बाइबल का दृष्टिकोण
क्या दूसरी जातियों से नफरत करना जायज़ है?
मान लीजिए आपके बारे में यह कहा जाता है कि आप एक मक्कार, खूँखार, बेवकूफ या बदचलन इंसान हैं, सिर्फ इसलिए कि आप फलाँ-फलाँ जाति के हैं, तो यह सुनकर आपको कैसा लगेगा? बेशक आपको बहुत बुरा लगेगा। दुःख की बात है कि आज लाखों लोगों के साथ ऐसा ही अन्याय हो रहा है। इसके अलावा, सदियों से न जाने कितने ही मासूमों के साथ बुरा सलूक किया गया है, यहाँ तक कि उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। उनका कसूर बस इतना था कि वे अलग जाति या देश के थे। देखा जाए तो आज भी ज़्यादातर लड़ाइयाँ और खून-खराबे, जाति को लेकर नफरत की वजह से होते हैं। और हैरत की बात है कि ऐसी हिंसा को सही करार देनेवाले कई लोग, परमेश्वर और बाइबल पर विश्वास करने का दावा करते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका मानना है कि जाति-भेद कभी नहीं मिटेगा क्योंकि यह इंसान की रग-रग में बसा हुआ है।
क्या बाइबल, जाति-जाति के बीच की नफरत को सही करार देती है? क्या ऐसे कुछ हालात हैं जब दूसरी संस्कृति या जाति के लोगों से नफरत करना गलत नहीं होगा? क्या कभी ऐसा दिन आएगा जब जाति को लेकर कोई किसी से नफरत नहीं करेगा? बाइबल इस बारे में क्या बताती है?
किए की सज़ा
पुराने ज़माने में परमेश्वर, अलग-अलग जातियों के साथ कैसे पेश आया, इसका ब्यौरा बाइबल में दिया गया है। इस बारे में अगर कोई सरसरी तौर पर पढ़े, तो वह इस गलत नतीजे पर पहुँच सकता है कि परमेश्वर ने जाति-जाति के बीच नफरत को जायज़ ठहराया था। क्या बाइबल के ढेरों किस्सों से ऐसा नहीं लगता कि परमेश्वर एक जल्लाद है जो जातियों और देशों का वजूद ही मिटा देता है? ऊपरी तौर पर पढ़ने से ऐसा लग सकता है। लेकिन अगर हम उन किस्सों को ध्यान से पढ़ें, तो हम जान पाएँगे कि परमेश्वर ने उन जातियों को सज़ा के लायक क्यों ठहराया था। इसकी वजह यह नहीं थी कि परमेश्वर किसी जाति से नफरत करता था बल्कि यह कि उन जातियों के लोग, उसकी आज्ञाओं को ठुकराकर घिनौने काम करने से बाज़ नहीं आ रहे थे।
मिसाल के लिए, कनानियों की बात लीजिए। यहोवा परमेश्वर ने इसलिए उन्हें सज़ा के लायक ठहराया क्योंकि वे बदचलनी की हद पार कर चुके थे और दुष्टात्माओं से जुड़े रस्मों-रिवाज़ों में डूबे हुए थे। वे झूठे देवी-देवताओं को बलि चढ़ाने के लिए अपने मासूम बच्चों तक को आग में होम कर देते थे! (व्यवस्थाविवरण 7:5; 18:9-12) मगर उनमें से कुछ कनानियों ने परमेश्वर पर विश्वास दिखाया और पश्चाताप किया। इसलिए, यहोवा ने उनकी जान बख्शी और उन्हें आशीष दी। (यहोशू 9:3,25-27; इब्रानियों 11:31) राहब नाम की एक कनानी स्त्री को तो वादा किए मसीहा, यीशु की पूर्वज बनने की आशीष मिली।—मत्ती 1:5.
