। और परम्परागत रीति से उसके सिर में तेल भी नहीं लगाया गया।
भोजन के दौरान जब वह अतिथी शय्या पर अधलेटी अवस्था में है, एक स्त्री जिसे बुलाया नहीं गया था, चुपचाप कमरे में प्रवेश करती है। उसे शहर में अनैतिक आचरण के लिये जाना जाता है। उसने भी यीशु की शिक्षाओं को सुना है जिसमें यीशु “सब थके और बोझ से दबे लोगों” को अपने पास बुलाता है ताकी उन्हें ‘विश्राम दे’। और जो उसने सुना और देखा था उससे अत्यन्त प्रभावित होकर, अब वह यीशु को पा जाती है।
वह स्त्री मेज के समीप यीशु के पीछे आकर उसे पैरों के पास घुटने टेककर बैठ जाती है। जैसे-जैसे उसके आँसू उसके पैरों पर गिरते हैं वह अपने बालों से उन्हें पोंछती जाती हैं। वह अपनी मशक से सुगन्धित तेल लेकर, उसके पैरों को चूमती और उन पर वे तेल लगाती है। शिमौन यह देखकर नाराज़ होता है। वह सोचता है “यदि यह व्यक्ति भविष्यद्वक्ता है क्या यह जानता है कि जिस स्त्री ने उसे छुआ वह पापी है।”
उसके विचारों को भांपकर यीशु कहता है: “हे शिमोन, मैं तुझे कुछ कहना चाहता हूँ।”
वह प्रत्युत्तर देता है, “हे गुरु, उसे कह दे।”
यीशु कहता है, “दो व्यक्ति एक ऋण देनेवाले के ऋणी थे, एक पाँच सौ दिनार का ऋणी तथा दूसरा पचास का। जब उनके पास ऋण चुकाने के लिये कुछ न बचा, तब ऋण देने वाले ने उन्हें क्षमा कर दिया। इसलिये कौन उसके प्रति अधिक प्रेम रखेगा?”
शायद प्रश्न के महत्व को न समझते हुये शिमौन कहता है: “मैं सोचता हूँ जिसे उसने ज्यादा क्षमा किया।”
यीशु ने कहा: “तूने सही उत्तर दिया।” फिर उसने स्त्री की ओर पलटकर शिमौन से कहा, “क्या तूने इस स्त्री को देखा? मैं तेरे घर में आया पर तू ने मुझे पैर धोने के लिये पानी तक नहीं दिया। पर इस स्त्री ने अपने आँसुओं से मेरे पैर धोये और अपने बालों से उन्हें पोंछा। तूने तो मुझे नहीं चूमा पर यह स्त्री जब से आयी है मेरे पैरों को चूम रही हैं, तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला; पर इस स्त्री ने मेरे पैरों पर सुगन्धित तेल मला है।”
इस प्रकार से इस स्त्री ने अपने अनैतिक अतीत के लिये पूरे हृदय से पश्चाताप का प्रमाण दिया। अतः यीशु ने अंत में कहा: “इस कारण मैं तुझे कहता हूँ इसके पाप चाहे जैसे हों क्षमा किये गये हैं क्योंकि इसने अधिक प्रेम प्रकट किया है। लेकिन जिसे कम क्षमा किया गया है वह कम प्रेम बताता है।”
यीशु यहाँ अनैतिकता को क्षमा या उसका निन्दा नहीं कर रहा था। इसके बजाय यह घटना ऐसे लोगों के लिये उसकी समझ के बारे में बताती है जो जीवन में गलतियाँ करके उनका पश्चाताप करते हैं और विश्राम के लिये यीशु के पास आते हैं। उस स्त्री को सच्ची विश्रान्ती देकर यीशु कहता है “तेरे पाप क्षमा किये गये . . . तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया . . . जा तुझे शान्ती मिले।” लूका ७:३६-५०; मत्ती ११:२८-३०.
◆ यीशु का आतिथ्य उसके मेजबान शिमौन ने कैसे किया?
◆ बाहर यीशु को कौन ढूंढ रहा था और क्यों?
◆ यीशु ने क्या दृष्टान्त बताया और उसे किस तरह लागू किया?