यीशु का जीवन और सेवकाई
यीशु के दृष्टान्तों से लाभ उठाना
सागर तट पर जनसमूह के लिए यीशु के भाषण के बाद जब उसके शिष्य उसके पास आते हैं, वे उसके सिखाने की नयी रीति के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं। खैर, उन्होंने उसे दृष्टान्तों को पहले भी उपयोग करते हुए सुना है किन्तु इतने विस्तृत रूप में नहीं। इसलिए वे जानना चाहते हैं: “तू उन से दृष्टान्तों मे क्यों बातें करता है?”
ऐसे करने का एक कारण भविष्यवक्ता के शब्दों को पूर्ण करने के लिए था: “दृष्टान्तों के साथ मैं अपना मुँह खोलूंगा। मैं प्राचीनकाल की गुप्त बातों कहूँगा।” लेकिन इस में इस से भी अधिक कुछ अर्थ है। दृष्टान्त का उपयोग लोगों की मनोवृत्ति को जानने में सहायता देने के उद्देश्य को सार्थक बनाता है।
वास्तव में, अधिकतम लोग यीशु को केवल एक प्रभावशाली कथक और आश्चर्यजनक कार्य करनेवाले के रूप में ही चाहते हैं, न कि एक प्रभु के रूप में जिसकी सेवा की जानी चाहिए और जिसका निस्वार्थ रीति से अनुकरण किया जाना चाहिए। वे उनकी जीवन-चर्य्या या अन्य बातों के बारे में उनके दृष्टिकोण में कोई बाधा नहीं चाहते। वे नहीं चाहते कि यह संदेश उस कदर तक प्रवेश करें। इसलिए यीशु कहता है:
“मैं उन से दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हुँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। और उन के विषय में यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी होती है, कि . . . क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है।”
“पर”, यीशु आगे कहता है, “धन्य है तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं। क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं ने और धर्मियों ने चहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं।”
जी हाँ, वे १२ प्रेरितों के मन और जो उनके साथ हैं, उनके मन ग्रहणशील हैं। इसलिए यीशु कहता है: “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उन को नहीं।” समझ प्राप्त करने की उनकी इच्छा के कारण यीशु उसके शिष्यों को उस बीज बोनेवाले के दृष्टान्त का विवरण देता है।
यीशु कहता है कि “बीज तो परमेश्वर का वचन है”, और भूमि हृदय है। उस बीज के बारे में जो पक्का सड़क के किनारे बोया जाता है, वह विवरण देता है: “शैतान आकर उन के मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएं।”
दूसरी ओर, वे बीज जो ऐसी भूमि पर बोये जाते हैं जिसके नीचे चट्टान है, उन लोगों के दिलों को सूचित करते हैं जो वचन को खुशी से स्वीकार करते हैं। किन्तु, इसलिए कि ऐसे दिलों में वचन गहन आधार नहीं ले सकता, ये लोग उत्पीड़न या परीक्षा के समय गिर जाते हैं।
उस बीज के सम्बन्ध में जो काँटों के बीच गिरा यीशु आगे कहता है, ये वे लोग हैं जिन्होंने वचन के बारे में सुना हैं। किन्तु, उन पर इस जीवन की चिन्ताओं, सुख और धन-दौलत का गहरा प्रभाव पड़ने के करण वे पूरी तरह रुद्ध हो जाते हैं और कुछ भी सम्पूर्णता में नहीं लाते।
और अन्त में यीशु उस बीज के बारें मे बताता है जो अच्छी भूमि में बोया गया है, कि वे, वे लोग हैं जो वचन को एक उत्कृष्ट और अच्छे हृदय से सुनते हैं, उसे अपने पास रखते हैं और सहनशक्ति के साथ फल उत्पन्न करते हैं।
ये शिष्य कितने धन्य हैं जिन्होंने यीशु से उसके शिक्षणों का अर्थ पाने के लिए खोज की! यीशु यह चाहता है कि उसके दृष्टान्त समझे जाएं ताकि सच्चाई दुसरों में बाँट दी जाए। वह पुछता है, “क्या दिए को इसलिये लाते हैं कि पैमाने या खाट के नीचे रखा जाए?” जी नहीं, “परन्तु इसलिए कि दीवट पर रखा जाए।” इस तरह फिर यीशु आगे कहता है: “चौकस रहो, कि तुम क्या सुनते हो।” मत्ती १३:१०-२३, ३४-३६; मरकुस ४:१०-२५, ३३, ३४; लूका ८:९-१८; भजन ७८:२; यशायाह ६:९, १०.
◆ यीशु ने दृष्टान्तों में बात क्यों की?
◆ कैसे यीशु के शिष्य दिखाते हैं कि वे भीड़ से विभिन्न हैं?
◆ यीशु बीज बोनेवाले के दृष्टान्त का क्या विवरण देता है?