इस्राएलियों को दी गयी परमेश्वर की कानून-व्यवस्था से ज़ाहिर होता है कि वह किसी का पक्ष नहीं लेता। इसके बजाय, वह दिल से सभी लोगों की भलाई चाहता है। लैव्यव्यवस्था 19:33,34 में इस्राएलियों को दी गयी परमेश्वर की यह आज्ञा साफ दिखाती है कि वह कितना करुणामयी है: “यदि कोई परदेशी तुम्हारे देश में तुम्हारे संग रहे, तो उसको दु:ख न देना। जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिये देशी के समान हो, और उस से अपने ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।” इसी से मिलती-जुलती आज्ञाएँ, निर्गमन और व्यवस्थाविवरण की किताबों में दर्ज़ हैं। इन सबसे ज़ाहिर होता है कि यहोवा ने जाति-जाति के बीच की नफरत को जायज़ नहीं ठहराया बल्कि उसने बार-बार एकता और मेल-मिलाप से रहने पर ज़ोर दिया।
यीशु ने सहनशीलता का सबक सिखाया
यीशु के ज़माने में यहूदी और सामरी, एक-दूसरे से बेहद नफरत करते थे। एक बार, जब यीशु सामरियों के किसी गाँव में गया तो वहाँ के लोगों ने उसे ठहरने की जगह नहीं दी, सिर्फ इसलिए कि वह यहूदी जाति से था और यरूशलेम जा रहा था। अगर आप उसकी जगह होते, तो क्या करते? यीशु के चेलों में शायद बाकी लोगों की तरह जाति-भेद की भावना थी, तभी तो उन्होंने यीशु से पूछा: “हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे”? (लूका 9:51-56) मगर चेलों की तरह क्या यीशु का मन भी कड़वाहट से भर गया? नहीं, इसके बजाय उसने अपने चेलों को डाँटा और शांति से दूसरे गाँव की ओर चल पड़ा। इस वाकये को ज़्यादा वक्त नहीं बीता था कि यीशु ने दयालु सामरी का दृष्टांत बताया। इस दृष्टांत से यह बात बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से साबित हुई कि एक इंसान सिर्फ अपनी जाति की वजह से, दूसरी जाति का दुश्मन नहीं बन जाता। हो सकता है वह उस दयालु सामरी की तरह दूसरों की मदद करनेवाला एक नेक इंसान साबित हो!
मसीही कलीसिया में अलग-अलग जाति से आए लोग
धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने खासकर अपनी जाति के लोगों को चेला बनाया। मगर उसने बताया कि भविष्य में दूसरी जाति के लोग भी उसके चेले बनेंगे। (मत्ती 28:19) क्या यहोवा उन लोगों को कबूल करता जो अलग-अलग जाति से आते? बिलकुल! प्रेरित पतरस ने कहा: “अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों 10:35) इसी बात को प्रेरित पौलुस ने बाद में पुख्ता करते हुए साफ-साफ कहा कि मसीही कलीसिया में एक इंसान की जाति कोई मायने नहीं रखती।—कुलुस्सियों 3:11.
परमेश्वर सभी जाति के लोगों को कबूल करता है, इसका एक और सबूत बाइबल की प्रकाशितवाक्य की किताब में दिया गया है। प्रेरित यहून्ना ने ईश्वर-प्रेरणा से मिले एक दर्शन में ‘हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक बड़ी भीड़’ देखी जिसे परमेश्वर उद्धार दिलाता है। (प्रकाशितवाक्य 7:9,10) यह “बड़ी भीड़” एक नए समाज की नींव होगी, जिसमें हर जाति-भाषा के लोग होंगे और परमेश्वर के लिए प्यार उन सभी को शांति और एकता की डोरी में बाँधे रहेगा।
उस समय के आने तक, मसीहियों को चाहिए कि वे दूसरी जाति के लोगों के बारे में कोई गलत राय कायम न करें। परमेश्वर की तरह हमें हर इंसान की कीमत उसके गुणों के मुताबिक आँकनी चाहिए, न कि उसकी जाति की बिनाह पर। ऐसा करना न्याय और प्रेम का गुण दिखाना होगा। क्या आप नहीं चाहते कि लोग आपको भी उसी नज़र से देखें? इस सिलसिले में यीशु ने हमें यह बढ़िया सलाह दी: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) वाकई, ऐसा माहौल कितना खुशनुमा होता है जहाँ नफरत की कोई दीवार नहीं होती। इससे मन को सुकून मिलता है और दूसरों के साथ शांति बनी रहती है। मगर इससे भी बढ़कर, हम अपने सिरजनहार, यहोवा परमेश्वर की मिसाल पर चल रहे होते हैं जो किसी भी जाति से नफरत नहीं करता। नफरत की इस दीवार को गिराने के लिए इससे बड़ी वजह और क्या हो सकती है! (g03 8/8)